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रविवार, 19 अक्टूबर 2014
भारत में छपाई की शुरुआत कैसे हुई?
छपाई एक कलाकृति है। यह प्रारंभिक चित्र के समान प्रकार में लगभग विविधता की अनुमति देती है। भारत में छपाई का इतिहास 1556 से शुरू होता है। इस युग में गोवा में पुर्तगालियों ने छपाई की मशीन लगाई। अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में देखने पर यह ज्ञात होता है कि कला की यह विधा ग्यूटेर्नबर्ग की बाइबल की एक शताब्दी बाद भारत में आई। प्रसिद्ध कालाकार थोमस डैनियल (1749-1840) तथा विलियम डैनियल (1769-1837) ने ओरियन्टल सिनरी शीर्षक से कलमकारी की 6 श्रृंखलाओं को प्रस्तुत किया। 1786 में डैनियल ने ट्वेल्व व्यूज ऑफ कलकत्ता शीर्षक वाले एक रंग की कालमकारी का एलबम प्रकाशित किया। यह पहला मौका था जब भारत में लिथोग्राफी एक ही कागज पर छपाई की संभावना की तलाश की गई। 1822 में फ्रांसीसी कलाकार डी. सैविगनैक ने एक ही कागज पर लिथोग्राफी रूप में छपाई की।
1870 के दशक में कैलेन्डर, पुस्तक तथा अन्य प्रकाशनों के लिए छपी हुई तस्वीरों की मांग बढ़ी। इसके परिणाम स्वरूप एक ही कागज परछपाई की लोकप्रियता बढ़ी। आगे पूरे भारत में अनेक आर्ट स्टूडियो तथा छापेखाने तैयार हुए। कोलकाता के शोवा बाजार और चितपुर बट-ताला को 19वीं शताब्दी के प्रमुख छपाई केंद्र के रूप में देखा गया। मुंशी नवल किशोर ने 1858 में लखनऊ में नवल किशोर प्रेस तथा बुक डिपो की स्थापना की। इसे एशिया में सबसे पुराने छपाई और प्रकशन प्रतिष्ठान के रूप में मान्यता मिली और यहीं स्टोनब्लॉक के साथ अखबार और किताबों की छपाई होने लगी। इसके अतिरिक्त 19वीं शताब्दी के अंत में राजा रवि वर्मा ने मुंबई केघाटकोपर में लिथोग्राफी प्रेस स्थापित किया। रवि वर्मा के प्रेस को प्रसिद्धि मिली और उनके अनेक धार्मिक और धर्म निस्पेक्ष चित्रों की कॉपियों तैयार हुई और आम जनता के लिए तैल चित्र रूप में इनकी छपाई हुई।
20वीं शताब्दी के दूसरे दशक में अबनींद्रनाथ टैगोर, गगनेंद्रनाथ टैगोर तथा समरेंद्रनाथ टैगोर द्वारा छपाई को सृजनात्मक माध्यम का रूप दिया गया। इन तीनों ने सामूहिक रूप से बिचित्र क्लब की स्थापना की ताकि कटी हुई लकड़ी तथा कटे हुए पत्थरों से चित्रकारी और छपाई हो सके। इस क्लब के एक अन्य प्रमुख व्यक्ति थे मुकुलचंद्र डे,जिन्हें 1916 में रवींद्रनाथ टैगोर ने जेम्स ब्लाइंडिंग स्लोन से नक्काशी तकनीक सीखने के लिए अमेरिका भेजा। 1921 में शांति निकेतन में नंदलाल बोस ने कला भवन की स्थापना की। इसके साथ भारत में छपाई कला लोकप्रिय हुई। 1924 में चीन और जापान की यात्रा से वह चीनी घिसाई तथा जापानी रंग वाली लकड़ी से छपाई का माध्यम लेकर आए। इस कारण कला भवन के विद्यार्थियों ने सुदूर पूर्व की मौलिक छपाई के साथ सीधा संपर्क स्थापित किया। 1930 से 40 के बीच बिनोदबिहारी मुखर्जी तथा रामकिंकर बैज ने इस माध्यम का उपयोग किया। चित्तप्रसाद तथा सोमनाथ होर ने वामपंथी विचारों, सुधारवादी विषयों तथा 1943 केबंगाल अकाल और तेभाग आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक-आर्थिक आलोचनाओं का प्रसार लाइनोकट तथा वुडकट के इस्तेमाल से किया।
सोमनाथ होर 1979 में शांति निकेतन के ग्राफिक आर्ट विभाग के अध्यक्ष बने। सनत कार, लालू प्रसाद शॉ, पुलक दत्त, निर्मलेंदू दास, अजित सियाल और सलिल साहनी जैसे विशेषज्ञों ने शांति निकेतन के इस विभाग को बाद के वर्षों में समृद्ध बनाया। इसी तरह दिल्ली में जगमोहन चोपड़ा, (ग्रुप 8 के संस्थापक)जय स्वामीनाथन अनुपम सुध, परमजीत सिंह, मंजीत बाबा तथा कृष्ण आहूजाने योगदान दिया। 1955 में कमलकृष्ण तथादेवयानी कृष्ण द्वारा छापेखाने लगाने से दिल्ली में नई ऊर्जाका संचार हुआ और बहुरंगी इंटेग्लियों तथा कॉलेग्राफी की तकनीक आई। विलियम हेटर (एटीलियर 17 के संस्थापक) तथा कृष्णा रेड्डी के मार्ग निर्देशन में अनेक युवा बहुरंगी इंटेग्लियों तकनीक सीखने पेरिस गए।
के. जी. सुब्रह्मण्यम ने अपनी कला में लिथोग्राफी, कलमकारी और सेरीग्राफी को शामिल किया। महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय बड़ोदरा के शिक्षक के रूप में उन्होंने बच्चों की पुस्तकों की व्याख्या में इन विधाओं का उपयोग किया। इस क्षेत्र में एम बी जोगलेकर,ज्योतिभट्टजयराम पटेल, शांति दबे, वी. आर. पटेल तथा पीडीधूमल जैसे प्रमुख कलाकारों ने योगदान दिया। इटली तथा न्यूयॉर्क के प्रैट ग्राफिक सेंटर में अध्ययन के बाद 1960 में ज्योतिभट्ट बडोदरा के कलासंकाय में शामिल हुए और विजुअल अभिव्यक्ति के क्षेत्र में युवाओं को प्रोत्साहित किया।
1970 से लक्ष्मा गौड़, देवराज डाकोजीतथा डीएलएन रेड्डी ने हैदराबाद, आरएम पलनियप्पन तथा आरपी भास्करण ने चेन्नई में तथा चित्त प्रसाद भट्टाचार्य अतिन बसाक में तथा अमिताभ बनर्जी ने कोलकाता में इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण छाप छोड़े। इंटैग्लियोतकनीक ने चित्रकारों तथा शिल्पकारों को प्रभावित किया। इनमें दत्तात्रेय आपटे, नैना दलाल, जयंत पारीख, विजय बगोडी, वाल्टर डिशूजा प्रमुख हैं।
अहमादाबद में रॉबर्ट राउसनबर्ग तथा नई दिल्ली के एनजीएमए की छपाई संग्रह से पूरी दुनिया में अपनाए गए विभिन्न व्यवहारों की छाप दिखाई दी। 1990 के दशक में भारतीय प्रिंट मेकर्स गिल्ड की स्थापना के साथ आशा की नई किरण जगी। गिल्ड के सदस्यों में आनंदमय बनर्जी, दत्तात्रेय आप्टे,जयंतगजेरा, के. आर. सुबन्ना, बुलाभट्टाचार्य, कविता नायर, कंचन चंदर, मोती झरोटिया, सुशांत गुहा, सुखविंदर सिंह, सुब्बाघोस तथा शुक्लसावंत शामिल हैं।
छपाई के क्षेत्र में डिजीटल टेक्नोलॉजी तथा मेकेनाईज्ड सॉफ्वेटर के आगमन से क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। प्रायोगिक तौर पर इसमें विजुअल शब्दावली आई जिसे ज्योतिभट्ट, नटराज शर्मा, रविकाशी, गुलमोहम्मद शेख, रणवीर कलेका, वैजू परथन, पुष्पमाला एन, अकबर पद्माजी, रामेश्वर ब्रुटा तथा गोगी सरोजपाल ने तैयार किया।
गुरुवार, 18 सितंबर 2014
क्या है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 126
शुक्रवार, 8 अगस्त 2014
1 करोड़ के गोल्डन शर्ट की कहानी
हर किसी की चाहत करोड़पति बनने की होती है। कोई एक करोड़ में घर या फ्लैट खरीदता है तो टाटा या अंबानी परिवार का वारिस 2 करोड़ रुपये की महंगी गाड़ी में घूमता है। मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले हर किसी का सपना किसी भी तरह से करोड़पति बनने की होती है। लेकिन ज़ी न्यूज़ टीवी चैनल के जरिए एक ऐसे शख्स के बारे में जानने और देखने का मौका मिला, जो एक करोड़ रुपये की शर्ट पहनता है। उस इंसान के बारे में जानकारी देने से पहले आपको बता दूं कि उस 1 करोड़ के शर्ट की असलियत क्या है। आखिर ऐसा क्या है उस शर्ट में कि उसकी कीमत 1 करोड़ रुपये है। दरअसल एक करोड़ की कीमत वाला शर्ट सौ फीसदी सोने का बना हुआ है। इस शर्ट को बनाने में कुल 4 किलो सोना खर्च किया गया है। इसे तैयार करने का जिम्मा मुंबई के एक मशहूर ज्वैलरी के शो रुम को दिया गया था। इस शो रुम के 18 कर्मचारियों ने इसे तकरीबन 1 महीने की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया। एक करोड़ की शर्ट पहनने वाले व्यक्ति का नाम पंकज पारिख है। पंकज महाराष्ट्र के नासिक जिले के रहने वाले है और इनका लंबा चौड़ा व्यवसाय है। इनके व्यवसाय का दायरे की शुरूआत रेडिमेड कपड़े के शो रुम से शुरू होती है और फिर एक सहकारी बैंक में भी इनकी अहम भूमिका है। इसके अलावा यह एक स्कूल के चेयरमैन है और नगर परिषद के भी चेयरमैन है। इन सबके अलावा फिल्मी कलाकारों बप्पी लहरी और हनी सिंह की तरह सोने के गहने पहनने का बहुत शौक है। जिस तरह से बॉलीवुड में बप्पी लाहिड़ी को लोग गोल्डनमैन के नाम से जानते है। उसी तरह से पंकज पारिख भी अपने इलाके में गोल्डमैन के रुप में मशहूर है। पंकज 45 साल के है और अपने 45वें जन्मदिन पर खासतौर से सोने की शर्ट बनवाई है। पंकज सोने की शर्ट पहनने के बाद सबसे पहले सिद्धिविनायक के दर्शन करने मुंबई पहुंचे। इनके जानकारों का कहना है कि पंकज को बचपन से ही सोने के आभूषण पहनने का बहुत शौक है। अपनी शादी में भी पंकज पारिख ने अपनी पत्नी से ज्यादा सोने के गहने खुद पहने थे। सोने की प्रति बचपन से जारी लगाव अब दीवानगी का रुप ले चुकी है। पहले सोने की अंगूठी, फिर सोने के कंगन, उसके बाद सोने के हार और फिर न जाने बदलते समय के साथ पंकज अपनी हर पसंदीदा चीज को सोने के रुप में ढालने लगे। यह सिलसिला काफी लंबे समय से जारी है और अब पंकज ने सोने की शर्ट पहनना शुरू कर दिया है। संभावना यह भी जताई जा रही है कि अगले कुछ सालों में पंकज सोने की शर्ट के साथ साथ सोने के पैंट पहने हुए भी नज़र आ सकते हैं।
बुधवार, 30 जुलाई 2014
पासपोर्ट जारी करने में देरी से बचने के उपाय
पासपोर्ट के लिए आवदेन करने के बाद महीनों चक्कर काटने का सिलसिला अब जल्द ही खत्म हो जाएगा। सरकार ने इस दिशा में कई पहल किए है। इसकी बदौलत अब पासपोर्ट जारी होने की राह में आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए कारगर कदम उठाए जा रहे है। इसके तहत उन तमाम कारणों का पता लगाया जाएगा,जिसकी वजह से पासपोर्ट जारी करने में ज्यादा देरी होती है। हलांकि पहले की तुलना में हाल के वर्षों में पासपोर्ट जारी करने में लगने वाले समय में कमी आई है। आमलोगों को पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया कई बार निम्नलिखित कारणों से लम्बी हो जाती है:-
1. पुलिस से सत्यापन रिपोर्ट निर्धारित 21 दिन से ज्यादा अवधि में प्राप्त होना
2. अपूर्ण पुलिस रिपोर्ट मिलना
3. एक वर्ष में पासपोर्ट की मांग 15 प्रतिशत की दर से बढ़ना और
4. केन्द्रीय पासपोर्ट सेवाओं की बढ़ती हुई मांग से निपटने के लिए केन्द्रीय पासपोर्ट संगठन में मानव श्रम की कमी।
सरकार ने पासपोर्ट जारी करने में होने वाली देरी को कम करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। चूंकि पासपोर्ट जारी करने के लिए आवेदनकर्ता के बारे में व्यक्तिगत जानकारी का पुलिस सत्यापान काफी मायने रखता है, पासपोर्ट कार्यालय पुलिस सत्यापन रिपोर्ट में तेजी लाने के लिए पुलिस के साथ संपर्क बनाए रखता है। पासपोर्ट कार्यालय पासपोर्टों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए समय-समय पर सप्ताह के अंत में पासपोर्ट मेलों का आयोजन करता है। जरूरत पड़ने पर पासपोर्ट अदालतें भी लगाई जाती हैं। पीएसके और पासपोर्ट कार्यालयों का निरीक्षण भी समय-समय पर किया जाता है ताकि सुपुर्दगी में सुधार लाया जा सके। कर्मचारी चयन आयोग के जरिए भर्ती करके वर्तमान रिक्त स्थानों को भरने के लिए भी कदम उठाए गए हैं। सरकार ने हाल ही में योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मंगाए हैं ताकि प्रतिनियुक्ति पर पासपोर्ट अधिकारी, उप-पासपोर्ट अधिकारी और सहायक पासपोर्ट अधिकारी के स्तर पर खाली पदों को भरा जा सके। सरकार ने पासपोर्ट कार्यालयों में 450 डाटा एंट्री ऑपरेटरों को लगाया है।
विदेश मंत्रालय और समुद्रपारीय भारतीय मामलों के राज्य मंत्री जनरल (सेवानिवृत) डॉ वी. के. सिंह ने राज्यसभा में यह जानकारी दी।
बुधवार, 23 जुलाई 2014
साइबर क्राइम बना पुलिस के लिए सिरदर्द
सोमवार, 30 जून 2014
सीढ़ीदार कुंआ, रानी-की-वाव विश्व धरोहर सूची में शामिल
हाल में अपने काम के सिलसिले में, मैं गुजरात दौरे पर था। मेरे पास अहमदाबाद में कुछ समय बचा था जिसे मैं किसी अच्छे काम में इस्तेमाल करना चाहता था। जब मेरे सहयोगी जगदीश भाई ने सुझाव दिया कि मैं पाटण में रानी-की-वाव और मोढेरा का सूर्य मंदिर एक दिन में देखकर आ सकता हूं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने गुजरात के इस भव्य सीढ़ीदार कुंए या बावड़ी के बारे में पढ़ रखा था और एनडीटीवी की भारत के 7 आश्चर्य कार्यक्रम श्रृंखला में इस पर एक लघु फिल्म भी देखी थी। गूगल सर्च के दौरान मुझे पता लगा कि भारत सरकार ने यूनेस्को विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में शामिल करने के लिए रानी-की-वाव को भेजा हुआ है। गुजरात पर्यटन के ‘खुशबू गुजरात की’ प्रचार में अमिताभ बच्चन ने टेलीविजन पर रानी-की-वाव का काफी प्रसार किया है।
बढि़या सड़क के रास्ते कलोल, ऊंझा और मेहसाणा होते हुए दो घंटे में हम भीड़भाड़ वाले छोटे से कस्बे पाटण पहुंच गए जो किसी वक्त गुजरात की राजधानी हुआ करता था। सूरज लुक्का-छिपी खेल रहा था, हम एक विशाल मैदान पर पहुंच गए जहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का एक धुंधला सा बोर्ड दिखाई दे रहा था जिसमें रानी के वाव के बारे में जानकारी थी। लेकिन हमें खुले बड़े-बड़े घास के मैदानों के सिवाय कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, बीच- बीच में कहीं-कहीं पर छायादार वृक्ष थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि उत्कृष्ट कृति जमीन के नीचे थी।
जमीन के नीचे स्थित भव्य रानी-की-वाव करीब 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 27 मीटर गहरी है। मूल रुप से यह सात मंजिला था जिसमें से पांच को संरक्षित करके रखा गया है। जैसे-जैसे हम सीढि़यों से नीचे उतर रहे थे, हम खुद को एक अलग दुनिया में महसूस कर रहे थे। अगले एक घंटे हमें सुख की जो अनुभूति हुई उसका वर्णन करना मुश्किल है।
रानी-की-वाव वास्तुशिल्प का अद्भुत नमूना है और इसकी उभरी हुई नक्काशी मारू-गुर्जर शैली को दर्शाती है। रानी-की-वाव की दीवारों और खंभों पर अधिकतर वास्तुकला भगवान विष्णु, दशावतार को समर्पित हैं। यहां वराह, नरसिंह, राम और कल्की की प्रतिमाएं अनायास की आपको अपनी तरफ खींच लेती हैं। महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की प्रतिमा विशेष आकर्षण का केन्द्र है। अप्सराओं का दिव्य सौन्दर्य जिसमें सोलह श्रृंगार को दिखाया गया है, एक अन्य आकर्षण है। पानी के नजदीक शेषशैय्या विष्णु का अवतार नक्काशी के साथ देखने को मिलता है जिसमें भगवान विष्णु हजारों मुंह वाले शेषनाग के सहारे बैठे हैं।
