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गुरुवार, 31 मार्च 2016
नैनीताल में एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन ने काम करना शुरु किया
अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में भारत ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है...नैनीताल में एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन ने काम करना शुरु कर दिया है...सबसे खास तो ये रहा कि इस दूरबीन को पीएम मोदी ने बेल्जियम की जमीन से देश को इसे समर्पित किया..अब उम्मीद है कि इसकी मदद से भारत अंतरिक्ष की दुनिया में नए आयाम छूने में कामयाब रहेगा...कुछ इस तरह देश से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर बेल्जियम शहर से शुरु हुआ एशिया का सबसे बड़ा ऑप्टिकल टेलीस्कोप....अपनी बेल्जियम यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बेल्जियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स मिचेल ने रिमोट टेक्निकल एक्टिवेशन टेक्निक के जरिए नैनीताल में बने 3.6 मीटर व्यास के टेलीस्कोप को एक्टिवेट किया...इस दौरान केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री डॉ हर्षवर्धन देवस्थल में मौजूद रहे। Asia's largest optical telescope at Nainital.करीब 150 करोड़ की लागत से 9 सालों में बनकर तैयार हुआ ये टेलीस्कोप भारत का ही नहीं बल्कि एशिया की ऐसी पहला शक्तिशाली टेलीस्कोप है, जिसकी क्षमता अब तक की सभी दूरबीनों से लगभग 3 गुना अधिक है...इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये दुनिया
के किसी भी कोने से ऑपरेट की जा सकती है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज़ ने एशिया की सबसे बड़े टेलीस्कोप की स्थापना का काम 1980 में शुरू किया था...देश के कई जगहों पर इसे स्थापित करने की संभावना तलाशने के बाद आख़िरकार नैनीताल से 60 किमी दूर धारी तहसील के देवस्थल को इस मिशन के लिए चुना गया...देवस्थल 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है...लिहाज़ा इस जगह को दूरबीन लगाने के लिए सही पाया गया...केंद्र सरकार ने 2007 में इसके लिए 120 करोड़ रुपये के
प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी.और टेलीस्कोप के निर्माण का काम 2007 में ही शुरु हुआ था। इस टेलीस्कोप से तारों के चुंबकीय क्षेत्र की संरचना को समझने में मदद मिलेगी... आकाशगंगा यानि मिल्की-वे के रासायनिक विकास को समझना आसान हो जाएगा...अब कम रौशनी वाले स्टार्स पर भी रिसर्च हो सकेगी ..यही नहीं तारों के इर्दगिर्द घूमने वाले मलबों पर रिसर्च से ग्रहों के निर्माण को समझने में मदद मिलेगी...और 3.6 मीटर व्यास वाला देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप 360 डिग्री घूमकर अतंरिक्ष की गतिविधियों पर नज़र रखेगा इस टेलीस्कोप को बनाने में 7 फीसदी हिस्सेदारी बेल्जियम की और 93 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है ..जो न केवल चारों दिशाओं का समझने में सक्षम है बल्कि क्रिटिकल ऑब्जर्वेशन में मील का पत्थर भी साबित होगी..कुल मिलाकर भारत की झोली में एक और बड़ी कामयाबी है जिसका फायदा पूरी दुनिया को मिलेगा ।
बुधवार, 30 मार्च 2016
निर्यात बढ़ाने की राह में निवेश और मॉनसून बड़ी चुनौती- वित्तमंत्री
केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत में आर्थिक सुधार को पूरी तरह स्वीकार कर लिया गया है। खासकर कराधान सुधार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में उन्होंने कहा भारत इस समय तीन बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें सिकुड़ते वैश्विक व्यापार को देखते हुए निजी निवेश को बढ़ाना, दो लगातार खराब मानसून के बाद बेहतर मानसून की आशा ताकि अपर्याप्त बारिश की समस्या से बचा जा सके। वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री सुश्री जुली बिशप से मुलाकात के दौरान ये बातें कहीं।
ऑस्ट्रेलिया के चार दिनों के आधिकारिक दौरे के दूसरे दिन उन्होंने कहा कि भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश की बहुत अधिक संभावनाएं है। इनमें अन्य क्षेत्रों के साथ रेलवे, रक्षा उपकरण निर्माण के क्षेत्र शामिल हैं जिनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी दी गई है। वित्त मंत्री ने मौजूदा भारत सरकार द्वारा 22 महीने के दौरान आर्थिक सुधार के उठाये गए कदमों और पहलों के बारे बातचीत की और ऑस्ट्रेलिया के उद्योगपतियों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया।
इस मौके पर ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री जुली बिशप ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया भारत को विभिन्न तरह की सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इनमें अन्य क्षेत्रों के अलावा नवाचार, अनुसंधान और विकास तथा डिजाइनिंग, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास के क्षेत्र में विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया अपनी सेवाएं दे सकता है।
वित्त मंत्री ने बताया कि भारत में नौजवान उद्योगपतियों के बीच नवाचार को बढ़ावा देने के लिए स्टार्ट-अप योजना शुरू की गई है। श्री जेटली ने यूरेनियम की आपूर्ति के लिए नागरिक नाभिकीय सहयोग पर प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री को धन्यवाद दिया।
हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय दौरों को याद करते हुए दोनों नेताओं ने कई क्षेत्रों और द्विपक्षीय सहयोग पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने विभिन्न द्विपक्षीय और वैश्विक विकास पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संपर्क के महत्व पर प्रकाश डाला और ऑस्ट्रेलिया में होने वाले फेस्टिवल ऑफ इंडिया तथा बढ़ते पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का स्वागत किया।
मंगलवार, 29 मार्च 2016
सागरमाला: नील क्रांति की ओर बढ़ते कदम
वर्तमान में, भारतीय बंदरगाह मात्रा की दृष्टि से देश के निर्यात व्यापार का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संभालते हैं तथापि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार में चालू अनुपात केवल 42 प्रतिशत है जबकि विश्व में कुछ विकसित देशों जैसे जर्मनी और यूरोपियन संघ में यह क्रमश: 75 और 70 प्रतिशत हैं इसलिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार में इसके हिस्से को बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। केंद्रीय सरकार के ''मेक इन इंडिया'' के प्रयास में यह अपेक्षा की गई है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार का हिस्सा बढ़ाया जाना जरूरी है तथा विकसित देशों में इसका स्तर प्राप्त कर लिया गया है। भारत बंदरगाहों का बुनियादी ढांचा तथा ढुलाई संरचना के मामले में काफी पीछे है। सकल घरेलू उत्पाद में रेलवे के 9 प्रतिशत तथा सड़कों के 6 प्रतिशत हिस्से के मुकाबले बंदरगाहों का हिस्सा केवल एक प्रतिशत है। इसके अलावा ढुलाई की उच्च लागतों से भारत का निर्यात प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है। अंत: सागरमाला परियोजना बंदरगाहों तथा शिपिंग को भारतीय अर्थव्यवस्था में सही स्थान देने तथा बंदरगाहों का विकास करने के लिए बनाई गई है।
भारतीय राज्यों में गुजरात बंदरगाहों के विकास की रणनीति अपनाने में प्रमुख रहा है तथा इसने उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए हैं जबकि 1980 में राज्य ने 5.08 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि दर्ज की (राष्ट्रीय औसत 5.47 प्रतिशत था), 1990 में यह बढ़कर 8.15 प्रतिशत हो गया (अखिल भारतीय औसत 6.98 प्रतिशत) तथा इसके पश्चात बंदरगाह-विकास मॉडल से इसमें प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।
सागरमाला का उद्देश्य
भारत के समुद्री क्षेत्र की वृद्धि में कई बाधाएं सामने आईं जिनमें औद्योगिकीकरण, व्यापार, पर्यटन और परिवहन को बढ़ावा देने में बुनियादी सुविधाओं के विकास में कई एजेंसियों का समावेशन; दोहरी संस्थागत संरचना की उपस्थिति जिससे प्रमुख तथा गैर प्रमुख बंदरगाहों का विकास अलग-अलग तथा बिना जुड़े रहा; प्रमुख और गैर प्रमुख बंदरगाहों से निकासी के लिए अपेक्षित बुनियादी सुविधाओं की कमी; भीतरी प्रदेशों के संपर्क में कमी की वजह से परिवहन तथा कार्गो की लागत में वृद्धि होना; भीतरी प्रदेशों में आर्थिक गतिविधियां तथा शहरी निर्माण के केंद्रों का अल्प विकास; भारत में अंतर्देशीय शिपिंग तथा समुद्री दोहन में कमी, भारत में विभिन्न बंदरगाहों पर अन्य सुविधाओं का अभाव, सीमित तकनीकीकरण तथा प्रक्रियागत बाधाओं जैसी नीतिगत चुनौतियां शामिल हैं।
सागरमाला के तहत इन चुनौतियों का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा। इसमें विकास के तीन स्तंभों (1) समन्वित विकास के लिए उपयुक्त नीति तथा संस्थागत सहयोग एवं अंतर-एजेंसी और मंत्रालय/विभागों/राज्यों के समावेश को सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत रूपरेखा तैयार करना तथा इनका सहयोग लेना, (2) बंदरगाह बुनियादी सुविधाओं का बढ़ावा जिनमें इनका आधुनिकीकरण तथा नई बंदरगाहों का गठन भी शामिल है और (3) भीतरी प्रदेशों से तथा इनमें सकुशल निकासी की व्यवस्था करना शामिल है।
सागरमाला के तहत कुशल तथा अर्ध कुशल जनशक्ति को बडे पैमाने पर रोजगार दिया जायेगा। रोजगार औद्योगिक समूहों तथा पार्कों, बडे बंदरगाहों, समुद्री सेवाओं, ढुलाई सेवाओं तथा अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में दिया जायेगा। इसका प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रभाव पडेगा। जहाजों, क्रूज शिप, जलयानों के निर्माण से औद्योगिक उत्पादन बढेगा और रोजगार का सृजन भी होगा।
बंदरगाह-नेतृत्व विकास की अवधारणा
सागरमाला परियोजना का एक प्रमुख उद्देश्य बंदरगाह के नेतृत्व में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देते हुए शीघ्रता, कुशलता और लागत प्रभावी रूप से बंदरगाहों से माल परिवहन के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है। इसलिए, सागरमाला परियोजना में, अन्य बातों के साथ, एक युक्तिसंगत समाधान के साथ नए विकास क्षेत्रों के उपयोग को विकसित करने के उद्देश्य से रेल विस्तार, अंतर्देशीय जल, तटीय और सड़क के माध्यम से मुख्य आर्थिक केन्द्रों के साथ संपर्क को बढ़ावा दिया जाएगा।
"सागरमाला" के लिए एक व्यापक और समन्वित योजना बनाने के क्रम में, छह महीने के भीतर समूचे समुद्र तट के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की जाएगी जो संभावित भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान करेगी और इसे तटीय आर्थिक क्षेत्र (सेज) के नाम से जाना जाएगा। एनपीपी की तैयारी करते समय, सहक्रिया और समाकलन के साथ योजान्वित औद्योगिक गलियारें, समर्पित भाड़ा गलियारें, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, औद्योगिक समूह और तटीय आर्थिक क्षेत्र के साथ तालमेल को सुनिश्चित किया जाएगा। चिहिन्त तटीय आर्थिक क्षेत्रों के लिए विस्तृत मास्टर प्लान तैयार किए जाएगें और इनके माध्यम से ही परियोजनाओं की अग्रणी पहचान और उनकी विस्तृत परियोजना रिपोर्टो को तैयार किया जाएगा।
विकास परियोजनाओं के प्रकार की एक व्याख्यात्मक सूची को सागरमाला पहल में शामिल किया जा सकता है। इनमें शामिल हैं: (1) बंदरगाह के नेतृत्व में औद्योगीकरण (2) बंदरगाह आधारित शहरीकरण (3) बंदरगाह आधारित और तटीय पर्यटन और मनोरंजक गतिविधियां (4) शॉर्ट-सी शिंपिंग तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जलपरिवहन (5) जहाज निर्माण, जहाज की मरम्मत और जहाज का पुनर्निर्माण (6) रसद पार्क, भंडारण, समुद्री क्षेत्र/सेवाएं (7) समुद्रतटीय क्षेत्र के साथ समाकलन (8) अपतटीय भंडारण, प्लेटफॉर्मो की ड्रिलिंग (9) खास आर्थिक गतिविधियों जैसे ऊर्जा, कंटेनरर्स, रसायन, कोयला, कृषि उत्पादों आदि में बंदरगाह की विशिष्टता (10) प्रतिष्ठानों के लिए बंदरगाहों के आधार के साथ अपतटीय नवीकरण ऊर्जा परियोजनाएं (11) वर्तमान बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और नए बंदरगाहों का विकास। इस रणनीति में बंदरगाह के नेतृत्व में विकास के साथ-साथ बंदरगाह के नेतृत्व में प्रत्यक्ष विकास और बंदरगाह के नेतृत्व में अप्रत्यक्ष विकास दोनों पहलू शामिल हैं।
वर्तमान बंदरगाहों की संचालन कुशलता में सुधार, जो सागरमाला पहल का एक उद्देश्य है, को वर्तमान बुनियादी ढांचे के उन्नयन और उन्नत व्यवस्था में सुधार और आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं और कार्यप्रणालियों के माध्यम से किया जाएगा। कागज रहित और समेकित लेनदेनों को सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी और स्वचालन का उपयोग मध्यस्थता का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा। सागरममाला परियोजना के अंतर्गत, तटीय नौवहन का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास और नीति पहलों के समन्वय के माध्यम से बढ़ाया जाएगा।
सागरमाला पहल के तहत तटीय आर्थिक क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या के दीर्घकालिन विकास को सुनिश्चित भी किया जाएगा। यह कार्य समुदायों से संबंधित और ग्रामीण विकास, जनजातीय विकास और रोजगार सृजन, मत्स्य पालन, कौशल विकास और पर्यटन को प्रोत्साहन देने जैसे राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों की मौजूदा योजनाओं और कार्यक्रमों के सहयोग से किया जाएगा। ऐसी परियोजनाओं और गतिविधियों को कोष उपलब्ध कराने के क्रम में एक पृथक निधि के माध्यम से इसके लिए 'समुदाय विकास कोष' तैयार किया जाएगा।
संस्थागत ढांचा
सागरमाला को कार्यान्वित करने के लिए संस्थागत ढांचे हेतु केंद्र सरकार को एक समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। सागरमाला परियोजना के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, यह 'सहयोग संघवाद' के स्थापित सिद्धांतों के अंतर्गत क्रमबद्धता और समन्वय के साथ काम करने हेतु केंद्र, राज्य सरकारों और स्थानीय प्राधिकरणों के लिए एक मंच के तौर पर होना चाहिए। समग्र नीति दिशानिर्देशों और उच्चस्तरीय सहयोग के साथ-साथ योजना और परियोजनाओं के कार्यान्वयन के विभिन्न पक्षों की समीक्षा के लिए एक राष्ट्रीय सागरमाला सर्वोच्च समिति (एनएसएसी) उल्ल्िखित हैं। एनएसएसी की अध्क्षता जहाजरानी मंत्री के द्वारा की जायेगी और इसमें मंत्रालयों के हित धारकों के तौर पर कैबिनेट मंत्री और समुद्री क्षेत्र से जुड़े राज्यों के बंदरगाहों के प्रभारी के तौर पर मुख्यमंत्री/मंत्री सदस्य के रूप में होंगे। कार्यान्वयन की पहल के लिए नीति निर्देश और दिशानिर्देश देते समय यह समिति समग्र राष्ट्रीय संदर्भ योजना (एनपीपी) को स्वीकृति देगी और इन योजनाओं के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करेगी।
