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शनिवार, 29 मार्च 2014
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इतिहास
स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव किसी भी देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इसमें निष्पक्ष, सटीक तथा पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया में ऐसे परिणाम शामिल हैं जिनकी पुष्टि स्वतंत्र रूप से की जा सकती है। परम्परागत मतदान प्रणाली इन लक्ष्य में से अनेक पूरा करती है। लेकिन फर्जी मतदान तथा मतदान केन्द्र पर कब्जा जैसा दोष पूर्ण व्यवहार निर्वाची लोकतंत्र भावना के लिए गंभीर खतरे हैं। इस तरह भारत का निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार का प्रयास करता रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के दो प्रतिष्ठानों भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड, बंगलौर तथा इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से भारत निर्वाचन आयोग ने ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) की खोज तथा डिजायनिंग की।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल भारत में आम चुनाव तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में आंशिक रूप से 1999 में शुरू हुआ तथा 2004 से इसका पूर्ण इस्तेमाल हो रहा है। ईवीएम से पुरानी मतपत्र प्रणाली की तुलना में वोट डालने के समय में कमी आती है तथा कम समय में परिणाम घोषित करती है। ईवीएम के इस्तेमाल से जाली मतदान तथा बूथ कब्जा करने की घटनाओं में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है। इसे निरक्षर लोग ईवीएम को मत पत्र प्रणाली से अधिक आसान पाते हैं। मत-पेटिकाओं की तुलना में ईवीएम को पहुंचाने तथा वापस लाने में आसानी होती है।
ईवीएम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मतदान कार्य का तकिया कलाम बन गई है। यहां ईवीएम के विकास का तथा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में इसके इस्तेमाल का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
ईवीएम का क्रमिक विकास
v ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल मई, 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केन्द्रों पर हुआ।
v 1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया गया कि चुनाव में वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रुप दिये जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का आदेश जारी हुआ था। दिसम्बर, 1988 में संसद ने इस कानून में संशोधन किया तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में नई धारा-61ए जोड़ी गई जो आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ।
v केन्द्र सरकार द्वारा फरवरी, 1990 में अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई गई। भारत सरकार ने ईवीएम के इस्तेमाल संबंधी विषय विचार के लिए चुनाव सुधार समिति को भेजा।
v भारत सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया। इसमें प्रो.एस.सम्पत तत्कालीन अध्यक्ष आर.ए.सी, रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन, प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (तब आईआईटी दिल्ली के साथ) तथा डॉ.सी. राव कसरवाड़ा, निदेशक इलेक्ट्रोनिक्स अनुसंधान तथा विकास केन्द्र, तिरूअनंतपुरम शामिल किए गए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ये मशीनें छेड़छाड़ मुक्त हैं।
v 24 मार्च 1992 को सरकार के विधि तथा न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव कराने संबंधी कानूनों, 1961 में आवश्यक संशोधन की अधिसूचना जारी की गई।
v आयोग ने चुनाव में नई इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों के वास्तविक इस्तेमाल के लिए स्वीकार करने से पहले उनके मूल्यांकन के लिए एक बार फिर तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। प्रो.पी.वी. इनदिरेशन, आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल इसके सदस्य बने।
v तब से निर्वाचन आयोग ईवीएम से जुड़े सभी तकनीकी पक्षों पर स्वर्गीय प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (पहले की समिति के सदस्य), आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल से लगातार परामर्श लेता है। नवम्बर, 2010 में आयोग ने तकनीकी विशेषज्ञ समिति का दायरा बढ़ाकर इसमें दो और विशेषज्ञों-आईआईटी मुम्बई के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो.डी.के. शर्मा तथा आईआईटी कानपुर के कम्प्यूटर साइंस तथा इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. रजत मूना (वर्तमान महानिदेशक सी-डैक) को शामिल किया।
v नवम्बर, 1998 के बाद से आम चुनाव/उप-चुनावों में प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केन्द्रों पर 10.75 लाख ईवीएम के इस्तेमाल के साथ ई-लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया। तब से सभी चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है।
ईवीएम की विशेषताएः
v यह छेड़छाड़ मुक्त तथा संचालन में सरल है
v नियंत्रण इकाई के कामों को नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम "एक बार प्रोग्राम बनाने योग्य आधार पर"माइक्रोचिप में नष्ट कर दिया जाता है। नष्ट होने के बाद इसे पढ़ा नहीं जा सकता, इसकी कॉपी नहीं हो सकती या कोई बदलाव नहीं हो सकता।
v ईवीएम मशीनें अवैध मतों की संभावना कम करती हैं, गणना प्रक्रिया तेज बनाती हैं तथा मुद्रण लागत घटाती हैं।
v ईवीएम मशीन का इस्तेमाल बिना बिजली के भी किया जा सकता है क्योंकि मशीन बैट्री से चलती है।
v यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक नहीं होती तो ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव कराये जा सकते हैं।
v एक ईवीएम मशीन अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है।
गुरुवार, 27 मार्च 2014
पूर्वोत्तर परिषद की विकास यात्रा
पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में तेजी लाने के लिए पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम, 1971 के जरिए एक सलाहकार संस्था के रूप में पूर्वोत्तर परिषद का गठन किया गया था। पूर्वोत्तर परिषद संशोधन अधिनियम, 2002 के अनुसार पूर्वोत्तर परिषद को एक क्षेत्रीय आयोजना संस्था के रूप में कार्य करने का अधिकार दिया गया। पूर्वोत्तर परिषद, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करती है। परिषद को पर्याप्त प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्ता प्रदान की गई है। योजना आयोग द्वारा स्वीकृत कुल बजट आबंटन में से परिषद की वार्षिक योजना तैयार की जाती है, जिसका अनुमोदन स्वयं परिषद करती है। पूर्वोत्तर परिषद के सचिव के पास 15 करोड़ रुपए तक की परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार है। 15 करोड़ रुपए से अधिक लागत की परियोजनाओं का मूल्यांकन और अनुमोदन भारत सरकार के वित्तीय नियमों के अनुसार किया जाता है।
