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शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

3 तलाक और 4 निकाह से कैसे मिलेगी मुक्ति?

एक बार फिर मुस्लिम समाज में तीन तलाक और 4 निकाह को लेकर जोरदार चर्चा चल रही है। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मसले पर सायरा बानो की याचिका को लेकर केंद्र सरकार और दूसरे सभी पक्षों को अपनी राय बताने को कहा था। सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार की कमेटी ने सिफारिश दी है कि तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया जाए। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट और सरकार दोनों ही इस मुद्दे को लेकर आखिरी फैसला पर पहुंचना चाहते हैं। अब सबसे अहम प्रश्न यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की राय और सरकार की सिफारिश को मुस्लिम भारत का मुस्लिम समाज स्वीकार करेगा। क्या आने वाले वक्त में भारतीय मुस्लिम समाज की महिलाओं को 'तलाक, तलाक, तलाक' पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ेगा। धर्म के नाम पर तलाक के कुचक्र से मुस्लिम महिलाओं को कैसे मुक्ति मिलेगी।
तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के बाद अब केंद्र सरकार भी सुधार की सख्त जरूरत महसूस कर रही है। दरअसल सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार की कमिटी ने सिफारिश की है कि तीन तलाक पर बैन लगाया जाए। कमेटी ने कहा है मौखिक, तीन बार कहने पर दिए जाने वाले तलाक को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, एकतरफा तलाक, 4 शादी करने को प्रतिबंधित किया जाए, इसके साथ ही मुस्लिम मैरिज एक्‍ट 1939 को रद्द करने की भी सिफारिश भी की गई है। कमेटी ने कहा कि अलग रहने और तलाक में पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता भी मिलने चाहिए। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था है कि तीन तलाक़ की वैधता की समीक्षा की जाएगी. अदालत ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को 6 हफ्ते के भीतर सायरा बानो नाम की महिला की याचिका पर राय देने को कहा था,इस याचिका में कहा गया है, कि तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि इससे मुस्लिम महिलाओं से गुलामों जैसा सलूक होता है। मुस्लिम महिलाओं को स्काइप, फेसबुक और टेक्स्ट मैसेज पर तलाक दिए गए हैं । ऐसे मनमाने तलाक से कोई बचाव नहीं है। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई में पक्षकार बना जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम समाज में शादी, तलाक और तलाक के बाद मेंटेनस की परंपरा को संविधान के ढांचे में नहीं परख सकता । क्योंकि पर्सनल लॉ को मूलभूत अधिकार के तहत चुनौती नहीं दी सकती। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कहता है, कि तीन तलाक जैसे मसलों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। लेकिन सवाल है, कि क्या तीन तलाक को लेकर मुस्लिम संगठनों की ये दलील जायज है ? और अब सुप्रीम कोर्ट और सरकार के इस कदम के बाद क्या मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक से आजादी मिलेगी और ये क्या ये लड़ाई 'ट्रिपल तलाक' के खिलाफ 'आखिरी जंग' साबित होगी।

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