हिमालय के हिमनद यानी ग्लेसियर बहुमूल्य राष्ट्रीय एवं वैश्विक संसाधन हैं जो ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर सबसे बड़ा बर्फ का केंद्र हैं। यह वैश्विक जलवायु को नियंत्रित करते हैं तथा उत्तर भारत की ज्यादातर बारहमासी नदियों को पानी उपलब्ध कराते हैं तथा जलवायु परिवर्तन का महत्वपूर्ण संकेतक हैं। तथापि पानी का यह स्रोत स्थायी नहीं है क्योंकि ग्लसियल यानी हिमनदीय आयाम जलवायु के साथ बदल जाते हैं। इसलिए हिमालयी बर्फ और हिमनदों के विस्तार में भावी बदलाव को समझने के लिए सही विज्ञान का उपयोग करना अनिवार्य हो गया है।
अब तक हिमालय के हिमनदों पर बहुत कम अध्ययन हुए हैं तथा ये कुछ ही हिमनदों तक सीमित रहे हैं। पानी के संसाधनों के नियोजन एवं प्रबंध के लिए पानी के इन स्रोतों को मापने और सूची बनाने में यह अंतर कम करना अनिवार्य है। इस दिशा में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा अंतरिक्ष विभाग की संयुक्त परियोजना के तहत हाल ही में "हिमालय के बर्फ और हिमनद" पर व्यापक अध्ययन और "हिमालय के हिमनद और बर्फ : विस्तृत सूची और निगरानी " पर अध्ययन कराए गए और परिचर्चा पत्र -2 जारी किया गया।
यह हिमालय पर अब तक का सबसे अधिक चित्रों पर आधारित अध्ययन है। इन हिमनदों के 75 प्रतिशत को 3.75 प्रतिशत की औसत दर से खिसकते हुए दिखाया गया है तथा 8 प्रतिशत एडवांस और 17 प्रतिशत स्थिरता की स्थिति में दर्शाए गए हैं। पहली बार सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र थालों तक विस्तृत हिमनदों की सूची बनाई गयी है। इनकी कुल संख्या करीब 33,000 गिनी गयी है। इनमें से करीब 10-15 हजार हिमनद भारत के भौगोलिक क्षेत्र में होंगे।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों से पता चलता है कि पूरे हिमालयी क्षेत्र में 2004-05 से 2007-08 तक बर्फ और हिमनदों की नियमित निगरानी की गयी है। सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी थालों में हिमनदीय क्षेत्रों की व्यापक सूची बनाने के लिए उपग्रह आधारित मापन प्रणाली का इस्तेमाल किया गया। इन तीन नदी थालों में 32,392 हिमनदों की माप की गयी जिनका कुल हिमनदीय क्षेत्र 71,182 वर्ग किमी. होने का अनुमान है। अकेले भारत में ही 16,627 हिमनद हैं जो 40,563 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले हैं। 2,700 से अधिक हिमनदों की निगरानी की गयी। 2,767 हिमनदों में से 2,184 हिमनद खिसक रहे हैं, 435 एडवांस स्थिति में हैं और 148 में कोई परिवर्तन नज़र नहीं पाया गया।
यह अध्ययन अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अहमदाबाद द्वारा किए गए चार वर्षों का परमोत्कर्ष है। अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र ने हिमालयी हिमनदों और क्रायोस्फेयर की दशा को समझने के लिए रिमोट-सेंसिंग आधारित तकनीकों और मॉडलों के विकास में भी मदद की है।
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मंगलवार, 12 जुलाई 2011
सोमवार, 28 फ़रवरी 2011
26/11 के बाद हमारे तटवर्तीय क्षेत्रों की सुरक्षा
नौ तटवर्ती राज्यों और चार केन्द्रशासित प्रदेशों से लगी हुई 7516 किलोमीटर लम्बी हमारी तटीय सीमा सुरक्षा संबंधी गंभीर चुनौतियां पेश करती है । मुंबई के 26/11 के आतंकी हमलों के बाद देश के समूची तटीय सुरक्षा परिदृश्य पर सरकार द्वारा अनेक स्तरों पर समीक्षा की गई है । तटीय सुरक्षा के खतरों के विरूद्ध मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय समुद्री और तटीय सुरक्षा समिति (एनसीएसएमसीएस) का गठन किया गया है । तटीय सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर समिति में विस्तृत चर्चा की गई है । सभी नौ तटवर्ती राज्य और चार केन्द्रशासित प्रदेश इस समिति की बैठकों में नियमित रूप से भाग लेते हैं ।
देश की तटीय सुरक्षा को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं , जिन पर क्रियान्वयन किया जा रहा है । देश की तटवर्ती सीमा की सुरक्षा के लिये तटवर्ती राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की पुलिस, राज्यों के प्रशासन, भारतीय नौसेना, गृह मंत्रालय और अन्य केन्द्रीय मंत्रालय पूरे सामंजस्य के साथ काम कर रहे हैं । इन सबके बावजूद , भारत की विशाल समुद्री सीमा की रक्षा करना एक गुरूतर दायित्व है।
तटीय सुरक्षा येाजना (प्रथमचरण)
राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में सुधार के लिये गठित मंत्रि समूह की सिफारिशों पर गठित तटीय सुरक्षा येाजना का अनुमोदन सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडल समिति ने जनवरी 2005 में किया था, जिस पर वर्ष 2005-06 से शुरू होकर पांच वर्षों में अमल किया जाना था । योजना में तटवर्ती 9 राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों को 73 तटवर्ती पुलिस थाने, 97 जांच चौकियां (चेक पोस्ट), 58 सीमा चौकियां (आउटपोस्ट) और 30 बैरकों की स्थापना के लिये सहायता दी जाती है। इन सभी में कुल 204 नौकायें, 153 जीपें और 312 मोटर साइकिलें मुहैया करायी गई हैं । योजना के अंतर्गत जनशक्ति का प्रावधान राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा किया जाता है । प्रारंभ में येाजना के अंतर्गत अनावर्ती व्यय के लिये चार अरब रूपये और नौकाओं की मरम्मत , साधारण एवं ईंधन तथा समुद्री पुलिस कर्मियों के प्रशिक्षण पर आवर्ती व्यय के लिये 1 अरब 51 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया था । योजना को फिलहाल एक वर्ष यानी 31 मार्च, 2011 तक बढ़ा दिया गया है और अनावर्ती व्यय के लिये 95 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है ।
अनुमोदित 73 तटवर्ती पुलिस थानों में से 71 में काम शुरू हो चुका है । इनमें से 48 अपने नए भवनों से काम कर रहे हैं । इसके अलावा 75 जांच चौकियों , 54 सीमा चौकियों और 22 बैरकों का निर्माण भी पूरा हो चुका है । अनुमोदित 204 नौकाओं में से 195 नौकायें 31 दिसम्बर, 2010 तक अतटवर्ती राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को दी जा चुकी हैं । गोवा के लिये 10 रिजिड ‘इन्फ्लेटे बल बोट्स’ (सुदृढ़ हवा से फूलने वाली नौकायें) खरीदी जा चुकी हैं । राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा सभी वाहन (153 जीपें और 312 मोटर साइकिलें ) खरीदे जा चुके हैं । तटरक्षक बल ने अब तक करीब 2000 लोगों को प्रशिक्षण दिया है ।
नौकाओं का पंजीकरण
भारतीय जल क्षेत्र में सभी प्रकार की नौकाओं मछली पकड़ने वाली या मछली नहीं पकड़ने वाली को एक समरूप प्रणाली के तहत पंजीकरण कराना होता है । जहाजरानी मंत्रालय ने जून 2009 में दो अधिसूचनायें जारी की, जिनमें से एक व्यापारिक नौवहन (मछली पकड़ने वाली नौकाओं का पंजीकरण) नियमों में संशोधन से संबंधित था, जबकि दूसरा पंजीयकों की सूची की अधिसूचना से संबंधित था । राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश इस पर अनुसरण कर रहे हैं । राष्ट्रीय सूचना केन्द्र (एनआईसी) ने देश में एक समरूप ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली का विकास किया है । कार्यक्रम पर अमल के लिये एनआईसी को 1 करोड़ 20 लाख रूपये और तटवर्ती राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को 5 करोड़ 81 लाख 86 हजार रूपये जारी किये जा चुके हैं । इससे संबंधित प्रशिक्षण और प्रशिक्षण की शुरूआत हो चुकी है तथा ऑनलाइन पंजीकरण भी प्रारंभ हो गया है ।
मछुआरों को पहचान पत्र जारी करना
तटवर्ती मछुआरों को बायोमीट्रिक पहचान पत्र जारी करने के लिये 72 करोड़ रूपये की कुल लागत से केन्द्रीय क्षेत्र की एक योजना शुरू की गई है । इस परियोजना के लिए आर्थिक सहयोग भारतीय महापंजीयक से प्राप्त हो रहा है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की अगुवाई में तीन कंपनियों के एक समूह को आंकड़ों के अंकीकरण कार्ड के उत्पादन और उसे जारी करने का काम सौंपा गया है । बायोमीट्रिक पहचान पत्र जारी करने के लिये जिन 15,59,640 मछुआरों की पहचान की गई है, उनमें से 8,29,254 (53.17 प्रतिशत) के बारे में आंकड़े इकट्ठा किये जा चुके हैं और 3,76,828 (45.44 प्रतिशत)मछुआरों के आंकड़ों का अंकीकरण किया जा चुका है ।
आरजीआई, जनसंख्या 2011 के पूर्व तटीय राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने की अपनी परियोजना के एक अंग के तौर पर तटवर्ती गांवों की जनसंख्या को बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया में है । नए कोर्ड एएचडी (पशुपालन विभाग) और मत्स्यपालन विभाग द्वारा जारी किये जाएंगे । पहले चरण में 3331 तटवर्ती गांवों का चयन इस कार्य के लिये किया गया है ।
पहचान पत्रों का वितरण दिसम्बर 2010 में शुरू हो चुका है । अब तक 1 करोड़ 20 लाख लोगों के आंकड़े इकट्ठा किये जा चुके हैं, जबकि 69 लाख लोगों के बायोमीट्रिक विवरण तैयार किये जा चुके हैं । गुजरात, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु , ओडीशा , दमन व दीव, लक्षदीप और पुड्डुचेरी के तटवर्ती गांवों में आमतौर पर रहने वालों का स्थानीय रजिस्टर एलआरयूआर की छपाई पूरी हो चुकी है ।
बंदरगाह सुरक्षा
ऐसे बंदरगाह जो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं माने जाते उनकी सुरक्षा, हमेशा से ही चिंता का विषय रही है । देश में 12 प्रमुख और करीब 200 कम महत्व के छोटे बंदरगाह हैं । प्रमुख बंदरगाहों की सुरक्षा सीआईएसएफ के हाथों में है, जबकि छोटे और कम महत्व के बंदरगाहों की सुरक्षा राज्यों के समुद्री बोर्डों/राज्य सरकारों के हाथों में होती है । बड़े बंदरगाह अंतराष्ट्रीय जहाजों के अनुकूल सुरक्षा प्रबंधों और सुविधाओं से लैस हैं । इन बंदरगाहों का सुरक्षा अंकेक्षण हर दो वर्ष में किया जाता है, यानी सुरक्षा संबंधी प्रबंधों की समीक्षा की जाती है, परन्तु कम महत्व के बंदरगाहों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है ।
12 प्रमुख बंदरगाहों के अतिरिक्त देश के 53 छोटे/कम महत्वपूर्ण बंदरगाह और 5 शिपयार्ड (पोत निर्माण संयंत्र) भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जहाजों के अनुकूल सुरक्षा और सुविधाओं से संपन्न हैं । इन बंदरगाहों के सुरक्षा प्रबंधों और सुविधाओं की वैश्विक अनुकूलता की स्थिति का पुनराकलन इंडियन रजिस्टर ऑफ शिपिंग द्वारा किया गया है । सीमा शुल्क विभाग, जहाजरानी तथा राज्यों के समुद्री बोर्डों को साथ लेकर ऊपर वर्णित 65 प्रमुख और गैर प्रमुख बंदरगाहों के अतिरिक्त अन्य कम महत्वपूर्ण बंदरगाहों में भी अंतराष्ट्रीय स्तर के जहाजों के अनुकूल सुरक्षा और सुविधाओं को जुटाने के लिये आवश्यक कार्रवाई कर रहा है ।
ऑपरेशन स्वान
