मेक्सिको के कानकुन शहर में दो सप्ताह तक चले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में तीखे मतभेदों के बावजूद अंतत: एक सर्वमान्य समझौता हो ही गया। संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में हाल ही में सम्पन्न हुए इस समझौते का लाभ भारत जैसे विकासशील देशों को किस प्रकार और किस सीमा तक मिल सकता है, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। कानकुन सम्मेलन के दौरान वास्तव में विकासशील देशों की घेराबंदी करने की ही कोशिश हुई है। यह ठीक है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर इस समझौते को आगे की दिशा में एक सार्थक और सकारात्मक कदम कहा जा सकता है। कोपेनहेगन के अनुभव के कारण यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि कानकुन में भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा, लेकिन संतोष की बात है कि सम्मेलन की समाप्ति एक आम सहमति के साथ हुई।
इस सम्मेलन में दो ऐसे निर्णय हुए जिन्हें कानकुन की उपलब्धि कहा जा सकता है। जब भी कार्बन गैसों के उत्सर्जन में कटौती का मुद्दा उठा, विकासशील देशों की यह मांग रही कि इसके लिए उन्हें वित्तीय सहायता दी जाये। साथ ही उनकी मांग रही है कि विकसित देश उन्हें स्वच्छ तकनीक मुहैया कराएं। कानकुन में विकसित देश इस बात के लिए राजी हो गये हैं। उन्होंने विकासशील देशों की सहायता के लिए एक खरब डॉलर का कोष बनाने की रजामंदी दे दी है। यह कोष कब तक बनाया जायेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। वे हरित अर्थात स्वच्छ तकनीक उपलब्ध कराने के लिए भी सहमत हुए हैं। परंतु इसके साथ सबसे बड़ा पेच यह है कि इसे बौद्धिक संपदा अधिकार के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है। यानी इस तकनीक को हासिल करने के लिए विकासशील देशों को भारी भरकम शुल्क चुकाना होगा। इसके साथ ही, निर्धन देशों में वन संपदा की अंधाधुंध कटाई को रोकने के उपायों को भी समझौते में शामिल किया गया है। एक विशेष समिति जलवायु संरक्षण योजना के क्रियान्वयन में लगे देशों की सहायता करेगी। यह समिति उत्सर्जन में आई कमी का हिसाब किताब भी रखेगी। वहीं विकासशील देशों की यह शर्त भी मान ली गई है कि उत्सर्जन कटौती की अंतररष्ट्रीय निगरानी तभी संभव हो पायेगी जब कटौती के एवज में विकसित देश अधिक सहायता मुहैया करायेंगे। इससे पहले भारत और चीन समेत कई देश इसका विरोध करते आ रहे थे और इस शर्त को संदेह की दृष्टि से देखते थे। इस समझौते को लेकर एक अहम प्रश्न यह उठाया जा रहा है कि कानकुन सम्मेलन के समझौते का क्रियान्वयन क्या अंतरराष्ट्रीय रूप से बाध्य होगा?
सम्मेलन में सबसे विवादास्पद मुद्दा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने का ही था। प्रारंभ से ही स्पष्ट था कि इस पर आम राय नहीं बन सकती। एक ओर जहां जापान और रूस जैसे देश क्योटो संधि से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर विकासशील देशों को बाध्यकारी समझौता मंजूर नहीं था। केवल द्वीपीय देश ही इस प्रयास में लगे थे कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती का ऐसा कोई फार्मूला तैयार किया जाये जिसको मानना सभी के लिए जरूरी हो। धरती के तापमान में वृद्धि से सबसे अधिक खतरा भी इन्हीं देशों को है। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से इनके अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है। द्वीपीय देशों की नाराजगी मोल लेने की हद तक जाना कोई बुद्धिमानी नहीं होगी, यही सोचकर बेसिक समूह (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत एवं चीन) के दो सदस्य ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका लचीला रूख दिखा रहे थे, लिहाजा भारत ने भी यह बात मान ली और समानता के आधार पर फार्मूला तय किये जाने की अपनी मांग छोड़ दी। इस तरह विकसित और विकासशील देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में एक निश्चित अवधि के भीतर कटौती की जरूरत मान ली है। इसीलिए कानकुन सम्मेलन को कोपेनहेगन सम्मेलन से बेहतर नतीजा देने वाला सम्मेलन माना जाता है।
