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सोमवार, 10 जुलाई 2017
पीएम मोदी के नेतृत्व में देश में पुनर्जागरण का नया दौर
‘मन की बात-रेडियो पर सामाजिक क्रांति’ पुस्तक पर IGNCA में हुई लंबी परिचर्चा
रेडियो पर अपने मन की बात के जरिये प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने पूरे देश को एकसूत्र में बांध दिया है। दिल्ली के इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र-IGNCA में ‘मन की बात- रेडियो पर सामाजिक क्रांति पुस्तक’ पर परिचर्चा में सभी वक्ता इस बात पर सहमत दिखे। वरिष्ठ पत्रकार और IGNCA के चेयरमैन रामबहादुर राय ने कहा कि देश में स्वामी विवेकानंद की धारा से पुनर्जागरण का एक दौर शुरू हुआ था जिससे हमें आजादी मिली थी और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पुनर्जागरण का एक नया दौर है जो देश को एक नये सांचे में गढ़ने वाला साबित होगा। राम बहादुर राय ने कहा कि पीएम मोदी के मन की बात पर लिखी गई पुस्तक को पढ़ने के बाद उन्हें IGNCA में इस पर परिचर्चा की आवश्यकता महसूस हुई।
इस परिचर्चा को तीन हिस्सों में रखा गया था जिनमें तीन विषय संस्कार और जागरूकता, देश और दिशा और समाज और संदेश पर साहित्य, कला, शिक्षा, चिकित्सा और पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ीं कई जानी-मानी हस्तियों ने अपनी-अपनी बातें रखीं। मशहूर लोकगायिका और पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात का असर कुछ ऐसा है जिसे घटते हुए नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि मन की बात पारिवारिक और सामाजिक संस्कार को नये सिरे से स्थापित कर रही है जो देश की भावी पीढ़ियों को भी संजोने का काम करेगी। आज तक के एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) और सीनियर न्यूज एंकर सईद अंसारी ने कहा कि पीएम मोदी ने देश में संवादहीनता की खाई को भरा है। सईद ने कहा कि सबसे बड़ी बात ये है कि समाज के आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति के जीवन में भी मन की बात से सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है। पहले सत्र में एम्स के पूर्व निदेशक तीरथ दास डोगरा ने मन की बात से जुड़ी पीएम की उस सलाह का जिक्र किया जो उन्होंने नशे की बुरी लत को लेकर दी थी। डोगरा ने कहा कि पीएम सामाजिक बुराई से जुड़े इस मुद्दे पर इस तरह से बात रखते हैं जिस तरह से एक मनोवैज्ञानिक भी नहीं रख सकता। वहीं न्यूज 18 चैनल के डिप्टी मैनेजिंग एडिटर सुमित अवस्थी ने कहा कि पीएम के मन की बात की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इसने हमारी सांस्कारिक चेष्टा को जगाने का काम किया है। प्रख्यात शास्त्रीय नृत्यांगना और पद्मविभूषण सोनल मान सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारवासियों के अंदर स्वाभिमान को भरकर उनकी पीठ को सीधा करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि मन की बात करते हुए पीएम मोदी एक भाई, मित्र, पिता और अभिभावक हर तरह की भूमिका में नजर आते हैं।
परिचर्चा के दूसरे सत्र में एमएफटी के डायरेक्टर संदीप मारवाह मन की बात पर बात करते हुए काफी जोश में नजर आए और कहा कि पीएम मोदी से बिना मिले भी लोग उनसे चिट्ठी-पत्री और मेल के जरिये अपनी बातें शेयर कर सकते हैं और पीएम उस पर जिस तरह से रिस्पॉन्स लेते हैं उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से स्वच्छता अभियान को पीएम मोदी ने पहली प्राथमिकता दी वो देश के लिए उनके संपूर्ण समर्पण के भाव को जाहिर करता है। वहीं सहारा आलमी चैनल के हेड लईक रिजवी ने कहा कि मन की बात ने देश की बेहतरी के लिए पीएम मोदी की उत्कट इच्छाशक्ति को जाहिर किया है। एम्स से संबद्ध डॉ. प्रसून चटर्जी