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शुक्रवार, 22 जुलाई 2016
भारत में खनिज का मौजूदा परिदृश्य
·खनन सेक्टर हमारी अर्थव्यवस्था का बुनियादी सेक्टर है । यह विभिन्न महत्वपूर्ण उद्योगों को बुनियादी कच्ची सामग्री उपलब्ध कराता है ।
· सी एस ओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार खनन सेक्टर (र्इंधन, आवणिक, प्रमुख तथा गौण खनिजों सहित) ने वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद में 2.4 % का योगदान दिया है ।
· खनिजों के उत्पादन के मामले में पिछले वर्षों की तुलना में खनन सेक्टर के विकास में काफी सुधार आया है । यह याद दिलाना प्रासंगिक होगा कि इस सेक्टर में 2011-12 और 2012-13 के पिछले दो वर्षों के दौरान 0.6% की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई थी। खनन सेक्टर नीतिगत अनिर्णय के कारण बहुत बुरी तरह प्रभावित था । खनन गतिविधियां न्यायाधीन प्रकरणों, पर्यावरणीय विनियामक तथा भूमि अर्जन जैसे मुद्दों के कारण थम गई थी ।
· जब से सरकार ने नीतिगत सुधारों की पहलें शुरू की हैं तब से उल्लेखनीय बदलाव आए हैं । ये बदलाव खनन एवं खदान सेक्टर में सकल मूल्य संवर्धन में वृद्धि के मामले में सर्वाधिक दिखाई देते हैं । इस सेक्टर में वर्ष 2014-15 में 2.8% की वृद्धि हुई । वर्ष 2015-16 के दौरान, अभी तक, इस सेक्टर में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 3.6% की वृद्धि दर्ज की है ।
· भारत में खनिज उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि आई है । यह देख कर खुशी होती है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान, मार्च तक, प्रमुख खनिजों के उत्पादन में पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में 9 % की वृद्धि हुई । इस विकास गाथा में प्रमुख योगदान धात्विक सेगमेंट में बॉक्साइट (27%), क्रोमाइट (33%), तांबा सांद्र (30 %) लौह अयस्क (21%) तथा सीसा सांद्र (32%) रहा । यह वृद्धि इस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था से आ रहे कमजोर संकेतों के चलते अंतर्राष्ट्रीय वस्तु बाजार उथल-पुथल के दौर में है ।
· हमने ‘भारत में विनिर्माण’ को वैश्विक नाम के रूप में स्थापित करने के लिए नया मिशन शुरू किया है । भावी वर्षों में, खनन उद्योग के घरेलू तथा विदेशी निवेशों को जुटाने तथा उससे अतिरिक्त रोजगार पैदा करने के लिए प्रमुख उद्योग के रूप में विकसित होने की उम्मीद है ।
खनन एक खनिज (विकास एवं निनियम) अधिनियम में संशोधन
· सरकार की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि खनिज सेक्टर को विनियमित करने वाले खान एवं खनिज(विकास एवं विनियमन) अधिनियम को संशोधित करने की थी ।
· इस संशोधन ने, प्रमुख खनिज रियायतों को प्रदान करने में नीलामी को एकमात्र पद्दति बनाकर विवेकाधिकार को समाप्त किया और इसके द्वारा बेहतर पारदर्शिता की शुरूआत की । इसने खनन पट्टों के परिकल्पित विस्तार की व्यवस्था के द्वारा खनन सेक्टर के लिए आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान किया ।
· इस अधिनियम को 2016 में पट्टा क्षेत्र की सटीक परिभाषा तथा नीलामी के द्वारा अर्जित नहीं किए गए कैप्टिव पट्टों के अंतरण की अनुमति देने के लिए फिर से संशोधित किया गया है ।
खनिज ब्लाक नीलामी
