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सोमवार, 3 अगस्त 2020
मंगलवार, 10 सितंबर 2019
यादों का सफ़र
सुबह-शाम गली से तेरे, जब
भी गुजरता हूं मैं
तन्हाई को देखकर खुद से
डर जाता हूं मैं
याद तेरी, साथ तेरा सब
भूला देता हूं मैं
बेवफाई और तन्हाई को बुला
लेता हूं मैं
हर तरफ बिखरी हैं यादें, क्यों
तेरी ये आजकल
अब अचानक राह चलते ही ठहर
जाता हूँ मैं
संग तेरे बैठने को दिल
मचलता है मेरा
नाम लेते ही तेरा,
खुशियों से भर जाता हूं मैं
याद जब आती है तेरी आंखें
भर आती मेरी
फिर बिछुड़ने के कहर से
ही सिहर जाता हूँ मैं
जिंदगी की राह अब तो रेत
का दरिया लगे
जिस डगर तू ले चली है उस
डगर जाता हूँ मैं
ज़िंदगी और मौत के बीच
वक्त है का फासला
इसलिए तो रब के दर पे हर पहर
जाता हूँ मैं
मुश्किलें मंजिल है मेरी,
तन्हाई मेरा हमसफर
इस कदर ना तोड़ मुझको,
खुद ही बिखर जाता हूं मैं
जिंदगी में ख्वाहिशों की वीरानगी
सी छाई है
तू ही है उम्मीद मेरी,
संग तेरे जाता हूं मैं
जिस्म क्या है, रूह भी
तेरे नाम कर दूं हमसफर
अपने सारे ख्वाब तुझको
सौंपकर जाता हूं मैं
शुक्रवार, 28 जून 2019
रविवार, 7 अप्रैल 2019
Quote of The Day
Honesty without anything is more than Everything!
Trust with Transparency is equivalent to Honesty!!
Everything minus Honesty is equivalent to Zero!!!
-
Dr. R. Prakash
गुरुवार, 24 जनवरी 2019
वक्त से सामना
मैंने कहा तू कौन है
उसने कहा
मैं वक्त हूं
इसलिए तेरे साथ हर वक्त हूं
रात की गहराई मैं दोपहर की परछाई मैं
सुबह की अलसाई मैं और शाम की अंगराई मैं
इसलिए मैं वक्त हूं, हर वक्त हूं
मैंने कहा है सख्त तू कमबख्त तू, बेवक्त तू
मैंने कहा तू जा अभी मिलूंगा तुमसे फिर कभी
उसने कहा अगर मैं गया तो तू नहीं रह पाएगा
संग मेरे इस जहां से तू भी चला जाएगा।
वक्त की ये बात सुनकर मैं तनिक घबरा गया
कर्म को साथी बना फिर वक्त से टकरा गया
मैंने कहा ये वक्त सुन, बेवक्त है आना तेरा
कर्म की पतवार से पाला नहीं तेरा पड़ा
वक्त पलटा, मुस्कुराया, घूरकर उसने कहा
धर्म का हूं मर्म मै और कर्म का पतवार मैं
जिंदगी की नाव मै और हूं नदी की धार मैं
सुख में हूं मैं, दुख में हूं मैं, तू वक्त को पहचान ले
इस जहां में मुझसे बड़ा नहीं है कोई जान लें
वक्त के बदलने का अर्थ नहीं जानता
तू है नादां और भोला वक्त को नहीं पहचानता
तन्हाई मैं, बेवफाइ मैं, रुसवाई मैं, मिलन की परछाई मैं
कुदरत का कहर भी मैं, इश्क का असर भी मैं
प्यार का ज़हर भी मैं और मौत का जिगर भी मैं
मैंने कहा इक बात सुन, अहसास सुन, जज्बात सुन
अहसास को महसूस कर,ना जा तू मुझसे रूठ कर
उसने कहा मैं वक्त हूं, जज्जाबी नहीं मैं सख्त हूं
कलयुग का कर्म मैं, सतयुग का धर्म मैं
मनमीत मैं, संगीत मैं, हार मैं और जीत मैं
पूजा भी मैं, अर्चना भी मैं, आराध्य वंदना भी मैं
नीलांचन और विन्ध्यांचल मैं, गीता और कुरान भी मैं
इसलिए तेरे साथ हर वक्त हूं
रात की गहराई मैं दोपहर की परछाई मैं
सुबह की अलसाई मैं और शाम की अंगराई मैं
इसलिए मैं वक्त हूं, हर वक्त हूं
मैंने कहा है सख्त तू कमबख्त तू, बेवक्त तू
मैंने कहा तू जा अभी मिलूंगा तुमसे फिर कभी
उसने कहा अगर मैं गया तो तू नहीं रह पाएगा
संग मेरे इस जहां से तू भी चला जाएगा।
वक्त की ये बात सुनकर मैं तनिक घबरा गया
कर्म को साथी बना फिर वक्त से टकरा गया
मैंने कहा ये वक्त सुन, बेवक्त है आना तेरा
कर्म की पतवार से पाला नहीं तेरा पड़ा
वक्त पलटा, मुस्कुराया, घूरकर उसने कहा
धर्म का हूं मर्म मै और कर्म का पतवार मैं
जिंदगी की नाव मै और हूं नदी की धार मैं
सुख में हूं मैं, दुख में हूं मैं, तू वक्त को पहचान ले
इस जहां में मुझसे बड़ा नहीं है कोई जान लें
वक्त के बदलने का अर्थ नहीं जानता
तू है नादां और भोला वक्त को नहीं पहचानता
तन्हाई मैं, बेवफाइ मैं, रुसवाई मैं, मिलन की परछाई मैं
कुदरत का कहर भी मैं, इश्क का असर भी मैं
प्यार का ज़हर भी मैं और मौत का जिगर भी मैं
मैंने कहा इक बात सुन, अहसास सुन, जज्बात सुन
अहसास को महसूस कर,ना जा तू मुझसे रूठ कर
उसने कहा मैं वक्त हूं, जज्जाबी नहीं मैं सख्त हूं
कलयुग का कर्म मैं, सतयुग का धर्म मैं
मनमीत मैं, संगीत मैं, हार मैं और जीत मैं
पूजा भी मैं, अर्चना भी मैं, आराध्य वंदना भी मैं
नीलांचन और विन्ध्यांचल मैं, गीता और कुरान भी मैं
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