ने कहा कि मन की बात में स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर पीएम मोदी की सलाह मेडिकल साइंस के मापदंडों पर भी हर तरह से खरी उतरती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर और पद्मश्री दिनेश सिंह ने मन की बात में स्टार्टअप को लेकर पीएम मोदी के आह्वान का खास जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब शिक्षण संस्थान औपचारिक डिग्री की पढ़ाई से आगे निकले और उस दिशा में बढ़े जहां सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, बल्कि व्यवसाय के लिए भी पढ़ाई पर जोर हो।
परिचर्चा के तीसरे और आखिरी सत्र में IGNOU के वाइस चांसलर प्रो. रविंद्र कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारतीयता की पुनर्प्रतिष्ठा स्थापित होनी शुरू हुई है। परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए इडिया न्यूज के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात लीक से हटकर है और इसलिए लोगों का पर उसका गहरा प्रभाव भी देखा जा रहा है। एनबीटी के चेयरमैन बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि भारत के मन को पकड़ने का पहली बार किसी ने प्रयास किया है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने।
परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार और कई पुस्तकों के लेखक हरीश चंद्र बर्णवाल ने किया जिन्होंने प्रस्तावना रखते हुए कहा कि मन की बात रेडियो पर प्रसारित होने वाला एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके बारे में देश के 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग जानते हैं। उन्होंने पीएम के मन की बात को अपनी किताब मोदी सूत्र की उस लाइन के साथ जोड़ा कि ये अंधेरे में चलते इंसान के लिए एक मशाल है।
इस पुस्तक की प्रस्तावना जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे द्वारा लिखी गई है। लोगों में मन की बात को लेकर कुछ स्वाभाविक जिज्ञासाएं रही हैं…जैसे कैसे प्रधानमंत्री को इसका आइडिया आया,कैसे इसका नाम तय हुआ, यह कैसे तय हुआ कि यह कार्यक्रम कितने अंतराल पर होना चाहिए,इसकी रूपरेखा क्या हो? लोगों की ऐसी ही कई जिज्ञासाओं को ध्यान में रखते हुए ‘मन की बात – रेडियो पर सामाजिक क्रांति’ पुस्तक लिखी गई है। ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन द्वारा लिखी गई इस पुस्तक को LexisNexis ने प्रकाशित किया है।
शुक्रवार, 3 मार्च 2017
भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य फेस्टिवल 'स्मृतियां'
तबले की थाप...घुंघरू की खनक...और वीणा के सुर...संगीत से सजी ये महफिल तबला के महान उस्ताद पंडित चतुर लाल की याद में आयोजित की गई है।
दरअसल यहां मौजूद हर कलाकार ने अपनी साज के जरिए संगीत के इस महान विभूति को सच्ची श्रद्धांजलि दी। दो दिनों के इस कार्यक्रम में पंडित चतुर लाल की याद में संगीत के साधकों ने अपने परफॉरमेंस के जरिए सभागार में मौजूद लोगों का मन मोह लिया। कलाकारों ने अपनी कला के जरिए मंच पर शास्त्रीय संगीत और नृत्य की ऐसी धारा बहाई, मानों संगीत और नृत्य का ऐसा संगम शायद ही पहले कहीं और देखने को मिला हो।
पंडित सलिल भट्ट के वीणा के सुर हो, या फिर नृत्यांगना गरिमा आर्य के तबले की थाप पर थिरकते कदम। हर कलाकार संगीत की अपनी साधना के जरिए तबला के सूरमा रहे पंडित चतुर लाल की याद ताजा करने की भरपूर कोशिश कर रहा था।
प्रांशु चतुरलाल ने भी अपने परफॉरमेंस के जरिए संगीतप्रेमियों को झूमने पर मजबूर कर दिया। सितार के धुन और राग की बदौलत गौरव मजूमदार ने लोगों को संगीत की गहराइयों में डूबकी लगाने पर मजबूर कर दिया। राग बिहाग से लेकर तीन ताल में राग किरवानी को उन्होंने कुछ इस अंदाज में पेश किया कि मानों संगीत का ये रंग सबके दिलों में उतर गया हो।