· एम एम डी आर संशोधन अधिनियम 2015 के तहत खनिज ब्लाकों की नीलामी को सुगम बनाने हेतु आवश्यक नियमों अर्थात् खनिज (खनिज अंतर्वस्तु साक्ष्य) नियमावली तथा खनिज(नीलामी) नियमावली भी इसके तुरंत बाद अधिसूचित किए गए । मंत्रालय ने नीलामी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य सरकारों को मदद प्रदान करने के लिए ‘मानक’ निविदा दस्तावेज भी तैयार किए । नीलामी के लिए उपलब्ध ब्लाकों को तैयार करने में सहायता के लिए खान मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को विभिन्न राज्यों में तैनात किया गया था ।
· खनन पट्टा, पूर्वेक्षण/खनन लाइसेंसों की नीलामी के कार्यान्वयन में और अधिक सहयोग प्रदान करने के लिए जीएसआई, आईबीएम, एमईसीएम, एमएमटीसी, एसबीआई कैप तथा मीथॉन की टीमों को कुल स्टेशन तथा डीजीपीएस के आधार पर क्षेत्र के सीमांकन, व्यवसाय परामर्श, जी आर के संकलन तथा कंप्यूटरीकरण, नीलामी प्लेटफार्म आदि जैसे नीलामी के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहायता के लिए तैनात किया गया है ।
· नौ राज्य सरकारों द्वारा नीलामी के लिए सैंतालीस खनिज ब्लाक रखे गए हैं । निम्न स्थानों पर छह ब्लाकों की नीलामी पूर्ण हो चुकी है :-
·झारखंड में 12.2.2016 को चूना पत्थर के दो ब्लाक
·छत्तीसगढ़ में 18 और 19 जनवरी, 2016 को चूना पत्थर के दो ब्लाकों तथा 26.2.2016 को एक स्वर्ण ब्लाक की नीलामी पूर्ण हो चुकी है ।
·ओडिशा में 2.3.2016 को लौह अयस्क के एक ब्लाक की नीलामी
·ई नीलामी की सफलता ने न केवल मंत्रालय द्वारा परिकल्पित नीलामी योजना पर वैधता की मुहर लगाई है वरन् इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे राज्यों के खजाने को काफी अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा जो कि रॉयल्टी से प्राप्त हो रही राशि से बहुत अधिक होगी ।
·इन नीलामियों के द्वारा राज्यों के खजाने को पट्टा अवधी के दौरान 13,000 करोड़ रूपए से अधिक की अतिरिक्त आय होगी । जबकि संचयी रॉयल्टी, जिला खनिज फंड तथा राष्ट्रीय खनिज गवेषण ट्रस्ट को होने वाला अंशदान क्रमश: 4,565 करोड़, 456 करोड, तथा 92 करोड़ रूपए होगा ।
·यह देखा जा सकता है कि राज्य सरकारों को नीलामी के द्वारा प्राप्त होने वाला अनुमानित राजस्व, रॉयल्टी, डीएमएफ तथा एनएमईटी से कुल मिलाकर प्राप्त राजस्व से 2.5 गुणा से ज्यादा होगा ।
·अब तक, 9 राज्य सरकारों द्वारा 47 खनिज ब्लॉकों को नीलामी के लिए रखा गया है । 6 ब्लॉकों की ई-नीलामी सफलतापूर्वक की जा चुकी है, जबकि 17 ब्लॉकों हेतु शुरूआती बोली आवेदनों की संख्या पर्याप्त नहीं होने के कारण ई-नीलामी को रद्द किया गया था ।
·राजस्थान, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में नीलामी प्रक्रिया के दौरान, 17 ब्लॉकों की निविदा आमंत्रण संबंधी नोटिस को अंतत: रद्द किया गया, चूंकि अपेक्षित संख्या में बोलीदाताओं (न्यूनतम 3) ने अपनी बोली प्रस्तुत नहीं की थी ।
·नीलामी प्रक्रिया की सफलता, आस-पास के क्षेत्र में अयस्क की मांग और आपूर्ति विन्यास, अयस्क की मात्रा और ग्रेड, इसके उपभोग का पैटर्न, खनिज अध्ययन की गुणवत्ता, भूमि स्वामित्व का पैटर्न, समुद्र तटीय पर्यावरण प्रतिबंध जहां कहीं भी लागू हो, सामान्य सुस्त बाजार परिदृश्य और बोली दस्तावेजों में राज्यों द्वारा अधिरोपित कोई भी अंत्य उपयोग शर्तों जैसी देशी कारकों पर निर्भर है।
·ई-नीलामी के पहले चरण में सामने आई बाधाओं के समाधान के लिए, खान मंत्रालय द्वारा पहचान की गई खानों की पुन: निविदा करने से पहले मुद्दों का जल्दी समाधान करने के लिए, राज्य प्राधिकारियों के साथ नियमित बैठकें की जाती हैं ।
जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ): सामाजिक – आर्थिक लाभ में हिस्सेदारी
