फ़ॉलोअर

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

भारतीय रिजर्व बैंक की विकास यात्रा

भारतीय रिज़र्व बैंक एक ही दिन में देश भर के बैंकों का बैंक नहीं बना है। क्रमिक विकास, एकीकरण, नीतिगत बदलावों और सुधारों की एक लम्‍बी और कठिन यात्रा रही है, जिसने भारतीय रिज़र्व बैंक को एक अलग संस्‍थान के रूप में पहचान दी है। रिज़र्व बैंक की स्‍थापना के लिए सबसे पहले जनवरी, 1927 में एक विधेयक पेश किया गया और सात वर्ष बाद मार्च, 1934 में यह अधिनियम मूर्त रूप ले सका। विकासशील देशों के सबसे पुराने केन्‍द्रीय बैंकों में से रिज़र्व बैंक एक है। इसकी निर्माण यात्रा काफी घटनापूर्ण रही है। केन्‍द्रीय बैंक की कार्य प्रणाली अपनाने की इसकी कोशिश न तो काफी गहरी और न ही चौतरफा रही है। द्वितीय विश्‍व युद्ध छिड़ जाने की स्थिति में अपनी स्‍थापना के पहले ही दशक में रिज़र्व बैंक के कंधों पर विनिमय नियंत्रण सहित कई विशेष उत्तरदायित्व निभाने की जिम्‍मेदारी आ गई। एक निजी संस्‍थान से राष्‍ट्रीय कृत संस्‍थान के रूप में बदलाव और स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद अर्थव्‍यवस्‍था में इसकी नई भूमिका दुर्जेय थी। रिज़र्व बैंक के साल-दर-साल विकास की राह पर चलते हुए कई कहानियां बनीं, जो समय के साथ इतिहास बनती चली गई। 1935 में रिज़र्व बैंक की स्‍थापना से पहले केन्‍द्रीय बैंक के मुख्‍य कार्यकलाप प्राथमिक तौर पर भारत सरकार द्वारा संपन्‍न किये जाते थे और कुछ हद तक ये कार्य 1921 में अपनी स्‍थापना के बाद भारतीय इम्‍पीरियल बैंक द्वारा संपन्‍न होते थे। नोट जारी करने का नियमन, विदेशी विनिमय का प्रबंधन एवं राष्‍ट्र की अभिरक्षा और विदेशी विनिमय भंडार जैसे कार्यों की जिम्‍मेदारी भारत सरकार की हुआ करती थी। इम्‍पीरियल बैंक सरकार के बैंक के रूप में काम करता था और व्‍यावसायिक बैंक के रूप अपनी प्राथमिक गतिविधियों के अलावा यह एक सीमित हद तक बैंकों के बैंक के रूप में भी काम करता था। जब रिज़र्व बैंक की स्‍थापना हुई, तब भारत में एक हद तक संस्‍थागत बैंकिंग का विकास हुआ और विदेशी बैंकों को सामान्‍य तौर पर विनिमय बैंक के रूप में पहचान मिली। 1941 में कराची में रिज़र्व बैंक का कार्यालय मुख्य तौर पर नकदी कार्यालय था, जहां लगभग 75 लोग काम करते थे। अविभाजित भारत में उस समय कानूनी निविदाओं के तहत मुद्राएं क्षेत्रवार छपती थीं, जो मुख्‍यत: 100 और 1000 रुपये के नोट के रूप में होती थीं। तब नोटों पर इन्‍हें जारी करने के क्षेत्रों के नाम जैसे – मुंबई, कानपुर, कलकत्‍ता, मद्रास, कराची, लाहौर छापे जाते थे। नोट छापने वाले हर क्षेत्र को नोट जारी करने और समय-समय पर इन्‍हें रद्द करने का सदस्‍यवार रिकॉर्ड रखना पड़ता था। यदि कराची क्षेत्र से जारी किये गए नोट कलकत्‍ता में पकड़े गए, तो उन्‍हें कराची लाया जाता था और जारी करने वाले खाते पर इनकी संख्‍या दर्ज कर रद्द कर दिया जाता था। खातों में जारी और रद्द किये गए हर नोट की संख्‍या दर्ज होता थी। यदि किसी नोट की संख्‍या रद्द नोट की संख्‍या से मिलती पाई गई, तो ऐसे मामलों में जांच कराई जाती थी। 