कानकुन सम्मेलन में भारत की भूमिका काफी रचनात्मक रही। भारत के पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश ने सम्मेलन में जो भूमिका निभाई, उसकी सराहना जर्मनी जैसे उन्नत देश और मालदीव जैसे द्वीपीय देशों ने भी की है। जर्मनी की चांसलर सुश्री एंगेला मर्केल ने जहां श्री रमेश की रचनात्मक भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि उन जैसे लोगों के योगदान के कारण ही ‘कानकुन’ विफल नहीं हो सका, वहीं मालदीव के पर्यावरण मंत्री श्री मोहम्मद असलम ने कहा कि श्री रमेश ने विकसित और विकासशील देशों के बीच खाईं को पाटने में अहम भूमिका निभाई है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री श्री रमेश ने समझौते को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा है कि इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के आगे के रास्ते खुल गये हैं। उन्होंने कहा कि कानकुन में सभी हारे और सभी जीते। समझौते में ऐसी कई बातें हैं जिनके बारे में भारत समेत कई देशों को आपत्तियां भी हैं, फिर भी उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले वर्ष डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में होने वाले सम्मेलन तक अधिकांश मुद्दों को हल कर लिया जायेगा।
कानकुन सम्मेलन अपेक्षाओं पर भले ही खरा न उतरा हो, परंतु नाकाम होने से बच गया, तो इसका बहुत कुछ श्रेय मेजवान देश की विदेश मंत्री सुश्री पेट्रीशिया एस्पीनोसा को भी जाता है। हरित कोष और हरित तकनीक की मदद के विषय पर विकसित देशों को मनाने की उनकी कोशिशें अंतत: रंग लाईं और अमेरिका, जापान तथा रूस के शुरूआती नकारात्मक रूख के बावजूद कानकुन में सहमति का दायरा बढ़ सका। इसीलिए यह उम्मीद जगी है कि अगले वर्ष इसी महीने जब डरबन में जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होगा, तब ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों का नकारात्मक रवैया समाप्त हो जायेगा। वास्तव में जलवायु परिवर्तन के खतरनाक परिणामों से बचने के लिए दोनों ओर से ईमानदार कोशिश की जरूरत है।
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रविवार, 23 जनवरी 2011
संगीतकारों की स्मृति में डाक टिकट
तमिलनाडु में मरगज़ी का महीना (दिसम्बर-जनबरी) एक ऐसा समय होता है जब जलवायु अपेक्षाकृत काफी ठंडी और आरामदेह होती है। तमिल भाषा के शास्त्रीय ग्रंथ थिरूवेमपावई में भगवान शंकर की प्रशंसा में श्लोक भरे पड़े हैं, जिनके दैवी नृत्य में ऐसी हलचल पैदा करने की शक्ति है जिससे समूचा ब्रह्मांड जीवित हो उठता है। इस ग्रंथ में शुद्ध तमिल भाषा में लिखा है कि मरगज़ी माह का अर्द्धचन्द्र ऐसी शुभरात्रि में अवतरित होता है जब समूचे बातावरण में कला, मेधा और सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञता व्याप्त होती है- ‘मरगज़ी थिंगल मथी निराइन्दा नन्नल’!
मरगज़ी का समय मधुर संगीत, जीवन्त नृत्यों और सभी प्रकार के कलारूपों का होता है। प्रसिद्ध संगीत अकादमी सहित चेन्नई की विभिन्न संगीत संस्थाएं इस अवसर पर कर्नाटक संगीत और नृत्य के अपने वार्षिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं। शास्त्रीय कर्नाटक संगीत और नृत्य के इन प्रतिष्ठित कार्यक्रमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है और यह समय चेन्नई और उसके आसपास के इलाकों में पर्यटन मौसम के रूप में जाना जाता है।
स्मारक टिकट
इस मौसम की स्मृति में संचार मंत्रालय के डाक विभाग ने तीन डाक टिकट जारी किये हैं, जिनमें कर्नाटक संगीत के महान कलाकारों के चित्र अंकित हैं। ये डाक टिकट 3 दिसम्बर, 2010 को जारी किये गये। जिन संगीतकारों की याद में ये टिकट जारी किये गये हैं, वे हैं प्रसिद्ध नादस्वरम कलाकार टी एन राजरतनम पिल्लई, जानी मानी नृत्यांगना टी बालासरस्वती और ख्यातिप्राप्त वीणावादक वीना धनम्मल, जिनके वीणावादन प्रतिभा ने समूची पीढ़ी को मंत्रमुग्ध कर दिया है।
