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मंगलवार, 29 मार्च 2016
सागरमाला: नील क्रांति की ओर बढ़ते कदम
वर्तमान में, भारतीय बंदरगाह मात्रा की दृष्टि से देश के निर्यात व्यापार का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संभालते हैं तथापि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार में चालू अनुपात केवल 42 प्रतिशत है जबकि विश्व में कुछ विकसित देशों जैसे जर्मनी और यूरोपियन संघ में यह क्रमश: 75 और 70 प्रतिशत हैं इसलिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार में इसके हिस्से को बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। केंद्रीय सरकार के ''मेक इन इंडिया'' के प्रयास में यह अपेक्षा की गई है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार का हिस्सा बढ़ाया जाना जरूरी है तथा विकसित देशों में इसका स्तर प्राप्त कर लिया गया है। भारत बंदरगाहों का बुनियादी ढांचा तथा ढुलाई संरचना के मामले में काफी पीछे है। सकल घरेलू उत्पाद में रेलवे के 9 प्रतिशत तथा सड़कों के 6 प्रतिशत हिस्से के मुकाबले बंदरगाहों का हिस्सा केवल एक प्रतिशत है। इसके अलावा ढुलाई की उच्च लागतों से भारत का निर्यात प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है। अंत: सागरमाला परियोजना बंदरगाहों तथा शिपिंग को भारतीय अर्थव्यवस्था में सही स्थान देने तथा बंदरगाहों का विकास करने के लिए बनाई गई है।
भारतीय राज्यों में गुजरात बंदरगाहों के विकास की रणनीति अपनाने में प्रमुख रहा है तथा इसने उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए हैं जबकि 1980 में राज्य ने 5.08 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि दर्ज की (राष्ट्रीय औसत 5.47 प्रतिशत था), 1990 में यह बढ़कर 8.15 प्रतिशत हो गया (अखिल भारतीय औसत 6.98 प्रतिशत) तथा इसके पश्चात बंदरगाह-विकास मॉडल से इसमें प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।
सागरमाला का उद्देश्य
भारत के समुद्री क्षेत्र की वृद्धि में कई बाधाएं सामने आईं जिनमें औद्योगिकीकरण, व्यापार, पर्यटन और परिवहन को बढ़ावा देने में बुनियादी सुविधाओं के विकास में कई एजेंसियों का समावेशन; दोहरी संस्थागत संरचना की उपस्थिति जिससे प्रमुख तथा गैर प्रमुख बंदरगाहों का विकास अलग-अलग तथा बिना जुड़े रहा; प्रमुख और गैर प्रमुख बंदरगाहों से निकासी के लिए अपेक्षित बुनियादी सुविधाओं की कमी; भीतरी प्रदेशों के संपर्क में कमी की वजह से परिवहन तथा कार्गो की लागत में वृद्धि होना; भीतरी प्रदेशों में आर्थिक गतिविधियां तथा शहरी निर्माण के केंद्रों का अल्प विकास; भारत में अंतर्देशीय शिपिंग तथा समुद्री दोहन में कमी, भारत में विभिन्न बंदरगाहों पर अन्य सुविधाओं का अभाव, सीमित तकनीकीकरण तथा प्रक्रियागत बाधाओं जैसी नीतिगत चुनौतियां शामिल हैं।
सागरमाला के तहत इन चुनौतियों का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा। इसमें विकास के तीन स्तंभों (1) समन्वित विकास के लिए उपयुक्त नीति तथा संस्थागत सहयोग एवं अंतर-एजेंसी और मंत्रालय/विभागों/राज्यों के समावेश को सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत रूपरेखा तैयार करना तथा इनका सहयोग लेना, (2) बंदरगाह बुनियादी सुविधाओं का बढ़ावा जिनमें इनका आधुनिकीकरण तथा नई बंदरगाहों का गठन भी शामिल है और (3) भीतरी प्रदेशों से तथा इनमें सकुशल निकासी की व्यवस्था करना शामिल है।
सागरमाला के तहत कुशल तथा अर्ध कुशल जनशक्ति को बडे पैमाने पर रोजगार दिया जायेगा। रोजगार औद्योगिक समूहों तथा पार्कों, बडे बंदरगाहों, समुद्री सेवाओं, ढुलाई सेवाओं तथा अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में दिया जायेगा। इसका प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रभाव पडेगा। जहाजों, क्रूज शिप, जलयानों के निर्माण से औद्योगिक उत्पादन बढेगा और रोजगार का सृजन भी होगा।
बंदरगाह-नेतृत्व विकास की अवधारणा
सागरमाला परियोजना का एक प्रमुख उद्देश्य बंदरगाह के नेतृत्व में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देते हुए शीघ्रता, कुशलता और लागत प्रभावी रूप से बंदरगाहों से माल परिवहन के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है। इसलिए, सागरमाला परियोजना में, अन्य बातों के साथ, एक युक्तिसंगत समाधान के साथ नए विकास क्षेत्रों के उपयोग को विकसित करने के उद्देश्य से रेल विस्तार, अंतर्देशीय जल, तटीय और सड़क के माध्यम से मुख्य आर्थिक केन्द्रों के साथ संपर्क को बढ़ावा दिया जाएगा।
