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रविवार, 19 अक्तूबर 2014
भारत में छपाई की शुरुआत कैसे हुई?
छपाई एक कलाकृति है। यह प्रारंभिक चित्र के समान प्रकार में लगभग विविधता की अनुमति देती है। भारत में छपाई का इतिहास 1556 से शुरू होता है। इस युग में गोवा में पुर्तगालियों ने छपाई की मशीन लगाई। अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में देखने पर यह ज्ञात होता है कि कला की यह विधा ग्यूटेर्नबर्ग की बाइबल की एक शताब्दी बाद भारत में आई। प्रसिद्ध कालाकार थोमस डैनियल (1749-1840) तथा विलियम डैनियल (1769-1837) ने ओरियन्टल सिनरी शीर्षक से कलमकारी की 6 श्रृंखलाओं को प्रस्तुत किया। 1786 में डैनियल ने ट्वेल्व व्यूज ऑफ कलकत्ता शीर्षक वाले एक रंग की कालमकारी का एलबम प्रकाशित किया। यह पहला मौका था जब भारत में लिथोग्राफी एक ही कागज पर छपाई की संभावना की तलाश की गई। 1822 में फ्रांसीसी कलाकार डी. सैविगनैक ने एक ही कागज पर लिथोग्राफी रूप में छपाई की।
1870 के दशक में कैलेन्डर, पुस्तक तथा अन्य प्रकाशनों के लिए छपी हुई तस्वीरों की मांग बढ़ी। इसके परिणाम स्वरूप एक ही कागज परछपाई की लोकप्रियता बढ़ी। आगे पूरे भारत में अनेक आर्ट स्टूडियो तथा छापेखाने तैयार हुए। कोलकाता के शोवा बाजार और चितपुर बट-ताला को 19वीं शताब्दी के प्रमुख छपाई केंद्र के रूप में देखा गया। मुंशी नवल किशोर ने 1858 में लखनऊ में नवल किशोर प्रेस तथा बुक डिपो की स्थापना की। इसे एशिया में सबसे पुराने छपाई और प्रकशन प्रतिष्ठान के रूप में मान्यता मिली और यहीं स्टोनब्लॉक के साथ अखबार और किताबों की छपाई होने लगी। इसके अतिरिक्त 19वीं शताब्दी के अंत में राजा रवि वर्मा ने मुंबई केघाटकोपर में लिथोग्राफी प्रेस स्थापित किया। रवि वर्मा के प्रेस को प्रसिद्धि मिली और उनके अनेक धार्मिक और धर्म निस्पेक्ष चित्रों की कॉपियों तैयार हुई और आम जनता के लिए तैल चित्र रूप में इनकी छपाई हुई।
20वीं शताब्दी के दूसरे दशक में अबनींद्रनाथ टैगोर, गगनेंद्रनाथ टैगोर तथा समरेंद्रनाथ टैगोर द्वारा छपाई को सृजनात्मक माध्यम का रूप दिया गया। इन तीनों ने सामूहिक रूप से बिचित्र क्लब की स्थापना की ताकि कटी हुई लकड़ी तथा कटे हुए पत्थरों से चित्रकारी और छपाई हो सके। इस क्लब के एक अन्य प्रमुख व्यक्ति थे मुकुलचंद्र डे,जिन्हें 1916 में रवींद्रनाथ टैगोर ने जेम्स ब्लाइंडिंग स्लोन से नक्काशी तकनीक सीखने के लिए अमेरिका भेजा। 1921 में शांति निकेतन में नंदलाल बोस ने कला भवन की स्थापना की। इसके साथ भारत में छपाई कला लोकप्रिय हुई। 1924 में चीन और जापान की यात्रा से वह चीनी घिसाई तथा जापानी रंग वाली लकड़ी से छपाई का माध्यम लेकर आए। इस कारण कला भवन के विद्यार्थियों ने सुदूर पूर्व की मौलिक छपाई के साथ सीधा संपर्क स्थापित किया। 1930 से 40 के बीच बिनोदबिहारी मुखर्जी तथा रामकिंकर बैज ने इस माध्यम का उपयोग किया। चित्तप्रसाद तथा सोमनाथ होर ने वामपंथी विचारों, सुधारवादी विषयों तथा 1943 केबंगाल अकाल और तेभाग आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक-आर्थिक आलोचनाओं का प्रसार लाइनोकट तथा वुडकट के इस्तेमाल से किया।
