फ़ॉलोअर

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

उड़िया फिल्म निर्माण के 75 वर्ष : पृष्ठभूमि पर एक नजर

28 अप्रैल, 1936 को मोहन सुंदर देब गोस्वामी द्वारा प्रथम बोलती उड़िया फिल्म सीता बिबाह का प्रदर्शन दीर्घकालीन फिल्म आन्दोलन की दिशा में एक विशेष क्षण था और इसने स्थानीय पहचान की अभिव्यक्ति को एक नया आयाम दिया। लंबे समय के संघर्ष के बाद, इसी वर्ष 1 अप्रैल को भाषा विज्ञान के क्षेत्र में एक राष्‍ट्रीय विचारधारा के गठन से ठीक पहले यह महत्वपूर्ण कार्य हुआ। भारतीय राजतंत्र में बाद के वर्षों में देश के भाषा विषयक राज्यों के लिए यह एक अग्रदूत थी।
ऐतिहासिक 1 अप्रैल से सिर्फ एक सप्ताह पूर्व, सीता बिबाह का 12 रीलों वाला प्रथम प्रिंट पहले से 25 मार्च को तैयार हो चुका था और 29 मार्च को कोलकाता के भ्रमणकारी सिनेमा में दिखाया गया। हालांकि, फिल्म मात्र 29,781 रूपए और 10 आना के छोटे-से बजट में ही तैयार हुई थी और औपचारिक रूप से 28 अप्रैल को ओडीशा के पुरी में लक्ष्मीटाकी में प्रदर्शित की गई।
आज जब हम फिल्म निर्माण के पिछले 75 वर्षों को देखते हैं तो बहुत सी चींजें धुंधली हो सकती हैं पर फिर भी यह एक विशिष्ट उड़िया पहचान का स्पष्ट प्रभाव देती हैं।
व्यापक रूप में, उड़िया फिल्म निर्माण से जुड़े वर्षों को 25 वर्षों के तीन बराबर चरणों में विभाजित किया जा सकता है-पहला चरण संघर्ष और विकास का था, द्वितीय स्वर्णिम समय रहा और तृतीय एक भरपूर निर्माण के साथ गुणवत्तापूर्ण मानकों और सौन्दर्यपरकता से भी समझौते का समय था।
दूसरी उड़िया फिल्म ललिता 1949 में बनी और इसके बाद 1960 के दशक की शुरूआत तक करीब 1 दर्जन फिल्में बनाई गईं। यदि हम पिछले एक वर्ष में फिल्म निर्माण पर गुणात्मक दृष्टि डालते हैं तो अंतिम चरण में पिछले वर्षों में फिल्म निर्माण की संख्या एकल अंक से बढ़कर दो अंकों में पहुंच गई है।
पिछले ढाई दशकों में, 1960 से 1985 के बीच, मनीकजोड़ी (प्रभात मुखर्जी, 1964), अम्दाबता (अमर गांगुली, 1964), अभिनेत्री (अमर गांगुली, 1965), मालान्जन्हा;(निताई पलित, 1965), मैत्रा मनीषा (मृणाल सेन, 1966), अरूंधति (प्रफुल्ल सेनगुप्ता, 1967), काई कहारा (निताई पलित, 1968), अदिना मेघ (अमित मैत्रा, 1970), घर बहुधा, (सोना मुखर्जी, 1973), धरित्री, (निताई पलित, 1973), जाजाबारा, (त्रिमूर्ति, 1975), गापा हेले बी साता (नागेन रे, 1976), शेष श्रवण (प्रशांत नंदा, 1976), अभिमान, (साधु मेहर, 1977), चिल्का टायर (बिप्लब रॉय चौधरी, 1978), सितारती, (मनमोहन महापात्रा, 1983), माया मृग, (निरद महापात्रा, 1984) और धारे अलुआ, (सगीर अहमद, 1984) जैसी फिल्में कलापूर्ण श्रेष्ठता और व्यवसायिक रूप से परिपूर्ण थीं और इन्होंने स्वर्णिम युग कहे जाने में अपना योगदान दिया ।
अस्सी के दशक में, उड़िया सिनेमा के कलापूर्ण और सौन्दर्यपरक विषयों ने अपने आप को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में ढाल लिया। 1984 में, निरद महापात्रा की फिल्म माया मृग राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ रही और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में भी इसे आधारिक तौर पर शामिल किया गया। हालांकि राष्ट्रीय पहचान पाने में इसे एक और दशक लगा। 1994 में, सुसान्त मिश्रा की इन्द्रधर्नुर छाई पर राष्ट्रीय स्तर पर जूरी का विशेष ध्यान गया और कान फिल्म महोत्सव के अन-सरटेन रिगार्ड सैक्शन में यह प्रतिस्पर्धात्मक दौर में रही। फिर इसे रूस के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव एसओसीएचआई में ग्रैंड प्रिक्स हासिल हुआ।
फिर से करीब 15 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद, प्रशांत नंदा की जिंन्ता भूटा ने 2009 में पिछले वर्ष पर्यावरण श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। इस प्रकार से राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तरों पर उड़िया फिल्म की स्थिति का मूल्यांकन हुआ। हालांकि उड़िया फिल्में लगभग निरंतर हर वर्ष सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हैं। उनके निर्देशक जैसे मनमोहन महापात्रा, सगीर अहमद, ए.के. बिर, शांतनु मिश्रा, प्रणब दास, हिमांशु खतुआ और सुबास दास विशेष श्रेणी में आते हैं।
राष्ट्रीय संदर्भ में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भारतीय पैनोरमा में कदम रखना एक मील का पत्थर है। मनमोहन महापात्रा की सितारती पहली बार 1983 में भारतीय पैनोरमा में शामिल हुई और वर्तमान वर्ष में, सुधांशु साहू की स्वयंसिध्दा; ए गर्ल ऑन द रैड कॉरीडोर को इसमें 12वां स्थान मिला। निरद महापात्रा, सगीर अहमद,, बिप्लब रॉय चौधरी, सुसान्त मिश्रा, बिजय केतन मिश्रा और प्रफुल्ल मोहन्ती जैसे अन्य निर्देशकों ने सिनेमा को उच्च आयाम तक पहुंचा दिया।
जब 1970 के मध्य दशक के दौरान फिल्म देखने के मामले में बहुत रूझान नहीं था ऐसे में प्रशांत नंदा की शेष श्रवण, 1976, और साधु मेहर की अभिमान, 1977 लोगों को वापस सिनेमा हॉल की तरफ लेकर आईं। गीत और संगीत भी उड़िया सिनेमा में एक महत्वपूर्ण उपस्थिति रखता है। पहली फिल्म सीता बिबाह में कुल 14 गाने थे सभी को क्षेत्रीय लोकगायन अंदाज में पारंपरिक संगीत साजों के साथ कलाकारों द्वारा गाया गया था। हालांकि ललिता में, पार्श्वगायकी की पहल संगीतकार गौरी गोस्वामी और सुरेन पाल के निर्देशन में की गई थी और गीत खासतौर पर कबिचंद्रा कालीचरण पाठक द्वारा लिखे गये थे। 1950 में बनी तीसरी फिल्म श्री जगन्नाथ में रंजीत रॉय और बालकृष्ण दास के संयुक्त संगीत निर्देशन में चार पार्श्वगायक थे। 1959 में अक्षय मोहन्ती ने भुवनेश्वर मिश्र के संगीत निर्देशन के साथ पार्श्वगायक के तौर पर मां फिल्म बनाई। एक अन्य पार्श्वगायक सिकन्दर आलम ने 1963 में बालकृष्ण दास के संगीत निर्देशन में सूर्यमुखी बनाई। नारायण प्रसाद सिंह और देबदास छोटरे ने गीतकारों के साथ-साथ 1962 में नुआबाउ और 1967 में का के साथ अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई। इस समय तक गीत और संगीत पूरी तरह से पारंपरिक और देसी रागों पर आधारित था।
पश्चिमी संगीत से प्रभावित होकर, शांतनु महापात्रा ने 1963 में सूर्यमुखी में एक आधुनिक रूख को प्रस्तुत किया जबकि अक्षय मोहन्ती ने 1965 में मालाजन्हा में संगीत निर्देशक के तौर पर कदम रखा। प्रफुल्ल कर 1975 में बनी ममता में पहली बार संगीतकार के रूप में सामने आये। जबकि बालकृष्ण दास उड़िया लोकसंगीत गायकी और बोली के साथ प्रयोग कर रहे थे, भुवनेश्वर मिश्र, शांतनु महापात्रा और अक्षय मोहन्ती ने उड़िया पारंपरिक धुन को पश्चिमी धुनों से जोड़ा। उन्होंने उड़िया फिल्म गीतों में आधुनिक गायकी को बढ़ावा दिया।
प्रफुल्ल सेनगुप्ता की 1967 में बनी अरूंधती, उड़िया फिल्म परंपरा में एक मील का पत्थर बनी क्योंकि इसमें संगीतकार शांतनु महापात्रा के निर्देशन में गीतकार जीबननंदा के गीतों को मौ. रफी और लता मंगेशकर ने अपनी आवाज के जादू से अमर कर दिया।
मलय मिश्र और बिकास दास जैसे संगीतकारों के हाथों में उड़िया फिल्मों का भविष्य उज्ज्‍वल नजर आता है क्योंकि वे नेईजारे मेघ माटे और अजि आकाशे की रंग लगिला में हिट संगीत देकर अपनी योग्यता को सिध्द कर चुके हैं।
जहां एक तरफ शुरूआती दौर में, विषयपरक कहानियों की पंक्तियां पौराणिक कथाओं पर आधारित होती थीं वहीं 1953 की अमारी गान जुहा और 1956 की भाई-भाई के बाद से यह समाजिक संदर्भो से जुड़ें विषयों की तरफ मुड़ गईं। 1960 के दशक के दौरान, मनिकाजोडी, अमदा बता, अभिनेत्री, मालाजन्हा, मैत्रा मनीषा और अदिना मेघा काफी लोकप्रिय लेखन पर आधारित थीं। 1960 और 1970 दोनों दशकों में, महिलाएं ही उड़िया सिनेमा में अपनी व्यथा, प्रसन्नता, भावनाओं और बॉक्स ऑफिस के रैंक पर आधारित बाहरी और आंतरिक मूल्यांकनों में मुख्य भूमिका में रहीं।
पिछले 75 वर्षों में समृध्द उड़िया फिल्म इतिहास और अपने हरफनमोला व्यक्तित्वों के साथ विचारणीय विषयों और स्टाईलिश परिवर्तनों से गुजर चुका है। इससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे ओडीशा देश में एक प्रमुख फिल्म निर्माण केन्द्र के रूप में विकसित हो चुका है।

पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन

राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 पर्यावरण सुरक्षा को विकास प्रक्रिया के अभिन्न अंग और सभी विकास गतिविधियों में पर्यावरणीय प्राथमिकता के रूप में पहचान प्रदान करती है। इस नीति का मुख्य ध्येयवाक्य है कि पर्यावारणीय संसाधनों का संरक्षण जीविका, सुरक्षा और सभी के कल्याण के लिए जरूरी है। इसके साथ ही संरक्षण के लिए मुख्य आधार यह होना चाहिए कि किन्हीं खास संसाधनों पर आश्रित लोग संसाधनों के क्षरण से नहीं बल्कि उसके संरक्षण से अपनी जीविका चलाएं। यह नीति विभिन्न हितधारकों को अपने संबंधित संसाधन का दोहन करने और पर्यावरण प्रबंधन का जरूरी कौशल हासिल करने के लिए उनके बीच साझेदारी को बढावा देती है।


पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अधिसूचना, 2006 के तहत विकास परियोजनाओं, गतिविधियों, प्रक्रियाओं आदि के लिए पूर्व पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करना आवश्यक है।


विधायी ढांचा
पर्यावरण संरक्षण के लिए मौजूदा विधायी ढांचा मुख्य रूप से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 , जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम,1974 , जल प्रभार अधिनियम, 1977 और वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 में सन्निहित है। वन और जैव विविधता के प्रबंधन से संबंधित विनियम भारतीय वन अधिनियम, 1927, वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ,वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम,1972, और जैवविविधता अधिनियम, 2002 में निहित हैं। इसके अलावा भी कई और नियम हैं जो इन मूल अधिनियमों के पूरक हैं।


तकनीकी कौशल एवं निगरानी अवसंरचना के अभाव और पर्यावरणीय नियमों को लागू करने वाले संस्थानों में प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण ये नियम पूरी तरह लागू नहीं हो पा रहे हैं। इसके अलावा सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले स्थानीय समुदाय की भी नियमों के अनुपालन की निगरानी में पर्याप्त भागीदारी नहीं होती है। निगरानी अवसंरचना में संस्थागत सार्वजनिक निजी साझेदारी का भी अभाव है।