वर्ष 2001 तक यहां आने वाले लोग सीढ़ीदार कुंए के उस आखिरी हिस्से तक जा सकते थे जहां पानी था। लेकिन भुज के भूकंप के दौरान, यह ढांचा कमजोर हो गया और पुरातत्व सर्वेक्षण ने एक स्थान के बाद प्रवेश निषेध कर दिया। लेकिन इसके बावजूद आप पत्थरों पर लय, सौन्दर्य और भाव के साथ उकेरी गई बारीक नक्काशी को देख सकते हैं।
इस स्मारक की गूढ़ता हमें उस पवित्रता की याद दिलाती है जो हमारे पूर्वजों की पानी के साथ जुड़ी हुई थी। गुजरात की वाव न सिर्फ पानी लेने और एक दूसरे से मिलने का जरिया थी बल्कि इसका काफी धार्मिक महत्व था। इसे मूल रुप से साधारण कुंडों के रुप में तैयार किया गया था लेकिन कई वर्ष बीतने पर इसने, संभवत: पानी की पवित्रता की प्राचीन अवधारणा को स्पष्ट कर दिया। जैसाकि इसके नाम रानी-की-वाव से स्पष्ट है, इसे भारत में सीढ़ीदार कुंओं की रानी माना जाता है।
हमारे यहां अनगिनत ऐसे स्मारक हैं जो राजा ने अपनी रानियों की याद में बनवाए हैं, लेकिन रानी-की-वाव कुछ अलग है। यह माना जाता है कि रानी उदयमति ने अपने पति भीमदेव प्रथम की याद में इसे बनवाया था जो पाटण के सोलंकी राजवंश के संस्थापक थे। इसका निर्माण ईसा के बाद 1063 में शुरू हुआ था। भीमदेव प्रथम की याद में उदयमति के स्मारक बनवाने का जिक्र ‘ प्रबंध चिंतामणि’ में है जिसकी रचना 1304 में मेरंग सूरी ने की थी। वाव में बाद में सरस्वती नदी से बाढ़ का पानी का भर गया था और 1960 तक इसमें गाद भरी हुई थी जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे दोबारा खोज निकाला। यह अनुमान लगाया गया है कि वाव में करीब 800 नक्काशीदार प्रतिमाएं थीं जिसमें से करीब 500 पुरानी स्थिति में ही मिली हैं।
रानी-की-वाव बहुत अच्छे तरीके से संरक्षित स्मारक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस शानदार कार्य के लिए बधाई का पात्र है। संरक्षण के प्रयास जारी रखने के अलावा, पुरातत्व सर्वेक्षण ने स्मारक को संरक्षित करने के साथ-साथ स्कॉटलैंड की मदद से इसकी डिजिटल मैपिंग कर दी है। विस्तृत 3डी डिजिटल सर्वेक्षण स्कॉटलैंड की टेन इनीशियेटिव द्वारा तैयार किया गया है जिससे इस धरोहर स्मारक को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा और इसे संरक्षित किया जा सकेगा।
रानी-की-वाव हमेशा से गुजरात का गौरव रहा है। वर्ष 2012 में वडौदरा सर्कल के पूर्व पुरातत्व अधीक्षक के. सी. नौरीयाल के नेतृत्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक दल ने यूनेस्को की मंजूरी के लिए सीढ़ीदार कुंए की एक फाइल तैयार की थी। चीन की सिंगुआ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जांग जी के नेतृत्व में यूनेस्को के वर्ल्ड हैरिटेज सेंटर के सलाहकार दल ने पाटण का दौरा किया और स्मारक का विस्तृत अध्ययन किया। इस दल ने स्थानीय लोगों से बातचीत कर यह जानकारी हासिल की कि उन्होंने इस सीढ़ीदार कुंए का कैसे पता लगाया और उनके लिए इसका क्या महत्व है।
आखिरकार 22 जून, 2014 को यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज कमेटी ने दोहा में अपने 38वें सत्र में ‘रानी-की-वाव’ को विश्व धरोहर स्मारक घोषित कर दिया। यूनेस्को ने माना कि ‘’सीढ़ीदार कुंआ’’ भारतीय उप महाद्वीप में भूमिगत जल स्रोत के उपयोग, जल प्रबंधन प्रणाली और स्टोरेज का विशिष्ट रुप है और इसका निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सहस्त्राब्दि में किया गया था। उन्होंने देखा कि गाद में में दबा हुआ कला और स्थापत्य कला का विशालकाय बहुमंजिला ढांचा किस प्रकार बाहर आ गया। रानी-की-वाव का सीढ़ीदार निर्माण कारीगरी का प्रभावशाली नमूना है।
यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में रानी-की-वाव के शामिल होने पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया ‘’यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है। जब आप अगली बार गुजरात जाएं तो रानी-की-वाव अवश्य जाइएगा जो हमारी कला और संस्कृति का अनोखा प्रतीक है।‘’
निश्चित रुप से जब आप रानी-की-वाव से बाहर निकलते हैं, तो आप कुंओं के बारे में पूरी नई जानकारी के साथ लौटते हैं। ये कुंए अंधेरे वाले, गहरे और रहस्यमय नहीं हैं; गुजरात में ये उत्कृष्ट स्मारक हैं। रानी-की-वाव के मामले में यह 11वीं शताब्दी के सोलंकी कलाकारों की कला का जीता-जागता प्रमाण है।
पाटण कैसे पहुंचा जा सकता है
मेहसाणा के रास्ते पाटण अहमदाबाद से करीब 125 किलोमीटर दूर है। अंतर-नगरीय बसों से करीब 3.5 घंटे लगते हैं जबकि निजी टैक्सी से ढाई घंटे से भी कम समय में पहुंचा जा सकता है। जीपें भी उपलब्ध हैं लेकिन वे कम आरामदायक हैं। नजदीकी रेल संपर्क मेहसाणा है, जहां से आपको सड़क मार्ग से जाना पड़ता है।
अहमदाबाद से एक दिन में पाटण आया-जाया सकता है। इसके साथ ही 11वीं शताब्दी में बनाए गए प्रसिद्ध मोढेरा सूर्य मंदिर को भी देखा जा सकता है।
रविवार, 8 जून 2014
कैसे लगेगी सड़क हादसों पर लगाम ?
सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि देश में जितने लोग आतंवादी गतिविधियों की वजह से नहीं मारे जाते है, उससे कहीं ज्यादा लोग देश के अलग अलग हिस्सों में होने वाले सड़क हादसों में अपनी जान गंवा देते हैं। हाल ही में दिल्ली की सड़कों पर केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की सड़क हादसे में मौत हो गई। भारत में सड़क हादसे के पीछे की वजह चाहे जो भी हो। लेकिन सड़क हादसों के सबसे ज्यादा मामले देश के महानगरों में ही देखने को मिलते हैं। कहा जाता है कि महानगरों में ज्यादातर मध्यमवर्गीय लोगों की आबादी होती है और वह शिक्षित और समझदार होते हैं। लेकिन इसके बाद भी कोई सड़क और यातायात के नियमों की परवाह नहीं करता है। ट्रैफिक पुलिस, सड़क यातायात के नियम और कानून के होने के बाद भी किसी को इस बात की फिक्र नहीं रहती है कि सड़क पर थोड़ी सी जल्दबाजी खुद उनके अलावा कई और लोगों के लिए भी जानलेवा हो सकती है। स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार अभियान चलाए गए हैं। लेकिन कुछ समय बाद लोग सब कुछ भूल जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2011-2020 को सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई दशक के रूप में अपनाया है और सड़क दुर्घटनाओं से वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों की पहचान करने के साथ-साथ इस अवधि के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। अंतर्राष्ट्रीय सड़क संघ के अध्यक्ष श्री के. के. कपिल का कहना है कि विश्व में सड़क दुर्घटनाओं में प्रत्येक वर्ष 1.2 मिलियन व्यक्ति मारे जाते हैं और 50 मिलियन प्रभावित होते हैं। इस प्रकार इन दुर्घटनाओं में 1.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है तो वर्ष 2030 तक विश्व में सड़क दुर्घटनाएं लोगों की मौत का पांचवां बड़ा कारण बन जायेगी ।
शहरीकरण और सड़क यातायात बढ़ने के कारण सड़कों पर सुरक्षा के मुद्दे और इनके समाधानों पर गंभीरता से विचार हो रहा है। दुनिया में भारत में सबसे अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर रहे हैं और इस कारण यह मुद्दा और भी गंभीर बन गया है। वर्ष 2011 में 4.97 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.42 लाख से अधिक लोगों की जानें गई। यह संख्या भारत में प्रति मिनट एक सड़क दुर्घटना और प्रत्येक चार मिनट में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौत का आंकड़ा दर्शाती है।
वर्ष 2012 में इन आंकड़ों में कुछ कमी आई है जिसमें 4.90 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.38 लाख लोगों की जानें गईं। फिर भी यह संख्या विचलित करने वाली है। आकस्मिक कारक के रूप में सड़क दुर्घटनाओं के विश्लेषण से पता चलता है कि कुल सड़क दुर्घटनाओं में 78.7 प्रतिशत (3,85,934 दुर्घटनाएं) चालकों की गलती से होती हैं। इस गलती के पीछे शराब/मादक पदार्थों का इस्तेमाल , वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना, वाहनों में ओवरलोडिंग/अधिक भीड़ होना, वैध गति से अधिक तेज़ गाड़ी चलाना और थकान आदि होना है। चालकों की गलती को लगभग 80 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाओं का जिम्मेदार पाया गया है इसलिए उन्हें जागरूक बनाना और यह महसूस कराना आवश्यक है कि जब वे कानून/उपायों का उल्लंघन करते हैं तो वे सड़कों पर हत्यारे बन जाते हैं।
सड़क सुरक्षा को राजनीतिक स्तर पर प्राथमिकता दी जा रही है। तदर्थ सड़क सुरक्षा गतिविधियों को सतत कार्यक्रमों में बदलने पर ध्यान दिया जा रहा है। राज्य क्षमता के अनुसार दीर्घकालीन और अंतरिम लक्ष्यों, नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करते समय वर्तमान सड़क सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के क्रमबद्ध मूल्यांकन की सिफारिश की गई है। इसके तहत उच्च स्तर पर सरकारी एजेंसियों जैसे परिवहन, पुलिस, स्वास्थ्य, न्याय और शिक्षा के वरिष्ठ प्रबंधन को जो संभवत: अभी तक सक्रिय रूप से सम्मिलित नहीं हुआ है, को बहुस्तरीय रणनीति के अंतर्गत शामिल करना है। इसके अलावा सभी भागीदारों को सड़क सुरक्षा में अपना योगदान देना होगा।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने देश में सड़क दुर्घटनाओं को न्यूनतम करने के लिए विभिन्न उपाय किये हैं। सरकार ने एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति भी मंजूर की है जिसके तहत विभिन्न उपायों में जागरूकता बढ़ाना, सड़क सुरक्षा सूचना पर आंकड़ें एकत्रित करना, सड़क सुरक्षा की बुनियादी संरचना के अंतर्गत कुशल परिवहन अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करना तथा सुरक्षा कानूनों को लागू करना शामिल हैं। सड़क सुरक्षा के मामलों में नीतिगत निर्णय लेने के लिए सरकार ने शीर्ष संस्था के रूप में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद का गठन किया है। मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से राज्य तथा जिला स्तर पर सड़क सुरक्षा परिषद और समितियों की स्थापना करने का अनुरोध भी किया है।
मंत्रालय ने सड़क सुरक्षा पर चार स्तरों-शिक्षा, प्रवर्तन, इंजीनियरिंग (सड़क और वाहनों) और आपात देखभाल के स्तर पर सुदीर्घ नीति अपनाई है। परियोजना चरण पर ही सड़क सुरक्षा को सड़क डिज़ाइन का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है। विभिन्न चुनिंदा राष्ट्रीय राजमार्गों/एक्सप्रेस मार्गों पर सुरक्षा लेखा/आंकड़ें भी एकत्रित किये जा रहे हैं। वाहन चालकों को प्रशिक्षण देने के लिए संस्थान स्थापित किए गए हैं। वाहन चलाते समय सुरक्षा उपायों जैसे हेलमेट, सीट बैल्ट, पॉवर स्टेयरिंग, रियर व्यू मिरर और सड़क सुरक्षा जागरूकता से संबंधित अभियान पर जोर दिया जा रहा है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नवीन उपायों के तहत सड़क सुरक्षा सप्ताह, दूरदर्शन और रेडियो नेटवर्क से प्रचार, सड़क सुरक्षा पर सामग्री का वितरण/प्रकाशन, समाचार पत्रों में विज्ञापन तथा सड़क सुरक्षा पर सेमिनार, सम्मेलन और कार्यशालाओं का आयोजन कर रहा है।
इसके अलावा पाठ्यपुस्तकों में सड़क सुरक्षा पर एक अध्याय शामिल किया गया है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड-सीबीएसई ने कक्षा छह से कक्षा बारह के पाठ्यक्रम में ऐसे लेख शामिल किए हैं। राज्य सरकारों को राज्य शिक्षा बोर्ड के स्कूलों के पाठ्यक्रम में सड़क सुरक्षा से संबंधित लेख शामिल करने की सलाह भी दी गई है।
एक प्रायोगिक कार्यक्रम के तहत खंड में राष्ट्रीय राजमार्ग– 8 पर गुड़गांव-जयपुर सड़क दुर्घटना में घायलों को 48 घंटे तक 30 हजार रूपये तक का नि:शुल्क इलाज करवाने की योजना लागू की गई है। 13 राज्यों में दुर्घटना के सर्वाधिक संभावित 25 स्थलों- जहां 90 प्रतिशत दुर्घटनाएं होती रही है- की पहचान की गई है। इन स्थानों पर दुर्घटना से बचने के उपायों को लागू किया गया है। आपात देखभाल पर कार्य समिति की अनुशंसाओं के आधार पर राष्ट्रीय एंबुलेंस कोर्ड तैयार किया गया है। इस कोर्ड के तहत देश में एंबुलेंस के चालन के लिए न्यूनतम मानक संबंधी दिशा - निर्देश तय किए गए हैं। मालवाहक वाहनों में उनकी परिधि से बाहर तक सामान लादने को गैर कानूनी घोषित किया गया है।
सड़क सुरक्षा की नीति को सुदीर्घ आधार पर लागू करने के लिए कई सरकारी विभागों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन विभागों की जवाबदेही और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। सड़क सुरक्षा पर सरकारी एजेंसियों में बेहतर तालमेल स्थापित करने, संबंधित राज्य में सड़क सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तथा सड़क दुर्घटनाओं में हताहतों की संख्या को न्यूनतम करने के लिए तकनीकी उपायों को लागू करने के लिए सभी राज्य सरकारों से मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति गठित करने को कहा गया है। राज्यों से अपनी सड़कों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने की कार्यनीति तैयार करने को भी कहा गया है। राज्यों से सड़क सुरक्षा की वार्षिक कार्यनीति के तहत पाँच वर्ष के महत्वांकाक्षी और हासिल करने योग्य लक्ष्य तय करने को भी कहा गया है। इसके अंतर्गत मापन योग्य परिणाम, विकास के लिए पर्याप्त राशि का निर्धारण, प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन योग्य कार्यनीति तैयार करनी होगी। सभी राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों से उनके क्षेत्र में एक एजेंसी की पहचान करने और सड़क सुरक्षा कोष का निर्धारण करने तथा इस राशि का 50 प्रतिशत परिवहन नियमों की अवहेलना के दंड स्वरूप एकत्र करने को कहा गया है।