सागरमाला से संबंधित परियोजनाओं में समन्वय और सुविधाओं के लिए राज्यस्तर पर प्रभारी तंत्र बनाने के क्रम में, राज्य सरकारें राज्य सागरमाला समिति के गठन का सुझाव देगी। इनकी अध्यक्षता बंदरगाहों के प्रभारी के तौर पर मुख्यमंत्री/मंत्री, संबंधित विभागों और एजेंसियों के साथ करेंगे। राज्य स्तर की समिति एनएसएसी में लिए गए फैसलों को प्राथमिकता के तौर पर देखेगी। राज्य स्तर पर राज्य समुद्री क्षेत्र बोर्ड/राज्य बंदरगाह विभाग, राज्य सागरमाला समिति को सेवा प्रदान करेंगे और एसपीवी (आवश्यकता के अनुसार) और निरीक्षण के माध्यम से व्यक्तिगत परियोजनाओं के सहयोग और कार्यान्वयन के लिए भी जिम्मेदार होंगे। प्रत्येक तटीय आर्थिक क्षेत्र का विकास व्यक्तिगत परियोजनाओं और इनको सहायता देने वाली गतिविधियों के माध्यम से किया जायेगा, जिनकी देखरेख राज्य सरकार, केन्द्रीय मंत्रियों और एसपीवी के द्वारा की जायेगी, जिन्हें राज्य स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा अथवा एसडीसी और बंदरगाहों द्वारा आवश्यकता के अनुरूप गठित किया जायेगा।
सागरमाला समन्वय और परिचालन समिति का गठन कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में किया जायेगा, इसमें जहाजरानी, सड़क परिवहन और राजमार्ग, पर्यटन, रक्षा, गृहमंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, राजस्व विभाग, व्यय, औद्योगिक नीति मंत्रालयों के सचिवों, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, एनआईटीआई आयोग सदस्य के तौर पर शामिल होंगे। समिति विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों और कार्यान्वयन के साथ जुड़ी एजेंसियों के बीच सहयोग प्रदान करेगी और राष्ट्रीय महत्व की योजना के कार्यान्वयन, विस्तृत मास्टर प्लानों और परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा करेगी। इसके साथ-साथ यह परियोजनाओं को निधि प्रदान करने और उनके कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर भी विचार करेगी। यह समिति परियोजनाओं के कोष के लिए उपलब्ध वित्तीय विकल्पों की भी समीक्षा के साथ-साथ परियोजना के वित्त पोषण/निर्माण/संचालन में सार्वजनिक-निजी साझेदारी की संभावनाओं पर भी विचार करेगी।
केन्द्र स्तर पर सागरमाला विकास कम्पनी को राज्य स्तर/क्षेत्रीय स्तर के विशेष प्रयोजन वाहनों (एसपीवी) की सहायता के लिए कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत गठित किया जायेगा और परियोजनाओं के कार्यान्यन हेतु इक्विटी सहायता के साथ बंदरगाहों के द्वारा एसपीवी का गठन किया जायेगा। व्यक्तिगत क्षेत्रों के लिए दो वर्ष की अवधि के भीतर तैयार विस्तृत मास्टर प्लानों को एसडीसी द्वारा अपनाया भी जायेगा। एसडीसी की व्यवसायिक योजना को 6 महीनों की अवधि के भीतर अंतिम रूप दिया जायेगा। एसडीसी उन सभी शेष परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए कोष प्रदान करेगा जिन्हें किसी अन्य माध्यम से वित्त पोषण नहीं हो सकता है।
परियोजना कार्यान्यन और वित्त पोषण
परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रारम्भ करने के क्रम में सागरमाला की अवधारणा में कार्यान्वयन हेतु शामिल चिह्नित परियोजनाओं को शुरू करने का प्रस्ताव है। ये चिह्नित परियोजनायें प्रारम्भिक चरण में कार्यान्वयन के लिए उपलब्ध आंकड़ों और सम्भाव्य अध्ययन रिपोर्टों और राज्य सरकारों एवं केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा की गई तैयारियों, दिखाई गई रूचि पर आधारित होंगी।
इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के सभी प्रयासों को निजी क्षेत्रों और सार्वजनिक-निजी साझेदारी जहां तक भी संभव हो के माध्यम से किया जायेगा। सागरमाला वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए परियोजना के प्रारम्भिक चरण में परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक कोष 692 करोड़ रूपये परिलक्षित है। आगामी वर्षों के लिए तटीय आर्थिक क्षेत्रों हेतु विस्तृत मास्टर प्लान के पूर्ण हो जाने के बाद धन की और आवश्यकता को निर्धारित किया जायेगा। एससीएससी के द्वारा स्वीकृत संबंधित मंत्रालयों के द्वारा परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु इन कोषों का उपयोग किया जायेगा।
सुभाष चंद्र बोस की गुप्त फाइलों को ऑनलाइन किया गया
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से संबंधित 50 गुप्त फाइलों की दूसरी श्रृंखला को बुधवार को सरकार की ओर से सार्वजनिक किया जायेगा। इन फाइलों को केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और नागरिक उड्डयन मंत्री 29 मार्च, 2016 को अपराह्न 3 बजकर 30 मिनट पर वेब पोर्टल www.netajipapers.gov.in पर जारी करेंगे। वर्तमान 50 फाइलों की श्रृंखला में 10 फाइलें प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंधित हैं, 10 फाइलें गृह मंत्रालय से हैं और 30 फाइलें विदेश मंत्रालय से संबंधित हैं। ये फाइलें 1956 से 2009 की अवधि की हैं।
गौरतलब है कि नेताजी से संबंधित 100 फाइलों के पहली श्रृंखला को प्रारंभिक संरक्षण व्यवहार और डिजिटलीकरण के बाद 23 जनवरी 2016 को नेताजी की 119वीं जयंती के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक किया था।
50 फाइलों की वर्तमान श्रृंखला को आम जनता की लगातार हो रही मांग के तहत जारी किया जायेगा और इसे स्वतंत्रता संग्राम की समूची पृष्ठभूमि पर भविष्य में विद्वानों के अनुसंधान की सुविधा के लिए जारी किया जायेगा। इन ज्यादातर फाइलों को विशेष रूप से गठित अभिलेखों से संबंधित विशेषज्ञों की समिति ने जांच के बाद जारी किये हैं। विशेषज्ञों ने निम्नलिखित पहलुओं पर गौर किया :
1 संरक्षण इकाई द्वारा जहां कहीं भी संरक्षण और जरूरी सुधार की जरूरत हो, उसके मुताबिक फाइलों की भौतिक स्थितियों को तय किया गया।
2 वेब पोर्टल www.netajipapers.gov.in को अपलोड करके इसके डिजिटल रिकॉर्ड्स की गुणवत्ता का सत्यापन किया गया।
3 फाइलों के किसी भी डुप्लीकेशन को जांचा गया।
इन बातों को अनुसंधानकर्ताओं और सामान्य जनता के इस्तेमाल के लिए इंटरनेट पर जारी किया जा रहा है।
आगे यह तथ्य भी जोड़ा जा सकता है कि 1997 में भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार ने रक्षा मंत्रालय की ओर से भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिन्द फौज), और 2012 में खोसला आयोग से जुड़ी 1030 फाइलें/आइटम और गृह मंत्रालय से न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग की 759 फाइलें/आइटम प्राप्त कीं। इन सभी फाइलों/आइटमों को पहले ही पब्लिक रिकॉर्ड्स के लिए सार्वजनिक किया जा चुका है।
रविवार, 27 मार्च 2016
2017 विश्वकप फुटबॉल अंडर-17 प्रतियोगिता के भारत में आयोजन को मंजूरी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में फेडरेशन इंटरनेशनल डी फुटबॉल एसोसिएशन (फीफा) अंडर-17 विश्वकप 2017 के आयोजन से संबंधित निम्नलिखित निर्णयों को मंजूरी दे दी है।
(क) आयोजन स्थल निम्नलिखित होंगे:
1) जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली
2) डी.वाई. पाटिल स्टेडियम, नवी मुंबई
3) जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, कोच्चि
4) सॉल्ट लेक स्टेडियम, कोलकाता
5) जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, फैटोरडा गोवा
6) आईजी स्टेडियम, गुवाहाटी
(ख) खेल विभाग के सचिव, एसएआई के डीजी एवं खेल विभाग के वित्तीय सलाहकार से निर्मित एक समिति को अखिल भारतीय फुटबॉल संघ (एआईएफएफ)/ एफआईएफए के परामर्श से आयोजन स्थलों में किसी परिवर्तन से संबंधित कठिनाइयों को दूर करने के लिए आवश्यक समायोजन करने के लिए अधिकृत किया गया है।
(ग) डिसप्ले बोर्ड आदि समेत उपरिशायी एवं उपकरण के लिए व्यय का दायित्व लिया जा सकता है। बहरहाल, कुल लागत 95 करोड़ रुपये के भीतर होगी जैसी कि पहले मंजूरी दी जा चुकी है।
(घ) कोष की किसी अतिरिक्त आवश्यकता की संभावना में खेल विभाग इस मामले को व्यय विभाग के सामने प्रस्तुत करेगा।
(ङ) खेल मंत्रालय को प्रतियोगिता के संचालन के लिए आयोजन समिति गठित करने के लिए अधिकृत किया गया है।
गोवा में राष्ट्रीय आरोग्य मेला शुरू
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा गोवा राज्य सरकार एवं भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सहयोग से आयोजित गोवा में एक राष्ट्रीय स्तर के आरोग्य मेले की शुरुआत पणजी के निकट बैम्बोलीन में गोवा विश्वविद्यालय परिसर में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इनडोर स्टेडियम में हुई। केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीपद येस्सो नाईक ने गोवा के मुख्यमंत्री श्री लक्ष्मीकांत पारसेकर, गोवा विधानसभा के स्पीकर श्री अनंतशेट, गोवा के उपमुख्यमंत्री श्री फ्रांसिस डिसूजा, वन मंत्री श्री राजेन्द्र अरलेकर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सुश्री अलीना सलदान्हा एवं विपक्ष के नेता श्री प्रकाश सिंह राणे की उपस्थिति में इस चार दिवसीय मेले का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीपद येस्सो नाईक ने 21 जून, 2016 को आयोजित होने वाले दूसरे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए योगा प्रोटोकॉल का विमोचन भी किया।
अपने उद्घाटन भाषण में मंत्री महोदय ने कहा कि आयुर्वेद विश्व को भारत का उपहार है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत ने विश्व भर में चिकित्सा की इस पारंपरिक प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ एक समझौता किया है। श्री नाईक ने कहा कि भारत ने कैंसर के क्षेत्र में आयुष के तहत एक संयुक्त अनुसंधान के लिए अमेरिका के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किया है।
केंद्रीय मंत्री ने जानकारी दी कि केंद्र सरकार देश के प्रत्येक जिले में एक आयुष अस्पताल खोलने पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि आयुष मंत्रालय की योजना निकट भविष्य में एक अखिल भारतीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान तथा गोवा में प्रत्येक पद्धति की एक ईकाई स्थापित करने की भी है।
इस चार दिवसीय मेले का उद्देश्य लोगों के बीच आयुष प्रणालियों की प्रभावोत्पादकता, उनकी कम लागत और सामान्य बीमारियों के बचाव एवं उपचार के लिए उपयोग में आने वाले हर्ब एवं पौधों की उपलब्धता के बारे में विभिन्न जन मीडिया चैनल द्वारा उनके दरवाजे पर जानकारी उपलब्ध कराना है जिससे कि सबके लिए स्वास्थ्य का लक्ष्य अर्जित किया जा सके।
एसकेजे/एनआर-1660
भारत को एक मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व की ज़रुरत
भारत का आने वाले दिनों में दशकीय दोहरे अंक की आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करना तय है, साथ ही, एक अरब से अधिक खुशहाल लोगों के साथ उसका एक महाशक्ति बनना भी तय है। अगर हम अधिक पारदर्शिता के साथ बड़े पैमाने की लागत का लाभ उठाएं और शुरू किए गए कार्यों की निगरानी करें तो भारत के पास बहुत जल्द खुद को रुपांतरित करने एवं विकसित देशों के समूह में प्रवेश कर जाने की क्षमता है। केंद्रीय बिजली, कोयला एवं नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री पीयूष गोयल ने ये उद्गार व्यक्त किए। श्री पीयूष गोयल आज यहां युवा भारतीयों पर सम्मेलन ‘एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत का निर्माण ’ सत्र को संबोधित कर रहे थे।
बहरहाल, समाज के निचले स्तर के लोगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की जरूरत की चेतावनी देते हुए श्री गोयल ने कहा कि ‘हम तक एक आर्थिक महाशक्ति नहीं बन सकते जब तक सामाजिक संरचना के अंतिम पायदान के खड़े व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने, कुशल बनने तथा एक बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर की दिशा में बढ़ने का समान अवसर प्राप्त नहीं हो जाता।’ मेरे विचार से देश भर के गांव में बिजली सुविधा की कमी एक राष्ट्र के रूप में हमारे लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे लगभग 50 मिलियन भर घर हैं जिनके पास बिजली की सुविधाएं नहीं हैं। अरुणाचल प्रदेश में ऐसे लगभग 808 गांव हैं जहां बिजली सुविधाओं की कमी है। हम जहां अब सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश में एक ग्रिड का निर्माण करने पर कार्य कर रहे हैं, इसमें अभी वक्त लगेगा। इसलिए हम अंतरिम तौर पर ऑफ-ग्रिड समाधानों पर भी नजर रख रहे हैं।
एक साथ मिलकर कार्य करने के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि ‘सरकार एवं युवाओं को मिलकर कार्य करने, एक साथ विचार करने तथा विचारों को एक साथ क्रियान्वित करने की तथा एक टीम के रूप में काम करने की जरूरत है जिससे कि हम विकास के फलों को सामाजिक संरचना के अंतिम पायदान तक खड़े व्यक्ति तक पहुंचा सकें।’
उन कार्यों का उदाहरण देते हुए, जहां सरकार और युवाओं ने सफलतापूर्वक परिणामों को प्रदर्शित किया हैं कि एक टीम वर्क से उल्लेखनीय लाभ हासिल हो सकते हैं, उन्होंने कहा, ‘उज्जवल डिस्कॉम एंश्योरेंस योजना बिजली क्षेत्र में हाल में की जाने वाली सबसे व्यापक सुधार योजनाओं में से एक है, जिसकी परिकल्पना बिजली मंत्रालय की एक युवा टीम द्वारा की गई थी। ठीक इसी प्रकार एक कोयला तथा बिजली की कमी वाले देश से एक अधिशेष स्थिति तथा कोल इंडिया द्वारा उत्पादन में बढ़ोतरी करने की रुपरेखा कोल इंडिया की सहायक कंपनियों द्वारा बनाई गई थी, जिसने 500 युवा लोगों की एक टीम गठित की थी, जो कि इस उदाहरण के मुख्य वास्तुकार थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि 365 इंजीनियरों से अधिक की एक युवा टीम गांवों के विद्युतिकरण की दिशा में काम कर रही है जहां बिजली की कोई सुविधा नहीं है और उन्होंने 7000 गांव में बिजली पहुंचा भी दी है।’
सरकार द्वारा क्रियान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं पर एक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत की विवेचना करते हुए श्री गोयल ने कहा, ‘हमें वर्तमान प्रणाली में अवसरों को पहचानने तथा यह देखने की जरूरत है कि किस प्रकार इन्हें कार्य योग्य एजेंडा में तब्दील किया जा सकता है। अगर भारत सरकार द्वारा पिछले 22 महीनों के दौरान शुरू किए जाने वाली योजनाओं को अलग करके देखा जाए तो उनका बहुत प्रभाव नहीं भी हो सकता है। अगर हम यह महसूस करें किे किस प्रकार ये विभिन्न योजनाएं (स्किल इंडिया कार्यक्रम, जनधन योजना, मुद्रा योजना, मिशन अन्वेषण आदि) एक दूसरे के साथ समेकित हैं और एक साथ मिलकर सहायता संघ के रूप में काम करती हैं तो इन सभी योजनाओं का लाभ भारत के युवाओं के बेहतर भविष्य के सभी कायक्रमों के साथ जुड़ सकता है।’
भारत के पास मौजूद युवाओं की बड़ी आबादी के लाभ की चर्चा करते हुए श्री गोयल ने कहा कि इस बड़ी युवा आबादी का लाभ हमारी सबसे बड़ी ताकत है और हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। इस कार्यक्रम तथा भारत के युवा किस प्रकार एक महाशक्ति बनने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं, के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार से यह योजना एक रुपांतकारी पहल की धुरी बन सकती है।‘ उन्होंने युवाओं से सरकार के साथ साझेदारी करने और एक साथ मिलजुलकर कार्य करने की अपील की है।
