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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

भारतीय सिनेमा के बदलते रंग

भारतीय अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह सही अर्थों में देश के लोगों में फिल्‍म संस्‍कृति पैदा करने का एक साधन बन गया है। हालांकि भारतीय आमतौर पर सिनेमा प्रेमी रहे हैं और करीब हर साल 20 भाषाओं और बोलियों में एक हजार फीचर फिल्‍में देश में बनाई जाती हैं। लेकिन विभिन्‍न फिल्‍म समारोहों के आयोजन से लोगों को सिनेमा का जानकार बनाया जा रहा है और यह फिल्‍म समारोह पूरे देश में शुरू हो गए हैं। भारत में पहला फिल्‍म समारोह 1952 में आयोजित किया गया था, लेकिन हर साल ऐसा समारोह आयोजित करने की परंपरा 1974 में पांचवे फिल्‍म समारोह के बाद शुरू हुई। कई वर्षों तक इस प्रकार का समारोह यहां-वहां आयोजित किया जाता रहा। आईएफएफआई का पहला प्रतिस्‍पर्धात्‍मक समारोह हर तीसरे साल बाद आयोजित किया जाता था, जबकि वैकल्पिक वर्षों में गैर-प्रतिस्‍पर्धी फिल्‍मोत्‍सव अन्‍य फिल्‍म निर्माण केंद्रों पर आयोजित किया जाने लगा। 1987 में समारोह के प्रतिस्‍पर्धी खंड का आयोजन बंद कर दिया गया, लेकिन 1996 में इसे तब फिर शुरू किया गया, जब एशिया की महिला फिल्‍म निर्देशकों की एक प्रतियोगिता आयोजित की गई। 1998 में एशियाई सिनेमा के लिए ऐसी प्रतियोगिता फिर की गई और वर्ष 2005 में यह प्रतियोगिता एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के लिए आयोजित की गई। वर्ष 2004 में फिल्‍म समारोह का स्‍थान बदलकर गोवा में पणजी कर दिया गया और इसे स्‍थयी स्‍थल बना दिया गया। इसके बाद गोवा सरकार ने केंद्र के साथ समारोह के बारे में तालमेल करने के लिए इंटरटेनमेंट सोसायटी ऑफ गोवा की स्‍थापना की। प्रीतीश नंदी की अध्‍यक्षता में गठित एक उच्‍च स्‍तरीय समिति की अंतरिम रिपोर्ट के बाद समारोह के प्रतिस्‍पर्धी खंड को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर का बना दिया गया और 2010 में दो नये पुरस्‍कार शुरू किए गए। दो पुरस्‍कार सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता और अभिने‍त्री के लिए शुरू किए गए। यह समिति आईएफएफआई का स्‍तर बढ़ाकर अंतरराष्‍ट्रीय मानकों के अनुरूप करने पर विचार करने के लिए गठित की गई थी। परिणाम यह हुआ कि इस वर्ष 42वें फिल्‍म समारोह में एक बड़ा परिवर्तन दिखाई दिया। यह समारोह इन अर्थों में भी उल्‍लेखनीय रहा कि इसमें 65 देशों की 167 फिल्‍में दिखाई गईं। इसमें पहले के मुकाबले ज्‍यादा संख्‍या में विभिन्‍न खंडों के आयोजन किए गए, जिनके अनुरूप यह वास्‍तविक अर्थों में जनता का समारोह बन गया। इसी वर्ष लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्‍कार भी फिर से शुरू किया गया। ऐसा पुरस्‍कार पहले फ्रांस के फिल्‍म निर्माता