·आर्थिक विकास की उच्च दर हासिल करना और उसे बनाए रखने के साथ-साथ उसके लाभो को गरीबो तथा कमजोर वर्गो तक पहुचाना, खनिज क्षेत्र में सुधारो की प्राथमिकता है । डीएमएफ का उद्देश्य खनन क्षेत्रों में समग्र विकास की स्थानीय लोगों की लम्बे समय से चले आ रही मांग का समाधान करना है । मौजूदा खनिकों द्वारा 30 प्रतिशत की अतिरिक्त रॉयल्टी और एमएमडीआर संशोधन के पश्चात अर्थात् 12.1.2016 के बाद प्रदान की गई खानों के खनिकों द्वारा 10 प्रतिशत के अंशदान दिया जाना है । प्रमुख खनिज संपन्न राज्यों के लिए डीएमएफ का वार्षिक बजट 6000 करोड़ रूपये होगा ।
·सरकार ने “प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना”(पीएमकेकेकेवाई) तैयार की है जिसे संबंधित जिलों के जिला खनिज फाउंडेशन द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा । इस संबंध में सभी राज्यों को दिनांक 16.09.2015 को एमएमडीआर अधिनियम की धारा 20 (क) के तहत निर्देश जारी किए गए हैं ।
·पीएमकेकेकेवाई में यह अनिवार्य किया गया है कि इसके कम से कम 60 प्रतिशत फंड का उपयोग उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों - पेयजल आपूर्ति/ पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण उपायों/ स्वास्थ्य देख-भाल/ शिक्षा/ महिला एवं बाल कल्याण/ वृद्ध, दिव्यांग एवं जन कल्याण/कौशल विकास/कौशल विकास तथा स्वच्छता के लिए किया जाएगा। फंड की शेष 40% राशि का उपयोग अवसंरचना - सड़क एवं भौतिक अवसंरचना/ सिचाई/ जलागम विकास; तथा अन्य उपायों के लिए किया जाएगा । पीएमकेकेकेवाई के अंतर्गत कार्यान्वित परियोजनाएं अनुकूल खनन वातावरण तैयार करने, प्रभावित लोगों की स्थिति को बेहतर बनाने और स्टेकहोल्डरों के लिए लाभकारी स्थ्िति बनाने में सहायक होंगी ।
·आठ राज्यों ने (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा एवं तेलांगना) पीएमकेकेकेवाई के प्रावधानों को सम्मिलित करते हुए डीएमएफ के लिए नियमों के बनाए जाने की पुष्टि की है तथा सात राज्यों (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा) ने जिला स्तर पर डीएमएफ के गठन की पुष्टि कर दी है । पांच राज्यों (छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक,मध्य प्रदेश एवं ओडिशा) ने डीएमएफ के तहत फंड संग्रह की पुष्टि की है तथा डीएमएफ के लिए अंशदान के रूप में 632.44 करोड़ रूपए की राशि संग्रहित हुई है ।
·डीएमएफ की शीघ्र स्थापना करना राज्य सरकार के हित में है जिससे कि इन अर्जित निधियों का पीएमकेकेकेवाई स्कीम द्वारा यथा निर्धारित क्षेत्रों के कल्याण और विकास के लिए इसका उपयोग शुरू किया जा सके । ऐसी कल्याण गतिविधियां स्थानीय लोगों के बीच खनन उद्योग के प्रति सदभावना बनाने के लिए उपयोगी होंगी ।
·राज्य सरकारों को एमएमडीआर अधिनियम में शामिल की गई नई धारा 15क के तहत गोंण खनिजों के लिए डीएमएफ गठित करने का भी अधिकार दिया गया है ।
गवेषण पर जोर
·गवेषण को प्रोत्साहित करने के लिए खनन पट्टाधारकों से प्राप्त अंशदान से राष्ट्रीय खनिज गवेषण न्यास (एनएमईटी) बनाया गया है ।
·खनिज रियायतें प्रदान करने के लिए नीलामी को अपनाने से गवेषण की जिम्मेदारी काफी हद तक सरकार पर आ गई है । एमएमडीआर संशोधन अधिनियम, 2015 के ज़रिए राष्ट्रीय खनिज गवेषण न्यास बनाया गया है जिसे खनन पट्टाधारकों द्वारा रॉयल्टी के 2 प्रतिशत के समतुल्य अतिरिक्त राशि से वित्तपोषित किया जाएगा ताकि देश में गवेषण कार्यकलाप किए जा सकें । लगभग 28.21 करोड़ रू. लागत की 13 गवेषण परियोजनाओं की पहचान की गई है जिन पर एनएमईटी की कार्यकारी समिति विचार करेगी । राष्ट्रीय खनिज गवेषण नीति (एनएमईपी) भी तैयार की जा रही है ताकि निजी क्षेत्र कंपनियों, मुख्यत: जूनियर्स (अंतरराष्ट्रीय गवेषण कंपनियों) को गवेषण कार्यकलापों के लिए आकर्षित किया जा सके ।