पंचायती राज संस्थानों और शहरी निकायों को पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं की निगरानी के योग्य बनाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम चलाए गए तथा कई और कदम भी उठाए गए। इसके साथ ही नगरपालिकाओं को पर्यावरण के मोर्चे पर अपने कार्य की रिपोर्ट पेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। मजबूत निगरानी अवसंरचना खड़ी करने के लिए व्यवहारिक सार्वजनिक निजी साझेदारी पर पर्याप्त बल दिया जाएगा।


अधिसूचना, 2006
पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 देश के विभिन्न हिस्सों में विकास परियोजनाओं और उनकी विस्तारआधुनिकीरण गतिविधियों को विनियमित करती है। इसके तहत अधिसूचना की अनुसूची में दर्ज परियोजनाओं के लिए पूर्व अनापत्ति ग्रहण करना अनिवार्य है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के उप अनुच्छेद (1) तथा अनुच्छेद 3 के उप अनुच्छेद(2) के तहत प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत ईआईए अधिसचूना जारी की है।


इआईए अधिसूचना, 2006 के प्रावधानों के तहत परियोजना के लिए निर्माण कार्य शुरू या जमीन को तैयार करने से पहले अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करना जरूरी है। केवल भूमि अधिग्रहण इसका अपवाद है।


चरण
ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत पर्यावरणीय अनापत्ति के चार चरण हैं-जांच, कार्यक्षेत्र, जन परामर्श और मूल्यांकन।


परियोजनाएं
जिन परियोजनाओं के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र आवश्यक हैं उनमें पनबिजली परियोजनाएं, तापविद्युत परियोजनाएं, परमाणु बिजली परियोजनाएं, कोयला और गैर कोयला उत्पादों से संबंधित खनन परियोजनाएं, हवाई अडडे, राजमार्ग, बंदरगाह, सीमेंट, पल्प एंड पेपर, धातुकर्म आदि जैसी औद्योगिक परियोजनाएं शामिल हैं।


केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ए श्रेणी की परियोजनाओं के लिए विनियामक प्राधिकरण है जबकि राज्य एवं संघशासित स्तरीय पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण अपने अपने राज्यों और संघशासित क्षेत्रों की बी श्रेणी की परियोजनाओं के लिए विनियामक प्राधिकरण हैं। अबतक 23 राज्यों के लिए 22 राज्यसंघशासित पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण अधिसूचित किए गए हैं। उनमें पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मेघालय, कर्नाटक, पंजाब, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, राजस्थान और दमन एवं दीव शामिल हैं।


विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी)
ईएसी बहुविषयक क्षेत्रीय समितियां होती हैं जिसमें विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ होते हैं। इनका गठन क्षेत्र विशेष की परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिए ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत किया जाता है। ये अपनी सिफारिशें देती हैं।


शीघ्र फैसले के लिए कदम
ईआईए अधिसूचना, 2006 जारी होने के बाद पर्यावरणीय मूल्यांकन के लिए परियोजनाओं की बाढ अा गयी। शीघ्र निर्णय के लिए कई कदम उठाए गए जिनमें लंबित परियोजनाओं की स्थिति की सतत निगरानी, अधिकाधिक परियोजनाओं पर विचार के लिए विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की लंबी बैठकें, प्रक्रिया को सुसंगत बनाना तथा परियोजना स्थिति को आम लोगों के लिए उसे वेबसाइट पर डालना आदि शामिल हैं।


ईसी के लिए समय सीमा
ईआईए अधिसूचना, 2009 पर्यावरणीय अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए 105 दिनों की समय सीमा तय करती है जिनमें से 65 दिन ईएसी द्वारा मूल्यांकन के लिए तथा 45 दिन जरूरी प्रक्रिया एवं फैसले से अवगत कराने के लिए होते हैं।


2006 की ईआईए अधिसूचना में दिसंबर, 2009 में संशोधन किया गया था ताकि प्रक्रिया को और आसान एवं सुसंगत बनाया जा सके।

नीलगिरि का जनजातीय हस्‍तशिल्‍प

नीलगिरि अथवा ब्‍ल्‍यू माउंटेन का नाम जितना काव्‍यात्‍मक है, वह एक स्‍थान के रूप में भी वैसा ही है । तमिलनाडु के नीलगिरि जिले में टोडा, कोटा, कुरूम्‍बा, इरूला, पनियान और कट्टूनइक्‍कन जनजातियां रहती हैं । भारत सरकार ने इन छ: जनजातियों की प्राथमिक जनजातीय समूहों के रूप में पहचान की है । युगों-युगों से नीले पहाड़ों के जंगल उनके घर रहे हैं । सुंदर परिवेश में रहने के कारण ही वे उतने ही सुंदर हस्‍तशिल्‍पों के रचनाकार बने ।

इन छ: समूहों में टोडा जनजाति के लोग कसीदा संबंधी अपने कार्यों के लिए मशहूर हैं । टोडा जनजाति की महिलाएं कसीदाकारी में दक्ष होती हैं । उनका पारंपरिक परिधान मोटे -उजले सूती कपड़े से बना होता है और उस पर लाल, काली अथवा नीली पट्टी लगी होती है, जिस पर हाथ से कसीदा किया जाता है । कसीदाकारी में ऊनी अथवा सूती धागे का इस्‍तेमाल किया जाता है । आधुनिक आवश्‍यकताओं के अनुसार सेल फोन की थैली, टेबल क्‍लाथ, स्‍कार्फ और शॉल, स्‍कर्ट और टॉप, पर्स और बैग, फ्रॉक आदि भी बनाए जाते हैं । अम्‍बेडकर हस्‍तशिल्‍प विकास योजना के अधीन यह संभव हो पाया है । कई महिला स्‍व-सहायता समूह बनाए गए हैं, जिन्‍हें मिलाकर एक संघ बना दिया गया है । हालांकि टोडा जनजाति के लोग भैंसों का झुंड रखते थे और दूध के उत्‍पादों का व्‍यापार करते थे, किंतु कालांतर में भूमि के इस्‍तेमाल में आए बदलावों के कारण वे इससे वंचित हो गए । हालांकि उनका बेजोड़ हस्‍तशिल्‍प का आस्‍तित्‍व समय के साथ कायम रहा ।

कोटा जनजाति के लोग सात बस्‍तियों में रहते है जिन्‍हें आमतौर पर कोटागिरी या कोकल कहा जाता है । गांव के ये शिल्‍पकार बढ़ईगिरी, लुहार और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम अच्‍छी तरह कर लेते हैं । समय बदलने के साथ सिर्फ कुछ ही परिवार ऐसे हैं जो इन कौशलों पर निर्भर हैं। ये पट्टा भूमि के छोटे टुकड़ों पर खेती करके अपना जीवन बसर करते हैं ।