ब्रर्ट्रेंड टैवर्नियर को दिया गया था। इस पुरस्‍कार में एक शाल, एक प्रशस्‍ति पत्र और 10 लाख रूपये दिए जाते हैं। ब्रर्ट्रेंड टैवर्नियर अपनी फिल्‍म क्‍लाकमैकर (1974) के लिए मशहूर है, जिसने 24वें बर्लिन अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह में प्री लुई डैलू और सिल्‍वर बियर (विशेष जूरी पुरस्‍कार) जीते थे। टैवर्नियर की एक और जानी-मानी फिल्‍म है ‘लाइफ एंड नथिंग, बट’ जिसने अंग्रेजी के अलावा किसी अन्‍य भाषा की सर्वश्रेष्‍ठ फिल्‍म होने का पुरस्‍कार 1990 में प्राप्‍त किया था। इसे फोर सेशर पुरस्‍कार और 2010 के कान फिल्‍म समारोह में ‘पाम द और’ पुरस्‍कार भी दिया गया था। इस समारोह का कुल बजट लगभग 10 करोड़ रूपये था, जिसमें एक करोड़ रूपये की पुरस्‍कार राशि शामिल हैं। परंपरा में बदलाव आया और आईएफएफआई जो पणजी में लगातार आठवीं बार आयोजित किया गया था, 22 नवंबर को मारगाव के रविंद्र भवन में आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन बॉलीवुड स्‍टार शाहरुख खान ने सूचना और प्रसारण मंत्री सुश्री अंबिका सोनी की मौजूदगी में किया। अभिनेता सूर्य प्रमुख अतिथि थे। सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री श्री सी.एम. जटुआ ने तीन दिसंबर को गोवा के मुख्‍यमंत्री श्री दिगंबर कामत की अध्‍यक्षता में हुए समारोह में इसका समापन किया। उद्घाटन सत्र में अभिनेता शाहरुख खान ने कहा कि सिनेमा अपने दर्शकों को कुछ समय के लिए एक ही प्रकार से सोचने का अवसर देता है। यह महत्‍वपूर्ण्‍नहीं है कि आपकी बगल में सिनेमा हाल के अंधेरे में कौन बैठा हुआ है। उन्‍होंने कहा कि उन्‍हें कला और कमर्शियल सिनेमा में भेद करना पसंद नहीं है, क्‍योंकि सभी फिल्‍में दुनिया का आईना होती है। समापन समारोह में अभिनेता सूर्य ने कहा कि फिल्‍में आकांक्षाओं के बारे में नहीं होती, बल्कि लोगों को कुछ बेहतर करने की प्रेरणा देती है। उन्‍होंने यह भी कहा कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक संस्‍कृति है। उद्घाटन और समापन के समय दिखाई गई फिल्‍में सत्‍य कथाओं पर आधारित थीं। समारोह का समारंभ पुर्तगाल की एक फिल्‍म ‘द कांसुल ऑफ बोरदो’ से हुआ, जिसके निर्माता हैं फ्रांसिको मांसो और जोआओ कोरिया। यह फिल्‍म एक ऐसे व्‍यक्ति के जीवन पर आधारित है, जिसने दूसरे विश्‍व युद्ध के समय लगभग 30 हजार यहूदियों का जीवन वीज़ा जारी करके बचाया था। समापन सत्र में लकबेसों की फिल्‍म ‘द लेडी’ दिखाई गई, जो म्‍यांमार की नेता और नोबल पुरस्‍कार विजेता ‘आंग सान सुऊ क्‍यी’ के जीवन पर आधारित है। इस फिल्‍म में माइकल यीहो ने नायक की भूमिका निभाई, जो समापन समारोह में मौजूद थे। समापन सत्र में लकबेसों भी आए थे। इस समारोह में अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म उद्योग के सात दिग्‍गज निर्माताओं को