"सागरमाला" के लिए एक व्यापक और समन्वित योजना बनाने के क्रम में, छह महीने के भीतर समूचे समुद्र तट के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की जाएगी जो संभावित भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान करेगी और इसे तटीय आर्थिक क्षेत्र (सेज) के नाम से जाना जाएगा। एनपीपी की तैयारी करते समय, सहक्रिया और समाकलन के साथ योजान्वित औद्योगिक गलियारें, समर्पित भाड़ा गलियारें, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, औद्योगिक समूह और तटीय आर्थिक क्षेत्र के साथ तालमेल को सुनिश्चित किया जाएगा। चिहिन्त तटीय आर्थिक क्षेत्रों के लिए विस्तृत मास्टर प्लान तैयार किए जाएगें और इनके माध्यम से ही परियोजनाओं की अग्रणी पहचान और उनकी विस्तृत परियोजना रिपोर्टो को तैयार किया जाएगा।
विकास परियोजनाओं के प्रकार की एक व्याख्यात्मक सूची को सागरमाला पहल में शामिल किया जा सकता है। इनमें शामिल हैं: (1) बंदरगाह के नेतृत्व में औद्योगीकरण (2) बंदरगाह आधारित शहरीकरण (3) बंदरगाह आधारित और तटीय पर्यटन और मनोरंजक गतिविधियां (4) शॉर्ट-सी शिंपिंग तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जलपरिवहन (5) जहाज निर्माण, जहाज की मरम्मत और जहाज का पुनर्निर्माण (6) रसद पार्क, भंडारण, समुद्री क्षेत्र/सेवाएं (7) समुद्रतटीय क्षेत्र के साथ समाकलन (8) अपतटीय भंडारण, प्लेटफॉर्मो की ड्रिलिंग (9) खास आर्थिक गतिविधियों जैसे ऊर्जा, कंटेनरर्स, रसायन, कोयला, कृषि उत्पादों आदि में बंदरगाह की विशिष्टता (10) प्रतिष्ठानों के लिए बंदरगाहों के आधार के साथ अपतटीय नवीकरण ऊर्जा परियोजनाएं (11) वर्तमान बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और नए बंदरगाहों का विकास। इस रणनीति में बंदरगाह के नेतृत्व में विकास के साथ-साथ बंदरगाह के नेतृत्व में प्रत्यक्ष विकास और बंदरगाह के नेतृत्व में अप्रत्यक्ष विकास दोनों पहलू शामिल हैं।
वर्तमान बंदरगाहों की संचालन कुशलता में सुधार, जो सागरमाला पहल का एक उद्देश्य है, को वर्तमान बुनियादी ढांचे के उन्नयन और उन्नत व्यवस्था में सुधार और आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं और कार्यप्रणालियों के माध्यम से किया जाएगा। कागज रहित और समेकित लेनदेनों को सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी और स्वचालन का उपयोग मध्यस्थता का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा। सागरममाला परियोजना के अंतर्गत, तटीय नौवहन का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास और नीति पहलों के समन्वय के माध्यम से बढ़ाया जाएगा।
सागरमाला पहल के तहत तटीय आर्थिक क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या के दीर्घकालिन विकास को सुनिश्चित भी किया जाएगा। यह कार्य समुदायों से संबंधित और ग्रामीण विकास, जनजातीय विकास और रोजगार सृजन, मत्स्य पालन, कौशल विकास और पर्यटन को प्रोत्साहन देने जैसे राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों की मौजूदा योजनाओं और कार्यक्रमों के सहयोग से किया जाएगा। ऐसी परियोजनाओं और गतिविधियों को कोष उपलब्ध कराने के क्रम में एक पृथक निधि के माध्यम से इसके लिए 'समुदाय विकास कोष' तैयार किया जाएगा।
संस्थागत ढांचा
सागरमाला को कार्यान्वित करने के लिए संस्थागत ढांचे हेतु केंद्र सरकार को एक समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। सागरमाला परियोजना के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, यह 'सहयोग संघवाद' के स्थापित सिद्धांतों के अंतर्गत क्रमबद्धता और समन्वय के साथ काम करने हेतु केंद्र, राज्य सरकारों और स्थानीय प्राधिकरणों के लिए एक मंच के तौर पर होना चाहिए। समग्र नीति दिशानिर्देशों और उच्चस्तरीय सहयोग के साथ-साथ योजना और परियोजनाओं के कार्यान्वयन के विभिन्न पक्षों की समीक्षा के लिए एक राष्ट्रीय सागरमाला सर्वोच्च समिति (एनएसएसी) उल्ल्िखित हैं। एनएसएसी की अध्क्षता जहाजरानी मंत्री के द्वारा की जायेगी और इसमें मंत्रालयों के हित धारकों के तौर पर कैबिनेट मंत्री और समुद्री क्षेत्र से जुड़े राज्यों के बंदरगाहों के प्रभारी के तौर पर मुख्यमंत्री/मंत्री सदस्य के रूप में होंगे। कार्यान्वयन की पहल के लिए नीति निर्देश और दिशानिर्देश देते समय यह समिति समग्र राष्ट्रीय संदर्भ योजना (एनपीपी) को स्वीकृति देगी और इन योजनाओं के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करेगी।
