फ़ॉलोअर
गुरुवार, 3 मार्च 2016
भारत की प्रमुख नदियां
सिन्धु ( बॉडर तक)
321289
क) गंगा
861452
ख) ब्रहमपुत्र,
194413
ग) बराक और अन्य
41723
गोदावरी
312812
कृष्णा
258948
कावेरी
81155
सुवर्णरेखा
29196
ब्रहमणी और बेतरणी
51822
महानदी
141589
पेन्नार
55213
माही
34842
साबरमती
21674
नर्मदा
98796
तापी
65145
पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां तापी से तादड़ी
55940
पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां तादड़ी से कन्याकुमारी
56177
पूर्व की ओर बहने वाली नदियां महानदी और पेन्नार के बीच
86643
पूर्व की ओर बहने वाली नदियां पेन्नार और कन्याकुमारी के बीच
100139
लूनी समेत कच्छ और सौराष्ट्र की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां
321851
राजस्थान में अन्तर्देशीय नालियों का क्षेत्र
-
म्यामार (बर्मा) एवं बांग्लादेश में बहकर जाने वाली छोटी नदी जल नालियां
भारत में शांतिपूर्ण चुनाव कराना किसी चुनौती से कम नहीं
विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र में मतदान प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए क्या कुछ आवश्यक है? वास्तव में यह एक बेहद कठिन काम है। वर्ष 2014 का आम चुनाव इस बात का सरल प्रमाण है। इस विशाल एवं जटिल गणतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेकर, देश के सुदूर प्रांतों में कभी बर्फीले पहाड़ों तक पहुंचकर, कभी तपती धूप में मरुभूमि के क्षेत्रों को पार करते हुए तो कभी नदी-नालों को पार करते हुए, पूरी जिम्मेवारी के साथ जो लोग इस प्रक्रिया में शामिल हुए- उन्हीं के योगदान के फलस्वरूप गणतंत्र का दीप प्रज्वलित है।
लोकसभा चुनाव प्रक्रिया की विशालता इस बात से स्पष्ट होती है कि आम चुनाव, में 71,377 करोड़ मतदाताओं ने 8,34,944 मतदान केन्द्रों में 9,08,643 नियंत्रण इकाईयों तथा 11,83,543 ईवीएम के माध्यम से अपने मत जाहिर किए। मतदान की यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण, पारदर्शी तथा बिना किसी अड़चन के संपूर्ण हो, 4.7 मिलियन मतदान अधिकारी, 1.2 मिलियन सुरक्षाकर्मी तथा 2046 पर्यवेक्षक तैनात किए गए थे। सुरक्षा कर्मियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए 119 विशेष रेलगाड़ियों की व्यवस्था की गई। साथ ही, 55 हेलीकॉप्टर भी इस प्रक्रिया में शामिल किए गए। मतगणना के लिए 1080 केन्द्रों जहां लगभग 60,000 कर्मचारियों को तैनात किया गया था।
भारत निर्वाचन आयोग ने एक भी मतदाता को मतदान देने से वंचित नहीं किया। गुजरात के गिर वन के गुरु भारतदासजी के मतदान को सुनिश्चित करने के लिए वहां एक मतदान केन्द्र खोला गया और तीन मतदान अधिकारियों को तैनात किया गया।
छत्तीसगढ़ में घने जंगलों से घिरे, पहाड़ी क्षेत्र में स्थित कोरिया जिले के शेरेडन्ड गांव में दो मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग ने विशेष व्यवस्था की थी। इन दो मतदाताओं के लिए एक मतदाता केन्द्र की स्थापना की गई और चार चुनाव अधिकारियों को तीन सुरक्षा कर्मियों के साथ वहां तैनात किया गया।
अरुणाचल प्रदेश में चार ऐसे चुनाव केन्द्र हैं जहां केवल तीन मतदाता प्रति केन्द्र हैं। वहां पहुंचने के लिए मतदान अधिकारियों के दल को हेलीकॉप्टर से उतरकर या निकटतम रास्ते से तीन-चार दिनों तक पैदल जाना पड़ा। अरुणाचल प्रदेश में 690 मतदान दलों को हेलीकॉप्टर द्वारा सुदूर गांवों तक पहुंचाया गया। इनमें से कई गांव म्यांमार तथा चीन सीमा के पास स्थित हैं।
हिमाचल प्रदेश के कई भागों में प्रत्येक वोट को शामिल करने के लिए मतदान अधिकारियों के दलों को ठंडी, बर्फीली हवाओं मे से होते हुए घंटो पैदल चलना पड़ता है। 15000 फीट की ऊँचाई पर स्थित लाहौल-स्पीति के जनजातीय जिले में हिक्कम नामक जगह पर स्थित मतदान-केंद्र 321 मतदाताओं के लिए स्थापित किया गया जो कि देश का सबसे ऊंचा मतदान-केंद्र है। इस जिले के एक-तिहाई से अधिक मतदान-केंद्र 13,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है- मतदान अधिकारियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। सुदूर पहाड़ों पर स्थित होने के कारण 36 मतदान केंद्रों को अति संवेदनशील तथा 23 केंद्रों को संवेदनशील घोषित किया गया था। पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग ज़िले में मतदान-अधिकारियों को 12 किलोमीटर तक की चढ़ाई चढ़कर श्रीखोला मतदान केंद्र तक पहुँचना पड़ा।
बाड़मेड़ निर्वाचन क्षेत्र 71,601 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ हैं। मरुभूमि के क्षेत्र में फैले होने के कारण छ: चलायमान केंद्र शुरू किए गए ताकि मेनाऊ, जेसिलिया, नेहदाई, तोबा, कायमकिक, धाणी तथा रबलऊओ फकीरोवाला गॉंव के 2324 मतदाता अपना मतदान कर सकें। इस प्रयास से मतदाताओं को मतदान के लिए लम्बी दूरी तक पैदल नहीं जाना पड़ा।
सुन्दरवन के झाड़िदार वनों में मतदान-दल नावों की सहायता से पानी के रास्ते मतदाताओं तक अपना सामान लेकर पहुँचे। 700 किलोमीटर लम्बाई वाले अन्डमान तथा निकोबार द्वीप समूहों में मतदान का आयोजन एक चुनौती भरी प्रक्रिया थी। कई जगहों पर मतदान-अधिकारियों को 35-40 घण्टों तक नावों पर जाकर पहुँचना पड़ा। लक्षद्वीप के 105 मतदान केंद्रों तक केवल नावों के माध्यम से ही पहुँचा जा सका। मिनीकॉप द्वीप पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से ही ईवीएम पहुँचाए गए।
असम के सोनितपुर जिले में दो बैलगाड़ियॉं तैनात थी क्योंकि वहॉं के रास्ते बहुत अच्छे नहीं हैं। राज्य के कई भागों में मतदान-सम्बन्धी उपकरण तथा अधिकारियों के आने जाने के लिए पालतू हाथी उपयोगी साबित हुए। बोक्काइजान ज़िले में जंगली हाथियों के उपद्रव के कारण पॉंच मतदान केंद्रों तक सामान पहुँचाने के लिए पोर्टर नियुक्त किए गए क्योंकि वहां 40 किलोमीटर तक की दूरी पैदल ही तय करना पड़ता है।
भौगोलिक चुनौतियों के साथ-साथ 79 चुनावी क्षेत्रों में नक्सलवादियों का दबदबा था। साथ ही, देश के ऊत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में अलगाववादी तत्वों ने धमकी दे रखी थी। चुनाव आयोग ने विस्तृत योजनाए बनाई और उनका कार्यान्वयन किया। इतनी सारी चुनौतियों के बावजूद 58 प्रतिशत से अधिक लोगों ने मतदान किया और साबित किया कि गणतांत्रिक भावनाएं अभी हमारे देश में मजबूत हैं।