एक विकसित देश की दिशा में आगे बढ़ने में अन्वेषण एवं प्रौद्योगिकियों की सुविधा की मुख्य भूमिका पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर हम सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की तरफ गौर करें जैसा कि बिजली के क्षेत्र में हुआ है, बड़े पैमाने की लागत का इस्तेमाल करें और विनिर्माण को प्रोत्साहित करें तो यह भारत को अकुशल प्रौद्योगिकियों, परिसंपत्तियों एवं प्रचलनों को पीछे छोड़कर तेजी से आगे निकलने तथा ऐसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने जो ज्यादा कुशल तथा कम उत्सर्जनकारी हो, में मददगार साबित होगा।’
श्री गोयल ने नितिन गडकरी के नेतृत्व के तहत सृजित एक लघु कार्यसमूह का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यह कार्यसमूह भारत के 2030 तक शतप्रतिशत बिजली वाहनों की दिशा में रुपांतरित होने की संभावना का मूल्यांकन कर रहा है। यह योजना एक स्व वित्त पोषण पर आधारित होगी तथा उन बचतों के मौद्रीकरण पर विचार करेगी जो उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम उत्पादों पर प्राप्त होंगे।
बिजली मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक की सफलता को रेखांकित करते हुए श्री गोयल ने कहा, ‘भारत के एलईडी कार्यक्रम का परिणाम वार्षिक रूप से 100 बिलियन यूनिट की बचत के रूप में सामने आएगा तथा उपभोक्ताओं को इसका सीधा लाभ मिलेगा। आर्थिक रूप से यह सालाना 6.5 बिलियन डॉलर की बचत में सहायक होगा। पर्यावरण चिंताओं को देखते हुए यह कार्यक्रम लगभग 80 मिलियन टन कार्बन डायआक्साइड में कमी लाएगा। यह कार्यक्रम प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार बड़े पैमाने की किफायत का लाभ एलईडी बल्बों की कीमत में उल्लेखनीय कमी के रूप में प्राप्त हो सकता है।’
एक महाशक्ति की दिशा में देश के आगे बढ़ने में ऊर्जा सुरक्षा के महत्व की चर्चा करते हुए श्री गोयल ने कहा कि भारत के पास आज उत्पादित होने वाली बिजली से 150 प्रतिशत अधिक बिजली उत्पादन की क्षमता है। उन्होंने कहा कि अगर हम उन परिसंपत्तियों का इस्तेमाल करें जिनका उपयोग नहीं हो पाता तो भारत का ऊर्जा के लिहाज से सुरक्षित होना तय है। उन्होंने कहा, ‘अब हम तेल एवं गैस पर अपनी निर्भरता कम करने पर काम कर रहे हैं। इसके साथ-साथ हम अपने खपत को कम करने के कार्यक्रम पर भी कार्य कर रहे हैं। हम ऐसे खपत को बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं जिसे पेट्रोल के साथ मिश्रित किया जा सके। अब हम पेट्रोल के साथ 5 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और अगले स्तर पर इसका किसानों की आय पर एक रुपांतकारी प्रभाव पड़ेगा।’
एसकेजे/एनआर-1656
शुक्रवार, 25 मार्च 2016
प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना- 'ग्रामीण' का क्रियान्वयन
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण आवास योजना 'ग्रामीण' के क्रियान्वयन को अनुमति प्रदान कर दी है। इस योजना के तहत सभी बेघर और जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले लोगों को पक्का मकान बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
इस परियोजना के क्रियान्वयन हेतु 2016-17 से 2018-19 तक तीन वर्षों में 81975 रुपये खर्च होंगे। यह प्रस्तावित किया गया है कि परियोजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 से 2018-19 के कालखंड में एक करोड़ घरों को पक्का बनाने के लिए मदद प्रदान की जाएगी। दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़ कर यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में पूरे भारत में क्रियान्वित की जाएगी। मकानों की क़ीमत केंद्र और राज्यों के बीच बांटी जाएगी।
विस्तृत जानकारी निम्न हैः-
क) प्रधानमंत्री आवास योजना की ग्रामीण आवास योजना- ग्रामीण का क्रियान्वयन।
ख) ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ आवासों के निर्माण के लिए 2016-17 से 2018-19 तक तीन वर्षों में मदद प्रदान की जाएगी।
ग) समतल क्षेत्रों में प्रति एकक 1,20,000 तक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में 1,30,000 तक सहायता में बढ़ोतरी।
घ) 21,975 करोड़ रुपए की अतिरिक्त वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) से की जाएगी।
ड.) लाभान्वितों की पहचान के लिए सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना- 2011 का उपयोग।
च) परियोजना के तहत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी सहायता हेतु नेशनल टेकनिकल सपोर्ट एजेंसी का गठन।
क्रियान्वयन की रणनीति एवं लक्ष्यः-
• पूर्ण पारदर्शिता एवं निष्पक्ष्ता सुनिश्चित करते हुए लाभान्वितों की पहचान का कार्य सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना की सूचनाओं का प्रयोग कर किया जाएगा।
• पूर्व में सहायता प्राप्त लाभान्वितों एवं अन्य कारणों से अयोग्य लोगों की पहचान के लिए सूची ग्राम सभा को दी जाएगी। अंतिम सूची का प्रकाशन किया जाएगा।
• घरों के निर्माण की क़ीमत केंद्र एवं राज्य द्वारा समतल क्षेत्रों में 60:40 के अनुपात में तथा पहाड़ी/ उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों हेतु 90:10 के अनुपात में रखी जाएगी।
• लाभान्वितों की वार्षिक सूची की पहचान ग्राम सभा द्वारा सहभागिता पूर्वक की जाएगी। मूल सूची की प्राथमिकता में परिवर्तन के लिए ग्राम सभा को लिखित में न्यायसंगत ठहराना होगा।
• लाभान्वित के खाते में सीधे धनराशि स्थानांतरित की जाएगी।
• फोटोग्राफ एप के माध्यम से अपलोड किए जाएंगे, भुगतान की प्रगति को लाभान्वित एप के माध्यम से देख पाएंगे।
• लाभान्वित मनरेगा के अंतर्गत 90 दिनों के अकुशल श्रम का अधिकारी होगा, सर्वर से लिंक कर तकनीकी आधार पर इसको सुनिश्चित किया जाएगा।
• मकानों की संरचना ऐसी होगी जो क्षेत्रीय आधार पर उपयुक्त हों, मकानों की रचना में ऐसी खासियतें रखी जाएंगी जो उन्हें प्राकृतिक आपदाओं से बचा सकें।
• मिस्त्रियों की संख्या में कमी को देखते हुए उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जाएगी।
• मकान बनाने में प्रयुक्त सामग्री की अतिरिक्त ज़रूरत को देखते हुए ईंटों के निर्माण हेतु सीमेंट या फ्लाई एश का मनरेगा के अंतर्गत कार्य किया जाएगा।
• लाभान्वित को 70,000 रुपए तक का ऋण लेने की सुविधा प्रदान की जाएगी।
• मकान का क्षेत्रफल मौजूदा 20 वर्ग मीटर से बढ़ाकर भोजन बनाने के स्वच्छ स्थान समेत 25 वर्ग मीटर तक किया जाएगा।
• परियोजना से जुड़े सभी लोगों के लिए गहन क्षमता सर्जक प्रक्रिया रखी जाएगी।
• ज़िला एवं ब्लॉक स्तर पर आवासों के निर्माण हेतु तकनीकी सुविधाएं प्रदान करने के लिए मदद मुहैया कराई जाएगी।
• आवासों के निर्माण की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एवं केंद्र और राज्य सरकारों को तकनीकी मदद देने के लिए एक नेशनल टेकनीकल सपोर्ट एजेंसी का गठन किया जाएगा।
मकान एक आर्थिक सम्पत्ति है एवं स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव डालने के साथ ही सामाजिक उन्नति में योगदान देता है। किसी परिवार के लिए रहने का स्थाई मकान होने के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष फायदे अमूल्य एवं ढेरों हैं।
निर्माण क्षेत्र भारत में दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार प्रदाता है। इस क्षेत्र का 250 से भी ज़्यादा अधीनस्थ उद्योगों से वास्ता है। ग्रामीण आवास योजना के विकास से ग्रामीण समाज में रोज़गारों का सृजन होता है और इससे गांवों के अर्थतंत्र का विकास होता है।
रहने के लिए वातावरण बेहतर होने के अप्रत्यक्ष फायदे श्रम उत्पादकता एवं स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव के रूप में होते हैं। पोषण, स्वच्छता, माता एवं बच्चे के स्वास्थ्य समेत मानव विकास के मापदण्डों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जीवन स्तर बेहतर होता है।
केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में 6 फीसदी की बढ़ोत्तरी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों को महंगाई भत्ते (डीए) की अतिरिक्त किस्त जारी किए जाने तथा पेंशनयाफ्ताओं को महंगाई राहत (डीआर) 1-1-2016 से दिए जाने को मंजूरी दे दी। यह मूल्य वृद्धि की क्षतिपूर्ति के लिए मूल वेतन/पेंशन के 119 प्रतिशत की वर्तमान दर की तुलना में 6 प्रतिशत के अधिक की वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।
इससे 50 लाख सरकारी कर्मचारियों एवं 58 लाख पेंशनयाफ्ताओं को लाभ पहुंचेगा। यह वृद्धि स्वीकृत फार्मूले के अनुरूप है जो कि 6ठे केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) की अनुशंसाओं पर आधारित है। महंगाई भत्ते एवं महंगाई राहत दोनों की वजह से वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान (जनवरी,2016 से फरवरी,2017 तक के 14 महीनों की अवधि के लिए) सरकारी खजाने पर संयुक्त प्रभाव क्रमश: 6796.50 करोड़ रुपये सालाना एवं 7929.24 करोड़ रुपये का होगा।
बुधवार, 23 मार्च 2016
सैलानियों की मदद करने में कारगर साबित हो रहा है पर्यटक हेल्पलाइन नंबर
पर्यटन मंत्रालय की 24X7 टोल फ्री पर्यटक इन्फो/हेल्पलाइन नंबर 1800111363 या एक शार्ट कोड 1363 पर 20 मार्च, 2016 तक पर्यटकों के कुल 17911 फोन कॉल प्राप्त हुए हैं। 8 फरवरी, 2016 को पर्यटन और संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा द्वारा इसका शुभांरभ करने के बाद से इस हेल्पलाइन की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। इस इंफोलाइन सेवा के जरिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों/यात्रियों के लिए देश में यात्रा और पर्यटन से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा फोन करने वाले को देश में यात्रा के दौरान परेशानी के समय क्या कदम उठाने चाहिए इस बारे में सलाह दी जाती है तथा आवश्यकता पड़ने पर संबंधित अधिकारी को सावधान भी किया जाता है।
इस परियोजना का कार्यान्वयन भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा मेसर्स टाटा बीएसएस के माध्यम से किया जा रहा है जो खुली बोली प्रक्रिया के बाद इस कार्य से जुड़ी हुई है। अनुबंध केन्द्रों द्वारा संचालित भाषाओं में हिंदी एवं अंग्रेजी के अतिरिक्त 10 अंतर्राष्ट्रीय भाषाएं शामिल हैं जिनके नाम हैं- अरबी, फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, जापानी, कोरियाई, चीनी, पोर्तुगीज, रूसी एवं स्पेनिश शामिल हैं।
भारत में यात्रा कर रहे या यात्रा करने की योजना बना रहे पर्यटक बिना किसी परेशानी के सूचना एवं सहायता प्राप्त कर सकते हैं। पर्यटकों (घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों) द्वारा भारत में रहने के दौरान किये गये कॉल नि:शुल्क होंगे। उपरोक्त भाषाएं बोलने वाले भारत में आए अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक तथा अंतर्राष्ट्रीय कॉलर को भी संबंधित भाषाओं में प्रवीण कॉल एजेंट द्वारा निर्देशित किया जायेगा।
टूरिस्ट इंफो लाइन का केंद्रबिंदु आईईसी अर्थात सूचना, शिक्षा एवं पर्यटकों के लिए संचार है, जिसे एक हेल्प डेस्क से मदद मिलती है। यह सेवा मुख्य रूप से उन लोगों के लिए है, जो भारत के बारे में या भारत के भीतर यात्रा करने के बारे में बहुत कम जानते हैं। यह ऐसे लोगों के लिए भी मददगार है, जो भारतीय प्रणालियों को नहीं समझते और अक्सर अंग्रेजी भी नहीं जानते हैं।
पर्यटकों के खिलाफ, विशेष रूप से महिला पर्यटकों के खिलाफ अपराध से जुड़ी घटनाओं की खबरों के कारण विदेशी टूर ऑपरेटरों तथा भारत आने वाले संभावित आगंतुकों द्वारा पर्यटकों की सुरक्षा की चिंता के मद्देनजर ऐसी पर्यटक इंफो/हेल्पलाइन आवश्यकता महसूस की जा रही है। दलालों की धमकियों एवं पर्यटकों के साथ ठगी के मामलों को लेकर भी गंभीर चिंताए जताई गई थी।
मंगलवार, 22 मार्च 2016
ग्रामीण विकास योजनाओं में गुणवत्ता की निगरानी ज़रुरी- पीएम मोदी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को ग्रामीण विकास योजनाओं की प्रगति की समीक्षा की। इस दौरान प्रधानमंत्री के समक्ष नीति आयोग द्वारा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) और दीनदयाल अंत्योदय योजना (डीएवाई) की प्रगति पर एक प्रस्तुति दी गई।
वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान हर दिन औसतन 91 किलोमीटर लंबी ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया है। इस तरह कुल मिलाकर 30,500 किमी लंबी ग्रामीण सड़कों का निर्माण हुआ है। इसके परिणामस्वरूप चालू वित्त वर्ष के दौरान 6500 बस्तियों को जोड़ा गया है।
इस दौरान प्रधानमंत्री को ग्रामीण सड़कों के निर्माण कार्य में और ज्यादा तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में अपनाए जा रहे अभिनव सर्वोत्तम तौर-तरीकों के उपयोग के बारे में सूचित किया गया। नियोजन और निगरानी के लिए जीआईएस एवं अंतरिक्ष संबंधी चित्रों का उपयोग, विभिन्न स्तरों की संख्या न्यूनतम करके धनराशि का कारगर प्रवाह सुनिश्चित करना और ‘मेरी सड़क’ नामक एप के जरिए नागरिक शिकायतों का निवारण इन अभिनव सर्वोत्तम तौर-तरीकों में शामिल हैं।
प्रधानमंत्री ने संबंधित अधिकारियों को इस योजना के तहत बनाई जा रही सड़कों की गुणवत्ता संबंधी कठोर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावशाली तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि सामग्री की खरीद, निर्माण और रख-रखाव जैसे चरणों में गुणवत्ता की निगरानी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
दीनदयाल अंत्योदय योजना का लक्ष्य टिकाऊ आजीविका के जरिये गरीबी उन्मूलन सुनिश्चित करना है। प्रधानमंत्री को यह भी जानकारी दी गई कि अब तक 3 करोड़ परिवारों को स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) से जोड़ा गया है। प्रधानमंत्री ने ‘आधार’ के जरिये एसएचजी को दिये जा रहे ऋणों पर समुचित ढंग से नजर रखने को कहा। उन्होंने विशेष जोर देते हुए कहा कि इस योजना को कामयाब बनाने के लिए लक्षित लाभार्थियों तक ऋणों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
अच्छी फोटोग्राफी एक बेहतरीन कला है - अरुण जेटली
केन्द्रीय वित्त, कॉरपोरेट मामले तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार उन रचनात्मक पेशेवरों को सरकार द्वारा सम्मान और पहचान देने की एक बड़ी पहल है, जिन्होंने अपने रचनात्मक चित्रों की महारत से इतिहास में क्षणों को परिभाषित किया है। फोटोग्राफर प्रतिकूल परिस्थितियों में कार्य करते हैं और दिन के उन क्षणों को तस्वीरों में कैद करने के लिए लंबी प्रतीक्षा करते हैं, जो जनमानस के मन में प्रभाव डालने वाले हों। श्री जेटली ने ये उद्गार आज 5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार समारोह के अवसर पर अपने संबोधन में व्यक्त किए। सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर तथा सूचना और प्रसारण सचिव श्री सुनील अरोरा भी इस अवसर पर मौजूद थे।