सड़क दुर्घटनाओं में हताहतों की संख्या को न्यूनतम करने की संयुक्त राष्ट्र की योजना– दशक 2011 से लागू हो गई । तीन वर्ष बीत जाने पर भी इस सिलसिले में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। भारत में सड़क सुरक्षा के लिए बजट को बढ़ाया जाना है। सभी राज्यों में सड़क सुरक्षा योजना/तंत्र को उपयुक्त तरीके से स्थापित किया जाना है। इसमें सड़क सुरक्षा से संबंधित नियमों का सख्ती से पाल कराना और अवहेलना करने वालों को दंडित किया जाना भी सुनिश्चित करना है। सड़क सुरक्षा के लिए सांसदों और व्यवसायी का योगदान प्राप्त करने के लिए एमपीएलएडी और सीएसआर कोष में से कुछ राशि सड़क सुरक्षा कोष में दी जा सकती है। सभी भागीदारों के सामूहिक प्रयासों से सड़कों को सुरक्षित बनाने और दुर्घटना से पीडि़तों की संख्या को न्यूनतम कर संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
रविवार, 25 मई 2014
बृहदेश्वर मंदिर- दक्षिण भारत की वास्तुकला की एक भव्य मिसाल
तमिलनाडु के तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट निर्मित है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। बृहदेश्वर मंदिर अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है।
राजाराज चोल - I इस मंदिर के प्रवर्तक थे। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्ठ उदाहरण है। चोल वंश के शासन के समय की वास्तुकला की यह एक श्रेष्ठतम उपलब्धि है। राजाराज चोल- I के शासनकाल में यानि 1010 एडी में यह मंदिर पूरी तरह तैयार हुआ और वर्ष 2010 में इसके निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे हो गए हैं।
अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए यह मंदिर जाना जाता है। 1,30,000 टन ग्रेनाइट से इसका निर्माण किया गया। ग्रेनाइट इस इलाके के आसपास नहीं पाया जाता और यह बात स्पष्ट नहीं है कि इतनी भारी मात्रा में ग्रेनाइट कहां से लाया गया। ग्रेनाइट की खदान मंदिर के सौ किलोमीटर की दूरी के क्षेत्र में नहीं है; यह भी हैरानी की बात है कि ग्रेनाइट पर नक्काशी करना बहुत कठिन है। लेकिन फिर भी चोल राजाओं ने ग्रेनाइट पत्थर पर बारीक नक्काशी का कार्य खूबसूरती के साथ करवाया।
तंजावुर का “पेरिया कोविल” (बड़ा मंदिर) विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। संभवतः इनकी नींव 16वीं शताब्दी में रखी गई। मंदिर की ऊंचाई 216 फुट (66 मी.) है और संभवत: यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। मंदिर का कुंभम् (कलश) जोकि सबसे ऊपर स्थापित है केवल एक पत्थर को तराश कर बनाया गया है और इसका वज़न 80 टन का है। केवल एक पत्थर से तराशी गई नंदी सांड की मूर्ति प्रवेश द्वार के पास स्थित है जो कि 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है।
रिजर्व बैंक ने 01 अप्रैल 1954 को एक हजार रुपये का नोट जारी किया था। जिस पर बृहदेश्वर मंदिर की भव्य तस्वीर है। संग्राहकों में यह नोट लोकप्रिय हुआ।
इस मंदिर के एक हजार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित मिलेनियम उत्सव के दौरान एक हजार रुपये का स्मारक सिक्का भारत सरकार ने जारी किया। 35 ग्राम वज़न का यह सिक्का 80 प्रतिशत चाँदी और 20 प्रतिशत तांबे से बना है। सिक्के की एक ओर सिंह स्तंभ के चित्र के साथ हिंदी में ‘सत्यमेव जयते’ खुदा हुआ है। देश का नाम तथा धनराशि हिंदी तथा अंग्रेजी में लिखी गई है।
सिक्के की दूसरी ओर राजाराज चोल- I की तस्वीर खुदी हुई है जिसमें वे हाथ जोड़कर मंदिर में खड़े हुए हैं। मंदिर की स्थापना के 1000 वर्ष हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखा हुआ है।
बृहदेश्वर मंदिर पेरूवुदईयार कोविल, तंजई पेरिया कोविल, राजाराजेश्वरम् तथा राजाराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह एक हिंदू मंदिर है। हर महीने जब भी सताभिषम का सितारा बुलंदी पर हो, तो मंदिर में उत्सव मनाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि राजाराज के जन्म के समय यही सितारा अपनी बुलंदी पर था। एक दूसरा उत्सव कार्तिक के महीने में मनाया जाता है जिसका नाम है कृत्तिका। एक नौ दिवसीय उत्सव वैशाख (मई) महीने में मनाया जाता है और इस दौरान राजा राजेश्वर के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया जाता है।
मंदिर के गर्भ गृह में चारों ओर दीवारों पर भित्ती चित्र बने हुए हैं जिनमें भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाया गया है। इन चित्रों में एक भित्तिचित्र जिसमें भगवान शिव असुरों के किलों का विनाश करके नृत्य कर रहे हैं और एक श्रद्धालु को स्वर्ग पहुंचाने के लिए एक सफेद हाथी भेज रहे है, विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने विश्व में पहली बार 16 नायक चित्रों को डी-स्टक्को विधि का प्रयोग करके इन एक हजार वर्ष पुरानी चोल भित्तिचित्रों को पुन: पहले जैसा बना दिया है। इस मंदिर की एक और विशेषता है कि गोपुरम (पिरामिड की आकृति जो दक्षिण भारत के मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित होता है) की छाया जमीन पर नहीं पड़ती।
इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं- इसके निर्माण में 1,30,000 टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है, इसके दुर्ग की ऊंचाई विश्व में सर्वाधिक है और दक्षिण भारत की वास्तुकला की अनोखी मिसाल इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घेषित किया है।
बुधवार, 21 मई 2014
परिवहन विकास नीति की कुछ मुख्य बातें
राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति पर गठित राकेश मोहन समिति की रिपोर्ट की कुछ मुख्य बातें और सिफारिशें इस प्रकार हैं:-
राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति का दृष्टिकोण
Ø भारत में परिवहन नीति के संबंध में पहले परियोजना-केंद्रित अधिक सोच थी।
Ø रिपोर्ट में प्रणाली-आधारित जिस सुसंगत नीति को अपनाया गया है, वह परिवहन के विभिन्न साधनों और प्रशासनिक भौगोलिक सीमाओं के लिए है तथा नियामक और नीतिगत विकास के साथ पूंजी निवेश को जोड़ता है।
Ø विभिन्न परिवहन साधनों के बीच अंत: प्रणाली संयोजन।
Ø विशिष्ट समाधानों पर कम ध्यान दिया गया है और मानव संसाधनों की क्षमता तथा जिम्मेदार संस्थाओं को विकसित करने पर अधिक ध्यान दिया गया है, जो बदलती वास्तविकताओं के अनुरूप स्वयं को ढाल सकें।
Ø अब तक परिवहन नीति में अन्य देशों के साथ तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में संयोजकता पर ध्यान नहीं दिया गया था, लेकिन मौजूदा रिपोर्ट में दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रों में संयोजकता को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया गया है।
Ø पूर्वोत्तर क्षेत्र की परिवहन आवश्यकताओं पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।
परिवहन विकास की प्रवृत्तियां
Ø अगले दो दशकों में माल वहन 6-7 गुना और यात्री यातायात 15-16 गुना हो जाने का अनुमान है और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक विकास में भी 7 से 9 प्रतिशत वार्षिक का तेजी से विकास होने की संभावना है।
Ø समूचे परिवहन व्यय में रेलवे और सड़क परिवहन का हिस्सा सबसे बड़ा है।
रेल और सड़क परिवहन को छोड़कर कुल परिवहन व्यय में अन्य परिवहन प्रणालियों का हिस्सा पहली 3 पंचवर्षीय योजनाओं में लगभग 15 प्रतिशत था, जो चौथी और पांचवी योजनाओं में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गया और दसवीं तथा ग्यारहवीं योजनाओं में यह लगभग 28 प्रतिशत तक आ गया।
Ø पिछले दशक में नागरिक उड्डयन क्षेत्र में असाधारण तेजी के साथ वृद्धि हुई और भारत विश्व के नागरिक उड्डयन के नौवें सबसे बड़े बाजार के रूप में उभरा। हवाई यातायात का घनत्व (1000 यात्री प्रति 10 लाख शहरी आबादी) भारत में बहुत कम केवल 72 है, जबकि चीन में यह घनत्व 282 यानि लगभग 4 गुना है, ब्राजील में 3 गुना (234), मलेशिया में 17 गुना (1225), अमरीका में 40 गुना (2896) और श्रीलंका में 7 गुने से अधिक (530) है।
Ø 1990 के दशक के बाद के वर्षों से लेकर लगभग 2005 तक की अवधि को छोड़कर भारतीय बंदरगाहों का काम-काज आमतौर पर कई वर्षों तक बिगड़ा रहा है। बंदरगाहों पर माल की आवाजाही में बढ़ोत्तरी और बंदरगाह क्षमता में विकास में अंतर बढ़ता जा रहा है। इसमें बंदरगाह पर माल लादने-चढ़ाने की मात्रा 91.4 करोड़ टन है, जो 12वीं योजना के अंत तक बढ़कर लगभग 127.90 करोड़ टन हो जाने की संभावना है। इसे ध्यान में रखते हुए बंदरगाह क्षमताओं में तेजी से वृद्धि और उसके अनुरूप वित्त पोषण की तुरंत आवश्यकता है।
Ø जहां तक जहाजरानी की बात है, 1990 के दशक में विदेश व्यापार में भारतीय बेड़े का हिस्सा काफी ज्यादा 35.5 प्रतिशत तक था और बाकी का मालवहन-यातायात विदेशी जहाजों से होता था। लेकिन 2011-12 तक मालवहन यातायात में भारतीय जहाजों का हिस्सा केवल 10.9 प्रतिशत रह गया।
Ø भारत में अंतरदेशीय जल-मार्गों का परिवहन प्रणाली के रूप में अधिक विकास नहीं हुआ है, हालांकि ईंधन बचत, पर्यावरण शुद्धता, कम विकसित ग्रामीण क्षेत्रों तक के अंदरूनी क्षेत्रों के बीच संयोजकता और भीड़-भरे सड़क-मार्गों की बजाय जल-मार्गों से बड़ी मात्रा में माल पहुंचाने की सुविधा की दृष्टि से जल-मार्गों के बहुत लाभ हैं।
Ø भारत का परिवहन नेटवर्क क्षमता की दृष्टि से बहुत कम विकसित है। भारत को एकीकृत परिवहन नेटवर्क डिजा़इन करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। देश में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अभी महत्वपूर्ण अवसंरचना-तंत्र बनना है, इसलिए स्थिति में सुधार करके भारत अपनी परिवहन प्रणाली के लिए अधिक वांछनीय और कुशल व्यवस्था बना सकता है।
Ø हालांकि बुनियादी ढांचे के विकास में सरकारी निवेश की मुख्य भूमिका रहेगी, लेकिन इन परियोजनाओं में निवेश के अंतर को पूरा करने के लिए और निजी क्षेत्र से निवेश को बढ़ाना तर्कसंगत होगा, ताकि उन परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाया जा सके, जो संभवत: व्यावसायिक दृष्टि से अव्यवहार्य होंगी, लेकिन आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से उनमें निवेश के फैसले महत्वपूर्ण होंगे।
परिवहन में कुल निवेश
Ø अगर अगले 20 वर्षों में देश को निरंतर उच्च विकास की गति बनाई रखनी है, तो समूचे बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश पर पूरा जोर देना अनिवार्य होगा। एशिया में तेजी से विकसित होते देशों ने उच्च विकास की अवधि के दौरान बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 8-10 प्रतिशत जितना लगातार निवेश किया है।
Ø उच्च आर्थिक विकास लगातार होता रहे, इसके लिए सामान और सेवाओं के निर्यात में भी उच्च विकास दर बनाये रखनी होगी, जो बेहतर परिवहन संयोजकता और संपर्क मार्गों पर निर्भर करेगी।
Ø समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू और विदेशी दोनों साधनों से परिवहन क्षेत्र के लिए पर्याप्त धन जुटाना संभव होना चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश महत्वपूर्ण रहेगा और लगभग 70 प्रतिशत सार्वजनिक निवेश केन्द्र और राज्यों के बजट संसाधनों से करना होगा।
Ø इसलिए समिति की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि बुनियादी ढांचे में समग्र निवेश 12वीं योजना में सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानित 7 प्रतिशत से बढ़कर 2032 तक की 3 परियोजनाओं में 8.1 प्रतिशत हो जाना चाहिए। बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश थोड़ा-बहुत बढ़ना चाहिए और 12वीं योजना में सकल घरेलू उत्पाद के 4 प्रतिशत से बढ़कर अगली 3 योजनाओं में यह 4.3 से 4.5 प्रतिशत तक हो जाना चाहिए, जबकि निजी क्षेत्र से निवेश इन अवधियों के दौरान 3 प्रतिशत से 3.7 प्रतिशत होना चाहिए।
Ø 12वीं योजना के दौरान परिवहन में वार्षिक निवेश 2011-12 के 22 खरब रूपये (45 अरब अमरीकी डॉलर) से बढ़कर 12वीं योजना के दौरान 38 खरब रूपये (70 अरब अमरीकी डॉलर) हो जाना चाहिए और उसके बाद 15वीं योजना अवधि (2027-32) में यह निवेश 140 खरब रूपये (250 अरब अमरीकी डॉलर) हो जाना चाहिए। इसका मतलब है कि 11वीं योजना में यह निवेश सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 2.7 प्रतिशत से बढ़कर 12वीं योजना में 3.3 प्रतिशत और बाद की योजना अवधियों में 3.7 प्रतिशत हो जाना चाहिए।
Ø यातायात में रेलवे का हिस्सा बहुत कम है, जिसे दूर करने के लिए रेलवे में और अधिक निवेश करने पर जोर देने की आवश्यकता है। 2011-12 में रेलवे में 300 अरब रूपये (6.5 अरब अमरीकी डॉलर) का निवेश हुआ, जिसे बढ़ाकर 12वीं पंचवर्षीय योजना में 900 अरब रूपये (17 अरब अमरीकी डॉलर) किया जाना चाहिए और 15वीं योजना अवधि में निवेश की राशि बढ़कर 46 खरब रूपये (85 अरब अमरीकी डॉलर) हो जानी चाहिए। इसका मतलब है कि यह निवेश 11वीं योजना में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.4 प्रतिशत से बढ़कर 12वीं योजना में लगभग 0.7 प्रतिशत और बाद की योजना अवधियों में 1.0 से 1.1 प्रतिशत हो जाना चाहिए।
Ø सरकार को एक समन्वित परिवहन नीति अपनानी चाहिए, जो ऐसे संचालकों से निर्देशित हों, जैसे दीर्घावधि के उपाय, जिन्हें बदलने की आवश्यकता न पड़े; अर्थव्यवस्था के साथ-साथ परिवहन पर भी जिनके दूरगामी और महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी प्रभाव हों; जो व्यावसायिक दायरों से प्रभावित न हों और जो वित्तीय तथा आर्थिक उतार-चढ़ावों से अपेक्षतया अप्रभावित रहते हों।
Ø समन्वित नीति का कुल मिलाकर ऐसा उद्देश्य होना चाहिए, जिससे यह पता लग सके कि विभिन्न प्रकार के परिवहन साधनों को किस तरह से मिलाकर उपयेाग किया जाये, जो लाभकारी हो। इसमें विभिन्न दूरियों तक और दुर्गम रास्तों से हर प्रकार के सामान को पहुंचाने की लागत सहित प्रत्येक किस्म के परिवहन संसाधन की पूरी लागत की जानकारी भी मिलनी चाहिए।