गुजरात और महाराष्ट्र के तटवर्ती क्षेत्रों की पैट्रोलिंग की संयुक्त व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये चलाई जा रही ऑपरेशन स्वान येाजना के तहत तटरक्षक बाल को 15 इंटरसेप्टर (पीछा करने वाली) नौकाओं की खरीद और महाराष्ट्र के धानु तथा मुरूड जंजीरा और गुजरात के वेरावल में 3 तटरक्षक केन्द्र स्थापित करने के लिये 3 अरब 42 करोड़ 56 लाख रूपये की सहायता दी जा रही हे । योजना के अंतर्गत जमीन और नौकाओं की लागत के तौर पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अब तक 61 करोड़ 11 लाख रूपये जारी किये जा चुके हैं ।
निर्णयों का क्रियान्वयन
समुद्री और तटवर्ती सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए अग्र लिखित निर्णयों पर क्रियान्वयन हो चुका है –तटवर्ती क्षेत्रों में गश्त और निगरानी में विस्तार, तटवर्ती और तट से दूर सुरक्षा सहित समग्र समुद्री सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना को उत्तरदायित्व सौंपना, तटवर्ती पुलिस की गश्त वाले क्षेत्रों सहित भूभागीय जल क्षेत्र की सुरक्षा के लिये , तटरक्षक बल को अधिकृत करना, महानिदेशक (डीजी), तटरक्षक बल को कमांडर मनोनीत करना, तटवर्ती सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों में केन्द्रीय और राज्यों की एजेंसियों के बीच समन्वयन का पूरा उत्तरदायित्व सौंपना, तटवर्ती कमांड को सौंपना, मुंबई , विशाखापटनम कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर में चार संयुक्त कार्रवाई केन्द्रों की स्थापना और तटरक्षक बल द्वारा सभी तटवर्ती राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में मानक प्रचालन प्रक्रियाओं को अंतिम रूप देना और उनको जारी करना ।
सुरक्षा योजना (द्वितीय चरण ) अंतिम रूप से तैयार
तटवर्ती राज्यों /केन्द्र शासित प्रदेशों ने तटरक्षक बल के परामर्श से खामियों और खतरों के आधार पर तैयार तटवर्ती सुरक्षा योजना (द्वितीय चरण) के प्रस्ताव को सरकार ने 1 अप्रैल, 2011 से पांच वर्ष को मंजूरी दे दी है । आशा है इस योजना से तटवर्ती राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को तटीय सुरक्षा व्यवस्था को उन्नत बनाया जा सकेगा । इस योजना पर परिव्यय के लिये जो वित्तीय व्यवस्था की गई है, उसमें से 11 अरब 54 करोड़ 91 लाख 20 हजार रूपये गैर-आवर्ती व्यय के लिये और 4 अरब 25 करोड़ रूपये आवर्ती व्यय के लिए रखे गए हैं । प्रस्ताव की प्रमुख विशेषताओं में से 180 नौकाओं, 60 जेट्टी , 35 हवा से फूलने वाली मजबूत नौकाओं (लक्षदीप के लिये 12 और 23 अंडमान निकोबार के लिए),10 बड़ी नौकायें (केवल अंडमान निकोबार के लिए), 131 चार पहिया वाहन वाहन और 242 मोटर साइकिलों की व्यवस्था के साथ 131 तटीय पुलिस थानों की स्थापना शामिल है । निगरानी उपकरण, अंधेरी रात में देखने के लिए उपकरण( नाइट विजन उपकरण), कम्प्यूटर और फर्नीचर तथा पीओएल पेट्रोल और लुक्रीकेन्टस 180 नौकाओं की आपूर्ति के बाद एक वर्ष के लिए) प्रति पुलिस थानों के हिसाब से 15 लाख रूपये का प्रावधान किया गया है। नौकाओं के संधारण के लिए वार्षिक संविदा और समुद्री पुलिस कर्मियों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की गई है ।
नई तटीय सुरक्षा योजना (द्वितीय चरण ) में 60 जेट्टियों के साथ-साथ मौजूदा जेट्टियों के उन्नयन का विशेष प्रावधान किया गया है ।
देश की तटीय सुरक्षा को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं , जिन पर क्रियान्वयन किया जा रहा है । देश की तटवर्ती सीमा की सुरक्षा के लिये तटवर्ती राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों की पुलिस, राज्यों के प्रशासन, भारतीय नौसेना, गृह मंत्रालय और अन्य केन्द्रीय मंत्रालय पूरे सामंजस्य के साथ काम कर रहे हैं । इन सबके बावजूद , भारत की विशाल समुद्री सीमा की रक्षा करना एक गुरूतर दायित्व है।
तटीय सुरक्षा येाजना (प्रथमचरण)
राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में सुधार के लिये गठित मंत्रि समूह की सिफारिशों पर गठित तटीय सुरक्षा येाजना का अनुमोदन सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडल समिति ने जनवरी 2005 में किया था, जिस पर वर्ष 2005-06 से शुरू होकर पांच वर्षों में अमल किया जाना था । योजना में तटवर्ती 9 राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों को 73 तटवर्ती पुलिस थाने, 97 जांच चौकियां (चेक पोस्ट), 58 सीमा चौकियां (आउटपोस्ट) और 30 बैरकों की स्थापना के लिये सहायता दी जाती है। इन सभी में कुल 204 नौकायें, 153 जीपें और 312 मोटर साइकिलें मुहैया करायी गई हैं । योजना के अंतर्गत जनशक्ति का प्रावधान राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा किया जाता है । प्रारंभ में येाजना के अंतर्गत अनावर्ती व्यय के लिये चार अरब रूपये और नौकाओं की मरम्मत , साधारण एवं ईंधन तथा समुद्री पुलिस कर्मियों के प्रशिक्षण पर आवर्ती व्यय के लिये 1 अरब 51 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया था । योजना को फिलहाल एक वर्ष यानी 31 मार्च, 2011 तक बढ़ा दिया गया है और अनावर्ती व्यय के लिये 95 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है ।
अनुमोदित 73 तटवर्ती पुलिस थानों में से 71 में काम शुरू हो चुका है । इनमें से 48 अपने नए भवनों से काम कर रहे हैं । इसके अलावा 75 जांच चौकियों , 54 सीमा चौकियों और 22 बैरकों का निर्माण भी पूरा हो चुका है । अनुमोदित 204 नौकाओं में से 195 नौकायें 31 दिसम्बर, 2010 तक अतटवर्ती राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को दी जा चुकी हैं । गोवा के लिये 10 रिजिड ‘इन्फ्लेटे बल बोट्स’ (सुदृढ़ हवा से फूलने वाली नौकायें) खरीदी जा चुकी हैं । राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा सभी वाहन (153 जीपें और 312 मोटर साइकिलें ) खरीदे जा चुके हैं । तटरक्षक बल ने अब तक करीब 2000 लोगों को प्रशिक्षण दिया है ।
नौकाओं का पंजीकरण
भारतीय जल क्षेत्र में सभी प्रकार की नौकाओं मछली पकड़ने वाली या मछली नहीं पकड़ने वाली को एक समरूप प्रणाली के तहत पंजीकरण कराना होता है । जहाजरानी मंत्रालय ने जून 2009 में दो अधिसूचनायें जारी की, जिनमें से एक व्यापारिक नौवहन (मछली पकड़ने वाली नौकाओं का पंजीकरण) नियमों में संशोधन से संबंधित था, जबकि दूसरा पंजीयकों की सूची की अधिसूचना से संबंधित था । राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश इस पर अनुसरण कर रहे हैं । राष्ट्रीय सूचना केन्द्र (एनआईसी) ने देश में एक समरूप ऑनलाइन पंजीकरण प्रणाली का विकास किया है । कार्यक्रम पर अमल के लिये एनआईसी को 1 करोड़ 20 लाख रूपये और तटवर्ती राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को 5 करोड़ 81 लाख 86 हजार रूपये जारी किये जा चुके हैं । इससे संबंधित प्रशिक्षण और प्रशिक्षण की शुरूआत हो चुकी है तथा ऑनलाइन पंजीकरण भी प्रारंभ हो गया है ।
मछुआरों को पहचान पत्र जारी करना
तटवर्ती मछुआरों को बायोमीट्रिक पहचान पत्र जारी करने के लिये 72 करोड़ रूपये की कुल लागत से केन्द्रीय क्षेत्र की एक योजना शुरू की गई है । इस परियोजना के लिए आर्थिक सहयोग भारतीय महापंजीयक से प्राप्त हो रहा है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की अगुवाई में तीन कंपनियों के एक समूह को आंकड़ों के अंकीकरण कार्ड के उत्पादन और उसे जारी करने का काम सौंपा गया है । बायोमीट्रिक पहचान पत्र जारी करने के लिये जिन 15,59,640 मछुआरों की पहचान की गई है, उनमें से 8,29,254 (53.17 प्रतिशत) के बारे में आंकड़े इकट्ठा किये जा चुके हैं और 3,76,828 (45.44 प्रतिशत)मछुआरों के आंकड़ों का अंकीकरण किया जा चुका है ।
आरजीआई, जनसंख्या 2011 के पूर्व तटीय राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने की अपनी परियोजना के एक अंग के तौर पर तटवर्ती गांवों की जनसंख्या को बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया में है । नए कोर्ड एएचडी (पशुपालन विभाग) और मत्स्यपालन विभाग द्वारा जारी किये जाएंगे । पहले चरण में 3331 तटवर्ती गांवों का चयन इस कार्य के लिये किया गया है ।
पहचान पत्रों का वितरण दिसम्बर 2010 में शुरू हो चुका है । अब तक 1 करोड़ 20 लाख लोगों के आंकड़े इकट्ठा किये जा चुके हैं, जबकि 69 लाख लोगों के बायोमीट्रिक विवरण तैयार किये जा चुके हैं । गुजरात, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु , ओडीशा , दमन व दीव, लक्षदीप और पुड्डुचेरी के तटवर्ती गांवों में आमतौर पर रहने वालों का स्थानीय रजिस्टर एलआरयूआर की छपाई पूरी हो चुकी है ।
बंदरगाह सुरक्षा
ऐसे बंदरगाह जो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं माने जाते उनकी सुरक्षा, हमेशा से ही चिंता का विषय रही है । देश में 12 प्रमुख और करीब 200 कम महत्व के छोटे बंदरगाह हैं । प्रमुख बंदरगाहों की सुरक्षा सीआईएसएफ के हाथों में है, जबकि छोटे और कम महत्व के बंदरगाहों की सुरक्षा राज्यों के समुद्री बोर्डों/राज्य सरकारों के हाथों में होती है । बड़े बंदरगाह अंतराष्ट्रीय जहाजों के अनुकूल सुरक्षा प्रबंधों और सुविधाओं से लैस हैं । इन बंदरगाहों का सुरक्षा अंकेक्षण हर दो वर्ष में किया जाता है, यानी सुरक्षा संबंधी प्रबंधों की समीक्षा की जाती है, परन्तु कम महत्व के बंदरगाहों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है ।
12 प्रमुख बंदरगाहों के अतिरिक्त देश के 53 छोटे/कम महत्वपूर्ण बंदरगाह और 5 शिपयार्ड (पोत निर्माण संयंत्र) भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जहाजों के अनुकूल सुरक्षा और सुविधाओं से संपन्न हैं । इन बंदरगाहों के सुरक्षा प्रबंधों और सुविधाओं की वैश्विक अनुकूलता की स्थिति का पुनराकलन इंडियन रजिस्टर ऑफ शिपिंग द्वारा किया गया है । सीमा शुल्क विभाग, जहाजरानी तथा राज्यों के समुद्री बोर्डों को साथ लेकर ऊपर वर्णित 65 प्रमुख और गैर प्रमुख बंदरगाहों के अतिरिक्त अन्य कम महत्वपूर्ण बंदरगाहों में भी अंतराष्ट्रीय स्तर के जहाजों के अनुकूल सुरक्षा और सुविधाओं को जुटाने के लिये आवश्यक कार्रवाई कर रहा है ।
ऑपरेशन स्वान
गुजरात और महाराष्ट्र के तटवर्ती क्षेत्रों की पैट्रोलिंग की संयुक्त व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये चलाई जा रही ऑपरेशन स्वान येाजना के तहत तटरक्षक बाल को 15 इंटरसेप्टर (पीछा करने वाली) नौकाओं की खरीद और महाराष्ट्र के धानु तथा मुरूड जंजीरा और गुजरात के वेरावल में 3 तटरक्षक केन्द्र स्थापित करने के लिये 3 अरब 42 करोड़ 56 लाख रूपये की सहायता दी जा रही हे । योजना के अंतर्गत जमीन और नौकाओं की लागत के तौर पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अब तक 61 करोड़ 11 लाख रूपये जारी किये जा चुके हैं ।
निर्णयों का क्रियान्वयन
