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शनिवार, 31 दिसंबर 2016

किसे मिलेगा समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह?

30 दिसंबर 2016 की शाम समाजवादी पार्टी में विभाजन की लक्ष्मण रेखा खुद पार्टी के पितामह कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने खींच दी। सियासत में सिद्धांत को दरकिनार कर पुत्र को मुख्यमंत्री बनाकर यूपी की कमान सौंपने वाले मुलायम सिंह यादव ने कठोर फैसला लेते हुए सीएम अखिलेश और प्रोफेसर राम गोपाल यादव को समाजवादी पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया। जिस वक्त मुलायम सिंह यादव अपने बेेटे सीएम अखिलेश यादव को पार्टी से निकालने की घोषणा कर रहे थे, उनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि ये फैसला वह किसी के दबाव में ले रहे हैं। संवाददाता सम्मेलन में पहले उन्होंने प्रोफेसर रामगोपाल यादव को निकालने जाने के बारे में विस्तार से बताया। लेकिन जब बात बेटा और सीएम अखिलेश यादव को निकालने की आई तो उन्होंने इसका ऐलान करने के बजाए पहले भाई शिवपाल यादव से पूछा कि अखिलेश के बारे में भी अभी ही बोल दे क्या? पहले से ही इसी मौके की ताक में बैठे शिवपाल यादव ने तुरंत ही हामी भरी और कहा हां अभी कर देते हैं। इससे साफ है कि मुलायम सिंह यादव खुद इस फैसले को लेकर जल्दबाजी नहीं दिखाना चाह रहे थे। कल समाजवादी पार्टी में हर फैसला नेताजी मुलायम सिंह यादव से पूछ कर किया जाता था, लेकिन मौके की नजाकत देखिए कि अब वही मुलायम कोई भी फैसला लेने से पहले भाई शिवपाल सिंह यादव से पूछते हैं कि करें या नहीं करें। इससे साफ है कि मुलायम सिंह यादव दिल से नहीं चाहते थे कि अखिलेश को पार्टी से निकाला जाए। तभी तो उन्होंने कहा कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव अखिलेश यादव का भविष्य खराब कर रहे हैं। इतना सब होने के बाद लखनऊ की सड़कों पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं का सैलाब उमड़ आया। सीएम अखिलेश यादव के घर के बाहर भारी भीड़ जमा हो गई। ऐसा ही कुछ नजारा मुलायम सिंह यादव के घर के बाहर भी देखने को मिला। लेकिन अब आगे क्या होगा। राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा। क्या अखिलेश विधानसभा भंग करने की अनुशंसा करेंगे। मुलायम सिंह का अगला कदम क्या होगा। क्या वह सीएम अखिलेश की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करेंगे। या अखिलेश यादव खुद ही अपने पद से इस्तीफा देकर जनता के बीच नया जनादेश लेने के लिए जाएंगे। इससे भी बड़ा सवाल है कि चुनाव में समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह पर कौन चुनाव लड़ेगा। मुलायम सिह यादव की समाजवादी पार्टी या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी। इन तमाम बातों को लेकर सस्पेंस अभी बरकरार है। आज मुलायम और अखिलेश ने एक के बाद एक कई बैठक बुलाई है। देखना यह दिलचस्प होगा कि पार्टी के ज्यादातर विधायक और नेता इस मुश्किल घड़ी में पिता-पुत्र में से किसका साथ देते हैं। वैसे अंतिम फैसला तो चुनाव में जनता को करना है।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

समाजवादी पार्टी - पारिवारिक कलह से बगावत तक का सफर

समाजवादी पार्टी में सत्ता के लिए जारी कलह को लेकर लंबे समय तक शांति और संयम दिखाने वाले सीएम अखिलेश यादव ने अब बगावती तेवर अपना लिए है। कभी बात-बात पर नेताजी की दुहाई देने वाले मुख्यमंत्री ने अखिलेश यादव ने अब पिता मुलायम सिंह यादव के प्रति मोह का त्याग कर दिया है। अखिलेश को इस बात का अंदाजा लग गया था कि विरोधी खेमा यानि चाचा शिवपाल यादव नेताजी को उनके खिलाफ ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। यहीं नहीं नेताजी खुद भी हर कदम पर बेेटे अखिलेश का साथ देने के बजाए विरोधी खेमे के सुर में सुर मिलाते नज़र आ रहे थे। नेताजी मुलायम सिंह के बदले तेवर से परेशान सीएम अखिलेश के लिए बदले हुए हालात में हर दिन किसी इम्तिहान से कम नहीं था, ऊपर से चुनाव तैयारियों के लिए सीमित समय रह गया था। नेताजी मुलायम सिंह की ओर से जारी समाजवादी पार्टी उम्मीदवारों की सूची ने पूरी तरह से साफ कर दिया कि समाजवादी पार्टी में अगर सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो अखिलेश यादव के लिए करने को कुछ नहीं रह जाएगा। लिहाजा समय की मांग को देखते हुए सीएम अखिलेश यादव को अपने पिता, पार्टी और उसके तथाकथित नेताओं के खिलाफ बागी तेवर अपनाना पड़ा। सपा मुखिया मुलायम सिंह के उम्मीदवारों की सूची जारी करने के एक दिन बाद ही अखिलेश ने दो सौ से ज्यादा अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इसके कुछ घंटों के भीतर ही चाचा शिवपाल ने भी उम्मीदवारों की एक लिस्ट जारी कर दी है। अब चुनाव के मैदान में पार्टी में जारी कलह के बाद दंगल, कोहराम और संग्राम होने की उम्मीद ही बाकी रह गई है।