पूर्वोत्तर परिषद, पूर्वोत्तर क्षेत्र के नियोजन तथा आर्थिक और सामाजिक विकास के अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रही है। परिषद की प्रमुख उपलब्धियों में विभिन्न क्षेत्रीय संगठनों की स्थापना भी शामिल है, जैसे पूर्वोत्तर विद्युत शक्ति निगम, पूर्वोत्तर पुलिस अकादमी, क्षेत्रीय अर्ध-चिकित्सीय और नर्सिंग संस्थान, पूर्वोत्तर क्षेत्रीय भूमि एवं जल प्रबंध संस्थान आदि। अन्य उपलब्धियों में सड़क निर्माण (9800 कि.मी.), ब्रह्मपुत्र नदी पर तेजपुर सड़क पुल सहित 77 पुलों का निर्माण, 9 अंतरर्राज्यीय बस अड्डे, 4 अंतरर्राज्यीय ट्रक टर्मिनस; एलांइस एयर के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण और विमान सेवा कनेक्टिविटी में सुधार के लिए हवाई अड्डा प्राधिकरण के माध्यम से 10 हवाई अड्डा विकास परियोजनाओं के लिए वित्त-पोषण; 694.50 मेगावॉट क्षमता की पन बिजली परियोजना की स्थापना, 64.5 मेगावॉट ताप बिजली उत्पादन(जो पूर्वोत्तर क्षेत्र की वर्तमान स्थापित क्षमता के 30 प्रतिशत के बराबर है।) ; 57 बिजली प्रणाली सुधार योजनाएं; मेघालय, असम और मणिपुर के 2-2 जिलों में पूर्वोत्तर क्षेत्र समुदाय संसाधन प्रबंधन परियोजना, चरण-1 और चरण-2 लागू, अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों और मणिपुर के बाकी के दो जिलों के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र समुदाय संसाधन प्रबंधन परियोजना, चरण-3 परियोजना की शुरूआत इत्यादि है।
पूर्वोत्तर परिषद का, पूर्वोत्तर परिषद संशोधन अधिनियम, 2002 के अनुसार 26 जून, 2003 से पुनर्गठन किया गया है। इस संशोधन के अंतर्गत पूर्वोत्तर परिषद को क्षेत्रीय आयोजना संस्था के रूप में कार्य करने का अधिकार दिया गया है और सिक्किम को आठवें राज्य के रूप में परिषद में शामिल किया गया है। इस संशोधन में व्यवस्था है कि पूर्वोत्तर परिषद, सिक्किम को छोड़कर दो या अधिक राज्यों के लाभ के लिए योजनाओं/परियोजनाओं को प्राथमिकता दे सकती है। इस परिषद के सदस्यों में पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री तथा भारत के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत तीन सदस्य शामिल हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के मंत्री मार्च, 2005 से इस परिषद के पदेन अध्यक्ष बनाए गए हैं।
शनिवार, 22 मार्च 2014
केंद्रीय सतर्कता आयोग और उसके अधिकार
केंद्रीय सतर्कता आयोग भले ही आज वक्त की ज़रुरत के हिसाब से मजबूरी और ज़रुरी दोनों है। लेकिन इसके बाद भी हमारे देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आती रहती है। आइए एक नज़र डालते हैं केंद्रीय सतर्कता आयोग के सफरनामें पर। केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना 1964 में संतानम समिति की सिफारिश पर की गई थी। एक सदस्यीय आयोग करीब साढ़े तीन दशक से सरकार में सतर्कता प्रशासन के पर्यवेक्षण का कार्य कर रहा है। न्यायमूर्ति नोत्तूर श्रीनिवास राव पहले सर्तकता आयुक्त बने, जिनकी नियुक्ति 19 फरवरी, 1964 से प्रभावी हुई। उच्चतम न्यायालय ने जैन हवाला मामले के रूप में प्रसिद्ध याचिका संख्या 340-343/1993 (विनीत नारायण और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य) पर 18 दिसम्बर 1997 को निर्देश दिया था कि केंद्रीय सतर्कता आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। इसके बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 (2003 का 45) के रूप में इसे वैधानिक दर्जा दिया गया।
केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग का संविधान उपलब्ध कराया गया है। आयोग को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत कुछ सरकारी कर्मचारियों के कथित अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया गया है। इस अधिनियम में आयोग को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना के कामकाज का अधिकार भी दिया गया। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना को अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) कहा जाता है। सतर्कता आयोग को सीबीआई द्वारा की गई जांच की प्रगति की समीक्षा करने और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत आने वाले कथित अपराधों पर मुकद्दमें की मंजूरी देने का भी अधिकार है। आयोग केंद्र सरकार के तहत विभिन्न संगठनों के सतर्कता प्रशासन का पर्यवेक्षण भी करता है।
आयोग को केंद्र सरकार के समूह क स्तर के अधिकारियों और निगमों, सरकारी कंपनियों, सोसायटी तथा केंद्र सरकार के अन्य स्थानीय प्राधिकरणों के इसी स्तर के अधिकारियों, अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों के मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वत: संज्ञान के आधार पर जांच और निरीक्षण करने का अधिकार है।
आयोग भ्रष्टाचार से निपटने के लिए प्रभावी निवारक उपाय करने पर बल देता है तथा सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने पर भी जोर देता है। सुशासन पर बल देने के मद्देनजर आयोग मौजूदा व्यवस्था और सरकारी विभागों तथा इसके संगठनों की प्रक्रियाओं की कड़ी निगरानी करता है तथा व्यवस्था को मजबूत बनाने और उसमें सुधार की सिफारिश करता है। आयोग सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार से निपटने और पारदर्शिता, बराबरी तथा प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए ई-खरीद, ई-भुगतान, ई-नीलामी इत्यादि को अपनाने के जरिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर बल दे रहा है। आयोग ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के रूप में विभिन्न भ्रष्टाचार विरोधी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और संगठनों के साथ भी संपर्क किया है। अंतराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधी प्राधिकरण संघ के लिए ज्ञान प्रबंध प्रणाली बनाना इसी तरह का हाल ही में किया गया एक प्रयास है।
रविवार, 9 मार्च 2014
डाक विभाग का कायाकल्प
संचार और सूचना प्रौद्योगिक मंत्रालय द्वारा डाक विभाग का काफी रूपान्तरण किया जा रहा है। इसने डाक विभाग का कायाकल्प कर दिया है और डाक विभाग को अब राष्ट्र में प्रौद्योगिकी चालित विभाग के रूप में जाना जाता है। इसके लिए सरकार ने आईटी आधुनिकीकरण परियोजना मंजूर की है जिस पर कुल 4,909 करोड़ रूपये परिव्यय होगा। इस विशिष्ट परियोजना के तहत देश में फैले सभी 1,55,000 डाकघरों को नेटवर्क से जोड़ दिया जाएगा। डाकघर बचत बैंक का कोर बैंकिंग समाधान, पोस्टल जीवन बीमा का मेक्केमीस बीमा समाधान किया जाएगा। इससे देश में सभी जबावदेह डाक प्रेषण का ध्यान रखा और पता लगाया जा सकेगा। आईटी आधुनिकीकरण परियोजना 2012 में शुरू की गई तथा 2015 में इसका परिचालन होने की आशा है। इसमें 8 अनुभाग शामिल किये गये हैं जिन पर कार्य विभिन्न चरणों में चल रहा है। एक समर्पित डाटा सेंटर पहले ही बना लिया गया है।
यह परियोजना इसके अनुपात को देखते हुए बेजोड़ है तथा डाक विभाग के ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के वायदें तथा कर्मचारियों की उच्चतर संतुष्टि रेखांकित करती है। इस परियोजना के माध्यम से भारतीय जन मानस तक पहुंच को और व्यापक बनाया जाएगा।
डाकघर के सभी विभागों में कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस)
