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गुरुवार, 31 मार्च 2016

नैनीताल में एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन ने काम करना शुरु किया

अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में भारत ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है...नैनीताल में एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन ने काम करना शुरु कर दिया है...सबसे खास तो ये रहा कि इस दूरबीन को पीएम मोदी ने बेल्जियम की जमीन से देश को इसे समर्पित किया..अब उम्मीद है कि इसकी मदद से भारत अंतरिक्ष की दुनिया में नए आयाम छूने में कामयाब रहेगा...कुछ इस तरह देश से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर बेल्जियम शहर से शुरु हुआ एशिया का सबसे बड़ा ऑप्टिकल टेलीस्कोप....अपनी बेल्जियम यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बेल्जियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स मिचेल ने रिमोट टेक्निकल एक्टिवेशन टेक्निक के जरिए नैनीताल में बने 3.6 मीटर व्यास के टेलीस्कोप को एक्टिवेट किया...इस दौरान केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री डॉ हर्षवर्धन देवस्थल में मौजूद रहे।
Asia's largest optical telescope at Nainital.करीब 150 करोड़ की लागत से 9 सालों में बनकर तैयार हुआ ये टेलीस्कोप भारत का ही नहीं बल्कि एशिया की ऐसी पहला शक्तिशाली टेलीस्कोप है, जिसकी क्षमता अब तक की सभी दूरबीनों से लगभग 3 गुना अधिक है...इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये दुनिया के किसी भी कोने से ऑपरेट की जा सकती है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज़ ने एशिया की सबसे बड़े टेलीस्कोप की स्थापना का काम 1980 में शुरू किया था...देश के कई जगहों पर इसे स्थापित करने की संभावना तलाशने के बाद आख़िरकार नैनीताल से 60 किमी दूर धारी तहसील के देवस्थल को इस मिशन के लिए चुना गया...देवस्थल 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है...लिहाज़ा इस जगह को दूरबीन लगाने के लिए सही पाया गया...केंद्र सरकार ने 2007 में इसके लिए 120 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी.और टेलीस्कोप के निर्माण का काम 2007 में ही शुरु हुआ था। इस टेलीस्कोप से तारों के चुंबकीय क्षेत्र की संरचना को समझने में मदद मिलेगी... आकाशगंगा यानि मिल्की-वे के रासायनिक विकास को समझना आसान हो जाएगा...अब कम रौशनी वाले स्टार्स पर भी रिसर्च हो सकेगी ..यही नहीं तारों के इर्दगिर्द घूमने वाले मलबों पर रिसर्च से ग्रहों के निर्माण को समझने में मदद मिलेगी...और 3.6 मीटर व्यास वाला देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप 360 डिग्री घूमकर अतंरिक्ष की गतिविधियों पर नज़र रखेगा इस टेलीस्कोप को बनाने में 7 फीसदी हिस्सेदारी बेल्जियम की और 93 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है ..जो न केवल चारों दिशाओं का समझने में सक्षम है बल्कि क्रिटिकल ऑब्जर्वेशन में मील का पत्थर भी साबित होगी..कुल मिलाकर भारत की झोली में एक और बड़ी कामयाबी है जिसका फायदा पूरी दुनिया को मिलेगा ।

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