सोमनाथ होर 1979 में शांति निकेतन के ग्राफिक आर्ट विभाग के अध्यक्ष बने। सनत कार, लालू प्रसाद शॉ, पुलक दत्त, निर्मलेंदू दास, अजित सियाल और सलिल साहनी जैसे विशेषज्ञों ने शांति निकेतन के इस विभाग को बाद के वर्षों में समृद्ध बनाया। इसी तरह दिल्ली में जगमोहन चोपड़ा, (ग्रुप 8 के संस्थापक)जय स्वामीनाथन अनुपम सुध, परमजीत सिंह, मंजीत बाबा तथा कृष्ण आहूजाने योगदान दिया। 1955 में कमलकृष्ण तथादेवयानी कृष्ण द्वारा छापेखाने लगाने से दिल्ली में नई ऊर्जाका संचार हुआ और बहुरंगी इंटेग्लियों तथा कॉलेग्राफी की तकनीक आई। विलियम हेटर (एटीलियर 17 के संस्थापक) तथा कृष्णा रेड्डी के मार्ग निर्देशन में अनेक युवा बहुरंगी इंटेग्लियों तकनीक सीखने पेरिस गए।
के. जी. सुब्रह्मण्यम ने अपनी कला में लिथोग्राफी, कलमकारी और सेरीग्राफी को शामिल किया। महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय बड़ोदरा के शिक्षक के रूप में उन्होंने बच्चों की पुस्तकों की व्याख्या में इन विधाओं का उपयोग किया। इस क्षेत्र में एम बी जोगलेकर,ज्योतिभट्टजयराम पटेल, शांति दबे, वी. आर. पटेल तथा पीडीधूमल जैसे प्रमुख कलाकारों ने योगदान दिया। इटली तथा न्यूयॉर्क के प्रैट ग्राफिक सेंटर में अध्ययन के बाद 1960 में ज्योतिभट्ट बडोदरा के कलासंकाय में शामिल हुए और विजुअल अभिव्यक्ति के क्षेत्र में युवाओं को प्रोत्साहित किया।
1970 से लक्ष्मा गौड़, देवराज डाकोजीतथा डीएलएन रेड्डी ने हैदराबाद, आरएम पलनियप्पन तथा आरपी भास्करण ने चेन्नई में तथा चित्त प्रसाद भट्टाचार्य अतिन बसाक में तथा अमिताभ बनर्जी ने कोलकाता में इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण छाप छोड़े। इंटैग्लियोतकनीक ने चित्रकारों तथा शिल्पकारों को प्रभावित किया। इनमें दत्तात्रेय आपटे, नैना दलाल, जयंत पारीख, विजय बगोडी, वाल्टर डिशूजा प्रमुख हैं।
अहमादाबद में रॉबर्ट राउसनबर्ग तथा नई दिल्ली के एनजीएमए की छपाई संग्रह से पूरी दुनिया में अपनाए गए विभिन्न व्यवहारों की छाप दिखाई दी। 1990 के दशक में भारतीय प्रिंट मेकर्स गिल्ड की स्थापना के साथ आशा की नई किरण जगी। गिल्ड के सदस्यों में आनंदमय बनर्जी, दत्तात्रेय आप्टे,जयंतगजेरा, के. आर. सुबन्ना, बुलाभट्टाचार्य, कविता नायर, कंचन चंदर, मोती झरोटिया, सुशांत गुहा, सुखविंदर सिंह, सुब्बाघोस तथा शुक्लसावंत शामिल हैं।
छपाई के क्षेत्र में डिजीटल टेक्नोलॉजी तथा मेकेनाईज्ड सॉफ्वेटर के आगमन से क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। प्रायोगिक तौर पर इसमें विजुअल शब्दावली आई जिसे ज्योतिभट्ट, नटराज शर्मा, रविकाशी, गुलमोहम्मद शेख, रणवीर कलेका, वैजू परथन, पुष्पमाला एन, अकबर पद्माजी, रामेश्वर ब्रुटा तथा गोगी सरोजपाल ने तैयार किया।
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