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शनिवार, 11 अप्रैल 2015

भारतीय रेल फिल्मों के लिए फायदे का सौदा

रेलवे स्टेशन, प्लेटफॉर्म या फिर पटरी पर दौड़ती झुक-झुक करती रेल। फिल्मों के साथ भारतीय रेल का रिश्ता काफी पुराना होने के साथ ही मुनाफे का सौदा भी है। रुपहले पर्दे पर दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में शाहरुख-काजोल का प्लेटफॉर्म पर दौड़ते हुए ट्रेन के साथ अपने प्रेमी से मिलने की बेताबी हो या फिर अपने जमाने की मशहूर फिल्म शोले में ट्रेन पर फिल्माया गया सीन। भारतीय रेलवे फिल्म के निर्माता से ट्रेन या प्लेफॉर्म पर फिल्माए जाने वाले हर सीन के लिए पैसा वसूल करती है। रेलवे ने बकायदा इसके लिए अलग-अलग किराया भी तय कर रखा है। भारतीय रेलवे देश भर के स्टेशनों को तीन श्रेणियों में बांटा है। स्टेशन के हिसाब से फिल्म निर्माताओँ से लाइसेंस फीस वसूल की जाती है। ए श्रेणी के स्टेशन के लिए फिल्म निर्माताओं को 1 लाख रुपया प्रतिदिन के अनुसार भुगतान करना होता है। बी श्रेणी के स्टेशन पर फिल्मों की शूटिंग के लिए फीस के रुप में प्रतिदिन 50 हज़ार रुपया चुकाना होता है। तीसरी कैटगरी यानि सी श्रेणी के स्टेशनों पर शूटिंग के लिए महज 25 हज़ार रुपया प्रतिदिन के हिसाब से पैसे का भुगतान करना होता है। इसके अलावा किसी भी तरह के जोखिम से निपटने के लिए 5-7 करोड़ का बीमा भी कराना होता है। भारतीय रेलवे फिल्म निर्माताओं से बैंक गारंटी के तौर पर 5 लाख रुपये का इंतजाम करने को कहती है। यह रकम बाद में कोई नुकसान नहीं होने पर लौटा दी जाती है। स्टेशन या प्लेटफॉर्म के मुकाबले ट्रेन के भीतर फिल्मों शूटिंग करना ज्यादा महंगा सौदा है। लेकिन ट्रेन में शूटिंग का अपना अलग ही रोमांच होता है। ट्रेन में फिल्मों की शूटिंग के लिए प्रतिदिन ढ़ाई लाख रुपये खर्च करने होते हैं। आमंतौर पर फिल्मों की शूटिंग के लिए जो ट्रेन मिलती है उसमें 1 इंजन और चार डिब्बे होते हैं। अगर ज्यादा बड़ी ट्रेन की ज़रुरत है तो फिर उसके लिए फिल्म के निर्माता को अतिरिक्त पैसों का भुगतान करना होता है। ट्रेन में शूटिंग के लिए 1 लाख 80 हज़ार रुपये सिक्योरिटी के रुप में जमा कराने होते हैं। इन सबके अलावा यूनिट का खर्चा जो होता है वह अलग से होता है। ये तो बात हुई फिल्मों से रेलवे को होने वाली कमाई की। अब आइए आपको बताते हैं कि किस तरह से रेलवे का इस्तेमाल कर निर्माता देश के कोने-कोने में अपनी फिल्में पहुंचाया करते थे। शुरुआती दौर पर रेलवे ही दूरदराज के शहरों में जल्दी और सुरक्षित तरीके से पहुंचने का एक मात्र जरिया हुआ करती थी। एक लोकेशन से दूसरे लोकेशन जाने के लिए यूनिट के लोग रेलवे का ही इस्तेमाल किया करते थे। तकरीबन 95 वर्षों तक फिल्मों के पचास किलो वाले प्रिंट ट्रेनों से ही पूरे देश भर में भेजे जाते रहे हैं परंतु अब सैटेलाइट बीमिंग के कारण प्रिंट ही खारिज हो गए हैं। फिल्मों में भारतीय रेल आजादी के पहले 1941-42 में मेहबूब खान की ‘रोटी’ में रेलवे प्लेटफॉर्म पर एक जनजाति का आदमी चंद पैसों में ‘हिंदू चाय पीता’ है। फिर एक व्यक्ति उसे ‘मुस्लिम चाय’ बेचता है तो वह दोनों चाय बेचने वालों को मारता है कि एक ही चाय दो नाम से बेच रहे हो। यह अनपढ़ मेहबूब खान का जीनियस है कि धर्मनिरपेक्षता का सबक जनजाति वाला दे रहा