कुरुम्‍बा जनजाति के लोग बांस की टोकरियां बनाने तथा बांस से संबंधित अन्‍य कार्यों में निपुण हैं । कुरूम्‍बा जनजाति के लोगों का पारंपरिक कार्य, शहद और वनों में उत्‍पन्‍न अन्‍य चीजों को एकत्र करना है । ये जड़ी-बूटियों से औषधियां बनाने और पारंपरिक चीजों से उपचार करने में भी माहिर हैं । अब ये ज्‍यादातर खेती बाड़ी ही करते हैं और जिनके पास अपनी भूमि नहीं है वो यदा-कदा कृषि मजदूर की तरह काम करते हैं।

अन्‍य तीन समूह – इरूला, पनियान और कट्टूनइक्‍कन की दस्‍तकारी में कोई पारंपरिक विरासत नहीं है । ये आमतौर पर खाद्य पदार्थों या वन में उत्‍पन्‍न चीजों को एकत्रित करते हैं । अब ये कृषि क्षेत्र में अस्‍थायी मजदूरों के रूप में कार्य कर रहे हैं ।

2001 की गणना के अनुसार तमिलनाडु में कुल लगभग 651321 आदिवासी हैं जो कि कुल जनसंख्‍या का 1.02 प्रतिशत हैं । तमिलनाडु में 36 जनजातियां और उपजातियां हैं। लगभग हर जिले में इनकी उपस्‍थिति है और वन प्रबंध में इनका महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है ।

इन समूहों में साक्षरता की दर 27.9 प्रतिशत है । राज्‍य में ज्‍यादातर जनजातियां जीविका के लिए खेती बाड़ी तथा कृषि मजदूर के रूप में काम करती हैं या वे अपनी आजीविका के लिए वनों पर भी निर्भर रहती हैं । सिर्फ इन 6 समूहों को ही प्राचीन जनजाति का दर्जा दिया गया है ।

बुधवार, 10 नवंबर 2010

पटरी पर लौट रही है अर्थव्यवस्था

हाल ही में नई दिल्‍ली में संपन्‍न आर्थिक सम्‍पादकों के सम्‍मेलन में वित्‍त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने जो कहा, उससे यह बात साफ हो जाती है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पुन: रफ्तार पकड़ रही है और ऐसा लगता है कि वह शीघ्र ही आर्थिक संकट के पूर्व की स्‍थिति में आ जाएगी । उन्‍होंने अपने कथन के समर्थन में आंकड़े भी पेश किये । उन्‍हें पूरा भरोसा था कि अर्थव्‍यवस्‍था निकट भविष्‍य में ही लगभग 9 प्रतिशत की विकास दर को छू लेगी ।

कई वर्षों तक विकास की दर 9 प्रतिशत पर टिकी रही, परन्‍तु 2008-09 में वैश्‍विक मंदी के कारण अचानक यह गिर कर 6.5 प्रतिशत पर आ गई । परन्‍तु भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के झटके सहने की क्षमता के कारण विकास दर में प्रतिवर्ष बढ़ोतरी होती रही । शीघ्र ही यह 7.4 पर आ गई, फिर 8.8 प्रतिशत पर पहुंची और हमें आशा है कि अगले वर्ष तक विकास दर 9 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी, जिसके बाद हम विकास दर को दहाई अंकों तक ले जाने के अपने लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ सकेंगे ।

वित्‍त मंत्री ने इस उपलब्‍धि के लिए कई कारण गिनाएं । अर्थव्‍यवस्‍था के आधारभूत तत्‍वों की इसमें महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है । श्री मुखर्जी ने कहा कि यह विकास एक ऐसे वर्ष में संभव हो सका, जब पूरा देश कम वर्षा के कारण चिंतित था, इससे यह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की बुनियाद और उसमें अंतर्निहित गतिशीलता कितनी सुदृढ़ है । सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्‍न राजकोषीय और मौद्रिक नीतिगत उपायों ने भी इसे सहारा दिया । वैश्‍विक अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार हालांकि धीरे-धीरे हो रहा था, परन्‍तु इससे भी भारत को प्रोत्‍साहन मिला ।

श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि मौजूदा विकास अधिक व्‍यापक है और सभी तीनों क्षेत्रों उद्योग, सेवा और कृषि में सुधार हो रहा है । उन्‍होंने संकेत किया कि सवाल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) में कृषि के अंश में गिरावट से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में समय समय पर आने वाले बदलावों को सहने की क्षमता में और भी वृद्धि हुई है । कृषि क्षेत्र में भी हम वर्षा के अभाव के प्रभाव को संतुलित करने में सफल रहे हैं । अतीत के विपरीत मानसूनी वर्षा की कमी का विकास पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़े , ऐसा जरूरी नहीं रह गया है । कृषि उत्‍पादन में गिरावट नहीं आने से हमारा भरोसा बढ़ा है ।

राजकोषीय घाटा भी कम हो रहा है । आशा है कि वर्तमान में यह घटकर जीडीपी के 5.5 प्रतिशत तक आ जाएगा । पिछले वर्ष यह 6.7 प्रतिशत पर था । मध्‍यावधि राजकोषीय नीति वक्तव्‍य 2010-11 में अनुमान लगाया गया है कि 2011-12 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.8 प्रतिशत के बराबर आ जाएगा और 2012-13 में 4.1 प्रतिशत तक रह जाएगा । इससे पता चलता है कि सरकार विवेकपूर्ण उपायों के जरिये राजकोषीय सुदृढ़ता के प्रति कितनी चिंचित है । यह कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है कि भारत वित्‍तीय प्रोत्‍साहन युग से वापस निकल रहा है और करों में दी गई छूट की आंशिक समाप्‍ति, व्‍यय में कमी, ऊर्जा की नीलामी से प्राप्‍त राजस्‍व और विनिवेश से इस वित्‍त वर्ष के लक्ष्‍यों को पूरा किया जा सकेगा ।

पिछले वर्ष के ऋणात्‍मक (-) 11.6 प्रतिशत की विकास दर के मुकाबले इस वर्ष के सकल कर राजस्‍व में 27.3 प्रतिशत की वृद्धि अब तक हो चुकी है । कुल राजस्‍व प्राप्‍तियां बढ़कर 85 प्रतिशत तक पहुंच चुकी हैं । गत वर्ष (-)2.7 प्रतिशत ऋणात्‍मक प्राप्‍तियां रहीं । पिछले वर्ष के कुल 22.8 प्रतिशत के परिव्‍यय के मुकाबले इस वर्ष यह बढ़कर 30.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है ।