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

अपनी नैया डुबोने में जुटे समाजवादी नेता

मुलायम सिंह यादव के कुनबे में मचा कोहराम, यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी की नैया डुबोकर शांत ही होगा, ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि विरोधियों का मानना है कि मुलायम सिंह यादव खुद अपने बेटे की चुनावी नैया डुबोने पर तुले हैं। पांच साल पहले चुनावी जीत मिलने पर मुलायम सिंह यादव ने सबकी राय को दरकिनार कर बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन पांच साल बीतते बीतते मुलायम का अखिलेश प्रेम एक दम से हवा हो गया। आखिर पिता-पुत्र के रिश्ते में दरार के पीछे की वजह क्या है। खुद सीएम अखिलेश कई बार दोहरा चुके हैं कि वह नेताजी की हर बात मानने को तैयार है। लेकिन नेताजी अब सीएम अखिलेश की कोई बात सुनने को राजी नहीं है। उन्हें तो अब अपने बेटे की कामयाबी से जलन महसूस होने लगी है। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वह इस परेशानी का खुलकर इजहार भी नहीं कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो हालात कुछ इस कदर हो गए कि खुद सीएम अखिलेश अपने पिता के गले की हड्डी बन चुके हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की मजबूरी कहें या कमजोरी वह चाहकर भी अखिलेश के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से बचते हैं। लेकिन जब भी कुछ करने की बारी आती है तो सीधे या गुजचुप तरीके से उनका निशाना अखिलेश यादव पर ही होता है। सदियों से कानूनी तौर पर पिता का वारिस उसकी औलाद को माना जाता है। यह परंपरा भारत में अघोषित तौर पर हर सियासी पार्टी में देखने को मिलती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टीं कांग्रेस है, यहां नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक खानदानी विरासत को सियासत में आज तक आगे बढ़ाने में जुटे हैं। ऐसे में अगर अखिलेश राजनीति में खुद को नेताजी का असली वारिस मानते हैं तो इसमें गलत क्या है। बेटे की इच्छा होती है कि वह पिता के बनाए रास्ते पर आगे बढ़े और हर पिता की ये तमन्ना होती है कि उसका बेटा तरक्की की राह पर आगे बढ़े और अपने साथ खानदान का भी नाम रौशन करें। लेकिन समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह के परिवार में यही बात विवाद की असली वजह बन गई है। मुलायम को अब अपना बेटा रास नहीं आ रहा है। समाजवादी पार्टी में दो गुट बन गए हैं। एक गुट की कमान शिवपाल के हाथों में है तो दूसरा गुट मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ है। अचानक से मुलायम सिंह यादव भाई शिवपाल को लेकर कुछ ज्यादा ही प्रेम दिखाने लगे हैं। यहां तक कि शिवपाल के खिलाफ बोलने पर उन्होंने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव तक को पार्टी से निलंबित कर दिया था। ऐसे में समाजवादी पार्टी के छोटे मोटे नेताओं की क्या औकात की वह शिवपाल यादव के खिलाफ कुछ भी बोलने की हिम्मत जुटा सके। मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के भीतर अखिलेश यादव को कमजोर साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से उन्हें हटा दिया। साथ ही यह पद अखिलेश के घोर विरोधी शिवपाल यादव को सौंप दिया। पहले से मौके की ताक में बैठे शिवपाल ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिलते ही चुन-चुन कर अखिलेश के समर्थकों को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। यहीं नहीं शिवपाल यादव ने सीएम अखिलेश के जले पर नमक छिड़कने के इरादे से उन तमाम लोगों को पार्टी में एक-एक कर वापस लाना शुरू कर दिया है, जिसे सीएम अखिलेश यादव ने गलती करने पर पार्टी से निलंबित या निकाल दिया था। शिवपाल ने ऐसे कुछ लोगों को पार्टी में महत्वपूर्ण ओहदों पर बिठाना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में सीएम अखिलेश की मुश्किल है कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि चुनाव सिर पर हैं। किसी भी तरह की जल्दबाजी सियासी तौर पर काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है। लिहाजा वह भी मजे हुए सियासतदान की तरह हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी वह नेताजी मुलायम सिंह यादव को समझाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। उनकी एक दूसरी परेशानी अमर सिंह भी है। कहा जाता है कि अमर सिंह ही समाजवादी कुनबे में जारी कलह की असली वजह हैं। लेकिन सुलह की तमाम कोशिशें बेकार होने के बाद अब चुनाव से ठीक पहले पार्टी में तकरार की खबरों से होने वाले नुकसान की भरपाई समाजवादी पार्टी को चुनावी हार के रुप में चुकानी पड़ सकती है।

 Seeing our scholar defending his PhD thesis during ODC was a great moment. This was the result of his hard work. Dr. Sanjay Singh, a senior...