है। जनजातियों और आदिवासियों में कोई जाति या धर्म भेद नहीं होता, प्रकृति को पूजते हैं। शादियों का आधार प्रेम है और सबसे गरीब जोड़ा भी मात्र चार कुल्हड़ शराब एक-दूसरे के ऊपर डालकर विवाह सूत्र में बंध जाते हैं। आजादी के पांच वर्ष बाद ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ आई, जिसमें 24 घंटे एक जगह रुकना पड़ा और वहां व्यापार प्रारंभ हो गया। कम्पार्टमेंट का भाईचारा काफूर हो गया। विमल राय का देवदास कम्पार्टमेंट में पहला घूंट शराब का लेता है और इंजन की धधकती आग में कोयला डालने का शाॅट है। इंजन के धुंए का भी कई फिल्मों में प्रतीकात्मक इस्तेमाल हुआ है। विजय आनंद की ‘कालाबाजार’ में ऊपर की बर्थ पर वहीदा रहमान हैं, नीचे देवआनंद गाना गाते हैं, ‘अपनी तोे हर तूफान है, ऊपर वाला जानकर अंजान है।’ मां की मुद्रा उसकी नाराजगी जाहिर करती है तो पति इशारे से कहता है कि ‘ऊपर वाले’ से उसका तात्पर्य ‘ईश्वर’ है, हमारी बेटी नहीं। विजय आनंद तो खूब खेलता था परंतु उम्रदराज सचिन देव बर्मन रेल का गाना बनाना है, सुनते ही प्रसन्न हो जाते थे। रेल की सिटी में माधुर्य खोजना उनके बस की ही बात थी। याद कीजिए आराधना का गीत ‘मेरे सपनों की रानी।’ रेल की छत पर नासिर हुसैन का नायक नाचता था तो मनमोहन देसाई का नायक गुंडों को पीटता था। मेरे लड़कपन की प्रिय नाडिया ट्रेन की छत पर घोड़ा दौड़ाती थी। ट्रेन डकैती का सर्वश्रेष्ठ दृश्य दिलीप की ‘गंगा जमना’ में है, फिर शोले है और बोनी की ‘रूप की रानी’ में भी उत्तेजक दृश्य था। रेल दृश्य कविता की तरह ‘जोकर’ में आया था। एक फिल्म में तलाकशुदा पति-प|ी को जोड़ा समझकर एक कूपा दिया गया और यात्रा में उनके मन में मौजूद प्रेम की चिंगारी ने फिर रिश्ता बना दिया। शाहरुख खान मणिर|म की फिल्म में ट्रेन में ‘छैयां छैयां’ गाते है। ‘दुल्हनिया’ में ट्रेन का इस्तेमाल हुआ है परंतु इम्तियाज अली की ‘जब वी मैट’ के अत्यंत महत्वपूर्ण दृश्य रेल में हैं। चेन्नई एक्सप्रेस’ में भी अनेक हास्य दृश्य ट्रेन में फिल्माए गए हैं। बहरहाल, जावेद अख्तर की एक नज्म में इस आशय की बात है कि चलती ट्रेन से स्थिर दरख्त भागते हुए से लगते हैं। शायद समय भी दरख्त की तरह खड़ा है और हम ही भाग रहे हैं। भारतीय रेल में रोजाना ऑस्ट्रेलिया की पूरी आबादी के बराबर यानी लगभग 2 करोड़ 30 लाख से ज्यादा यात्री सफर करते हैं लेकिन इस पर भी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है जिसने अभी तक ट्रेन में पैर तक नहीं रखा. करोड़ों-अरबों में कारोबार करने वाले फिल्म उद्योग के लिए भी रेल मोटी कमाई का जरिया रही है. कई फिल्म निर्माताओं ने रेल को अपनी फिल्म का अनिवार्य हिस्सा बना कर बॉक्स ऑफिस पर खूब नोट बटोरे हैं. शोले, गदर, चेन्नई एक्सप्रेस रेल को ही पृष्ठभूमि में रख कर बनायी गयी फिल्में हैं, जो अपने-अपने समय की सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्म है. फिल्मों में ट्रेन पर फिल्माया क्लाइमेक्स दृश्य फिल्में समाज का आईना होती हैं. हमारे फिल्म निर्माताओं ने रेल को बड़ी खूबसूरती से अपनी कहानी में पेश किया है. कई अहम फिल्में जिनकी कहानी रेल पर शुरू हुई या रेल के दृश्य ने फिल्म को एक अलग दिशा में मोड़ दिया. हो सकता है कि फिल्मों की शूटिंग रेल पर करने में ज्यादा पैसे खर्च होते हो लेकिन