इस अवसर पर श्री जेटली ने कहा कि फोटोग्राफी एक जटिल कला है, जो विभिन्न घटनाओं/हस्तियों से संबंधित तस्वीरों को कैद करने के माध्यम से हमें संबंधित इतिहास की याद दिलाती है। उन्होंने श्री भवन सिंह के पेशेवर कार्य की प्रशंसा की, जिन्हें सातवें दशक के अंत से अभी तक भारत की तस्वीर यात्रा को कैमरे में कैद करने के उत्कृष्ट कार्य के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया है। श्री जटली ने श्री भवन सिंह के चार दशकों से भी अधिक लंबे कैरियर के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण अवसरों पर छवियों को चित्रित करने में उनकी पेशेवर दक्षता का भी उल्लेख किया।
इस अवसर पर सूचना और प्रसारण सचिव श्री सुनील अरोरा ने कहा कि एक फोटोग्राफ/कार्टून में एक पूरे संपादकीय लेख से भी अधिक अभिव्यक्ति की शक्ति होती है। उन्होंने यह भी कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन फोटो प्रभाग एक मीडिया इकाई है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं के स्टिल फोटोग्राफों के उत्पादन और भंडारण में लगा देश का सबसे बड़ा संगठन है, जो अपने संग्राहक की डिजिटलीकरण प्रक्रिया चला रहा है।
श्री अरुण जेटली और कर्नल राज्यवर्धन राठौर ने 5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार के विजेताओं को सम्मानित किया। श्री भवन सिंह को उनके शानदार कैरियर तथा फोटोग्राफी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान किया गया। श्री भवन सिंह ने भारतीय समाचार उद्योग में लगभग पांच दशकों से अधिक समय कार्य किया और वे देश के एक वरिष्ठ फोटो पत्रकार हैं। उन्होंने अपना कैरियर एक समाचार पत्र से शुरू किया और बाद में अनेक पत्रिकाओं में कार्य किया। उन्होंने इंडिया टुडे पत्रिका में पत्रिका फोटो संपादक के रूप में भी कार्य किया। उन्हें विश्व प्रेस फोटो पुरस्कार भी दिया जा चुका है।
विभिन्न श्रेणियों में कुल 13 पुरस्कार प्रदान किए गए, जिनमें वर्ष के पेशेवर फोटोग्राफर, विशेष उल्लेख पुरस्कार (पेशेवर), वर्ष का शौकिया फोटोग्राफर, विशेष उल्लेख पुरस्कार (शौकिया) शामिल हैं। वर्ष का फोटोग्राफर पुरस्कार श्री जावेद अहमद डार को प्रदान किया गया, जिन्होंने मानव हित की तस्वीरों को वरीयता दी गई। उनके फोटो अनेक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में प्रकाशित हुए हैं। श्री हिमांशु ठाकुर को वर्ष का शौकिया फोटोग्राफर पुरस्कार प्रदान किया गया। श्री जेटली ने 5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार के ब्रोशर का भी विमोचन किया, जिसमें पुरस्कार विजेताओं और उनके कार्यों का पूरा विवरण दिया गया है।
5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कारों की ज्यूरी के लिए श्री अशोक दिलवाले की अध्यक्षता में छह सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। ज्यूरी के अन्य सदस्यों के नाम श्री के. माध्वन पिल्लई, श्री सुधारक ओलवे, श्री एस. सतीशे, श्री गुरिंदर ओसान और श्री संजीव मिश्रा हैं।
मेडिकल कॉलेजों के लिए ऑन लाइन पीजी आवेदन शुरू
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मेडिकल कॉलेजों में आवेदन के लिए आवेदन/प्रस्ताव जमा करने की नई प्रक्रिया शुरू की है। यह प्रक्रिया आवेदनों को व्यक्तिगत रूप से जमा करने की परंपरागत प्रक्रिया के साथ-साथ चलेगी। संशोधित प्रक्रिया के अनुसार ऑन लाइन आवेदन करना जरूरी है। यह प्रक्रिया 15 मार्च, 2016 से लागू होगी और आवेदन करने की आखिरी तारीख 7 अप्रैल, 2016 है।
आवेदन के लिए www.mohfw.nic.in पर जाएं और medicalcollegeappication.gov.in. के लिंक पर क्लिक करें। आवेदकों से रजिस्टेशन विंडो पर वैध मेल पते का उपयोग करते हुए, एक बार ही पंजीकरण करने का अनुरोध किया जाता है। सफल पंजीकरण के बाद आवेदक को एक आईडी मिलेगा। आवेदक इस आईडी और पासवर्ड का उपयोग करते हुए लॉग-इन करेंगे और ऑन लाइन आवेदन की शर्तों को पढ़कर उसे स्वीकार करेंगे। आवेदन पत्र के सभी कॉलमों को भरना जरूरी है। आवेदकों से विश्वविद्यालय संबद्धता की स्वीकृति की स्कैन प्रति अपलोड करने का भी अनुरोध है। डिमांड ड्राफ्ट (फीस भुगतान के सबूत के रूप में) या अन्य दस्तावेज अगर आवश्यक हो, तो उसे भी जमा करना होगा। इसके बाद आवेदन को अपलोड करना होगा। आवेदन पत्र को सफलतापूर्वक जमा करने के बाद एक पावती प्रदान की जाएगी, जिसे आवेदक को बाद की अनुवर्ती कार्रवाई के लिए अपने पास सुरक्षित रखना होगा। आवेदकों से एमसीआई विनियमों के अनुसार निर्धारित पूरे आवेदन पत्र को व्यक्तिगत रूप से जमा करने का भी अनुरोध किया जाता है, जिसके साथ फीस भुगतान के सबूत के रूप में मूल ड्राफ्ट के साथ वैध दस्तावेज भी जमा करने होंगे। यह भी ध्यान दें कि ऑन-लाइन आवेदन एक पूर्ण आवेदन नहीं है। यह केवल उपरोक्त शर्त को पूरा करने का माध्यम है, जिसके बाद ही किसी आवेदन को पूरा माना जाएगा।
भ्रामक विज्ञापनों और नकली उत्पादों से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार ने कमर कसी
भ्रामक विज्ञापनों और नकली उत्पादों से उपभोक्ताओं की संरक्षा और उपभोक्ताओं की शिकायतों के प्रभावी निवारण के लिए, उपभोक्ता मामले विभाग ने इस संबंध में छ: सूत्री एजेंडा को कार्यान्वित करने के लिए उद्योग एसोसिएशन के साथ साझेदारी की है। इस संदर्भ में, एक समझौते ज्ञापन पत्र पर केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री श्री राम विलास पासवान की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए जाएगें।
इस सहमति पत्र में निष्पक्ष व्यापार कार्यप्रणालियों के स्व–नियामक कोड को तैयार करने और कार्यान्वित करने पर समन्वित कार्यक्रम, उद्योग जगत के भीतर ही उपभोक्ता मामले विभाग की स्थापना, नकली, मानको से कम के उत्पादों को रोकने और गलत व्यापार कार्यप्रणालियों के खिलाफ समर्थन की पहल और उद्योग सदस्यों के द्वारा स्वैच्छिक मानकों को स्वीकार करना शामिल है। उपभोक्ता जागरूकता और गतिविधियों के संरक्षण के लिए सीएसआर कोष का निर्धारण, शिकायतों के समाधान के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता हैल्पलाइन और राज्य उपभोक्ता हैल्पलाइन में समन्वयय, ‘’जागो ग्राहक जागो’’ के अतंर्गत संयुक्त उपभोक्ता जागरूकता, शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का शुभारंभ भी इस एजेंडे का अंग होंगे। एक संयुक्त कार्यकारी समूह इस एजेंडे के कार्यान्वयन की निगरानी करेगा।
उपभोक्ताओं के अधिकारों को प्रोत्साहन देने और उनकी सुरक्षा करने के लिए सभी हितधारकों के बीच सक्रिय साझेदारी की आवश्यकता होती है। उपभोक्ता मामले विभाग और औद्योगिक एसोसिएशन-एसोचैम, सीआईआई, डीआईसीसीआई, फिक्की और पीएचडी वाणिज्य और उद्योग चैम्बर ने उपभोक्ता शिकायत निवारण, उपभोक्ता जागरूकता में वृद्धि और भ्रामक, नकली उत्पादों के विज्ञापनों के खिलाफ सुरक्षा और कार्रवाई नामक तीन प्राथमिक क्षेत्रों को शामिल करते हुए छ: सूत्री साझेदारी पर सहमति जताई है। इस कार्यक्रम के दौरान, उद्योग इकाईयों द्वारा उपभोक्ताओं के पक्ष में नैतिक व्यापार व्यवहार के स्व-विनियामक कोड और वीडियो स्पॉट भी जारी करेंगी। सरकार और उद्योग जगत की इस संयुक्त पहलों से उपभोक्ताओं के अधिकारों को संरक्षित करने में निश्चित रूप से दीर्घकालिक रूप से मदद मिलेगी और सभी हितधारकों के लिए भी यह बेहतर स्थिति होगी।
भारत सरकार का उपभोक्ता मामले विभाग कल विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 2016 मना रहा है। यह अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता आंदोलन के साथ एकजुटता को दशाने वाला एक वार्षिक अवसर है। विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस उपभोक्ताओं के मूल अधिकारों को प्रोत्साहन और उनकी संरक्षा के लिए एक अवसर है।
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सोमवार, 21 मार्च 2016
भूमिगत जल पर राष्ट्रीय संवाद
देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमिगत जल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1970 के दशक में हरित क्रांति की शुरूआत के दौरान भूमिगत जल के प्रयोग में महत्वपूर्ण वृद्धि शुरू हुई, जो अब तक जारी है जिसके फलस्वरूप जलस्तर घटने, खेतों में कुओं की कमी और सिंचाई स्रोतों की दीर्घकालिकता में हृास के रूप में पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा। इसके अलावा देश में कई जगहों पर प्राकृतिक गुण और मानवोद्भव कारणों से सम्पर्क प्रभाव के कारण भूमिगत जल पीने योग्य नहीं रहा।
भू-जल की गुणवत्ता में गिरावट औऱ उत्पादक जलभृत क्षेत्रों में संतृप्ति में कमी के दोहरे खतरों से निपटने और विभिन्न हितधारकों के बीच व्यापक विचार-विमर्श के माध्यम से बेहतर भू-जल प्रशासन और प्रबंधन हेतू रणनीति तैयार करने के लिए, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा के कायाकल्प मंत्रालय ने 2015-16 के दौरान 'जल क्रांति अभियान' शुरू किया है। इस अभियान के तहत मंत्रालय ने हाल ही में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में 'बहुजल मंथन' शीर्षक से स्वच्छ और टिकाऊ भूजल पर एक राष्ट्रीय संवाद का आयोजन किया। मुख्य रूप से इसका उद्देश्य, बहुमूल्य संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने औऱ पारिस्थितिकी के साथ तालमेल और सद्भाव प्राप्त करने के लिए भू-जल संसाधनों के विकास और इसके प्रबंधन में लगे विभिन्न हितधारकों के बीच सामूहिक बातचीत की आवश्यकता पर बल गया। एक दिन की बातचीत भूमि-गत जल के उपयोग पैटर्न में परिवर्तन की ओर अभिविन्यस्त की गयी थी जिसको लेकर बाद में क्षेत्रीय और स्थानीय दोनों स्तर पर विभिन्न हितधारकों के बीच गतिरोध पैदा हुआ। संगोष्ठी में उपलब्ध भू-जल के सबसे कुशल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उपकरण और उपाय, दीर्घकालिक भू-जल की गुणवत्ता को बनाए रखने, और बढ़ती मांग का सामना करने के लिए भू-जल के प्रबंधन से संबंधित उभरते मुद्दों को संबोधित किया गया।
विशेषज्ञों और विभिन्न मंत्रालयों, सरकार, संगठनों, गैर सरकारी संगठनों, भू-जल डोमेन पर काम कर रहे अनुसंधान संस्थानों के देश भर से आयें अधिकारियों, प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों और हितधारकों जैसे किसानों और उद्योगपतियों सहित लगभग 2000 लोगों ने इस संगोष्ठी में भाग लिया।
भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय में अपर सचिव, डॉ अमरजीत सिंह ने कार्यक्रम के तकनीकी सत्र का उद्घाटन किया । डॉ अमरजीत सिंह ने जल संरक्षण और प्रबंधन अभियान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए छात्रों और युवा पेशेवरों का आह्वान किया। उन्होंने उदाहरण दे कर बताया कि किस प्रकार इस्ररायल 98 प्रतिशत वर्षा के पानी का उपयोग करता है और वैज्ञानिकों/प्रबंधकों से हमारे देश में भी यह संभव बनाने के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार करने के लिए कहा।
तकनीकी सत्र को निम्न विषयों पर चार भागों में विभाजित किया गया था:
1. जिओजेनिक भू-जल प्रदूषण - आर्सेनिक और फ्लोराइड के विशेष संदर्भ में, मानवजनित भू-जल प्रदूषण - शमन उपाय।
2. भू-जल पर दबाव वालें क्षेत्र - सतत उपयोग के लिए हस्तक्षेप प्रबंधन, भू-जल मानचित्रण और हालिया तकनीक का इस्तेमाल।
3. जल संरक्षण और सतही और भूमिगत जल का कुशल तरीके से संयुक्त उपयोग।
4. जलवायु परिवर्तन और रणनीतियों के लिए भू-जल तंत्र प्रतिक्रिया। भू-जल: कुशल उपयोग और उसके सतत प्रबंधन के लिए लोगों की भागीदारी।
उल्लेखित विषय के विभिन्न पहलुओं से संबंधित कुल 27 पेपर तकनीकी सत्र के दौरान प्रस्तुत किए गए। तकनीकी सत्र ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं:
• मानव स्वास्थ्य पर जिओजेनिक / मानवजनित प्रदूषण का प्रभाव बेहतर ढंग से समझने के लिए अध्ययन किया जाएगा।
• भूजल प्रदूषण के दूर करने के लिए पायलट अध्ययन और अधिक तेजी से किया जाना चाहिए।
• जन जागरूकता एवं क्षमता निर्माण अभियान के माध्यम से भू-जल प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में समुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
• पूरे देश में बड़े पैमाने पर मानचित्रण का कार्य करने के लिए विद्युत प्रतिरोधकता टोमोग्राफी और हैली जनित सर्वेक्षण जैसी उन्नत भूभौतिकीय अध्ययन किए जाने चाहिए।
• सुदूर संवेदन तकनीक भू-जल री-चार्च और ड्राफ्ट की कंप्यूटिंग की वर्तमान पद्धति की पूरक हो सकती है।
• कृत्रिम पुनर्भरण तकनीक की योजना बनाई हो स्रोत पानी के लिए समुद्र और वैकल्पिक व्यवस्था में मीठे पानी समुद्री जल इंटरफेस पुश करने के लिए नियोजित किया जाना चाहिए।
• सतह और भूमिगत जल के संयुक्त उपयोग के लिए, दो प्रायोगिक परियोजनाओं का क्रियान्वयन दो बड़े नहर कमांड क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहां अध्ययन पहले ही पूरा किया जा चुका है।
• नहर के पानी के साथ संयुक्त उपयोग के लिए गहरे जलवाही स्तर से भू-जल प्रयोग का सफल प्रदर्शन किया गया है, लेकिन किसानों के उथले नलकूप पर इसके प्रभाव के कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए।
• देश के पूर्वी राज्यों में बड़े पैमाने पर भू-जल विकास संभव है और भारत में खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए इन क्षेत्रों में एक दूसरी 'हरित क्रांति' की आवश्यकता है।
• सफल कृषि पारिस्थितिकी के श्रेष्ठ कार्यों को अरक्षणीय भू-जल विकास के क्षेत्रों में दोहराये जाने करने की जरूरत है जैसे उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्र।
• एक जल विवरणिका के नीचे बड़े पैमाने पर खनन के लिए किसी प्रस्ताव की मंजूरी के लिए व्यावहारिक जल संसाधन प्रबंधन योजना को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
• देश के भू-जल संसाधनों की भरपाई करने के लिए उपयुक्त डिजाइन वाली जल संरक्षण संरचनाओं के कार्यान्वयन के माध्यम से पहाड़ी क्षेत्रों में झरनों के संरक्षण और बोरवेल के अंधाधुंध निर्माण को सीमित करके भू-जल के संरक्षण के लिए प्रयास करने होंगे ।
• विशेष रूप से कृषि जरूरतों के संबंध में जलवायु परिवर्तन के परिणाम के रूप में वर्तमान और अनुमानित पानी की कमी को पूरा करने के लिए जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में भू-जल प्रबंधन को शामिल करना चाहिए।
• ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक के माध्यम से भूजल से पानी की क्षमता में सुधार करने के लिए जलभृत विशेषताओं को भू-जल संरचनाओं से जोड़ा जाना चाहिए।
• ग्रामीण क्षेत्रों से विशेष रूप से महिलाओं को जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से गैर-पीने योग्य पानी और उससे संबंधित सभी स्वास्थ्य खतरों से अवगत कराया जाना चाहिए। उन्हें पानी को संरक्षित करने, खुले कुओं में जल स्तर को मापने, पानी के गुणों का परीक्षण करने और उपयोग के लिए इसे सुरक्षित बनाने की विभिन्न तकनीकों को जानने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हें सभी क्षेत्रों के लिए पानी के वितरण में भागीदार बनाया जाना चाहिए जिससे जिम्मेदारी, न्याय, अधिकारों का सम्मान और गरीबों की हकदारी होगी।