श्रद्धांजलि दी गई। इस वर्ष के समारोह के समापन के समय जिन महान निर्माताओं को याद किया गया, उनमें सिडनी ल्‍यूमे, राउल रूज, क्राउड केवरोल, अडोलफास मिकाज, रिचर्ड लिकॉक, एलिजाबेथ टेलर और तारिक मसूद। जिन दिवंगत भारतीय लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई, उनमें मणि कौल, शम्‍मी कपूर, जगजीत सिंह, भूपेन हजारिका और रविंद्रनाथ टैगोर शामिल हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्‍तकों पर आधारित पाँच फिल्‍में भी दिखाई गई। भारतीय पॅनोरमा के तहत 24 फीचर और 21 गैर-फीचर फिल्‍में शामिल थीं, जिसका समारंभ हिन्‍दी फिल्‍मों की मशहूर अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने किया। संतोष सिवन की मलयालम फिल्‍म उरूमी और राजन-साजन मिश्र के संगीत पर मकरंद ब्राह्मे की गैर-फीचर फिल्‍म अद्वैत संगीत के प्रदर्शन से इसकी शुरुआत हुई। सिनेमाई संसार के रत्‍नों को एक साथ लाते हुए इस समारोह ने ‘समारोह कैलिडोस्‍कोप’ का प्रदर्शन किया। इसके तहत कान, लोकार्नो, मॉण्ट्रियल और बुसान फिल्‍म समारोहों में शीर्ष पुरस्‍कार विजेताओं को शामिल किया गया था। यूरोपीय खोजों, पोलैण्‍ड पर स्‍पॉटलाइट, डॉक्‍यूमेंटरी, परदे पर रेखाचित्र, सिनेमा में फुटबॉल और रूसी क्‍लासिक पर केंद्रित खंडों का आयोजन किया गया। देशकेंद्रित खंड के तहत अमरीका पर ध्‍यान केंद्रित किया गया। सात उत्‍कृष्‍ट फिल्‍में जो प्रतिस्‍पर्द्धा में शामिल नहीं हो सकीं, लेकिन जिन्‍हें उच्‍च दर्जे का माना गया, को ‘ए कट एबव’ खंड के तहत दिखाया गया। डिजिटल फॉर्मेट पर बनाई गई फिल्‍मों के साथ 3डी फिल्‍मों का भी प्रदर्शन किया गया। लघु फिल्‍मों के लिए प्रतिस्‍पर्द्धी लघु फिल्‍म केंद्र और फिल्‍म संस्‍थानों के फिल्‍म निर्माताओं के लिए छोटे सिनेमा खंड का भी आयोजन किया गया। दो महान निर्देशकों फ्रांस के लकबेसों और आस्‍ट्रेलिया के फिलिप नॉयस की फिल्‍मों का प्रदर्शन ‘पुनरावलोकन खंड’ के तहत किया गया। ये दोनों प्रख्‍यात निर्देशक भी इस अवसर पर समारोह में मौजूद थे। इस समारोह के दौरान चार दिवसीय फिल्‍म बाजार का आयोजन राष्‍ट्रीय फिल्‍म विकास निगम (एनएफडीसी) ने किया। इसके तहत 40 प्रदर्शन किए गए। भारतीय और विदेशी पक्षों द्वारा करीब 20 स्‍टॉलों की स्‍थापना की गई और इसमें करीब 500 प्रति‍निधि शामिल हुए। इसमें कुछ अनुबंध किए गए तो कई अभी प्रक्रिया में है। मशहूर फिल्‍म निर्देशक अडूर गोपालाकृष्‍णन की अध्‍यक्षता में पांच सदस्‍यीय अंतरराष्‍ट्रीय निर्णायक मंडल ने प्रतिस्‍पर्द्धा खंड की 14 फिल्‍मों का मूल्‍यांकन किया। निर्णायक मंडल के अन्‍य सदस्‍यों में इजराइल के डैन वोलमैन, अमरीका के लॉरेंस कार्दिश, द. कोरिया के ली यंग क्‍वान और ईरान की सुश्री तहमीना मिलानी थे। अलेजांद्रो लैंड्स की कोलम्बियाई फिल्‍म ‘पोरफिरियो’ को इस समारोह की सर्वश्रेष्‍ठ फिल्‍म का स्‍वर्ण मयूर पुरस्‍कार, तो ईरानी निर्देशक असगर फरहादी को समारोह के सर्वश्रेष्‍ठ निर्देशक का रजत मयूर पुरस्‍कार प्रदान किया गया। फरहादी को उनकी फिल्‍म ‘नादेर और सिमिन: अ सेपेरेशन’ के निर्देशन के लिए यह सम्‍मान मिला। अलेजांद्रो को 40 लाख रुपए तो फरहादी को 15 लाख रुपए दिए गए। जोसेफ मैडमोनी की इजराइली फिल्‍म ‘रेस्‍टोरेशन’ के लिए सैसन गैबे को सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता, तो आंद्रेई ज्‍व्‍यागिनतेव की रूसी फिल्‍म ‘इलिना’ के लिए नादेज्‍डा मारकीना को सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेत्री का पुरस्‍कार दिया गया। दोनों को रजत मयूर और 10-10 लाख रुपए का पुरस्‍कार दिया गया। भारत से सलीम अहमद की मलयाली फिल्‍म अदामिंते माकन अबू को विशेष ज्‍यूरी पुरस्‍कार दिया गया। इसके तहत 15 लाख रुपए की राशि और एक रजत मयूर दिया गया। भारत और विदेशों से आए लोगों की बड़े पैमाने पर भागीदारी इस साल के समारोह की विशेषता रही। इनमें कई फिल्‍मी हस्तियां भी थीं, जिनकी कोई फिल्‍म इस समारोह में शामिल नहीं थी। वे फिल्‍मों के प्रति अपने प्‍यार की वजह से इस समारोह में शामिल हुए। रमेश सिप्‍पी, जानु बरुआ, सुधीर मिश्रा, राजेन्‍द्र अहीरे और सोहैल खान, ऑस्‍कर पुरस्‍कार विजेता रेसुल पोकुट्टी और कैमरापर्सन मधु अंबट ऐसे लोगों में थे। अन्‍य लोगों में फिल्‍म उद्योग में एक श्रमिक संघ के नेता श्री धर्मेश तिवारी, संचालन समिति के अध्‍यक्ष श्री माइक पाण्‍डे, भारतीय फिल्‍म महासंघ के अध्‍यक्ष टी. पी. अग्रवाल और महासचिव सुप्रन सेन, अभिनेता प्रेम चोपड़ा, जैकी श्रॉफ, इरफान खान, रितुपर्णा सेनगुप्‍ता, राहुल खन्‍ना, टिस्‍का चोपड़ा, समीर सोनी, मंदिरा बेदी, कंगना रानाउत और भूमिका आदि प्रमुख थे। इसके अलावा इस समारोह में 5,000 प्रतिनिधियों और करीब 1,000 मीडियाकर्मियों ने भाग लिया। समारोह के लगभग सभी शो हाउसफुल रहे। इसमें 40 से अधिक संवाददाता सम्‍मेलन और करीब 10 खुले सत्रों का आयोजन किया गया। सिनेमा में सबटाइटल की कला विषय पर एक पैनल डिस्‍कशन और फिल्‍म आलोचक स्‍वर्गीय चिदानंद दासगुप्‍ता को श्रद्धांजलि देने के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस समारोह की एकमात्र दुखद घटना ब्राजीली फिल्‍म निर्माता ऑस्‍कर मैरून फिल्‍हो की ह्रदयगति रुकने से अचानक हुई मौत रही। उनकी फिल्‍म ‘मारियो फिल्‍हो: अ क्रिएटर ऑफ क्राउड्स’ को फुटबॉल पैकेज के तहत इस समारोह में प्रदर्शित किया गया। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री सुश्री अंबिका सोनी के अनुसार, यह समारोह भारतीय सिनेमा की वैश्विक स्‍तर पर बढ़ रही स्‍वीकृति का सच्‍चा प्रतिनिधि बन गया है और इसने फिल्‍म उद्योग को गति और पहचान दी है। --------

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