हाल ही में नई दिल्ली में संपन्न आर्थिक सम्पादकों के सम्मेलन में वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने जो कहा, उससे यह बात साफ हो जाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पुन: रफ्तार पकड़ रही है और ऐसा लगता है कि वह शीघ्र ही आर्थिक संकट के पूर्व की स्थिति में आ जाएगी । उन्होंने अपने कथन के समर्थन में आंकड़े भी पेश किये । उन्हें पूरा भरोसा था कि अर्थव्यवस्था निकट भविष्य में ही लगभग 9 प्रतिशत की विकास दर को छू लेगी ।
कई वर्षों तक विकास की दर 9 प्रतिशत पर टिकी रही, परन्तु 2008-09 में वैश्विक मंदी के कारण अचानक यह गिर कर 6.5 प्रतिशत पर आ गई । परन्तु भारतीय अर्थव्यवस्था के झटके सहने की क्षमता के कारण विकास दर में प्रतिवर्ष बढ़ोतरी होती रही । शीघ्र ही यह 7.4 पर आ गई, फिर 8.8 प्रतिशत पर पहुंची और हमें आशा है कि अगले वर्ष तक विकास दर 9 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी, जिसके बाद हम विकास दर को दहाई अंकों तक ले जाने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ सकेंगे ।
वित्त मंत्री ने इस उपलब्धि के लिए कई कारण गिनाएं । अर्थव्यवस्था के आधारभूत तत्वों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही है । श्री मुखर्जी ने कहा कि यह विकास एक ऐसे वर्ष में संभव हो सका, जब पूरा देश कम वर्षा के कारण चिंतित था, इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद और उसमें अंतर्निहित गतिशीलता कितनी सुदृढ़ है । सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न राजकोषीय और मौद्रिक नीतिगत उपायों ने भी इसे सहारा दिया । वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार हालांकि धीरे-धीरे हो रहा था, परन्तु इससे भी भारत को प्रोत्साहन मिला ।
श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि मौजूदा विकास अधिक व्यापक है और सभी तीनों क्षेत्रों उद्योग, सेवा और कृषि में सुधार हो रहा है । उन्होंने संकेत किया कि सवाल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि के अंश में गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था में समय समय पर आने वाले बदलावों को सहने की क्षमता में और भी वृद्धि हुई है । कृषि क्षेत्र में भी हम वर्षा के अभाव के प्रभाव को संतुलित करने में सफल रहे हैं । अतीत के विपरीत मानसूनी वर्षा की कमी का विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़े , ऐसा जरूरी नहीं रह गया है । कृषि उत्पादन में गिरावट नहीं आने से हमारा भरोसा बढ़ा है ।
राजकोषीय घाटा भी कम हो रहा है । आशा है कि वर्तमान में यह घटकर जीडीपी के 5.5 प्रतिशत तक आ जाएगा । पिछले वर्ष यह 6.7 प्रतिशत पर था । मध्यावधि राजकोषीय नीति वक्तव्य 2010-11 में अनुमान लगाया गया है कि 2011-12 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.8 प्रतिशत के बराबर आ जाएगा और 2012-13 में 4.1 प्रतिशत तक रह जाएगा । इससे पता चलता है कि सरकार विवेकपूर्ण उपायों के जरिये राजकोषीय सुदृढ़ता के प्रति कितनी चिंचित है । यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत वित्तीय प्रोत्साहन युग से वापस निकल रहा है और करों में दी गई छूट की आंशिक समाप्ति, व्यय में कमी, ऊर्जा की नीलामी से प्राप्त राजस्व और विनिवेश से इस वित्त वर्ष के लक्ष्यों को पूरा किया जा सकेगा ।