डॉक विभाग चालू पंचवर्षीय योजना के दौरान विभागीय डाक घरों में कोर बैंकिंग सोल्यूशन को भी लागू कर रहे हैं। परियोजना के तहत डाकघर के बचत बैंक (पीओएसबी) ग्राहकों को एटीएम बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, फोन बैंकिंग, राष्ट्रीय इलैक्ट्रोनिक निधि ट्रांसफर (एनईएफटी) एवं रियल टाइम ग्रोस सेटलमेन्ट (आरटीजीएस) सेवाओं की शुरूआत की। यह डाकघर के बचत बैंक ग्राहकों को एटीएम के नेटवर्क के माध्यम से किसी भी समय कहीं भी बैंकिंग करना सुलभ करायेगा। कोर बैंकिंग सोल्यूशन को 38 प्रायोगिक डाकघरों में शुरू किया गया है और 2015 तक इसे सभी विभागीय डाकघरों में लागू कर दिया जाएगा। परियोजना के तहत डाकघरों की शाखा में बायो-मीट्रिक हाथ में रखने वाला उपकरण, इसमें आधार, प्रिन्टर एवं सौर ऊर्जा से चार्ज करने वाली बैटरी युक्त प्रौद्योगिक सूचना मुहैया की जाएगी।
देश में डाक प्रेषण से संबंधित सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने की पहलें
डाक विभाग देश में डाक प्रेषण से संबंधित सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने की पहल कर रहा है। मेल नेटवर्क ऑप्टिमाइजेशन परियोजना (एमएनओपी) के भाग के रूप में डाक के वितरण के नेटवर्क का पुनर्गठन किया गया है और इसकी प्रक्रिया को फिर से डिजाइन किया गया है। स्पीड पोस्ट रजिस्टर्ड डाक की और अधिक प्रभावशाली निगरानी के लिए ऑन लाइन निगरानी प्रणाली विकसित की गई है। स्पीड पोस्ट मदों को खोजने की प्रणाली की भांति रजिस्टर्ड मदों के लिए ऑन लाइन ट्रैक एवं ट्रैस प्रणाली अपनाई गई है। दिल्ली और कोलकता में डाक छांटने में और तेजी लाने के लिए आटोमेटिड मेल प्रसंस्करण केन्द्र (एएमपीसीएस) गठित किये गए हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में डाक प्रेषण की गतिविधि की निगरानी करने के लिए डाक वाहनों में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम प्रणाली अपनाई गई है।
सभी विभागिय डाकघरों में कम्प्यूटरों तथा सहायक उपकरण मुहैया करना
डाक विभाग ने देश में सभी 25,145 विभागीय डाकघरों को उनकी कार्य कुशलता को बढ़ाने के लिए कम्प्यूटर तथा सहायक उपकरण भी उपलब्ध करा दिये हैं। दूर से प्रबंध की जाने वाली फ्रैकिंग मशीने (आरएमएफएमएस) चरणबद्ध ढ़ंग से डाकघरों को वितरित की जा रही हैं। इन मशीनों में कई सुरक्षा विशेषताएं हैं जैसे कि 2डी बारकोड़स का सर्जन जिनसे डाक की साक्ष्य तलाशने में सहायता मिलती है। इन मशीनों से मदों की त्वरित फ्रैकिंग करने से डाकघरों की कार्य कुशलता में सुधार होगा तथा ग्राहकों के बारे में तैयार डाटा बेस इलैक्टिक फॉर्म में उपलब्ध होगा।
'परियोजना ऐरो'
डाक विभाग ने अप्रैल 2008 में 'प्रोजेक्ट ऐरो' नाम से गुणवत्ता सुधार परियोजना की भी शुरूआत की। इसमें डाकघरों के मूलभूत परिचालनों तथा इसके माहौल में व्यापक सुधार किया गया।
डाक विभाग ने सेवोत्म शिकायत सिटीजन्स चाटर्स बनाया। इसमें विभिन्न डाक उत्पादों तथा सेवाओं के वितरण मांनदण्ड निर्धारित किये गये हैं। सभी स्तरों पर लोक शिकायतों का तुरंत निपटारा करने तथा सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए निगरानी प्रणाली बनाई गई है। शिकायतों का निपटान करने के लिए केन्द्रीय लोक शिकायत निपटान तथा निगरानी प्रणाली (सीपीजीआरएएमएस) कार्यरत हैं।
ई-आईपीओ, ई-पोस्ट, एक्सप्रैस पार्सल पोस्ट जैसी नई सेवाएं शुरू की गई हैं। जिनसे न केवल नए राजस्व का रास्ता खुला है बल्कि डाकघरों की पहुंच का दायरा बढ़ा है। इनसे ग्राहकों को मूल्यवर्धित सेवाएं भी मिली है।
बाजार शेयर में बढ़ोत्तरी
प्राइवेट कोरियर की तुलना में डाक विभाग के मूल्यवर्धित सेवाओं का बाजार शेयर पिछले दो वर्षों में बढ़ा है
राजस्व में बढ़त
सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण डाक सेवाओं से राजस्व में हर वर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है तथा सरकार हर आगामी वर्ष के लिए लक्ष्यों में बढ़ोत्तरी कर रही है।
विभाग ने और अधिक राजस्व बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए हैं : -
डाक सेवाओं की गुणवत्ता में बढ़ावा देने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी आधुनिकीकरण परियोजना के अलावा मेल नेटवर्क आप्टिमाइजेशन परियोजना के तहत कई पहल की गई हैं।
लघु बचत नेटवर्क के तहत खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकाधिक व्यक्तियों तक पहुंच बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाये गये हैं। इसी प्रकार के अभियान ग्रामीणों के बीच जीवन बीमा/बचत के लिए पोस्टल लाइफ इंशोरेंस (पीएलआई) तथा ग्रामीण पोस्टल लाइफ बीमा (आरपीएलआई) चलाये गये हैं।
प्रत्येक पोस्टल सर्किल के राजस्व तथा खर्चों से संबंधित वित्तीय स्थिति की नियमित आधार पर समीक्षा की जाती है।
बाजार की मांग को देखते हुए पोस्टल उत्पादों की सेवा प्रणाली में सुधार और पुनर्गठन किया गया है।
सोमवार, 3 मार्च 2014
आदर्श आचार संहिता और लोकतंत्र
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र के आधार हैं। इसमें मतदाताओं के बीच अपनी नीतियों तथा कार्यक्रमों को रखने के लिए सभी उम्मीदवारों तथा सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर और बराबरी का स्तर प्रदान किया जाता है। इस संदर्भ में आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का उद्देश्य सभी राजनीतिक दलों के लिए बराबरी का समान स्तर उपलब्ध कराना प्रचार, अभियान को निष्पक्ष तथा स्वस्थ्य रखना, दलों के बीच झगड़ों तथा विवादों को टालना है। इसका उद्देश्य केन्द्र या राज्यों की सत्ताधारी पार्टी आम चुनाव में अनुचित लाभ लेने से सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग रोकना है। आदर्श आचार संहिता लोकतंत्र के लिए भारतीय निर्वाचन प्रणाली का प्रमुख योगदान है।
एमसीसी राजनीतिक दलों तथा विशेषकर उम्मीदवारों के लिए आचरण और व्यवहार का मानक है। इसकी विचित्रता यह है कि यह दस्तावेज राजनीतिक दलों की सहमति से अस्तित्व में आया और विकसित हुआ। 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता में यह बताया गया। कि क्या करें और क्या न करें। इस संहिता के तहत चुनाव सभाओं के संचालन जुलूसों, भाषणों, नारों, पोस्टर तथा पट्टियां आती हैं। (सीईसी-श्री के.वी.के. सुन्दरम्) 1962 के लोकसभा आम चुनावों में आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया तथा राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया कि वे राजनीतिक दलों द्वारा इस संहिता की स्वीकार्यता प्राप्त करें। (सीईसी-श्री के.वी.के. सुन्दरम्) 1962 के आम चुनाव के बाद प्राप्त रिपोर्ट यह दर्शाता है कि कमोबेश आचार संहिता का पालन किया गया। 1967 में लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में आचार संहिता का पालन हुआ। (सीईसी-श्री के.वी.के. सुन्दरम्)
आदर्श आचार संहिता का विकास तथा 1967 से इसका क्रियान्वयन
·1968 में निर्वाचन आयोग ने राज्य स्तर पर सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठकें की तथा स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए व्यवहार के न्यूनतम मानक के पालन संबंधी आचार संहिता का वितरण किया। (सीईसी- श्री एस.पी.सेन वर्मा)
·1971-72 में लोकसभा/विधानसभाओं के आम चुनावों में आयोग ने फिर आचार संहिता का वितरण किया। (सीईसी- श्री एस.पी.सेन वर्मा)
·1974 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं के आम चुनावों के समय उन राज्यों में आयोग ने राजनीतिक दलों को आचार संहिता जारी किया। आयोग ने यह सुझाव भी दिया कि जिला स्तर पर जिला कलेक्टर के नेतृत्व में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को सदस्य के रूप में शामिल कर समितियां गठित की जाएं ताकि आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर विचार किया जा सके तथा सभी दलों तथा उम्मीदवारों द्वारा संहिता के परिपालन को सुनिश्चित किया जा सके।