Ø परिवहन क्षेत्र में मूल्य निर्धारण इसके संसाधनों के निर्माण में इस्तेमाल की गई वास्तविक वस्तुओं और सेवाओं की लागत के अनुरूप होना चाहिए। इनमें ऐसी वस्तुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, जिनकी उपलब्धता आसानी से नहीं होती। सब्सिडी केवल उन्हीं क्षेत्रों के लिए सीमित होनी चाहिए, जिन्हें सामाजिक आवश्यकताओं की दृष्टि से बरकरार रखना बेहद जरूरी हो और जहां तक संभव हो, इसे स्पष्ट होना चाहिए, ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इनकी साफ तौर पर पहचान की जा सके।
Ø अन्य सिफारिशों में ये बातें भी शामिल हैं:
o मोटर वाहन अधिनियम (1988, यथा संशोधित) के प्रावधानों को कारगर ढंग से लागू किया जाना चाहिए।
o समर्पित मालगाड़ी कॉरीडोर नेटवर्क को तेजी से पूरा किया जाना चाहिए।
o तट के साथ-साथ नियमित अवधि के बाद नये छोटे बंदरगाह बनाये जाने चाहिए। इससे माल लादने और उतारने के केंद्रों की संख्या भी बढ़ेगी और तटवर्ती जहाजरानी का आकर्षण भी बढ़ेगा।
o खाद्य पदार्थों, औषधियों, वस्त्रों और जैव सामग्री के निरीक्षण के लिए महत्वपूर्ण नियामक एजेंसी के कार्यालय हवाई अड्डे पर होने चाहिए। इन एजेंसियों और प्रयोगशालाओं का कस्टम, हवाई अड्डे और कार्गों सेवा प्रदाताओं की सांझी सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली के साथ-साथ एकीकरण होना चाहिए।
o पाइपलाइन के जरिए तरल पदार्थों और गैसों की आपूर्ति के लिए राष्ट्रीय बिजली ग्रिड की लाइनों के साथ-साथ राष्ट्रीय पाइप लाइन ग्रिड का निर्माण किया जा सकता है।
o समर्पित मालगाड़ी कॉरीडोरों के प्रारम्भिक और गंतव्य स्थलों सहित मुख्य ढुलाई केंद्रों पर तथा प्रमुख औद्योगिक केंद्रों या प्रमुख शहरी उपनगरों के पास संचालन-तंत्र पार्कों की स्थापना की जानी चाहिए।
o एक नई केंद्रीय संस्था-केंद्रीय संचालन तंत्र विकास परिषद की स्थापना की जानी चाहिए, जिसमें उद्योग मंत्रालय तथा वित्तीय और शैक्षिक संस्थाओं के प्रतिनिधि होने चाहिएं। यह परिषद संचालन तंत्र उद्योग को बढ़ावा देगी।
परिवहन प्रणाली प्रशासन के लिए संस्थाएं
Ø भारत की परिवहन नीति का परिदृश्य, परिवहन के विभिन्न साधनों और विभिन्न सरकारी स्तरों के बीच बंटा हुआ है, जिनमें बुनियादी ढांचा निवेश की योजना, नीति निर्धारण, नियामक निगरानी व्यवस्था (जो मौजूद है) और वित्त पोषण की नीतियां जैसे पहलू शामिल हैं।
Ø परिवहन आयोजना के समन्वित होने का मतलब निर्णय लेने की केंद्रीकृत व्यवस्था होना नहीं है, बल्कि सूचना के प्रवाह, जानकारी की उपलब्धता और परियेाजना से संबंधित सभी आवश्यक संगठनों के बीच परस्पर निरंतर संवाद की प्रणालियां स्थापित करना है।
Ø राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति ने सिफारिश की है कि परिवहन संबंधी कार्यनीति का स्वरूप तैयार करने और समन्वय रखने के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय स्तर पर परिवहन कार्यनीति का एक कार्यालय स्थापित किया जाना चाहिए। यह कार्यालय,
· एक स्वतंत्र एजेंसी के रूप में होना चाहिए, जिसका योजना आयोग से तालमेल हो; और
· कार्यालय के पास संसाधन होने चाहिए, जिससे वह एक सुदृढ़ तकनीकी टीम बना सके और परिवहन संबंधी आंकड़ों का प्रबंधन तथा विश्लेषण कर सके। इस कार्यालय को विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से परिवहन की नीतियां तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
· इस कार्यालय द्वारा राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न निवेश कार्यक्रमों के वास्ते निरंतर तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
Ø परिवहन कार्यनीति के कार्यालय राज्य स्तर तक भी स्थापित किए जाने चाहिए। महानगर स्तर पर महानगर शहरी परिवहन प्राधिकरण स्थापित किए जाने चाहिएं, जो कानून सम्मत हो और वित्तीय दृष्टि से सशक्त हों।
Ø भारत में अलग से एक एकीकृत मंत्रालय होना चाहिए, जिसके पास स्पष्ट रूप से यह कार्य होना चाहिए, कि वह एक ऐसी बहु-साधन परिवहन प्रणाली विकसित करे, जिसका आर्थिक विकास, रोजगार विस्तार, अवसरों के भौगोलिक विस्तार, पर्यावरण को बनाये रखने और ऊर्जा सुरक्षा सहित देश के व्यापक विकास लक्ष्यों में योगदान हो। इसलिए मध्यावधि में फिलहाल अन्य देशों की तरह एक एकीकृत परिवहन मंत्रालय की स्थापना की सिफारिश की गई है। इसके साथ राज्यों के स्तर पर भी परिवहन गतिविधियों का इसी प्रकार विलय होना चाहिए।
नियमन
Ø विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का व्यापक तौर पर समिश्रण और यह तथ्य कि परिवहन सेवाए बड़े पैमाने पर उपयोगकर्ताओं के लिए जरूरी है, को देखते हुए इन सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए नियमन वास्तव में जरूरी है।
Ø रिपोर्ट में किए गए उल्लेख के अनुसार बेहतर नियामक डिजाइन और स्वतंत्र नियामक संस्थाओं की दिशा में परिवहन मंत्रालय एख आवश्यक कदम है। जिसमें परिवहन के प्रत्येक सेक्टर में कार्यात्मक और वित्तीय स्वायत्तता है और इसमें अलग-अलग विवाद निर्धारण का प्रावधान भी है।
Ø इन नियामक संस्थाओं को गठित किया जाए या मजबूत किया जाए ताकि प्रभुत्व तथा एकाधिकार से ये बचाव कर सके। इसके अलावा बेहतर एवं प्रतिस्पर्धा कीमतों तथा सुरक्षा एवं पर्यावरण नियमनों को भी सुनिश्चित किया जाना है।
Ø भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के अधिकारक्षेत्र और क्षेत्र के नियामकों के बीच सीमारेखा को स्थापित किया जाएगा।
Ø परिवहन सेक्टर के कानूनी ढ़ाँचे को सख्त बनाए जाने की आवश्यकता मौजूदा क्षेत्र विशेष कानूनों को एक वैधानिक कानून में समाहित किए जाने की आवश्यकता है।
Ø परिवहन परियोजनाओं के पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करने के लिए इंटरमोडल और इन्ट्रमोडल से सुधार लाने के मद्देनजर डिजाइनों की मदद के लिए समय चक्र आधारित विश्लेषण का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
ऊर्जा एवं पर्यावरण
Ø परिवहन सेवाओं में जिस रफ्तार से विकास हो रहा है उसी रफ्तार से उनमें ऊर्जा के साधनों का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है और ये सभी मुख्यतः पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भर है। अधिकतर शोधों में संभावना व्यक्त की गई हैं। कि वर्ष 2030 तक परिवहन क्षेत्र में ऊर्जा के उपभोग में मौजूदा स्तर से दो से चार गुणक की बढ़ोत्तरी होगी।
Ø कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र की काफी भूमिका है हालंकि पिछले दो दशकों में भारत ने वाहनों से निकलने वाले हानिकारक तत्वों पर अधिक से अधिक नियंत्रण रखने तथा बेहतर गुणवत्ता वाले ईधन मानको को अपनाने पर जोर दिया है। लेकिन फिर भी मौजूदा और भविष्य के मानको की समीक्षा किए जाने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारत विश्व के बेहतर विकासात्मक गतिविधियों से पीछे न रहे।
Ø इस दशक के मध्य तक पूरे देश में भारत ईधन की गुणवत्ता मानक लागू किए जाने चाहिए और वर्ष 2020 तक भारत VI का लक्ष्य रखना चाहिए।
Ø वाहनों के उत्सर्जन नियत्रंण के क्षेत्र में नवीन तकनीकी को अपनाने के साथ वाहन मानकों को सख्त बनया जाए तथा लागू किया जाए।
Ø राष्ट्रीय आटोमोबाइल प्रदूषण प्राधिकरण की स्थापना जो भारत में वाहनों से निकलने वाले धुँए के मानकों तथा ईंधन की गुणवत्ता तय करने तथा इसे लागू करने में जिम्मेदार होगी।
Ø देश के नागरिकों के लिए हवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को प्रत्येक पांच वर्ष में एक आटो ईंधन नीति समिती बनानी चाहिए।
Ø पांच लाख से अधिक आबादी वाले सभी शहरों में पर्याप्त एवं गुणवत्ता युक्त जनपरिवहन प्रणाली सुनिश्चित की जाए और हर जगह सुरक्षित गैर मोटरीकृत परिवहन विकल्प उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
ऊर्जा सामाग्रियों का परिवहन
Ø अगले दो दशकों में 8 से 10 प्रतिशत की लगातार आर्थिक वृद्धिको बरकरार रखने के लिए बिजली उत्पादन में बड़े पैमाने पर वृद्धिकरने तथा कोयला, लोहा और इस्पात जैसी सामाग्रियों के परिवहन की आवश्यकता होगी। ऊर्जा उत्पादों का आयात हमारे व्यापार असंतुलन और चालू व्यापार घाटे के सबसे अहम घटक है और कीमतों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव के नजरिए से बहुत ही संवेदनशील है।
Ø अगले दो दशकों में भारी तादाद में सामाग्रियों की भारत की जरुरतों में चार के गुणक से वृद्धिहोने की उम्मीद है। इसके अलावा इस्पात के उपयोग में आठ गुणक की बढ़ोतरी होने की सभांवना है। भारतीय रेल के माल ढोले के काम में आने वाले घरेलू कोयले के उत्पादन में भी ढाई गुना वृद्धिहोने की उम्मीद है।
Ø शुष्क सामग्री के परिवहन में अहम भूमिका निभाने वाला रेल नेटवर्क का उसकी क्षमता से अधिक इस्तेमाल हो चुका है और सभी बड़े रेल मार्गों पर उनकी निर्धारित क्षमता से अधिक ट्रैफिक परिचालन हो रहा है।
Ø अन्य बातों के साथ-साथ सिफारिशों में यह भी शामिल है।
o कोयला और ईंधन बाजारों, नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों, और घरेलू ईंधन आपूर्तिके क्षेत्र में होने वाले विकास तथा संभावित विकास पर निगरानी रखने के लिए एक रणनीतिक विशाल यातायात नियोजन समूह की स्थापना की जानी चाहिए।
o कोयला, लोहा और इस्पात के लिए ‘’क्रिटिकल फीडर रुट्स’’ को प्राथमिकता।
o ओडिशा, झारखंड़ और छत्तीसगढ़ राज्य पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता।
o पूर्वी तट पर कोयला उत्पादक क्षेत्रों से तटीय नौपरिवहन को बढ़ावा देना।
o निजी क्षेत्र की सहभागिता वाले निवेश माडलों पर विचार किया जाना चाहिए।
o अगले दो दशकों में भारी तादाद में सामाग्रियों को लाने ले जाने के मद्देनजर भारतीय रेल को यातायात बुनियादी ढांचे में सुधार लाना होगा खासकर उच्चस्तरीय एक्सल भार, विशिष्ठ वैगन, भाल भराव तकनीकों तथा लंबी रेलगाडियों पर अधिक ध्यान देना होगा।
o कोयला और पेट्रोलियम के परिवहन को प्राथमिकता देते हुए बड़े बंदरगाहों के लिए क्षेत्रों का चयन।
राजस्व संबंधी मुद्दे :
Ø मौजूदा परिवहन कीमत प्रणाली विभिन्न तरह के करों का मिश्रण है और शासन के विभिन्न स्तरों पर इस्तेमाल शुल्क लागू किए जाते है जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। यह मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों की वजह से भी है।
Ø एक साधारण तथा तर्कसगंत सड़क यातायात कर ढाचॉं विकसित किए जाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए जिससे आर्थिक कार्यक्षमता तथा पर्यावरणीय निरंतरता को बढा़वा मिल सके।
Ø यह सिफारिश की जाती है किवित्त मंत्रालय राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समितिकी बैठक बुला सकता है जो सड़क परिवहन मंत्रालय के सहयोग से एक तर्कसगंत तथा एकल समग्र कर प्रणाली पर विचार करे।
Ø राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर माल ढुलाई तथा यात्रियों की अन्तर्राज्यीय आवाजाही को सूचना एवं सचांर तकनीक के जरिए सुगम बनाने के लिए कर प्रशासन को समन्वित करने की आवश्यकता है।
Ø राज्य की सीमा पर सभी प्रकार के करों तथा शुल्कों की ‘एकल खिड़की निकासी’ से कारोबारी लागत में काफी कमी आएगी।
Ø भारतीय रेलवे को प्रयोगकर्ता शुल्कों के जरिए अपनी कीमत प्रणाली में सभी प्रकार की लागतों के मूल्य हास और उनके समावेशन के लेखांकन की प्रक्रिया विकसित करनी चाहिए। एक बार मूल्य ह्वास लागतों का हिसाब लगजाए तो विपरीत सब्सिडी अथवा प्रत्यक्ष सब्सिडी को उसकी मौजूदा स्थितिमें रखा जा सकता है। इस बात पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है किजन परिवहन कीमत प्रणाली को व्यापक तौर पर गरीबी उन्मूलन के एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हम पूरी तरह सब्सिडी हटाए जाने की सिफारिश के पक्ष में नहीं है।
यातायात में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी)
Ø यातायात क्षेत्र में आईसीटी तकनीकें काफी अहम साबित हुई हैु चाहे वह विभिन्न प्रवेश द्वारों अथवा टिकटिंग प्रणाली के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्मार्ट कार्ड हों या सामानों पर लगाए जाने वाले आरएफआई डी टैग्स अथवा विमान उड़ान की सूचना प्रणाली के इस्तेमाल किए जाने वाले कार्डस अथवा बंदरगाहों पर एकल खिड़की निकासी या ‘फ्लो थ्रू गेट’। ये सभी प्रणालियां किसी भी स्तर पर भीड़-भाड़ को कम करती है। जीपीएस प्रणाली और आईसीटी का इस्तेमाल यातायात प्रणाली का अन्य प्रणालियों के साथ समन्वय स्थापित करने में किया जा सकता है और इससे धन तथा समय की काफी बचत होगी एवं उपभोक्ताओं को काफी संतुष्टिमिलेगी।
Ø भारत में परिवहन के क्षेत्र में आईसीटी के और विकास के लिए किए जाने प्रयासों के तहत एक मजबूत संस्थागत आधार की जरूरत है जो मानक प्रक्रियाओं नीति, सलाह, परियोजना प्रबंधन, प्रशिक्षण, शोध एवं विकास पर ध्यान केन्द्रित कर सकता है।
Ø यह सिफारिश की जाती है किभारत में परिवहन के क्षेत्र में आईसीटी को समर्थ बनाने के लिहाज से एक केन्द्रीय स्तर के स्वायत्त ''भारतीय सूचना प्रौद्यौगिकी परिवहन संस्थान'' (आईआईआईटीटी) की स्थापना की जाए।
Ø यह संस्थान परिवहन के क्षेत्र में सभी सरकारी मंत्रालयों की सहायता करेगा तथा प्रस्तावित केन्द्र स्तरीय क्षेत्रीय संस्थानों एवं राज्य तथा शहर आधारित संस्थानों के साथ समन्वय स्थापित करेगा।
शोध एवं मानव संसाधन विकास
Ø इस समय सभी क्षेत्रों- डिजाइन, निर्माण, सचांलन, प्रबंधन रखरखाव, सुरक्षा, मांग प्रबंधन, परियोजना प्रबंधन, प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल एवं वित्त में ज्ञान आधारित सूचनाओं का अभाव है।
