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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

हस्तशिल्प और सांस्कृतिक विरासत का संगम सूरजकुंड मेला

सूरजकुंड शिल्प मेले का आयोजन पहली बार वर्ष 1987 में भारत के हस्तशिल्प, हथकरघा और सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि एवं विविधता को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। केंद्रीय पर्यटन, कपड़ा, संस्कृति, विदेश मंत्रालयों और हरियाणा सरकार के सहयोग से सूरजकुंड मेला प्राधिकरण तथा हरियाणा पर्यटन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित यह उत्सव सौंदर्यबोध की दृष्टि से सृजित परिवेश में भारत के शिल्प, संस्कृति एवं व्यंजनों को प्रदर्शित करने के लिहाज से अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण स्थान एवं शोहरत रखता है। वर्ष 2013 में सूरजकुंड शिल्प मेले को अंतर्राष्ट्रीय मेले का दर्जा दिए जाने से इसके इतिहास में एक नया कीर्तिमान स्थापित हुआ। वर्ष 2015 में यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया के 20 देशों ने इस मेले में भागीदारी की। इस वर्ष मेले में 23 देशों ने भाग लिया है, जिनमे चीन, जापान, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो, मिश्र, थाईलैंड, मालदीव, रूस, किर्गिस्तान, वियतनाम, लेबनान, ट्यूनिशिया, तुर्कमेनिस्तान, मलेशिया और बांगलादेश की जोरदार उपस्थिति है। इस वर्ष 30वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला 2016 का भव्य आयोजन किया गया है। सूरजकुंड मेला प्राधिकरण और हरियाणा पर्यटन ने ग्रामीण भारत की स्पंदनशीलता और सौंदर्य को प्रदर्शित करने के लिए मेला मैदान को आकर्षक एवं जीवंत रूप देने के उद्देश्य से क्रिएटिव डायमेंशन कोलकाता के पेशेवर परामर्शदाताओं सुब्रत देबनाथ तथा डॉ. अनामिका बिश्वास ने सेवा दी हैं। मेला क्षेत्र को पांच क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिन्हें भारत के पांच मौसमों, बसंत, ग्रीष्म, मानसून, पतझड़ और शीत के अनुरूप बनाया गया है। यह पांच मौसम पांच खिड़कियों के माध्यम से प्रदर्शित किए गए हैं- फूल तथा तितलियां बसंत ऋतु का प्रतीक है, चमकता सूरज तथा सूरजमुखी के फूल ग्रीष्म का प्रतीक हैं, बादल युक्त आसमान तथा वर्षा मानूसन का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसी प्रकार वृक्षों से झड़ते पत्ते पतझड़ ऋतु तथा बर्फ से लदे वृक्ष और रेंडियर शीत ऋतु का प्रतीक है। नवगठित राज्य तेलंगाना इस वर्ष सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का थीम राज्य है जोकि बड़े ही आकर्षक ढंग से अपनी अनूठी संस्कृति एवं ऐतिहासिक विरासत को प्रदर्शित कर रहा है। पर्यटन सचिव, तेलंगाना सरकार श्री बी.वेंकटेशम ने तेलंगाना से लगभग 300 कलाकार ओग्गूडोलू, चिन्डू यक्ष गनम, गुसाड़ी, कोम्मू कोया मथुरी, चिरु, तला रामायणम, कोलातम, पैरिनी नाट्यम , बंजारा, लम्बाड़ी, बोनालू जैसी विभिन्न लोक कलाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं। मेले के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक स्थाई स्मरणीय अवसंरचना, ककातिया गेटा का निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त तेलंगाना के राज्य प्रतीकों को प्रदर्शित करने वाले तीन द्वार भी हैं, जो दर्शकों के मूड को जीवंत बनाने के लिए जापान, कांगो, मिश्र, मालदीव, रूस, किर्गिस्तान, वियतनाम और तुर्कमेनिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकारों द्वारा शानदार कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं। हरियाणा और तेलंगाना राज्यों से एक-एक परिवार अपने क्षेत्र की ठेठ जीवनशैली को प्रदर्शित करने के लिए मेला मैदान में विशेष रूप से बनाए गए 'अपना घर’ में निवास में कर रहे हैं। हरियाणा का 'अपना घर’ मुक्के बाजी और कुश्ती जैसे प्रदेश के अति लोकप्रिय खेलों को भी प्रदर्शित करता है। महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 'अपना घर’ ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान भी प्रदर्शित किया जा रहा है, जिसमें महिलाएं बॉक्सर, दूध दुहने वाली और गृहणी जैसी विभिन्न भूमिकाओं में होंगी। उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र तथा अन्य क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के लोक कलाकारों द्वारा मेला मैदान के ओपन एयर थियेटर 'चौपाल’ में दिन के समय प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रमों में विभिन्न नृत्य विधाएं प्रस्तुत की जा रही है। इनमें जम्मू एवं कश्मीर का जबरो एवं रोउफ, छत्तीसगढ़ का पंथी, कर्नाटक का ढोलू कुनीठा, उड़ीसा का गोटी पुआ, आसाम का बिहू, हिमाचल प्रदेश का सिरमौरी, राजस्थान का कालबेलिया एवं चकरी, उत्तराखंड का छपेली, उत्तरप्रदेश का छाऊ, पंजाब का गिद्दा एवं भांगड़ा आदि शामिल है। मेला पखवाड़े के दौरान शाम के समय प्रस्तुत किए जाने वाले रोमांचक सांस्कृतिक कार्यक्रम दर्शकों को पूरी तरह से मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यह मेला 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें शिल्पकारों के लिए बनी लगभग 864 वर्क हट्स तथा एक बहु व्यंजन फूड कोर्ट है जो कि दर्शकों में बहुत लोकप्रिय है। इस वर्ष दर्शक मेले में बने फूड कोर्ट में भारतीय स्ट्रीट फूड एवं अन्य राज्यों के मुंह में पानी ला देने वाले व्यंजनों का आनंद ले रहे हैं। सूरजकुंड का इतिहास सूरजकुंड का नाम यहां 10वीं सदी में तोमर वंश के राजा सूरज पाल द्वारा बनवाए गए एक प्राचीन रंगभूमि सूर्यकुंड से पड़ा। यह एक अनूठा स्मारक है, क्योंकि इसका निर्माण सूर्य देवता की आराधना करने के लिए किया गया था और यह यूनानी रंगभूमि से मेल खाता है। यह मेला वास्तव में, इस शानदार स्मारक की पृष्ठभूमि में आयोजित भारत की सांस्कृतिक धरोहर की भव्यता और विविधता का जीता-जागता प्रमाण है।

 Seeing our scholar defending his PhD thesis during ODC was a great moment. This was the result of his hard work. Dr. Sanjay Singh, a senior...