संगीतकार
टी एन राजरतनम पिल्लई का जन्म तन्जावुर जिले में थिरूवदुथुरई के श्री कुप्पूस्वामी पिल्लई और श्रीमती गोविंदमणी के घर 27 अगस्त, 1898 को हुआ था। तन्जावुर जिला तमिलनाडु में संस्कृत का पालना कहलाता है1 उन्होंने बहुत ही कम उम्र में संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने नादस्वरम के जाने माने विद्वान श्री अम्माचत्रम कन्नूस्वामी पिल्लई से नादस्वरम को बजाना सीखा। धीरे-धीरे संगीत की इस विधा के वे महान कलाकार हो गये। नादस्वरम बजाने की उनकी कला ने समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया और जब भी वे उनके कार्यक्रम सुनते वे मंत्रमुग्ध हो जाते। संगीत के इस महान कलाकार का देहांत 12 दिसम्बर, 1956 को हुआ था।
वीणा धनम्मल का जन्म चेन्नई के जार्जटाउन में संगीतकारों और नृत्य कलाकारों के परिवार में 1867 में हुआ था। उनके पड़दादा, दादा और उनकी मॉ सभी कुशल संगीतकार थे। उन्होंने प्रसिद्ध गुरूओं से वीणा और कंठसंगीत की शिक्षा प्राप्त की। वीणा वादन में उनका कोई सानी नहीं था। वे बहुत मधुर वीणा बजाती थीं। उनकी धरोहर, उनकी प्रतिष्ठा, उनका व्यक्तित्व और उनकी जीवन शैली ने लोगों का काफी सम्मान अर्जित किया। उनका निधन 15 अक्तूबर, 1938 को हुआ था।
बाला सरस्वती, वीणा धनम्मल की पड़पोती थीं। उनका जन्म मई 1918 में संगीतकारों के परिवार में हुआ था। उनकी मां जयम्मल एक बहुमुखी गायिका और तबला वादक थीं। बचपन में उन्होंने भरतनाट्यम की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी और धीरे-धीरे उन्होंने महान भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं की श्रेणी में अपना स्थान बना लिया और वे कलात्मक प्रतिभा की पर्याय बन गईं। वे अभिनय में पारंगत थीं और उनका कोई मुकाबला नहीं था। उन्हें 1957 में भारत भूषण सम्मान प्रदान किया गया। इस महान नृत्यांगना का निधन 9 फरबरी, 1984 को हो गया।
डाक टिकट संग्रह
डाक टिकट संग्रह एक मजेदार शौक है जो किसी व्यक्ति के सौन्दर्यबोध को तेज करता है और उसे संतुष्टि प्रदान करता है इससे ज्ञान का विस्तार होता है और जिस संसार में आप रहते हैं उससे आप का संवाद बनता है। डाक टिकट राजनीति, इतिहास, प्रमुख व्यक्तियों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं, भूगोल, फूल पौधे और वनस्पतियों, कृषि, विज्ञान, स्मारक, सैनिकों, योद्धाओं, वैज्ञानिकों आदि के बारे में रोचक जानकारी देते हैं। इसके अलावा डाक टिकट संग्रह का शौक देश और आयु की सीमाओं से परे लोगों से मित्रता बढ़ाने में मदद करती है।
डाक टिकट संग्रहालय प्रसिद्ध शहरों के मुख्य डाकघरों में स्थित होते हैं। इन संग्रहालयों में डाक टिकट संग्रह करने वाले लोग अपना खाता खोल सकते हैं, वे डाक टिकट जारी होने के दिन प्रथम दिवस आवरण भी जारी करते हैं। इन संग्रहालयों में स्थित काउंटर डाक टिकट संग्रह से संबंधित सभी बस्तुओं की आपूर्ति करते हैं लेकिन उन्हें विशेष कैंसिलेशन जारी करने का अधिकार नहीं है। ये कैंसिलेशन प्रत्येक स्मारक डाक टिकट के साथ जारी होता है। अधिकृत कार्यालय केवल स्मारक/ विशेष टिकट, सादा प्रथम दिवस आवरण और सूचना संबंधी विवरणिका का विक्रय करते हैं।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है स्मारक टिकट किसी महत्वपूर्ण घटना, विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध व्यक्ति, प्रकृति के पहलुओं, सुंदर और दुर्लभ फूल पौधे, पर्यावरणीय मुद्दे, कृषि गतिविधियां, राष्ट्रीय/ अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, खेल आदि की याद में जारी किये जाते हैं। ये टिकट केवल डाक टिकट संग्रह व्यूरो और चुने हुए डाकघरों में ही उपलब्ध होते हैं। इनका मुद्रण सीमित संख्या में होता है।