बुधवार, 2 मार्च 2016
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिए सरकार ने ली किसानों की सुध
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भारत के गरीब किसानों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कमजोर मानसून के कारण देश के सामने लगातार दूसरे वर्ष सूखे की समस्या खड़ी हो गई है। नई फसल बीमा योजना के तहत सरकार को हर वर्ष 8 से 9 हजार करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। किसानों का प्रीमियम खाद्यान्न और तिलहन के लिए अधिकतम 2 प्रतिशत रखा गया है, जबकि बागवानी और कपास की फसल के लिए यह प्रीमियम 5 प्रतिशत है। बहुप्रतीक्षित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इस वर्ष खरीफ फसल के मौसम से शुरू होगी। योजना को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में संपन्न मंत्रिमंडल की बैठक में स्वीकृत दी गई थी।
इस नई योजना को निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियां भी चलाएंगी। नीति-निर्माता, खेतिहर समुदाय और विशेषज्ञ इसे महत्वपूर्ण पहल मान रहे हैं। सरकार के इस कदम से मानसून के उतार-चढ़ाव से होने वाले प्रभावों से किसानों की सुरक्षा करने के लिए बीमा दायरे में अब अधिक रकबा रखा गया है। इस विचार से इस योजना की शुरुआत सही समय पर हुई है। उल्लेखनीय है कि कुछ अन्य देशों में भी इसी प्रकार की योजनाएं चलती हैं।
रबी फसल के लिए किसानों का हिस्सा 8 से 10 प्रतिशत वार्षिक प्रीमियम के मुकाबले सही रूप में 1.5 प्रतिशत रखा गया है। वर्ष भर चलने वाली नकदी फसल और बागवानी फसल के मद्देनजर इसकी अधिकतम सीमा 5 प्रतिशत रखी गई है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मौजूदा राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और संशोधित एनएआईएस के स्थान पर होगी।
सरकारी स्रोतो के अनुसार सेवाकर के संबंध में यह बताया गया है कि चूंकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एनएआईएस/एनएनएआईएस के स्थान पर लागू की गई है इसलिए योजना के कार्यान्वयन में संलग्न सभी सेवाओं को सेवाकर से मुक्त कर दिया गया है। एक आकलन है कि नई योजना से बीमा प्रीमियम में किसानों के लिए लगभग 75-80 प्रतिशत की सब्सिडी सुनिश्चित की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि पिछले पांच वर्षों से विभिन्न आपदा राहत उपायों के तहत सरकार प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। सरकार के इस नए प्रयास से यह खर्च अस्थायी रूप से लगभग 9 हजार करोड़ रुपए हो जाएगा। जोखिम के संबंध में इससे खास तौर से किसानों को बहुत मदद मिलेगी। कई लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को पहले की बीमा योजनाओं के जटिल नियमों के जाल से मुक्ति भी मिलेगी।
आधिकारिक घोषणा के चंद घंटों के अंदर ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट के द्वारा विश्वास व्यक्त किया था कि नई फसल बीमा योजना से किसानों के जीवन में आमूल परिवर्तन होगा। प्रधानमंत्री ने कई ट्वीटों के जरिए कहा, ‘यह एक ऐतिहासिक दिन है। मुझे विश्वास है कि किसानों के लाभ से प्रेरित यह योजना किसानों के जीवन में आमूल परिवर्तन लाएगी।’
उन्होंने अपनी ट्वीट में आगे कहा, ‘किसान भाइयो और बहनो, उस समय जब आप लोहड़ी, पोंगल और बिहू उत्सव मना रहे होंगे, तो उस समय सरकार ने आपको प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के रूप में एक उपहार भेंट किया है।’
नई योजना में मौजूदा योजनओं के कामयाब पक्षों को शामिल किया गया है और पुरानी योजनाओं में जो कमियां थीं, उन्हें ‘प्रभावशाली तरीके से दूर’ किया गया है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘योजना में सबसे कम प्रीमियम रखा गया है और मोबाइल फोन, क्षति का तुरंत आकलन तथा तय सीमा के अंदर भुगतान जैसी प्रौद्योगिकी के आसान प्रयोग भी शामिल किए गए हैं।’
बीमा दायरे में फसली रकबा 194.40 मीलियन हेक्टेयर रखा गया है और इसके लिए सरकार को हर वर्ष 8800 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। यह महत्वपूर्ण उल्लेख है कि मई, 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने यह घोषणा की थी कि वह एक नई फसल बीमा योजना शुरू करेगी।
गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने भी विश्वास व्यक्त किया है कि किसान इस नई योजना को अपनाएंगे जो उन्हें वित्तीय उतार चढ़ावों से बचने में मदद करेगी।
विशेषज्ञों का भी मानना है कि फसल प्रीमियम के लिए उच्च सब्सिडी दर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है। उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र में इस तरह के बीमा के दायरे में 120 हेक्टेयर मीलियन क्षेत्र को रखा गया है, जिसके लिए लगभग 70 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। चीन में भी किसानों को बुआई संबंधी 75 मिलियन हेक्टेयर तक के दायरे में बीमा दिया जाता है, जिसके लिए प्रीमियम पर लगभग 80 प्रतिशत की सब्सिडी प्रदान की जाती है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत में अगले 5 वर्षों के दौरान योजना के दायरे में फसली क्षेत्र का 50 प्रतिशत हिस्सा आ जाएगा।
इस नई योजना में ऐसे कुछ नए पक्ष भी मौजूद हैं जो इस योजना को किसानों के अनुकूल बनाते हैं और भविष्य के दृष्यपटल को बदल देने में सक्षम हैं। नई फसल बीमा योजना ‘एक राष्ट्र-एक योजना’ की विषय वस्तु के अनुरूप है। एक आधिकारिक घोषणा में कहा गया है, ‘इस योजना में पुरानी योजनाओं के सभी बेहतरीन पक्ष मौजूद हैं और पुरानी योजनाओं की कमजोरियों तथा कमियों को दूर कर लिया गया है।’ इस तरह यह योजना किसानों को पहली योजनाओं की जटिलताओं से मुक्त करती है।