· सभी ज्ञांत भंडारों जिन्हें सहस्त्राष्दियों तक मानव सभ्यता द्वारा उपयोग में लाया गया, के दोहन के कारण सतह पर मिलने वाले नॉन-बल्क भंडारों की उपलब्धता लगातार कम हो रही है, इसलिए दुनिया भर में अब यह आवश्यक हो गया है कि गहरे दबे खनिज संसाधनों की तलाश की जाए और उद्योग की लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गवेषण कार्यकलापों में तेज़ी लाई जाए ।
·अन्य देशों के अनुभव यह बताते हैं कि अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के द्वारा अतिरिक्त गवेषण और सज्जीकरण अभियान द्वारा खनिज भंडारों में काफी वृद्धि की जा सकती है जैसे कि आस्ट्रेलिया के ज्ञांत लौह अयस्क भंडार जो 1966 में 400 मिलियन टन था वह 40 वर्षों अर्थात 2005 में 100 गुना बढ़कर 40 बिलियन टन हो गया, जबकि भारत का लौह अयस्क संसाधन आधार 1955 में 5000 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2005 में 25,249 मिलियन टन हुआ ।
·जीएसआई ने 5.71 लाख वर्ग कि.मी. का स्पष्ट भूवैज्ञानिक संभावना (ओजीपी) क्षेत्र का पता लगाया है और अब जीएसआई गहरे दबे खनिजों पर ज्यादा ध्यान देगा तथा ओजीपी के विसंगत क्षेत्र का पता लगाएगा ।
·पारंपरिक रूप से भारत का गवेषण पर खर्च अन्य देशों की तुलना में कम रहा है । विश्व के कुल गवेषण बजट में भारत की हिस्सेदारी केवल 0.4 प्रतिशत है । इसके अतिरिक्त, भारत में केवल 0.4 प्रतिशत कंपनियां नियोजित गवेषण कार्यकलाप करती है । भारत को अपने गवेषण खर्च को बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि यह उत्पादन के अनुरूप अपने भंडारों का भी विकास कर सके । सरकार भी खनिज गवेषण से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए राष्ट्रीय खनिज गवेषण नीति तैयार करने की दिशा में कार्य कर रही है ।
·जीएसआई की अनकवर परियोजना: जीएसआई की ‘अनकवर’ परियोजना, माननीय खान मंत्री द्वारा 17 फरवरी, 2016 को केंद्रीय भूवैज्ञानिक कार्यक्रम बोर्ड की 55वीं बैठक के दौरान शुरू की गई । इस अत्याधुनिक परियोजना को देश के दो चुने गए क्षेत्रों में कार्यान्वित किया जाना है तथा यह गभीरस्थ/प्रछन्न खनिज निक्षेपों की खोज पर केंद्रित है । यह कार्यक्रम एनएमईपी मसौदा के महत्वपूर्ण कार्य बिंदु में से भी एक है । इस पहल के प्रमुख घटकों में, भारत की भूवैज्ञानिक कवर का चित्रण करना, लिथोस्पेरिक आर्कीटेक्चर की जांच करना, 4डी जियोडायनामिक और मेटालोजेनिक उद् विकास को विश्लेषित करना और अयस्क निक्षेपों के दूरस्थ चिह्रों का विश्लेषण करना शामिल होगे ।
अवैध खनन की रोकथाम
·अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए दांडिक प्रावधानों को और कठोर बनाया गया है । संशोधन अधिनियम में ज्यादा जुर्माना और कारावास की अवधि का प्रावधान किया गया है । इसके अतिरिक्त अवैध खनन संबंधी मामलों की तीव्र सुनवाई के लिए राज्यों द्वारा विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान है ।
अवैध खनन संबंधी मामलों की रोकथाम के लिए स्पेस प्रौद्योगिकी का प्रयोग