डाक विभाग ने इस वर्ष अब तक 87 स्मारक डाक टिकट जारी किये हैं, ये डाक टिकट अपने कलात्मक सौन्दर्य के लिए जाने जाते हैं और इन्होंने विश्व भर के डाक टिकट संग्रहकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है।
मरगज़ी का समय मधुर संगीत, जीवन्त नृत्यों और सभी प्रकार के कलारूपों का होता है। प्रसिद्ध संगीत अकादमी सहित चेन्नई की विभिन्न संगीत संस्थाएं इस अवसर पर कर्नाटक संगीत और नृत्य के अपने वार्षिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं। शास्त्रीय कर्नाटक संगीत और नृत्य के इन प्रतिष्ठित कार्यक्रमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है और यह समय चेन्नई और उसके आसपास के इलाकों में पर्यटन मौसम के रूप में जाना जाता है।
स्मारक टिकट
इस मौसम की स्मृति में संचार मंत्रालय के डाक विभाग ने तीन डाक टिकट जारी किये हैं, जिनमें कर्नाटक संगीत के महान कलाकारों के चित्र अंकित हैं। ये डाक टिकट 3 दिसम्बर, 2010 को जारी किये गये। जिन संगीतकारों की याद में ये टिकट जारी किये गये हैं, वे हैं प्रसिद्ध नादस्वरम कलाकार टी एन राजरतनम पिल्लई, जानी मानी नृत्यांगना टी बालासरस्वती और ख्यातिप्राप्त वीणावादक वीना धनम्मल, जिनके वीणावादन प्रतिभा ने समूची पीढ़ी को मंत्रमुग्ध कर दिया है।
संगीतकार
टी एन राजरतनम पिल्लई का जन्म तन्जावुर जिले में थिरूवदुथुरई के श्री कुप्पूस्वामी पिल्लई और श्रीमती गोविंदमणी के घर 27 अगस्त, 1898 को हुआ था। तन्जावुर जिला तमिलनाडु में संस्कृत का पालना कहलाता है1 उन्होंने बहुत ही कम उम्र में संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। बाद में उन्होंने नादस्वरम के जाने माने विद्वान श्री अम्माचत्रम कन्नूस्वामी पिल्लई से नादस्वरम को बजाना सीखा। धीरे-धीरे संगीत की इस विधा के वे महान कलाकार हो गये। नादस्वरम बजाने की उनकी कला ने समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया और जब भी वे उनके कार्यक्रम सुनते वे मंत्रमुग्ध हो जाते। संगीत के इस महान कलाकार का देहांत 12 दिसम्बर, 1956 को हुआ था।
वीणा धनम्मल का जन्म चेन्नई के जार्जटाउन में संगीतकारों और नृत्य कलाकारों के परिवार में 1867 में हुआ था। उनके पड़दादा, दादा और उनकी मॉ सभी कुशल संगीतकार थे। उन्होंने प्रसिद्ध गुरूओं से वीणा और कंठसंगीत की शिक्षा प्राप्त की। वीणा वादन में उनका कोई सानी नहीं था। वे बहुत मधुर वीणा बजाती थीं। उनकी धरोहर, उनकी प्रतिष्ठा, उनका व्यक्तित्व और उनकी जीवन शैली ने लोगों का काफी सम्मान अर्जित किया। उनका निधन 15 अक्तूबर, 1938 को हुआ था।
बाला सरस्वती, वीणा धनम्मल की पड़पोती थीं। उनका जन्म मई 1918 में संगीतकारों के परिवार में हुआ था। उनकी मां जयम्मल एक बहुमुखी गायिका और तबला वादक थीं। बचपन में उन्होंने भरतनाट्यम की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी और धीरे-धीरे उन्होंने महान भरतनाट्यम नृत्यांगनाओं की श्रेणी में अपना स्थान बना लिया और वे कलात्मक प्रतिभा की पर्याय बन गईं। वे अभिनय में पारंगत थीं और उनका कोई मुकाबला नहीं था। उन्हें 1957 में भारत भूषण सम्मान प्रदान किया गया। इस महान नृत्यांगना का निधन 9 फरबरी, 1984 को हो गया।
डाक टिकट संग्रह
डाक टिकट संग्रह एक मजेदार शौक है जो किसी व्यक्ति के सौन्दर्यबोध को तेज करता है और उसे संतुष्टि प्रदान करता है इससे ज्ञान का विस्तार होता है और जिस संसार में आप रहते हैं उससे आप का संवाद बनता है। डाक टिकट राजनीति, इतिहास, प्रमुख व्यक्तियों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं, भूगोल, फूल पौधे और वनस्पतियों, कृषि, विज्ञान, स्मारक, सैनिकों, योद्धाओं, वैज्ञानिकों आदि के बारे में रोचक जानकारी देते हैं। इसके अलावा डाक टिकट संग्रह का शौक देश और आयु की सीमाओं से परे लोगों से मित्रता बढ़ाने में मदद करती है।
