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शनिवार, 15 फ़रवरी 2014
दोहन की संभावना से ऋण की संभावना तक : राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक रास्ता दिखाती है
प्रतिवर्ष राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक (एनएबीएआरडी) सभी जिलों की ऋण संबंधी पात्रता का आंकलन करती है। इस कार्रवाई से संतुलित विकास के प्रयासों को बढ़ावा मिलता है। विकास की इस प्रक्रिया में मुख्य हितधारक हैं- जिला प्रशासन, कार्यान्वयन करने वाले विभाग, बैंक, किसान इत्यादि।
एनएबीएआरडी ने इस कार्रवाई के लिए एक मानचित्रण प्रक्रिया विकसित की है। इसके तहत जिले में उपलब्ध संस्थागत ढांचों को अद्यतन करने की प्रक्रिया चलती रहती है। इसी के आधार पर संभावित जमीनी स्तर क्रेडिट (ग्राउन्ड लेवल के्डिट) का आकलन किया जाता है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक के विभिन्न क्षेत्रीय शाखाओं के विशेषज्ञों द्वारा इसका पुन: निरीक्षण किया जाता है। अंतत: जो वार्षिक क्षमता-संबद्ध ऋण योजना (एनुअल पोटेन्शियल लिंक्ड क्रेडिट प्लैन) नामक दस्तावेज तैयार होता है उसे विकास योजनाओं के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
एनएबीएआरडी की क्षमता-संबद्ध ऋण योजना (पीएलपी) की बहुत मांग है। बैंक तथा विकास-संबंधी विभाग या फिर विकास सम्बन्धी शैक्षणिक एवम् शोध विभागों के लिए यह दस्तावेज महत्वपूर्ण साबित होते हैं क्योंकि उन्हें बदलती परिस्थितियों के बारे में जानकारी मिलती है। अधिकतर ऐसा होता है कि एनएबीएआरडी के मुख्य हितधारकों को पीएलपी की सहायता से अर्थव्यवस्था के प्रमुख विकास क्षेत्रों को अंजाम देने की योजनाओं की समीक्षा करके उन्हें नई दिशा देने का मौका मिलता है।
उल्टी विनियोग विधि : एनएबीएआरडी प्रत्येक जिले को एक इकाई मानते हुए विकास योजनाओं की रूपरेखा तैयार करती है। एनएबीएआरडी के अधिकारी प्रत्येक जिले में मौजूद होने के कारण यह आसान हो जाता है। जिला विकास प्रबंधक (डीडीएम) के नाम से जाने जाने वाले यह अधिकारी जिला प्रशासन एवम् बैंकों के साथ निरन्तर विचारों का आदान-प्रदान करते रहते हैं। इस तरह वे विकास को गति देने के उद्देश्य से प्राथमिकताएं तय करते हैं।
ध्यान देने वाली यह बात है कि राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक समय से पहले क्षमता-संबद्ध ऋण योजना (पीएलपी) तैयार कर लेती है। इसके फलस्वरूप बैंक अपनी वार्षिक योजनाएं पीएलपी को ध्यान में रखते हुए बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, एनएबीएआरडी ने अगले वित्त वर्ष, यानि 2014-15 पहले ही, दिसम्बर 2013 की तिमाही में तैयार कर लिया था।
एनएबीएआरडी द्वारा प्रस्तुत वर्ष 2014-15 की पीएलपी में विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद संभावनाओं तथा उन्हें अंजाम देने के लिए उपलब्ध संस्थागत ढांचों को ध्यान में रखा गया है। पीएलपी दस्तावेज को तैयार करने से पहले कार्यान्वन करने वाले विभागों के साथ परामर्श किया गया ताकि गंभीर बुनियादी आवश्यकताओं का ध्यान रखा जा सके। इस पूरी कार्रवाई का उद्देश्य है कि ऋण नियोजन प्रक्रिया और विकास योजनाओं में समन्वय रखा जाए।
इस संदर्भ में यह बात ध्यान में रखनी होगी कि एनएबीएआरडी ने एक बेस-पीएलपी दस्तावेज तैयार किया है कि जो कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के कार्यकाल के साथ ही समाप्त होगा। मौजूदा आकलन वर्ष 2014-15 की वार्षिक योजना को भारत सरकार की प्राथमिकताओं के आधार पर संशोधित करने में मददगार है। इससे उम्मीद है कि ऊर्जा की स्थिति, मुद्रास्फीति, अनाजों के लिए दिए गए अनुदान पर ब्याज, खेती में यांत्रिकीकरण को महत्व देने में लाभ होगा। यह भी कोशिश की गई है कि दोहन क्षमता का एक विस्तृत विवरण तैयार किया जाए जिसके अनुसार विभिन्न बैंकों के संभावित ऋण का हिसाब लगाया जा सके।