समुद्री और तटवर्ती सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए अग्र लिखित निर्णयों पर क्रियान्वयन हो चुका है –तटवर्ती क्षेत्रों में गश्त और निगरानी में विस्तार, तटवर्ती और तट से दूर सुरक्षा सहित समग्र समुद्री सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना को उत्तरदायित्व सौंपना, तटवर्ती पुलिस की गश्त वाले क्षेत्रों सहित भूभागीय जल क्षेत्र की सुरक्षा के लिये , तटरक्षक बल को अधिकृत करना, महानिदेशक (डीजी), तटरक्षक बल को कमांडर मनोनीत करना, तटवर्ती सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों में केन्द्रीय और राज्यों की एजेंसियों के बीच समन्वयन का पूरा उत्तरदायित्व सौंपना, तटवर्ती कमांड को सौंपना, मुंबई , विशाखापटनम कोच्चि और पोर्ट ब्लेयर में चार संयुक्त कार्रवाई केन्द्रों की स्थापना और तटरक्षक बल द्वारा सभी तटवर्ती राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में मानक प्रचालन प्रक्रियाओं को अंतिम रूप देना और उनको जारी करना ।
सुरक्षा योजना (द्वितीय चरण ) अंतिम रूप से तैयार
तटवर्ती राज्यों /केन्द्र शासित प्रदेशों ने तटरक्षक बल के परामर्श से खामियों और खतरों के आधार पर तैयार तटवर्ती सुरक्षा योजना (द्वितीय चरण) के प्रस्ताव को सरकार ने 1 अप्रैल, 2011 से पांच वर्ष को मंजूरी दे दी है । आशा है इस योजना से तटवर्ती राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को तटीय सुरक्षा व्यवस्था को उन्नत बनाया जा सकेगा । इस योजना पर परिव्यय के लिये जो वित्तीय व्यवस्था की गई है, उसमें से 11 अरब 54 करोड़ 91 लाख 20 हजार रूपये गैर-आवर्ती व्यय के लिये और 4 अरब 25 करोड़ रूपये आवर्ती व्यय के लिए रखे गए हैं । प्रस्ताव की प्रमुख विशेषताओं में से 180 नौकाओं, 60 जेट्टी , 35 हवा से फूलने वाली मजबूत नौकाओं (लक्षदीप के लिये 12 और 23 अंडमान निकोबार के लिए),10 बड़ी नौकायें (केवल अंडमान निकोबार के लिए), 131 चार पहिया वाहन वाहन और 242 मोटर साइकिलों की व्यवस्था के साथ 131 तटीय पुलिस थानों की स्थापना शामिल है । निगरानी उपकरण, अंधेरी रात में देखने के लिए उपकरण( नाइट विजन उपकरण), कम्प्यूटर और फर्नीचर तथा पीओएल पेट्रोल और लुक्रीकेन्टस 180 नौकाओं की आपूर्ति के बाद एक वर्ष के लिए) प्रति पुलिस थानों के हिसाब से 15 लाख रूपये का प्रावधान किया गया है। नौकाओं के संधारण के लिए वार्षिक संविदा और समुद्री पुलिस कर्मियों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की गई है ।
नई तटीय सुरक्षा योजना (द्वितीय चरण ) में 60 जेट्टियों के साथ-साथ मौजूदा जेट्टियों के उन्नयन का विशेष प्रावधान किया गया है ।
बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए रेशम कीट पालन
रेशम कीट पालन, एक कृषि आधारित कुटीर उद्योग है, जिसमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास की सर्वाधिक संभावनाएं हैं। रेशम उद्योग इक्विटी वितरण में अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि रेशम मुख्य रूप से शहरी अमीरों द्वारा खरीदा जाता है तथा रेशम के वस्त्र का अनुमानतः 61 प्रतिशत अंतिम मूल्य वापस किसानों और बुनकरों तक पहुंच जाता है। पोषक पौधे की खेती और रेशम के कीड़ों के पालन से लेकर वस्त्र और परिधानों की तैयारी से जुड़ी रेशम कीट पालन से सम्बद्ध विभिन्न गतिविधियों में लगे कामगारों में करीब 60 फीसदी महिलाएं हैं। रेशम उद्योग, पर्यावरण के अनुकूल, सतत और गहन श्रम वाली आर्थिक गतिविधि है।
रेशम उत्पादन
पिछले तीन दशकों से, भारत का रेशम उत्पादन धीरे-धीरे बढ़कर जापान और पूर्व सोवियत संघ देशों से ज्यादा हो गया है, जो कभी प्रमुख रेशम उत्पादक हुआ करते थे। भारत इस समय विश्व में चीन के बाद कच्चे सिल्क का दूसरा प्रमुख उत्पादक है। वर्ष 2009-10 में इसका 19,690 टन उत्पादन हुआ था, जो वैश्विक उत्पादन का 15.5 फीसदी है। भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के साथ-साथ पांच किस्मों के रेशम-मलबरी, टसर, ओक टसर, एरि और मुगा सिल्क का उत्पादन करने वाला अकेला देश है और यह चीन से बड़ी मात्रा में मलबरी कच्चे सिल्क और रेशमी वस्त्रों का आयात करता है। भारत के रेशम उत्पादन में वर्ष 2009-10 में पिछले वर्ष की तुलना में 7.2 फीसदी वृद्धि हुई। टसर, एरि और मुगा जैसे वन्य सिल्क के उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2009-10 में 22 फीसदी वृद्धि हुई। रेशम की इन किस्मों का उत्पादन मध्य और पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय लोग करते हैं। वन्य सिल्क को ‘‘पर्यावरण के अनुकूल हरित रेशम’’ के रूप में बढ़ावा देने और वैश्विक बाजार में विशेष बाजार तैयार किए जाने की व्यापक सम्भावना है।
केंद्रीय रेशम बोर्ड
मुक्त बाजार व्यवस्था में बाजार के अवसरों को ध्यान में रखते हुए वस्त्र मंत्रालय भारतीय रेशम कीट पालन उद्योग और रेशम उद्योग के सम्पूर्ण विकास के लिए सिर्फ उत्पादन बढ़ाने पर ही गौर नहीं कर रहा है, बल्कि गुणवत्तापूर्ण उत्पाद विविधता और उत्पादकता सुधारों के जरिए किफायती मूल्यों पर भी ध्यान दे रहा है। केंद्रीय रेशम बोर्ड निरंतर आवश्यकता पर आधारित किफायती प्रौद्योगिकियां विकसित कर रहा है और आज उसी के प्रयासों की बदौलत, भारत ऊष्ण कटिबंधीय रेशम कीट पालन प्रौद्योगिकी का अगुवा बन गया है। इस प्रौद्योगिकी के साथ बोर्ड ने विशेषतौर पर मलबरी किस्मों का क्षेत्र विकसित किया है और अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता वाले रेशम के बिवोल्टाइन ककून के उत्पादन के लिए उपयुक्त रेशम कीटों की प्रजातियां विकसित की हैं तथा स्वतंत्र रेशम कीट पालन गृहों, आधुनिक कीट पालन और ककून उपकरणों, बूंद-बूंद सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) किट्स, निजी भंडारणकर्ताओं को ढांचागत सहायता तथा वन्य सिल्क के पोषक पौधों के संवर्द्धन जैसी जरूरी अवसंरचना को उन्नत बनाने के लिए उत्प्रेरक विकास कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया है।
बुनकर प्रौद्योगिकी
साथ ही इन ककूनों की कताई के लिए केंद्रीय रेशम बोर्ड आधुनिक प्रौद्योगिकी पैकेज की ओर से विविध कार्यों में सक्षम कताई मशीनों से बेहतर कताई पद्धतियों को बढ़ावा दे रहा है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे परम्परागत रूप से रेशम का उत्पादन करने वाले राज्यों में लगाने के लिए चीन से ऑटोमैटिक सिल्क रीलिंग मशीनें आयात की गई हैं, जिनसे बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय श्रेणी की गुणवत्ता वाले आयात स्थानापन्न रेशम का उत्पादन होगा। गुणवत्ता के अनुरूप मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता वाले बिवोल्टाइन ककून की उपलब्धता बढ़ने से नए उद्यमियों के अलावा परम्परागत बुनकर भी अपनी परम्परागत मशीनों का उन्नयन करने में कारोबार की बेहतर सम्भावनाएं देख रहे हैं और बेहतर श्रेणी के उत्कृष्ट मलबरी रेशम का उत्पादन करने में सक्षम हो सके हैं।
वन्य सिल्क का विकास
वन्य सिल्क का विकास एक अन्य ऐसा क्षेत्र है, जिस पर बोर्ड ध्यान दे रहा है। नए मशीनीकृत टसर और मुगा कताई और ट्विस्टिंग मशीनें तथा एरि के लिए चरखा (स्पिनिंग व्हील) बनाने में शोध संस्थानों को मिली कामयाबी ने हाथ से काम की मेहनत कम करने के साथ ही गैर-मलबरी कपड़े की गुणवत्ता में बेहद सुधार किया है। उच्च श्रेणी का स्पन सिल्क बनाने के लिए एरि स्पन सिल्क मिल्स लगाई गई हैं। इससे वन्य सिल्क क्षेत्र में उत्पाद विविधता में सहयोग मिला है, जो देश में विशेषकर जनजातीय इलाकों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। पहले से विकसित हो चुकी प्रौद्योगिकीय क्षमताओं के मद्देनजर बहुत से गैर-परम्परागत राज्य गुणवत्तापूर्ण रेशम ककून और धागे के उत्पादन में सहयोग के लिए आगे आए हैं। केंद्रीय रेशम बोर्ड ने प्राकृतिक रेस खेती पर लारिया टसर प्रजाति के रेशम कीट पालन का व्यवहारिक परीक्षण किया है और इसके नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। यह परीक्षण 2012 में समाप्त होने वाली 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान होने वाले 3,987 टन टसर सिल्क उत्पादन को मार्च 2017 में समाप्त होने वाली 12वीं पंचवर्षीय योजना में बढ़ाकर 8000 टन तक ले जाने की व्यापक सम्भावना दर्शाता है।
नीतिगत हस्तक्षेप
नीतिगत हस्तक्षेप की दिशा में उठाए गए कुछ कदमों से केंद्रीय रेशम बोर्ड अधिनियम में संशोधन हुआ है। अन्य चीजों के अलावा ये सुधार रेशमकीट के लार्वा के लिए गुणवत्तापूर्ण मानक, रेशम कीट लार्वा का प्रमाणीकरण, इनके आयात और निर्यात के लिए गुणवत्ता मानक मुहैया कराता है। केंद्रीय रेशम कीट लार्वा विनियम हाल ही इस उद्देश्य के लिए अधिसूचित किए गए हैं, चीन से आयातित रेशमी वस्त्र और धागे पर डम्पिंग रोधी शुल्क लगाया गया है, जिससे घरेलू रेशम उद्योग में रेशमी धागे और कपड़े के दामों में स्थिरता लाने में मदद मिली है। राष्ट्रीय तंतु नीति तैयार की गई है, जिसमें गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने के लिए शोध एवं विकास सशक्त बनाने पर जोर दिया गया है, रेशमकीट उद्योग हाल ही में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल किया गया है, ताकि अब तक खेती-बाड़ी करने वाले किसान लाभान्वित कर रही योजना के लाभ रेशम कीट उद्योग से जुड़े किसानों तक भी पहुंचाये जाए। छोटे बुनकरों की मदद के लिए उच्च श्रेणी का 2500 टन रेशम राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम के माध्यम से चीन से आयात किया जा रहा है और उसे किफायती दामों पर वितरित किया जाएगा।
आज, भारतीय रेशम गुणवत्ता और उत्पादकता के क्षेत्र में लम्बी छलांग भरने और अल्पावधि में ही राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय रेशम उपभोक्ताओं की विविध प्रकार की जरूरतें पूरी करने के लिए तैयार है। इससे जेनरिक प्रोत्साहन प्रयासों की बदौलत ‘‘इंडिया सिल्क’’ का ब्रांड तैयार करने में मदद मिलेगी।
रेशम उत्पादन
पिछले तीन दशकों से, भारत का रेशम उत्पादन धीरे-धीरे बढ़कर जापान और पूर्व सोवियत संघ देशों से ज्यादा हो गया है, जो कभी प्रमुख रेशम उत्पादक हुआ करते थे। भारत इस समय विश्व में चीन के बाद कच्चे सिल्क का दूसरा प्रमुख उत्पादक है। वर्ष 2009-10 में इसका 19,690 टन उत्पादन हुआ था, जो वैश्विक उत्पादन का 15.5 फीसदी है। भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता होने के साथ-साथ पांच किस्मों के रेशम-मलबरी, टसर, ओक टसर, एरि और मुगा सिल्क का उत्पादन करने वाला अकेला देश है और यह चीन से बड़ी मात्रा में मलबरी कच्चे सिल्क और रेशमी वस्त्रों का आयात करता है। भारत के रेशम उत्पादन में वर्ष 2009-10 में पिछले वर्ष की तुलना में 7.2 फीसदी वृद्धि हुई। टसर, एरि और मुगा जैसे वन्य सिल्क के उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2009-10 में 22 फीसदी वृद्धि हुई। रेशम की इन किस्मों का उत्पादन मध्य और पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय लोग करते हैं। वन्य सिल्क को ‘‘पर्यावरण के अनुकूल हरित रेशम’’ के रूप में बढ़ावा देने और वैश्विक बाजार में विशेष बाजार तैयार किए जाने की व्यापक सम्भावना है।