डाक टिकट संग्रहालय प्रसिद्ध शहरों के मुख्य डाकघरों में स्थित होते हैं। इन संग्रहालयों में डाक टिकट संग्रह करने वाले लोग अपना खाता खोल सकते हैं, वे डाक टिकट जारी होने के दिन प्रथम दिवस आवरण भी जारी करते हैं। इन संग्रहालयों में स्थित काउंटर डाक टिकट संग्रह से संबंधित सभी बस्तुओं की आपूर्ति करते हैं लेकिन उन्हें विशेष कैंसिलेशन जारी करने का अधिकार नहीं है। ये कैंसिलेशन प्रत्येक स्मारक डाक टिकट के साथ जारी होता है। अधिकृत कार्यालय केवल स्मारक/ विशेष टिकट, सादा प्रथम दिवस आवरण और सूचना संबंधी विवरणिका का विक्रय करते हैं।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है स्मारक टिकट किसी महत्वपूर्ण घटना, विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध व्यक्ति, प्रकृति के पहलुओं, सुंदर और दुर्लभ फूल पौधे, पर्यावरणीय मुद्दे, कृषि गतिविधियां, राष्ट्रीय/ अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, खेल आदि की याद में जारी किये जाते हैं। ये टिकट केवल डाक टिकट संग्रह व्यूरो और चुने हुए डाकघरों में ही उपलब्ध होते हैं। इनका मुद्रण सीमित संख्या में होता है।
डाक विभाग ने इस वर्ष अब तक 87 स्मारक डाक टिकट जारी किये हैं, ये डाक टिकट अपने कलात्मक सौन्दर्य के लिए जाने जाते हैं और इन्होंने विश्व भर के डाक टिकट संग्रहकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है।
सीआरआईएस: भारतीय रेल के लिये सफल सूचना प्रणालियों का सृजन
भारत के लोगों के लाभ के लिये सूचना प्रौद्योगिकी को काम में लाने की दृष्टि से 1986 का वर्ष भारतीय रेल के नवीन प्रयासों के लिये काफी महत्वपूर्ण माना जाता है । दूरदर्शी पहल करते हुए रेल मंत्रालय ने रेल सूचना प्रणाली केन्द्र(क्रिस) नाम से एक स्वायत्तशासी संस्था का गठन किया है । क्रिस अब 24 वर्ष पुराना हो चुका है । साधारण सी शुरुआत के बाद अब यह संस्था देश के आईटी मानचित्र पर प्रमुख पहचान बना चुकी है। इसने भारतीय रेल को सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी प्रधानता बनाए रखने में और इस क्षेत्र में मार्गदर्शी कार्य जारी रखने में बड़ी मदद की है ।
व्यापक प्रभाव
भारतीय रेल में आईटी प्रणाली के जरिये जितना लेन-देन किया जाता है, उसकी संख्या और परिमाण से उनकी गुणवत्ता और क्षमताओं का आभास होता है । भारतीय रेल प्रतिदिन लगभग 11000 रेलगाड़ियों का संचालन करती है, इनमें यात्री और मालगाड़ियां दोनों शामिल हैं ।
1.प्रतिदिन लगभग दस लाख यात्री अपनी बर्थ का आरक्षण यात्री आरक्षण प्रणाली के माध्यम से कराते हैं । 2.अनारक्षित टिकट प्रणाली के जरिये प्रतिदिन लगभग एक करोड़ 40 लाख यात्रियों के टिकट बेचे जाते हैं । प्रतिवर्ष इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है ।3.क्रिस द्वारा विकसित मालभाड़ा प्रचालन सूचना प्रणाली का निरंतर विस्तार और विकास हो रहा है और माल का कारोबार करने वाले ग्राहकों को मूल्यवर्धित सेवायें प्रदान कर रही है । इस प्रणाली के तहत जो ई-भुगतान सुविधा प्रदान की जा रही है, उसके जरिये राजस्व प्राप्त होता है । वह कुल माल भाड़े का करीब 50 प्रतिशत है। माल भाड़े से प्रतिवर्ष करीब 7 खरब रूपये का राजस्व प्राप्त होता है।4.5.भारतीय रेल के सभी 67 मंडलों में कम्प्यूटरीकृत नियंत्रण कार्यालय है जो कंट्रोल आफिस ऐप्लीकेशन नियंत्रण कार्यालय अनुप्रयोग के जरिये प्रत्येक स्टेशन से गुजरने वाली हर रेलगाड़ी का आवागमन पर नजर रखता है ।6.7.क्रू (चालक दल) प्रबंधन प्रणाली का उपयोग प्रतिदिन करीब 30 हजार चालक दल के सदस्य अपने कार्य स्थान पर से आने जाने के लिये करते हैं ।8.9.एकीकृत कोचिंग (सवारी डिब्बा) प्रबंधन प्रणाली की सहायता से 40 हजार से अधिक यात्री गाड़ियों के डिब्बों का प्रबंधन किया जाता है ।6.ये आई टी अनुप्रयोग यात्रियों और माल परिवहन व्यापार की आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष रूप से पूर्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं । अभी और भी ऐसे कई अन्य अनुप्रयोग शुरू होने को हैं जिनका परिसंपत्ति प्रबंधन और कार्य क्षमता में सुधार पर ज्यादा जोर रहेगा ।
नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा
क्रिस भारतीय रेल के स्वायत्तशासी संगठन के रूप में काम करता है । यह अपने मानव संसाधन (कर्मचारी) रेलवे के अलावा कुशल आई टी पेशेवरों के वृहद पूल से प्राप्त करता है । रेलवे की आई टी परियोजनाओं की सफलता का एक कारण इसके क्रिस जैसे विशिष्ट संगठनों द्वारा निर्मित ज्ञान की निरंतरता है । क्रिस में डोमेन ज्ञान के विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकीय पेशेवरों का उपयोगी संगम है जो कौशल और क्षमताओं का अनूठा सम्मिश्रण तैयार करता है । इस नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा का परिणाम है, उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया जो कि आई टी परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिये निर्णायक होती है । एक ओर उपयोगकर्ता और दूसरी ओर साफ्टवेयर तैयार करने वाले और आईटी सेवा प्रदाता के बीच तो विशेष संबंध होता है, उसी के कारण क्रिस उपभोक्ताओं की बदलती और बढ़ती अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को पूरा कर पाती है । चूंकि डोमेन विशेषज्ञों को क्रिस में काम करने से पहले ही रेल प्रबंधन का व्यापक अनुभव रहा है, क्रिस के अनुप्रयोगों में ठहराव नहीं आ पाता । इसके अतिरिक्त बिना इस बात की चिंता किये कि बाहरी सेवा प्रदाता कभी भी संबंधों को ताला लगा सकता है, क्रिस वृहद और महत्वपूर्ण आई टी प्रणालियों की आवश्यकतानुसार उच्चस्तरीय सेवायें प्रदान करना जारी रखता है । जहां तक संगठनात्मक रूपरेखा की बात है, इसके कारण प्रधान संगठन (रेलवे) और एजेंट संगठन (क्रिस) के प्रोत्साहन एक सीध में आ जाते हैं, और नवाचार तथा उन्नति के लिये पर्याप्त गुजांइश भी बनी रहती है ।
प्रौद्योगिकी में अग्रणी
प्रारंभिक वर्षों में यानी अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध और नब्बे के दशक के पूर्वार्ध में दो प्रमुख अनुप्रयोगों पीआरएस और एफओआईएस पर जोर दिया गया था । इस उत्तरदायित्व के कारण इस संगठन में जबर्दस्त विश्वास आया और इन परियोजनाओं (जैसे कन्सर्ट सीओएनसीईआरटी के भीतर विकसित नये आरक्षण तर्क) की सफलता ने क्रिस के बारे में धारणाओं को ही बदल कर रख दिया । जैसे-जैसे आईटी के प्रभावी उपयोग की अपार संभावनाओं का खुलासा होता गया, 21वीं सदी के प्रारंभ से ही रेल उपभोक्ताओं की मांगों और अपेक्षाओं में उल्लेखनीय वृद्धि होने लगी । अकस्मात ही क्रिस के लिये अनुमोदित और निर्धारित परियोजनाओं पर अमल किया जाने लगा । इस समय तक क्रिस ने अपने पूर्व कल्पित आकार से भी आगे जाते हुए विशाल आकार ग्रहण कर लिया था । अत्याधुनिक आईटी समाधानों की खोजकर उनका विकास किया जाने लगा । मार्गदर्शी परियोजनाओं की सफलता से उन्हें देशभर में लागू करने के लिये होड़ जैसी शुरू हो गई । त्वरित क्रियान्वयन के लिये क्रिस ने इस शांत क्रांति में भाग लेने के लिये और संसाधन तथा डोमेन ज्ञान विशेषज्ञों की सेवायें लीं ।
केन्द्रीय भूमिका
रेल मंत्रालय के दूरदर्शी दृष्टिकोण के कारण एक ऐसी सुखद स्थिति बन चुकी है , जिसमें रेल परिचालन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण गतिविधियों का प्रबंधन आई टी जनित प्रणाली के जरिये होने लगा है। परन्तु, आई टी एक गतिशील क्षेत्र है । जैसे-जैसे और अधिक बुद्धिमान यंत्र समाज के सभी वर्गों में अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं । ग्राहकों की अधिक सुविधाओं की अपेक्षायें बढ़ती जा रही हें । इसके लिये एक गतिशील और ऊर्जावान आईटी संगठन की आवश्यकता होती है जो सदैव सबसे आगे रहे और आधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग ग्राहकों की समस्याओं के समाधान में प्रभावी ढंग से कर सके । क्रिस इस भूमिका को निभाने के लिये पूरी तरह से तैयार है और रेल की कार्यप्रणाली में और अधिक बदलाव के लिये भी तैयार है । सूचना