भू-जल मंथन के समापन सत्र को संबोधित करते जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने वर्षा जल संचयन के माध्यम से भू-जल की बर्बादी को कम करने और भरपाई के लिए अभियान में लोगों की भागीदारी की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आम जनता से पानी के मुद्दों को विवादास्पद नहीं बनाने के साथ ही उसे समुदायों और राज्यों के बीच बेहतर संबंधों को बढ़ावा देने के लिए उपकरण के रूप में उपयोग करने के लिए अपील की।
शनिवार, 19 मार्च 2016
भारत का भाग्य बदलने के लिए गांव की तस्वीर बदलनी होगी- पीएम मोदी
किसान मेला भारत के भाग्य का मेला है, अगर भारत का भाग्य बदलना है, तो गांव से बदलने वाला है, किसान से बदलने वाला है और कृषि क्रांति से बदलने वाला है। हम लोग सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी से एक ही प्रकार से किसानी करते आए हैं। बहुत कम किसान हैं जो नया प्रयोग करते हैं या कुछ नया करने का साहस करते हैं। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हम हमारी किसानी को आधुनिक कैसे बनाएं, टेक्नोलॉजी युक्त कैसे बनाएं, हमारी युवा पीढ़ी जो आधुनिक आविष्कार हो रहे हैं, उन आधुनिक आविष्कारों को खेत तक कैसे पहुंचाएं। किसान के घर तक कैसे पहुंचाएं। इस किसान मेले के माध्यम से एक प्रशिक्षण का प्रयास है। और मुझे खुशी है कि आज कृषि विभाग ने यह कार्यक्रम ऐसा बनाया है कि न सिर्फ यहां बैठे हुए लोग लेकिन पूरे हिंदुस्तान के हर गांव में किसान इस कार्यक्रम को देख रहे हैं।
और सिर्फ प्रधानमंत्री का भाषण सुनना है इसलिए देख रहे हैं ऐसा नहीं है। तीन दिन तक यहां जितनी चर्चाएं होने वाली हैं वो सारी चर्चाएं गांव में बैठा हुआ किसान भी उसको देख सकता है, सुन सकता है, समझ सकता है। क्योंकि जब तक हम इन बातों को किसान तक पहुंचाएंगे नहीं, किसान में विश्वास पैदा नहीं करेंगे तो वो अगल-बगल में जो देखता है वो ही करता रहता है। और किसान का स्वभाव है अगर पड़ोसी ने अपने खेत में लाल डिब्बे वाली दवाई डाली तो यह भी जा करके लाल डिब्बे वाली दवाई लाकर डाल देगा। बगल वाले ने पीली दवाई डाल दी तो यह भी पीली दवाई डाल देगा। उसको ऐसा लगता है उसने किया तो मैं भी कर लूं। और जो बेचने वाले हैं उनको तो इसकी चिंता ही नहीं है कोई भी माल जाओ बेच दो, एक बार बिक्री हो जाए। बाद में कौन पूछने वाला है किसान का क्या हुआ।
और इसलिए कृषि क्षेत्र को एक अलग नजरिये से विकसित करने की दिशा में यह सरकार प्रयास कर रही है। हमारे देश में पहली कृषि क्रांति हुई वो पहली कृषि क्रांति अधिकतम जहां पानी था उस पानी के भरोसे हुई। लेकिन दूसरी कृषि क्रांति सिर्फ पानी के भरोसे करने से बात पूरी तरह संतोष नहीं देगी। और इसलिए दूसरी कृषि क्रांति विज्ञान के आधार पर, टेक्नोलॉजी के आधार पर, आधुनिक आविष्कारों के आधार पर करना आवश्यक हो गया है। पहली कृषि क्रांति हिंदुस्तान के पश्चिमी छोर पर, पश्चिमी उत्तर भाग में हुई। पंजाब, हरियाणा इसने नेतृत्व किया दूसरी कृषि क्रांति उन प्रदेशों में संभावनाएं पड़ी है। जिस पर अगर हमने थोड़ा सा भी ध्यान दिया तो बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है और वो है पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, नॉर्थ ईस्ट, ओडि़शा ये सारे हिंदुस्तान का पूर्वी इलाका, जहां पानी भरपूर है, जमीन की विपुलता है, जमीन ऊपजाऊ है, लेकिन वो पुराने ढर्रे से वो सब जुड़ा हुआ है और इसलिए इस सरकार का प्रयास है कि भारत के पूर्वी इलाके से एक दूसरी कृषि क्रांति कैसे हो, उस दिशा में हम कदम बढ़ा रहे हैं।
भारत की आर्थिक धारा भी गांव की धुरा से जुड़ी हुई है। अगर गांव में गांव के गरीब व्यक्ति के द्वारा अगर आज वो पांच हजार रुपया का माल बाजार से खरीदता है साल में और अगली बार दस हजार का खरीदता है, तो अर्थव्यवस्था को वो ताकत देता है। देश आगे बढ़ता है। और यह अगर करना है तो गांव के लोगों की खरीद शक्ति बढ़ानी पड़ेगी, उनका क्रय शक्ति बढ़ाना पड़ेगा। और वो क्रय शक्ति तब तक नहीं बढता है जब तक कि गांव आर्थिक रूप से गतिशील न हो। गांव में आर्थिक गतिविधि का कारोबार न हो तो यह संभव नहीं है।
और इसलिए आपने इस बार देखा होगा चारों तरफ इस सरकार के बजट की तारीफ ही तारीफ हो रही है। कुछ लोग मौन हैं क्योंकि उनके लिए तारीफ करना मुश्किल है, लेकिन विरोध में बोलने के लिए कुछ है नहीं। पहली बार जिन जिन लोगों ने इस विषय के ज्ञाता है, उन्होंने लिखा है कि एक बड़े लम्बे अरसे के बाद एक ऐसा बजट आया है जो पूरी तरह गांव, गरीब और किसान को समर्पित किया गया है।और यह काम इसलिए किया है अगर भारत को आर्थिक संपन्न बनना है, आने वाले 25-30 साल तक लगातार आगे बढ़ना है, रूकना ही नहीं है, तो वो जगह सिर्फ गांव है, गरीब है, किसान है।
हमारा एक सपना है, लेकिन वो सपना मेरा होगा उससे बात बनेगी नहीं। वो सपना सिर्फ दिल्ली सरकार का होगा तो बात बनेगी नहीं। चाहे केंद्र सरकार हो, चाहे राज्य सरकार हो, चाहे हमारे किसान भाई-बहन हो, हम सबका मिला-जुला सपना होना चाहिए, हम सबकी जिम्मेदारी वाला सपना होना चाहिए। और वो सपना है 2022 छह साल बाकी है, जब भारत की आजादी के 75 साल होंगे,क्या हम हमारे देश के किसानों की आय दोगुना कर सकते हैं क्या? किसानों की आय डबल कर सकते हैं क्या? अगर एक बार किसान, राज्य सरकार, केंद्र सरकार यह मिल करके तय कर लें तो काम मुश्किल नहीं है, मेरे भाईयों-बहनों। कुछ लोगों को लगता है कि यह मुश्किल काम है। मैं इस विभाग में जाना नहीं चाहता। लेकिन यह करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए इसमें कोई दुविधा नहीं हो सकती, कोशिश जरूर करनी चाहिए।
अब तक हमने देश को आगे बढाने में कृषि उत्पादन वृद्धि को ही केंद्र में रखा है। हम कृषि उत्पादन वृद्धि तक सीमित रह करके किसान का कल्याण नहीं कर सकते हैं। हमने किसान का कल्याण करना है तो हमने और पचासों चीजें उसके साथ जोड़नी होगी, और तब जा करके 2022 का सपना हम पूरा कर सकते हैं। अब हम यह सोचे कि हमारी धरती माता बेचारी बोलती नहीं है, पीड़ा है तो रोती नहीं है, आप उस पर जितने जुल्म करो वो सहती रहती है। अगर हम धरती मां की आवाज़ नहीं सुनेंगे, तो धरती मां भी हमारी आवाज़ नहीं सुनेगी। अगर हम धरती माता की पीड़ा महसूस नहीं करेंगे तो धरती मां भी हमारी पीड़ा कभी महसूस नहीं करेगी। और इसलिए हम सबका सबसे पहला दायित्व है कि हम हमारी धरती माता की पीड़ा को समझे। हमने कितने जुल्म किये हैं उस पर, न जाने कैसे कैसे कैमिकलों से उसको नहला दिया। न जाने कैसी-कैसी दवाईंया पिलाई उसको, न जाने कितने-कितने जुल्म किये हैं उस पर अगर हम भी बीमार हो जाते हैं न तो अड़ोस-पड़ोस के लोग कहते हैं कि बेटा बहुत दवाइयां मत खाओं और ज्यादा बीमार हो जाओगे। डॉक्टर भी कहते है कि भई ठीक है बीमार हो दवा की जरूरत है लेकिन ऐसा नहीं कि एक गोली की बजाए 10 गोली खा जाओगे,ठीक हो जाओगे। जो हमारे शरीर का हाल है, वो ही हाल यह हमारी धरती माता का भी है। और इसलिए हम कभी कम से कम देखे तो सही कि हमारी धरती माता की तबीयत कैसे है, कोई बीमारी तो नहीं है? क्या कारण है कि हम फसल बोते हैं लेकिन जितनी मेहनत करते हैं उतना मिलता नहीं है, मां रूठी क्यों है।
· और इसलिए आपकी मदद से एक बड़ा अभियान पूरा करना है वो मृदा स्वाथ्य कार्ड हमारी जमीन की तबीयत कैसी है, उसकी परत कैसी है, उसके अंदर ताकत कौन सी है, उसके अंदर कमियां कौन सी है, उसके अंदर बीमारियां कौन सही है। यह हमने जांच करवानी चाहिए और यह regular करवानी चाहिए। यह कोई महंगा काम नहीं है, सरकार आपकी मदद कर रही है। और जांच करवा ली, लेकिन हम उस रिपोर्ट को एक खाते में डालकर कागज पड़ा है, पड़ा रहे, फायदा नहीं होगा। अगर कोई इंसान बीमार रहता है, laboratory में जाकर टेस्ट करवाया और पता चला कि diabetes है वो आ करके कागज घर में रख दे और खाता है जैसे ही मिठाई मिले खाता रहे, जितना मिले उतना खाता रहे तो क्या diabetes उसको जाएगा क्या? बीमारी बढ़ेगी कि नहीं बढ़ेगी। मौत निश्चित हो जाएगी कि नहीं हो जाएगी।
और इसलिए soil health card के द्वारा हमें जमीन की जो कमियां नजर आई है। जमीन की जो ताकत ध्यान में आई है। जमीन की जो बीमारियां ध्यान में आई है, उसके अनुसार हमें खेती करनी चाहिए तो आपकी आधी समस्याएं तो वहीं सुलझ जाएगी। मैं दावे से कहता हूं मेरे किसान भाईयों-बहनों आपकी आधी समस्यायें, अगर जमीन की ठीक देखभाल कर दी, तो आपकी आधी समस्या वहीं सुलझ जाएगी। और एक बार धरती माता का ख्याल रखोगे न तो धरती माता तो आपका चार गुना ज्यादा ख्याल रखेगी। कभी आपको पीछे मुड़ करके देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
दूसरी बात है पानी, किसान का स्वभाव है अगर उसको पानी मिल जाए तो वो मिट्टी में से सोना पैदा कर सकता है। उसे और कुछ नहीं चाहिए। और इसलिए हमने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पर बल दिया है। किसानों को पानी कैसे पहुंचे? और कम से कम पानी बर्बाद हो, उस रूप में कैसे पड़े,इस पर काम चल रहा है। आपको हैरानी होगी मैं जरा हिसाब लगा रहा था कि हमारे किसान को पानी पहुंचाने की इतनी योजनाएं बनी हाल क्या है। मेरे किसान भाईयों-बहनों आपको हैरानी होगी कि हम कुछ भी करते हैं तो हमारे विरोधी यह कहते हैं कि यह तो हमारे समय का है। यह तो हमारे जमाने का है। उनके जमाने का हाल क्या है मैं बताता हूं किसानों का मैंने करीब 90 प्रोजेक्ट ऐसे खोज कर निकालें कि जहां पानी तो भरा पड़ा लेकिन किसान को पानी पहुंचाने के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं है। अब मुझे बताइये भइया अगर कहीं डैम भरा पड़ा है। हजारों, लाखों, करोड़ों रुपया खर्च कर दिया गया है, लेकिन अगर किसान के खेत तक पानी ले जाने का प्रबंध नहीं है वो सिर्फ दर्शन करने के सिवा किसी काम आएगा क्या? हमने 90 ऐसे प्रोजेक्ट हाथ में लिए है। और उस पर बड़ा जोर लगाया है कि वो पानी किसान तक पहुंचे। जितनी उसकी capacity है पानी कैसे पहुंचे, काम लगाया है। जब यह काम पूरा कर लेंगे करीब 80 लाख हेक्टेयर भूमि को पानी पहुंचना शुरू हो जाएगा भाईयों-बहनो। और पानी पहुंचेगा तो वो जमीन कितना कुछ देगी आप अंदाज कर सकते हैं।
20 हजार करोड़ रुपया, इस काम के लिए लगाने की दिशा में काम कर रहा हूं मैं। इतना ही नहीं मनरेगा, बड़ी चर्चा होती है, लेकिन कहीं asset create नहीं होता है। इस सरकार ने बल दिया है। और मैं चाहूंगा इन गर्मी के दिनों में गांव-गांव मनरेगा से एक ही काम होना चाहिए, एक ही काम और सिर्फ तालाब है तो तालाब गहरे करना, मिट्टी निकालना, जहां पर पानी रोक सकते हैं रोकना। इस बजट में पांच लाख तालाब बनाने का सपना है, पांच लाख तालाब।
जहां हमारे छोटे-छोटे पर्वतीय इलाके होते हैं, पहाड़ी इलाके होते हैं, जहां तीन या चार पहाड़ इकट्ठे होते हैं, वहां अगर थोड़ी सी खुदाई कर दें तो बहुत बड़े तालाब बनने की संभावना हो जाती है। मैंनेforest department को भी कहा है जंगलों को बचाना है तो वहां छोटे-छोटे तालाब का काम किया जाए,ताकि पानी होगा तो हमारे जंगल भी बचेंगे। जंगल होंगे तो वर्षा बढ़ेगी, वर्षा बढेगी तो हमारी ज़मीन में पानी ऊपर आएगा। जो 12 महीने मेरे किसान को फायदा करेगा। हम गांव-गांव इस गर्मी के दिनों में पानी बचाने के साधन कैसे तैयार करें और जितना ज्यादा पानी बचाने का प्रयास करेंगे, पहली बारिश में यह सब भर जाएगा। और फिर कभी बारिश इधर-उधर हो गई तो भी वो पानी हमारी खेती को बचा लेगा। उसी प्रकार से जितना महात्मय जल संचय का है, उतना ही महात्मय जल सिंचन का है।
पानी यह परमात्मा ने दिया हुआ प्रसाद है। इसको बर्बाद करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। एक-एक बूंद पानी का उपयोग होना चाहिए। और इसलिए per drop more crop एक-एक बूंद से फसल कैसे ज्यादा पैदा हो, उस पर काम करना है। हम micro irrigation में जाए, हम drip irrigation में जाए छोटे-छोटे पम्प लगा करके पानी पहुंचाने के लिए प्रबंध करे। liquid fertilizer दें। आप देखिए मेहनत कम हो जाएगी। खर्चा कम हो जाएगा और उत्पादन बढ़ जाएगा। कुछ लोगों की गलतफहमी है किsugar में भी बहुत पानी चाहिए, जमाना चला गया। अब तो micro irrigation से sugar भी हो सकता है,paddy भी हो सकता है।
और इसलिए जो हमारी पुरानी मान्यता है कि अगर पूरा लबालब पानी से खेत भरा होगा तभी फसल होगी, ऐसी जरूरत नहीं है। अब विज्ञान बदल गया, टेक्नोलॉजी बदल गई। आप आराम से बदलाव करके कर सकते हैं। और इसलिए मेरे किसान भाईयों-बहनों, यह हमारी रोजमर्रा के काम है, इस पर अगर हम ध्यान देंगे। हम हमारे खर्च को कम कर पाएंगे। और हमारी आय को बढ़ा पांएगे। और उसी से किसान का कल्याण होने वाला है।
हमारे यहां फसल के लिए मार्केट, यह 14 अप्रैल को बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्म जयंती पर भारत सरकार एक ई प्लेटफॉर्म शुरू कर रही है, ताकि किसान को अपना माल कहां बेचना, सबसे ज्यादा दाम कहां मिलते हैं वो अपने मोबाइल फोन पर देख सकता है कि मुझे मेरा माल किस मंडी में कैसे बेचना और उसके कारण उसको दाम ज्यादा मिले। आज किसान बेचारा अगर गाँव से निकला, दो बजे अगर मंडी में पहुंचा, मंडी वाले अगर चले गए वो अपना माल बेच नहीं पाता है अगर वो सब्जी वगैरह लाया है तो वहीं छोड़कर चला जाता है, क्योंकि कोई खरीददार नहीं होता है। अगर हम इस प्रकार की व्यवस्था का उपयोग करेंगे, और आज मैंने अभी एक किसान सुविधा लॉन्च किया है। किसान अपने मोबाइल फोन पर आज के आधुनिक विज्ञान डिजिटल के माध्यम से अपनी आवश्यकताओं की जानकारी वो पा सकता है। weather का रिपोर्ट ले सकता है, मार्केट का रिपोर्ट ले सकता है। बाजार में कहां पर अच्छा बीच मिल सकता है ले सकता है। कृषि के कौन वैज्ञानिक है किसका संपर्क करना चाहिए, यह सारी जानकारियां आपकी हथेली में देने का प्रयास किया है।
अगर हम उसका प्रयोग करेंगे तो मेरे किसान को आज जो अकेलापन महसूस होता है, उसको लगता है कि मेरा कोई नहीं है। यह सरकार कंधे से कंधा मिला करके किसान के सुख-दुख का साथी है और हम आपके साथ मिल करके काम करना चाहते हैं, क्योंकि हमें बदलाव लाना है उस दिशा में हम काम करना चाहते हैं। उसी प्रकार से अब समय की मांग है कि हम मूल्य वृद्धि करे। value additionकरे, processing करे। जितना ज्यादा food processing होगा, उतना ही ज्यादा हमारे किसान की आय बढ़ने वाली है। जितना ज्यादा value addition करेंगे, उतनी कमाई बढ़ने वाली है। अगर आप दूध बेचते हैं, कम पैसा मिलता है, लेकिन अगर दूध का मावां बना करके बेचते हैं, तो ज्यादा पैसा मिलता होगा। दूध में से घी बना करके बेचते हैं ज्यादा पैसा मिलता है। अगर आप कच्चा आम बेचते हैं कम पैसा मिलता है, लेकिन अगर कच्चे आम का अचार बना करके बेचे तो ज्यादा पैसा मिलता है। आप हरी मिर्ची बेचे, कम पैसा मिलता है। लेकिन लाल हो करके पाऊडर बना करके पैकिंग करके बेचे तो ज्यादा पैसा मिलता है। हमारे किसान की आय बढ़ाने का यह एक उत्तम से उत्तम से मार्ग है कि हम food processing को बल दें और food processing के लिए भारत जैसे देश में दुनिया की बहुत बड़ी टेक्नोलॉजी की जरूरत है, ऐसा नहीं है, हमारे यहां आमतौर पर इन चीजों को करने का स्वभाव बना हुआ है। उसको बल देने की जरूरत है। और गांव मिल करके करेगा। तो बहुत बड़ी ऊंचाईयों पर चला जा सकता है गांव। और आज हमने देखा है कि ऐसी चीजों ने अपने जगह बना ली है।