केंद्रीय रेशम बोर्ड
मुक्त बाजार व्यवस्था में बाजार के अवसरों को ध्यान में रखते हुए वस्त्र मंत्रालय भारतीय रेशम कीट पालन उद्योग और रेशम उद्योग के सम्पूर्ण विकास के लिए सिर्फ उत्पादन बढ़ाने पर ही गौर नहीं कर रहा है, बल्कि गुणवत्तापूर्ण उत्पाद विविधता और उत्पादकता सुधारों के जरिए किफायती मूल्यों पर भी ध्यान दे रहा है। केंद्रीय रेशम बोर्ड निरंतर आवश्यकता पर आधारित किफायती प्रौद्योगिकियां विकसित कर रहा है और आज उसी के प्रयासों की बदौलत, भारत ऊष्ण कटिबंधीय रेशम कीट पालन प्रौद्योगिकी का अगुवा बन गया है। इस प्रौद्योगिकी के साथ बोर्ड ने विशेषतौर पर मलबरी किस्मों का क्षेत्र विकसित किया है और अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता वाले रेशम के बिवोल्टाइन ककून के उत्पादन के लिए उपयुक्त रेशम कीटों की प्रजातियां विकसित की हैं तथा स्वतंत्र रेशम कीट पालन गृहों, आधुनिक कीट पालन और ककून उपकरणों, बूंद-बूंद सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) किट्स, निजी भंडारणकर्ताओं को ढांचागत सहायता तथा वन्य सिल्क के पोषक पौधों के संवर्द्धन जैसी जरूरी अवसंरचना को उन्नत बनाने के लिए उत्प्रेरक विकास कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया है।
बुनकर प्रौद्योगिकी
साथ ही इन ककूनों की कताई के लिए केंद्रीय रेशम बोर्ड आधुनिक प्रौद्योगिकी पैकेज की ओर से विविध कार्यों में सक्षम कताई मशीनों से बेहतर कताई पद्धतियों को बढ़ावा दे रहा है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे परम्परागत रूप से रेशम का उत्पादन करने वाले राज्यों में लगाने के लिए चीन से ऑटोमैटिक सिल्क रीलिंग मशीनें आयात की गई हैं, जिनसे बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय श्रेणी की गुणवत्ता वाले आयात स्थानापन्न रेशम का उत्पादन होगा। गुणवत्ता के अनुरूप मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता वाले बिवोल्टाइन ककून की उपलब्धता बढ़ने से नए उद्यमियों के अलावा परम्परागत बुनकर भी अपनी परम्परागत मशीनों का उन्नयन करने में कारोबार की बेहतर सम्भावनाएं देख रहे हैं और बेहतर श्रेणी के उत्कृष्ट मलबरी रेशम का उत्पादन करने में सक्षम हो सके हैं।
वन्य सिल्क का विकास
वन्य सिल्क का विकास एक अन्य ऐसा क्षेत्र है, जिस पर बोर्ड ध्यान दे रहा है। नए मशीनीकृत टसर और मुगा कताई और ट्विस्टिंग मशीनें तथा एरि के लिए चरखा (स्पिनिंग व्हील) बनाने में शोध संस्थानों को मिली कामयाबी ने हाथ से काम की मेहनत कम करने के साथ ही गैर-मलबरी कपड़े की गुणवत्ता में बेहद सुधार किया है। उच्च श्रेणी का स्पन सिल्क बनाने के लिए एरि स्पन सिल्क मिल्स लगाई गई हैं। इससे वन्य सिल्क क्षेत्र में उत्पाद विविधता में सहयोग मिला है, जो देश में विशेषकर जनजातीय इलाकों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। पहले से विकसित हो चुकी प्रौद्योगिकीय क्षमताओं के मद्देनजर बहुत से गैर-परम्परागत राज्य गुणवत्तापूर्ण रेशम ककून और धागे के उत्पादन में सहयोग के लिए आगे आए हैं। केंद्रीय रेशम बोर्ड ने प्राकृतिक रेस खेती पर लारिया टसर प्रजाति के रेशम कीट पालन का व्यवहारिक परीक्षण किया है और इसके नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। यह परीक्षण 2012 में समाप्त होने वाली 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान होने वाले 3,987 टन टसर सिल्क उत्पादन को मार्च 2017 में समाप्त होने वाली 12वीं पंचवर्षीय योजना में बढ़ाकर 8000 टन तक ले जाने की व्यापक सम्भावना दर्शाता है।
नीतिगत हस्तक्षेप
नीतिगत हस्तक्षेप की दिशा में उठाए गए कुछ कदमों से केंद्रीय रेशम बोर्ड अधिनियम में संशोधन हुआ है। अन्य चीजों के अलावा ये सुधार रेशमकीट के लार्वा के लिए गुणवत्तापूर्ण मानक, रेशम कीट लार्वा का प्रमाणीकरण, इनके आयात और निर्यात के लिए गुणवत्ता मानक मुहैया कराता है। केंद्रीय रेशम कीट लार्वा विनियम हाल ही इस उद्देश्य के लिए अधिसूचित किए गए हैं, चीन से आयातित रेशमी वस्त्र और धागे पर डम्पिंग रोधी शुल्क लगाया गया है, जिससे घरेलू रेशम उद्योग में रेशमी धागे और कपड़े के दामों में स्थिरता लाने में मदद मिली है। राष्ट्रीय तंतु नीति तैयार की गई है, जिसमें गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने के लिए शोध एवं विकास सशक्त बनाने पर जोर दिया गया है, रेशमकीट उद्योग हाल ही में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल किया गया है, ताकि अब तक खेती-बाड़ी करने वाले किसान लाभान्वित कर रही योजना के लाभ रेशम कीट उद्योग से जुड़े किसानों तक भी पहुंचाये जाए। छोटे बुनकरों की मदद के लिए उच्च श्रेणी का 2500 टन रेशम राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम के माध्यम से चीन से आयात किया जा रहा है और उसे किफायती दामों पर वितरित किया जाएगा।
आज, भारतीय रेशम गुणवत्ता और उत्पादकता के क्षेत्र में लम्बी छलांग भरने और अल्पावधि में ही राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय रेशम उपभोक्ताओं की विविध प्रकार की जरूरतें पूरी करने के लिए तैयार है। इससे जेनरिक प्रोत्साहन प्रयासों की बदौलत ‘‘इंडिया सिल्क’’ का ब्रांड तैयार करने में मदद मिलेगी।
रविवार, 20 फ़रवरी 2011
संसद के बजट सत्र का प्रारंभ 21 फरवरी, 2011 से
संसद का बजट सत्र 21 फरवरी, 2011 से प्रारंभ होगा और सरकारी कार्य को ध्यान में रखते हुए यह 21 अप्रैल, 2011 तक चलेगा। इस दौरान सदन की 29 बैठकें, जिसमें 17 बैठकें सदन सत्र के प्रथम भाग में मध्यावकाश से पहले और 12 बैठकें सत्र के द्वितीय भाग में होंगी। इस सत्र में मुख्यत: राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और वर्ष 2011-12 के लिए रेल एंव सामान्य आम बजट मुख्य रहेंगे। तथापि, महत्वपूर्ण विधायकी और गैर-विधायकी कार्य संपादन के लिए भी पर्याप्त समय का प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रपति 21 फरवरी को प्रात: 11 बजे संसद के दोनों सदनों को संबोधित करेंगे। रेल बजट लोकसभा में 25 फरवरी को प्रस्तुत किया जाएगा। आर्थिक सर्वेक्षण 25 फरवरी को और वर्ष 2011-2012 के लिए आम बजट 28 फरवरी को प्रात: 11 बजे प्रस्तुत किया जाएगा।
बजट सत्र के दौरान प्रस्तुत होने वाले प्रमुख विधेयकों की सूची निम्नानुसार है।
1. परिचय के लिए विधेयक
1. कृषि जैव सुरक्षा विधेयक, 2011
2. भारतीय जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण विधेयक, 2011
3. जैव प्रौद्योगिकी के लिए क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना विधेयक, 2011
4. उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2011.
5. भारतीय मानक ब्यूरो (संशोधन) विधेयक, 2011
6. वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2011.
7. मादक औषधि और साइकोट्रॉपिक पदार्थ (संशोधन) विधेयक, 2011.
8. बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2011.
9. वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण एवं सुरक्षा हित प्रवर्तन (संशोधन) विधेयक, 2011
10. बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के कारण ऋण की वसूली (संशोधन) विधेयक, 2011
11. लेनदारी लेखा क्रय भार और प्राप्तियां विधेयक, 2011
12. संविधान (संशोधन विधेयक, 2011- (व्यवासायिक एवं सेवा कर)
13. मानव संसाधन के लिए राष्ट्रीय आयोग स्वास्थ्य विधेयक, 2011
14. राष्ट्रीय शैक्षिक डिपॉजिटरी (संशोधन) विधेयक, 2011.
15. राष्ट्रीय उच्च शिक्षा और अनुसंधान परिषद विधेयक, 2011
16. विश्वविद्यालयों. के लिए नवीनता विधेयक, 2011
17. सिनेमेटोग्राफ विधेयक, 2011.
18. प्रेस और पुस्तक तथा प्रकाशन पंजीकरण विधेयक, 2011
19. खान (संशोधन) विधेयक, 2011.
20. प्रशासकीय जनरल (संशोधन) विधेयक, 2011.
21. खान और खनिज (विकास और नियमन) विधेयक, 2011
22. उत्प्रवास प्रबंधन विधेयक, 2011.
23. संविधान (संशोधन) विधेयक, 2011 (एसपीएससी के अध्यक्ष एवं सदस्यों की आयु वृद्धि के लिए)
24. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2011
25. नेशनल (बराक नदी का लखीमपुर भंगा भाग) जलमार्ग विधेयक, 2011
26. संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2011.
27. सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत रूप से रहने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2011
28. यौन अपराध से बाल संरक्षण विधेयक, 2011.
29. महिलाओं का अश्लील निरूपण (निषेध) संशोधन विधेयक, 2011
30. भूमि अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक, 2011.
31. पुनर्वास और पुनः बंदोबस्त विधेयक, 2011.
32. समान अवसर आयोग विधेयक, 2011.
2. - विचारार्थ और स्वीकृति के लिए विधेयक
1 बीज विधेयक, 2004.
2 संविधान (एक सौ ग्यारहवां संशोधन) विधेयक, 2009.
3. कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2008.
4. कम्पनी (संशोधन) विधेयक, 2009.
5. चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (संशोधन) विधेयक, 2010.
6. लागत और वर्क्स (संशोधन) विधेयक, 2010 लेखाकार.
7. कंपनी सेक्रेटरी (संशोधन) विधेयक, 2010.
8. विरासत स्थलों के लिए राष्ट्रीय आयोग विधेयक, 2009
9. भारतीय स्टेट बैंक (सहायक बैंक) संशोधन विधेयक, 2010
10. सिक्का निर्माण विधेयक, 2009.
11. जवाहर लाल स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा अनुसंधान संस्थान पांडिचेरी (संशोधन) विधेयक, 2010
12. मानव अंगों का प्रत्यारोपण (संशोधन) विधेयक 2009.
13. साम्प्रदायिक हिंसा (रोकथाम, नियंत्रण और पीड़ितों का पुनर्वास) विधेयक, 2005.
14. कैदियों का प्रत्यावर्तन (संशोधन) विधेयक, 2010.
15. लोक सभा द्वारा पारित रूप में यंत्रणा निरोधक विधेयक, 2010
16. लोक सभा द्वारा पारित रूप में उड़ीसा (बदलाव का नाम) विधेयक, 2010
17. लोक सभा द्वारा पारित रूप में संविधान (एक सौ तेरहवें संशोधन) विधेयक, 2010
18. लोक सभा द्वारा पारित रूप में शैक्षिक न्यायाधिकरण विधेयक, 2010
19. प्रौद्योगिकी संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2010
20. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2010
21. कॉपीराइट (संशोधन) विधेयक, 2010
22. प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) संशोधन विधेयक, 2010
23. संविधान (एक सौ चौदहवां संशोधन) विधेयक, 2010.
24. (राज्य सभा द्वारा पारित) संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक, 2010
25. उच्च न्यायालय का व्यवासायिक विभाग विधेयक, 2009
26. राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन बोर्ड विधेयक, 2010
27. अपहरण विरोधी (संशोधन) विधेयक, 2010.