हितधारकों के लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि इस योजना में खेतों में खड़ी फसल को होने वाले नुकसान से बचाने का प्रावधान भी किया गया है। इस तरह खड़ी फसलों को न रोके जा सकने वाले नुकसानों से बचाया जा सकता है। इसमें स्वाभाविक आगजनी, बिजली गिरने, तूफान-आंधी, ओलावृष्टि, बवंडर, बाढ़, जल-भराई, भू-स्खलन, सूखा, किटाणु, फसल के रोग आदि जैसे जोखिम शामिल हैं।
इसी तरह अन्य मामलो में जहां अधिसूचित क्षेत्रों के बीमित किसानों की बहुतायत को विपरीत मौसमी परिस्थितियों के चलते बुआई करने से रोका जाता है और ऐसी बुआई करने पर उन्हें अधिक खर्च करना पड़ता है, तो इसके लिए उनको यह अधिकार दिया गया है कि वे बीमित राशि का अधिकतम 25 प्रतिशत हर्जाने का दावा कर सकें।
कटाई के बाद होने वाले नुकसान को भी बीमा के दायरे में रखा गया है। इसके लिए फसलों को कटाई के बाद सूखने के लिए मैदान में रखने के संबंध में अधिकतम 14 दिनों की अवधि के लिए यह बीमा उपलब्ध किया जाएगा। बीमा योजना के दायरे में उन अधिसूचित स्थानों की फसलों को भी रखा गया है, जिन स्थानों पर आंधी-तूफान, भू-स्खलन आदि जैसे जोखिम स्थानीय स्तर पर होते रहते हैं।
इसके अलावा यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार की सब्सिडी में कोई उच्च सीमा नहीं होगी। यदि बकाया प्रीमियत 90 प्रतिशत भी होगा तो उसे सरकार वहन करेगी। इसके पहले प्रीमियम दरों पर अधिकतम सीमा का प्रावधान था जिसके कारण किसानों को कम भुगतान हो पाता था। यह अधिकतम सीमा सरकार की प्रीमियम सब्सिडी की सीमा के मद्देनजर निर्धारित की गई थी। अब इस अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया है और किसानों को बीमित रकम का पूरा हिस्सा बिना किसी कटौती के प्राप्त होगा।
नई योजना में प्रौद्योगिकी का भी उपयोग किया जाएगा। अधिक प्रौद्योगिकी और विज्ञान को प्रोत्साहित किया जाएगा। स्मार्ट फोनों के जरिए फसल कटाई का आंकड़ा अपलोड किया जाएगा ताकि किसानों को दावे का भुगतान करने में कम विलंब हो। स्रोतों ने बताया कि फसल कटाई प्रयोगों को कम करने के लिए दूर संवेदी प्रणाली का भी इस्तेमाल किया जाएगा।
प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अनिवार्य बनाने से संचालन कुशलता में सुधार होगा और किसानों, बीमा एजेंसियों, विशेषज्ञों और बीमा क्षेत्र से संबंधित हितधारकों को लाभ होगा। इसके अलावा किसानों का प्रीमियम कम करने से नीतियों को अधिक कुशलता से लागू किया जा सकेगा। राज्यों के लिए नई फसल बीमा अनिवार्य करने का अर्थ है कि बीमा लेने वालों की सूची बढ़ेगी। इसके अलावा आंधी जैसी घटनाओं से फसल के नुकसान और तबाही से किसानों को बचाने के लिए उपाय किए गए हैं, जिनसे सभी हितधारकों को फायदा पहुंचेगा।
मंगलवार, 1 मार्च 2016
आम बजट की खास बातें
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि बजट 2016-17 विकासात्मक और परिवर्तनशील है। संसद में आज बजट पेश होने के बाद टिप्पणी करते हुए श्री जावड़ेकर ने कहा कि बजट में गरीबों की उन्नति, ग्रामीण विकास, किसानों के कल्याण और गरीबों को शक्तिसम्पन्न बनाने के प्रति पूरा समर्पण व्यक्त किया गया है।
पर्यावरण मंत्री ने कहा, ‘यह बजट गरीबों की उन्नति, ग्रामीण विकास, किसानों के कल्याण और गरीबों को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए पूरी तरह समर्पित है। ग्रामीण क्षेत्रों को 24 घंटे बिजली और पानी मिलेगा तथा वहां हर मौसम में काम करने वाली सड़के बनाई जाएंगी। प्रत्येक ग्राम पंचायत को विकास कार्यों के लिए 80 लाख रुपये दिए जाएंगे। मनरेगा और अन्य योजनाओं के तहत निर्धनों को रोजगार दिया जाएगा और उनकी आय बढ़ाई जाएगी। इसके अलावा गरीबों को सस्ते मकान भी प्रदान किए जाएंगे। उन्हें एक लाख रुपये तक की नि:शुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं भी दी जाएंगी। यह गरीबों को एक बड़ा उपहार है। किसानों की कृषि समस्याओं से निपटने के उपाय किए गए हैं और अगले पांच सालों में उनकी आय दो गुनी करने का प्रस्ताव है। बजट में व्यक्तिगत नुकसान के संबंध में बीमा का भी प्रावधान किया गया है और कृषि को बढ़ाने के भी उपाय किए गए हैं।
जवानों के लिए बजट में ओआरओपी और नौजवानों के लिए रोजगार और उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया गया है। हम सड़क, रेल, बंदरगाह और हवाई अड्डों के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के लिए दो लाख करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं। यह एक वास्तविक विकासात्मक और परिवर्तनशील बजट है जो प्रधानमंत्री की विचारधारा और प्रतिबद्धता को व्यक्त करता है। वित्त मंत्री को निश्चित रूप से इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने एक परिवर्तनशील बजट तैयार करने के लिए कठिन परिश्रम किया है।
केन्द्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता (स्वतंत्र प्रभार) और संसदीय कार्य राज्यमंत्री श्री राजीव प्रताप रुडी ने वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली द्वारा पेश वर्ष 2016-17 आम बजट को विकासोन्मुखी व सर्वश्रेष्ठ बजट बताया है । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार के इस दूसरे आम बजट ने साबित कर दिया है कि सरकार सबका साथ- सबका विकास के सूत्र पर चल कर विकास की नई इबारत लिख रही है।
उन्होंने कहा कि इस बजट में आमजन की समृद्धि के हर पहलू का खयाल रखा गया है। बजट से किसानों, खेतिहर मजदूरों, संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों के कामगारों, बेरोजगारों, युवाओं, गृहणियों, बुजुर्गों, कामकाजी महिलाओं, नौकरीपेशा के साथ-साथ व्यवसायियों एवं उद्योगपतियों का भी ख्याल रखा गया है।
श्री राजीव प्रताप रुडी ने वित्तमंत्री श्री अरूण जेटली को धन्यवाद देते हुए कहा कि देश के युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम के तहत 1500 बहुकौशल प्रशिक्षण संस्थान खोलने की योजना हो या फिर विभिन्न संस्कृतियों और पर्यटन के माध्यम से देश के राज्यों और जिलों को एक दूसरे से जोड़ने वाली एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना से देश में विकास की एक नई ईबारत लिखने की तैयारी कर ली गई है। बजट में किसानों के लिए जहां सिंचाई मद में 40000 करोड़, फसल बीमा योजना के लिए 5500 करोड़ दिया गया है तो वहीं संप्रग सरकार से तीन गुना ज्यादा 27000 करोड़ की राशि ग्रामीण सड़क योजना के लिए आवंटित किया गया है।
