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शनिवार, 22 मार्च 2014

केंद्रीय सतर्कता आयोग और उसके अधिकार

केंद्रीय सतर्कता आयोग भले ही आज वक्त की ज़रुरत के हिसाब से मजबूरी और ज़रुरी दोनों है। लेकिन इसके बाद भी हमारे देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आती रहती है। आइए एक नज़र डालते हैं केंद्रीय सतर्कता आयोग के सफरनामें पर। केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्‍थापना 1964 में संतानम समिति की सिफारिश पर की गई थी। एक सदस्‍यीय आयोग करीब साढ़े तीन दशक से सरकार में सतर्कता प्रशासन के पर्यवेक्षण का कार्य कर रहा है। न्‍यायमूर्ति नोत्‍तूर श्रीनिवास राव पहले सर्तकता आयुक्‍त बने, जिनकी नियुक्ति 19 फरवरी, 1964 से प्रभावी हुई। उच्‍चतम न्‍यायालय ने जैन हवाला मामले के रूप में प्रसिद्ध याचिका संख्‍या 340-343/1993 (विनीत नारायण और अन्‍य बनाम भारत संघ और अन्‍य) पर 18 दिसम्‍बर 1997 को निर्देश दिया था कि केंद्रीय सतर्कता आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। इसके बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 (2003 का 45) के रूप में इसे वैधानिक दर्जा दिया गया। केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग का संविधान उपलब्‍ध कराया गया है। आयोग को भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत कुछ सरकारी कर्मचारियों के कथित अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया गया है। इस अधिनियम में आयोग को दिल्‍ली विशेष पुलिस स्‍थापना के कामकाज का अधिकार भी दिया गया। दिल्‍ली विशेष पुलिस स्‍थापना को अब केंद्रीय अन्‍वेषण ब्‍यूरो (सीबीआई) कहा जाता है। सतर्कता आयोग को सीबीआई द्वारा की गई जांच की प्रगति की समीक्षा करने और भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत आने वाले कथित अपराधों पर मुकद्दमें की मंजूरी देने का भी अधिकार है। आयोग केंद्र सरकार के तहत विभिन्‍न संगठनों के सतर्कता प्रशासन का पर्यवेक्षण भी करता है। आयोग को केंद्र सरकार के समूह क स्‍तर के अधिकारियों और निगमों, सरकारी कंपनियों, सोसायटी तथा केंद्र सरकार के अन्‍य स्‍थानीय प्राधिकरणों के इसी स्‍तर के अधिकारियों, अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्‍यों के मामलों में भ्रष्‍टाचार के आरोपों की स्‍वत: संज्ञान के आधार पर जांच और निरीक्षण करने का अधिकार है। आयोग भ्रष्‍टाचार से निपटने के लिए प्रभावी निवारक उपाय करने पर बल देता है तथा सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने पर भी जोर देता है। सुशासन पर बल देने के मद्देनजर आयोग मौजूदा व्‍यवस्था और सरकारी विभागों तथा इसके संगठनों की प्रक्रियाओं की कड़ी निगरानी करता है तथा व्‍यवस्‍था को मजबूत बनाने और उसमें सुधार की सिफारिश करता है। आयोग सरकारी खरीद में भ्रष्‍टाचार से निपटने और पारदर्शिता, बराबरी तथा प्रतिस्‍पर्धा बढ़ाने के लिए ई-खरीद, ई-भुगतान, ई-नीलामी इत्‍यादि को अपनाने के जरिए प्रौद्योगिकी के इस्‍तेमाल पर बल दे रहा है। आयोग ने अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग के रूप में विभिन्‍न भ्रष्‍टाचार विरोधी अंतर्राष्‍ट्रीय एजेंसियों और संगठनों के साथ भी संपर्क किया है। अंतराष्‍ट्रीय भ्रष्‍टाचार निरोधी प्राधिकरण संघ के लिए ज्ञान प्रबंध प्रणाली बनाना इसी तरह का हाल ही में किया गया एक प्रयास है।

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