·आईबीएम ने आईबीएम में सुदूर संवेदन प्रयोगशाला की स्थापना करने के लिए तकनीकी सहायता सहित तीन वर्षों के लिए सैटेलाइट इमेजरी का प्रयोग करते हुए खनन गतिविधियों की मॉनीटरिंग और आईबीएम के अधिकारियों की क्षमता निर्माण संबंधी प्रायोगिक परियोजना शुरू करने के संबंध में दिनांक 21.01.2016 को राष्ट्रीय सुदूर संवदेन केंद्र (एनआरएससी), इसरो के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ।
·खान मंत्रालय ने खनन क्षेत्र में स्पेस प्रौद्योगिकी के प्रयोग का लाभ उठाने के लिए अलग से भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस एप्लीकेशन एंड जियो-इनफोरमेटिकस (बीआईएसएजी), गुजरात और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) को नियोजित किया है । स्पेस प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके अवैध खनन की घटनाओं को रोकने के लिए डीईआईडीटी के तहत भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस एप्लीकेशन एंड जियो-इनफोरमेटिकस (बीआईएसएजी), गुजरात की सहायता से प्रमुख खनिजों के लिए ‘खनन निगरानी प्रणाली’ (एमएसएस) विकसित की जा रही है । इस प्रौ़द्योगिकी में न्यूनतम मानव हस्तक्षेप, सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक आसानी से पहुंच एवं स्वचालित खोज करने की सुविधा है । राज्य सरकारों से, उनके राज्यों में एमएसएस के त्वरित विकास के लिए सभी प्रमुख खनिज पट्टों के संबंध में डिजीटाइज्ड पट्टा-वार सूचना उपलबध कराने का अनुरोध किया गया है । राज्य सरकारें, उन क्षेत्रों में, जहां अधिक पैमाने पर अवैध खनन संबंधी मामले व्यप्त हैं, गौण खनिजों के लिए एमएसएस अपना सकती है ।
·अपतटीय खनन, शुरू करने के संबंध में मंत्रालय ने, अपतटीय ब्लॉकों के आवंटन के लिए विधायी ढांचा में संशोधन करने हेतु समिति गठित की है ।
सतत खनन पहलें
·वर्ष 2015-16 के दौरान टाटा स्टील के सुखविंदा क्रोमाइट खान और नोवामुंडी लौह अयस्क खान और एनएमडीसी के डोनीमलाई खानों में एसडीएफ पहले ही शुरू कर दिया गया है ।
खानों की स्टार रेटिंग
·सतत विकास अवसंरचना (एसडीएफ) के कार्यान्वयन के लिए शुरू किए गए प्रयासों और पहलों के लिए खनन पट्टेदारों को ‘स्टार रेटिंग’ देने का प्रस्ताव है । यह आशा की जाती है कि खानों की स्टार रेटिंग, सभी कानूनी प्रावधानों के अनुपालन तथा खनन द्वारा बेस्ट प्रैक्टिस को शामिल करने के स्वयं संचालित तंत्र को प्रोत्साहित करेगी । मंत्रालय वित्त वर्ष 2015-16 में खानों के निष्पादन के आधार पर 1 से 5 की स्टार रेटिंग की तुलना में खानों का मूल्यांकन शुरू करना चाहता है । मई के अंत तक स्टार रेटिंग टेम्पलेट को ऑनलाइन करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी तथा खनन पट्टाधारकों को जून, 2016 तक स्व-प्रमाणन के आधार पर स्टार रेटिंग के लिए मूल्यांकन टेम्पलेट को भरना अपेक्षित होगा ।
सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग
·खनिज प्रशासन की सरकारी क्षमता में सुधार करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी को शुरू किया गया । कुछ राज्य अर्थात ओडिसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आदि ने इस ओर कदम बढ़ाया है और पहले ही अपने खनिज प्रशासन क्षेत्रों में आईटी की शुरूआत कर ली है ।
·केंद्रीय मंत्रालय, खनन टेनमेंट प्रणाली (एमटीएस) की स्थापना करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो मुख्यत: संपूर्ण खनिज रियायत जीवन चक्र, जो क्षेत्रों की पहचान से शुरू होकर खानों के बंद होने पर समाप्त होती है, को स्वचालित करेगा; तथा इलेक्ट्रोनिक फाइलों को सही समय पर हस्तांतरित और डाटा के आदान-प्रदान के लिए विभिन्न स्टेकहोल्डरों को एक दूसरे से जोड़ेगा । यह ऑनलाइन इलेक्ट्रोनिक वेब्रिज और चेक पोस्टों की सहायता से खनिज रियायत व्यवस्था के प्रभावकारी प्रबंधन, अयस्क के परिवहन को सक्षम करेगा । कार्यान्वयन एजेंसी के चयन के लिए खनन टेनेमेंट सिस्टम निविदा को अंतिम रूप दिया जा रहा है ।