इन दृश्यों के दम पर ही कई फिल्मों ने तगड़ी कमाई की है. चेन्नई एक्सप्रेस- फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस का नाम ही बड़े रोचकता के साथ लिया जाता है फिल्म के कई महत्वपूर्ण दृश्य और कहानी की शुरुआत ही ट्रेन से होती है. इस फिल्म को लोगों ने खुब पसंद किया और कमाई के मामले में भी फिल्म ने कई रिकोर्ड तोड़ दिये. राजधानी एक्सप्रेस- टेनिस लिएंडर पेस ने राजधानी एक्सप्रेस नाम की फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा लेकिन राजधानी एक्सप्रेस की रफ्तार से फिल्म पटरी से उतर गयी. फिल्म में पेस ने दमदार भूमिका निभायी लेकिन उनका यह अंदाज लोगों को पसंद नहीं आया. साल 2013 में फिल्म कब रिलीज हुई और कब फ्लॉप हो गयी किसी को पता नहीं चला. द बर्निग ट्रेन- इस फिल्म का स्टारकॉस्ट बहुत बड़ा था धमेन्द्र, जितेन्द्र, विनोद खन्ना, डैनी के अलावा हिरोईनों की भी एक लंबी फेहरिस्त थी. यह फिल्म 1980 में रिलीज हुई थी. पहली बार ट्रेन के कई शानदार दृश्यों को इस फिल्म के जरिये दिखाया गया. इस फिल्म में स्टारकॉस्ट और कहानी इतनी दमदार थी कि फिल्म आज भी अपना अलग मुकाम बनाने में सफल है. एक चालीस की लास्ट लोकल - मुंबई की लोकल ट्रेन को आधार बनाकर बनायी गयी इस फिल्म को भी लोगों ने कम पसंद किया. अभय देओल और नेहा धूपिया ने इस फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. ऐसी फिल्मों की एक लंबी फेहरिस्त है. इसके अलावा ट्रेन पर कई ऐसे सीन शूट किये गये हैं जिसे लोग काफी पंसद करते हैं. फिल्म गदर का वो दृश्य जिसमें हीरो अपनी प्रेमिको को पाकिस्तान से हिंदुस्तान ला रहा है ट्रेन पर पाक फौजी उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. फिल्म शोले को वो दृश्य जिसमें जय और बीरू को थानेदार गिरफ्तार करके जेल ले जा रहा है और ठीक उसी वक्त ट्रेन लूटने के लिए डाकू ट्रेन पर हमला कर देते हैं. जय और बीरू इस लूट को रोकने की कोशिश करते हैं. शाहरुख खान की फिल्म दिल से का गाना छैया , छैया. आमिर की फिल्म गुलाम को वो दृश्य जिसमें आमिर ट्रेन से रेस लगाते हैं. इन सभी दृश्यों को बाद महानायक राजेश खन्ना की फिल्म अराधना का वो गाना जिसमें शर्मिला टैगोर ट्रेन से जा रही हैं और राजेश मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू गाना गा रहे हैं. हमारे पास ऐसे कई उदाहण है जो दर्शाते हैं कि कहानी को सरल और साधारण ढंग से बयां करने के लिए ट्रेन कितनाा महत्वपूर्ण है. एक्शन, रोमांस, इमोशन सभी तरह के दृश्य बड़े सहज ढंग से ट्रेनों पर फिल्माये गये हैं. सुनने में तो यह भी आया है कि जितना प्रॉफिट इंडियन रेलवे को बॉलीवुड से होता है उतना तो यात्रियों से भी नहीं होता, और मजे की बात तो यह है कि हर साल बॉलीवुड में किसी न किसी डायरेक्टंर को छुक-छुक गाड़ी की जरूरत पड़ ही जाती है फिर चाहे हिरोइन को ट्रेन की छत पर नचाना हो या फिर हीरो को ट्रेन के आगे दौड़ाना हो. छुक-छुक गाड़ी के इस फंडे पर बॉलीवुड की कई फिल्मों के सीन शूट किए जा चुके हैं, हम आज आपको कुछ ऐसे ही सीन्स के बारे में बताएंगे जिन्हें शूट करना न तो डायरेक्ट के लिए इजी था और न हीरो के लिए. लेकिन आज बॉलीवुड के लिए यह यादगार सीन बन चुके हैं, गुलाम इस फिल्म में आमिर खान को ट्रेन के ऑपोजिट डिरेक्शन में दौड़ लगानी थी. यह