Ø अंतर्राष्ट्रीय अनुभव दशार्ते है किपरिवहन नियोजन को एक उच्च वरीयता वाले व्यवसाय के रूप से स्थापित किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा अगले दो दशकों तक संस्थागत प्रणाली को विकेन्द्रीकृत करना तथा संस्थाओं का निर्माण किया जाना है।
Ø यह सिफारिश की जाती है किसार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों के लिए गुणवता युक्त संस्थाओं तथा क्षमता निर्माण के लिए प्रत्येक परिवहन सेक्टर के लिए एक प्रतिशत निवेश चिन्हित किया गए।
Ø विभिन्न प्रकार की शोध संस्थाओं की स्थापना के लिए प्रक्रिया शुरू की जाए : इनमें भारतीय परिवहन शोध संस्थान, भारतीय परिवहन सांख्यिकीय संस्थान, सड़क मानक संस्थान एवं अन्य संस्थान शामिल है।
Ø चुनीदां विश्वविद्यालयों में उत्कृष्टता केन्द्रों तथा प्रत्येक परिवहन सेक्टर में शोध संस्थानों की स्थापना,
Ø सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों में परिवहन से हुई इंजीनियरिगं संगठनों के मौजूदा दो से पॉच प्रतिशत कर्मचारियों के लिए और शिक्षा को प्रायोजित करना,
Ø योजना आयोग को टास्क फोर्स का गठन करना चाहिए जो देश में परिवहन क्षेत्र में अगले दस वर्षों में मानव संसाधन को प्रशिक्षित करने की जरूरत के लिहाज से नए स्नातक एवं परास्नातक कार्यकमों की आवश्यकता पर एक रिपोर्ट तैयार करेगी।
सुरक्षा
Ø घातक दुर्घटनाओं की मौजूदा दर तथा दुर्घटनाओं की दर में इजाफा दोनों ही स्वीकार्य नहीं है। इस समय देश में परिवहन के किसी भी प्रकार के लिए वैज्ञानिक सुरक्षा संबंधी बहुत ही कम विशेषज्ञता, जानकारी अथवा आकड़े है।
Ø परिवहन सुरक्षा प्रबंधन की कार्यशैली में भी बदलाव आया है और यह क्रियात्मक गतिविधियों के बजाय सुस्पष्ट तथा मात्रात्मक हो चुका है।
Ø उच्च स्तर पर पेशेवरों या विशेषज्ञों की अध्यक्षता में सड़क, रेलवे, जल / समुद्र और वायु के क्षेत्र में स्वतन्त्र राष्ट्रीय सुरक्षा बोर्डों की स्थापना। ये बोर्ड संबंद्ध संचालानात्मक एजेंसियों से स्वतन्त्र होने चाहिए।
Ø राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा बोर्डों की स्थापना।
Ø वर्ष 2015 की समाप्तिसे पहले सुरक्षा नीतियों की घोषणा की जानी है और इसमें प्रत्येक सेक्टर के पाँच तथा दस वर्षों के सूचको का मूल्यांकन भी हो।
Ø सुरक्षा मानको की प्रतिदिन अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्तरो पर विभिन्न सचांलानात्मक एजेंसियों में सुरक्षा विभागों की स्थापना तथा मौजूदा नीतियों और मानको का अध्ययन।
अंतराष्ट्रीय परिवहन संबदृता को बढ़ावा देना
Ø दक्षिण एशिया क्षेत्र अपने आप में इस मायने में अलग दिखता है किउसके घटक देशों में सबसे कम परिवहन जुड़ाव है और आर्थिक क्षेत्र में भी यह क्षेत्र अपने आप में सबसे कम जुड़ा हुआ है।
Ø आसियान-भारतीय व्यापार और निवेश समझौतों की पूर्ण सभांवनाओं को पूरा फायदा इस क्षेत्र में पूर्ण परिवहन संपर्क एवं जुडाव से ही हासिल किया जा सकता है। पूरी रणनीतिके तहत परिवहन के बुनियादी ढांचे के विकास के सभी पहलुओं को शामिल किए जाने की आवश्यकता है।
Ø अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित सिफारिशें भी हैं।
o सीमा चौकियों तक सड़क मार्ग की पहुंच में सुधार : यह अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तक जाने वाली सभी सड़को के अंतिम कुछ किलोमीटर की दूरी का पुनवर्गीकरण करके किया जा सकता है ताकिउन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग के हिस्से की तरह समझा जाए और उनका रखरखाव बेहतर तरीके से हो।
o अंतर्राष्ट्रीय परिवहन जरूरतों के अनुसार घरेलू नियमों और कानूनों में बदलाव
o तकनीकों का मानकीकरण : सामग्री को लाने ले जाने के लिए विशेष ढुलाई वैगन के मद्देनजर रेल पटरियों, सिगनल और रोलिग स्टाक में सुधार।
o विभिन्न प्रकार की औपचारिक प्रक्रियाओं का सरलीकरण करके बदंरगाह एवं व्यापार संबंधी सुविधाओं में सुधार।
o गैर भौतिक अवरोद्यों में कमी करना,
o विभिन्न प्रकार से व्यापार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकिव्यापारियों के पास पर्याप्त विकल्य हो। बहुमाडल मार्गों की पहचान कर उन्हें विकसित किया जाए तथा सीमा पर संस्थागत सुधार किया जाए।
o भू-सीमा क्षेत्रों में परीक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराने की आवश्यकता ताकिपरीक्षण के लिए माल की खेप को अन्य स्थानों पर न भेजा जाए।
o क्षेत्र में अतंर्राष्ट्रीय परिवहन सपंर्क को बढ़ावा देने के लिए एक प्रतिबद्घ संयुक्त कार्यबल का गठन किया जाना।
क्षेत्र विशेष सिफारिशों के मुख्य अंश : रेलवे
Ø माल ढुलाई और यात्री परिवहन को देखते हुए रेलवे में व्यापक पैमाने पर क्षमता विस्तार इस प्रकार किया जाना है जो आजादी के बाद से नहीं हुआ है।
Ø इसके लिए भारतीय रेलवे में महत्वपूर्ण संगठनात्मक सुधार की आवश्यकता होगी। संस्थागत भूमिकाओं को नीति, नियामक और प्रबंधन कार्यों में विभाजित किए जाने की आवश्यकता है।
Ø रेल मत्रांलय (भविष्य में एकीकृत परिवहन मंत्रालय) की भूमिका नीतियां तय करने तक सीमित होनी चाहिए। एक नई रेलवे नियामक प्राधिकरण सपूंर्ण नियमन और किरायों के निर्धारण के लिए जिम्मेदार होगा और प्रबंधन तथा संचालन की जिम्मेदारी एक कारपोरेट निकाय द्वारा की जानी चाहिए।
Ø भारतीय रेल निगम आईआरसी की स्थापना एवं वैधानिक निकाय के रूप में की जानी हैं जो मौजूदा कानून के तहत रेलवे को दी गई, कईं अर्ध-सरकारी शाक्तियों को अपने पास रखेगा। मौजूदा रेल निगम जैसे कोनकोर और डीएफसीसीआईएल और अन्य या तो आईआरसी की सहायक इकाइयां बनेंगी या इसके संयुक्त उपक्रम बनेंगी।
Ø मालभाड़ा व्यापार के लिए बनाई जाने वाली नीतिमें समार्पित मालभाड़ा गलियारा (डीएफसी) को शामिल किया जाना चाहिए और न्यून सामग्रियों के बहुमाडल परिवहन के लिए एक केन्द्रित व्यापारिक संगठन की स्थापना की जानी चाहिए।
Ø यात्री सेवाओं के लिए बनाई जाने वाली नीतिमें आपूर्तिमें तेजी, लंबी दूरी तथा अन्तर शहर यातायात पर ध्यान देने, चुनींदा तेज रफ्तार रेल कोरिडोर के विकास तथा रफ्तार के आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
Ø सबसे बड़ी चुनौती क्षमता सृजन की है और एनएचडीपी की तरह ही रेलवे को वर्ष 2032 तक पूरी तरह बदलने के लिए एक दृष्टिकोण जरूरी है।
Ø लेखा प्रणाली में बदलाव लाकर इसे भारतीय जीएएपी की वर्ग पर एक कपंनी लेखा प्रारूप के रूप में करना है।
Ø रेल सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय बोर्ड तथा रेलवे शोध एवं विकास परिषद की स्थापना।
Ø सार्वजनिक क्षेत्र की रेलवे की मौजूदा उत्पादन इकाइयों का कारपोरेटाइजेशन।
Ø स्वतन्त्र रेल किराया प्राधिकरण की स्थापना।
Ø नेपाल और बंगलादेश के साथ पूरी की जाने वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता।
सड़क एवं सड़क परिवहन
Ø एक समर्पित सड़क आंकड़ा केन्द्र की स्थापना
Ø अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रिया के अनुसार विभिन्न श्रेणी की सड़कों का व्यवस्थित वर्गीकरण
Ø मौजूदा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के कार्यक्रम को विस्तार करना चाहिए तथा इसके तहत सभी मानवीय बसावटों की समयबद्ध आधार पर पूरी तरह आपस में जोड़ा गए।
Ø पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए एक व्यापक मास्टर प्लान को बनाना तथा उसे क्रियान्वित करने की आवश्यकता है ताकि सड़क समेत परिवहन के सभी साधनों को इसके समाहित किया जा सके।
Ø राज्य राजमार्गों की क्षमता में बढ़ोतरी के लिए प्रत्येक राज्य के राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम की वर्गों पर व्यापक राज्य स्तरीय कार्यक्रम बनाकर उन्हें क्रियान्वित करना चाहिए।
Ø सड़कों के लिए वित्त व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सीआरएफ के तहत संग्रहण को ईंधन पर उपकर को कीमत के आधार वसूला जाना चाहिए। इस बीच दो रूपये प्रति लीटर उपकर को बढ़ाकर चार रूपये प्रति लीटर किया जा सकता है।
Ø दो लेन वाली सड़कों पर वाहनों से टोल टैक्स वसूले जाने की मौजूदा नीति को समाप्त किये जाने की आवश्यकता है। प्राथमिक नेटवर्क में दो लेन के एक राजमार्ग को एक आधारभूत अलग सुविधा मानना चाहिए और इसे सीआरएफ समेत सरकारी बजट से उपलब्ध कराना चाहिए।
Ø बंदरगाहों, हवाईअड्डों खनन क्षेत्रों को आपस में जोड़ने की विशेष आवश्यकता और ऊर्जा संयत्रों के विकास को सड़क कार्यक्रम विकास के घटक के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
Ø तकनीकी क्षमता में बढ़ोतरी के लिए एक राष्ट्रीय स्तरीय समार्पित सड़क डिजाइन संस्थान की स्थापना की जानी चाहिए इसी तरह के संस्थान राज्य स्तर पर भी स्थापित किए जाने चाहिए।
Ø सुन्दर समिति की सिफारिशों के अनुसार सड़क एंव सड़क सुरक्षा तथा परिवहन प्रबंधन बोर्डों की स्थापना।
Ø सरकार इस बात पर विचार कर सकती है। कि वह सड़कों के रखरखाव को गैर नियोजन गतिविधि न माने, ताकि मौजूदा अनुभव के आधार पर इसमें तदर्थ कटौतियां का सामना न करना पड़े।
Ø वर्तमान सदी में सड़क परिवहन की मांग के अनुसार मौजूदा मोटर वाहन कानून मे संशोधन की आवश्यकता है। सुन्दर समिति ने इस संशोधन के बारे में सलाह दी है और इसे किए जाने की जरूरत है।
नागरिक विमानन
Ø कोशिश ये होनी चाहिए कि क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विमान नेटवर्क बनाये जाएं, जो एक दूसरे के पूरक हों।
Ø एक राष्ट्रीय मास्टर प्लान बनाया जाना चाहिए, जिसमें स्पष्ट रूप से आमतौर पर विनिर्दिष्ट स्थानों पर हवाई अड्डे बनाने के स्पष्ट आर्थिक कारण दिये जाएं।
Ø नागरिक उड्डयन मंत्रालय में एक हवाई अड्डा अनुमोदन आयोग की स्थापना की जानी चाहिए, जो अनुमति दिये जाने से पहले प्रस्तावित हवाई अड्डों की योजनाओं की समीक्षा करे।
Ø मंत्रालय में विनियामक और नीतिगत कार्य स्पष्ट रूप से अलग कर दिये जाने चाहिए, ताकि यह मंत्रालय राष्ट्रीय नीति बनाने और राज्य सरकारों को अपना उड्डयन क्षेत्र विकसित करने की कोशिशों को प्रोत्साहित और निर्देशित करें।
Ø जहां भी व्यापारिक रूप से संभव और व्यावहारिक हो, केन्द्र सरकार को धीरे-धीरे हवाई अड्डा संचालन के काम से हट जाना चाहिए। जहां तक भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा संचालित हवाई अड्डों का सवाल है। सरकार को भविष्य में इस एजेंसी की भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए। इसके पहले कदम के रूप में भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण को इसके दो प्रमुख कार्यों के आधार पर अलग कर देना चाहिए। यह कार्य हैं – हवाई अड्डा संचालन और विमान नौवहन सेवाएं।
Ø डीजीसीए की जगह एक नागर विमानन प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए, जो विमान कंपनियों और विमानों की उड़ सकने की क्षमता और विमान कंपनियों के विनियमितीकरण के लिए जिम्मेदार हो। यह विनियमितीकरण, सुरक्षा और लाइसेंसिंग के लिए जिम्मेदार हो और जिसमें उड्डयन आकाश प्रबंधन, पर्यावरण, प्रतियोगिता क्षमता और उपभोक्ता संरक्षण जैसे अलग प्रभाग होने चाहिए।
Ø विमान दुर्घटनाओं के बारे में अन्वेषण डीजीसीए का अलग काम होना चाहिए। (अथवा इसे सिविल एविशन अथॉरिटी की जगह प्रस्तावित कर दिया जाए) तथा एक स्वायत्तशासी दुर्घटना अन्वेषण एवं सुरक्षा बोर्ड का प्रस्ताव किया जाता है।
Ø मौजूदा कराधान व्यवस्था की प्रकृति और आर्थिक कर आधार के विखंडन को देखते हुए पूरी कराधान व्यवस्था को संशोधित किया जाना चाहिए और यह पूरे उद्योग पर लागू हो।
Ø जिन हवाई अड्डों पर यातायात कम हो अथवा उनका इस्तेमाल कम होता हो तथा जहां की राज्य सरकारें एयर टैक्सी संचालन के व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देने में सक्षम हो, उन हवाई अड्डों के विकास पर विचार किया जाना चाहिए।
Ø सरकार को एयर इंडिया की भावी भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए। मौजूदा माहौल में सरकार द्वारा विमान सेवायें संचालित करने के कारण हैं, उनका बहुत प्रतियोगी होना, पूंजी बहुल उद्योग होना आदि।
Ø सरकार को विदेशी स्वामित्व और घरेलू विमान कंपनियों के संचालन के बारे में स्पष्ट नियम बनाने के बारे में फैसले करने चाहिए।
Ø पीपीपी मॉडल के अंतर्गत सुदृढ़ बनाये गये हवाई अड्डों की दरें विनियमित करते समय सरकार को विभिन्न हितधारकों के लाभों और लागत को ध्यान में रखते हुए दर तालिका पुन: निर्धारित करनी चाहिए, ताकि भारतीय उड्डयन उद्योग में गतिशीलता बनी रहें।
Ø नागरिक उड्डयन क्षेत्र में डिग्री और डिप्लोमा स्तर पर शिक्षा कार्यक्रमों को विधिवत मान्यता प्राप्त नहीं है। इसके लिए बजट सहायता दी जानी चाहिए और इस उद्योग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि विश्वविद्यालयों में खासतौर से स्नातक स्तर पर उड्डयन में कार्यक्रमों का विस्तार किया जा सकें।
Ø एक विशेष कोष बनाया जाए, जो व्यपगत न हो और जिसका इस्तेमाल विमान कंपनियों को सीधे सब्सिडी देने में किया जाए तथा इसे व्यावहारिक अंतर पाटने की कोशिश समझा जाए और उन क्षेत्रों को सेवा देना सुनिश्चित किया जाए जो अलाभप्रद समझे जाते हैं।
बंदरगाह
Ø फिलहाल देश के बंदरगाहों अथवा बंदरगाह के क्षेत्रों के लिए कोई समग्र निवेश कार्यक्रम नहीं है। इसकी सख्त जरूरत है, ताकि राष्ट्रीय बंदरगाहों का विकास किया जा सके और विनियामक सुधारों का मार्ग प्रशस्त करने वाले तथा सुशासन संरचना के अनुरूप प्राथमिकताएं और मार्गदर्शक नियम विकसित किये जा सकें।
Ø देश के 4 से 6 बड़े बंदरगाहों (मेगा पोर्ट्स) में निवेश के लिए सरकार की एक प्रमुख प्राथमिकता अगले 20 वर्षों के लिए तैयार की जानी चाहिए। इनमें से हर तट पर 2 से 3 बंदरगाहों के लिए विशेषज्ञ समूह गठित किये जाए, जो उपयुक्त स्थानों पर उपयुक्त तरीके से बड़े बंदरगाहों के स्थान तय करें और उनकी स्थापना के लिए विस्तृत रिपोर्टें तैयार करें।