·1977 में लोकसभा के आम चुनाव के लिए राजनीतिक दलों के बीच संहिता का वितरण किया गया। (सीईसी- श्री टी.स्वामीनाथन)
·1979 में निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श कर आचार संहिता का दायरा बढाते हुए एक नया भाग जोड़ा जिसमें "सत्तारूढ़ दल" पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान हुआ ताकि सत्ताधारी दल अन्य पार्टियों तथा उम्मीदवारों की अपेक्षा अधिक लाभ उठाने के लिए शक्ति का दुरूपयोग न करे। (सीईसी- श्री एस.एल.शकधर)
·1991 में आचार संहिता को मजबूती प्रदान की गई और वर्तमान स्वरूप में इसे फिर से जारी किया गया। (सीईसी- श्री टी.एन.शेषन)
·वर्तमान आचार संहिता में राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों के सामान्य आचरण के लिए दिशानिर्देश (निजी जीवन पर कोई हमला नहीं, साम्प्रदायिक भावनाओं वाली कोई अपील नहीं, बैठकों में अनुशासन और शिष्टाचार, जुलूस, सत्तारूढ़ दल के लिए दिशानिर्देश- सरकारी मशीनरी तथा सुविधाओं का उपयोग चुनाव के लिए नहीं किया जाएगा, मंत्रियों तथा अन्य अधिकारियों द्वारा अनुदानों, नई योजनाओं आदि की घोषणा पर प्रतिबंध) है।
·मंत्रियों तथा सरकारी पद पर आसीन लोगों को सरकारी यात्रा के साथ चुनाव यात्रा को जोड़ने की अनुमति नहीं।
·सार्वजनिक कोष की कीमत पर विज्ञापनों के जारी करने पर पाबंदी।
·अनुदानों, नई योजनाओं/परियोजनाओं की घोषणा नहीं की जा सकती। आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले घोषित ऐसी योजनाएं जिनका क्रियान्वयन आरंभ नहीं हुआ है, उन्हें लम्बित स्थिति में रखने की आवश्यकता।
·ऐसे प्रतिबंधों के माध्यम से सत्ता में रहने के लाभ को रोका जाता है तथा बराबरी के आधार पर चुनाव लड़ने का अवसर उम्मीदवारों को प्रदान किया जाता है।
·आदर्श आचार संहिता को देश के शीर्ष न्यायालय से न्यायिक मान्यता मिली है। आदर्श आचार संहिता के प्रभाव में आने की तिथि को लेकर उत्पन्न विवाद पर भारत संघ बनाम हरबंस सिंह जलाल तथा अन्य [एसएलपी (सिविल) संख्या 22724-1997] में 26.04.2001 को उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि चुनाव तिथियों की घोषणा संबंधी निर्वाचन आयोग की प्रेस विज्ञप्ति या इस संबंध में वास्तविक अधिसूचना जारी होने की तिथि से आदर्श आचार संहिता लागू होगी। उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि आयोग द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के समय से आदर्श आचार संहिता लागू होगी। प्रेस विज्ञप्ति जारी होने के दो सप्ताह बाद अधिसूचना जारी की जाती है। उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय से आदर्श आचार संहिता के लागू होने की तिथि से जुड़ा विवाद हमेशा के लिए समाप्त हो गया। इस तरह आदर्श आचार संहिता चुनाव घोषणा की तिथि से चुनाव पूरे होने तक प्रभावी रहती है।
आचार संहिता को वैधानिक दर्जाः निर्वाचन आयोग की राय
कुछ हिस्सों में आदर्श आचार संहिता को वैधानिक दर्जा देने की बात की जाती है। लेकिन निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता को ऐसा दर्जा देने के पक्ष में नहीं है। निर्वाचन आयोग के अनुसार कानून की पुस्तक में आदर्श आचार संहिता को लाना केवल अनुत्पादक (प्रतिकूल) होगा। हमारे देश में निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सीमित अवधि में चुनाव कराये जाते हैं। सामान्यतः किसी राज्य में आम चुनाव निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने की तिथि से लगभग 45 दिनों में कराया जाता है। इस तरह आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन संबंधी मामलों को तेजी से निपटाने का महत्व है। यदि आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकने तथा उल्लंघनकर्ता के विरुद्ध चुनाव प्रक्रिया के दौरान सही समय से कार्रवाई नहीं की जाती तो आदर्श आचार संहिता का पूरा महत्व समाप्त हो जाएगा तथा उल्लंघनकर्ता उल्लंघनों से लाभ उठा सकेगा। आदर्श आचार संहिता को कानून में बदलने का अर्थ यह होगा कि कोई भी शिकायत पुलिस/मजिस्ट्रेट के पास पड़ी रहेगी। न्यायिक प्रक्रिया संबंधी जटिलताओं के कारण ऐसी शिकायतों पर निर्णय संभवतः चुनाव पूरा होने के बाद ही हो सकेगा।
आदर्श आचार संहिता विकास गतिविधियों में बाधक नहीं
अकसर यह शिकायत सुनने को मिलती है कि आदर्श आचार संहिता विकास गतिविधियों की राह में बाधा बनकर आ जाती है। लेकिन आदर्श आचार संहिता के सीमित अवधि में लागू किये जाने पर भी जारी विकास गतिविधियां रोकी नहीं जाती और उन्हें बिना किसी बाधा के आगे जारी रखने की अनुमति दी जाती है और ऐसी नई परियोजनाएं चुनाव पूरी होने तक टाल दी जाती हैं जो शुरू नहीं हुई हैं। ऐसे काम जिनके लिए अकारण प्रतीक्षा नहीं की जा सकती (आपदा की स्थिति में राहत कार्य आदि) उन्हें मंजूरी के लिए आयोग को भेजा जा सकता है।
रिट याचिका संख्या 1361-2012 (डॉ. नूतन ठाकुर बनाम भारत निर्वाचन आयोग) में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 16.02.2012 के निर्णय को यहां उद्धृत करना उपयुक्त होगाः
'चुनाव के बाद जन प्रतिनिधि पाँच वर्ष की अवधि के लिए अपना दायित्व निभाते हैं। विधानसभा या संसद के स्थगन या सदन के पहले भंग हो जाने की स्थिति को छोड़कर चुनाव जन प्रतिनिधियों के कार्यकाल के अंत में होते हैं। पद पर रहते हुए जन प्रतिनिधि का दायित्व है कि वह देश सेवा के लिए अपने दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी तथा निष्पक्षता से करे। यदि वह अपने कार्यकाल के दौरान दायित्व निर्वहन में सफल नहीं होता तो निर्वाचन अधिसूचना जारी होने के बाद लोगों को प्रलोभन देने या लोगों के तुष्टिकरण जैसे उसके कदम अनुचित व्यवहार के उदाहरण होंगे।'
रविवार, 2 मार्च 2014
लोकतंत्र में मतदाता जागरुकता अभियान का महत्व
“हम, भारत के नागरिक, लोकतंत्र में अक्षुष्ण आस्था रखते हुए शपथ लेते हैं कि हम अपने देश की लोकतांत्रिक परम्पराओं तथा स्वतंत्र, निष्पक्ष तथा शान्तिपूर्ण चुनाव की गरिमा बनाये रखेंगे तथा प्रत्येक चुनाव में निर्भयता तथा धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, भाषा या किसी प्रलोभन से प्रभावित हुए बिना मतदान करेंगे।”
यह शपथ है, जिसे पिछले तीन वर्षों के दौरान नये योग्य मतदाताओं में लोकप्रियता मिली है। इस शपथ ने चुनावों के प्रति युवा भारत की सोच बदल दी है। इसके लिए भारत निर्वाचन आयोग की चरणबद्ध मतदाता शिक्षा तथा निर्वाचक भागीदारी (एसवीईईपी) की पहल धन्यवाद की पात्र है। निर्वाचन आयोग की महत्वपूर्ण पहल के रूप में एसवीईईपी ने मतदान में मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए चुनाव प्रक्रिया के प्रत्येक पक्ष को जीवंत किया है। पिछले तीन वर्षों के दौरान मतदाता पंजीकरण, विशेषकर युवाओं में, 10-15 प्रतिशत से बढ़कर 30-35 प्रतिशत हो गया है और 2010 के बाद हुए लगभग सभी राज्य विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में मतदाता वोट डालने आये। इनमें युवाओं और महिलाओं की भागीदारी अधिक रही।
