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सोमवार, 30 जून 2014
सीढ़ीदार कुंआ, रानी-की-वाव विश्व धरोहर सूची में शामिल
हाल में अपने काम के सिलसिले में, मैं गुजरात दौरे पर था। मेरे पास अहमदाबाद में कुछ समय बचा था जिसे मैं किसी अच्छे काम में इस्तेमाल करना चाहता था। जब मेरे सहयोगी जगदीश भाई ने सुझाव दिया कि मैं पाटण में रानी-की-वाव और मोढेरा का सूर्य मंदिर एक दिन में देखकर आ सकता हूं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने गुजरात के इस भव्य सीढ़ीदार कुंए या बावड़ी के बारे में पढ़ रखा था और एनडीटीवी की भारत के 7 आश्चर्य कार्यक्रम श्रृंखला में इस पर एक लघु फिल्म भी देखी थी। गूगल सर्च के दौरान मुझे पता लगा कि भारत सरकार ने यूनेस्को विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में शामिल करने के लिए रानी-की-वाव को भेजा हुआ है। गुजरात पर्यटन के ‘खुशबू गुजरात की’ प्रचार में अमिताभ बच्चन ने टेलीविजन पर रानी-की-वाव का काफी प्रसार किया है।
बढि़या सड़क के रास्ते कलोल, ऊंझा और मेहसाणा होते हुए दो घंटे में हम भीड़भाड़ वाले छोटे से कस्बे पाटण पहुंच गए जो किसी वक्त गुजरात की राजधानी हुआ करता था। सूरज लुक्का-छिपी खेल रहा था, हम एक विशाल मैदान पर पहुंच गए जहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का एक धुंधला सा बोर्ड दिखाई दे रहा था जिसमें रानी के वाव के बारे में जानकारी थी। लेकिन हमें खुले बड़े-बड़े घास के मैदानों के सिवाय कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, बीच- बीच में कहीं-कहीं पर छायादार वृक्ष थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि उत्कृष्ट कृति जमीन के नीचे थी।
जमीन के नीचे स्थित भव्य रानी-की-वाव करीब 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है। मूल रुप से यह सात मंजिला था जिसमें से पांच को संरक्षित करके रखा गया है। जैसे-जैसे हम सीढि़यों से नीचे उतर रहे थे, हम खुद को एक अलग दुनिया में महसूस कर रहे थे। अगले एक घंटे हमें सुख की जो अनुभूति हुई उसका वर्णन करना मुश्किल है।
रानी-की-वाव वास्तुशिल्प का अद्भुत नमूना है और इसकी उभरी हुई नक्काशी मारू-गुर्जर शैली को दर्शाती है। रानी-की-वाव की दीवारों और खंभों पर अधिकतर वास्तुकला भगवान विष्णु, दशावतार को समर्पित हैं। यहां वराह, नरसिंह, राम और कल्की की प्रतिमाएं अनायास की आपको अपनी तरफ खींच लेती हैं। महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की प्रतिमा विशेष आकर्षण का केन्द्र है। अप्सराओं का दिव्य सौन्दर्य जिसमें सोलह श्रृंगार को दिखाया गया है, एक अन्य आकर्षण है। पानी के नजदीक शेषशैय्या विष्णु का अवतार नक्काशी के साथ देखने को मिलता है जिसमें भगवान विष्णु हजारों मुंह वाले शेषनाग के सहारे बैठे हैं।
वर्ष 2001 तक यहां आने वाले लोग सीढ़ीदार कुंए के उस आखिरी हिस्से तक जा सकते थे जहां पानी था। लेकिन भुज के भूकंप के दौरान, यह ढांचा कमजोर हो गया और पुरातत्व सर्वेक्षण ने एक स्थान के बाद प्रवेश निषेध कर दिया। लेकिन इसके बावजूद आप पत्थरों पर लय, सौन्दर्य और भाव के साथ उकेरी गई बारीक नक्काशी को देख सकते हैं।
इस स्मारक की गूढ़ता हमें उस पवित्रता की याद दिलाती है जो हमारे पूर्वजों की पानी के साथ जुड़ी हुई थी। गुजरात की वाव न सिर्फ पानी लेने और एक दूसरे से मिलने का जरिया थी बल्कि इसका काफी धार्मिक महत्व था। इसे मूल रुप से साधारण कुंडों के रुप में तैयार किया गया था लेकिन कई वर्ष बीतने पर इसने, संभवत: पानी की पवित्रता की प्राचीन अवधारणा को स्पष्ट कर दिया। जैसाकि इसके नाम रानी-की-वाव से स्पष्ट है, इसे भारत में सीढ़ीदार कुंओं की रानी माना जाता है।