मुद्रास्‍फीति के मोर्चे पर भी कुछ प्रगति हुई है । इस वर्ष (2010-11) के प्रारंभ में मुद्रास्‍फीति की दर 11 प्रतिशत थी । जून 2010 तक दहाई अंकों में बनी रहने के बाद यह सितम्‍बर 2010 में गिरकर 8.6 प्रतिशत तक पहुंच गई थी । तीनों प्रमुख क्षेत्रों- ओद्योगिक श्रमिकों कृषि श्रमिकों और ग्रामीण श्रमिकों के मामले में मुद्रास्‍फीति की दर इकाई अंक में बनी रही । मुद्रास्‍फीति का मुख्‍य कारण खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमत रही है । इस समस्‍या के समाधान के लिये सरकार ने जो कदम उठाए हैं उनमें निर्यात पर चयनात्‍मक प्रतिबंध, चावल और कुछ प्रकार की दालों के वायदा कारोबार पर रोक, चुनिंदा खाद्य सामग्रियों पर आयात शुल्‍क पूरी तरह से हटाना और लाइसेंसिंग तथा आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम के तहत खाद्य सामग्रियों के आवागमन एवं भंडारण सीमा पर लगे प्रतिबंधों को समाप्‍त करना शामिल है। सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा दालों और चीनी के आयात की अनुमति दी तथा गैर लेवी चीनी के कोटे में वृद्धि की गई ।

निर्यात क्षेत्र में भी प्रदर्शन समानरूप से शानदार रहा है । सितम्‍बर में निर्यात में 23 प्रतिशत का उछाल आया, जो कि पिछले दो वर्षों में सबसे तेज वृद्धि कही जाएगी । अप्रैल से सितम्‍बर के बीच कुल मिलाकर 1 खरब 3 अरब 3 करोड़ यूएस डालर मूल्‍य का निर्यात किया गया जो कि पिछले वर्ष की उसी अवधि से 27.6 प्रतिशत अधिक था । इसी कामयाबी के कारण ही वाणिज्‍य मंत्री श्री आनन्‍द शर्मा ने हाल ही में विश्‍वास व्‍यक्‍त किया था कि भारत वर्तमान वित्‍त वर्ष में 2 खरब अमेरिकी डालर के निर्यात के लक्ष्‍य को हासिल कर लेगा । निश्‍चय ही आयात में भी वृद्धि हो रही है, जिससे व्‍यापार घाटा अगस्‍त में 13 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंच गया परन्‍तु यह एक अस्‍थायी लक्षण है ।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपनी मौद्रिक नीति के अंतर्गत कतिपय कदम उठाए हैं । बैंक ने अप्रैल, 2009 से अपनी प्रमुख दरों में वृद्धि की है । गत 16 सितम्‍बर को इसने रिपो दर बढ़ाकर 6 प्रतिशत और रिवर्स रिपोदर 5 प्रतिशत कर दी ताकि बाजार में नकदी के प्रवाह पर रोक लग सके ।

देश में मांग और निवेश के वातावरण में आई तेजी से पूंजी के अंर्तप्रवाह में भारी तेजी आई है, जिसके कारण रूपये पर दबाव बढ़ा है । नतीजतन पिछले कुछ महीनों में उसकी कमी भी बढ़ी है । परन्‍तु वित्‍त मंत्री इससे जरा भी विचलित नहीं हैं । उनका कहना है कि भारी विदेशी संस्‍थागत प्रवेश भारत की विकास गाथा में विदेशियों का विश्‍वास दर्शाता है । श्री मुखर्जी को विश्‍वास है कि रूपये के मूल्‍य में वृद्धि कोई असामान्‍य बात नहीं है । अत: स्‍थिति से निपटने के लिये सरकार को कोई बड़े कदम उठाने की जरूरत नहीं है ।

इस सबसे स्‍पष्‍ट है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था सही रास्‍ते पर बढ़ रही है । परन्‍तु मुद्रास्‍फीति हालांकि अभी इकाई अंक में ही है, चिंता का विषय बनी हुई है । परन्‍तु अंधेरे में उजाले की किरण दिखने लगी है ।