निर्वाचन प्रबंध प्रक्रिया के केन्द्र में मतदाता पंजीकरण तथा निर्वाचक शिक्षा हैं, लेकिन गुणवत्ता तथा मात्रा की दृष्टि से भारत में मतदाता भागीदारी आदर्श भागीदारी वाले लोकतंत्र से अभी भी दूर है। पंजीकरण, मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी)/पहचान प्रमाण, मतदान केन्द्र स्थान, ईवीएम उपयोग, चुनाव समय, आदर्श आचार संहिता में क्या करें/क्या न करें, उम्मीदवारों या उनके सहयोगियों द्वारा मतदाताओं के कमजोर वर्ग को प्रभावित करने के लिए धन/बाहुबल तथा शराब का उपयोग जैसे विषयों में मतदाता को क्या जानना चाहिए और वह वास्तविक रूप से क्या जानता है इसमें फर्क है। यह देखा गया है कि मतदाता जागरूकता अभियान हमेशा मतदाताओं को वास्तविक मत देने वाले के रूप में नहीं बदलता। मतदाता जागरूकता में वृद्धि के उद्देश्य को प्राप्त करने, वोट डालने वाले मतदाताओं की संख्य़ा बढाने के लिए निर्वाचन आयोग ने प्रणालीबद्ध मतदाता शिक्षा तथा निर्वाचक भागीदारी (एसवीईईपी) कार्यक्रम शुरू किया है ताकि मतदाता को सूचित, शिक्षित, प्रेरित किया जाए और उनकी मदद की जा सके और भारतीय लोकतंत्र को अधिक भागीदारी वाला तथा सार्थक बनाया जा सके।
प्रारंभ
भारत निर्वाचन आयोग ने 2010 में अपने हीरक जयंती समारोह में कम निर्वाचक जागृति तथा मतदाताओं के कम बाहर निकलने के विषय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए “मजबूत लोकतंत्र के लिए विशाल भागीदारी” को अपना थीम बनाया था। इसी वर्ष देश का मतदाता भागीदारी संबंधी सबसे बड़ा कार्यक्रम-एसवीईईपी, बिहार विधानसभा चुनावों में प्रारंभ हुआ। सरल शब्दों में एसवीईईपी नीति संबंधी पहल तथा गतिविधियों की श्रृंखला है, जिनका उद्देश्य निर्वाचन प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी बढ़ाना है। यह तब से सूचना में अंतर, प्रेरणा तथा मदद की कमियों को दूर करने तथा कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या बढ़ाने से जुटा है। 2009 के अंत में झारखंड के चुनावों में आईईसी (सूचना, शिक्षा तथा संचार) का उपयोग हुआ था और इसके बाद 2010 में बिहार विधानसभा चुनावों में चरणबद्ध मतदाता, शिक्षा तथा निर्वाचक भागीदारी (एसवीईईपी) कार्यक्रम आगे बढ़ाया गया और 2011 में तमिलनाडु, केरल, असम, पश्चिम बंगाल, संघ शासित प्रदेश पुड्डुचेरी के विधानसभा चुनाव में भी यह कार्यक्रम जारी रहा। यह पांच राज्यों-उत्तर प्रदेश, गोवा, पंजाब, उत्तराखण्ड तथा मणिपुर में जारी रहा तथा फिर हिमाचल प्रदेश के दो आम चुनाव में तथा 2012 में गुजरात में और 2013 में पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा, मेघालय तथा नगालैण्ड में जारी रहा।
अड़चनों का प्रकटीकरण
एसवीईईपी के हिस्से के रूप में मतदाता व्यवहार सर्वेक्षण कराये गये। इन सर्वेक्षणों में पंजीकरण में कमी, ईपीआईसी की दूसरी प्रति प्राप्त करने में समस्याएं, मतदाता सूची में नाम सुधारने तथा सूचना संबंधी विभिन्न कमियों तथा वोट देने के लिए कम संख्या में मतदाताओं के निकलने संबंधी निहित कारण सामने आये। सर्वेक्षणों ने कम निर्वाचक भागीदारी वाले निर्वाचक वर्गों का जन सांख्यिकी नक्शा तैयार करने की कोशिश की।
लक्षित प्रयास
मतदाता को निम्न बातों के बारे में जानना चाहिएः
· मतदाता पंजीकरण
· ईपीआईसी/पहचान प्रमाण
· मतदान केन्द्र स्थल
· ईवीएम उपयोग
· मतदान का समय
· आदर्श आचार संहिता के संबंध में क्या करें तथा क्या न करें
· उम्मीदवार या उनके सहयोगियों द्वारा मतदाता को प्रभावित करने के लिए धन, बाहुबल तथा शराब का इस्तेमाल
शिकायत कैसे दर्ज करें
यह देखा गया की मतदान न करने वालों में एक बड़ा हिस्सा युवाओं और महिलाओं का है। मतदाताओं के सभी वर्गों की भागीदारी बढ़ाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने सूचना तथा प्रेरणा में अंतर को पाटने का निर्णय लिया तथा साथ-साथ मतदाता सूची में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया आसान और सहज बनाने तथा मतदान के अनुभव को मतदाताओं के अनुरूप बनाने का काम किया। भारत निर्वाचन आयोग सृजनात्मक रूप से लोगों को निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल होने के लिए उत्साहित करने में जुटा है।
क्रियान्वयन
चरणबद्ध मतदाता शिक्षा तथा निर्वाचक भागीदारी इकाई वोट देने वाली जनता, सिविल सोसाइटी समूहों तथा मीडिया से निरंतर संवाद करने के अतिरिक्त नीति और ढ़ांचा तय करती है, नीतिगत प्रयास करती है और क्रियान्वयन पर निगरानी रखती है। निर्वाचन प्रक्रिया में लोगों को शामिल करने के लिए एसवीईईपी में सूचना, प्रेरणा तथा सहायता (आईएमएफ) जैसे अनेक कदम होते हैं, जिनसे प्रयास किया जाता है। इन कदमों में स्थिति विश्लेषण, व्यवस्थित नियोजन तथा लक्षित प्रयास को लागू करना है। ये स्थिति विश्लेषण, कार्यक्रम की मध्यावधि समीक्षा तथा निगरानी और अंतिम समीक्षा पर आधारित होते हैं। संचार संबंधी पहलों में मल्टी मीडिया तथा अंतर व्यक्तिक संचार, वास्तविक कार्यक्रम तथा लोगों/समुदाय को एकत्रित करने के लिए नई-नई गतिविधियों तथा मतदाता सहायता जैसे कदम शामिल हैं। लोगों में व्यावहारिक परिवर्तन लाने की जटिलताओं को महसूस करते हुए भारत निर्वाचन आयोग ने पूरी एसवीईईपी प्रक्रिया में सामाजिक सोच तथा सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण पर जोर दिया।
राज्य तथा जिला स्तर पर एसवीईईपी योजनाओं का निरूपण
भारत निर्वाचन आयोग ने राज्यस्तर पर कुछ आंतरिक संगठनात्मक परिवर्तनों की शुरूआत की तथा एसवीईईपी की सभी गतिविधियों को लागू करने में समन्वय के लिए राज्य तथा जिलास्तर पर कोर समूहों का गठन किया। पूरे वर्ष के लिए राज्यस्तर की योजनाएं तथा जिलास्तर की योजनाएं बनानी होती हैं और चुनाव अवधि के लिए गंभीर उप-योजनाएं बनती हैं। योजनाएं आयोग द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय ढांचे के अनुरूप होती हैं लेकिन प्रत्येक स्तर पर उचित लचीलेपन की अनुमति दी जाती है।
सहयोग
निर्वाचन आयोग ने 18-19 वर्ष के आयु वर्ग में नये मतदाताओं को जोड़ने के लिए शैक्षिक संस्थानों यथा एनवाईकेएस, एनएसएस, एनसीसी जैसे युवा संगठनों के साथ सहयोग किया। आयोग ने निर्वाचन प्रक्रिया के बारे में युवाओं तथा विद्यार्थियों के बीच और अधिक जागरूकता बढ़ाने तथा मतदाता पंजीकरण में उनसे सहायता मांगी। आयोग ने स्वास्थ्य, शिक्षा, डब्ल्यूसीडी, सहकारिता, कल्याण आदि जैसे केन्द्र तथा राज्य सरकारों के विभागों के साथ सहयोग किया, ताकि यह विभाग निर्वाचक शिक्षा तथा निर्वाचक तक पहुंच के लिए अपनी अवसंरचना तथा मानव शक्ति (फील्ड कर्मी) दे सकें। निर्वाचक भागीदारी के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने में सरकार तथा निजी मीडिया के साथ-साथ सिविल सोसाइटी तथा मान्य गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करने से मतदाता जागरूकता में मदद मिली।
2013 में भारत निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण (एनएलएमए) के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षऱ किए। इसके बाद से निर्वाचक साक्षरता भारत सरकार के साक्षऱ भारत कार्यक्रम का प्रमुख अंग बन गयी। भारत निर्वाचन आयोग तथा यूएनडीपी के बीच मतदाता शिक्षा के क्षेत्र में करार हुआ। 2013 दिसम्बर से कैंपस एमबस्डर बनाये गये जो कैंपस में विद्यार्थी होता है और आयोग के दूत के रूप में काम करता है तथा शैक्षिक परिसरों में एसवीईईपी कार्यक्रमों में सहायता देता है। आज भारत निर्वाचन आयोग के एसवीईईपी कार्यक्रम को समर्थन देने के लिए निजी मीडिया घराने तथा कॉरपोरेट आगे आ रहे हैं।