हमारे यहां अनगिनत ऐसे स्मारक हैं जो राजा ने अपनी रानियों की याद में बनवाए हैं, लेकिन रानी-की-वाव कुछ अलग है। यह माना जाता है कि रानी उदयमति ने अपने पति भीमदेव प्रथम की याद में इसे बनवाया था जो पाटण के सोलंकी राजवंश के संस्थापक थे। इसका निर्माण ईसा के बाद 1063 में शुरू हुआ था। भीमदेव प्रथम की याद में उदयमति के स्मारक बनवाने का जिक्र ‘ प्रबंध चिंतामणि’ में है जिसकी रचना 1304 में मेरंग सूरी ने की थी। वाव में बाद में सरस्वती नदी से बाढ़ का पानी का भर गया था और 1960 तक इसमें गाद भरी हुई थी जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे दोबारा खोज निकाला। यह अनुमान लगाया गया है कि वाव में करीब 800 नक्काशीदार प्रतिमाएं थीं जिसमें से करीब 500 पुरानी स्थिति में ही मिली हैं।
रानी-की-वाव बहुत अच्छे तरीके से संरक्षित स्मारक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस शानदार कार्य के लिए बधाई का पात्र है। संरक्षण के प्रयास जारी रखने के अलावा, पुरातत्व सर्वेक्षण ने स्मारक को संरक्षित करने के साथ-साथ स्कॉटलैंड की मदद से इसकी डिजिटल मैपिंग कर दी है। विस्तृत 3डी डिजिटल सर्वेक्षण स्कॉटलैंड की टेन इनीशियेटिव द्वारा तैयार किया गया है जिससे इस धरोहर स्मारक को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा और इसे संरक्षित किया जा सकेगा।
रानी-की-वाव हमेशा से गुजरात का गौरव रहा है। वर्ष 2012 में वडौदरा सर्कल के पूर्व पुरातत्व अधीक्षक के. सी. नौरीयाल के नेतृत्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक दल ने यूनेस्को की मंजूरी के लिए सीढ़ीदार कुंए की एक फाइल तैयार की थी। चीन की सिंगुआ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जांग जी के नेतृत्व में यूनेस्को के वर्ल्ड हैरिटेज सेंटर के सलाहकार दल ने पाटण का दौरा किया और स्मारक का विस्तृत अध्ययन किया। इस दल ने स्थानीय लोगों से बातचीत कर यह जानकारी हासिल की कि उन्होंने इस सीढ़ीदार कुंए का कैसे पता लगाया और उनके लिए इसका क्या महत्व है।
आखिरकार 22 जून, 2014 को यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज कमेटी ने दोहा में अपने 38वें सत्र में ‘रानी-की-वाव’ को विश्व धरोहर स्मारक घोषित कर दिया। यूनेस्को ने माना कि ‘’सीढ़ीदार कुंआ’’ भारतीय उप महाद्वीप में भूमिगत जल स्रोत के उपयोग, जल प्रबंधन प्रणाली और स्टोरेज का विशिष्ट रुप है और इसका निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दि में किया गया था। उन्होंने देखा कि गाद में में दबा हुआ कला और स्थापत्य कला का विशालकाय बहुमंजिला ढांचा किस प्रकार बाहर आ गया। रानी-की-वाव का सीढ़ीदार निर्माण कारीगरी का प्रभावशाली नमूना है।
यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में रानी-की-वाव के शामिल होने पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया ‘’यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है। जब आप अगली बार गुजरात जाएं तो रानी-की-वाव अवश्य जाइएगा जो हमारी कला और संस्कृति का अनोखा प्रतीक है।‘’
निश्चित रुप से जब आप रानी-की-वाव से बाहर निकलते हैं, तो आप कुंओं के बारे में पूरी नई जानकारी के साथ लौटते हैं। ये कुंए अंधेरे वाले, गहरे और रहस्यमय नहीं हैं; गुजरात में ये उत्कृष्ट स्मारक हैं। रानी-की-वाव के मामले में यह 11वीं शताब्दी के सोलंकी कलाकारों की कला का जीता-जागता प्रमाण है।
पाटण कैसे पहुंचा जा सकता है
मेहसाणा के रास्ते पाटण अहमदाबाद से करीब 125 किलोमीटर दूर है। अंतर-नगरीय बसों से करीब 3.5 घंटे लगते हैं जबकि निजी टैक्सी से ढाई घंटे से भी कम समय में पहुंचा जा सकता है। जीपें भी उपलब्ध हैं लेकिन वे कम आरामदायक हैं। नजदीकी रेल संपर्क मेहसाणा है, जहां से आपको सड़क मार्ग से जाना पड़ता है।
अहमदाबाद से एक दिन में पाटण आया-जाया सकता है। इसके साथ ही 11वीं शताब्दी में बनाए गए प्रसिद्ध मोढेरा सूर्य मंदिर को भी देखा जा सकता है।
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