स्‍टंट आमिर से जब कहा गया की इस स्टंट के लिए किसी स्टंटमैन को ले लिया जाए तो उन्हों ने ने साफ इंकार करते हुए कहा कि नहीं वह खुद इसे करेंगे और बेहतरीन तरीके से उन्हों ने यह सीन शूट किया। लेकिन हां, शूट के बाद आमिर इतना नर्वस हो गए थे कि कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे. रोबोट फिल्म के एक सीन में रजनीकांत को ऐश्‍वर्या राय को गुंडों से बचाना था. सीन ट्रेन के एक कोच मे शूट किया गया था. बदमाशों से बचाने में रजनीकांत को जो स्टंट देने पड़े उनमें कम्‍प्‍यूटर टेक्‍नोलॉजी का भी इस्तेनमाल किया गया है. लेकिन सीन इतना रियलिस्टिक है की इसे देख कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं. लक इमरान खान ने अपनी तीसरी ही फिल्म में यह साबित कर दिया था की वो बॉलीवुड में सिर्फ चॉकलेटी बॉय के रोल करने ही नहीं आए बल्कि वो स्‍टंट सीन में भी खुद को काफी कम्फर्टेबल महसूस करते हैं. इस बात को उन्हों ने लक फिल्म में चलती हुई माल गाड़ी पर दौड़ने वाले सीन को कर के साबित भी कर दिया. दिल से इस फिल्म का एक गाना ट्रेन पर ही शूट किया गया है. गाने में किंग खान मलाइका अरोड़ा के साथ ठुमके लगा रहे हैं. आलोचकों की माने तो फिल्म का यह एक ऐसा गाना था जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ थिएटर में इक्‍टठा हुई थी. बाकी यह फिल्‍म तो बॉक्‍स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा पाई. द बर्निंग ट्रेन यह पूरी फिल्म में ही ट्रेन के पर बनी है. इस फिल्म में एक नहीं बल्कि इतने स्‍टंट है जिन्‍होंने गिना नहीं जा सकता. फिल्म में पूरी ट्रेन में आग लग जाती और फिर कैसे तीन मेचोमैन सारे यात्रियों को बचाते हैं यही इस फिल्म का क्लाइमेक्स है। भारतीय रेल और हिंदी फिल्मों के कनेक्शन की बात की जाए तो दोनों के बीच दशकों पुराना संबध हैं। आजादी से पहले भी ट्रेनों को लेकर फिल्में बनी और आज भी यह सिलसिला जारी है। सिनेमा के हर दौर में ट्रेन उसका हिस्सा रही है। ट्रेनों को लेकर फिल्मों में सीन फिल्माए गए। रोमेंटिक गाने पेश किए गए। ट्रेन की सीटी की आवाज ने कई फिल्म निर्माताओं को लुभाया। ऎसे सीन की हम कल्पना कर सकते है जब शर्मिला टैगोर टॉय ट्रेन की खिड़की की ओर देखती है और सुपर स्टार राजेश खन्ना गाना गाते है 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तु'। रोमेंटिक फिल्मों के बादशाह निर्देशक यश चोपड़ा की रोमेंटिक फिल्म 'दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में काजोल व शाहरूख के बीच ऎसे सीन फिल्माए गए। जहां हीरो से मिलने के लिए हीरोइन चलती ट्रेन के पीछे-पीछे काफी देर तक दौड़ती है। इसके अलावा फिल्म 'दिल से' में शाहरूख और मलाइका अरोड़ा खान के बीच 'छैयां-छैयां' गाना शूट किया गया। ट्रेन की छत पर शूट हुआ यह गाना काफी पॉपुलर हुआ। नए की तलाश में फिल्मनिर्माता फिल्म 'रूप की रानी चोरो का राजा,शोले,दबंग,अजनबी,आपकी कसम और चेन्नई एक्सप्रेस आदि इस बात का गवाह है कि फिल्मों का ट्रेन से खासा कनेक्शन रहा है।

International Conference on Communication Trends and Practices in Digital Era (COMTREP-2022)

  Moderated technical session during the international conference COMTREP-2022 along with Prof. Vijayalaxmi madam and Prof. Sanjay Mohan Joh...