एसवीईईपी रणनीति के हिस्से के रूप में सहायता
एसवीईईपी के तहत पंजीकरण, मतदाता पहचान-पत्र जारी करने तथा चुनाव प्रक्रिया को मतदाता के लिए सुविधाजनक बनाने के तौर-तरीके सुझाने जैसे क्षेत्रों में मतदाताओं को सहायता देने के नये कदम उठाये गए हैं। इन प्रयासों में सभी जिलों में मतदाता हेल्पलाइन, मतदाता सूची में इंटरनेट तथा एसएमएस के जरिये नाम खोजने, मतदाता सहायता बूथ, आदर्श चुनाव केन्द्र ईवीएम से परिचित कराने संबंधी शिविरों, मतदाता पर्ची तथा पहचान-पत्र का दायरा बढ़ाने यानी ईपीआईसी के अलावा अन्य प्रमाणों को मतदान के लिए वैध बनाने जैसे कदम शामिल हैं।
राष्ट्रीय मतदाता दिवस
भारत निर्वाचन आयोग ने लोगों तक पहुंचने के उद्देश्य से 2011 में अपना स्थापना दिवस 25 जनवरी, को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाने की प्रथा शुरू की। इसे एसवीईईपी के विभिन्न प्रयासों में महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को पूर्ण वास्तविक रूप देने के लिए मतदाताओं की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है। युवा पीढ़ी को जिम्मेदार नागरिक का भाव देने तथा उन्हें मताधिकार के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारत निर्वाचन आयोग राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाने के रूप में आठ लाख से अधिक मतदान केन्द्रों में नये योग्य पंजीकृत मतदाताओं की सहायता करता है। उन्हें फोटो युक्त पहचान-पत्र तथा “गौरवान्वित मतदाता-मतदान को तैयार” नारा लिखा बैच दिया जाता है। नये पंजीकृत मतदाता चुनाव में भाग लेकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने की शपथ भी लेते हैं। 2011 से पूरे देश में उत्साह के साथ राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है और लोगों तक पहुंचने के लिए गोष्ठियां, साइकिल रैली, मानव श्रृंखला, लोककला कार्यक्रम, मिनी मैराथन, स्पर्धा तथा जागरूकता संबंधी गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं।
अन्य कदम
भारत निर्वाचन आयोग ने जनता के साथ विश्वसनीय सम्पर्क स्थापित करने के लिए लोकप्रिय छवि के लोगों की क्षमता की पहचान की और जागरूकता कार्यक्रमों को तेजी देने, तथा मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए राष्ट्रीय तथा राज्यस्तर पर लोकप्रिय छवि वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों की नियुक्ति की। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम, एमएस धोनी, साइना नेहवाल तथा एमसी मेरीकॉम राष्ट्रीय प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं। इनके अतिरिक्त राज्यों में ऐसे व्यक्तित्व हैं जो एसवीईईपी के प्रयासों में शामिल हैं।
मीडिया तथा गैर मीडिया इकाइयां, लोक सांस्कृतिक समूहों, केबल नेटवर्क, मैराथन, रैलियां, मानव श्रृंखलाएं, प्रदर्शनी, होर्डिंग्स, पोस्टर, पर्चे, सिनेमा स्लाइड, नुक्कड़ नाटक तथा मैजिक शो का उपयोग किया जाता है। भारत निर्वाचन आयोग को अनेक सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी तथा मीडिया निर्वाचक प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए समर्थन दे रहे हैं। कुछ राज्यों में आयोग ने लोगों तक संदेश ले जाने के लिए स्वयं सेवियों के दस्ते को प्रशिक्षत किया है।
सूचना आपकी उंगलियों पर
आधुनिक टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा योगदान लोगों की जिंदगी तक इंटरनेट की पहुंच है। भारत निर्वाचन आयोग ने बदलते समय के साथ रहने के लिए अपनी वेबसाइट को नया रूप दिया, ताकि बिना किसी बाधा के नागरिकों को सभी तरह की सूचना और सेवाएं दी जा सकें। जिला तथा राज्य स्तर पर मतदाताओं की जागरूकता बढ़ाने तथा मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। अधिकतर राज्यों के मुख्य निर्वाचन कार्यालयों के अपने फेस बुक पेज हैं, ताकि टेक्नोलॉजी प्रेमी युवा मतदाताओं तक पहुंचा जा सके। मतदाता का ऑन लाइन पंजीकरण भारत में एकमात्र प्रणाली है, जहां कोई व्यक्ति फोटो युक्त मतदाता पहचान-पत्र सरकारी कार्यालय गए बिना पा सकता है। वेबसाइट पर ऑन लाइन जनसांख्यिक ब्यौरा बदलने तथा आवेदन की निगरानी जैसी सुविधाएं भी प्राप्त हैं। ऑन लाइन प्रणाली की सफलता विभिन्न राज्यों से मिले आंकड़े दिखा रहे हैं। केरल में लगभग 40 प्रतिशत नये मतदाता तथा दिल्ली, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक में 30 प्रतिशत मतदाताओं ने इस प्रणाली के जरिए फोटो युक्त मतदाता पहचान-पत्र प्राप्त किये।
एसवीईईपी- एक नजर में
· मतदाता व्यवहार सर्वेक्षण
· राज्य तथा जिला स्तर पर एसबीईईपी योजनाओं का निरूपण
· राज्य स्तर के लिए कर्मी
· राज्य तथा जिला स्तर पर कोर समूह
· सरकारी विभागों के साथ सहयोग
· सीएसओ, मीडिया तथा संगठनों से सहयोग
· राष्ट्रीय मतदाता दिवस
राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर प्रतिष्ठित लोगों की पहचान
भविष्य का मार्ग किसी भी मतदाता शिक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों को उपयुक्त सूचना उपलब्ध कराना है। यदि अभियान में सार्वभौमिक रूप से मतदाताओं को कवर किया जाता है, तो यह लोकतंत्र के लिए बड़ी सफलता होगी। एसवीईईपी के बैनर तले मैराथन, रैलियां, जुलूसों, क्विज प्रतियोगिताएं, फिल्म प्रदर्शन, नुक्कड़ नाटक, एसएमएस तथा हेल्प लाइनों के माध्यम से पहुंच के प्रयास किये जाते हैं, ताकि मतदान को प्रोत्साहित किया जाए। युवाओं के अलगाव, शहरी उदासीनता तथा मतदान के बारे में धीमी गति से नैतिक प्रचार जैसी खाइयों को एनआरआई पंजीकरण, मतदाताओं की कम भागीदारी के लिए सेवा जैसी एसवीईईपी की गतिविधियों से पाटा जा रहा है। भारत निर्वाचन आयोग व्यक्ति की मत की शक्ति तथा उसकी अधिकारिता के बीच गहरे आपसी संबंध को जानने के लिए लगातार कार्यक्रम बना रहा है।
शनिवार, 1 मार्च 2014
अंगुली पर पक्की रोशनाई और गौरव का अहसास
पक्की रोशनाई मतदाता की स्याही के रूप में जानी जाती है। चुनाव के दौरान इसे मतदाता की अंगुली पर लगाया जाता है, ताकि धोखाधड़ी, अनेक बार मतदान करने तथा गलत व्यवहारों को रोका जा सके। यह कोई सामान्य स्याही नहीं है। एक बार अंगुली पर लगाने के बाद कुछ महीनों तक यह बनी रहती है।
इस विशेष पक्की रोशनाई को बनाने का श्रेय कर्नाटक सरकार के प्रतिष्ठान मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) को जाता है। यह कंपनी भारत तथा अनेक विदेशी देशों को रोशनाई की सप्लाई करती है।
भारत में आम चुनाव कराना तथा चुनाव की प्रक्रिया पूरी करना सरकार तथा निर्वाचन आयोग के लिए बड़ी चुनौती रही है। चुनाव संपन्न कराने तथा जाली मतदान को समाप्त करने के लिए निर्वाचन आयोग ने अंगुली पर पक्की रोशनाई लगाने का उपाय किया। यह रोशनाई मतदाता के बायं हाथ की अंगुली के नाखून पर लगाई जाती है। यह रोशनाई रसायन, डिटर्जेन्ट या तेल से मिटाई नहीं जा सकती और कुछ महीनों तक बनी रहती है। मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) ने भारत निर्वाचन आयोग, राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला तथा राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के सहयोग से इस पक्की रोशनाई के उत्पादन तथा गुणवत्ता संपन्न सप्लाई में विशेषज्ञता प्राप्त की। भारत में इस तरह की रोशनाई की सप्लाई करने वाली यह एकमात्र अधिकृत आपूर्तिकर्ता है। कंपनी को 1962 से एनआरडीसी, नई दिल्ली द्वारा विशेष लाइसेंस दिया गया है।
मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) की स्थापना 1937 में मैसूर के तत्कालीन महाराजा स्वर्गीय नलवाड़ी कृष्णराज ओडियार द्वारा की गई। तब इसका नाम मैसूर लैक एंड पेंट वर्कस लिमिटेड था। 1989 में इसका फिर से नामकरण मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) किया गया। 1962 में निर्वाचन आयोग ने केन्द्रीय विधि मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला तथा राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के सहयोग से मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड के साथ भारत के सभी राज्यों में संसद, विधानसभा तथा अन्य आम चुनावों के लिए पक्की रोशनाई की सप्लाई करने का करार किया। यह कंपनी 1962 के आम चुनाव के बाद से भारत में चुनाव के लिए पक्की रोशनाई की सप्लाई कर रही है।
भारतीय चुनाव के लिए अमिट पक्की रोशनाई सप्लाई करने के अतिरिक्त मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड 1976 से विश्व के 28 देशों को रोशनाई निर्यात कर रही है। इन देशों में तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, नेपाल, घाना, पापूआ न्यू गिनी, बुरकीना फासो, कनाडा, टोबो, सियेरा लियोन, मलेशिया तथा कंबोडिया आदि शामिल हैं।
पक्की रोशनाई के बारे में दिलचस्प तथ्य
2009 के आम चुनाव में एमपीवीएल ने 10 एमएल आकार की लगभग 20 लाख शीशियों की आपूर्ति की। केवल उत्तर प्रदेश में 2.88 लाख शीशियों का उपयोग हुआ।
1.02.2006 से यह रोशनाई मतदाता के बायं हाथ की तर्जनी पर ऊपर से नीचे एक रेखा के रूप में लगाई जाती है। पहले यह रोशनाई नाखून और त्वचा के मिलने वाले स्थान पर लगाई जाती थी।
निर्वाचन निशान में सिल्वर नाइट्रेड होता है जो अल्ट्रा वायलट प्रकाश पड़ने पर त्वचा पर दाग छोड़ता है। इस दाग को धोना असंभव है और यह बाहरी त्वचा के उभरने पर ही खत्म होता है। इसमें सिल्वर नाइट्रेड की मात्रा 7 से 25 प्रतिशत होती है।
सामन्यत: पक्की रोशनाई बैंगनी होती है। 2005 में सूरीनाम ने विधायी चुनाव में नारंगी रंग का इस्तेमाल किया था।
छद्म मतदान की स्थिति में छद्म मतदाता के बायें हाथ की मध्यमा पर रोशनाई लगाई जाती है।
अतिशा दीपांकर ज्ञानश्री का जीवन आदर्श का प्रतीक
महामहिम दलाई लामा के आध्यात्मिक पिता श्री अतिशा दीपांकर ज्ञानश्री का जन्म बंगाल के बिक्रमपुर क्षेत्र के वज्रयोगिनी गांव में, जो अब बांग्लादेश में स्थित है, वर्ष 982 में हुआ था। वे 10वीं- 11वीं सदी के एक महान संत और दार्शनिक थे, जो ज्ञान प्रणालियों के प्रचार - प्रसार के लिए विदेश जाने वाले महान भारतीय शिक्षक भी थे। पिछले सदियों में उन्हें भारत में लगभग भुला दिया गया है, लेकिन जिन देशों में बौद्ध धर्म मौजूद है उनमें उन्हें लगभग 1000 वर्षों से एक महान व्यक्ति के रूप में पूजनीय माना जाता है। वे शांति, दया, मानवता, सद्भाव, आत्म-बलिदान और मैत्री के प्रतीक माने जाते हैं, जिन्होंने ओदनरापुरी, विक्रमशिला, सोमापुरी, नालंदा और अधिकांश विश्वविद्यालयों और मठ परिसरों में धर्म के प्रचार के लिए अपना समस्त जीवन समर्पित किया। उन्होंने बौद्ध धर्म की नींव डालकर बौद्ध धर्म के ज्ञान और बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान के समावेश में अपनी साधुता से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके उपदेशों ने भिक्षुओं के साथ-साथ तिब्बत के सामान्य जनों के जीवन में नैतिक शुद्धता, आत्म-बलिदान, चरित्र श्रेष्ठता और आदर्शवाद, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में क्रांति लाने में उत्प्रेरक का काम किया। तिब्बत की जनता और राजाओं ने भ्रष्टाचार और पतन की स्थितियों को दूर करने और सुधार लाने के लिए उन्हें आमंत्रित करने हेतु बलिदान दिये।
उन्होंने बौद्ध धर्म के थेरावड़ा महायान, और वज्रयान मतों पर अनुदेशों को अपनाया, उसका प्रचार किया और उनमें प्रवीणता प्राप्त करने के साथ-साथ वैष्णववाद, शैववाद और तांत्रिकवाद और गैर- बौद्धिक मतों सहित संगीत और तर्क शास्त्र सहित 64 प्रकार की कलाओं का भी अध्ययन किया और केवल 22 वर्ष की उम्र में इनमें विद्वता प्राप्त की। उस समय उन्हें भारत में बौद्ध धर्म की सभी परंपराओं में बहुत विद्वान माना जाता था।
31 वर्ष की उम्र में उन्होंने प्रसिद्ध सुवर्णद्विपी धर्मकीर्ति के सानिध्य में अध्ययन के लिए सुमात्रा की खतरनाक यात्रा की थी। देवी तारा उनकी मार्गदर्शक करने वाली आत्मा थी, जो उनके जीवन के अंत तक उनके साथ बनी रही। अतिशा सुमात्रा में 12 वर्ष तक रहे और 10 वर्ष से अधिक के गहन प्रशिक्षण के बाद वे मगध वापस आए। उन्हें बौद्ध विश्वविद्यालय, विक्रमसिला में कोषाध्यक्ष, या मठाधीश नियुक्त किया गया था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना बंगाल के राजा धर्मपाल ने की थी, जो प्रसिद्ध के शिखर तक पहुंच गया। 11 सदी में तिब्बत के राजा ब्यांग चुग ओड ने उन्हें आमंत्रित किया, क्योंकि तिब्बत में बौद्ध धर्म की परंपरा राजा लांग-दास- मा-के क्रूर शासन के कारण लगभग समाप्त हो गई थी। तिब्बत बौद्धिक परंपराओं में पिछले 10 सदियों से वह महत्वपूर्ण व्यक्तित्व रहे हैं, क्योंकि उन्होंने तिब्बत में महायान परंपरा को इसकी श्रेष्ठता के साथ ज्ञान के पथ को आलोकित करने के लिए एक दीपक की तरह स्थापित किया है। उन्होंने बौद्धिचित के माध्यम से मन के प्रशिक्षण के रूप में बौद्धिक परंपराओं को पुनर्जीवित, परिष्कृत, क्रमबद्ध और संकलित किया है।
अतिशा ने 200 से अधिक संस्कृत पुस्तकों को तिब्बती भाषा में लिखा, अनुवाद किया और संपादन किया। उन्होंने बौद्धिक धर्मग्रंथों, चिकित्सा विज्ञान और तकनीकी विज्ञान पर तिब्बती भाषा में अनेक पुस्तकें भी लिखीं।
अतिशा ने लहासा के निकट नेतांग शहर में अपने जीवन के 9 वर्ष व्यतीत किेये, जहां उन्होंने संस्कृत और तिब्बती भाषाओं में लिखे महत्वपूर्ण संग्रहों वाली तिब्बती पुस्तकालय की खोज की। लहासा के निकट एक गांव में 72 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया। नेतांग शहर में उनके स्थाई घर के पास उनकी समाधि बनाई गई। उनके परम शिष्य द्रोमटोम्पा जो उनके प्रमुख शिष्य भी थे, उनकी विरासत को संभाला जो बाद में बौद्ध धर्म की कदाम्पा परम्परा के रूप में विख्यात हुए। इस परम्परा को बाद में गेलुग परम्परा के संस्थापक तिब्बती शिक्षक सोम-खा-पा ने पुनर्जीवित किया। अतिशा की शिक्षाओं ने मठ परम्परा के लिए बहुमूल्य योगदान किया और एक सहस्त्र वर्ष पूर्व समुदायों की नींव रखी। अतिशा के जीवन और पवित्रता के अज्ञात पहलुओं के बारे में अनुसंधान, ध्यान और उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए वर्तमान काल की प्रणालियों में वृद्धि करना तथा भारतीय इतिहास के विस्मृत पृष्ठ को लिखना आवश्यक है। आज विश्व प्रौद्योगिकी के विकास, लोभ, भूख और हिंसा में बढ़ोतरी से ग्रस्त है। मानवीय मूल्य और सामाजिक दायित्व अपना स्थान खो रहे हैं। सदियों की खामोशी के बाद भारत एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और प्रदर्शनी के द्वारा उन क्षणों के निमित्त यह आयोजन कर रहा है, जब वे अतिशा, दीपेन्द्र, ज्ञानश्री अपने जीवन का बलिदान देते हुए बर्फीले