आज दुनिया के अंदर.. मुझे अभी गल्फ कंट्रीज के अमीरात के क्राउन प्रिंस यहां आए थे UAE के । उन्होंने एक बड़ी महत्वपूर्ण बात बताई। उन्होंने कहा हमारा जो गल्फ कंट्रीज है प्रट्रोलियम के पैसे तो बहुत है हमारे पास, लेकिन हमारे पास पेट भरने के लिए खेती के लिए कोई संभावना नहीं है हमारी जमीन रेगिस्तान है। हमारी जनसंख्या बढ़ रही है। हमें आने वाले दिनों में जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ेगी,हमारा पेट भरने के लिए भारत से ही अन्न मंगवाना पड़ेगा। इसका मतलब यह हुआ कि हिंदुस्तान का किसान जो पैदा करेगा दुनिया के बाजार में जाने की संभावनाएं बढ़ रही है। एक बहुत बड़ा ग्लोबल मार्केट हमारा इंतजार कर रहा है हम अगर अपनी व्यवस्थाओं को उस स्टेंडर्ड की बना दें तो दुनिया हमारी चीजों को स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाएगी।
इन दिनों holistic health care. हर किसी को लगता है आप भले तो जग भला। और इसलिए लोगorganic खाना खाना पसंद करते हैं। कैमिकल से आया हुआ उनको खाना नहीं है। आम भी बिकता है तो पूछते हैं organic है। चावल भी लाए तो पूछते हैं organic है, गेंहू लाए तो पूछते हैं organic है। वो कहता है साहब पैसा डबल होगा, वो बोले डबल ले लो भाई दवाई खाने से ज्यादा अच्छा है कि महंगा चावल खा लूं, लेकिन दवाई खाने के लिए मुझे केमिकल वाला नहीं खाना। लोग सोच रहे हैं कि दवाई में जो पैसे जाते हैं उसके बजाय अगर वो पैसे organic चीजों को खाने में जाते हैं तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और खर्चा भी कम होने लगेगा। लेकिन यह तब संभव होगा, जब हम organic farming की तरफ प्रयास करें। हम कोशिश करें।
आज मैं सिक्कम प्रदेश को बधाई देता हूं| पहाड़ों में 2003 से उन्होंने मेहनत चालू की, 2003 से और दस साल के भीतर-भीतर सिक्किम के पूरे प्रदेश को उन्होंने organic state बना दिया। आज वहांchemical fertilizer का नामो-निशान नहीं है। और उनका उत्पादन बड़ा है, दवाईयां डालनी नही पड़ती है। जमीन में सुधार आया, पहले जो जमीन जितना देती थी। वो जमीन आज दोगुना, तीनगुना देने लग गई है। और उनका बहुत बड़ा ग्लोबल मार्केर्टिंग हो रहा है। क्या हमारे देश में हम organic farming को बल दे सकते हैं? ये तरीके हैं जो हमने आधुनिक कृषि की तरफ जाना है।
मैं किसानों से एक और आग्रह करना चाहता हूं। हमारी किसानी को तीन हिस्सों में बांटना यह अनिवार्य हो गया है। आज हम हमारी किसानी एक ही खम्बे पर चलाते हैं और उसका कारण जिस समय आंधी आ जाए वो खम्बा हिल जाए, ओले गिर जाए वो खम्बा गिर जाए, बहुत बड़ी बारिश आ जाए, वो खम्बा गया तो पूरी साल बर्बाद हो जाती है, पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। लेकिन अगर तीन खम्बों पर हमारी किसानी खड़ी होगी तो आफत आएगी तो एक-आध खम्बा गिरेगा। दो खम्बे पर तो हमारी जिंदगी टिक पाएगी भाई।
और इसलिए तीन खम्बे कौन से हैं जिस पर हमें किसानी करनी चाहिए एक तिहाई हम जो regularखेती करते हो वो, जो भी करते हो, मक्का हो, धान हो, फल हो, फूल हो, सब्जी हो जो करते है वो करें। एक तिहाई ताकत जहां आपके खेत की सीमा पूरी होती है। जहां boundary पर आप बाढ़ लगाते हैं बड़ी-बड़ी, एक-एक, दो-दो मीटर जमीन बर्बाद करते हैं। इधर वाला भी जमीन बर्बाद करता हैं,उधर वाला भी जमीन बर्बाद करता है, दोनों पड़ोसी बीच में जमीन बर्बाद करते हैं। क्या हम वहाँ पर टिम्बर की खेती कर सकते हैं क्या? ऐसे पेड़ उगाए जिससे फर्नीचर बनता है, मकान बनाने में काम आता है। ऐसे वृक्षों की खेती करे। ऐसे पेड़ लगाए। 15-20 साल में घर में बेटी शादी हो करने योग्य जाएगी, यह एक पेड़ काट दोगे, बेटी की शादी हो जाएगी। आज हिंदुस्तान बहुत बड़ी मात्रा में टिम्बरimport करता है। विदेशों में पैसा जाता है हमारा। अगर हमारा किसान तय कर ले कि खेत के किनारे पर जो जमीन आज बर्बाद हो करके पड़ी है, सिर्फ demarcation के लिए पड़ोसी ले न जाए इसलिए बाढ़ लगा करके बैठे हैं दो-दो, तीन-तीन मीटर खराब हो रही है, जमीन। आप देखिए कितनी बड़ीincome हो सकती है।
और तीसरा, तीसरा महत्वपूर्ण पहलू है animal husbandry. दूध के लिए कुछ करे, अण्डों के लिए पॉल्ट्री फार्म करे। मधुमक्खी का पालन करे, मधु का निर्माण करे, शहद का निर्माण करे। इसके लिए अलग ताकत नहीं लगती है। सहज रूप से साथ-साथ चलता है। और यह भी बहुत बड़ा ताकत देने वाला काम है।
और मैं चाहूंगा कि भारत जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करता है, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि प्रति पशु जितना दूध उत्पादन होना चाहिए वो अभी हमें पार करना बाकी है। और इसलिए हमारे पशु की दूध की productivity कैसे बढ़े, उस पर हमने बल देना है। पशु को आहार मिले, उस आहार के लिए अलग से प्रबंध करना है। पशु को आरोग्य की सुविधाएं मिलें उस पर ध्यान केंद्रित करना है। हमारे पशु की नस्ल बदलें इसके लिए सरकार बड़ा मिशन ले करके काम कर रही है। ऐसे अनेक प्रयास है जिन-जिन प्रयासों के परिणामस्वरूप हम हमारे पशुधन की ताकत को बढ़ा सकते हैं। उससे हम अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
आज शहद दुनिया में शहद का बहुत बड़ा मार्केट है। भारत का किसान शहद के उत्पादन में बहुत कम संख्या में है। और शहद ऐसा है कभी खराब नहीं होता। सालों तक घर में रहे, घर में भी काम आता है बेचने के भी काम आता है। दवाईयों में भी बिकता है और एक खेत के कोने में हमारे घर के ही कोई व्यक्ति उसको संभाले तो काम चल जाता है।
इन तीनों खम्बों पर अगर हम हमारी किसानी को आगे बढ़ांएगे, तो किसान को प्राकृतिक आपदा के कारण संकट आने के बावजूद भी बचने का रास्ता निकल आ सकता है, बर्बाद होने से बच सकता है। और इसके लिए सरकार की योजनाएं हैं। इस बार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मेरे किसान भाईयों-बहनों के चरणों में मैंने रखी है। यह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यह सिर्फ कागज़ी योजना नहीं है,यह किसान की जिंदगी से जुड़ा हुआ काम है। और मैंने बड़ी भक्ति के साथ मेरे किसानों की भक्ति करने के लिए यह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ले करके मैं आपके पास आया हूं। बड़ा विचार-विमर्श किया है मैंने किसानों से सलाह-मश्विरा किया है, अर्थशास्त्रियों से किया है, सरकारों से किया है, बीमा कंपनियों से किया है और तब जा करके योजना बनी है।
हमारे देश में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने फसल बीमा योजना चालू की। बाद में दूसरी सरकार आई उसने उसमें थोड़ा इधर-उधर कर दिया। मुसीबत यह आई कि किसान का फसल बीमा में से विश्वास ही उठ गया। उसको लगता है कि पैसे ले तो जाते हैं लेकिन मुसीबत के समय आते ही नहीं है। किसान की शिकायत सच्ची है। मैंने उन सारी शिकायतों को ध्यान में रख करके योजना बनाई है। और यह पहली प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ऐसी है कि जिसमें प्रीमियम कम से कम है। और सुरक्षा ज्यादा से ज्यादा है। यह पहली बार ऐसा हुआ है।
अब तक हमारे देश में सौ किसान हो, तो 20 किसान से ज्यादा फसल बीमा कोई लेता ही नहीं है। और धीरे-धीरे वो भी कम हो रहे थे। कम से कम इतना तो तय करे कि एक-दो साल में गांव के आधे किसान फसल बीमा योजना ले लें। इतना हम कर सकते हैं क्या? अब टेक्नोलॉजी का उपयोग होने वाला कि प्राकृतिक आपदा आई तो क्या नुकसान हुआ, कहां नुकसान हुआ? तुरंत हिसाब लगाया जाएगा। और तुरंत पैसे मुहैया कराने की व्यवस्था यह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में है। अब दो-दो, तीन-तीन साल इंतजार करने की जरूरत नहीं।
और एक महत्वपूर्ण काम है, पहले ओले गिर गए, आंधी आ गई, नुकसान हो गया, उसका भी हिसाब रहता था। लेकिन फसल काटने के बाद खेत में अगर उसका ढेर पड़ा है, और अचानक आंधी आई,बारिश आई, ओले गिरे, बर्बाद हो गया तो सरकार कहती थी कि भई नहीं यह फसल बीमा में नहीं आता, क्यों? क्योंकि यह तो तुम्हारी कटाई हो गई है, तुम घर नहीं ले गए इसलिए खराब हुआ तुमको ले जाना था। इस सरकार ने एक ऐसी फसल बीमा योजना लाई है कि कटाई के बाद अगर 14 दिन तक खेत के अंदर अगर पड़ा है सामान और अगर बारिश आ गई तो उसका भी बीमा मिलेगा, यहां तक निर्णय किया गया है।
और एक निर्णय किया है कि मान लीजिए आपने सोचा कि जून महीने में बारिश आने वाली है,सारा खेत तैयार करके रखा, बीज ला करके रखे, मेहनत करने के लिए जो भी करना पड़े सब करके रखा, लेकिन जून महीने में बारिश आई नहीं, जुलाई महीने में बारिश आई नहीं, अगस्त महीने में बारिश आई नहीं। अब आपका क्या होगा भई, जब बारिश ही नहीं आई, तो फसल खराब होने का सवाल ही नहीं होता है, क्यों, क्योंकि आपने बोया ही नहीं है। अब जब बोया ही नहीं है तो फसल हुई ही नहीं। फसल हुई नहीं तो फसल बर्बाद हुई नहीं और फिर बीमा वाले कह देते हैं अब तुम्हारी छुट्टी,कुछ नहीं मिलेगा। इस सरकार ने एक ऐसी योजना बनाई है कि अगर आपके इलाके में बारिश नहीं आई, आपका बोना संभव ही नहीं हुआ तो भी आपको 25 प्रतिशत पैसे मिल जाएंगे, ताकि आपका साल बर्बाद न हो जाए, यह काम हमने सोचा है।
भाईयों-बहनों किसान के लिए क्या किया जा सकता है इसकी एक-एक बारीक चीज पर हमने ध्यान दिया है। अगर हमारे यहां पहले कोई प्राकृतिक आपदा आ जाए, तो 50 प्रतिशत अगर नुकसान होता था तब पैसे मिलते थे और वो भी एक पूरे इलाके में 50 प्रतिशत हिसाब बैठना चाहिए। हमने यह सब निकाल दिया और हमने कहा अगर 33 percent भी हुआ तो भी उसको मुआवजा दिया जाएगा। आजादी से अब तक सभी सरकारों में इस विषय की चर्चा हुई। हर किसानों ने इसकी मांग की,लेकिन किसी सरकार ने इसको किया नहीं था। हमने इसको कर दिया।
भाईयों-बहनों प्राकृतिक आपदा में किसान को मदद कैसे मिले? इसके सारे norms बदल दिये। सारी परंपराएं निकाल दी है। और किसान को विश्वास दिलाया है और दूसरा यह भी किया है कि जनधन अकाउंट खोलो, मदद सीधी आपके खाते में जाएगी। कोई बिचौलिए के पैर आपको पकड़ने नहीं पड़ेंगे। हम सब जानते हैं यूरिया के लिए क्या-क्या होता था। रात-रात कतार में किसान खड़ा रहता था। कल यूरिया आने वाला है। और यूरिया की काला-बाजारी होती थी। कहीं-कहीं पर यूरिया लेने के लिए लोग किसान आते थे, लाठी चार्ज होता था। और मेरा तो अनुभव है मैं प्रधानमंत्री बन करके बैठा तो पहले तीन, चार, पांच महीने सारे मुख्यमंत्रियों की एक ही चिट्ठी आती थी कि हमारे प्रदेश में यूरिया कम है यूरिया भेजो, यूरिया भेजो, यूरिया भेजो। भारत सरकार यूरिया क्यों देती नहीं है। जो हमारे विरोधी लोग थे वो बयान देते थे अखबारों में भी छपता था कि मोदी सरकार यूरिया नहीं देती। पिछले दिनों यूरिया पर इतना काम किया, इतना काम किया कि गत वर्ष मुझे एक भी मुख्यमंत्री ने यूरिया की कमी है ऐसी चिट्टी नहीं लिखी। पूरे देश में कहीं पर भी यूरिया को ले करके लाठी चार्ज नहीं हुआ है। कहीं पर किसान को मुसीबत झेलनी पड़ी।
और अब तो और कुछ किया है हमने यूरिया को नीम कोटिंग किया है। यह नीम कोटिंग क्या है? यह जो नीम के पेड़ होते हैं, उसकी जो फली होती है उसका तेल यूरिया पर लगाया गया है, उसके कारण जमीन को ताकत मिलेगी। अगर आज आप दस किलो यूरिया उपयोग करते हैं, नीम कोटिंग है, तो छह किलो, सात किलो में चल जाएगा, तीन किलो, चार किलो का पैसा बच जाएगा। यह किसान कीincome में काम आएगा। किसान की income डबल कैसे होगी, ऐसे होगी। नीम कोटिंग का यूरिया। और इससे एक और फायदा है जहां-जहां नीम के पेड़ हैं वहां अगर लोग फली इकट्ठी करेंगे तो उस फली का बहुत बड़ा बाजार खड़ा हो जाएगा, क्योंकि यूरिया बनाने वालों को नीम कोटिंग के लिए चाहिए, क्योंकि भारत सरकार ने hundred percent यूरिया नीम कोटिंग का कर दिया है। इसका दूसरा परिणाम यह होगा पहले क्या होता था यूरिया सारा लिखा जाता था तो किसान के नाम पर। सरकार के दफ्तर में लिखा जाता था कि किसान को यूरिया की सब्सिडी में इतने हजार करोड़ गए। लेकिन क्या सचमुच में वो किसान के लिए जाते थे क्या? सब्सिडी जाती थी, यूरिया के लिए जाती थी,लेकिन यूरिया किसान तक नहीं पहुंचता था वो केमिकल के कारखाने में पहुंच जाता था। क्योंकि उसको सस्ता माल मिलता था, वो उस पर काम करता था और उसमें से वो चीजें बना करके बाजार में बेचता था और हजारों-लाखों रुपये की कमाई हो जाती थी। अब नीम कोटिंग के कारण एक ग्राम यूरिया भी किसी केमिकल फैक्ट्री को काम नहीं आएगा। चोरी गई, बेईमानी गई और किसान को जो चाहिए था वो किसान को पहुंच गया।
मेरे कहना का तात्पर्य यह है मेरे किसान भाईयों-बहनों कि अब हमें आधुनिक विज्ञान का उपयोग करते हुए कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़ना है। हमने प्रयोग करने की हिम्मत दिखानी है। आज सब कुछ विज्ञान मौजूद है। आज जो सरकार ने initiative लिए हैं, वो आपके दरवाजें पर दस्तक दे रहे हैं। मैं खास करके युवा किसानों को निमंत्रण देता हूं आप आइये, मेरी बात पर गौर कीजिए, भारत सरकार की नई योजनाओं को ले करके आगे बढि़ए। और मैं विश्वास दिलाता हूं भारत का ग्रामीण जीवन,भारत के ग्रामीण गरीब का जीवन, भारत के किसान का जीवन हम बदल सकते हैं और उस काम के लिए मुझे आपका साथ और सहयोग चाहिए। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। राधामोहन जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं है। यह कृषि मेला के द्वारा आने वाले दिनों में सभी किसान उसका फायदा उठाए। यही शुभकामनाओं के साथ बहुत-बहुत धन्यवाद।
EVM मशीन में टोटेलाइजर के इस्तेमाल पर चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के साथ बैठक की
निर्वाचन आयोग ने चुनाव सुधार और चुनाव के आयोजन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए आज नई दिल्ली में सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य राजनैतिक दलों के साथ बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में सभी 6 राष्ट्रीय दलों और 29 राज्य दलों ने भाग लिया। बैठक में जिन मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ उनमें ईवीएम पर वोटों की गिनती के लिए टोटेलाइजर का उपयोग शामिल है। टोटेलाइजर के उपयोग का लाभ यह है कि किन्हीं विशेष मतदान केंद्रों में मतदान के रूख का खुलासा नहीं होगा, क्योंकि टोटेलाइजर के माध्यम से प्रदर्शित किए गए परिणाम मतदान केंद्रों के समूह में दिए गए मतों का ही परिणाम होंगे। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने टोटेलाइजर के कामकाज का प्रदर्शन भी किया गया।
जिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
(i) किसी बहुचरण वाले चुनाव में जब एक चरण का मतदान होने में 48 घंटे शेष हों और जब खुले अभियान और इलैक्ट्रोनिक मीडिया पर चुनाव सामग्री का प्रदर्शन करने पर आरपी अधिनियम 1951 की धारा 126 के तहत प्रतिबंध हो तो मतदान अभियान गतिविधियों के प्रसारण पर किसी प्रतिबंध पर विचार करने की जरूरत/वांछनीयता।
(ii) उम्मीदवार की आय के श्रोत की घोषणा के कालम को शामिल करने के लिए शपथ पत्र के प्रारूप में संशोधन