Ø प्रमुख बंदरगाहों के सुशासन की संरचना में महत्वपूर्ण जरूरत है, विकेन्द्रीकरण और उन्हें विनियमित करने की।
Ø बंदरगाह सुधार प्रक्रियाओं के संदर्भ में शब्द प्राइवेटाइजेशन का इस्तेमाल किया गया है। असल में इसका मतलब बंदरगाह प्रशासन को स्वामी समझते हुये प्राइवेट टर्मिनल सेवाओं को सार्वजनिक क्षेत्रों में लाना है। इस परिवर्तन को लागू करने के लिए तीन चरणों वाली कार्ययोजना की सिफारिश की जाती है।
Ø वर्तमान बंदरगाह न्यासों को वैधानिक बंदरगाह प्राधिकरण में बदल दिया जाए। इन बंदरगाहों पर मालिकाना हक आम जनता का रहें। जमीन के वह ही मालिक समझे जाएं और जब वह भूस्वामी बन जाएं, तो टर्मिनल ऑपरेटरों के लिए तटस्थ विनियामक प्राधिकारी के रूप में कार्य करें।
Ø बाद में प्रमुख बंदरगाहों का विखंडन कर दिया जाए और उन्हें टर्मिनल ऑपरेशन के लिए निगम बना दिया जाए।
Ø इन विनिगमित सार्वजनिक क्षेत्र के टर्मिनल ऑपरेटरों का बाद में विनिवेश कर दिया जाए, उन्हें सूचीबद्ध कराया जाए और बाद में उनका निजीकरण कर दिया जाए।
Ø तटीय जहाजरानी के विकास को प्राथमिकता दी जाए। इसके लिए प्रमुख बंदरगाहों पर पोस्टल टर्मिनलों की स्थापना की जाए और तटीय जहाजरानी बंदरगाहों द्वारा बताये गये इस प्रकार के 5-6 प्रमुख बंदरगाहों का विकास किया जाए।
Ø आंतरिक जल परिवहन विकसित किया जाए और ऐसा करते समय विभिन्न परिवहन साधनों से उन्हें जोड़ा जाए, ताकि सड़कों पर भीड़भाड़ कम हो और कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन में कमी लाई जा सकें।
Ø टीएएमपी की जगह नया प्रमुख बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम लाया जाए और तब तक दरें तय करके इसे विनियमित किया जाए। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहे, जब तक प्रतियोगिता के हित में इसे जरूरी समझा जाए। टीएएमपी दर संबंधी उन मामलों में अपीलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधिकरण का भी काम कर सकता है, जिनमें दरें सेवा प्रदाता द्वारा तय की जाती हैं।
Ø आधुनिक बनाये गये बंदरगाह अधिनियम के अंतर्गत एक बंदरगाहों के लिए समुद्री प्राधिकरण (एमएपी), नाम की एक विनियामक संस्था बनाई जाए और उसे देश के सभी बड़े और छोटे बंदरगाहों में प्रतियोगिता को विनियमित करने का अधिकार दिया जाए।
Ø यह महत्वपूर्ण बात है कि भारतीय जहाजरानी उद्योग को क्षेत्र में समानता के आधार पर काम करने के अवसर प्रदान किये जाएं, ताकि वह अन्य बंदरगाह कंपनियों के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता कर सकें। इसके लिए युक्तिसंगत नीतियों की जरूरत पड़ेगी और खासतौर से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष कर लगाने के मामले में यह जरूरी होगा।
शहरी परिवहन
Ø शहरी परिवहन के लिए नीतियां और कार्य नीतियां बनाई जानी चाहिए, ताकि रूपरेखा से बचा जा सकें, परिवर्तित किया जा सकें और उसमें सुधार लाया जा सके। इसकी बुनियादी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होनी चाहिए। समय बीतने के साथ-साथ शहरी परिवहन जिम्मेदारियां इस प्रकार से विकसित की जाएं कि बड़े शहरों और शहरी आबादी को उनसे लाभ मिल सके। खासतौर से उन शहरों को लाभान्वित किया जा सके, जिनकी आबादी दस लाख से ज्यादा है।
Ø महानगरीय शहरी परिवहन प्राधिकरणों का गठन समग्र आधार पर किया जाना चाहिए, उनके लिए एकीकृत निर्णय और समन्वय करने वाले निकाय हों और इस काम के लिए पर्याप्त संख्या में तकनीकी कर्मचारी उपलब्ध हों।
Ø नियोजन के तौर तरीकों में उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जहां आवाजाही में सुधार की जरूरत है और इसके लिए गैर मशीनी परिवहन, सार्वजनिक परिवहन और अर्धपरिवहन वाले साधन इस्तेमाल किये जाए।
Ø ऐसी शहरी परिवहन निधियां स्थापित की जाएं, जो अव्यपगतशील हों और इनकी स्थापना राष्ट्रीय, राज्य और शहरी स्तर पर की जाए। इन कोषों में सुदृढ़ तरीके से पैसा आये, ताकि -
· देशभर में बिक्री वाले पेट्रोल पर 2 रूपये का ग्रीन सरचार्ज लगाया जा सके।
· निजी वाहनों के बीमा मूल्य पर 4 प्रतिशत वार्षिक पर्यावरण संबंधी उपकर लगाया जाए। यह कर कारों और दुपहिया वाहनों पर लगे।
· नई कारें और दुपहिया वाहन खरीदने पर शहरी परिवहन कर लगाया जाए। यह कर पेट्रोल से चलने वाले वाहनों पर 7.5 प्रतिशत की दर से और निजी डीजल कारों पर 20 प्रतिशत की दर से लगाया जाए।
Ø शहरी परिवहन और प्रबंधों की जिम्मेदारी के अनुरूप विकेन्द्रीकृत तरीके से शहरी परिवहन निधियां बनाये जाने की जरूरत है, ताकि इस प्रकार से इकट्ठा किया गया पैसा राज्य और शहर स्तरों पर ठीक ढंग पर पहुंच सकें। राज्य और शहर स्तरों पर संसाधनों का प्रबंध इस प्रकार से हो कि उसे हकदारी आधार पर विभाजित किया जाए और इस काम में केन्द्र का विवेकाधिकार न हो। इस प्रस्ताव की जांच वित्त आयोग को करनी चाहिए और संभवत: इसे 14वें वित्त आयोग द्वारा शुरू किया जा सकता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में परिवहन का विकास
Ø पूर्वोत्तर क्षेत्र में सभी राज्यों की राजधानियों तक चार लेनों वाली सड़कें सुनिश्चित करना।
Ø पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए सड़कों का रख-रखाव करना एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए यह सुझाव दिया जाता है कि योजना के अधीन रख-रखाव संबंधी व्यय को शामिल करने के लिए एक नीति बनाई जाए।
Ø पूर्वोत्तर क्षेत्र विभाग के अधीन पूर्वोत्तर क्षेत्र सड़क विकास प्राधिकरण (एनईआरआरडीए) की स्थापना की जानी है।
Ø गुवाहाटी, अगरतला, इम्फाल और डिब्रूगढ़ में हेंगरों वाले हवाई अड्डे बनाने का जोरदार सुझाव दिया गया है।
Ø हैलिकॉप्टर सेवाओं को बढ़ावा।
Ø नागर विमानन सुविधाओं के संचालन के लिए स्थानीय तौर पर प्रशिक्षित कामगारों को तैयार करना।
Ø गुवाहाटी को एक सुसज्जित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के रूप में विकसित करना, जो आसियान का एक प्रवेशद्वार बन सके।
Ø जहां तक रेल संपर्क का प्रश्न है दो चरणों में आयोजना और कार्यान्वयन किया जाना चाहिए। पहला चरण 2020 तक और दूसरा चरण 2020 से लेकर 2032 तक है।
Ø नई रेलवे लाइनें जिनमें से पहली लाइन म्यांमार के सिटवे से लेकर अरूणाचल प्रदेश के तिराप को जोड़ने वाली जो मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड से होकर गुजरेगी तथा दूसरी लाइन धुब्री से लेकर मेघालय से होती हुई सिल्चर तक जाएगी। इस क्षेत्र में परिवहन में सुधार लाने के लिए इन्हें अनिवार्य माना गया है।
Ø पूर्वोत्तर क्षेत्र में अंतर्देशीय जल परिवहन, विशेषकर बंग्लादेश में अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र की सीमा रेखा से होते हुए यातायात व्यवस्था को दोनों देशों के लिए उत्साहवर्द्धक परिदृश्य में देखा जा रहा है।
Ø बंगाल के उत्तरी क्षेत्र में और असम के बीच संकरे गलियारे से बचने के लिए विशेष रूप से अंतर्देशीय जल परिवहन का लाभ दिया जा सकता है।
Ø भूटान और बांग्लादेश के साथ ही आसियान देशों, विशेषकर म्यांमार जैसे अपने पड़ोसी देशों तक पूर्वोत्तर क्षेत्र से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन संपर्क पर जोर देना भारत के लिए आवश्यक है। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों को फलदायक बनाने के लिए इस क्षेत्र के आंतरिक हिस्से से लेकर देश के शेष हिस्से से परिवहन संपर्क को बेहतर बनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष के तौर पर एक पहल के रूप में इस रिपोर्ट के सुझाव निम्नानुसार हैं –
Ø परिवहन प्रणाली के सभी हिस्सों का आधुनिकीकरण और विस्तार करना जरूरी है और इसे पूरा करने के लिए सभी संदर्भों में क्षमता निर्माण भी जरूरी है।
Ø राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों की संस्थाओं में गुणवत्ता और संख्या दोनों ही दृष्टि से तकनीकी दृष्टि से पर्याप्त क्षमता होनी चाहिए।
Ø उत्पादकों और उपभोक्ताओं की जरूरतों के बीच मध्यस्थता करने के लिए, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने और किसी एकाधिकार शक्ति के परिणामों को नियमित करने के उद्देश्य से पर्याप्त तकनीकी क्षमता के साथ नये नियामक प्राधिकरणों की स्थापना करना अथवा मौजूदा प्राधिकरणों को संचालित करना।
Ø देशभर में परिवहन के संदर्भ में अनुसंधान और विकास संस्थाएं स्थापित करना अथवा उसे सशक्त बनाना, परिवहन के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रतिभा की शिक्षा देना और उसका लाभ प्राप्त करना।
Ø राजस्व जुटाते समय गड़बडियों को हटाने के लिए राजकोषीय प्रणालियों को सुसंगत बनाना।
Ø परिवहन संबंधी सभी आयोजनाओं और इनके कार्यान्वयन में सुरक्षा संबंधी समस्याओं को दूर करना सबसे महत्वपूर्ण है।
योजना आयोग की वेबसाइट http://planningcommission.nic.in/ पर राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति पर गठित उच्च स्तरीय समिति की पूरी रिपोर्ट उपलब्ध है।
शनिवार, 19 अप्रैल 2014
पारिवारिक रिश्ता और सियासी घमासान
राजनीति में सियासी रिश्ते और सियासत में पारिवारिक रिश्ते दोनों को लेकर अक्सर विवाद होते हैं। कभी वरुण गांधी कांग्रेस उपाध्यक्ष के काम की तारीफ करते हैं तो मेनका गांधी उसे वरुण की तरफ से जल्दबाजी में दिया गया बयान करार देती है। कुछ दिनों के भीतर ही इसी मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए प्रियंका गांधी वरुण गांधी को भटका हुआ करार देते हुए इलाके की जनता से उन्हें सही रास्ते पर लाने की अपील करती है। फिर सियासत में नफा नुकसान को देखते हुए मेनका गांधी बीच में कूद पड़ती है और कहती है कि कौन भटका हुआ है, इसका फैसला चुनाव नतीजों के आने के बाद हो जाएगा। लेकिन सियासत में रिश्तों को लेकर मचे राजनीतिक घमासान के सिलसिले का यहीं अंत नहीं होता है। इसके बाद फिर वरुण गांधी की बारी आती है। इस बार वह कुछ ज्यादा ही आक्रामक अंदाज में पेश आते हैं। पारिवारिक रिश्तेदारों से राजनीति के मैदान में कैसे मुकाबला किया जाए, इस मुद्दे को लेकर वरुण दो टूक शब्दों में बात करने में यकीन रखते हैं। वरुण ने सही मौका देखकर विरोधियों को राजनीति में शिष्टाचार और संस्कार का जमकर पाठ पढाया। उन्होंने कहा कि दूसरों की आलोचना वह करते हैं, जो काम नहीं करते हैं। काम करने वालों के पास इतना वक्त कहां होता है कि वह दूसरों की निंदा कर सकें। उन्होंने कहा कि वह राजनीति में सभी का आदर और सम्मान करते हैं। विरोधियों से काम के आधार पर मुकाबला करते हैं। सियासत में निजी और व्यक्तिगत तौर पर किसी के खिलाफ बयानबाजी नहीं करते हैं। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने विरोधियों को जनता की सेवा करने की नसीहत भी दे डाली। उन्होंने कहा कि राजनीति का मतलब दूसरों को नीचा दिखाना नहीं होता है। राजनीति में बयानबाजी करते समय हद की सीमा को कभी पार नहीं करना चाहिए। वरुण के मुताबिक वह हमेशा राजनीति में लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखते हैं। कुछ दिनों पहले ही सियासतदान यह मानने लगे थे कि सियासत के मैदान में गांधी परिवार के दो धुरंधर वरुण और राहुल गांधी के बीच रिश्तों में जमी बर्फ भले ही पिघलने लगी है। लेकिन वरुण गांधी की मां मेनका गांधी ने अपने बयानों के जरिए साफ कर दिया कि उन्होंने दोनों भाइयों के बीच बढ़ते प्रेम पर अपने आशीर्वाद की मुहर नहीं लगायी है। मेनका की नज़र में राहुल, प्रियंका या सोनिया सिर्फ सियासी प्रतिद्वंदी है।
मेनका ने कुछ दिनों पहले ही सोनिया पर एक विदेशी मीडिया का हवाला देते हुए निजी हमला बोला था। मेनका गांधी ने कहा था कि दहेज में तो कुछ लाई नहीं फिर इतनी दौलत कहां से लाई। एक तरफ वरुण सियासत में लक्ष्मण रेखा की बात करते हैं। दूसरी तरफ मेनका गांधी के आरोप। इसे आप क्या कहेंगे। मेनका गांधी खुलेआम सोनिया गांधी पर आरोप लगाने से बाज नहीं आती।
जहां तक पारिवारिक रिश्ते का सवाल है तो मेनका गांधी ने वरुण गांधी की शादी में सोनिया, राहुल और प्रियंका को भी आने का न्यौता भेजा था। लेकिन बुलावा भेजने के बाद भी राहुल,सोनिया या प्रियंका ने वहां जाना गंवारा नहीं समझा। लिहाजा सियासी दुश्मनी और पारिवारिक रिश्तों में दूरी की कहानी काफी पुरानी है। चुनाव के इस मौसम में वरुण के सामने ऐसी कौन सी मजबूरी है कि वह पार्टी के रुख से हटकर पहले राहुल की तारीफ करते हैं। फिर प्रियंका गांधी पर सियासी वार करते हैं।
बुधवार, 2 अप्रैल 2014
कश्मीर की कली बनाम बाज़ार का फूल
ऐतिहासिक कश्मीर घाटी का नाम बागवानी से जुड़ा है। कश्मीर में हमेशा पुष्प उद्योग की अच्छी संभावनाएं रही हैं। मुगलों के समय में भी कश्मीर में भरपूर बागवानी होती थी और मुगल बादशाहों को खूबसूरत बागों के लिए जाना जाता है। फूल, प्रकृति की अनूठी कृति है, जो लोगों को न केवल खुशबू और नजारे के लिए आकर्षित करते हैं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी उनके साथ लगाव हो जाता है। आज कल फूलों का बहुत व्यावसायिक महत्व है और दुनिया भर में इनकी मांग है। कश्मीर घाटी में मौसम की स्थिति और जमीन का उपजाऊपन फूलों की खेती के लिए बहुत ही अनुकूल है। इस कारण बागवानी विभाग श्रीनगर में एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप उद्यान बना सका है।