श्री रुडी ने बजट में बहुकौशल प्रशिक्षण संस्थान खोलने की योजना पर कहा कि हमारी पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा एक तरफ तो शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से करोड़ों खर्च किये जाते थे तो वहीं दूसरी तरफ शिक्षा प्राप्त कर चुके युवाओं के कौशल उन्नयन के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं कराया जाता था। इसके फलस्वरूप हर वर्ष रोजगार के बाजार में उतरने वाले करोड़ों युवाओं में से अधिकांश को बेरोजगारी का सामना करना पड़ता था । उन्होंने कहा क पूर्ववर्ती राजग सरकार की प्रधानमंत्री चतुर्भुज सड़क योजना और सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाएं सफलीभूत हुईं उसी प्रकार दूरदर्शी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की कौशल विकास जैसी महत्वकांक्षी योजना भी देशवासियों के लिए एक वरदान साबित होगी।
श्री रुडी ने कहा कि इस बजट में बीपीएल परिवारों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की गई है तो वहीं खेत से कारखाने तक के लिए उचित राशि का आवंटन किया गया है। बजट में ग्रामिण क्षेत्र के लिए जहां 87000 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है वहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए 2.25 हजार करोड़ दिया गया है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने कहा है कि समाज से गरीबी और असमानता को समाप्त करने के लिए सरकार के लिए कराधान एक प्रमुख उपकरण है। उन्होंने अपने प्रावधानों में महत्वपूर्ण 9 श्रेणियों को सूचीबद्ध किया है। इनमें (1.) छोटे करदाताओं को राहत (2.) वृद्धि और रोजगार सृजन बढ़ाने के उपाय (3.) मेक इन इंडिया में सहायता के लिए घरेलू मूल्य संवर्द्धनों को प्रोत्साहन (4.) एक पेशनधारी समाज की दिशा में अग्रसर होने के उपाय (5.) किफायती आवास को प्रोत्साहन देने के उपाय (6.) कृषि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्वच्छ वातावरण के लिए अतिरिक्त संसाधनों को जुटाना (7.) मुकदमेंबाजी को कम करना और कराधान में निश्चितता प्रदान करना (8.) कराधान का सरलीकरण और तर्कसंगत स्वरूप (9.) जबावदेही को सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी का उपयोग शामिल हैं।
वित्त मंत्री ने कहा कि 5 लाख रुपए तक की आय वाले व्यक्तियों पर कर का बोझ कम करने की दृष्टि से धारा 87 ए के अंतर्गत कर छूट की अधिकतम सीमा 5,000 रुपए तक बढ़ाकर और धारा 80 जीजी के तहत मकान किराए के भुगतान के संबंध में कटौती की सीमा 60,000 रुपए प्रतिवर्ष करके मध्यववर्गीय करदाताओं को राहत प्रदान की गई हैं। उन्होंने बताया कि अनुमान पर आधारित कराधान योजना के अंतर्गत टर्नओवर सीमा को 2 करोड़ रुपए तक बढ़़ाते हुए उदयमिता को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 1.8 लाख करोड़ रुपए के ऋण वितरित करने का लक्ष्य है और स्टार्टअप्स के लिए 5 में से तीन वर्षो के लिए 100 प्रतिशत कटौती उपलब्ध कराना भी प्रस्ताव में शामिल है।
विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के उपाय के अंतर्गत, श्री जेटली ने कहा कि आयकर अधिनियम में उपबंधित त्वरित अवमूल्यन को 1 अप्रैल 2017 से अधिकतम 40 प्रतिशत तक सीमित कर दिया जाएगा। अनुसंधान कार्य हेतु कटौतियों के लाभ 1 अप्रैल, 2017 से अधिकतम 150 प्रतिशत और 1 अप्रैल 2020 से अधिकतम 100 प्रतिशत तक कर दिए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि कारपोरेट कर-दर में कटौती को चरणबद्ध रूप से समाप्त किए जा रहे प्रोत्साहनों से मिलने वाले प्रत्याशित अतिरिक्त राज्स्व के अनुसार निर्धारित किया जाना है। उन्होंने 1 मार्च 2016 को या इसके बाद निगमित होने वाली नई विनिर्माणकारी कंपनियों को 25 प्रतिशत + अधिभार और उपकर की दर से कराधान का विकल्प उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया यदि वे लाभ संबद्ध या निवेश संबद्ध कटौतियों का दावा नहीं करती तथा निवेश छूट और त्वरित अवमूल्यन का लाभ नहीं उठाती। श्री जेटली ने कहा कि अपेक्षाकृत छोटे उदयमों अर्थात ऐसी कंपनियां जिनका टर्नओवर 5 करोड़़ रूपए से अधिक न हो (मार्च 2015 को समाप्त वित्त वर्ष के दौरान) उनके लिए आगामी वित्त वर्ष के दौरान कारपोरेट की दर को घटाकर 29 प्रतिशत + अधिभार और उपकर किया जाए।
श्री अरुण जेटली ने कहा कि स्टार्ट अप व्यवसाय रोजगार सृजित करते हैं, नवोन्मेष लाते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम में ये प्रमुख भूमिका निभाएंगे। वित्त मंत्री ने अप्रैल 2016 से मार्च 2019 के दौरान, प्रचालन आरंभ करने वाले स्टार्ट अप्स को पांच वर्षों में से तीन वर्षों तक अर्जित किए गए लाभ पर सौ प्रतिशत कर कटौती का लाभ देकर व्यवसाय को बढ़ावा देने में मदद का प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में न्यूनतम एकांतर कर (एमएटी) लागू होगा। पूंजी लाभ पर कर नहीं लगाया जाएगा। यदि विनियमित/अधिसूचित निधियों में निवेश किया गया हो और यदि व्यक्तियों द्वारा ऐसे अधिसूचित स्टार्ट अप में निवेश किया गया हो, जिनमें उनकी अधिसंख्य शेयरधारिता हो।
वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि सीमा एवं उत्पाद शुल्क से जुड़ा ढांचा ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की दिशा में घरेलू मूल्यवर्धन को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने अनेक खास कच्चे माल, मध्यवर्ती वस्तुओं एवं कलपुर्जों और कुछ अन्य विशेष वस्तुओं पर देय सीमा एवं उत्पाद शुल्क में उपयुक्त बदलाव करने और प्रक्रियाओं को सरल बनाने का प्रस्ताव किया है, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में घरेलू उद्योग की लागत घटाई जा सके और प्रतिस्पर्धी क्षमता बेहतर की जा सके। इन क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी हार्डवेयर, पूंजीगत सामान, रक्षा उत्पादन, कपड़ा, खनिज ईंधन एवं खनिज तेल, रसायन व पेट्रोरसायन, कागज, पेपरबोर्ड व न्यूजप्रिंट, विमानों का रख-रखाव व मरम्मत, जहाज मरम्मत इत्यादि शामिल हैं।