सागरमाला से संबंधित परियोजनाओं में समन्वय और सुविधाओं के लिए राज्यस्तर पर प्रभारी तंत्र बनाने के क्रम में, राज्य सरकारें राज्य सागरमाला समिति के गठन का सुझाव देगी। इनकी अध्यक्षता बंदरगाहों के प्रभारी के तौर पर मुख्यमंत्री/मंत्री, संबंधित विभागों और एजेंसियों के साथ करेंगे। राज्य स्तर की समिति एनएसएसी में लिए गए फैसलों को प्राथमिकता के तौर पर देखेगी। राज्य स्तर पर राज्य समुद्री क्षेत्र बोर्ड/राज्य बंदरगाह विभाग, राज्य सागरमाला समिति को सेवा प्रदान करेंगे और एसपीवी (आवश्यकता के अनुसार) और निरीक्षण के माध्यम से व्यक्तिगत परियोजनाओं के सहयोग और कार्यान्वयन के लिए भी जिम्मेदार होंगे। प्रत्येक तटीय आर्थिक क्षेत्र का विकास व्यक्तिगत परियोजनाओं और इनको सहायता देने वाली गतिविधियों के माध्यम से किया जायेगा, जिनकी देखरेख राज्य सरकार, केन्द्रीय मंत्रियों और एसपीवी के द्वारा की जायेगी, जिन्हें राज्य स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा अथवा एसडीसी और बंदरगाहों द्वारा आवश्यकता के अनुरूप गठित किया जायेगा।
सागरमाला समन्वय और परिचालन समिति का गठन कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में किया जायेगा, इसमें जहाजरानी, सड़क परिवहन और राजमार्ग, पर्यटन, रक्षा, गृहमंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, राजस्व विभाग, व्यय, औद्योगिक नीति मंत्रालयों के सचिवों, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, एनआईटीआई आयोग सदस्य के तौर पर शामिल होंगे। समिति विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों और कार्यान्वयन के साथ जुड़ी एजेंसियों के बीच सहयोग प्रदान करेगी और राष्ट्रीय महत्व की योजना के कार्यान्वयन, विस्तृत मास्टर प्लानों और परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा करेगी। इसके साथ-साथ यह परियोजनाओं को निधि प्रदान करने और उनके कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर भी विचार करेगी। यह समिति परियोजनाओं के कोष के लिए उपलब्ध वित्तीय विकल्पों की भी समीक्षा के साथ-साथ परियोजना के वित्त पोषण/निर्माण/संचालन में सार्वजनिक-निजी साझेदारी की संभावनाओं पर भी विचार करेगी।
केन्द्र स्तर पर सागरमाला विकास कम्पनी को राज्य स्तर/क्षेत्रीय स्तर के विशेष प्रयोजन वाहनों (एसपीवी) की सहायता के लिए कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत गठित किया जायेगा और परियोजनाओं के कार्यान्यन हेतु इक्विटी सहायता के साथ बंदरगाहों के द्वारा एसपीवी का गठन किया जायेगा। व्यक्तिगत क्षेत्रों के लिए दो वर्ष की अवधि के भीतर तैयार विस्तृत मास्टर प्लानों को एसडीसी द्वारा अपनाया भी जायेगा। एसडीसी की व्यवसायिक योजना को 6 महीनों की अवधि के भीतर अंतिम रूप दिया जायेगा। एसडीसी उन सभी शेष परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए कोष प्रदान करेगा जिन्हें किसी अन्य माध्यम से वित्त पोषण नहीं हो सकता है।
परियोजना कार्यान्यन और वित्त पोषण
परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रारम्भ करने के क्रम में सागरमाला की अवधारणा में कार्यान्वयन हेतु शामिल चिह्नित परियोजनाओं को शुरू करने का प्रस्ताव है। ये चिह्नित परियोजनायें प्रारम्भिक चरण में कार्यान्वयन के लिए उपलब्ध आंकड़ों और सम्भाव्य अध्ययन रिपोर्टों और राज्य सरकारों एवं केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा की गई तैयारियों, दिखाई गई रूचि पर आधारित होंगी।
इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के सभी प्रयासों को निजी क्षेत्रों और सार्वजनिक-निजी साझेदारी जहां तक भी संभव हो के माध्यम से किया जायेगा। सागरमाला वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए परियोजना के प्रारम्भिक चरण में परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक कोष 692 करोड़ रूपये परिलक्षित है। आगामी वर्षों के लिए तटीय आर्थिक क्षेत्रों हेतु विस्तृत मास्टर प्लान के पूर्ण हो जाने के बाद धन की और आवश्यकता को निर्धारित किया जायेगा। एससीएससी के द्वारा स्वीकृत संबंधित मंत्रालयों के द्वारा परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु इन कोषों का उपयोग किया जायेगा।
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super jankari bro
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