रविवार, 19 सितंबर 2010

आशानुकूल रही रिजर्व बैंक की दरों में वृध्दि

भारतीय रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही की मौद्रिकनीति की समीक्षा के बाद प्रमुख दरों में एक बार फिर वृध्दि की है । दरों में इस वर्ष यह चौथी वृध्दि है । रिजर्व बैंक ने रिपो दर में 25 अंकों अर्थात चौथाई प्रतिशत की वृध्दि की है । अब यह दर 5.57 प्रतिशत हो गई है । इसी प्रकार रिवर्स रिपो दर में 50 अंकों की यानी आधा प्रतिशत की बढोतरी की गई है । यह दर अब 4.5 प्रतिशत हो गई है । रिपो दर वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को त्रऽण देता है और रिवर्स रिपो दर वह दर है जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों से कर्ज लेता है ।
दोनों दरों में वृध्दि से बाजार में तरलता में कमी आएगी , क्योंकि वाणिज्यिक बैंकों को रिजर्व बैंक से त्रऽण वापस लेने के लिये ज्यादा पैसे चुकाने होंगे । इससे बैंकों को अपना पैसा रिजर्व बैंक के पास जमा रखने को प्रोत्साहन मिलता है, क्योंकि जमा धन पर अधिक लाभ (ब्याज) मिलता है । इस प्रकार न्यूनतम दरों में वृध्दि से बाजार में नकदी के प्रवाह में कमी आएगी और उसे बाहर निकालने के प्रयास में तेजी आएगी । उद्देश्य यह है कि मुद्रास्फीति पर मांग का दबाव कम हो, जो पिछले पांच महीनों से लगातार दहाई अंकों में बनी हुई है और जो सरकार के लिये चिंता का विषय बनी हुई है । जून में मुद्रास्फीति की दर 10.55 प्रतिशत थी ।
नई दरों से मुद्रास्फीति से सख्ती से निपटने और स्थायी विकास के अनुकूल वातावरण के निर्माण के बारे में सरकार के संकल्प का आभास होता है । नई दर आशानुरुप ही हैं । रिजर्व बैंक की समीक्षा से पहले ही अनुमान लगाया जा रहा था कि मुख्य दरों में 25 अंकों की वृध्दि की जा सकती है परन्तु रिवर्स रिपो दर में आधा प्रतिशत की वृध्दि आशा से कुछ अधिक है । आरबीआई ने दरों में कोई ज्यादा वृध्दि नहीं की, इससे यह पता चलता है कि केन्द्रीय बैंक विकास प्रक्रिया को किसी भी प्रकार से प्रभावित किये बिना बाजार में नकदी के प्रवाह को रोकने के लिये धीरे-धीरे सोच समझकर कदम उठा रहा है । ब्याज दरों में अधिक वृध्दि से आर्थिक सुधार की प्रक्रिया तो प्रभावित होती ही साथ ही बैंकिंग प्रणाली में नकदी की समस्या भी आ सकती थी ।
अधिसूचित बैंकों द्वारा रिजर्व बैंक में अनिवार्य रूप से जमा की जाने वाली राशि के अनुपात सी आर आर में कोई घट बढ न क़रते हुए केन्द्रीय बैंक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि उसकी नीति पिछले दो वर्षों की वैश्विक मंदी के प्रभाव से ऊपर रही अर्थव्यवस्था से किसी भी प्रकार की छेडछाड़ नहीं करने की है । साधारणत: अर्थशास्त्रियों का विश्वास है कि प्रमुख दरों में हालिया मामूली वृध्दि से बैंको की त्रऽण दरों में वृध्दि नहीं होगी क्योंकि बैंक इतनी वृध्दि तो मान कर ही चल रहे थे । कुछ अर्थशास्त्रियों का विश्वास है कि इससे बैंकों की त्रऽण दरों में मामूली वृध्दि होगी । आर बी आई ने स्पष्ट संकेत दिये है कि वह जमा और उधार दोनों ही दरों में वृध्दि देखना चाहता है ताकि जहां एक ओर बैंकों से कर्ज लेना थोड़ा मंहगा हो वहीं बैंकों में लोगों की जमा राशि में वृध्दि भी हो ।
रिजर्व बैंक की तिमाही समीक्षा से दो और बातें साफ होती हैं । इसने मौजूदा वित्त वर्ष में विकास दर का लक्ष्य 8 से बढाक़र 8.5 प्रतिशत कर दिया है, वहीं आशा जताई है कि मार्च 2011 तक मुद्रास्फीति की दर 5.5 से 6 प्रतिशत के आसपास रहेगी । वित्त मंत्रालय को भी आशा है कि अच्छे मानसून की संभावना को देखते हुए मुद्रास्फीति दिसम्बर तक कम होकर 6 प्रतिशत रह जाएगी ।
मुद्रास्फीति में इन दिनों जो बढोतरी हो रही है, वह मुख्यत: पिछले वर्ष अच्छी वर्षा न होने के कारण ही है । वर्षा के अभाव में देश में प्राय: सभी कृषि उत्पादनों में कमी आई जिससे खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति में वृध्दि हुई । खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति शैन: शनै:-शनै: अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करने लगी और थोक मूल्य सूचकांक में वृध्दि के साथ ही स्थिति संकट पूर्ण होने लगी ।
रिजर्व बैंक का कहना है कि मुद्रास्फीति का दबाव बढ रहा है और इस पर मांग का दबाव स्पष्ट दिखाई देता है, जिससे मंहगाई आम हो गई है । बैंक का कहना है कि मुद्रास्फीति के विस्तार और उसके बने रहने के स्वभाव को देखते हुए मांग पक्ष की मुद्रास्फीति के दबाव को काबू में करना होगा ।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का कहना है कि आरबीआई की नीति से पहले से ही कम हो रही मुद्रास्फीति में और भी कमी आएगी । उनका विचार है कि इससे हम विकास के रास्ते पर भी भलीभांति बने रहेंगे । आरबीआई की मौद्रिक नीति इस दिशा में उठाया गया सोचा समझा कदम है ।
परन्तु सच्चाई यह है कि ब्याज दरों में वृध्दि केवल मांग पक्ष की मुद्रास्फीति को काबू में कर सकती है, जो कि समस्या का केवल एक अंश है । मुद्रास्फीति पर प्रभावी नियंत्रण के लिये हमें विशेष तौर पर खाद्यान्न उत्पादन बढाने के साथ-साथ आपूर्ति पक्ष के दबावों में भी कमी लानी होगी। इसके लिये हमें मुख्यत: इंद्र देव की कृपा का ही आसरा होता है । दीर्घकालिक दृष्टि से कृषि पर और गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने हाल ही में हुई राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में राज्य सरकारों से कृषि क्षेत्र पर और अधिक ध्यान देने का आग्रह किया ताकि मंहगाई पर प्रभावी रोक लगाई जा सके । कृषि चूंकि राज्यों का विषय है, इस विषय पर उन्हें ही अधिक ध्यान देना होगा । उन पर यह बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है । यद्यपि सफल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर में कृषि का योगदान मात्र 18 से 20 प्रतिशत ही है, तथापि अपने देशव्यापी विस्तार और अपनी गतिविधियों से देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या को प्रभावित करने के कारण इसकी भूमिका निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है ।
कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना और ढीली-ढाली मौद्रिक नीति से योनजाबध्द ढंग से बाहर आना, देश में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के महत्वपूर्ण सूत्र हैं । आपूर्ति पक्ष के अभावों पर भी और तेजी से ध्यान देने की जरूरत है ।
जैसा कि अन्य देशों के केन्द्रीय बैंकों द्वारा किया जाता है, आर बी आई ने भी अपनी मध्यावधि समीक्षाओं से चौंकाने वाला तत्व समाप्त करने का निर्णय लिया है । ये समीक्षायें तिमाही समीक्षाओं के डेढ महीने बाद की जाया करेंगी ताकि आवश्यकतानुसार बीच रास्ते ही सुधार किया जा सके । इससे अर्थव्यवस्था को मौजूदा स्थिति को समझने और तदनुसार कदम उठाने में मदद मिलेगी ।