तबला के उस्ताद पंडित चतुर लाल की याद में भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य फेस्टिवल 'स्मृतियां' का आयोजन पंडित चतुरलाल मेमोरियल सोसाइटी ने किया था।
शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017
मुंबई का काला घोड़ा फेस्टिवल
उत्सव के रंग में रंगा कला और संस्कृति का ये अनोखा संगम मुंबई की खास पहचान है। इसे लोग काला घोड़ा फेस्टिवल के नाम से जानते हैं।
आठ दिनों तक चलने वाले इस फेस्टिवल में आपको हर वो रंग देखने को मिलेगा, जिसकी ख्वाहिश एक कलाप्रेमी को होती है। इस फेस्टिवल का
मकसद न सिर्फ मुंबई की संस्कृति और परंपरा को संजोना है, बल्कि इससे दुनिया की नज़रों में लोकप्रिय भी बनाना है। यहां अलग-अलग संस्कृति
के रंग को देखकर शायद भूल जाएंगे कि आप मायानगरी मुंबई में है। इस फेस्टिवल में कला और कलाकार की काबलियत देखकर आप हैरानी में पड़ जाएंगे।
यह जानकर आपको हैरानी होगी इस फेस्टिवट का मकदस सिर्फ कला और संस्कृति की खूबसूरती से दुनिया को रुबरू कराना नहीं है,
हक़ीक़त में इसके जरिए लोगों को पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों से दो-चार कराना है। यहां आने के बाद आप तेज़ रफ्तार की जिंदगी
का गम भूल जाएंगे। रंग-बिरंगे कलाकृति जैसे विशिंग ट्री, फ्लाइंग हॉर्स और ह्यूमन ट्री को देखकर आपको ऐसे सुकून का अहसास होगा,
मानों लंबे समय से आपको इसी पल का इंतजार था। गौर करने वाली बात है कि विशिंग ट्री में करीब एक हज़ार एलईडी बल्ब का इस्तेमाल
किया गया है। लेकिन लेकिन बिजली की खपत महज 0.5K व्हाट होती है। कला और मस्ती के इस फेस्टिवल में हर उम्र और वर्ग के
लोगों के लिए कुछ न कुछ खास है।
काला घोड़ा फेस्टिवल में हर स्टॉल की अपनी अलग खासियत और पहचान है। कई स्टॉल तो ऐसे हैं, जिसे देखकर आप बचपन की यादों
में खोने को मजबूर हो जाएंगे। यहीं नहीं यहां कला, संस्कृति और मस्ती के साथ ही विकास की झलक भी देखने को मिलती है।
काला घोड़ा फेस्टिवल में मुंबई मेट्रो के तीसरे फेज के बारे में जानकारी दी गई है। इसके रूट और संचालन के बारे में बताया गया है।
यहीं नहीं अगर आपके पास ऊर्जा संरक्षण को लेकर कोई आइडिया है तो आप इसे भी साझा कर सकते हैं। ओपन एयर ऑटो रिक्शा को
देखकर आपको फिल्मी सीन का अहसास होगा। यहां की गलियों में थियेटर, कलाकार से लेकर डायरेक्टर तक अपने टैलेंट का हुनर आजमाते
हुए दिख जाएंगे। क्योंकि ये फेस्टिवल मुंबई का इकलौता ऐसा मंच है, जहां मौके अनलिमिटेड है वो भी बिलकुल फ्री ऑफ कॉस्ट।
मंगलवार, 3 जनवरी 2017
साइकिल के जरिए सत्ता की खातिर समाजवादियों की जंग
लखनऊ में शुरू हुई समाजवादी पार्टी के कुनबे की कलह ने पहले परिवार में दरार पैदा की। उसके बाद समाजवादी पार्टी को दो हिस्सों में बांटा और अब समाजवादियों की लड़ाई दिल्ली में चुनाव आयोग के दफ्तर में लड़ी जा रही है। पहले मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, अमर सिंह और जयप्रदा की टोली ने सोमवार को चुनाव आयोग के सामने चुनाव चिन्ह साइकिल पर अपने दावे को लेकर अपना पक्ष रखा। आज सीएम अखिलेश यादव खेमे के नेता नरेश अग्रवाल, किरणमय नंदा और रामगोपाल यादव ने भी चुनाव आयोग के सामने अपना पक्ष रखा और कहा कि 90 फीसदी पार्टी के कार्यकर्ता सीएम अखिलेश यादव के साथ है, लिहाजा विधानसभा चुनाव में साइकिल कि सवारी करने का हक उन्हें ही मिलना चाहिए। सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव ने प्लान बी भी तैयार कर रखा है। इसके अनुसार अगर उन्हें साइकिल चुनाव चिन्ह नहीं मिला तो वह साइकिल की दोनों टायर पंचर भी कर सकते हैं यानि चुनाव आयोग से लेकर अदालत तक में इस बात को लेकर गुहार लगा सकते हैं कि साइकिल चुनाव चिन्ह को