पेंशन प्राप्त समाज की ओर बढ़ने के उपायों के तहत, श्री अरूण जेटली ने राष्ट्रीय पेंशन स्कीम के मामले में सेवानिवृत्ति के समय निधि से 40 प्रतिशत आहरण को करमुक्त करने का प्रस्ताव किया। अधिवर्षिता निधियों और ईपीएफ सहित मान्यता प्राप्त भविष्य निधियों के मामलें में 1 अप्रैल 2016 के पश्चात किए गये अंशदानों से सृजित निधियों के संबंध में भी 40 प्रतिशत के कर-मुक्त होने का वही मानदंड लागू होगा। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कर छूट का लाभ लेने के लिए मान्यता प्राप्त भविष्य और अधिवर्षिता निधियों में नियोक्ता के अंशदान की मौद्रिक सीमा 1.5 लाख रुपए प्रतिवर्ष करने का प्रस्ताव भी किया।
सस्ते आवास निर्माण को बढ़ावा देने के उपाय के तहत, वित्त मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना समयबद्ध तरीके से सभी और विशेषकर गरीबों की आवासीय जरूरतों का समाधान करने के लिए सरकार के आश्वासन का साकार रूप है। उन्होंने कहा कि जून, 2016 से मार्च 2019 तक अनुमोदित किए जाने वाले और अनुमोदन के तीन वर्ष के भीतर चार मेट्रो शहरों में निर्मित किए जाने वाले 30 वर्ग मीटर के फ्लैटों और अन्य शहरों में 60 वर्गमीटर तक के फ्लैटों हेतु आवास निर्माण परियोजना शुरू करने वाले उपक्रमों को लाभों से सौ प्रतिशत कटौती देने का प्रस्ताव किया। हालांकि इन उपक्रमों पर न्यूनतम एकांतर कर लागू होगा। पहली बार मकान खरीदने वालों के लिए वित्त मंत्री ने अगले वित्त वर्ष के दौरान स्वीकृत 35 लाख रुपये तक के ऋणों हेतु 50 हजार रुपये प्रतिवर्ष के अतिरिक्त ब्याज के लिए कटौती देने का प्रस्ताव किया, बशर्ते मकान की कीमत 50 लाख रुपये से ज्यादा न हो। उन्होंने कहा कि सरकारी निजी भागीदारी वाली स्कीमों सहित केन्द्रीय या राज्य सरकार की किसी स्कीम के तहत 60 वर्गमीटर तक के क्षेत्र में सस्ते मकानों के निर्माण को सेवा कर से छूट दी जाएगी।
कृषि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा स्वच्छ पर्यावरण पर अतिरिक्त संसाधन जुटाने का उल्लेख करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार खाद्य सुरक्षा से और आगे बढ़ने तथा हमारे किसानों में आय सुरक्षा की भावना भरने का इरादा रखती है। इस संदर्भ में, सरकार की योजना किसानों की आय दोगुनी करने की है। उन्होंने कृषि एवं किसानों के कल्याण के लिए 35,984 करोड़ रुपए आवंटित किए। उन्होंने कहा कि सरकार का इरादा जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग की समस्या को दूर करने, सिंचाई के लिए नए बुनियादी ढांचे का निर्माण करने, उर्वरक के संतुलित उपयोग के साथ मृदा उर्वरता को संरक्षित करने एवं कृषि से बाजार तक संपर्क मुहैया कराने का है। श्री अरुण जेटली ने कहा कि 141 मिलियन हेक्टेयर शुद्ध खेती वाले क्षेत्रों में से केवल 65 मिलियन हेक्टेयर ही सिंचित हैं। इस बारे में, उन्होंने 'प्रधानमंत्री सिंचाई योजना' की घोषणा की जिससे कि अन्य 28.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के साथ लाने के लिए मिशन मोड में क्रियान्वित किया जा सके। उन्होंने कहा कि एआईबीपी के तहत 89 परियोजनाओं को फास्ट ट्रैक किया जाएगा जो अन्य 80.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के तहत लाने में मदद करेगा। उन्होंने इन परियोजनाओं में से 23 को 31 मार्च 2017 से पहले पूरा करने का वादा किया। इन परियोजनाओं के लिए अगले वर्ष 17 हजार करोड़ रुपए और अगले 5 वर्षों में 86,500 करोड़ रुपए की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सभी कर योग्य सेवाओं पर 0.5 प्रतिशत की दर से कृषि कल्याण उपकर नाम उपकर लगाने का प्रस्ताव करता हूँ। यह उपकर 1 जून, 2016 से लागू होगा।
देश में शहरों में प्रदूषण और यातायात की स्थिति के मद्देनजर वित्तमंत्री ने पेट्रोल, एलपीजी, सीएनजी की छोटी कारों पर एक प्रतिशत, कतिपय क्षमता वाली डीजल कारों पर 2.5 प्रतिशत और अधिक इंजन क्षमता वाले अन्य वाहनों और एसयूवी पर 4 प्रतिशत अवसंरचना उपकर लगाने का प्रस्ताव रखा। तंबाकू और तंबाकू उत्पादों के सेवन को हतोत्साहित करने के लिए श्री जेटली ने बीड़ी के अतिरिक्त अन्य तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क 10 से 15 प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव किया। उन्होंने वित्त अधिनियम 1994 में संशोधन का प्रस्ताव किया।
वित्त मंत्री ने कोयला, लिग्नाइट और पीट पर लगाए गए 'स्वच्छ ऊर्जा उपकर' को 'स्वच्छ पर्यावरण उपकर' का नया नाम दिया और उसकी दर 200 रुपए प्रति टन से बढ़ाकर 400 रुपए प्रति टन करने की घोषणा की। तंबाकू और तंबाकू उत्पादों की खपत को हत्तोत्साहित करने के लिए उन्होंने बीड़ी को छोड़कर विभिन्न तंबाकू उत्पादों पर उत्पाद शुल्क लगभग 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक बढ़ाने की घोषणा की।
वित्त मंत्री ने एक स्थिर और संभाव्य कराधान व्यवस्था मुहैया कराने तथा काले धन में कमी लाने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने घोषणा की कि घरेलू करदाता 30 प्रतिशत एवं 7.5 प्रतिशत अधिभार तथा 7.5 प्रतिशत आर्थिक दंड जोकि कुल मिलाकर अघोषित आय का 45 प्रतिशत होगा, अदा करने के द्वारा अघोषित आय या किसी परिसंपत्ति के रूप में ऐसी आय की घोषणा कर सकते हैं। वित्त मंत्री ने कराधान के सरलीकरण एवं उसे युक्तिसंगत बनाए जाने पर जोर देते हुए कहा कि विभिन्न मंत्रालयों द्वारा लगाए गए 13 उपकरों, जिनमें एक वर्ष में राजस्व संग्रह 50 करोड़ रुपए से कम है, को समाप्त कर दिया जाएगा। अप्रवासियों भारतीयों के लिए पैन कार्ड के वैकल्पिक दस्तावेज मुहैया कराने की अनुमति प्रदान की जाएगी और आयकर के लिए टीडीएस प्रावधानों को विवेकपूर्ण बनाया जाएगा। उन्होंने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों सहित बैंकिंग कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा जमाओं, उधारों और अग्रिमों के जरिए प्रदान की गई गैर-कर योग्य सेवाओं के संबंध में वैकल्पिक अतिरिक्त विकल्प मुहैया कराए जाएंगे। उन्होंने कर विभाग में व्यापक रूप से प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर दिया जिससे कि कानून का पालन करने वाले नागरिकों का जीवन सरल बनाया जा सके। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार की प्रत्येक भारतीय, विशेष रूप से किसानों, गरीबों एवं कमजोर वर्गों को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने की इच्छा है। अंत में, उन्होंने कहा कि सरकार का स्वप्न है; अधिक समृद्ध भारत को देखने का; और स्वप्न है 'भारत को विकसित देखने का'।