(iii) मतदान वाले दिन चुनाव मशीनरी द्वारा वितरित की जा रही मतदाता पर्चियों के वितरण को ध्यान में रखते हुए मतदान केंद्रों के पास उम्मीदवार/ दलों की उपस्थिति की वर्तमान पद्धति को जारी रखने की जरूरत।
(iv) चुनाव अभियान संबंधित भाषणों और प्रवचनों में कुछ मानकों को बनाए रखने की जरूरत।
(v) उम्मीदवारों की सुरक्षा जमा राशि में बढ़ोतरी करना।
इस बैठक में मौजूद राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने राजनैतिक दलों के ओर से लाभदायक मत जाहिर किए जिन पर उचित कार्यवाही के लिए आयोग द्वारा विधिवत विचार किया जाएगा।
शुक्रवार, 18 मार्च 2016
सामुदायिक रेडियो नेटवर्क के नए पोर्टल की शुरुआत
केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, जन शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग राज्य मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने आज यहां ‘सामुदायिक रेडियो स्टेशन संघ’ द्वारा आयोजित एक दिवसीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र के दौरान सामुदायिक रेडियो नेटवर्क के नए पोर्टल की औपचारिक शुरुआत की।
अपने संबोधन में डा. जितेंद्र सिंह ने कहा, देश भर में टीवी चैनलों की जोरदार उपस्थिति और तेजी से बढ़ रही संख्या के बावजूद, रेडियो की अब भी दूरदराज तथा उन परिधीय क्षेत्रों में पहुंच है, जहां टेलीविजन उपलब्ध नहीं है। फिर चाहे वहां बिजली की अनुपलब्धता हो या फिर सिग्नल का संकट। आज देश में 15,000 के करीब पंचायतें ऑप्टिकल फाइबर सुविधा से जुड़ गई हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि ‘मन की बात’ के हर महीने हो रहे प्रसारण ने न केवल रेडियो के श्रोताओं की संख्या में वृद्धि करने में योगदान दिया है बल्कि टीवी चैनलों को भी ‘मन की बात’ का सीधा प्रसारण करने के बाध्य किया है।
इस अवसर पर संसद सदस्य श्रीमती संतोष अहलावत, जन संचार से प्रो. ब्रिज किशोर कुठियाला और मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री श्री कमल पटेल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस कार्यक्रम का संचालन श्री रमेश हंगलू ने किया। जम्मू-कश्मीर राज्य में जम्मू में पहला सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने का श्रेय हंगलू को ही जाता है। श्री हंगलू ने जरूरतमंदों में शिक्षा का फैलाव करने के लिए अधिक सामुदायिक भागीदारी और सामुदायिक रेडियो नेटवर्क के जरिए केंद्र सरकार की गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं के प्रति जागरुकता लाने की जरूरत बताई।
पोखरण में वायुसेना ने मारक क्षमता का प्रदर्शन किया
भारतीय वायु सेना माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी और माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में राजस्थान के पोखरण फायरिंग रेंज में 18 मार्च को लड़ाकू और मारक क्षमता का प्रदर्शन किया। इस दौरान भारतीय वायुसेना दिन और रात दोनों ही समय में अपनी मारक क्षमता को प्रदर्शित करेगी।
चीफ्स ऑफ स्टॉफ कमेटी के अध्यक्ष और वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने पोखरण में माननीय राष्ट्रपति और माननीय प्रधानमंत्री की अगवानी की। इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य देश के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए भारतीय वायुसेना की क्षमता का प्रदर्शन करना है। अभ्यास के दौरान भारतीय वायुसेना हवा, जमीन अथवा समुद्र से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी परिवर्तनकारी अत्याधुनिक लड़ाकू क्षमता को दिखाएगी।
इस प्रदर्शन में छह थीम पर आधारित छह हिस्से होंगे, जिसमें 180 से अधिक लड़ाकू विमान, परिवहन विमान और हेलीकाप्टर हिस्सा ले रहे हैं।
शो में सबसे पहले एक फ्लाईपास्ट होगा, जो भारतीय वायुसेना की आठ दशकों की यात्रा को दिखाएगा। इसमें टाइगर मोठ जैसे अतीत के विमान भारतीय वायुसेना के नवीनतम विमानों के साथ उड़ान भरेंगे। फ्लाईपास्ट के दौरान मिग-21, मिग-27 और मिग-29 और सुखोई-30 मिश्रित फार्मेशन में उड़ान भरेंगे। यह पिछले दशकों के दौरान भारतीय सेना के परिवर्तन को दर्शाएगा।
इसके बाद, नेट-इनेबलिंग संचालन विमानों का प्रदर्शन होगा। इसकी शुरुआत देश में ही विकसित एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम एयरक्राफ्ट के फ्लाईपास्ट से होगी। इसके बाद सिंक्रनाइज हथियार आपूर्ति को प्रदर्शित किया जाएगा। इसमें मिराज-2000, सुखोई-30, मिग-27 और जगुआर जैसे विमान निर्धारित लक्ष्यों पर बमबारी करेंगे।
आक्रामक क्षमताओं का प्रदर्शन करने के बाद भारतीय वायुसेना अपने बहुस्तरीय हवाई सुरक्षा ऑपरेशंस का प्रदर्शन करेगी। यह हवा में ईंधन भराने वाले विमानों, आईएल-78 एफआरए के साथ दो सुखोई-30 विमानों का फ्लाईपास्ट होगा। ये लड़ाकू विमानों की सामरिक पहुंच का विस्तार करने की क्षमता का प्रदर्शन करेंगे।
गुरुवार, 17 मार्च 2016
सुकन्या समृद्धि खाता: बालिकाओं के सुरक्षित भविष्य की दिशा में ठोस कदम
लड़कों को प्राथमिकता देने वाली रुढि़वादी और गलत मानसिकता के कारण कुछ लोग कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं। इसके कारण देश में लैंगिक अनुपात में असमानता पैदा होती है। 2011 की जनगणना के अनुसार बाल लिंग अनुपात 914 दर्ज किया गया, जो स्वतंत्रता के बाद न्यूनतम है।
संयुक्त राष्ट्र ने इसी वर्ष जो रिपोर्ट प्रकाशित की थी, उसमें इस स्थिति को ‘आपातकालीन’ के रूप में उल्लेखित किया गया है। रिपोर्ट में इसका कारण देश में अवैध रूप से किए जाने वाले गर्भपात को बताया गया था।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि देश के समाजिक ढांचे में पुरुषों के बर्चस्व को रोकने के लिए तुरंत उपाय किए जाने चाहिए। इसके लिए स्कूली और उच्च शिक्षा को महत्पूर्ण घटक के रूप में पेश किया गया था ताकि लोग लिंग अनुपात के प्रति जागरुक हो सकें।
जनवरी 2015 में केंद्र सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य लड़कियों के प्रति लोगों की मानसिकता में सकारात्मक परिवर्तन लाना है ताकि लड़कियों के साथ भेद-भाव समाप्त हो सके। इस योजना के जरिये सरकार देश के लोगों को जागरुक कर रही है ताकि लड़कियों और महिलाओं की स्थिति सुधर सके और लैंगिक समानता का लक्ष्य पूरा हो सके।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के साथ ही ‘सुकन्या समृद्धि खाता’ योजना भी शुरू की है। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के बारे में तो बहुत कुछ लिखा-पढ़ा गया है, लेकिन सुकन्या समृद्धि खाते के बारे में लोगों को कम जानकारी है।
उल्लेखनीय है कि सुकन्या समृद्धि खाता छोटी बचत योजना है, लेकिन उसमें देश की लड़कियों के जीवन को प्रभावित करके उनमें आत्म सम्मान की भावना पैदा करने की क्षमता है। इस योजना का उद्देश्य लड़कियों को शिक्षित करने और उनका विवाह खर्च मुहैया कराकर उनके सुनहरे भविष्य का निर्माण करना है।
योजना के तहत माता-पिता या कानूनी अभिभावक लड़की के नाम से खाता खोल सकते हैं और उसका संचालन लड़की के 10 वर्ष की आयु होने तक कर सकते हैं। योजना के संबंध में सरकारी अधिसूचना के अनुसार यह खाता किसी भी डाकखाने और निर्धारित सरकारी बैंकों में खोला जा सकता है।
जो बैंक योजना के तहत खाता खोलने के लिए अधिकृत हैं उनमें भारतीय स्टेट बैंक, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर और जयपुर, स्टेट बैक ऑफ पटियाला, विजया बैक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक, सिंडिकेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, पंजाब एंड सिंध बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, इंडियन ओवसीज बैंक, इंडियन बैंक, आईडीबीआई बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, देना बैंक, कारपोरेशन बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, एक्सिस बैंक, आंध्रा बैंक और इलाहाबाद बैंक शामिल हैं।
योजना के तहत जमा की जाने वाली रकम पर वार्षिक 9.2 प्रतिशत ब्याज दिया जाएगा। यह बहुत आकर्षक ब्याज दर है। बहरहाल, सरकार हर वर्ष ब्याज दर की समीक्षा करेगी और आम बजट के समय उसकी घोषणा की जाएगी। हर वर्ष जमा की जाने वाली रकम की न्यूनतम सीमा 1000 रुपये और अधिकतम सीमा एक लाख 50 हजार रुपये है। एक महीने में या एक वित्त वर्ष के दौरान रकम जमा करने की बारम्बारता की कोई सीमा नहीं है।
खाते की वैधानिकता उसके खोले जाने की तारीख से लेकर 21 वर्ष की है, जिसके बाद रकम परिपक्व होकर उस लड़की को दे दी जाएगी जिसके नाम पर खाता है। यदि परिपक्वता के बाद खाता बंद नहीं किया जाता है तो बैलेंस रकम पर ब्याज मिलता रहेगा, जिसके बारे में समय-समय पर सूचना प्रदान की जाती रहेगी। यदि लड़की का विवाह 21 वर्ष पूरा होने के पहले हो जाता है तो खाता अपने-आप बंद हो जाएगा।
खाता खोलने की तारीख से 14 वर्ष तक रकम जमा की जाएगी। इसके बाद जमाशुदा रकम पर ब्याज मिलता रहेगा।
यदि न्यूनतम आवश्यक निर्धारित राशि एक हजार रुपये को माता-पिता या अभिभावक जमा नहीं करते हैं तो खाता सक्रिय नहीं माना जाएगा। इस स्थिति में खाते को प्रति वर्ष 50 रुपये पेनाल्टी के सथ दोबारा चालू किया जा सकता है, लेकिन न्यूनतम रकम भी जमा करनी होगी।
21 वर्ष की परिपक्वता अवधि पूरी होने के पहले खाताधारी लड़की रकम निकाल सकती है बशर्ते कि उसकी आयु 18 वर्ष की हो गई हो। इस स्थिति में वह कुल जमा राशि का 50 प्रतिशत ही निकाल पाएगी। इसके लिए यह जरूरी है कि निकाली जाने वाली रकम या तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए हो या विवाह के लिए हो। यह भी उल्लेखनीय है की रकम निकालने के समय खाते में कम से कम 14 वर्ष या उससे अधिक की जमा मौजूद हो।
माता-पिता या अभिभावक लड़की के नाम एक ही खाता खोल सकते हैं और दो लड़कियों के नाम अधिकतम दो खाते खोले जा सकते हैं। यदि पहले एक लड़की हो और उसके बाद जुड़वा लड़कियां पैदा हों या पहली बार में ही तीन लड़कियां पैदा हों तो ऐसी स्थिति में तीन लड़कियों के नाम से बैंक खाते खोले जा सकते हैं।
सुकन्या समृद्धि खाता कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें कर छूट प्रदान की जाती है। जमा की जाने वाली रकम और परिपक्व रकम को आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत पूरे कर छूट प्राप्त है।
परिपक्व होने के पहले खाता बंद करने की दूसरी शर्त यह है कि जब सक्षम अधिकारी यह सुनिश्चित हो जाएगा कि अब जमाकर्ता के लिए खाते में रकम जमा करना संभव नहीं है और रकम जमा करने में मुश्किल हो रही है तो खाता बंद किया जा सकता है। खाता बंद करने की और कोई तीसरी वजह नहीं मानी जाएगी।
खाता खोलने की प्रक्रिया बहुत आसान है और इसके लिए तीन दस्तावेजों की आवश्यकता होगी—1. अस्पताल या सरकारी अधिकारी द्वारा प्रदान किया गया लड़की का जन्म प्रमाण पत्र 2. लड़की के माता-पिता या कानूनी अभिभावक के निवास का प्रमाण पत्र, जो पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, बिजली या टेलीफोन बिल, मतादाता पहचान पत्र, राशन कार्ड या भारत सरकार द्वारा प्रदत्त अन्य कोई भी प्रमाण पत्र जिसमें निवास का उल्लेख हो, 3. पैन कार्ड या हाईस्कूल प्रमाण पत्र भी खाता खोलने के लिए मान्य है। खाता खोले जाने के बाद उसे भारत में कहीं भी स्थानांतरित किया जा सकता है।
योजना में अभिभावक उसी समय शामिल हो सकता है जब लड़की के माता-पिता दोनों मृत हो चुके हो या वे खाता खोलने और उसे चलाने के अयोग्य हों। यह उल्लेख जरूरी है जिस लड़की के नाम से खाता खोला जाएगा वह यदि चाहे तो 10 वर्ष की आयु पूरा होने के बाद खुद अपना खाता चला सकती है।
सुकन्य समृद्धि खाता एक छोटी निवेश योजना भले हो लेकिन यह इस समय बहुत आवश्यक है और इससे लड़कियों को वित्तीय सुरक्षा मिलने में सहायता होगी।
बुधवार, 16 मार्च 2016
कैलाश मानसरोवर यात्रा- 2016
विदेश मंत्रालय ने कैलाश मानसरोवर यात्रा-2016 के लिए http://kmy.gov.in वेबसाइट पर ऑन लाइन आवेदन शुरू करने की घोषणा की है। यह यात्रा 12 जून से 9 सितंबर 2016 के दौरान लिपुलेख तथा नाथूला के रास्ते की जाएगी।
लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) के रास्ते 200 किलो मीटर की कठिन यात्रा करनी पड़ती है। इस पर प्रति व्यक्ति 1.6 लाख रुपये खर्च आता है। इस रास्ते से एक जत्थे में 60 यात्रियों वाले 18 जत्थे जाएंगे। नाथूला दर्रा (सिक्किम) का रास्ता वाहन मार्ग है और इस पर प्रति व्यक्ति 2 लाख रुपये प्रति व्यक्ति खर्च आने का अनुमान है। इस रास्ते से प्रत्येक जत्थे में 50 यात्रियों के 7 जत्थे होंगे।
आवेदक की आयु सीमा 1 जनवरी 2016 को 18 से 70 वर्ष के बीच होनी चाहिए। आवेदक दोनों में कोई एक मार्ग चुन सकते हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए नाथूला रास्ते को प्राथमिकता दी जाएगी। पहली बार आवदेन करने वालों, वरिष्ठ नागरिकों तथा डाक्टरों को प्राथमिकता दी जाएगी।
आवेदन की प्रक्रिया पूरी तरह ऑन लाइन है। ऑन लाइन आवेदन पत्र में आवश्यक निर्देश और आवेदन भरने के लिए हिन्दी और अंग्रेजी में दिशा निर्देश दिए गए हैं।
इस यात्रा के लिए यात्रियों का चयन किया जाएगा और उन्हें मार्ग और जत्था किराये के अनुसार दिया जाएगा। यह प्रक्रिया कम्युटर से पूरी होगी और इसमें लैंगिक संतुलन बनाए रखा जाएगा। आवेदक आईबीआरएस हेल्प लाइन नम्बर 011-24300655 पर कोई सूचना या अपने आवेदन की स्थिति जान सकते हैं।
मंगलवार, 15 मार्च 2016
समुद्री यातायात को बढ़ावा देने के लिए सरकार तत्पर
भारत सरकार ने भारतीय समुद्री क्षेत्र को मजबूत बनाने और इसे बढ़ावा देने के लिए बजट 2016-17 में निम्नलिखित कर प्रोत्साहनों का प्रस्ताव किया है -
(i)जहाजों द्वारा आयात माल की ढुलाई की सेवाओं को यात्रा चार्टर की नकारात्मक सूची से निकालना-
भारत से माल के आयात के लिए शिपिंग कंपनियों द्वारा लिए जाने वाले भाड़े प्रभार को नकारात्मक सूची से बाहर कर दिया गया है और ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रयुक्त सामग्री पर सेनवैट क्रेडिट प्रयोग करने की अनुमति दी गई है। इससे भारतीय और विदेशी शिपिंग कंपनियों के दरमियान कराधान क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी अंतर में संतुलन कायम होगा। इस सकारात्मक परिवर्तन से भारत प्रमुख प्रगतिशील समुद्रीय अधिकार-क्षेत्र के स्तर पर आ जाएगा जिसके तहत पहले ही आयात किये जाने वाले माल के लिए प्रयुक्त सामग्री पर भुगतान किये गए करों का पूरा क्रेडिट दिया जाता है।
(ii)भारतीय जहाजों द्वारा निर्यात माल की ढुलाई की सेवाओं की शून्य रेटिंग-
निर्यात माल की ढुलाई के सेवाओं को निर्यात के रूप में नहीं लिया जा रहा था और माल के निर्यात के लिए सेनवैट क्रेडिट उपलब्ध नहीं था जिससे भारतीय फ्लैगशिपों के लिए सेवाएं महंगी हो रही थी। अब यह प्रस्ताव किया गया है कि भारतीय जहाजों द्वारा देश से बाहर माल की ढुलाई के द्वारा भारतीय शिपिंग कंपनियों द्वारा उपलब्ध करायी गई सेवाओं को सेवा उपलब्ध कराने में प्रयुक्त सामग्रियों के लिए सेनवेट क्रेडिट की उपलब्धता को 01 मार्च, 2016 से जीरो रेटिड किया जाएगा। इससे माल ढुलाई की लागत कम होगी और भारत प्रमुख प्रगतिशील समुद्रीय अधिकार-क्षेत्र के स्तर पर आ जाएगा जहां समुद्री सेवाओं पर कराधान नहीं है और समुद्री सेवाओं में प्रयुक्त सामग्रियों पर भुगतान किये गए करों का पूरा क्रेडिट भी प्रदान किया जाता है।