·रॉयल्टी दरों में संशोधन
· प्रमुख खनिजों (कोयला, लिग्नाइट और भूगर्त भरण रेत को छोड़कर) की रॉयल्टी और अनिवार्य किराए की दरों को 01 सितंबर, 2014 से संशोधित किया गया जिसे अधिसूचना सं.630(अ) और 631(अ), दिनांक 01 सितंबर, 2014 के तहत राजपत्र में अधिसूचित किया गया ।
· परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को गैर-कोयला खनिजों से प्राप्त होने वाले राजस्व में लगभग 40 प्रतिशत तक वृद्धि होने का अनुमान था ।
·31 खनिजों के ‘गौण खनिजों’ के रूप में अधिसूचना
· दिनांक 10.02.2015 की अधिसूचना के तहत 31 खनिजों को ‘गौण खनिजों’ के रूप में अधिसूचित किया गया। इस समावेशन के साथ, वर्तमान में 55 खनिजों को संबंधित राज्य सरकारों के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन गौण खनिजों के रूप में वर्गीकृत किया गया है ।
गौण खनिज नियम
·दीपक कुमार के मामले (2009 के विशेष अनुमति याचिका (ग) सं. 19628-19629 में ओए सं. 12-13, 2011) में उच्चतम न्यायालय के दिनांक 27.02.2012 के निर्णय के अनुसरण में, खनन पट्टा के क्षेत्र की परवाह किए बिना सभी गौण खनिजों के संबंध में, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत मंजूरी लेना अनिवार्य किया गया । खान मंत्रालय ने गौण खनिजों के खनन के लिए प्रारूप दिशानिर्देश तैयार किए है जिसे राज्य सरकारों को परिचालित किया गया । गौण खनिज रियायत प्रदान करने संबंधी पारदर्शी प्रणाली को कार्यान्वित करने के लिए 20क तहत विशेषकर राज्यों के मुख्यमंत्री को जारी, खान मंत्रालय के अर्द्धशासकीय पत्र सं. 16/119/2015-खान-VI/220, दिनांक 24.11.2015 के परिप्रेक्ष्य में मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों के प्रतियुत्तर में कार्यवाही की गई ।
·खान पट्टों का विस्तार
·एमएमडीआर संशोधन अधिनियम, 2015 की अधिनियम की धारा 8(क) की उप-धारा 5 और 6 कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार द्वारा मौजूदा पट्टों के विस्तार को राज्य सरकारों द्वारा तेज़ी से किए जाने की आवश्यकता है ।
·धारा 10क(2)(ग) के तहत रक्षित लंबित खनन पट्टा मामलों, जो 11.01.2017 को समाप्त हो जाएंगे,
·धारा 10क(2)(ग) के तहत रक्षित खनन पट्टा आवेदन (अधिनियम की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध खनिज अथवा को अन्य प्रमुख खनिजों के लिए जारी एलओआई में संबंधी मामलों में प्रदत्त पूर्व अनुमोदन) प्रदान करने की आवश्यकता है जो उक्त अधिनियम के शुरू होने की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर, पूर्व अनुमोदन अथवा आशय पत्र की शर्तों को पूरा करने के अध्यधीन होगा, जो 11.01.2017 तक है । मंत्रालय की जानकारी में आया है कि ऐसे कुछ आवेदन, खनन पट्टा के निष्पादन के लिए अभी तक लंबित है ।
·इन लंबित मामलों की समीक्षा और त्वरित निपटान करने के लिए 10 मई, 2016 को 12 प्रमुख खनिज प्रचूर राज्यों की बैठक आयोजित की गई जिसमें राज्य सरकारों और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से, ऐसे मामलों के व्यपगत होने की तारीख से पहले इन्हें निपटाने को कहा गया ।
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