28. बच्चों की नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2010
29. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षण परिषद (संशोधन) विधेयक, 2010
30. वैज्ञानिक अभिनव रिसर्च अकादमी विधेयक, 2010
31. संविधान (एक सौ दसवां संशोधन) विधेयक, 2009
3. परिचय विचारार्थ और स्वीकृति के लिए विधेयक
1. वित्त विधेयक, 2011.
2. श्रम कानून (कुछ प्रतिष्ठानों द्वारा रिटर्न दाखिल करने और रजिस्टर बनाने में छूट) संशोधन और विविध प्रावधान विधेयक, 2011.
3. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) विधेयक, 2011
4. वित्तीय व्यापार
1. 25/2/2011 को प्रश्न काल के तुरंत बाद रेल बजट की प्रस्तुति
2. 28/2/2011 को आम बजट की प्रस्तुति
3. बजट (रेलवे) पर 2011-12 के लिए सामान्य चर्चा
4. चर्चा और मतदान
(क) 2011-12 के लिए अग्रिम (रेल) अनुदानों की मांग
(ख) 2010-11 के लिए (रेल), पूरक अनुदान मांग
(ग) 2011-12 के लिए (रेल) अनुदान मांग
5 बजट (सामान्य) पर 2011-12 के लिए सामान्य चर्चा
6. चर्चा और मतदान पर:
(क) 2011-12 के लिए खाता (सामान्य) पर अनुदानों की मांग,
(ख) और 2010-11 के लिए अनुदान (सामान्य) के लिए पूरक मांग
(ग) 2011-12 के लिए अनुदान (सामान्य) के लिए मांग.
5- अन्य व्यवसाय
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा
राष्ट्रपति 21 फरवरी को प्रात: 11 बजे संसद के दोनों सदनों को संबोधित करेंगे। रेल बजट लोकसभा में 25 फरवरी को प्रस्तुत किया जाएगा। आर्थिक सर्वेक्षण 25 फरवरी को और वर्ष 2011-2012 के लिए आम बजट 28 फरवरी को प्रात: 11 बजे प्रस्तुत किया जाएगा।
बजट सत्र के दौरान प्रस्तुत होने वाले प्रमुख विधेयकों की सूची निम्नानुसार है।
1. परिचय के लिए विधेयक
1. कृषि जैव सुरक्षा विधेयक, 2011
2. भारतीय जैव प्रौद्योगिकी नियामक प्राधिकरण विधेयक, 2011
3. जैव प्रौद्योगिकी के लिए क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना विधेयक, 2011
4. उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2011.
5. भारतीय मानक ब्यूरो (संशोधन) विधेयक, 2011
6. वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2011.
7. मादक औषधि और साइकोट्रॉपिक पदार्थ (संशोधन) विधेयक, 2011.
8. बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2011.
9. वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण एवं सुरक्षा हित प्रवर्तन (संशोधन) विधेयक, 2011
10. बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के कारण ऋण की वसूली (संशोधन) विधेयक, 2011
11. लेनदारी लेखा क्रय भार और प्राप्तियां विधेयक, 2011
12. संविधान (संशोधन विधेयक, 2011- (व्यवासायिक एवं सेवा कर)
13. मानव संसाधन के लिए राष्ट्रीय आयोग स्वास्थ्य विधेयक, 2011
14. राष्ट्रीय शैक्षिक डिपॉजिटरी (संशोधन) विधेयक, 2011.
15. राष्ट्रीय उच्च शिक्षा और अनुसंधान परिषद विधेयक, 2011
16. विश्वविद्यालयों. के लिए नवीनता विधेयक, 2011
17. सिनेमेटोग्राफ विधेयक, 2011.
18. प्रेस और पुस्तक तथा प्रकाशन पंजीकरण विधेयक, 2011
19. खान (संशोधन) विधेयक, 2011.
20. प्रशासकीय जनरल (संशोधन) विधेयक, 2011.
21. खान और खनिज (विकास और नियमन) विधेयक, 2011
22. उत्प्रवास प्रबंधन विधेयक, 2011.
23. संविधान (संशोधन) विधेयक, 2011 (एसपीएससी के अध्यक्ष एवं सदस्यों की आयु वृद्धि के लिए)
24. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2011
25. नेशनल (बराक नदी का लखीमपुर भंगा भाग) जलमार्ग विधेयक, 2011
26. संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2011.
27. सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत रूप से रहने वालों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2011
28. यौन अपराध से बाल संरक्षण विधेयक, 2011.
29. महिलाओं का अश्लील निरूपण (निषेध) संशोधन विधेयक, 2011
30. भूमि अधिग्रहण (संशोधन) विधेयक, 2011.
31. पुनर्वास और पुनः बंदोबस्त विधेयक, 2011.
32. समान अवसर आयोग विधेयक, 2011.
2. - विचारार्थ और स्वीकृति के लिए विधेयक
1 बीज विधेयक, 2004.
2 संविधान (एक सौ ग्यारहवां संशोधन) विधेयक, 2009.
3. कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2008.
4. कम्पनी (संशोधन) विधेयक, 2009.
5. चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (संशोधन) विधेयक, 2010.
6. लागत और वर्क्स (संशोधन) विधेयक, 2010 लेखाकार.
7. कंपनी सेक्रेटरी (संशोधन) विधेयक, 2010.
8. विरासत स्थलों के लिए राष्ट्रीय आयोग विधेयक, 2009
9. भारतीय स्टेट बैंक (सहायक बैंक) संशोधन विधेयक, 2010
10. सिक्का निर्माण विधेयक, 2009.
11. जवाहर लाल स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा अनुसंधान संस्थान पांडिचेरी (संशोधन) विधेयक, 2010
12. मानव अंगों का प्रत्यारोपण (संशोधन) विधेयक 2009.
13. साम्प्रदायिक हिंसा (रोकथाम, नियंत्रण और पीड़ितों का पुनर्वास) विधेयक, 2005.
14. कैदियों का प्रत्यावर्तन (संशोधन) विधेयक, 2010.
15. लोक सभा द्वारा पारित रूप में यंत्रणा निरोधक विधेयक, 2010
16. लोक सभा द्वारा पारित रूप में उड़ीसा (बदलाव का नाम) विधेयक, 2010
17. लोक सभा द्वारा पारित रूप में संविधान (एक सौ तेरहवें संशोधन) विधेयक, 2010
18. लोक सभा द्वारा पारित रूप में शैक्षिक न्यायाधिकरण विधेयक, 2010
19. प्रौद्योगिकी संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2010
20. राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2010
21. कॉपीराइट (संशोधन) विधेयक, 2010
22. प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) संशोधन विधेयक, 2010
23. संविधान (एक सौ चौदहवां संशोधन) विधेयक, 2010.
24. (राज्य सभा द्वारा पारित) संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक, 2010
25. उच्च न्यायालय का व्यवासायिक विभाग विधेयक, 2009
26. राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन बोर्ड विधेयक, 2010
27. अपहरण विरोधी (संशोधन) विधेयक, 2010.
28. बच्चों की नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2010
29. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षण परिषद (संशोधन) विधेयक, 2010
30. वैज्ञानिक अभिनव रिसर्च अकादमी विधेयक, 2010
31. संविधान (एक सौ दसवां संशोधन) विधेयक, 2009
3. परिचय विचारार्थ और स्वीकृति के लिए विधेयक
1. वित्त विधेयक, 2011.
2. श्रम कानून (कुछ प्रतिष्ठानों द्वारा रिटर्न दाखिल करने और रजिस्टर बनाने में छूट) संशोधन और विविध प्रावधान विधेयक, 2011.
3. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) विधेयक, 2011
4. वित्तीय व्यापार
1. 25/2/2011 को प्रश्न काल के तुरंत बाद रेल बजट की प्रस्तुति
2. 28/2/2011 को आम बजट की प्रस्तुति
3. बजट (रेलवे) पर 2011-12 के लिए सामान्य चर्चा
4. चर्चा और मतदान
(क) 2011-12 के लिए अग्रिम (रेल) अनुदानों की मांग
(ख) 2010-11 के लिए (रेल), पूरक अनुदान मांग
(ग) 2011-12 के लिए (रेल) अनुदान मांग
5 बजट (सामान्य) पर 2011-12 के लिए सामान्य चर्चा
6. चर्चा और मतदान पर:
(क) 2011-12 के लिए खाता (सामान्य) पर अनुदानों की मांग,
(ख) और 2010-11 के लिए अनुदान (सामान्य) के लिए पूरक मांग
(ग) 2011-12 के लिए अनुदान (सामान्य) के लिए मांग.
5- अन्य व्यवसाय
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा
रविवार, 23 जनवरी 2011
कानकुन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के निहितार्थ
मेक्सिको के कानकुन शहर में दो सप्ताह तक चले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में तीखे मतभेदों के बावजूद अंतत: एक सर्वमान्य समझौता हो ही गया। संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में हाल ही में सम्पन्न हुए इस समझौते का लाभ भारत जैसे विकासशील देशों को किस प्रकार और किस सीमा तक मिल सकता है, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। कानकुन सम्मेलन के दौरान वास्तव में विकासशील देशों की घेराबंदी करने की ही कोशिश हुई है। यह ठीक है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर इस समझौते को आगे की दिशा में एक सार्थक और सकारात्मक कदम कहा जा सकता है। कोपेनहेगन के अनुभव के कारण यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि कानकुन में भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा, लेकिन संतोष की बात है कि सम्मेलन की समाप्ति एक आम सहमति के साथ हुई।
इस सम्मेलन में दो ऐसे निर्णय हुए जिन्हें कानकुन की उपलब्धि कहा जा सकता है। जब भी कार्बन गैसों के उत्सर्जन में कटौती का मुद्दा उठा, विकासशील देशों की यह मांग रही कि इसके लिए उन्हें वित्तीय सहायता दी जाये। साथ ही उनकी मांग रही है कि विकसित देश उन्हें स्वच्छ तकनीक मुहैया कराएं। कानकुन में विकसित देश इस बात के लिए राजी हो गये हैं। उन्होंने विकासशील देशों की सहायता के लिए एक खरब डॉलर का कोष बनाने की रजामंदी दे दी है। यह कोष कब तक बनाया जायेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। वे हरित अर्थात स्वच्छ तकनीक उपलब्ध कराने के लिए भी सहमत हुए हैं। परंतु इसके साथ सबसे बड़ा पेच यह है कि इसे बौद्धिक संपदा अधिकार के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है। यानी इस तकनीक को हासिल करने के लिए विकासशील देशों को भारी भरकम शुल्क चुकाना होगा। इसके साथ ही, निर्धन देशों में वन संपदा की अंधाधुंध कटाई को रोकने के उपायों को भी समझौते में शामिल किया गया है। एक विशेष समिति जलवायु संरक्षण योजना के क्रियान्वयन में लगे देशों की सहायता करेगी। यह समिति उत्सर्जन में आई कमी का हिसाब किताब भी रखेगी। वहीं विकासशील देशों की यह शर्त भी मान ली गई है कि उत्सर्जन कटौती की अंतररष्ट्रीय निगरानी तभी संभव हो पायेगी जब कटौती के एवज में विकसित देश अधिक सहायता मुहैया करायेंगे। इससे पहले भारत और चीन समेत कई देश इसका विरोध करते आ रहे थे और इस शर्त को संदेह की दृष्टि से देखते थे। इस समझौते को लेकर एक अहम प्रश्न यह उठाया जा रहा है कि कानकुन सम्मेलन के समझौते का क्रियान्वयन क्या अंतरराष्ट्रीय रूप से बाध्य होगा?