गुरुवार, 4 मार्च 2010

पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कारों की घोषणा

केंद्रीय गृह मंत्रालय के पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD) ने स‌ाल 2009-2010 के लिए पंडित गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कारों की घोषणा की है। इसके लिए अलग-अलग विषयों पर पुस्तकें लिखने के लिए बतौर पुरस्कार 30 स‌े 40 हजार रुपए तक की राशि दी जाती है। इसके स‌ाथ ही पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की तरफ स‌े लेखकों की पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जाता है। इस बार छह विषयों के तहत पुरस्कार के लिए लेखकों/पत्रकारों का चयन किया गया है। ब्यूरो को प्राप्त आवेदनों में से छह लेखकों का चुनाव किया गया। इस पुरस्कार के लिए लेखकों के नाम को अंतिम रुप देने का काम एक कमेटी करती है। इस चुनाव के लिए ब्यूरो के महानिदेशक प्रसून मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी ने छह लेखकों के नाम पर अंतिम मुहर लगाई। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो स‌ाल 1982 से हिंदी में पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए यह योजना चला रहा है। 'वैध स‌मस्याओं के निदान के लिए हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति' विषय पर पुस्तक के लिए ज़ी न्यूज़ के प्रोड्यूसर राकेश प्रकाश को 40 हजार रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। 'अपराधियों का सुधार एवं पुनर्वास' विषय पर पुस्तक लेखन के लिए नीना लांबा को भी 40 हजार रुपये का पुरस्कार दिया गया है। इसके अलावा 'स‌ाइबर क्राइम' पर पुस्तक के लिए संतोष शुक्ल, 'चिकित्सीय न्यायशास्त्र एवं विधि विज्ञान' के लिए शैलेंद्र कुमार अवस्थी, 'कानूनी उपचार विधि' के लिए स‌ुरेश ओझा और 'आतंकवाद व मनोवृत्ति का विकृत उन्माद' पुस्तक के लिए ज्योति शंकर चौबे को 30-30 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की तरफ से जल्द ही पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया जाएगा। जिसमें चुने गए सभी लेखकों को पुरस्कार स्वरूप प्रतीक चिन्ह,प्रमाण पत्र और पुरस्कार राशि भेंट की जाएगी। न्यूज़ चौपाल की तरफ स‌े स‌भी स‌फल आवेदकों को बधाई और शुभकामनाएं।

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

आंतरिक सुरक्षा बनाम पुणे बम विस्फोट

मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही लगातार इस बात की आशंका बनी हुई थी की पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठन भारत को एक बार फिर नए और खतरनाक तरीके से निशाना बना सकते है। इसे लेकर चाक चौबंद सुरक्षा बंदोबस्त भी किया गए थे। लेकिन पुणे में हुए बम धमाके ने सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के दावों की पोल खोल कर रख दी है। अभी कुछ दिन पहले ही नई दिल्ली में आंतरिक सुरक्षा के बारे में आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन मे आतंकवादी खतरे से निबटने की रूपरेखा तैयार की गयी । उन्होंने राष्ट्र के लिए दो लक्ष्य निर्धारित किए । पहला दिनोंदिन बढत़ी जा रही अत्याधुनिक आतंकवादी धमकी से निबटने के लिए तैयारी का स्तर ऊंचा करना और दूसरा, किसी आतंकवादी खतरे या आतंकवादी धमकी की अनुक्रिया की गति या निर्णयात्मकता को और अधिक बढा़ना । इन दोनों लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मुम्बई की घटनाओं के बाद सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं ।

आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2008
अन्य बातों के अलावा राज्य सरकारों द्वारा पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति की एक व्यापक योजना बनाई गई है ताकि ऐसे अपराधों में, जिसमें सात वष तक कारावास दंड दिया जाता है, मामलों के बार-बार स्थगन के कारण मुकदमों के शीघ्र निबटान की कठिनाइयों, श्रब्य-दृश्य माध्यमों के जरिए पुलिस द्वारा अभियुक्त और गवाहों के बयानों की रिकार्डिंग के प्रावधन को उपलब्ध कराने और वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायिक हिरासत में अभियुक्त को और अधिक समय तक रखे रहने जैसी परेशानियों से क्षतिपूर्ति के लिए योजना बनाने का प्रावधान है।

केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (संशोधन) अध्यादेश 2009
निजी और संयुक्त उद्यम के उद्योगों ने अर्थव्यवस्था की वृद्धि में पर्याप्त योगदान किया है, लेकिन आतंकवादी तत्वों की बढत़ी हुई गतिविधियों के कारण भी सुरक्षा का आश्वासन चाहते हैं। इसलिए सीआईएसएफ अधिनियम 1968 के सम्बद्ध अंशों में संशोधन किया गया है जिससे लागत पुनर्भुगतान आधार पर निजी क्षेत्र और संयुक्त उद्यमों को भी सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ को तैनात करने के प्रावधान को लागू किया जा सकता है। इससे धमकी का अनुमान लगाकर उसके अनुसार निजी और संयुक्त क्षेत्र के उद्यमों के लिए सीआईएसएफ की तैनाती का प्रावधान शामिल किया जाये.


बहु-माध्यम केन्द्र
जनवरी १,२००९ से वर्ष२००१ मे बनाए गयेबहु-माध्यम केन्द्र ने कार्य प्रारम्भ किया और अब राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारी की एजेंसियों के साथ खुफिया जानकारी का आपस में आदान-प्रदान करने के लिए वह बाध्य है । इसी प्रकार अन्य सभी एजेंसियां बहु-माध्यम केन्द्र के साथ खुफिया जानकारी का आपस में आदान-प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । कई राज्यों में बहु-माध्यम केन्द्र की सहायक शाखाएं भी कायम की गयी हैं । केन्द्र और राज्य स्तरों पर पूर्ण विश्वसनीय सम्पर्क कायम करने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गयी है ।

विधायी उपाय
राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, गैर-कानूनी गतिविधियां (निरोधक( संशोधन अधिनियम तथा आपराधिक दंड - प्रक्रिया (संशोधन( अधिनियम बनाए गए हैं । सरकार ने केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (अधिनियम( अध्यादेश भी जारी किया गया है । यह भी प्रावधान किया गया है कि जहां भी ऐसी कोई गिरपऊतारी या बरामदगी होगी, इस तरह की व्यक्तियोंवस्तुएंदस्तावेजों को जब्त किया जाता है, बगैर देरी किए, ऐसे निकटतम पुलिस थाने में में जमा कर दिया जाए जो कानून के प्रावधानों के अनुसार उस पर कार्रवाई करे। आतंकवादी अधिनियम की परिभाषा व्यापक बनाई गई है और एआरसी की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए इसके तहत अनेक अतिरिक्त विशिष्ट अपराधों को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय नियमों आदि, आतंकवाद के सिलसिले भर्ती, प्रशिक्षण और आतंकवाद के लिए वित्त उपलब्ध कराने सहित प्रावधानों आदि को शामिल किया गया है।