संकलन और प्राथमिक विश्लेषण कंप्यूटर की सहायता से होने लगा है। निर्णय में सहायक तत्व भी मुहैया कराए जा रहे हैं । रेलवे के लिये आज सबसे बड़ी चुनौती, ऐसी प्रणालियां विकसित करने की है जो महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में पूर्णरूपेण बदलाव ला सकें । संपोषणीय आई टी विकास की दीर्घकालीन दृष्टि विकसित करने के लिये भारतीय रेल ओर क्रिस के पास यही उपयुक्त समय है क्योंकि रेल के कारोबार में आई टी का अनुप्रयोग बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और वह उसके बारे में काफी गंभीर है । आज, क्रिस आईटी जनित संगठनात्मक परिवर्तन के साथ-साथ भारतीय रेल के ग्राहकों को त्वरित और अधिक सुविधापूर्ण सेवायें प्रदान करने हेतु आईटी के उपयोग की दहलीज पर खड़ा है । इन लक्ष्यों ने क्रिस को भारतीय रेल के लिये उच्च कोटि की सूचना प्रणाली के सृजन और प्रबंधन के प्रयासों को मूर्त रूप देने के अपने इरादों को और मजबूती प्रदान की है ।
व्यापक प्रभाव
भारतीय रेल में आईटी प्रणाली के जरिये जितना लेन-देन किया जाता है, उसकी संख्या और परिमाण से उनकी गुणवत्ता और क्षमताओं का आभास होता है । भारतीय रेल प्रतिदिन लगभग 11000 रेलगाड़ियों का संचालन करती है, इनमें यात्री और मालगाड़ियां दोनों शामिल हैं ।
1.प्रतिदिन लगभग दस लाख यात्री अपनी बर्थ का आरक्षण यात्री आरक्षण प्रणाली के माध्यम से कराते हैं । 2.अनारक्षित टिकट प्रणाली के जरिये प्रतिदिन लगभग एक करोड़ 40 लाख यात्रियों के टिकट बेचे जाते हैं । प्रतिवर्ष इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है ।3.क्रिस द्वारा विकसित मालभाड़ा प्रचालन सूचना प्रणाली का निरंतर विस्तार और विकास हो रहा है और माल का कारोबार करने वाले ग्राहकों को मूल्यवर्धित सेवायें प्रदान कर रही है । इस प्रणाली के तहत जो ई-भुगतान सुविधा प्रदान की जा रही है, उसके जरिये राजस्व प्राप्त होता है । वह कुल माल भाड़े का करीब 50 प्रतिशत है। माल भाड़े से प्रतिवर्ष करीब 7 खरब रूपये का राजस्व प्राप्त होता है।4.5.भारतीय रेल के सभी 67 मंडलों में कम्प्यूटरीकृत नियंत्रण कार्यालय है जो कंट्रोल आफिस ऐप्लीकेशन नियंत्रण कार्यालय अनुप्रयोग के जरिये प्रत्येक स्टेशन से गुजरने वाली हर रेलगाड़ी का आवागमन पर नजर रखता है ।6.7.क्रू (चालक दल) प्रबंधन प्रणाली का उपयोग प्रतिदिन करीब 30 हजार चालक दल के सदस्य अपने कार्य स्थान पर से आने जाने के लिये करते हैं ।8.9.एकीकृत कोचिंग (सवारी डिब्बा) प्रबंधन प्रणाली की सहायता से 40 हजार से अधिक यात्री गाड़ियों के डिब्बों का प्रबंधन किया जाता है ।6.ये आई टी अनुप्रयोग यात्रियों और माल परिवहन व्यापार की आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष रूप से पूर्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं । अभी और भी ऐसे कई अन्य अनुप्रयोग शुरू होने को हैं जिनका परिसंपत्ति प्रबंधन और कार्य क्षमता में सुधार पर ज्यादा जोर रहेगा ।
नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा
क्रिस भारतीय रेल के स्वायत्तशासी संगठन के रूप में काम करता है । यह अपने मानव संसाधन (कर्मचारी) रेलवे के अलावा कुशल आई टी पेशेवरों के वृहद पूल से प्राप्त करता है । रेलवे की आई टी परियोजनाओं की सफलता का एक कारण इसके क्रिस जैसे विशिष्ट संगठनों द्वारा निर्मित ज्ञान की निरंतरता है । क्रिस में डोमेन ज्ञान के विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकीय पेशेवरों का उपयोगी संगम है जो कौशल और क्षमताओं का अनूठा सम्मिश्रण तैयार करता है । इस नवाचारी संगठनात्मक रूपरेखा का परिणाम है, उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया जो कि आई टी परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिये निर्णायक होती है । एक ओर उपयोगकर्ता और दूसरी ओर साफ्टवेयर तैयार करने वाले और आईटी सेवा प्रदाता के बीच तो विशेष संबंध होता है, उसी के कारण क्रिस