सम्मेलन में सबसे विवादास्पद मुद्दा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने का ही था। प्रारंभ से ही स्पष्ट था कि इस पर आम राय नहीं बन सकती। एक ओर जहां जापान और रूस जैसे देश क्योटो संधि से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों को बाध्यकारी समझौता मंजूर नहीं था। केवल द्वीपीय देश ही इस प्रयास में लगे थे कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती का ऐसा कोई फार्मूला तैयार किया जाये जिसको मानना सभी के लिए जरूरी हो। धरती के तापमान में वृद्धि से सबसे अधिक खतरा भी इन्हीं देशों को है। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से इनके अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है। द्वीपीय देशों की नाराजगी मोल लेने की हद तक जाना कोई बुद्धिमानी नहीं होगी, यही सोचकर बेसिक समूह (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत एवं चीन) के दो सदस्य ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका लचीला रूख दिखा रहे थे, लिहाजा भारत ने भी यह बात मान ली और समानता के आधार पर फार्मूला तय किये जाने की अपनी मांग छोड़ दी। इस तरह विकसित और विकासशील देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में एक निश्चित अवधि के भीतर कटौती की जरूरत मान ली है। इसीलिए कानकुन सम्मेलन को कोपेनहेगन सम्मेलन से बेहतर नतीजा देने वाला सम्मेलन माना जाता है।
कानकुन सम्मेलन में भारत की भूमिका काफी रचनात्मक रही। भारत के पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश ने सम्मेलन में जो भूमिका निभाई, उसकी सराहना जर्मनी जैसे उन्नत देश और मालदीव जैसे द्वीपीय देशों ने भी की है। जर्मनी की चांसलर सुश्री एंगेला मर्केल ने जहां श्री रमेश की रचनात्मक भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि उन जैसे लोगों के योगदान के कारण ही ‘कानकुन’ विफल नहीं हो सका, वहीं मालदीव के पर्यावरण मंत्री श्री मोहम्मद असलम ने कहा कि श्री रमेश ने विकसित और विकासशील देशों के बीच खाईं को पाटने में अहम भूमिका निभाई है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री श्री रमेश ने समझौते को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा है कि इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के आगे के रास्ते खुल गये हैं। उन्होंने कहा कि कानकुन में सभी हारे और सभी जीते। समझौते में ऐसी कई बातें हैं जिनके बारे में भारत समेत कई देशों को आपत्तियां भी हैं, फिर भी उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले वर्ष डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में होने वाले सम्मेलन तक अधिकांश मुद्दों को हल कर लिया जायेगा।
कानकुन सम्मेलन अपेक्षाओं पर भले ही खरा न उतरा हो, परंतु नाकाम होने से बच गया, तो इसका बहुत कुछ श्रेय मेजवान देश की विदेश मंत्री सुश्री पेट्रीशिया एस्पीनोसा को भी जाता है। हरित कोष और हरित तकनीक की मदद के विषय पर विकसित देशों को मनाने की उनकी कोशिशें अंतत: रंग लाईं और अमेरिका, जापान तथा रूस के शुरूआती नकारात्मक रूख के बावजूद कानकुन में सहमति का दायरा बढ़ सका। इसीलिए यह उम्मीद जगी है कि अगले वर्ष इसी महीने जब डरबन में जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होगा, तब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों का नकारात्मक रवैया समाप्त हो जायेगा। वास्तव में जलवायु परिवर्तन के खतरनाक परिणामों से बचने के लिए दोनों ओर से ईमानदार कोशिश की जरूरत है।
इस सम्मेलन में दो ऐसे निर्णय हुए जिन्हें कानकुन की उपलब्धि कहा जा सकता है। जब भी कार्बन गैसों के उत्सर्जन में कटौती का मुद्दा उठा, विकासशील देशों की यह मांग रही कि इसके लिए उन्हें वित्तीय सहायता दी जाये। साथ ही उनकी मांग रही है कि विकसित देश उन्हें स्वच्छ तकनीक मुहैया कराएं। कानकुन में विकसित देश इस बात के लिए राजी हो गये हैं। उन्होंने विकासशील देशों की सहायता के लिए एक खरब डॉलर का कोष बनाने की रजामंदी दे दी है। यह कोष कब तक बनाया जायेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। वे हरित अर्थात स्वच्छ तकनीक उपलब्ध कराने के लिए भी सहमत हुए हैं। परंतु इसके साथ सबसे बड़ा पेच यह है कि इसे बौद्धिक संपदा अधिकार के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है। यानी इस तकनीक को हासिल करने के लिए विकासशील देशों को भारी भरकम शुल्क चुकाना होगा। इसके साथ ही, निर्धन देशों में वन संपदा की अंधाधुंध कटाई को रोकने के उपायों को भी समझौते में शामिल किया गया है। एक विशेष समिति जलवायु संरक्षण योजना के क्रियान्वयन में लगे देशों की सहायता करेगी। यह समिति उत्सर्जन में आई कमी का हिसाब किताब भी रखेगी। वहीं विकासशील देशों की यह शर्त भी मान ली गई है कि उत्सर्जन कटौती की अंतररष्ट्रीय निगरानी तभी संभव हो पायेगी जब कटौती के एवज में विकसित देश अधिक सहायता मुहैया करायेंगे। इससे पहले भारत और चीन समेत कई देश इसका विरोध करते आ रहे थे और इस शर्त को संदेह की दृष्टि से देखते थे। इस समझौते को लेकर एक अहम प्रश्न यह उठाया जा रहा है कि कानकुन सम्मेलन के समझौते का क्रियान्वयन क्या अंतरराष्ट्रीय रूप से बाध्य होगा?
सम्मेलन में सबसे विवादास्पद मुद्दा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने का ही था। प्रारंभ से ही स्पष्ट था कि इस पर आम राय नहीं बन सकती। एक ओर जहां जापान और रूस जैसे देश क्योटो संधि से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों को बाध्यकारी समझौता मंजूर नहीं था। केवल द्वीपीय देश ही इस प्रयास में लगे थे कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती का ऐसा कोई फार्मूला तैयार किया जाये जिसको मानना सभी के लिए जरूरी हो। धरती के तापमान में वृद्धि से सबसे अधिक खतरा भी इन्हीं देशों को है। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से इनके अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है। द्वीपीय देशों की नाराजगी मोल लेने की हद तक जाना कोई बुद्धिमानी नहीं होगी, यही सोचकर बेसिक समूह (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत एवं चीन) के दो सदस्य ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका लचीला रूख दिखा रहे थे, लिहाजा भारत ने भी यह बात मान ली और समानता के आधार पर फार्मूला तय किये जाने की अपनी मांग छोड़ दी। इस तरह विकसित और विकासशील देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में एक निश्चित अवधि के भीतर कटौती की जरूरत मान ली है। इसीलिए कानकुन सम्मेलन को कोपेनहेगन सम्मेलन से बेहतर नतीजा देने वाला सम्मेलन माना जाता है।
कानकुन सम्मेलन में भारत की भूमिका काफी रचनात्मक रही। भारत के पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश ने सम्मेलन में जो भूमिका निभाई, उसकी सराहना जर्मनी जैसे उन्नत देश और मालदीव जैसे द्वीपीय देशों ने भी की है। जर्मनी की चांसलर सुश्री एंगेला मर्केल ने जहां श्री रमेश की रचनात्मक भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि उन जैसे लोगों के योगदान के कारण ही ‘कानकुन’ विफल नहीं हो सका, वहीं मालदीव के पर्यावरण मंत्री श्री मोहम्मद असलम ने कहा कि श्री रमेश ने विकसित और विकासशील देशों के बीच खाईं को पाटने में अहम भूमिका निभाई है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री श्री रमेश ने समझौते को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा है कि इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के आगे के रास्ते खुल गये हैं। उन्होंने कहा कि कानकुन में सभी हारे और सभी जीते। समझौते में ऐसी कई बातें हैं जिनके बारे में भारत समेत कई देशों को आपत्तियां भी हैं, फिर भी उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले वर्ष डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में होने वाले सम्मेलन तक अधिकांश मुद्दों को हल कर लिया जायेगा।
कानकुन सम्मेलन अपेक्षाओं पर भले ही खरा न उतरा हो, परंतु नाकाम होने से बच गया, तो इसका बहुत कुछ श्रेय मेजवान देश की विदेश मंत्री सुश्री पेट्रीशिया एस्पीनोसा को भी जाता है। हरित कोष और हरित तकनीक की मदद के विषय पर विकसित देशों को मनाने की उनकी कोशिशें अंतत: रंग लाईं और अमेरिका, जापान तथा रूस के शुरूआती नकारात्मक रूख के बावजूद कानकुन में सहमति का दायरा बढ़ सका। इसीलिए यह उम्मीद जगी है कि अगले वर्ष इसी महीने जब डरबन में जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होगा, तब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों का नकारात्मक रवैया समाप्त हो जायेगा। वास्तव में जलवायु परिवर्तन के खतरनाक परिणामों से बचने के लिए दोनों ओर से ईमानदार कोशिश की जरूरत है।
संगीतकारों की स्मृति में डाक टिकट
तमिलनाडु में मरगज़ी का महीना (दिसम्बर-जनबरी) एक ऐसा समय होता है जब जलवायु अपेक्षाकृत काफी ठंडी और आरामदेह होती है। तमिल भाषा के शास्त्रीय ग्रंथ थिरूवेमपावई में भगवान शंकर की प्रशंसा में श्लोक भरे पड़े हैं, जिनके दैवी नृत्य में ऐसी हलचल पैदा करने की शक्ति है जिससे समूचा ब्रह्मांड जीवित हो उठता है। इस ग्रंथ में शुद्ध तमिल भाषा में लिखा है कि मरगज़ी माह का अर्द्धचन्द्र ऐसी शुभरात्रि में अवतरित होता है जब समूचे बातावरण में कला, मेधा और सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञता व्याप्त होती है- ‘मरगज़ी थिंगल मथी निराइन्दा नन्नल’!
मरगज़ी का समय मधुर संगीत, जीवन्त नृत्यों और सभी प्रकार के कलारूपों का होता है। प्रसिद्ध संगीत अकादमी सहित चेन्नई की विभिन्न संगीत संस्थाएं इस अवसर पर कर्नाटक संगीत और नृत्य के अपने वार्षिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं। शास्त्रीय कर्नाटक संगीत और नृत्य के इन प्रतिष्ठित कार्यक्रमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है और यह समय चेन्नई और उसके आसपास के इलाकों में पर्यटन मौसम के रूप में जाना जाता है।
स्मारक टिकट
इस मौसम की स्मृति में संचार मंत्रालय के डाक विभाग ने तीन डाक टिकट जारी किये हैं, जिनमें कर्नाटक संगीत के महान कलाकारों के चित्र अंकित हैं। ये डाक टिकट 3 दिसम्बर, 2010 को जारी किये गये। जिन संगीतकारों की याद में ये टिकट जारी किये गये हैं, वे हैं प्रसिद्ध नादस्वरम कलाकार टी एन राजरतनम पिल्लई, जानी मानी नृत्यांगना टी बालासरस्वती और ख्यातिप्राप्त वीणावादक वीना धनम्मल, जिनके वीणावादन प्रतिभा ने समूची पीढ़ी को मंत्रमुग्ध कर दिया है।
संगीतकार
टी एन राजरतनम पिल्लई का जन्म तन्जावुर जिले में थिरूवदुथुरई के श्री कुप्पूस्वामी पिल्लई और श्रीमती गोविंदमणी के घर 27 अगस्त, 1898 को हुआ था। तन्जावुर जिला तमिलनाडु में संस्कृत का पालना कहलाता है1 उन्होंने बहुत ही कम उम्र में संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने नादस्वरम के जाने माने विद्वान श्री अम्माचत्रम कन्नूस्वामी पिल्लई से नादस्वरम को बजाना सीखा। धीरे-धीरे संगीत की इस विधा के वे महान कलाकार हो गये। नादस्वरम बजाने की उनकी कला ने समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया और जब भी वे उनके कार्यक्रम सुनते वे मंत्रमुग्ध हो जाते। संगीत के इस महान कलाकार का देहांत 12 दिसम्बर, 1956 को हुआ था।
