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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016
अपनी नैया डुबोने में जुटे समाजवादी नेता
मुलायम सिंह यादव के कुनबे में मचा कोहराम, यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी की नैया डुबोकर शांत ही होगा, ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि विरोधियों का मानना है कि मुलायम सिंह यादव खुद अपने बेटे की चुनावी नैया डुबोने पर तुले हैं। पांच साल पहले चुनावी जीत मिलने पर मुलायम सिंह यादव ने सबकी राय को दरकिनार कर बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था।
लेकिन पांच साल बीतते बीतते मुलायम का अखिलेश प्रेम एक दम से हवा हो गया। आखिर पिता-पुत्र के रिश्ते में दरार के पीछे की वजह क्या है। खुद सीएम अखिलेश कई बार दोहरा चुके हैं कि वह नेताजी की हर बात मानने को तैयार है। लेकिन नेताजी अब सीएम अखिलेश की कोई बात सुनने को राजी नहीं है। उन्हें तो अब अपने बेटे की कामयाबी से जलन महसूस होने लगी है। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वह इस परेशानी का खुलकर इजहार भी नहीं कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो हालात कुछ इस कदर हो गए कि खुद सीएम अखिलेश अपने पिता के गले की हड्डी बन चुके हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की मजबूरी कहें या कमजोरी वह चाहकर भी अखिलेश के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से बचते हैं। लेकिन जब भी कुछ करने की बारी आती है तो सीधे या गुजचुप तरीके से उनका निशाना अखिलेश यादव पर ही होता है। सदियों से कानूनी तौर पर पिता का वारिस उसकी औलाद को माना जाता है। यह परंपरा भारत में अघोषित तौर पर हर सियासी पार्टी में देखने को मिलती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टीं कांग्रेस है, यहां नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक खानदानी विरासत को सियासत में आज तक आगे बढ़ाने में जुटे हैं। ऐसे में अगर अखिलेश राजनीति में खुद को नेताजी का असली वारिस मानते हैं तो इसमें गलत क्या है। बेटे की इच्छा होती है कि वह पिता के बनाए रास्ते पर आगे बढ़े और हर पिता की ये तमन्ना होती है कि उसका बेटा तरक्की की राह पर आगे बढ़े और अपने साथ खानदान का भी नाम रौशन करें। लेकिन समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह के परिवार में यही बात विवाद की असली वजह बन गई है। मुलायम को अब अपना बेटा रास नहीं आ रहा है। समाजवादी पार्टी में दो गुट बन गए हैं। एक गुट की कमान शिवपाल के हाथों में है तो दूसरा गुट मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ है। अचानक से मुलायम सिंह यादव भाई शिवपाल को लेकर कुछ ज्यादा ही प्रेम दिखाने लगे हैं। यहां तक कि शिवपाल के खिलाफ बोलने पर उन्होंने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव तक को पार्टी से निलंबित कर दिया था। ऐसे में समाजवादी पार्टी के छोटे मोटे नेताओं की क्या औकात की वह शिवपाल यादव के खिलाफ कुछ भी बोलने की हिम्मत जुटा सके। मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के भीतर अखिलेश यादव को कमजोर साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से उन्हें हटा दिया। साथ ही यह पद अखिलेश के घोर विरोधी शिवपाल यादव को सौंप दिया। पहले से मौके की ताक में बैठे शिवपाल ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिलते ही चुन-चुन कर अखिलेश के समर्थकों को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। यहीं नहीं शिवपाल यादव ने सीएम अखिलेश के जले पर नमक छिड़कने के इरादे से उन तमाम लोगों को पार्टी में एक-एक कर वापस लाना शुरू कर दिया है, जिसे सीएम अखिलेश यादव ने गलती करने पर पार्टी से निलंबित या निकाल दिया था। शिवपाल ने ऐसे कुछ लोगों को पार्टी में महत्वपूर्ण ओहदों पर बिठाना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में सीएम अखिलेश की मुश्किल है कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि चुनाव सिर पर हैं। किसी भी तरह की जल्दबाजी सियासी तौर पर काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है। लिहाजा वह भी मजे हुए सियासतदान की तरह हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी वह नेताजी मुलायम सिंह यादव को समझाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। उनकी एक दूसरी परेशानी अमर सिंह भी है। कहा जाता है कि अमर सिंह ही समाजवादी कुनबे में जारी कलह की असली वजह हैं। लेकिन सुलह की तमाम कोशिशें बेकार होने के बाद अब चुनाव से ठीक पहले पार्टी में तकरार की खबरों से होने वाले नुकसान की भरपाई समाजवादी पार्टी को चुनावी हार के रुप में चुकानी पड़ सकती है।

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