उपभोक्ताओं की बदलती और बढ़ती अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को पूरा कर पाती है । चूंकि डोमेन विशेषज्ञों को क्रिस में काम करने से पहले ही रेल प्रबंधन का व्यापक अनुभव रहा है, क्रिस के अनुप्रयोगों में ठहराव नहीं आ पाता । इसके अतिरिक्त बिना इस बात की चिंता किये कि बाहरी सेवा प्रदाता कभी भी संबंधों को ताला लगा सकता है, क्रिस वृहद और महत्वपूर्ण आई टी प्रणालियों की आवश्यकतानुसार उच्चस्तरीय सेवायें प्रदान करना जारी रखता है । जहां तक संगठनात्मक रूपरेखा की बात है, इसके कारण प्रधान संगठन (रेलवे) और एजेंट संगठन (क्रिस) के प्रोत्साहन एक सीध में आ जाते हैं, और नवाचार तथा उन्नति के लिये पर्याप्त गुजांइश भी बनी रहती है ।
प्रौद्योगिकी में अग्रणी
प्रारंभिक वर्षों में यानी अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध और नब्बे के दशक के पूर्वार्ध में दो प्रमुख अनुप्रयोगों पीआरएस और एफओआईएस पर जोर दिया गया था । इस उत्तरदायित्व के कारण इस संगठन में जबर्दस्त विश्वास आया और इन परियोजनाओं (जैसे कन्सर्ट सीओएनसीईआरटी के भीतर विकसित नये आरक्षण तर्क) की सफलता ने क्रिस के बारे में धारणाओं को ही बदल कर रख दिया । जैसे-जैसे आईटी के प्रभावी उपयोग की अपार संभावनाओं का खुलासा होता गया, 21वीं सदी के प्रारंभ से ही रेल उपभोक्ताओं की मांगों और अपेक्षाओं में उल्लेखनीय वृद्धि होने लगी । अकस्मात ही क्रिस के लिये अनुमोदित और निर्धारित परियोजनाओं पर अमल किया जाने लगा । इस समय तक क्रिस ने अपने पूर्व कल्पित आकार से भी आगे जाते हुए विशाल आकार ग्रहण कर लिया था । अत्याधुनिक आईटी समाधानों की खोजकर उनका विकास किया जाने लगा । मार्गदर्शी परियोजनाओं की सफलता से उन्हें देशभर में लागू करने के लिये होड़ जैसी शुरू हो गई । त्वरित क्रियान्वयन के लिये क्रिस ने इस शांत क्रांति में भाग लेने के लिये और संसाधन तथा डोमेन ज्ञान विशेषज्ञों की सेवायें लीं ।
केन्द्रीय भूमिका
रेल मंत्रालय के दूरदर्शी दृष्टिकोण के कारण एक ऐसी सुखद स्थिति बन चुकी है , जिसमें रेल परिचालन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण गतिविधियों का प्रबंधन आई टी जनित प्रणाली के जरिये होने लगा है। परन्तु, आई टी एक गतिशील क्षेत्र है । जैसे-जैसे और अधिक बुद्धिमान यंत्र समाज के सभी वर्गों में अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं । ग्राहकों की अधिक सुविधाओं की अपेक्षायें बढ़ती जा रही हें । इसके लिये एक गतिशील और ऊर्जावान आईटी संगठन की आवश्यकता होती है जो सदैव सबसे आगे रहे और आधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग ग्राहकों की समस्याओं के समाधान में प्रभावी ढंग से कर सके । क्रिस इस भूमिका को निभाने के लिये पूरी तरह से तैयार है और रेल की कार्यप्रणाली में और अधिक बदलाव के लिये भी तैयार है । सूचना संकलन और प्राथमिक विश्लेषण कंप्यूटर की सहायता से होने लगा है। निर्णय में सहायक तत्व भी मुहैया कराए जा रहे हैं । रेलवे के लिये आज सबसे बड़ी चुनौती, ऐसी प्रणालियां विकसित करने की है जो महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में पूर्णरूपेण बदलाव ला सकें । संपोषणीय आई टी विकास की दीर्घकालीन दृष्टि विकसित करने के लिये भारतीय रेल ओर क्रिस के पास यही उपयुक्त समय है क्योंकि रेल के कारोबार में आई टी का अनुप्रयोग बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और वह उसके बारे में काफी गंभीर है । आज, क्रिस आईटी जनित संगठनात्मक परिवर्तन के साथ-साथ भारतीय रेल के ग्राहकों को त्वरित और अधिक सुविधापूर्ण सेवायें प्रदान करने हेतु आईटी के उपयोग की दहलीज पर खड़ा है । इन लक्ष्यों ने क्रिस को भारतीय रेल के लिये उच्च कोटि की सूचना प्रणाली के सृजन और प्रबंधन के प्रयासों को मूर्त रूप देने के अपने इरादों को और मजबूती प्रदान की है ।
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