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बुधवार, 25 मार्च 2015
दिल्ली पुलिस, एफआईआर और बंदर
दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, जो अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं है। दिल्ली पुलिस की एफआईआर डायरी में दर्ज इस आरोपी का नाम सुनकर आप हैरान-परेशान रह जाएंगे। जानकारों की माने तो दिल्ली पुलिस ने इस बार गुनाह का इल्जाम जिसके नाम दर्ज किया है वह इंसान की तरह बोल नहीं सकता। वह इंसान की भाषा समझ नहीं सकता। ना ही इंसान उसकी भाषा समझ सकते हैं। क्योंकि दिल्ली पुलिस का ये नया नवेला आरोपी बंदरों का एक झुंड है। अब आप कहेंगे कि देश की सबसे स्मार्ट माने जाने वाली दिल्ली पुलिस को आखिर क्या हो गया है कि वह अब बंदरों के नाम से भी एफआईआर दर्ज करने लगी है। कहीं ऐसा तो नहीं कि बंदर के अक्ल की तरह पुलिस के कुछ तथाकथित समझदार और तेजतर्रार अफसर और जवान दिल्ली पुलिस की बची-खुची इमेज को भी ठिकाने लगाने की तैयारी कर चुके हैं। अगर ऐसा नहीं है तो दिल्ली पुलिस अक्ल और शक्ल के मामले में बंदरों के साथ मुकाबला क्यों कर रही है। अगर उसे सही मायने में दिल्ली की चिंता है तो वह अपराधियों पर नकेल कसने की हिम्मत क्यों नहीं दिखा रही। दिल्ली के गुनहगारों को सलाखों के पीछे भेजने के बजाए दिल्ली पुलिस बंदरों के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दिल्ली की दिनोंदिन बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए बंदर जिम्मेदार है। काश बंदर अगर इंसान की भाषा बोल पाते तो यहीं कहते कि दिल्ली पुलिस मुझे तो बक्श दो। आइए अब आपको बताते है कि असल में पूरा मामला है क्या और क्यों हम दिल्ली की स्मार्ट पुलिस को सवालों के घेरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं।
देश की राजधानी दिल्ली के पांडव नगर थाने के समझदार पुलिस अफसरों ने एक ऐसा मुकदमा दर्ज किया है, जिसमें इलाके के बंदरों को आरोपी बनाया गया है। शायद देश में यह अपनी तरह का पहला मामला होगा, जिसमें आरोप किसी इंसान पर नहीं बल्कि बंदर पर लगाया गया है। मयूर विहार फेज-2 में रहने वाले अरविंद जब रोजाना की तरह सुबह अपने ऑफिस जाने के लिए घर से निकले तो रास्ते में बंदरों के झुंड ने उन पर हमला कर दिया। इलाके के लोगों ने बंदरों के चंगुल से अरविंद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की। लेकिन बदमाश बंदरों ने अरविंदों को जगह जगह काटकर बुरी तरह जख्मी कर दिया। पांडव नगर और उसके आसपास के इलाकों में बंदरों के उत्पात मचाने की यह कोई पहली कहानी नहीं है। इलाके की जनता पिछले काफी समय से बंदरों को लेकर परेशान है। लेकिन एमसीडी के अधिकारी कान में तेल डालकर सोने की अपनी वर्षों पुरानी नीति पर आज भी कायम है।
लिहाजा बंदरों के इस उत्पात को लेकर अरविंद पुलिस के पास एमसीडी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने थान पहुंचे। लेकिन स्मार्ट दिल्ली पुलिस के समझदार अफसर ने बिना कुछ सोचे समझे एफआईआर दर्ज कर ली और वह भी इलाके के बंदरों के खिलाफ। जी हां दिल्ली पुलिस ने इलाके के बंदरों को ही इस मामले में आरोपी बना दिया। हद तो तब हो गई जब इस एफआईआर में पुलिसवालों ने इलाके के बंदरों पर भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी की धारा 124 भी लगा दी। यानि पांडव नगर के बंदरों ने अरविंद के साथ मार-पीट की और किसी घातक हथियार से उन्हें घायल कर दिया। कानून के मुताबिक IPC की धारा 324 के तहत दोषी साबित होने पर 3 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन क्या दिल्ली पुलिस इस मामले में किसी बंदर को वाकई में पहचानती है। क्या वह आरोपी बंदर को पकड़ पाएगी। क्या ऐसे मामले में बंदर को आरोपी बनाया जा सकता है। आमतौर पर ऐसे मामले में दिल्ली नगर निगम या उसके संबंधित अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज किया जाता है। लेकिन दिल्ली पुलिस ने एमसीडी या उसके अधिकारियों को आरोपी क्यों नहीं बनाया। क्या दिल्ली पुलिस और एमसीडी के अफसरों के बीच कोई सांठगांठ है? क्या दिल्ली पुलिस एमसीडी से डरती है? क्या दिल्ली पुलिस को ऐसे मामले में किसे आरोपी बनाया जाता है इसका पता नहीं है? अगर ऐसा है तो वाकई में दिल्ली पुलिस के अफसरों और जवानों को सख्त ट्रेनिंग देने की ज़रुरत है। क्योंकि सवाल देश की राजधानी दिल्ली की सुरक्षा का है। ...
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