देश में गये थे। अतिशा के प्रमुख शिष्य ने कदाम्पा संप्रदाय की स्थापना की थी, जो बाद में दलाई लामाओं का इतिहास गेलुक्पा बन गया। सोंगकप्पा के परम विशिष्ट शिष्य पहले दलाई लामा 'जेन्डुनड्रुप' अतिशा के अनुयायी थे। उन्होंने अनेक भारतीय मठों में अध्ययन किया और वह इंडोनेशिया गये, जहां अध्ययन के लिए उन्होंने खतरनाक यात्रा की तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विश्व के प्रख्यात अध्यापक धर्मकीर्ति के नेतृत्व अध्ययन किया तथा वे इसी विश्वविद्यालय में कोषाध्यक्ष/मठाधीश के रूप में लंबे समय तक कार्यरत रहे। वे नेपाल के रास्ते तिब्बत गए तथा पश्चिमी और केन्द्रीय तिब्बत (चीन) के कई मठों और मंदिरों में भी उन्होंने निवास किया। इन सभी स्थानों से प्राप्त फोटो प्रलेखनों को भी प्रदर्शित किया गया है। जिन मठों और मंदिरों का उन्होंने भ्रमण किया, जहां वे रहे, जहां उन्होंने उपदेश दिये और संस्कृत के सूत्रों का जनता की भाषा में पाठ किया। वहां उनकी स्मृति और स्मृति चिन्ह संरक्षित हैं। मन रूपी बंजर भूमि में उनकी दैविक दृष्टि आज भी पल्लवित हो रही है। आज मनोहर मठों में मन की मरू भूमि से गुजरती हुई ज्ञान रूपी पवित्र धारा बह रही है। दूरदराज के विभिन्न विद्वानों, पुरातत्वविदों, खोजकर्ताओं और आध्यात्मिक नेताओं से प्राप्त प्रलेखन योगदान ने अतिशा की घर वापसी की है। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और प्रदर्शनी में शांति, कल्याण, प्यार और बलिदान के प्रतीक अतिशा के बारे में प्रदर्शन किया गया है।
उन्होंने उपाय की एकता परिज्ञान तथा नागार्जुन, चन्द्रकीर्ति से जुड़े सार्वभौमिक मुक्ति की 6 परमिताओं-दान पुण्य, ज्ञान, प्रयास, शांति और योग के बारे में उपदेश दिये हैं। इसमें से पांच अतिशा के अनुसार ही हैं, जिनका उपयोग करके मनुष्य अपना बौद्धिक विकास कर सकता है। एक सच्चे बौद्ध के लिए चरित्र विकास सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने लोगों को ज्ञान की स्पष्ट और प्रगतिशील राह दिखाई है।
इंदिरा गांधी और जनजातीय उत्थान
भारत में अनेक संस्कृतियों और जातियों के बावजूद विविधता में एकता बनी रहने के परिणामस्वरूप राष्ट्र के रूप में इसका सदैव सम्मान बना रहा है । जनजातियां हमारे देश की आवश्यक अंग हैं । हमारे कुछ राष्ट्रीय नेताओं ने जनजातियों के उत्थान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है । पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इनमें से एक है, जो देश के क्षितिज पर एक महान व्यक्ति के रूप में उभरीं । उन्हें जनजातियों से विशेष प्यार था क्योंकि वे लोग उन्हें बहुत सीधे, खुले मन वाले और सच्चे लगते थे । इसीलिए वे हमेशा जनजातियों का विकास चाहती थीं ।
विश्वास से भरे व्यक्तित्व, सपनों भरी आंखें और प्रशासनिक तथा विकासात्मक कार्यों में उनके प्रमुख चिंतन में जनजातियां शामिल थीं और सरकारी नीतियों तथा कार्यक्रमों पर विचार करते समय वे जनजातियों को सदैव सम्मिलित करती थीं । इंदिरा गांधी के प्रसिध्द 20 सूत्री कार्यक्रम पर अमल करते समय 1974-75 में इन विभिन्न पहलों को शामिल किया गया ।
जनजातियों को सहायता देने की उनकी इच्छा देश के प्रथम प्रधानमंत्री और उनके पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू से विरासत में मिली थी । उन्हीं की तरह वह भी उदार, खुले विचारों वाली तथा समस्याओं को हल करते समय दूरदर्शितापूर्ण रहती थीं ।
पं0 नेहरू ने नगालैंड को राज्य का दर्जा दिया था तो इंदिरा ने मणिपुर और मेघालय को राज्य का दर्जा दिया और तत्कालीन केन्द्रशासित प्रदेशों मिजोरम और अरूणाचल प्रदेश को उदारतापूर्वक विकास-धन प्रदान किया ।
जनजातियों के साथ उनका भावनात्मक संबंध था और जनजातीय जीवन का जो अनुभव उन्होंने हासिल किया, वह मात्र राष्ट्रीय पूंजी की सुविधाओं के लिए नहीं था । बल्कि उन्होंने उन इलाकों का व्यापक रूप से दौरा किया और उनकी झोपड़ियों में जा-जाकर उनके साथ बातचीत की और यहां तक कि अपने मान-सम्मान की परवाह किए बिना जनजातिय लड़कियों के साथ मिलजुलकर नृत्य किया । जनजातीय लोगों ने भी उनमें अपने मित्र और मार्गदर्शक की छवि पाई । इंदिरा गांधी के प्रति उन्होंने भी सम्मान व्यक्त करते हुए अपने नेता के प्रति विश्वास और प्यार प्रदर्शित किया, जो प्राय: चुनावों के दौरान उनकी पार्टी उम्मीदवारों के लिए बड़े-बड़े जनादेशों में बदल जाता था।
इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि उनकी जयंती के अवसर पर उत्तर-पूर्व समेत अन्य जनजातीय क्षेत्रों के लोगों ने आत्म-विश्वास निर्माण करने के कार्य में इंदिरा गांधी की गहन निष्ठा को याद किया । उसके तात्कालिक लाभ भी हुआ । मणिपुर और मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला । 1970 के प्रारंभिक वर्षों के दौरान उनके क्षेत्र में यह काल अनेक नवीनताओं को लेकर आया । जो क्षेत्र, इससे पहले हिंसा और जनजातीय संघर्षों से जूझ रहा था, उसे लोग प्यार से सात बहनों (सेवन सिस्टर्स) के नाम से जानने-पुकारने लगे ।
जनजातियों की समस्याओं को समाप्त करने के लिए इंदिरा गांधी की मार्ग-निर्देशक नीति ने सामयिक व्यवस्था को ऐसे समय अनेक प्रमुख बिंदु प्रदान किए जबकि देश के विभिन्न भागों में नक्सलवादियों की हिंसक कार्रवाइयां गंभीर चुनौतियां पैदा कर रही थीं ।
इसी तरह उनका मुख्य ध्यान देश के अन्य भागों में जनजातीय समाजों के संपन्न लोगों की ओर भी गया । नवें दशक के अंतिम वर्षों के दौरान जनजातीय मामलों के मंत्रालय का सृजन उनकी दूरदर्शिता का एक निश्चित संकेत है । यह मंत्रालय भारतीय समाज के सबसे कम सुविधा प्राप्त वर्ग अनुसूचित जनजाति के समेकित सामाजिक-आर्थिक विकास की ओर और अधिक ध्यान केन्द्रित करने के उद्देश्य से समन्वित और योजनाबध्द तरीके से कायम किया गया था
इंदिरा गांधी ने जनजातियों के शिक्षा को उचित रूप से प्राथमिकता दी थी । इस तथ्य के मद्देनजर तो यह और भी अधिक सराहनीय था कि उन्होंने पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय (एनईएचयू)की स्थापना में व्यक्तिगत पहल की । इस विश्वविद्यालय का मुख्यालय मेघालय की राजधानी शिलांग में है । दशकों से यह विश्वविद्यालय मिजोरम, मेघालय और नगालैंड तीनों राज्यों में शिक्षा का प्रसार कर रहा है । श्रीमती गांधी की राय थी कि सोद्देश्य शिक्षा से आदिवासियों को यह समझने में मदद मिलेगी कि व्यक्तिगत लाभ के लिए क्या चीज़ आवश्यक है ।
इदिंरा जी परंपरा और संस्कृति के महत्त्व को भी जानती थी तथा उनका मानना था कि अपनी समृध्द सांस्कृतिक परम्परा से लोग बहुत सी बातें सीखेंगे । उन्होंने हमेशा ऐसे आधुनिक भारत का सपना देखा जहां विकास की समग्र परिदृश्य में जनजातियों की पर्याप्त भूमिका सुनिश्चित की जा सके । वे कभी नहीं चाहती थीं कि जनजातियां अपनी सरलता और सांस्कृतिक विरासत का परित्याग कर दें ।
नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री और हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल होकिशे सेमा जैसे उनके दौर के अनेक जनजातीय नेताओं के अनुसार इंदिराजी ने न सिर्फ जनजातीय संस्कृति और उनके जीने के ढंग में विशेष दिलचस्पी ली बल्कि उनसे प्रेरणा भी ली । इंदिरा गांधी ने जनजातियों के सपने साकार करने के लिए उन्हें बेहतर जगत की दृष्टि और दिशा प्रदान की ।
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