जीडीपी की वृद्धि दर बढ़कर 7.6 प्रतिशत हुई; 2016-17 का बजट 'ट्रांस्फॉर्म इंडिया' के एजेंडे पर टिका है : वित्त मंत्री
केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज लोकसभा में वित्त वर्ष 2016-17 का आम बजट पेश करते हुए कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर बढ़कर 7.6 प्रतिशत तक हो गई है। ऐसा पिछली सरकार के अंतिम तीन वर्षों के दौरान विश्व निर्यातों में हुए 7.7 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में, वैश्विक निर्यातों में 4.4 प्रतिशत की कमी होने के बावजूद हुआ। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर विकास 2014 के 3.4 प्रतिशत से कम होता हुआ 2015 में 3.1 प्रतिशत के स्तर पर आ गया। वित्तीय बाजारों पर आघात हुए हैं और वैश्विक व्यापार कम हो गया है। विश्व स्तर पर इन प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद, अपनी अंदरूनी ताकतों एवं वर्तमान सरकार की नीतियों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपना आधार मजबूत बनाए रखा है।
वित्त मंत्री श्री जेटली ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने भारत को मंद पड़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच एक 'दैदीप्यमान प्रकाश स्तंभ' का नाम दिया है। विश्व आर्थिक मंच ने कहा है कि भारत का विकास 'असाधारण रूप से उच्च' रहा है। हमने यह उपलब्धि प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद और इस तथ्य के बावजूद हासिल की है कि हमें विरासत में एक ऐसी अर्थव्यवस्था मिली थी जिसमें विकास कम, महंगाई अधिक और सरकार की शासन करने की सामर्थ्य में निवेशक का विश्वास शून्य था।
वित्त मंत्री श्री जेटली ने यह भी कहा कि पिछली सरकार के अंतिम तीन वर्षों के दौरान, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संबंधी मुद्रास्फीति 9.4 प्रतिशत के स्तर पर थी। हमारी सरकार के कार्यकाल में यह कम होकर 5.4 प्रतिशत पर आ गई। यह उपलब्धि लगातार दो वर्षों में मानसून की वर्षा में 13 प्रतिशत की कमी के बावजूद हासिल की गई।
श्री जेटली ने कहा कि हमारी वैदेशिक स्थिति मजबूत है और चालू खाता घाटा पिछले वर्ष के पूर्वार्द्ध के 18.4 बिलियन डॉलर से घटकर इस वर्ष 14.4 बिलियन डॉलर रह गया। अनुमान है कि इस वर्ष के अंत तक यह सकल घरेलू उत्पाद का 1.4 प्रतिशत रह जाएगा। हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 350 बिलियन डॉलर का है, जो अभी तक का अधिकतम स्तर है।
वित्त मंत्री ने इस सिद्धांत के प्रति संकल्प दोहराया कि सरकार के पास का धन लोगों का धन है, और सरकार पर इसे लोगों के, खासकर गरीब एवं वंचित वर्गों के कल्याण के लिए विवेकपूर्ण ढ़ंग से खर्च करने की पावन जिम्मेदारी है। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाओं एवं रक्षा ओआरओपी के क्रियान्वयन के कारण वित्त वर्ष 2016-17 के लिए अपने व्यय को भी प्राथमिकता देने का निर्णय किया है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार समाज के निर्बल वर्गों की सहायता के लिए तीन बड़ी योजनाएं शुरू करेगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार की प्राथमिकता निर्बल वर्ग, ग्रामीण क्षेत्रों को अतिरिक्त संसाधन मुहैया कराने तथा भौतिक ढांचे का निर्माण करने की है।
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016
हस्तशिल्प और सांस्कृतिक विरासत का संगम सूरजकुंड मेला
सूरजकुंड शिल्प मेले का आयोजन पहली बार वर्ष 1987 में भारत के हस्तशिल्प, हथकरघा और सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि एवं विविधता को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। केंद्रीय पर्यटन, कपड़ा, संस्कृति, विदेश मंत्रालयों और हरियाणा सरकार के सहयोग से सूरजकुंड मेला प्राधिकरण तथा हरियाणा पर्यटन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित यह उत्सव सौंदर्यबोध की दृष्टि से सृजित परिवेश में भारत के शिल्प, संस्कृति एवं व्यंजनों को प्रदर्शित करने के लिहाज से अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण स्थान एवं शोहरत रखता है। वर्ष 2013 में सूरजकुंड शिल्प मेले को अंतर्राष्ट्रीय मेले का दर्जा दिए जाने से इसके इतिहास में एक नया कीर्तिमान स्थापित हुआ। वर्ष 2015 में यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया के 20 देशों ने इस मेले में भागीदारी की। इस वर्ष मेले में 23 देशों ने भाग लिया है, जिनमे चीन, जापान, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो, मिश्र, थाईलैंड, मालदीव, रूस, किर्गिस्तान, वियतनाम, लेबनान, ट्यूनिशिया, तुर्कमेनिस्तान, मलेशिया और बांगलादेश की जोरदार उपस्थिति है। इस वर्ष 30वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला 2016 का भव्य आयोजन किया गया है।
सूरजकुंड मेला प्राधिकरण और हरियाणा पर्यटन ने ग्रामीण भारत की स्पंदनशीलता और सौंदर्य को प्रदर्शित करने के लिए मेला मैदान को आकर्षक एवं जीवंत रूप देने के उद्देश्य से क्रिएटिव डायमेंशन कोलकाता के पेशेवर परामर्शदाताओं सुब्रत देबनाथ तथा डॉ. अनामिका बिश्वास ने सेवा दी हैं।