राज्य स्तरों पर एकत्रीकरण – उदाहरण के लिए जब तमिलनाडु का पीएलपी तैयार किया जाता है तो उसके बाद एक राज्य फोकस पेपर (एसएफपी) तैयार किया जाता है, जिसमें राज्यभर के ऋण को एक जगह एकत्रित किया जाता है। उसके बाद एनएबीएआरडी द्वारा आयोजित एक राज्य-स्तरीय ऋण सेमिनार में सारी जानकारी प्रस्तुत की जाएगी। इस सेमिनार में राज्य सरकार, आरबीआई, एनएबीएआरडी तथा राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी के वरिष्ठ अधिकारी भी भाग लेते हैं। इस संगोष्ठी में सामने आए सुझावों से राज्य की विकास प्रक्रिया को बेहतरीन बनाया जाता है।
गंभीर आधारभूत हस्तक्षेप : क्षमता-संबंद्ध ऋण योजना ( पीएलपी) के प्रस्तुतिकरण के समय एनएबीएआरडी इस बात का भी पता लगाती है कि विभिन्न क्षेत्रों में जमीनी स्तर क्रेडिट (जीएलसी) को बढाना हो तो किन ढांचागत आवश्यकताओं को विकसित करना होगा। इस जानकारी को राज्य सरकारों को उपलब्ध कराया जाता है ताकि उचित कदम उठा सकें। एनएबीएआरडी राज्य सरकारों को ग्रामीण मूलभूत सुविधा विकास निधि (आरआईडीएफ) भी देती है ताकि वे अपनी अधूरी योजनाओं को पूरी कर सकें।
मामले का अध्ययन : मदुरई : मदुरई के लिए वर्ष 2014-15 का क्षमता- संबंद्ध ऋण योजना 6293 करोड़ रूपये के कुल सम्भावित खर्चे से सम्पन्न होगा और जिले के विभिन्न क्षेत्रों को प्राथमिकता क्षेत्र श्रेणी के अन्तर्गत विकसित करेगा। यह वर्ष 2013-2014 के वार्षिक ऋण योजना (एसीपी) के 5520 करोड़ रूपये से कहीं अधिक है।
पीएलपी के अंतर्गत कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए अधिक धनराशि तय की जाएगी जो कि बारहवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्यों के अनुरूप है। ऋण योजना में अनाजों के लिए 1939 करोड़ रूपये की धनराशि का प्रावधान है। यह भारत सरकार द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश के अनुरूप है- यानि, कृषि को किसान ऋण कार्ड (केसीसी) के माध्यम से बढ़ावा देना।
पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक सावधि ऋण कृषि विकास को बढ़ावा देता है। योजना दस्तावेज में लघु सिंचाई, भूमि विकास, डेरी, कृषि यांत्रिकीकरण, बागवानी तथा भंडारण की सुविधाओं के लिए 1570 करोड़ रूपये निर्धारित किए गए हैं।
एमएसएमई क्षेत्र का महत्व आय सृजन में महतवपूर्ण माना जाता है। इस क्षेत्र के लिए 1244 करोड़ रूपये निर्धारित किए गए हैं। मदुरई एक शहरी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है और ‘अन्य प्राथमिकता क्षेत्र’ के अंतर्गत बैंक 1540 करोड़ रूपये तक की धनराशि ऋण के रूप में भवन निर्माण, शिक्षा, उपभोक्ता वस्तुओं, व्यापारियों को तथा सड़क परिवहन ऑपरेटरों को दे सकती है।
मदुरई के राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंकों में एजीएम, श्री आर. शंकर नारायण ने मदुरई की ऋण योजना की रूपरेखा तैयार की है। उनके अनुसार क्षमता-संबद्ध ऋण योजना 2014-15 में सभी क्षेत्रों में विकास के लिए संभावनाओं को अंजाम देने के लिए ढांचागत सुविधाओं का ध्यान रखा है। उनका कहना था कि इस योजना का उद्देश्य यह है कि 2014-15 में संभावित दोहन के लिए ऋण का आकलन करना है।
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