वीणा धनम्मल का जन्म चेन्नई के जार्जटाउन में संगीतकारों और नृत्य कलाकारों के परिवार में 1867 में हुआ था। उनके पड़दादा, दादा और उनकी मॉ सभी कुशल संगीतकार थे। उन्होंने प्रसिद्ध गुरूओं से वीणा और कंठसंगीत की शिक्षा प्राप्त की। वीणा वादन में उनका कोई सानी नहीं था। वे बहुत मधुर वीणा बजाती थीं। उनकी धरोहर, उनकी प्रतिष्ठा, उनका व्यक्तित्व और उनकी जीवन शैली ने लोगों का काफी सम्मान अर्जित किया। उनका निधन 15 अक्तूबर, 1938 को हुआ था।
बाला सरस्वती, वीणा धनम्मल की पड़पोती थीं। उनका जन्म मई 1918 में संगीतकारों के परिवार में हुआ था। उनकी मां जयम्मल एक बहुमुखी गायिका और तबला वादक थीं। बचपन में उन्होंने भरतनाट्यम की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी और धीरे-धीरे उन्होंने महान भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं की श्रेणी में अपना स्थान बना लिया और वे कलात्मक प्रतिभा की पर्याय बन गईं। वे अभिनय में पारंगत थीं और उनका कोई मुकाबला नहीं था। उन्हें 1957 में भारत भूषण सम्मान प्रदान किया गया। इस महान नृत्यांगना का निधन 9 फरबरी, 1984 को हो गया।
डाक टिकट संग्रह
डाक टिकट संग्रह एक मजेदार शौक है जो किसी व्यक्ति के सौन्दर्यबोध को तेज करता है और उसे संतुष्टि प्रदान करता है इससे ज्ञान का विस्तार होता है और जिस संसार में आप रहते हैं उससे आप का संवाद बनता है। डाक टिकट राजनीति, इतिहास, प्रमुख व्यक्तियों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं, भूगोल, फूल पौधे और वनस्पतियों, कृषि, विज्ञान, स्मारक, सैनिकों, योद्धाओं, वैज्ञानिकों आदि के बारे में रोचक जानकारी देते हैं। इसके अलावा डाक टिकट संग्रह का शौक देश और आयु की सीमाओं से परे लोगों से मित्रता बढ़ाने में मदद करती है।
डाक टिकट संग्रहालय प्रसिद्ध शहरों के मुख्य डाकघरों में स्थित होते हैं। इन संग्रहालयों में डाक टिकट संग्रह करने वाले लोग अपना खाता खोल सकते हैं, वे डाक टिकट जारी होने के दिन प्रथम दिवस आवरण भी जारी करते हैं। इन संग्रहालयों में स्थित काउंटर डाक टिकट संग्रह से संबंधित सभी बस्तुओं की आपूर्ति करते हैं लेकिन उन्हें विशेष कैंसिलेशन जारी करने का अधिकार नहीं है। ये कैंसिलेशन प्रत्येक स्मारक डाक टिकट के साथ जारी होता है। अधिकृत कार्यालय केवल स्मारक/ विशेष टिकट, सादा प्रथम दिवस आवरण और सूचना संबंधी विवरणिका का विक्रय करते हैं।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है स्मारक टिकट किसी महत्वपूर्ण घटना, विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध व्यक्ति, प्रकृति के पहलुओं, सुंदर और दुर्लभ फूल पौधे, पर्यावरणीय मुद्दे, कृषि गतिविधियां, राष्ट्रीय/ अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, खेल आदि की याद में जारी किये जाते हैं। ये टिकट केवल डाक टिकट संग्रह व्यूरो और चुने हुए डाकघरों में ही उपलब्ध होते हैं। इनका मुद्रण सीमित संख्या में होता है।
डाक विभाग ने इस वर्ष अब तक 87 स्मारक डाक टिकट जारी किये हैं, ये डाक टिकट अपने कलात्मक सौन्दर्य के लिए जाने जाते हैं और इन्होंने विश्व भर के डाक टिकट संग्रहकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है।
मरगज़ी का समय मधुर संगीत, जीवन्त नृत्यों और सभी प्रकार के कलारूपों का होता है। प्रसिद्ध संगीत अकादमी सहित चेन्नई की विभिन्न संगीत संस्थाएं इस अवसर पर कर्नाटक संगीत और नृत्य के अपने वार्षिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं। शास्त्रीय कर्नाटक संगीत और नृत्य के इन प्रतिष्ठित कार्यक्रमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है और यह समय चेन्नई और उसके आसपास के इलाकों में पर्यटन मौसम के रूप में जाना जाता है।
स्मारक टिकट
इस मौसम की स्मृति में संचार मंत्रालय के डाक विभाग ने तीन डाक टिकट जारी किये हैं, जिनमें कर्नाटक संगीत के महान कलाकारों के चित्र अंकित हैं। ये डाक टिकट 3 दिसम्बर, 2010 को जारी किये गये। जिन संगीतकारों की याद में ये टिकट जारी किये गये हैं, वे हैं प्रसिद्ध नादस्वरम कलाकार टी एन राजरतनम पिल्लई, जानी मानी नृत्यांगना टी बालासरस्वती और ख्यातिप्राप्त वीणावादक वीना धनम्मल, जिनके वीणावादन प्रतिभा ने समूची पीढ़ी को मंत्रमुग्ध कर दिया है।
संगीतकार
टी एन राजरतनम पिल्लई का जन्म तन्जावुर जिले में थिरूवदुथुरई के श्री कुप्पूस्वामी पिल्लई और श्रीमती गोविंदमणी के घर 27 अगस्त, 1898 को हुआ था। तन्जावुर जिला तमिलनाडु में संस्कृत का पालना कहलाता है1 उन्होंने बहुत ही कम उम्र में संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने नादस्वरम के जाने माने विद्वान श्री अम्माचत्रम कन्नूस्वामी पिल्लई से नादस्वरम को बजाना सीखा। धीरे-धीरे संगीत की इस विधा के वे महान कलाकार हो गये। नादस्वरम बजाने की उनकी कला ने समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया और जब भी वे उनके कार्यक्रम सुनते वे मंत्रमुग्ध हो जाते। संगीत के इस महान कलाकार का देहांत 12 दिसम्बर, 1956 को हुआ था।
वीणा धनम्मल का जन्म चेन्नई के जार्जटाउन में संगीतकारों और नृत्य कलाकारों के परिवार में 1867 में हुआ था। उनके पड़दादा, दादा और उनकी मॉ सभी कुशल संगीतकार थे। उन्होंने प्रसिद्ध गुरूओं से वीणा और कंठसंगीत की शिक्षा प्राप्त की। वीणा वादन में उनका कोई सानी नहीं था। वे बहुत मधुर वीणा बजाती थीं। उनकी धरोहर, उनकी प्रतिष्ठा, उनका व्यक्तित्व और उनकी जीवन शैली ने लोगों का काफी सम्मान अर्जित किया। उनका निधन 15 अक्तूबर, 1938 को हुआ था।
बाला सरस्वती, वीणा धनम्मल की पड़पोती थीं। उनका जन्म मई 1918 में संगीतकारों के परिवार में हुआ था। उनकी मां जयम्मल एक बहुमुखी गायिका और तबला वादक थीं। बचपन में उन्होंने भरतनाट्यम की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी और धीरे-धीरे उन्होंने महान भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं की श्रेणी में अपना स्थान बना लिया और वे कलात्मक प्रतिभा की पर्याय बन गईं। वे अभिनय में पारंगत थीं और उनका कोई मुकाबला नहीं था। उन्हें 1957 में भारत भूषण सम्मान प्रदान किया गया। इस महान नृत्यांगना का निधन 9 फरबरी, 1984 को हो गया।
डाक टिकट संग्रह
डाक टिकट संग्रह एक मजेदार शौक है जो किसी व्यक्ति के सौन्दर्यबोध को तेज करता है और उसे संतुष्टि प्रदान करता है इससे ज्ञान का विस्तार होता है और जिस संसार में आप रहते हैं उससे आप का संवाद बनता है। डाक टिकट राजनीति, इतिहास, प्रमुख व्यक्तियों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं, भूगोल, फूल पौधे और वनस्पतियों, कृषि, विज्ञान, स्मारक, सैनिकों, योद्धाओं, वैज्ञानिकों आदि के बारे में रोचक जानकारी देते हैं। इसके अलावा डाक टिकट संग्रह का शौक देश और आयु की सीमाओं से परे लोगों से मित्रता बढ़ाने में मदद करती है।
डाक टिकट संग्रहालय प्रसिद्ध शहरों के मुख्य डाकघरों में स्थित होते हैं। इन संग्रहालयों में डाक टिकट संग्रह करने वाले लोग अपना खाता खोल सकते हैं, वे डाक टिकट जारी होने के दिन प्रथम दिवस आवरण भी जारी करते हैं। इन संग्रहालयों में स्थित काउंटर डाक टिकट संग्रह से संबंधित सभी बस्तुओं की आपूर्ति करते हैं लेकिन उन्हें विशेष कैंसिलेशन जारी करने का अधिकार नहीं है। ये कैंसिलेशन प्रत्येक स्मारक डाक टिकट के साथ जारी होता है। अधिकृत कार्यालय केवल स्मारक/ विशेष टिकट, सादा प्रथम दिवस आवरण और सूचना संबंधी विवरणिका का विक्रय करते हैं।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है स्मारक टिकट किसी महत्वपूर्ण घटना, विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध व्यक्ति, प्रकृति के पहलुओं, सुंदर और दुर्लभ फूल पौधे, पर्यावरणीय मुद्दे, कृषि गतिविधियां, राष्ट्रीय/ अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, खेल आदि की याद में जारी किये जाते हैं। ये टिकट केवल डाक टिकट संग्रह व्यूरो और चुने हुए डाकघरों में ही उपलब्ध होते हैं। इनका मुद्रण सीमित संख्या में होता है।
डाक विभाग ने इस वर्ष अब तक 87 स्मारक डाक टिकट जारी किये हैं, ये डाक टिकट अपने कलात्मक सौन्दर्य के लिए जाने जाते हैं और इन्होंने विश्व भर के डाक टिकट संग्रहकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है।
सीआरआईएस: भारतीय रेल के लिये सफल सूचना प्रणालियों का सृजन
भारत के लोगों के लाभ के लिये सूचना प्रौद्योगिकी को काम में लाने की दृष्टि से 1986 का वर्ष भारतीय रेल के नवीन प्रयासों के लिये काफी महत्वपूर्ण माना जाता है । दूरदर्शी पहल करते हुए रेल मंत्रालय ने रेल सूचना प्रणाली केन्द्र(क्रिस) नाम से एक स्वायत्तशासी संस्था का गठन किया है । क्रिस अब 24 वर्ष पुराना हो चुका है । साधारण सी शुरुआत के बाद अब यह संस्था देश के आईटी मानचित्र पर प्रमुख पहचान बना चुकी है। इसने भारतीय रेल को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी प्रधानता बनाए रखने में और इस क्षेत्र में मार्गदर्शी कार्य जारी रखने में बड़ी मदद की है ।
व्यापक प्रभाव
भारतीय रेल में आईटी प्रणाली के जरिये जितना लेन-देन किया जाता है, उसकी संख्या और परिमाण से उनकी गुणवत्ता और क्षमताओं का आभास होता है । भारतीय रेल प्रतिदिन लगभग 11000 रेलगाड़ियों का संचालन करती है, इनमें यात्री और मालगाड़ियां दोनों शामिल हैं ।
1.प्रतिदिन लगभग दस लाख यात्री अपनी बर्थ का आरक्षण यात्री आरक्षण प्रणाली के माध्यम से कराते हैं । 2.अनारक्षित टिकट प्रणाली के जरिये प्रतिदिन लगभग एक करोड़ 40 लाख यात्रियों के टिकट बेचे जाते हैं । प्रतिवर्ष इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है ।3.क्रिस द्वारा विकसित मालभाड़ा प्रचालन सूचना प्रणाली का निरंतर विस्तार और विकास हो रहा है और माल का कारोबार करने वाले ग्राहकों को मूल्यवर्धित सेवायें प्रदान कर रही है । इस प्रणाली के तहत जो ई-भुगतान सुविधा प्रदान की जा रही है, उसके जरिये राजस्व प्राप्त होता है । वह कुल माल भाड़े का करीब 50 प्रतिशत है। माल भाड़े से प्रतिवर्ष करीब 7 खरब रूपये का राजस्व प्राप्त होता है।4.5.भारतीय रेल के सभी 67 मंडलों में कम्प्यूटरीकृत नियंत्रण कार्यालय है जो कंट्रोल आफिस ऐप्लीकेशन नियंत्रण कार्यालय अनुप्रयोग के जरिये प्रत्येक स्टेशन से गुजरने वाली हर रेलगाड़ी का आवागमन पर नजर रखता है ।6.7.क्रू (चालक दल) प्रबंधन प्रणाली का उपयोग प्रतिदिन करीब 30 हजार चालक दल के सदस्य अपने कार्य स्थान पर से आने जाने के लिये करते हैं ।8.9.एकीकृत कोचिंग (सवारी डिब्बा) प्रबंधन प्रणाली की सहायता से 40 हजार से अधिक यात्री गाड़ियों के डिब्बों का प्रबंधन किया जाता है ।6.ये आई टी अनुप्रयोग यात्रियों और माल परिवहन व्यापार की आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष रूप से पूर्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं । अभी और भी ऐसे कई अन्य अनुप्रयोग शुरू होने को हैं जिनका परिसंपत्ति प्रबंधन और कार्य क्षमता में सुधार पर ज्यादा जोर रहेगा ।
नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा
क्रिस भारतीय रेल के स्वायत्तशासी संगठन के रूप में काम करता है । यह अपने मानव संसाधन (कर्मचारी) रेलवे के अलावा कुशल आई टी पेशेवरों के वृहद पूल से प्राप्त करता है । रेलवे की आई टी परियोजनाओं की सफलता का एक कारण इसके क्रिस जैसे विशिष्ट संगठनों द्वारा निर्मित ज्ञान की निरंतरता है । क्रिस में डोमेन ज्ञान के विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकीय पेशेवरों का उपयोगी संगम है जो कौशल और क्षमताओं का अनूठा सम्मिश्रण तैयार करता है । इस नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा का परिणाम है, उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया जो कि आई टी परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिये निर्णायक होती है । एक ओर उपयोगकर्ता और दूसरी ओर साफ्टवेयर तैयार करने वाले और आईटी सेवा प्रदाता के बीच तो विशेष संबंध होता है, उसी के कारण क्रिस उपभोक्ताओं की बदलती और बढ़ती अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को पूरा कर पाती है । चूंकि डोमेन विशेषज्ञों को क्रिस में काम करने से पहले ही रेल प्रबंधन का व्यापक अनुभव रहा है, क्रिस के अनुप्रयोगों में ठहराव नहीं आ पाता । इसके अतिरिक्त बिना इस बात की चिंता किये कि बाहरी सेवा प्रदाता कभी भी संबंधों को ताला लगा सकता है, क्रिस वृहद और महत्वपूर्ण आई टी प्रणालियों की आवश्यकतानुसार उच्चस्तरीय सेवायें प्रदान करना जारी रखता है । जहां तक संगठनात्मक रूपरेखा की बात है, इसके कारण प्रधान संगठन (रेलवे) और एजेंट संगठन (क्रिस) के प्रोत्साहन एक सीध में आ जाते हैं, और नवाचार तथा उन्नति के लिये पर्याप्त गुजांइश भी बनी रहती है ।
प्रौद्योगिकी में अग्रणी
प्रारंभिक वर्षों में यानी अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध और नब्बे के दशक के पूर्वार्ध में दो प्रमुख अनुप्रयोगों पीआरएस और एफओआईएस पर जोर दिया गया था । इस उत्तरदायित्व के कारण इस संगठन में जबर्दस्त विश्वास आया और इन परियोजनाओं (जैसे कन्सर्ट सीओएनसीईआरटी के भीतर विकसित नये आरक्षण तर्क) की सफलता ने क्रिस के बारे में धारणाओं को ही बदल कर रख दिया । जैसे-जैसे आईटी के प्रभावी उपयोग की अपार संभावनाओं का खुलासा होता गया, 21वीं सदी के प्रारंभ से ही रेल उपभोक्ताओं की मांगों और अपेक्षाओं में उल्लेखनीय वृद्धि होने लगी । अकस्मात ही क्रिस के लिये अनुमोदित और निर्धारित परियोजनाओं पर अमल किया जाने लगा । इस समय तक क्रिस ने अपने पूर्व कल्पित आकार से भी आगे जाते हुए विशाल आकार ग्रहण कर लिया था । अत्याधुनिक आईटी समाधानों की खोजकर उनका विकास किया जाने लगा । मार्गदर्शी परियोजनाओं की सफलता से उन्हें देशभर में लागू करने के लिये होड़ जैसी शुरू हो गई । त्वरित क्रियान्वयन के लिये क्रिस ने इस शांत क्रांति में भाग लेने के लिये और संसाधन तथा डोमेन ज्ञान विशेषज्ञों की सेवायें लीं ।
केन्द्रीय भूमिका
रेल मंत्रालय के दूरदर्शी दृष्टिकोण के कारण एक ऐसी सुखद स्थिति बन चुकी है , जिसमें रेल परिचालन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण गतिविधियों का प्रबंधन आई टी जनित प्रणाली के जरिये होने लगा है। परन्तु, आई टी एक गतिशील क्षेत्र है । जैसे-जैसे और अधिक बुद्धिमान यंत्र समाज के सभी वर्गों में अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं । ग्राहकों की अधिक सुविधाओं की अपेक्षायें बढ़ती जा रही हें । इसके लिये एक गतिशील और ऊर्जावान आईटी संगठन की आवश्यकता होती है जो सदैव सबसे आगे रहे और आधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग ग्राहकों की समस्याओं के समाधान में प्रभावी ढंग से कर सके । क्रिस इस भूमिका को निभाने के लिये पूरी तरह से तैयार है और रेल की कार्यप्रणाली में और अधिक बदलाव के लिये भी तैयार है । सूचना संकलन और प्राथमिक विश्लेषण कंप्यूटर की सहायता से होने लगा है। निर्णय में सहायक तत्व भी मुहैया कराए जा रहे हैं । रेलवे के लिये आज सबसे बड़ी चुनौती, ऐसी प्रणालियां विकसित करने की है जो महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में पूर्णरूपेण बदलाव ला सकें । संपोषणीय आई टी विकास की दीर्घकालीन दृष्टि विकसित करने के लिये भारतीय रेल ओर क्रिस के पास यही उपयुक्त समय है क्योंकि रेल के कारोबार में आई टी का अनुप्रयोग बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और वह उसके बारे में काफी गंभीर है । आज, क्रिस आईटी जनित संगठनात्मक परिवर्तन के साथ-साथ भारतीय रेल के ग्राहकों को त्वरित और अधिक सुविधापूर्ण सेवायें प्रदान करने हेतु आईटी के उपयोग की दहलीज पर खड़ा है । इन लक्ष्यों ने क्रिस को भारतीय रेल के लिये उच्च कोटि की सूचना प्रणाली के सृजन और प्रबंधन के प्रयासों को मूर्त रूप देने के अपने इरादों को और मजबूती प्रदान की है ।
व्यापक प्रभाव
भारतीय रेल में आईटी प्रणाली के जरिये जितना लेन-देन किया जाता है, उसकी संख्या और परिमाण से उनकी गुणवत्ता और क्षमताओं का आभास होता है । भारतीय रेल प्रतिदिन लगभग 11000 रेलगाड़ियों का संचालन करती है, इनमें यात्री और मालगाड़ियां दोनों शामिल हैं ।
1.प्रतिदिन लगभग दस लाख यात्री अपनी बर्थ का आरक्षण यात्री आरक्षण प्रणाली के माध्यम से कराते हैं । 2.अनारक्षित टिकट प्रणाली के जरिये प्रतिदिन लगभग एक करोड़ 40 लाख यात्रियों के टिकट बेचे जाते हैं । प्रतिवर्ष इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है ।3.क्रिस द्वारा विकसित मालभाड़ा प्रचालन सूचना प्रणाली का निरंतर विस्तार और विकास हो रहा है और माल का कारोबार करने वाले ग्राहकों को मूल्यवर्धित सेवायें प्रदान कर रही है । इस प्रणाली के तहत जो ई-भुगतान सुविधा प्रदान की जा रही है, उसके जरिये राजस्व प्राप्त होता है । वह कुल माल भाड़े का करीब 50 प्रतिशत है। माल भाड़े से प्रतिवर्ष करीब 7 खरब रूपये का राजस्व प्राप्त होता है।4.5.भारतीय रेल के सभी 67 मंडलों में कम्प्यूटरीकृत नियंत्रण कार्यालय है जो कंट्रोल आफिस ऐप्लीकेशन नियंत्रण कार्यालय अनुप्रयोग के जरिये प्रत्येक स्टेशन से गुजरने वाली हर रेलगाड़ी का आवागमन पर नजर रखता है ।6.7.क्रू (चालक दल) प्रबंधन प्रणाली का उपयोग प्रतिदिन करीब 30 हजार चालक दल के सदस्य अपने कार्य स्थान पर से आने जाने के लिये करते हैं ।8.9.एकीकृत कोचिंग (सवारी डिब्बा) प्रबंधन प्रणाली की सहायता से 40 हजार से अधिक यात्री गाड़ियों के डिब्बों का प्रबंधन किया जाता है ।6.ये आई टी अनुप्रयोग यात्रियों और माल परिवहन व्यापार की आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष रूप से पूर्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं । अभी और भी ऐसे कई अन्य अनुप्रयोग शुरू होने को हैं जिनका परिसंपत्ति प्रबंधन और कार्य क्षमता में सुधार पर ज्यादा जोर रहेगा ।
नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा
क्रिस भारतीय रेल के स्वायत्तशासी संगठन के रूप में काम करता है । यह अपने मानव संसाधन (कर्मचारी) रेलवे के अलावा कुशल आई टी पेशेवरों के वृहद पूल से प्राप्त करता है । रेलवे की आई टी परियोजनाओं की सफलता का एक कारण इसके क्रिस जैसे विशिष्ट संगठनों द्वारा निर्मित ज्ञान की निरंतरता है । क्रिस में डोमेन ज्ञान के विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकीय पेशेवरों का उपयोगी संगम है जो कौशल और क्षमताओं का अनूठा सम्मिश्रण तैयार करता है । इस नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा का परिणाम है, उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया जो कि आई टी परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिये निर्णायक होती है । एक ओर उपयोगकर्ता और दूसरी ओर साफ्टवेयर तैयार करने वाले और आईटी सेवा प्रदाता के बीच तो विशेष संबंध होता है, उसी के कारण क्रिस उपभोक्ताओं की बदलती और बढ़ती अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को पूरा कर पाती है । चूंकि डोमेन विशेषज्ञों को क्रिस में काम करने से पहले ही रेल प्रबंधन का व्यापक अनुभव रहा है, क्रिस के अनुप्रयोगों में ठहराव नहीं आ पाता । इसके अतिरिक्त बिना इस बात की चिंता किये कि बाहरी सेवा प्रदाता कभी भी संबंधों को ताला लगा सकता है, क्रिस वृहद और महत्वपूर्ण आई टी प्रणालियों की आवश्यकतानुसार उच्चस्तरीय सेवायें प्रदान करना जारी रखता है । जहां तक संगठनात्मक रूपरेखा की बात है, इसके कारण प्रधान संगठन (रेलवे) और एजेंट संगठन (क्रिस) के प्रोत्साहन एक सीध में आ जाते हैं, और नवाचार तथा उन्नति के लिये पर्याप्त गुजांइश भी बनी रहती है ।
प्रौद्योगिकी में अग्रणी
प्रारंभिक वर्षों में यानी अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध और नब्बे के दशक के पूर्वार्ध में दो प्रमुख अनुप्रयोगों पीआरएस और एफओआईएस पर जोर दिया गया था । इस उत्तरदायित्व के कारण इस संगठन में जबर्दस्त विश्वास आया और इन परियोजनाओं (जैसे कन्सर्ट सीओएनसीईआरटी के भीतर विकसित नये आरक्षण तर्क) की सफलता ने क्रिस के बारे में धारणाओं को ही बदल कर रख दिया । जैसे-जैसे आईटी के प्रभावी उपयोग की अपार संभावनाओं का खुलासा होता गया, 21वीं सदी के प्रारंभ से ही रेल उपभोक्ताओं की मांगों और अपेक्षाओं में उल्लेखनीय वृद्धि होने लगी । अकस्मात ही क्रिस के लिये अनुमोदित और निर्धारित परियोजनाओं पर अमल किया जाने लगा । इस समय तक क्रिस ने अपने पूर्व कल्पित आकार से भी आगे जाते हुए विशाल आकार ग्रहण कर लिया था । अत्याधुनिक आईटी समाधानों की खोजकर उनका विकास किया जाने लगा । मार्गदर्शी परियोजनाओं की सफलता से उन्हें देशभर में लागू करने के लिये होड़ जैसी शुरू हो गई । त्वरित क्रियान्वयन के लिये क्रिस ने इस शांत क्रांति में भाग लेने के लिये और संसाधन तथा डोमेन ज्ञान विशेषज्ञों की सेवायें लीं ।
केन्द्रीय भूमिका
रेल मंत्रालय के दूरदर्शी दृष्टिकोण के कारण एक ऐसी सुखद स्थिति बन चुकी है , जिसमें रेल परिचालन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण गतिविधियों का प्रबंधन आई टी जनित प्रणाली के जरिये होने लगा है। परन्तु, आई टी एक गतिशील क्षेत्र है । जैसे-जैसे और अधिक बुद्धिमान यंत्र समाज के सभी वर्गों में अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं । ग्राहकों की अधिक सुविधाओं की अपेक्षायें बढ़ती जा रही हें । इसके लिये एक गतिशील और ऊर्जावान आईटी संगठन की आवश्यकता होती है जो सदैव सबसे आगे रहे और आधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग ग्राहकों की समस्याओं के समाधान में प्रभावी ढंग से कर सके । क्रिस इस भूमिका को निभाने के लिये पूरी तरह से तैयार है और रेल की कार्यप्रणाली में और अधिक बदलाव के लिये भी तैयार है । सूचना संकलन और प्राथमिक विश्लेषण कंप्यूटर की सहायता से होने लगा है। निर्णय में सहायक तत्व भी मुहैया कराए जा रहे हैं । रेलवे के लिये आज सबसे बड़ी चुनौती, ऐसी प्रणालियां विकसित करने की है जो महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में पूर्णरूपेण बदलाव ला सकें । संपोषणीय आई टी विकास की दीर्घकालीन दृष्टि विकसित करने के लिये भारतीय रेल ओर क्रिस के पास यही उपयुक्त समय है क्योंकि रेल के कारोबार में आई टी का अनुप्रयोग बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और वह उसके बारे में काफी गंभीर है । आज, क्रिस आईटी जनित संगठनात्मक परिवर्तन के साथ-साथ भारतीय रेल के ग्राहकों को त्वरित और अधिक सुविधापूर्ण सेवायें प्रदान करने हेतु आईटी के उपयोग की दहलीज पर खड़ा है । इन लक्ष्यों ने क्रिस को भारतीय रेल के लिये उच्च कोटि की सूचना प्रणाली के सृजन और प्रबंधन के प्रयासों को मूर्त रूप देने के अपने इरादों को और मजबूती प्रदान की है ।
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