पिछले वर्ष के ऋणात्मक (-) 11.6 प्रतिशत की विकास दर के मुकाबले इस वर्ष के सकल कर राजस्व में 27.3 प्रतिशत की वृद्धि अब तक हो चुकी है । कुल राजस्व प्राप्तियां बढ़कर 85 प्रतिशत तक पहुंच चुकी हैं । गत वर्ष (-)2.7 प्रतिशत ऋणात्मक प्राप्तियां रहीं । पिछले वर्ष के कुल 22.8 प्रतिशत के परिव्यय के मुकाबले इस वर्ष यह बढ़कर 30.4 प्रतिशत पर पहुंच गया है ।
मुद्रास्फीति के मोर्चे पर भी कुछ प्रगति हुई है । इस वर्ष (2010-11) के प्रारंभ में मुद्रास्फीति की दर 11 प्रतिशत थी । जून 2010 तक दहाई अंकों में बनी रहने के बाद यह सितम्बर 2010 में गिरकर 8.6 प्रतिशत तक पहुंच गई थी । तीनों प्रमुख क्षेत्रों- ओद्योगिक श्रमिकों कृषि श्रमिकों और ग्रामीण श्रमिकों के मामले में मुद्रास्फीति की दर इकाई अंक में बनी रही । मुद्रास्फीति का मुख्य कारण खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमत रही है । इस समस्या के समाधान के लिये सरकार ने जो कदम उठाए हैं उनमें निर्यात पर चयनात्मक प्रतिबंध, चावल और कुछ प्रकार की दालों के वायदा कारोबार पर रोक, चुनिंदा खाद्य सामग्रियों पर आयात शुल्क पूरी तरह से हटाना और लाइसेंसिंग तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत खाद्य सामग्रियों के आवागमन एवं भंडारण सीमा पर लगे प्रतिबंधों को समाप्त करना शामिल है। सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा दालों और चीनी के आयात की अनुमति दी तथा गैर लेवी चीनी के कोटे में वृद्धि की गई ।
निर्यात क्षेत्र में भी प्रदर्शन समानरूप से शानदार रहा है । सितम्बर में निर्यात में 23 प्रतिशत का उछाल आया, जो कि पिछले दो वर्षों में सबसे तेज वृद्धि कही जाएगी । अप्रैल से सितम्बर के बीच कुल मिलाकर 1 खरब 3 अरब 3 करोड़ यूएस डालर मूल्य का निर्यात किया गया जो कि पिछले वर्ष की उसी अवधि से 27.6 प्रतिशत अधिक था । इसी कामयाबी के कारण ही वाणिज्य मंत्री श्री आनन्द शर्मा ने हाल ही में विश्वास व्यक्त किया था कि भारत वर्तमान वित्त वर्ष में 2 खरब अमेरिकी डालर के निर्यात के लक्ष्य को हासिल कर लेगा । निश्चय ही आयात में भी वृद्धि हो रही है, जिससे व्यापार घाटा अगस्त में 13 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंच गया परन्तु यह एक अस्थायी लक्षण है ।
भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपनी मौद्रिक नीति के अंतर्गत कतिपय कदम उठाए हैं । बैंक ने अप्रैल, 2009 से अपनी प्रमुख दरों में वृद्धि की है । गत 16 सितम्बर को इसने रिपो दर बढ़ाकर 6 प्रतिशत और रिवर्स रिपोदर 5 प्रतिशत कर दी ताकि बाजार में नकदी के प्रवाह पर रोक लग सके ।
देश में मांग और निवेश के वातावरण में आई तेजी से पूंजी के अंर्तप्रवाह में भारी तेजी आई है, जिसके कारण रूपये पर दबाव बढ़ा है । नतीजतन पिछले कुछ महीनों में उसकी कमी भी बढ़ी है । परन्तु वित्त मंत्री इससे जरा भी विचलित नहीं हैं । उनका कहना है कि भारी विदेशी संस्थागत प्रवेश भारत की विकास गाथा में विदेशियों का विश्वास दर्शाता है । श्री मुखर्जी को विश्वास है कि रूपये के मूल्य में वृद्धि कोई असामान्य बात नहीं है । अत: स्थिति से निपटने के लिये सरकार को कोई बड़े कदम उठाने की जरूरत नहीं है ।
इस सबसे स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर बढ़ रही है । परन्तु मुद्रास्फीति हालांकि अभी इकाई अंक में ही है, चिंता का विषय बनी हुई है । परन्तु अंधेरे में उजाले की किरण दिखने लगी है ।
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