1946 में, जब 1000 रुपये के नोट का विमुद्रीकरण किया गया, तो कुछ लोगों ने प्रति 1000 रुपये के नोट के बदले में 500 से 600 रुपये के नोट लिये। ऐसा विनिमय रिज़र्व बैंक और आयकर विभाग के दफ्तर में कराया गया। बैंक और दूसरे कारपोरेट निकायों ने बड़ी राशि के नोट को छोटी राशि के नोट में बदलवाया। इस तरह बैंकों ने अपने ग्राहकों और परिचितों के नाम नोट विनिमय कर उनकी मदद की। उन दिनों एक रुपये के चांदी के सिक्‍कों की शुद्धता की जांच रोकडिया सिक्‍के को लकड़ी के टेबल पर तेजी से फेंक कर करता था। वे नकली सिक्‍कों की पहचान इस तरह सिक्‍कों की आवाज सुन कर करते थे। इस तरह हम कह सकते हैं कि रिज़र्व बैंक उस जमाने में एक संगीतप्रेमी था। 1940 के शुरूआती दशक में रिजर्व बैंक के वरिष्‍ठ अधिकारिक पदों पर मौजूदा कर्मियों को ही पदोन्‍नत कर जिम्‍मेदारी दी जाती थी या इंपीरियल बैंक के अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर लाया जाता था। अधिकारियों का अंतिम साक्षात्‍कार कलकत्‍ता में निदेशकों के केन्‍द्रीय मंडल में संपन्‍न होता था। देश के विभाजन के बाद कराची में कार्यरत अधिकारियों को 1947 में मुंबई कार्यालय में आने को कहा गया। इस पर कुछ टेलीफोन ऑपरेटर ही मुंबई कार्यालय में योगदान देने आए। उस समय रिज़र्व बैंक में कोई महिला कर्मचारी नहीं थी। 1940 के शुरूआती दशक में लिपिक के पद पर एक महिला की नियुक्ति हुई और एक अधिकारी के रूप में मार्च, 1949 में सुश्री धर्मा वेंकटरमन की बहाली हुई। बैंक में धीरे-धीरे महिला कर्मियों की संख्‍या बढ़ने लगी। एक आंकड़े के अनुसार जनवरी, 1968 में महिलाओं की संख्‍या कुल कर्मचारियों के आठ फीसदी से कम थी। इतिहास के पन्‍ने बताते हैं कि रिज़र्व बैंक में इम्‍पीरियल बैंक से आये अधिकारियेां को छोड़ बहुत कम यूरोपीय अधिकारी थे। ऐसा डिप्‍टी गर्वनर नानावटी की कोशिशों की वजह से संभव हो पाया। वे चाहते थे कि अधिकारी बनने का मौका अधिक-से-अधिक भारतीयों को मिले। कर्मचारियों के संदर्भ में नानावटी भारतीयकरण चाहते थे और वे भारत में बनी वस्‍तुओं को खरीदने में तरजीह देते थे। इस संबंध में यह जानना बड़ा रुचिकर है कि बैंक में एक बार भारत में बनी घडियों की खरीदारी का कर्मचारियों ने विरोध किया और काम करना बंद कर दिया। तब नानावटी की टिप्‍पणी थी कि इससे कोई मतलब नहीं है कि बैंक की सभी घडियां इस तरह गतिरोध पैदा कर दें। हालांकि यह जानना बड़ा दिलचस्‍प है कि सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट फॉर इंडिया रिज़र्व बैंक को एक संस्थागत रूप देने के लिए कई कारणों से कर्मचारियों को सुकून देने वाली समय सारणी का समर्थन करते थे। प्राथमिक प्रबंधन के लिए आवश्‍यक समय के अलावा बैंक की स्‍थापना के लिए सरकारी बजट में संशोधन और सामान्‍य निर्यात सरप्‍लस की वापसी जैसी कुछ पूर्व शर्तें लागू करने की जरूरत महसूस की गई। ये शर्तें अधिक समय लेने वाली