विश्व प्रसिद्ध डल झील के किनारे विकसित इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप उ़द्यान में टयूलिप की 60 से अधिक किस्में हैं, जिनका हॉलैंड से आयात किया गया है। पहले इस उद्यान को सिराज बाग से नाम से जाना जाता था। यह टयूलिप उद्यान 2008 में खोला गया। टयूलिप उद्यान स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य घाटी में पर्यटकों के मौसम को जल्दी शुरू करना था। यह उद्यान 20 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है। इस वर्ष इसका और विस्तार होने की उम्मीद है, क्योंकि ज़बरवान पहाड़ी का और इलाका टयूलिप उद्यान के विस्तार के लिए इस्तेमाल में लाया जा रहा है। इस से न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, उन स्थानीय युवकों को भी रोजगार मिलेगा, जिन्होंने कृषि और बागबानी से सम्बद्ध क्षेत्रों में डिग्रियां प्राप्त की हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि भूमि की उर्वरकता फूलों की खेती के लिए सर्वोत्तम है, लेकिन फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए अधिकारियों द्वारा गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है। वहां आर्द्र और दलदली जमीन के कई हिस्से हैं, जिन्हें फूलों की खेती के लिए विकास किया जा सकता है। विशेषज्ञों का यह भी विचार है कि वहां के दलदली इलाके जैसे अंचर झील के आस-पास के बड़े दलदली इलाके का उपयोग करने की काफी गुंजाइश है और वहां मौसमी फूलों की कई किस्मों की खेती की जा सकती है।
इस काम को वैज्ञानिक तरीके से करने की आवश्यकता है और जमीन की तैयारी, बुआई और फसल की कटाई का प्रबंध, फूलों की खेती को एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि के रूप में बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए। इस लिए इसे व्यावसायिक स्तर पर करने की आवश्यकता है। फूलों के विभिन्न फार्मों और बगीचों को विकसित करके लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किये जा सकते हैं। फूलों की खेती को बढ़ावा देने और उसके विकास के लिए उचित बजट प्रावधान किये जाने चाहिएं और फूलों के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए एक ही स्थान पर आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
कश्मीर के पुष्प विभाग को आम तौर पर अप्रैल महीने के दौरान होनी वाली वर्षा से ट्यूलिप फूलों को बचाने के भी उपाय करने चाहिएं, क्योंकि इससे नाजुक ट्यूलिप फूलों को नुकसान पहुंचता है। इस समय ट्यूलिप फूलों का बग़ीचा पर्यटको को आकर्षित करने के लिए पूरी तरह तैयार है। इसे बड़े पैमाने पर सजाया गया है। इस वर्ष सीधी क्यारियां बनाई गई हैं और उनमें नई किस्म के ट्यूलिप फूल लगाए गए हैं। इनमें उसी रंग के, दो रंगों के और विभिन्न रंगों के फूल भी शामिल हैं।
ट्यूलिप उद्यान का पूरी तरह विस्तार करने की तैयारियां चल रही हैं। इस वर्ष टयूलिप फूल की लगभग तीन लाख गांठें आयात की गई हैं। विश्व भर के पर्यटक इस उद्यान की सुन्दरता की ओर आकर्षित होते हैं। यहां तक कि कश्मीर घाटी से लौटने के बाद भी पर्यटकों के मस्तिष्क में ट्यूलिप बाग़ की सम्मोहित करने वाली सुन्दरता की याद ताजा बनी रहती है।
मंगलवार, 1 अप्रैल 2014
लोकसभा चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं
विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र में मतदान प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए क्या कुछ आवश्यक है? वास्तव में यह एक बेहद कठिन काम है। वर्ष 2009 का आम चुनाव इस बात का सरल प्रमाण है। इस विशाल एवं जटिल गणतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेकर, देश के सुदूर प्रांतों में कभी बर्फीले पहाड़ों तक पहुंचकर, कभी तपती धूप में मरुभूमि के क्षेत्रों को पार करते हुए तो कभी नदी-नालों को पार करते हुए, पूरी जिम्मेवारी के साथ जो लोग इस प्रक्रिया में शामिल हुए- उन्हीं के योगदान के फलस्वरूप गणतंत्र का दीप प्रज्वलित है।
आम चुनाव 2009 के दौरान आंध्र प्रदेश में अपने आबंटित मतदान केद्रों तक ईवीएम के साथ जाते हुए मतदानकर्मी
लोकसभा चुनाव 2009 पांच चरणों में पूरा हुआ था। पहले चरण का मतदान 16 अप्रैल, 2009 और पांचवें चरण का मतदान 13 मई, 2009 को हुआ। इस प्रक्रिया की विशालता इस बात से स्पष्ट होती है कि आम चुनाव, 2009 में 71,377 करोड़ मतदाताओं ने 8,34,944 मतदान केन्द्रों में 9,08,643 नियंत्रण इकाईयों तथा 11,83,543 ईवीएम के माध्यम से अपने मत जाहिर किए। ताकि मतदान की यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण, पारदर्शी तथा बिना किसी अड़चन के संपूर्ण हो, 4.7 मिलियन मतदान अधिकारी, 1.2 मिलियन सुरक्षाकर्मी तथा 2046 पर्यवेक्षक तैनात किए गए थे। सुरक्षा कर्मियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए 119 विशेष रेलगाड़ियों की व्यवस्था की गई। साथ ही, 55 हेलीकॉप्टर भी इस प्रक्रिया में शामिल किए गए। गणना के लिए 16 मई, 2009 को 1080 केन्द्रों जहां लगभग 60,000 कर्मचारियों को तैनात किया गया था।
भारत निर्वाचन आयोग ने एक भी मतदाता को मतदान देने से वंचित नहीं किया। गुजरात के गिर वन के गुरु भारतदासजी के मतदान को सुनिश्चित करने के लिए वहां एक मतदान केन्द्र खोला गया और तीन मतदान अधिकारियों को तैनात किया गया।
छत्तीसगढ़ में घने जंगलों से घिरे, पहाड़ी क्षेत्र में स्थित कोरिया जिले के शेरेडन्ड गांव में दो मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग ने विशेष व्यवस्था की थी। इन दो मतदाताओं के लिए एक मतदाता केन्द्र की स्थापना की गई और चार चुनाव अधिकारियों को तीन सुरक्षा कर्मियों के साथ वहां तैनात किया गया।
अरुणाचल प्रदेश में चार ऐसे चुनाव केन्द्र हैं जहां केवल तीन मतदाता प्रति केन्द्र हैं। वहां पहुंचने के लिए मतदान अधिकारियों के दल को हेलीकॉप्टर से उतरकर या निकटतम रास्ते से तीन-चार दिनों तक पैदल जाना पड़ा। अरुणाचल प्रदेश में 690 मतदान दलों को हेलीकॉप्टर द्वारा सुदूर गांवों तक पहुंचाया गया। इनमें से कई गांव म्यांमार तथा चीन सीमा के पास स्थित हैं।
हिमाचल प्रदेश के कई भागों में प्रत्येक वोट को शामिल करने के लिए मतदान अधिकारियों के दलों को ठंडी, बर्फीली हवाओं मे से होते हुए घंटो पैदल चलना पड़ता है। 15000 फीट की ऊँचाई पर स्थित लाहौल-स्पीति के जनजातीय जिले में हिक्कम नामक जगह पर स्थित मतदान-केंद्र 321 मतदाताओं के लिए स्थापित किया गया जो कि देश का सबसे ऊंचा मतदान-केंद्र है। इस जिले के एक-तिहाई से अधिक मतदान-केंद्र 13,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है- मतदान अधिकारियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। सुदूर पहाड़ों पर स्थित होने के कारण 36 मतदान केंद्रों को अति संवेदनशील तथा 23 केंद्रों को संवेदनशील घोषित किया गया था। पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग ज़िले में मतदान-अधिकारियों को 12 किलोमीटर तक की चढ़ाई चढ़कर श्रीखोला मतदान केंद्र तक पहुँचना पड़ा।
बाड़मेड़ निर्वाचन क्षेत्र 71,601 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ हैं। मरुभूमि के क्षेत्र में फैले होने के कारण छ: चलायमान केंद्र शुरू किए गए ताकि मेनाऊ, जेसिलिया, नेहदाई, तोबा, कायमकिक, धाणी तथा रबलऊओ फकीरोवाला गॉंव के 2324 मतदाता अपना मतदान कर सकें। इस प्रयास से मतदाताओं को मतदान के लिए लम्बी दूरी तक पैदल नहीं जाना पड़ा।
सुन्दरवन के झाड़िदार वनों में मतदान-दल नावों की सहायता से पानी के रास्ते मतदाताओं तक अपना सामान लेकर पहुँचे। 700 किलोमीटर लम्बाई वाले अन्डमान तथा निकोबार द्वीप समूहों में मतदान का आयोजन एक चुनौती भरी प्रक्रिया थी। कई जगहों पर मतदान-अधिकारियों को 35-40 घण्टों तक नावों पर जाकर पहुँचना पड़ा। लक्षद्वीप के 105 मतदान केंद्रों तक केवल नावों के माध्यम से ही पहुँचा जा सका। मिनीकॉप द्वीप पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से ही ईवीएम पहुँचाए गए।
असम के सोनितपुर जिले में दो बैलगाड़ियॉं तैनात थी क्योंकि वहॉं के रास्ते बहुत अच्छे नहीं हैं। राज्य के कई भागों में मतदान-सम्बन्धी उपकरण तथा अधिकारियों के आने जाने के लिए पालतू हाथी उपयोगी साबित हुए। बोक्काइजान ज़िले में जंगली हाथियों के उपद्रव के कारण पॉंच मतदान केंद्रों तक सामान पहुँचाने के लिए पोर्टर नियुक्त किए गए क्योंकि वहां 40 किलोमीटर तक की दूरी पैदल ही तय करना पड़ता है।
भौगोलिक चुनौतियों के साथ-साथ 79 चुनावी क्षेत्रों में नक्सलवादियों का दबदबा था। साथ ही, देश के ऊत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में अलगाववादी तत्वों ने धमकी दे रखी थी। चुनाव आयोग ने विस्तृत योजनाए बनाई और उनका कार्यान्वयन किया। इतनी सारी चुनौतियों के बावजूद 58 प्रतिशत से अधिक लोगों ने मतदान किया और साबित किया कि गणतांत्रिक भावनाएं अभी हमारे देश में मजबूत हैं।
शनिवार, 29 मार्च 2014
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इतिहास
स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव किसी भी देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इसमें निष्पक्ष, सटीक तथा पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया में ऐसे परिणाम शामिल हैं जिनकी पुष्टि स्वतंत्र रूप से की जा सकती है। परम्परागत मतदान प्रणाली इन लक्ष्य में से अनेक पूरा करती है। लेकिन फर्जी मतदान तथा मतदान केन्द्र पर कब्जा जैसा दोष पूर्ण व्यवहार निर्वाची लोकतंत्र भावना के लिए गंभीर खतरे हैं। इस तरह भारत का निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार का प्रयास करता रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के दो प्रतिष्ठानों भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड, बंगलौर तथा इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से भारत निर्वाचन आयोग ने ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) की खोज तथा डिजायनिंग की।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल भारत में आम चुनाव तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में आंशिक रूप से 1999 में शुरू हुआ तथा 2004 से इसका पूर्ण इस्तेमाल हो रहा है। ईवीएम से पुरानी मतपत्र प्रणाली की तुलना में वोट डालने के समय में कमी आती है तथा कम समय में परिणाम घोषित करती है। ईवीएम के इस्तेमाल से जाली मतदान तथा बूथ कब्जा करने की घटनाओं में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है। इसे निरक्षर लोग ईवीएम को मत पत्र प्रणाली से अधिक आसान पाते हैं। मत-पेटिकाओं की तुलना में ईवीएम को पहुंचाने तथा वापस लाने में आसानी होती है।
ईवीएम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मतदान कार्य का तकिया कलाम बन गई है। यहां ईवीएम के विकास का तथा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में इसके इस्तेमाल का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
ईवीएम का क्रमिक विकास
v ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल मई, 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केन्द्रों पर हुआ।
v 1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया गया कि चुनाव में वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रुप दिये जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का आदेश जारी हुआ था। दिसम्बर, 1988 में संसद ने इस कानून में संशोधन किया तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में नई धारा-61ए जोड़ी गई जो आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ।
v केन्द्र सरकार द्वारा फरवरी, 1990 में अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई गई। भारत सरकार ने ईवीएम के इस्तेमाल संबंधी विषय विचार के लिए चुनाव सुधार समिति को भेजा।
v भारत सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया। इसमें प्रो.एस.सम्पत तत्कालीन अध्यक्ष आर.ए.सी, रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन, प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (तब आईआईटी दिल्ली के साथ) तथा डॉ.सी. राव कसरवाड़ा, निदेशक इलेक्ट्रोनिक्स अनुसंधान तथा विकास केन्द्र, तिरूअनंतपुरम शामिल किए गए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ये मशीनें छेड़छाड़ मुक्त हैं।
v 24 मार्च 1992 को सरकार के विधि तथा न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव कराने संबंधी कानूनों, 1961 में आवश्यक संशोधन की अधिसूचना जारी की गई।
v आयोग ने चुनाव में नई इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों के वास्तविक इस्तेमाल के लिए स्वीकार करने से पहले उनके मूल्यांकन के लिए एक बार फिर तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। प्रो.पी.वी. इनदिरेशन, आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल इसके सदस्य बने।
v तब से निर्वाचन आयोग ईवीएम से जुड़े सभी तकनीकी पक्षों पर स्वर्गीय प्रो.पी.वी. इनदिरेशन (पहले की समिति के सदस्य), आईआईटी दिल्ली के प्रो.डी.टी. साहनी तथा प्रो.ए.के. अग्रवाल से लगातार परामर्श लेता है। नवम्बर, 2010 में आयोग ने तकनीकी विशेषज्ञ समिति का दायरा बढ़ाकर इसमें दो और विशेषज्ञों-आईआईटी मुम्बई के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो.डी.के. शर्मा तथा आईआईटी कानपुर के कम्प्यूटर साइंस तथा इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. रजत मूना (वर्तमान महानिदेशक सी-डैक) को शामिल किया।
v नवम्बर, 1998 के बाद से आम चुनाव/उप-चुनावों में प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केन्द्रों पर 10.75 लाख ईवीएम के इस्तेमाल के साथ ई-लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया। तब से सभी चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है।
ईवीएम की विशेषताएः
v यह छेड़छाड़ मुक्त तथा संचालन में सरल है
v नियंत्रण इकाई के कामों को नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम "एक बार प्रोग्राम बनाने योग्य आधार पर"माइक्रोचिप में नष्ट कर दिया जाता है। नष्ट होने के बाद इसे पढ़ा नहीं जा सकता, इसकी कॉपी नहीं हो सकती या कोई बदलाव नहीं हो सकता।
v ईवीएम मशीनें अवैध मतों की संभावना कम करती हैं, गणना प्रक्रिया तेज बनाती हैं तथा मुद्रण लागत घटाती हैं।
v ईवीएम मशीन का इस्तेमाल बिना बिजली के भी किया जा सकता है क्योंकि मशीन बैट्री से चलती है।
v यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक नहीं होती तो ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव कराये जा सकते हैं।
v एक ईवीएम मशीन अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है।
गुरुवार, 27 मार्च 2014
पूर्वोत्तर परिषद की विकास यात्रा
पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में तेजी लाने के लिए पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम, 1971 के जरिए एक सलाहकार संस्था के रूप में पूर्वोत्तर परिषद का गठन किया गया था। पूर्वोत्तर परिषद संशोधन अधिनियम, 2002 के अनुसार पूर्वोत्तर परिषद को एक क्षेत्रीय आयोजना संस्था के रूप में कार्य करने का अधिकार दिया गया। पूर्वोत्तर परिषद, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करती है। परिषद को पर्याप्त प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्ता प्रदान की गई है। योजना आयोग द्वारा स्वीकृत कुल बजट आबंटन में से परिषद की वार्षिक योजना तैयार की जाती है, जिसका अनुमोदन स्वयं परिषद करती है। पूर्वोत्तर परिषद के सचिव के पास 15 करोड़ रुपए तक की परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार है। 15 करोड़ रुपए से अधिक लागत की परियोजनाओं का मूल्यांकन और अनुमोदन भारत सरकार के वित्तीय नियमों के अनुसार किया जाता है।
पूर्वोत्तर परिषद, पूर्वोत्तर क्षेत्र के नियोजन तथा आर्थिक और सामाजिक विकास के अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रही है। परिषद की प्रमुख उपलब्धियों में विभिन्न क्षेत्रीय संगठनों की स्थापना भी शामिल है, जैसे पूर्वोत्तर विद्युत शक्ति निगम, पूर्वोत्तर पुलिस अकादमी, क्षेत्रीय अर्ध-चिकित्सीय और नर्सिंग संस्थान, पूर्वोत्तर क्षेत्रीय भूमि एवं जल प्रबंध संस्थान आदि। अन्य उपलब्धियों में सड़क निर्माण (9800 कि.मी.), ब्रह्मपुत्र नदी पर तेजपुर सड़क पुल सहित 77 पुलों का निर्माण, 9 अंतरर्राज्यीय बस अड्डे, 4 अंतरर्राज्यीय ट्रक टर्मिनस; एलांइस एयर के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण और विमान सेवा कनेक्टिविटी में सुधार के लिए हवाई अड्डा प्राधिकरण के माध्यम से 10 हवाई अड्डा विकास परियोजनाओं के लिए वित्त-पोषण; 694.50 मेगावॉट क्षमता की पन बिजली परियोजना की स्थापना, 64.5 मेगावॉट ताप बिजली उत्पादन(जो पूर्वोत्तर क्षेत्र की वर्तमान स्थापित क्षमता के 30 प्रतिशत के बराबर है।) ; 57 बिजली प्रणाली सुधार योजनाएं; मेघालय, असम और मणिपुर के 2-2 जिलों में पूर्वोत्तर क्षेत्र समुदाय संसाधन प्रबंधन परियोजना, चरण-1 और चरण-2 लागू, अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों और मणिपुर के बाकी के दो जिलों के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र समुदाय संसाधन प्रबंधन परियोजना, चरण-3 परियोजना की शुरूआत इत्यादि है।
पूर्वोत्तर परिषद का, पूर्वोत्तर परिषद संशोधन अधिनियम, 2002 के अनुसार 26 जून, 2003 से पुनर्गठन किया गया है। इस संशोधन के अंतर्गत पूर्वोत्तर परिषद को क्षेत्रीय आयोजना संस्था के रूप में कार्य करने का अधिकार दिया गया है और सिक्किम को आठवें राज्य के रूप में परिषद में शामिल किया गया है। इस संशोधन में व्यवस्था है कि पूर्वोत्तर परिषद, सिक्किम को छोड़कर दो या अधिक राज्यों के लाभ के लिए योजनाओं/परियोजनाओं को प्राथमिकता दे सकती है। इस परिषद के सदस्यों में पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री तथा भारत के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत तीन सदस्य शामिल हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के मंत्री मार्च, 2005 से इस परिषद के पदेन अध्यक्ष बनाए गए हैं।
शनिवार, 22 मार्च 2014
केंद्रीय सतर्कता आयोग और उसके अधिकार
केंद्रीय सतर्कता आयोग भले ही आज वक्त की ज़रुरत के हिसाब से मजबूरी और ज़रुरी दोनों है। लेकिन इसके बाद भी हमारे देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आती रहती है। आइए एक नज़र डालते हैं केंद्रीय सतर्कता आयोग के सफरनामें पर। केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना 1964 में संतानम समिति की सिफारिश पर की गई थी। एक सदस्यीय आयोग करीब साढ़े तीन दशक से सरकार में सतर्कता प्रशासन के पर्यवेक्षण का कार्य कर रहा है। न्यायमूर्ति नोत्तूर श्रीनिवास राव पहले सर्तकता आयुक्त बने, जिनकी नियुक्ति 19 फरवरी, 1964 से प्रभावी हुई। उच्चतम न्यायालय ने जैन हवाला मामले के रूप में प्रसिद्ध याचिका संख्या 340-343/1993 (विनीत नारायण और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य) पर 18 दिसम्बर 1997 को निर्देश दिया था कि केंद्रीय सतर्कता आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। इसके बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 (2003 का 45) के रूप में इसे वैधानिक दर्जा दिया गया।
केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 में केंद्रीय सतर्कता आयोग का संविधान उपलब्ध कराया गया है। आयोग को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत कुछ सरकारी कर्मचारियों के कथित अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया गया है। इस अधिनियम में आयोग को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना के कामकाज का अधिकार भी दिया गया। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना को अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) कहा जाता है। सतर्कता आयोग को सीबीआई द्वारा की गई जांच की प्रगति की समीक्षा करने और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत आने वाले कथित अपराधों पर मुकद्दमें की मंजूरी देने का भी अधिकार है। आयोग केंद्र सरकार के तहत विभिन्न संगठनों के सतर्कता प्रशासन का पर्यवेक्षण भी करता है।
आयोग को केंद्र सरकार के समूह क स्तर के अधिकारियों और निगमों, सरकारी कंपनियों, सोसायटी तथा केंद्र सरकार के अन्य स्थानीय प्राधिकरणों के इसी स्तर के अधिकारियों, अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों के मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वत: संज्ञान के आधार पर जांच और निरीक्षण करने का अधिकार है।
आयोग भ्रष्टाचार से निपटने के लिए प्रभावी निवारक उपाय करने पर बल देता है तथा सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने पर भी जोर देता है। सुशासन पर बल देने के मद्देनजर आयोग मौजूदा व्यवस्था और सरकारी विभागों तथा इसके संगठनों की प्रक्रियाओं की कड़ी निगरानी करता है तथा व्यवस्था को मजबूत बनाने और उसमें सुधार की सिफारिश करता है। आयोग सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार से निपटने और पारदर्शिता, बराबरी तथा प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए ई-खरीद, ई-भुगतान, ई-नीलामी इत्यादि को अपनाने के जरिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर बल दे रहा है। आयोग ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के रूप में विभिन्न भ्रष्टाचार विरोधी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और संगठनों के साथ भी संपर्क किया है। अंतराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधी प्राधिकरण संघ के लिए ज्ञान प्रबंध प्रणाली बनाना इसी तरह का हाल ही में किया गया एक प्रयास है।
रविवार, 9 मार्च 2014
डाक विभाग का कायाकल्प
संचार और सूचना प्रौद्योगिक मंत्रालय द्वारा डाक विभाग का काफी रूपान्तरण किया जा रहा है। इसने डाक विभाग का कायाकल्प कर दिया है और डाक विभाग को अब राष्ट्र में प्रौद्योगिकी चालित विभाग के रूप में जाना जाता है। इसके लिए सरकार ने आईटी आधुनिकीकरण परियोजना मंजूर की है जिस पर कुल 4,909 करोड़ रूपये परिव्यय होगा। इस विशिष्ट परियोजना के तहत देश में फैले सभी 1,55,000 डाकघरों को नेटवर्क से जोड़ दिया जाएगा। डाकघर बचत बैंक का कोर बैंकिंग समाधान, पोस्टल जीवन बीमा का मेक्केमीस बीमा समाधान किया जाएगा। इससे देश में सभी जबावदेह डाक प्रेषण का ध्यान रखा और पता लगाया जा सकेगा। आईटी आधुनिकीकरण परियोजना 2012 में शुरू की गई तथा 2015 में इसका परिचालन होने की आशा है। इसमें 8 अनुभाग शामिल किये गये हैं जिन पर कार्य विभिन्न चरणों में चल रहा है। एक समर्पित डाटा सेंटर पहले ही बना लिया गया है।
यह परियोजना इसके अनुपात को देखते हुए बेजोड़ है तथा डाक विभाग के ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के वायदें तथा कर्मचारियों की उच्चतर संतुष्टि रेखांकित करती है। इस परियोजना के माध्यम से भारतीय जन मानस तक पहुंच को और व्यापक बनाया जाएगा।
डाकघर के सभी विभागों में कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस)
डॉक विभाग चालू पंचवर्षीय योजना के दौरान विभागीय डाक घरों में कोर बैंकिंग सोल्यूशन को भी लागू कर रहे हैं। परियोजना के तहत डाकघर के बचत बैंक (पीओएसबी) ग्राहकों को एटीएम बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, फोन बैंकिंग, राष्ट्रीय इलैक्ट्रोनिक निधि ट्रांसफर (एनईएफटी) एवं रियल टाइम ग्रोस सेटलमेन्ट (आरटीजीएस) सेवाओं की शुरूआत की। यह डाकघर के बचत बैंक ग्राहकों को एटीएम के नेटवर्क के माध्यम से किसी भी समय कहीं भी बैंकिंग करना सुलभ करायेगा। कोर बैंकिंग सोल्यूशन को 38 प्रायोगिक डाकघरों में शुरू किया गया है और 2015 तक इसे सभी विभागीय डाकघरों में लागू कर दिया जाएगा। परियोजना के तहत डाकघरों की शाखा में बायो-मीट्रिक हाथ में रखने वाला उपकरण, इसमें आधार, प्रिन्टर एवं सौर ऊर्जा से चार्ज करने वाली बैटरी युक्त प्रौद्योगिक सूचना मुहैया की जाएगी।
देश में डाक प्रेषण से संबंधित सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने की पहलें
डाक विभाग देश में डाक प्रेषण से संबंधित सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने की पहल कर रहा है। मेल नेटवर्क ऑप्टिमाइजेशन परियोजना (एमएनओपी) के भाग के रूप में डाक के वितरण के नेटवर्क का पुनर्गठन किया गया है और इसकी प्रक्रिया को फिर से डिजाइन किया गया है। स्पीड पोस्ट रजिस्टर्ड डाक की और अधिक प्रभावशाली निगरानी के लिए ऑन लाइन निगरानी प्रणाली विकसित की गई है। स्पीड पोस्ट मदों को खोजने की प्रणाली की भांति रजिस्टर्ड मदों के लिए ऑन लाइन ट्रैक एवं ट्रैस प्रणाली अपनाई गई है। दिल्ली और कोलकता में डाक छांटने में और तेजी लाने के लिए आटोमेटिड मेल प्रसंस्करण केन्द्र (एएमपीसीएस) गठित किये गए हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में डाक प्रेषण की गतिविधि की निगरानी करने के लिए डाक वाहनों में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम प्रणाली अपनाई गई है।
सभी विभागिय डाकघरों में कम्प्यूटरों तथा सहायक उपकरण मुहैया करना
डाक विभाग ने देश में सभी 25,145 विभागीय डाकघरों को उनकी कार्य कुशलता को बढ़ाने के लिए कम्प्यूटर तथा सहायक उपकरण भी उपलब्ध करा दिये हैं। दूर से प्रबंध की जाने वाली फ्रैकिंग मशीने (आरएमएफएमएस) चरणबद्ध ढ़ंग से डाकघरों को वितरित की जा रही हैं। इन मशीनों में कई सुरक्षा विशेषताएं हैं जैसे कि 2डी बारकोड़स का सर्जन जिनसे डाक की साक्ष्य तलाशने में सहायता मिलती है। इन मशीनों से मदों की त्वरित फ्रैकिंग करने से डाकघरों की कार्य कुशलता में सुधार होगा तथा ग्राहकों के बारे में तैयार डाटा बेस इलैक्टिक फॉर्म में उपलब्ध होगा।
'परियोजना ऐरो'
डाक विभाग ने अप्रैल 2008 में 'प्रोजेक्ट ऐरो' नाम से गुणवत्ता सुधार परियोजना की भी शुरूआत की। इसमें डाकघरों के मूलभूत परिचालनों तथा इसके माहौल में व्यापक सुधार किया गया।
डाक विभाग ने सेवोत्म शिकायत सिटीजन्स चाटर्स बनाया। इसमें विभिन्न डाक उत्पादों तथा सेवाओं के वितरण मांनदण्ड निर्धारित किये गये हैं। सभी स्तरों पर लोक शिकायतों का तुरंत निपटारा करने तथा सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए निगरानी प्रणाली बनाई गई है। शिकायतों का निपटान करने के लिए केन्द्रीय लोक शिकायत निपटान तथा निगरानी प्रणाली (सीपीजीआरएएमएस) कार्यरत हैं।
ई-आईपीओ, ई-पोस्ट, एक्सप्रैस पार्सल पोस्ट जैसी नई सेवाएं शुरू की गई हैं। जिनसे न केवल नए राजस्व का रास्ता खुला है बल्कि डाकघरों की पहुंच का दायरा बढ़ा है। इनसे ग्राहकों को मूल्यवर्धित सेवाएं भी मिली है।
बाजार शेयर में बढ़ोत्तरी
प्राइवेट कोरियर की तुलना में डाक विभाग के मूल्यवर्धित सेवाओं का बाजार शेयर पिछले दो वर्षों में बढ़ा है
राजस्व में बढ़त
सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के कारण डाक सेवाओं से राजस्व में हर वर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है तथा सरकार हर आगामी वर्ष के लिए लक्ष्यों में बढ़ोत्तरी कर रही है।
विभाग ने और अधिक राजस्व बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए हैं : -
डाक सेवाओं की गुणवत्ता में बढ़ावा देने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी आधुनिकीकरण परियोजना के अलावा मेल नेटवर्क आप्टिमाइजेशन परियोजना के तहत कई पहल की गई हैं।
लघु बचत नेटवर्क के तहत खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकाधिक व्यक्तियों तक पहुंच बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाये गये हैं। इसी प्रकार के अभियान ग्रामीणों के बीच जीवन बीमा/बचत के लिए पोस्टल लाइफ इंशोरेंस (पीएलआई) तथा ग्रामीण पोस्टल लाइफ बीमा (आरपीएलआई) चलाये गये हैं।
प्रत्येक पोस्टल सर्किल के राजस्व तथा खर्चों से संबंधित वित्तीय स्थिति की नियमित आधार पर समीक्षा की जाती है।
बाजार की मांग को देखते हुए पोस्टल उत्पादों की सेवा प्रणाली में सुधार और पुनर्गठन किया गया है।
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