मेला क्षेत्र को पांच क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जिन्हें भारत के पांच मौसमों, बसंत, ग्रीष्म, मानसून, पतझड़ और शीत के अनुरूप बनाया गया है। यह पांच मौसम पांच खिड़कियों के माध्यम से प्रदर्शित किए गए हैं- फूल तथा तितलियां बसंत ऋतु का प्रतीक है, चमकता सूरज तथा सूरजमुखी के फूल ग्रीष्म का प्रतीक हैं, बादल युक्त आसमान तथा वर्षा मानूसन का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसी प्रकार वृक्षों से झड़ते पत्ते पतझड़ ऋतु तथा बर्फ से लदे वृक्ष और रेंडियर शीत ऋतु का प्रतीक है।
नवगठित राज्य तेलंगाना इस वर्ष सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का थीम राज्य है जोकि बड़े ही आकर्षक ढंग से अपनी अनूठी संस्कृति एवं ऐतिहासिक विरासत को प्रदर्शित कर रहा है। पर्यटन सचिव, तेलंगाना सरकार श्री बी.वेंकटेशम ने तेलंगाना से लगभग 300 कलाकार ओग्गूडोलू, चिन्डू यक्ष गनम, गुसाड़ी, कोम्मू कोया मथुरी, चिरु, तला रामायणम, कोलातम, पैरिनी नाट्यम , बंजारा, लम्बाड़ी, बोनालू जैसी विभिन्न लोक कलाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं। मेले के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक स्थाई स्मरणीय अवसंरचना, ककातिया गेटा का निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त तेलंगाना के राज्य प्रतीकों को प्रदर्शित करने वाले तीन द्वार भी हैं, जो दर्शकों के मूड को जीवंत बनाने के लिए जापान, कांगो, मिश्र, मालदीव, रूस, किर्गिस्तान, वियतनाम और तुर्कमेनिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकारों द्वारा शानदार कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
हरियाणा और तेलंगाना राज्यों से एक-एक परिवार अपने क्षेत्र की ठेठ जीवनशैली को प्रदर्शित करने के लिए मेला मैदान में विशेष रूप से बनाए गए 'अपना घर’ में निवास में कर रहे हैं। हरियाणा का 'अपना घर’ मुक्के बाजी और कुश्ती जैसे प्रदेश के अति लोकप्रिय खेलों को भी प्रदर्शित करता है। महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 'अपना घर’ ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान भी प्रदर्शित किया जा रहा है, जिसमें महिलाएं बॉक्सर, दूध दुहने वाली और गृहणी जैसी विभिन्न भूमिकाओं में होंगी।
उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र तथा अन्य क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के लोक कलाकारों द्वारा मेला मैदान के ओपन एयर थियेटर 'चौपाल’ में दिन के समय प्रस्तुत किए जाने वाले कार्यक्रमों में विभिन्न नृत्य विधाएं प्रस्तुत की जा रही है। इनमें जम्मू एवं कश्मीर का जबरो एवं रोउफ, छत्तीसगढ़ का पंथी, कर्नाटक का ढोलू कुनीठा, उड़ीसा का गोटी पुआ, आसाम का बिहू, हिमाचल प्रदेश का सिरमौरी, राजस्थान का कालबेलिया एवं चकरी, उत्तराखंड का छपेली, उत्तरप्रदेश का छाऊ, पंजाब का गिद्दा एवं भांगड़ा आदि शामिल है। मेला पखवाड़े के दौरान शाम के समय प्रस्तुत किए जाने वाले रोमांचक सांस्कृतिक कार्यक्रम दर्शकों को पूरी तरह से मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
यह मेला 40 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें शिल्पकारों के लिए बनी लगभग 864 वर्क हट्स तथा एक बहु व्यंजन फूड कोर्ट है जो कि दर्शकों में बहुत लोकप्रिय है। इस वर्ष दर्शक मेले में बने फूड कोर्ट में भारतीय स्ट्रीट फूड एवं अन्य राज्यों के मुंह में पानी ला देने वाले व्यंजनों का आनंद ले रहे हैं।
सूरजकुंड का इतिहास
सूरजकुंड का नाम यहां 10वीं सदी में तोमर वंश के राजा सूरज पाल द्वारा बनवाए गए एक प्राचीन रंगभूमि सूर्यकुंड से पड़ा। यह एक अनूठा स्मारक है, क्योंकि इसका निर्माण सूर्य देवता की आराधना करने के लिए किया गया था और यह यूनानी रंगभूमि से मेल खाता है। यह मेला वास्तव में, इस शानदार स्मारक की पृष्ठभूमि में आयोजित भारत की सांस्कृतिक धरोहर की भव्यता और विविधता का जीता-जागता प्रमाण है।
सोमवार, 16 नवंबर 2015
तिल का उत्पादन यानि ‘खुल जा सिमसिम’
उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के जिक्र से ही अधिकांश लोगों के मन में गरीबी और पिछड़ेपन की तस्वीर उभर जाती है। यह क्षेत्र अपने विशिष्ट भौगोलिक इलाके और जलवायु की परिस्थितियों के कारण कृषि के उत्पादन के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी पिछड़ा हुआ है। बुन्देलखण्ड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से में झांसी और चित्रकूट डिवीजनों के 7 जिले आते हैं। इस क्षेत्र में रबी की अच्छी और अधिक कीमत वाली फसलें जैसे चना, मसूर और मटर आदि भारी मात्रा में उगाई जाती हैं, लेकिन इस क्षेत्र के किसान मुख्य रूप से केवल एक फसल पर ही निर्भर रहते हैं। खरीद के दौरान कम क्षेत्र में बुआई हो पाती है।
परंपरागत रूप से रबी के दौरान बुआई किए गए रकबे की तुलना में बुन्देलखण्ड के किसान खरीफ सीज़न के दौरान केवल लगभग 50 प्रतिशत रकबे में बुआई करते हैं। रबी के दौरान जहां फसल बुआई का कुल रकबा लगभग 18.50 लाख हेक्टेयर है। खरीफ के दौरान फसल बुआई का रकबा लगभदग 9 लाख हेक्टेयर ही रहता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह क्षेत्र अन्न प्रथा के कारण प्रभावित रहता है। यह एक परंपरागत प्रणाली है जिसके तहत लोग अपने दुधारू पशुओं को भी खेतों में बिना रोक-टोक के चरने के लिए छोड़ देते हैं। यह पशु फसलों को खा जाते हैं इसलिए किसान खरीफ सीजन के दौरान अपने खेतों में बुआई के इच्छुक नहीं रहते हैं। लेकिन रबी के सीज़न में यह सब नहीं होता है क्योंकि किसान अपने पशुओं को घर पर ही रखते हैं। इस घटना को समझने के लिए किसी भी व्यक्ति को बुन्देलखण्ड में प्रचलित विशिष्ट परिस्थितियों की सराहना करनी पड़ेगी। सर्वप्रथम बात यह है कि पूरा क्षेत्र परंपरागत रूप से वर्षा पर आधारित है और पानी की कमी से ग्रस्त रहता है। मानसून की अनिश्चिताओं के कारण यहां किसान अपने खेतों में फसल की बुआई करने को वरीयता नहीं देते। दूसरी बात यह है कि इस क्षेत्र में भूमि जोत का औसतन आकार राज्य के भूमि जोत की तुलना में बहुत बड़ा है क्योंकि यहां जनसंख्या का घनत्व काफी कम है। इसलिए विगत में किसानों के लिए केवल एक अच्छी फसल ही बोना संभव रहता था। लेकिन ऐसा करना लंबे समय तक संभव नहीं रहा। अब स्थिति बदल रही है क्योंकि जनसंख्या बढ़ रही है और इस क्षेत्र में भी औसत भूमि जोत का आकार काफी कम हो गया है। तीसरी बात यह है कि यह क्षेत्र वर्षा आधारित है। इसलिए गर्मी के मौसम के दौरान इस क्षेत्र में चारे की सामान्य रूप से कमी हो जाती है। इस कारण किसानों को मजबूरन अपने पशुओं को खेतों में जो भी मिले वही चरने के लिए खुला छोड़ना पड़ता है। धीरे-धीरे यह स्वीकार्य प्रथा बन गयी और किसानों ने बुन्देलखण्ड में खरीफ सीज़न के दौरान अपने खेतों में फसलों की बुआई बंद कर दी। लेकिन इतने बड़े क्षेत्र में फसलों की बुआई न होना देश के लिए एक तरह से राष्ट्रीय अपव्यय भी है।