थीं, जिसे पूरा होने में लगने वाला समय कष्‍टदायक था। सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट फॉर इंडिया का मानना था कि रिज़र्व बैंक की स्‍थापना में ज्‍यादा तत्‍परता तब तक उचित नहीं है, जब तक नये वित्‍त सदस्‍य वास्‍तविक स्थिति को व्‍यक्तिगत तौर पर समझे बिना इस मसले पर अपनी राय देने की स्थिति में न आ जायें। उन्‍होंने भारत सरकार के उस सुझाव को निरस्‍त कर दिया, जिसमें बिना मुद्रा नियमन के बैंक की शुरूआत करने की बात कही गई थी। अंत में इस मसले पर ऐसी सहमति बनी, कि बैंक की शुरूआत न तो भारत सरकार की इच्‍छा के अनुरूप बहुत जल्‍दी हुई और न ही देर से, जैसा कि सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट फॉर इंडिया ने अंदाजा लगाया था। 15 अगस्‍त, 1947 को भारत और ब्रिटेन के बीच एक महत्‍वपूर्ण समझौता ‘’ब्रिटिश डेट (DEBT) पैक्‍ट विद इंडिया’’ पर समझौता हुआ। ब्रिटेन और भारत की सरकार ने उस वक्‍त भारत के स्‍टर्लिंग संतुलन के संबंध में 1947 तक की अवधि के लिए अंतरिम समझौते पर हस्‍ताक्षर किये। दोनों देशों के अधिकारियों की बैठक में दोनों देशों के बीच आर्थिक और वित्‍तीय समस्याओं की समीक्षा की गई और भारत की संभावित आवश्यकताओं पर विचार किया गया। बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि खर्च के लिए भारत की मौजूदा बचत में 35 मिलियन पॉउंड उपलब्‍ध होना चाहिए, जिसकी व्‍यवस्‍था 31 दिसम्‍बर, 1947 तक होनी चाहिए। इसके अलावा 30 मिलियन पॉउंड की कार्यकारी बचत रिज़र्व बैंक के अधिकार क्षेत्र में होगी। दोनों सरकारों ने खासतौर से इस बात पर भी सहमति जताई कि ब्रिटिश मूल के उन लोगों की बचत राशि पर कोई सरकार किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाएगी, जो स्‍थायी तौर पर ब्रिटन वापस जाने वाले हैं। ब्रिटेन में रह रहे लोगों की निवेश राशि पर भी किसी तरह के प्रतिबंध से मना किया गया। रिज़र्व बैंक आज एक ऐसे संस्‍थान के रूप में काम कर रहा है, जो मौद्रिक स्‍थायित्‍व, मौद्रिक प्रबंधन, विदेशी विनिमय, आरक्षित निधि प्रबंधन, सरकारी कर्ज प्रबंधन, वित्‍तीय नियमन एवं निगरानी सुनिश्चित करने के उद्देश्‍य के साथ काम करता है। इसके मुख्‍य दायित्‍वों में मुद्रा प्रबंधन और भारत के हक में इसकी साख व्‍यवस्‍था का संचालन भी शामिल है। इसके अलावा अपनी स्‍थापना की शुरूआत से ही रिज़र्व बैंक ने विकास की दिशा में सक्रिय भूमिका निभाई है, खासकर कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में। रिज़र्व बैंक के इतिहास के पन्‍नों से ये कुछ ऐसी झलकियां थी, जिसे हम बैंकों के इस बैंक की लंबी और महत्‍वपूर्ण यात्रा से निकाल कर पेश कर पाए हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

International Conference on Communication Trends and Practices in Digital Era (COMTREP-2022)

  Moderated technical session during the international conference COMTREP-2022 along with Prof. Vijayalaxmi madam and Prof. Sanjay Mohan Joh...