(iii)तटीय शिपिंग पर सेवा कर मामले में कमी -
सड़क या रेल के बजाय तटीय शिपिंग के माध्यम से माल की ढुलाई को प्रोत्साहित करने की जरूरत को महसूस करते हुए सरकार ने केंद्रीय बजट 2015-2016 में सड़क और रेल के अनुरूप सेवा कर में 70 प्रतिशत के बराबर छूट देने का प्रस्ताव किया गया था। तथापि सेवा में प्रयुक्त सामग्रियों पर सेनवैट क्रेडिट की कमी के कारण शिपिंग कंपनियांग्राहकों को कम लागत पर सेवाएं प्रदान करने में समर्थ नहीं थी। सरकार ने वर्तमान बजट में इस विसंगति में सुधार किया है।
(iv)पूंजीगत वस्तुओं, कच्चे माल और समुद्र में जा रहे जहाजों की मरम्मत में प्रयोग होने वाले पुर्जों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कमी -
इससे समुद्र में जा रहे जहाजों की मरम्मत में प्रयोग की गई सामग्री की लागत में 4 प्रतिशत कमी आएगी। लेकिन यह सामग्री देश में खरीदी गई हो। इस संसोधन में शिपयार्ड को समुद्र में जाने वाले वाहनों की मरम्मत के लिए बिना कोई ड्यूटी का भुगतान किए पूंजीगत वस्तुओं की खरीद ने की अनुमति दी गई है। हालांकि ऐसी सामग्री की खरीद पर अभी तक 12.5 प्रतिशत शुल्क लगता था
(v)जहाज निर्माण और जहाज की मरम्मत के लिए माल की खरीदी को पर सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क में छूट प्राप्त करन की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है -
जहाज निर्माण और जहाज की मरम्मत के लिए केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क की रियायती / शून्य दर खरीददारी करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया गया है। नई प्रक्रिया में रियायती / शून्य दर सामान की खरीददारी के लिए अनुमोदन प्राप्त करने के बजाय केवल सीमा शुल्क विभाग को सूचना देने की जरूरत है। इससे काम करने में आसानी हुई है।
(vi)सभी अप्रत्यक्ष करों के भुगतान में देरी पर ब्याज दरों का युक्तिकरण -
यह महसूस किया गया है कि कम ब्याज दरों पर समुद्री क्षेत्र के वित्तीय भार को कम किया जा सकेगा।
(2.)भारतीय शिपिंग उद्योग को सहूलियत देन और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सरकार ने पहले ही कुछ नीतियों को लागू किया गया है जो इस प्रकार हैं –
i. शिपयार्ड के लिए बुनियादी ढ़ाचे का दर्जा -
बुनियादी ढांचे पर संस्थागत प्रणाली ने 21 दिसंबर, 2015 को जहाज निर्माण और जहाज की मरम्मत करने वाले शिपयार्ड को बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की संगत सूची में शामिल करने की सिफारिश की है।
ii.भारतीय शिपयार्डों के लिए वित्तीय सहायता और पात्रता मदद -
सरकार ने 2 अप्रैल 2016 से 10 वर्षों के लिए भारतीय शिपयार्डों को वित्तीय सहायता देने का अनुमोदन 9 दिसंबर, 2015 को किया था।
iii.स्वदेश निर्मित जहाजों और आयातित जहाजों के बीच समानता -
सरकार ने 24 नवंबर, 2015 को देश में निर्मित जहाजों और आयातित जहाजों के बीच समानता उपलब्ध कराने के लिए जहाजों के निर्माण में प्रयुक्त सामग्रियों पर उत्पादन और सीमा शुल्क को माफ कर दिया गया है।
iv.भारतीय पोत कारखाने के लिए कारोबार करना आसान -
सरकार ने 24 नवंबर, 2015 सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 65 के अधीन सीमा शुल्क नियंत्रण के तहत लाभ उठाने के लिए शुल्क मुक्त आयात या जहाज निर्माण में प्रयुक्त सामग्री की घरेलू खरीद के तहत शिपयार्ड संचालित करने के लिए छूट दी है।
v.तटीय मार्ग के माध्यम से कंटेनरीकृत कार्गो की ढुलाई को बढ़ावा देना -
सरकार ने 17 सितंबर, 2015 को सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद छूट दी गई है। इस कर प्रोत्साहन से तटीय परिवहन की परिचालन लागत में कमी आएगी और भारतीय माल की ढुलाई को प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ भारत में परिवहन केंद्र के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
vi.भारतीय बाजार में विशेष जहाजों की उपलब्धता को बढ़ावा देना -
सड़कों, रेलवे और अंतर्देशीय जल परिवहन में भीड़ के कम करने और तटीय शिपिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 2 सितंबर, 2015 को रोल-ऑन रोल-ऑफ (रो-रो), हाइब्रिड रोल-ऑन रोल-ऑफ (हाइब्रिड रो-रो), शुद्ध कार वाहकों, शुद्ध कार और ट्रक वाहकों, एलएनजी जहाजों और ओवर-आयामी कार्गों या परियोजना कार्गों वाहकों पांच साल की अवधि के लिए अनुतट यात्रा में छूट दी है।
vii.भारतीय झंडा जहाजों विदेशी झंडा जहाजों पर कार्यरत भारतीय नाविकों में समता लाना -
सरकार ने भारतीय झंडा जहाजों विदेशी झंडा जहाजों पर कार्यरत भारतीय नाविकों में कर व्यवस्था में समानता का समावेश किया है और यह आदेश भी दिया है कि उनकी भारत में ठहरने की अवधि की गणना उनके सतत निर्वहन प्रमाणपत्र में (सीडीसी) में की गई प्रविष्टियों के अनुसार की जाएगी।
viii.प्रकाश देय राशि के संग्रह और आकलन को सरल बनाना -
प्रकाश देय राशि के ई-भुगतान को 5 मई, 2015 से लागू किया गया है। प्रकाश देय राशि की वसूली के लिए एक सरल कार्यप्रणाली 26 नवंबर, 2014 को पहले ही अपनाई जा चुकी है।
ix. भारतीय तट में काम कर रहे भारतीय झंडा जहाजों और भारतीय ड्रेजरों के लिए राइट ऑफ फस्ट रिफ्यूजल (आरओएफ़आर) को अबाधित करना -
को मजबूत बनाने और एक प्रतिस्पर्धी ढांचे में भारतीय शिपिंग और ड्रेजिंग उद्योग को बढ़ावा देने की सरकार की नीति के ध्यान में रखते हुए सरकार ने 26 मार्च, 2015 को, भारतीय झंडा जहाजों के लिए राइट ऑफ फस्ट रिफ्यूजल (आरओएफ़आर) के दायरों को बढ़ाया है। इससे भारतीय झंडा पोतों के साथ ही ड्रेजरों को भी और अधिक व्यापार प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
x.पोत मरम्मत इकाइयों के पंजीकरण के लिए प्रक्रिया का सरलीकरण -
देश में जहाज की मरम्मत के व्यापार के माहौल को सरल बनाने के लिए सरकार ने 13 फरवरी, 2015 को पोत मरम्मत इकाइयों के पंजीकरण के लिए प्रक्रिया को सरली बनाया है। इससे अधिक जहाज मरम्मत इकाइयों को स्थापति करने के साथ-साथ अधिकतम रोजगार जुटाने में मदद मिलेगी।
xi.जहाज निर्माण के प्रयोजनों के लिए जहाजों को तोड़ने से प्राप्त रि-रोल्ड इस्पात का उपयोग -
नौकाओं, नदी समुद्र पोतों (आरएसवी 1 और 2 टाइप) और बंदरगाह जहाजों के निर्माण की लागत कम करने के लिए और जहाज और नाव निर्माताओं की स्टील की मांग को पूरा करने के लिए सरकार ने फरवरी 2018 में जहाजों तोड़ने से प्राप्त रि-रोल्ड इस्पात को इन पोतों के निर्माण में उपयोग करने के लिए प्रमाणित करने का निर्णय लिया।
xii. कानूनी प्रतिमान सरल
एम एस अधिनियम 1958 के अधीन 67 में से 13 नियमों को निरस्त कर दिया गया है। मसौदा मर्चेंट शिपिंग बिल को परिपत्रित किये जाने के अधीन है।
xiii.मंजूरी देने के लिए ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना -
§ चार्टर के लिए अपेक्षित शुल्क ई-भुगतान हेतु चार्टर संबंधि मंजूरी के लिए ऑनलाइन आवेदन की सुविधा 8 दिसंबर, 2015 को शुरू की गई थी।
§ मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर लाइसेंस और ऑपरेटरों के लिए अपेक्षित शुल्क के ई-भुगतान के लिए ऑनलाइन आवेदन की सुविधा 30 नवंबर 2015 से शुरू की गई है।
§ नया सीडीसी जारी करने और सीडीसी के नवीकरण / प्रतिस्थापन / डुप्लीकेट प्राप्त करने के लिए अपेक्षित शुल्क के ई-भुगतान के लिए ऑनलाइन आवेदन की सुविधा 15 जून 2015 से शुरू की गई है।
§ जहाज मालिकों के लिए अपेक्षित शुल्क के ई-भुगतान और पंजीकरण के लिए ऑनलाइन आवेदन के लिए सुविधा 20 मार्च 2015 से शुरू की है।
§ योग्यता परीक्षाओं के प्रमाण पत्र के लिए आवेदन और आकलन की ऑनलाइन सुविधा 12 जनवरी, 2015 से शुरू की गई है।
दिव्यांगों के लिए जल्द जारी होंगे विशिष्ट पहचान पत्र
केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री श्री थॉवरचंद गहलोत ने कहा है कि विशिष्ट पहचानपत्र (यूआईडी) लागू करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी गई है और इसे एक साल के भीतर पूरा करने के लिए सभी संभव कदम उठाए जा रहे हैं। वह यहां स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय पुनर्वास प्रशिक्षण संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र में मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर का उद्घाटन करने आए थे। उन्होंने ओडिशा के बोलांगीर के एनआईआरटीएआर में एक उपग्रह केंद्र की आधारशिला भी रखी। इस अवसर पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री श्री कृष्ण पाल गुर्जर और जगतसिंहपुर के सांसद डा. कुलामणि सामल भी उपस्थित थे।
श्री गहलोत ने संस्थान में आयोजित मेगा सर्जिकल कैंप का भी दौरा किया। इस कैंप में ओडिशा के विभिन्न हिस्सों से आए बीमार लोगों का मुफ्त में ऑपरेशन किया गया है। दोनों मंत्रियों और उपस्थित अतिथियों द्वारा एससी/एसटी लाभकर्ताओं को स्वरोजगार किट भी वितरित की गई। इन लोगों ने विभिन्न रोजगार ट्रेडों में संस्थान द्वारा दिया गया व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल किया है। कैंप में 56 दिव्यांगों को सहायता एवं सहायक उपकरण भी वितरित किए गए।
श्री गहलोत ने घोषणा की कि अस्पताल में इलाज के लिए मरीजों के लंबे इंतजार को देखते हुए संस्थान को सभी तरह की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। ताकि यहां सौ बिस्तर वाले अस्पताल को 200 बिस्तर वाले अस्पताल में तब्दील करने के लिए इमारत और अन्य आधारभूत ढांचा विकसित किया जा सके। केंद्रीय मंत्री ने यह भी भरोसा दिलाया कि संस्थान में खाली पड़े पदों का पुनःसत्यापन कराया जाएगा और इन्हें भरने की प्रक्रिया में जल्द ही तेजी लाई जाएगी।
देश भक्ति के नाम पर मत करो सियासत
भारत माता की जय बोलने के मुद्दे पर आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत की सलाह, एमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी का भड़काऊ बयान और शिवसेना का ओवैसी को पाकिस्तान जाने की सलाह देना। ये पूरा मामला कुछ-कुछ वैसा ही जैसे कि देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कन्हैया के मुद्दे पर कांग्रेस और वामपंथी नेता एक झटके में जेएनयू कैंपस में हाजिरी देने पहुंच जाते हैं। लेकिन सैकड़ों गरीब, लाचार और बेबस किसानों की आत्महत्या पर एक बयान देने तक के लिए उनके पास वक्त नहीं है। उसी तरीके से माननीय मोहन भागवत को देश में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आतंकवाद, अलगाववाद, सड़क, बिजली और पानी के मुद्दे नहीं दिखाई देते। उन्हें सिर्फ भारत माता दिखाई देती हैं, इसलिए वह भारत माता की जय बोलने की वकालत करते हैं। लेकिन वह य़ह भूल जाते हैं कि भारत माता की असली सेवा तभी संभव है जब इस देश के दलित, गरीब, अल्पसंख्यक और लाखों ऐसे लोगों को रोजगार मिले, जो दो वक्त की रोटी के लिए भटक रहे हैं। देश के करोड़ों आदिवासियों को शिक्षा और बुनियादी सुविधा कैसे मिले इसकी चिंता न तो ओवैसी को है ना ही मोहन भागवत को और न ही शिवसेना को। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पीने के पानी से लेकर सड़क और शिक्षा से जु़ड़े सवाल कई सालों से मुंह बाएं खड़े हैं। लेकिन ओवैसी को अपनी राजनीति चमकाने की चिंता ज्यादा है। गढचिरौली समेत दूसरे आदिवासी हिस्सों में गर्मियों में इंसान से लेकर जानवर तक भुखमरी के शिकार हो जाते हैं। लेकिन शिवसेना उस मुद्दे पर खामोशी साध लेती है। सभी सियासी नेताओं को देश की चिंता कम अपनी कुर्सी की चिंता ज्यादा सताने लगी है। ओवैसी को अगामी लोकसभा चुनाव में वोट की चिंता ज्यादा सताने लगी है। लिहाजा वह बिना सिर पैर के बयान देने से बाज नहीं आ रहे हैं। आरएसएस को भी बीजेपी के सत्ता में आए के बाद देश की चिंता कुछ ज्यादा ही सताने लगी है। लिहाजा वह हर दूसरे दिन देश भक्ति के नाम पर नए नए फरमान जारी करने में जुटी है। शिवसेना की पूरी राजनीति हिंदुत्व के नाम पर टिकी है। उसकी सियासी मजबूरी है कि वह हर वक्त हिंदुत्व का नारा बुलंद करता रहे। साथ ही पाकिस्तान की खिंचाई भी उसके सियासी एजेंडे को फायदा पहुंचाती है। लेकिन इन सबके के बीच देशहित, समाजहित और आमलोगों का सरोकार कहीं खो सा जाता है। इसकी किसी को परवाह तक नहीं रहती। आखिर सियासत की खातिर नेता कब तक आमलोगों को मोहरा बनाकर इस्तेमाल करेंगे। अपने फायदे के लिए कब लोगों के हितों की बलि चढ़ाते रहेंगे। वो दौर कब आएगा, जब नेता और सियासी दल लोगों की भलाई, देश की बेहतरी और समाज कल्याण की बातें करेंगे। यह सवाल आज हर देश भक्त नागरिक इन वोट प्रेमी नेताओं के गिरोह से पूछना चाहता है।
Rakesh Prakash
9811153163
सोमवार, 14 मार्च 2016
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत 6493 गांवों में बिजली पहुंचाई गई
वन रैंक वन पेंशन के तहत दो लाख से अधिक सैन्य पेंशनरों को संशोधित पेंशन लाभ जारी
कंट्रोलर जनरल ऑफ डिफेंस अकाउंट्स, रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाले डिफेंस पेंशन डिस्बरसिंग ऑफिसेज (डीपीडीओएस) ने 2,21,224 सैन्य पेंशनरों को संशोधित पेंशन लाभ जारी किए। इन पेंशनरों में सेवा और अपगंता पेंशन लेने वाले सैन्य कर्मी शामिल हैं। इस पेंशन एरियर की पहली किस्त की राशि जारी कर दी गई है और इसे रक्षा मंत्रालय ने 01.03.2016 को पेंशनरों के खाते में जमा कर दिया है।
डीपीडीओएस से पेंशन लेने वाले 1,46,335 पेंशनरों के मामले में भुगतान एरियर के साथ मार्च अंत तक जारी हो जाएगा। बैंक इस संशोधित काम को जारी रखे हुए हैं। रक्षा मंत्रालय ने वन रैंक वन पेंशन की अधिसूचना 07.11.2015 को जारी की थी।
वन रैंक वन पेंशन के तहत (ओआरओपी) के तहत कुल अतिरिक्त वार्षिक वित्तीय राशि 7488.70 रुपये है। 1.7.2014 से लेकर 31.12.2015 की अवधि में एरियर के तौर पर 10925.11 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना है।
ओआरओपी के तहत 7488.70 करोड़ रुपये की देनदारी है। इनमें से पीबीओर परिवार 6,405.59 करोड़ रुपये हासिल करेंगे। यह वन रैंक वन पेंशन के तहत दी जाने वाली राशि का 85.5 प्रतिशत है।
रक्षा बजट में बढ़ोतरी की वजह से मौजूदा वित्त वर्ष 2015-16, में अतिरिक्त देनदारी बढ़ कर 4721.34 करोड़ रुपये हो गई है। इससे रक्षा पेंशन देनदारी 60,238 करोड़ रुपये से बढ़ कर 64,959.34 करोड़ रुपये हो जाएगी।
ओआरओपी के संबंध में लागू किए जाने वाले आदेशों को विस्तार के साथ http://www.desw.gov.in/ पर देखा जा सकता है। इसमें 101 सारिणी में सभी रैंकों और श्रेणियों में पेंशनरों के संशोधित पेंशनों का ब्योरा है। इस आदेश के तहत पेंशन बांटने वाली एजेंसियों को निर्धारित कार्यक्रम के तहत पेंशन बांटने के आदेश दिए जा चुके हैं।
पेंशन बांटने वाली एजेंसियों की सहूलियत के लिए प्रिसिंपल कंट्रोलर ऑफ डिफेंस अकाउंट्स (पी) ने 04.02.2016 को एक सर्कुलर जारी किया है। पेंशन लागू करने वाले निर्देश और सरकारी आदेश www.pcdapension.nic.in पर देखा जा सकता है।
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