तटवर्ती भागों की सुरक्षा
मुम्बई में हुए आतंकवादी हमलों ने देश की समुद्री तट रेखा की सुरक्षा व्यवस्था की ओर ध्यान और अधिक आकृष्ट किया है। जनवरी, 2005 में मंत्रिमंडल समिति ने एक तटवर्ती सुरक्षा स्कीम तैयार करके उसकी स्वीकृति दी थी, उस पर पांच वर्षों से अधिक समय तक 400 करोड़ रुपये का गैर-आवर्ती व्यय तथा र्इंधन, जहाजों की मरम्मत एवं रख-रखाव तथा जहाजों की मरम्मत और कार्मिकों के प्रशिक्षण पर 151 करोड़ रुपये की आवर्ती व्यय का प्रावधान किया गया है। समुद्रतटीय सुरक्षा स्कीम के अंतर्गत 73 तटीय सुरक्षा स्कीम 73 तटवर्तीय पुलिस थाने, 97 चेक पोस्ट, 58 आउटपोस्ट तथा 30 संरचनात्मक बैरकों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है। पुलिस थाने को 204 गश्ती बोट उपलब्ध कराई जाएंगी जो आधुनिक नौवहन तथा समुद्री जहाज और सम्बद्ध उपकरणों से सज्जित होगी। 153 जीपों तथा 312 मोटर साइकिलों के लिए भी अनुमोदन कर दिया गया है। प्रत्येक पुलिस के लिए कम्प्यूटरों और अन्य उपकरणों के लिए 10-10 लाख रुपये की एकमुश्त रकम उपलब्ध कराई जाएगी।हाल में सम्बद्ध राज्यों एवं मंत्रालयोंएजेंसियों के साथ अनेक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठकें कराई गर्इं जिनमें समुद्रतटीय सुरक्षा और मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने और अंतर्राज्यीय गिरोहों की पहचान करके उन्हें पूरा करने के लिए उनके खिलाफ जरूरी कारवाई करने का निश्चय किया गया। इनमें मछली पकड़ने वाले तथा अन्य जहाजों एवं नौकाओं का अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराने, मछुआरे के लिए पहचान पत्र जारी करने तथा टोही जहाजों और निगरानी प्रणालियों की व्यवस्था आदि शामिल हैं।


राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड व्यवस्था
देश के विभिन्न भागों मे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था कायम करने का केन्द्र सरकार का प्रस्ताव है। कोलकात्ता, मुम्बई, चेन्नई और हैदराबाद में मुख्य केन्द्र स्थापित किए जाएंगे। कुछ अन्य नगरों में रक्षाबलों द्वारा प्रशिक्षित आतंकवाद -विरोधी बल उपलब्ध कराये जाएंगे। उदाहरणार्थ, बंगलुरू को सेना की विशिष्ट यूनिटों की सुविधा दी जाएगी। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि इस मामले में अपने यहां के आतंकवाद- निरोधक बलों का कुछ योगदान करके आवश्यक पूर्ति करें। ऐसे कर्मचारियों की नियुक्ति एवं प्रशिक्षण के मामले में केन्द्र सरकार राज्यों की सहायता करेगी। देश के विभिन्न भागों में 20 उपद्रव-विरोधी तथा आतंक-विरोधी स्कूलों की स्थपना का कार्य प्रगति पर है इनमें राज्य पुलिस बलों की कमांडो यूनिटों को प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम चल रहा है।
सरकार तैयारियों के स्तर में वृद्धि के लिए और उपाय कर रही है और आतंकवाद की चुनौती का सामना करने के लिए और भी आवश्यक कार्रवाई कर रही है। लेकिन इन सभी उपायों का अपेक्षित परिणाम तभी मिल सकेगा जब इस दिशा में मिलजुलकर समग्र प्रयास किया जाए। राज्य सरकारों, गैर-सैनिक सामाजिक संगठनों तथा सभी लोगों को एकजुट होकर यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवादियों के मंसूबे पूरे न होने पाएं। मुम्बई में हुए आतंकवादी हमलों की प्रतिक्रियास्वरूप एकजुटता और बढे़ और आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चा अत्यधिक प्रभावशाली हो

रेल सुरक्षा
रेल मंत्रालय ने आतंकवादी, नक्सली तथा विघटनकारी ताकतों के खतरे को ध्यान में रखकर रेलवे स्टेशनों और गाड़ियों में सुरक्षा बढा़ने का निर्णय लिया है । चैन्ने, दिल्ली, कोलकाता और मुम्बई मेट्रो शहरों के स्टेशनों और भारतीय रेल के अन्य 140 संवेदनशील स्टेशनों पर एक एकीकृत सुरक्षा प्रणाली को लागू किया जा रहा है । इस प्रणाली में निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं -


1. वीडियो विश्लेषण सहित सीसीटीवी आधारित इंटरनेट प्रोटोकाल
2. पहुंच नियंत्रण
3. व्यक्ति और सामान की स्क्रीनिंग प्रणाली
4. विस्फोटकों को ढूंढना और निपटान प्रणाली

रेल मंत्रालय ने रेल सुरक्षा बल (रेसुब) द्वारा प्रयोग किए जाने वाले सुरक्षा उपकरणों की खरीद के लिए 60.76 करोड़ रुपये आबंटित किए हैं । रेल सुरक्षा बल का आधुनिक सुरक्षा उपकरणों जैसे इनसास 5.56 मि.मी. राइफलें, एके-47, एसएलआर 7.62, कार्बाइन 9मि.मी., बुलेटप्रूफ जैकेटों और हेलमटों, वाकी-टाकी, हैंड हेल्ड मेटल डिटेक्टर, डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर, डॉग स्कवाड आदि से उन्नयन किया गया है । रेलवे के लिए एक संयुक्त योजना तैयार करने के लिए रेलवे बोर्ड द्वारा रेल, रेल सुरक्षा बल, आसूचना ब्यूरो, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, दिल्ली पुलिस और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के अधिकारियों को शामिल करके एक समिति गठित की है । समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है । रेलवे की सुरक्षा प्रणाली को सुदृढ क़रने के लिए इसे चालू किया जा रहा है ।

सौजन्य यूपीएससी पोर्टल डॉट काम।

International Conference on Communication Trends and Practices in Digital Era (COMTREP-2022)

  Moderated technical session during the international conference COMTREP-2022 along with Prof. Vijayalaxmi madam and Prof. Sanjay Mohan Joh...