रबी के पिछले दो सीजनों के दौरान बुन्देलखण्ड में बैमौसमी बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों को 2014-15 में भारी नुकसान उठाना पड़ा। बुन्देलखण्ड में फसल बीमा के तहत किसानों की कवरेज लगभग 15 प्रतिशत है जो राज्य की औसत 4 से 5 प्रतिशत कवरेज की तुलना में काफी अधिक है लेकिन अभी भी यह प्रतिशत बहुत कम है क्योंकि इस क्षेत्र के किसान मुख्य रूप से रबी से प्राप्त आय पर ही निर्भर करते हैं। इस कारण उनके लिए यह बहुत बड़ा झटका था। राज्य सरकार ने एक विशिष्ट नीति की घोषणा की तो किसान कुछ अतिरिक्त आय जुटाने के लिए बहुत उत्सुक नज़र आए। बुन्देलखण्ड में खरीफ के दौरान तिल की खेती की संभावनाओँ को महसूस करते हुए इस क्षेत्र के किसानों के लिए अनुदान पांच गुणा बढ़ाकर 20 रुपये प्रति किलो से 100 रूपय प्रति किलों कर दिया गया था। तिल उत्पादन को बढ़ावा देने का निर्णय इस तथ्य को ध्यान में रखकर लिया गया था कि पशु इस फसल को नहीं खाते हैं। इस क्षेत्र के किसानों में वितरित करने के लिए तिल के बीजों की भारी मात्रा में खरीदारी की गयी। खरीफ के दौरान तिल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक आक्रामक अभियान शुरू किया गया था। विभागीय अधिकारी, गैर-सरकारी संगठन, जिला और सम्भागीय अधिकारी और अन्य संबंधित लोगों ने तिल के अधीन रकबा बढ़ाने और पिछले वर्ष के आँकड़ों की तुलना में सामान्य रूप से अधिक रकबा लाने के लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाया।
इसका परिणाम बहुत उत्साहजनक रहा। खरीफ 2014 की तुलना में बुन्देलखण्ड में इस वर्ष 2 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त रकबे में बुआई की गयी जिसमें से 1.25 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त रकबे में तिल की बुआई हुई। यह वादा किया गया था कि अगर किसान अन्न प्रथा के बावजूद इस फसल से अच्छा लाभ अर्जित करने में सफल हो जाएंगे तो वे आगे फसल की बुआई करेंगे। यह वादा अब सही सिद्ध हुआ है। स्थानीय प्रशासन के सक्रिय हस्तक्षेप के कारण ही यह संभव हो पाया है। जालौन जिले की अभी हाल में की गयी यात्रा के दौरान मैंने किसानों को प्रशासन का आभारी देखा जिसने किसानों को अपने पशुओं को दूसरों के खेतों में बे-रोकटोक चरने से रोकने के लिए रोका। जिसके परिणामस्वरूप बुआई के क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई। ओरई-झांसी राजमार्ग के दोनों और कई-कई किलोमीटर तक तिल के खेतों को लहराते हुए देखना एक सुःखद अनुभव रहा। पशुओं के लिए चारे का प्रबंध करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसका निश्चित रूप से समाधान किए जाने की जरूरत है। जिस किसान की क्रय शक्ति है वह बाजार से निश्चित रूप आवश्यक मात्रा में चारा खरीद सकता है।
तिल उत्पादन की अर्थव्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण है। यह फसल वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए है। उत्पाद को बेचने के लिए बाजार की कोई कमी नहीं है। क्योंकि तिल की खेती बहुत कम देशों में की जाता है जबकि हर एक देश में इसकी किसी न किसी रूप में खपत रहती है। तिल का तेल खाना बनाने, मिठाई बनाने, मालिश करने, दवाई के रूप में और सौंदर्य प्रसाधन उद्देश्यों के साथ-साथ अन्य बहुत सी जगह प्रयोग किया जाता है। तिल के बीजों का भारत में गज़क, रेवड़ी, लड्डू और तिलकुट जैसी मिठाइयां बनाने में प्रयोग किया जाता है जबकि मध्य-पूर्व देशों में ताहिनी सॉस और पश्चिमी देशों में बन्स और बर्गरों के ऊपर लगाने में इसका प्रयोग किया जाता है। धार्मिक अवसरों पर विभिन्न अनुष्ठानों में भी इसका उपयोग किया जाता है। बाजार में किसानों को अन्य तिलहनों के मुकाबले में तिल के अधिक दाम मिलते हैं।
यह एपिसोड मुझे अलीबाबा और चालीस चोरों की कहानी की याद दिलाता है। जब अलीबाबा कहता है ‘खुल जा सिमसिम’ तो गुफा का मुंह खुल जाता है और गुफा में छिपा खज़ाना दिखाई देता है। यह बुन्देलखण्ड के लिए ‘खुल जा सिमसिम’ वाला ही क्षण हो जो बुन्देलखण्ड के लिए एक वास्तविक मोड़ है। बारिश की बहुत अधिक कमी के कारण इस वर्ष किसानों के लिए आय बहुत ज्यादा आकर्षक नहीं रही लेकिन इसने भविष्य में एक जबरदस्त आशा का संचार कर दिया है। खरीफ के दौरान कृषि की पद्धति ने इस क्षेत्र को हमेशा के लिए परिवर्तित कर दिया है।
(श्री अमित मोहन प्रसाद, उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग में प्रमुख सचिव है और इस लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं। )
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
Seeing our scholar defending his PhD thesis during ODC was a great moment. This was the result of his hard work. Dr. Sanjay Singh, a senior...

-
छपाई एक कलाकृति है। यह प्रारंभिक चित्र के समान प्रकार में लगभग विविधता की अनुमति देती है। भारत में छपाई का इतिहास 1556 से शुरू होता है। इस य...
-
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में महिलाओं की सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक आजादी को सुनिश्चित करने की दिशा में पुरजोर तरीके से ठोस ...
-
अभी हाल ही में गैर-सरकारी संगठनों के साथ राष्ट्रीय परामर्श की एक रिपोर्ट में बाल-अधिकारों की पुष्टि में सरकार की निर्णायक भूमिका को रेखांकित...