फिलहाल फ्रीज कर दिया जाए। हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञों का भी यहीं मानना है कि चुनाव की तारीख बेहद करीब है ऐसे में इस तरह के मामलों की सुनवाई और उस पर अंतिम फैसला देने में करीब-करीब 6 महीने का वक्त लग जाता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त वाइ एस कुरैशी ने भी तेलगु देशम पार्टी के मामले में एनटीआर औऱ चंद्रबाबू नायडू के मामले का हवाला देते हुए कहा कि उस वक्त इसलिए फैसला दिया जा सका क्योंकि चुनाव सिर पर नहीं था। दूसरी बात उन्होंने यह कही कि लोकतंत्र में संख्या का बड़ा ही महत्व होता है। लिहाजा विधायक, सांसदों और पार्टी कार्य़कर्ताओं की संख्या जिसके पास ज्यादा होगी, असल में पार्टी पर उसी का हक ज्यादा बनता है। इस लिहाज से देखें तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का दावे में भी दम नज़र आता है। मुलायम खेमा यह दावा कर रहा है कि अखिलेश और रामगोपाल यादव को पार्टी में वापस लेने की घोषणा तो की गई लेकिन इस बारे में औपचारिक तौर पर कोई आदेश नहीं जारी किया गया। लिहाजा ऐसे में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव को समाजवादी पार्टी के नाम पर आपात राष्ट्रीय महाधिवेशन बुलाने का कोई हक़ नहीं है। लेकिन रामगोपाल यादव का कहना है कि महाधिवेशन बुलाने की घोषणा उन्होंने तब की थी जब वह समाजवादी पार्टी में बतौर महासचिव काम कर रहे थे और उन्हें उस वक्त पार्टी से नहीं निकाला गया था। और जब वह महाधिवेशन में हिस्सा ले रहे थे उससे एक दिन पहले समाजवादी पार्टी में उनकी वापसी हो चुकी थी। ऐसे में उन्होंने जो कुछ भी किया वह समाजवादी पार्टी के संविधान के अनुसार ही है। लेकिन मुलायम खेमा और अखिलेश खेमा दोनों एक दूसरे के दावों को नकार रहे हैं। पिछले तीन महीने से समाजवादी पार्टी में जारी घमासान में हर दिन परिवार से लेकर पार्टी तक में तकरार, दरार और दंगल की खबरें लगातार आ रही है। कुछ लोगों के लिए यह रोचक हो सकता है। लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह बाप और बेटे के बीच की लड़ाई है। कभी पिता पुत्र पर भारी दिखाई देता है तो कभी बेटा इस लड़ाई में दो कदम आगे दिखाई देता है। इस मामले में अंदरुनी जानकारी रखने वालों का कहना है कि पूरे फसाद की जड़ कहीं और है। इस मामले का सबसे अहम पहलू मुलायम सिंह यादव के परिवार में उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता, दूसरी पत्नी का बेटा प्रतीक यादव और उनकी पत्नी अपर्णा यादव हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अखिलेश यादव के बढ़ते कद से मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता, बेटे प्रतीक यादव और उनकी पत्नी अपर्णा यादव को परेशानी हो रही थी। इनसभी लोगों को यह लग रहा था कि जिस तरीके से अखिलेश मुलायम सिंह यादव के बेटे है उसी तरीके से प्रतीक भी है। लेकिन हकीकत में मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत का असली वारिस तो अखिलेश यादव बनते जा रहे हैं। यहीं सही वक्त है कि अखिलेश को आगे बढ़ने से रोका जाए। अगर ऐसा अभी नहीं किया गया तो आगे चलकर अखिलेश यादव को रोकना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा। इस बात की भनक जैसे ही शिवपाल और अमर सिंह को लगी। दोनों बेहद खुश हुए। क्योंकि उन्हें तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई। उन्हें ऐसे ही मौके की तलाश थी। दोनों ने मिलकर साधना गुप्ता के जरिए मुलायम सिंह का ब्रेनवाश किया और पहले अमर सिंह सांसद बने, फिर परिवार में साधना गुप्ता और प्रतीक यादव को आगे बढ़ाने के नाम पर सीएम अखिलेश यादव के लिए मुश्किले खड़ी करने के खेल की शुरुआत कर दी गई।
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