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रविवार, 23 फ़रवरी 2014
साइबर अपराध के खिलाफ ठोस पहल
सायबर अपराध के बढते मामलों से निपटने के लिए मौजूदा कानून को अपर्याप्त मानते हुए सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008 में व्यापक संशोधन कर यह दर्शा दिया है कि वह भविष्य के सायबर अपराधों के प्रति पूरी तरह जागरूक है । 27 अक्तूबर, 2009 को इन संशोधनों को सरकार ने अधिसूचित भी कर दिया था, जिससे त्वरित आधार पर इनका उपयोग शुरू किया जा सके । इस एक्ट को संशोधित करते हुए सरकार ने ना केवल देश में घटे विभिन्न तरह के अपराधों का आकलन किया बल्कि दुनिया भर में मौजूद आईटी या सायबर अपराध नीति का भी अध्ययन किया । इस लंबी मशक्कत का उद्देश्य यह तय करना था कि कंप्यूटर या सायबर अपराध से जुड़ा कोई भी पहलू छूटने ना पाए ।
मूल रूप से वर्ष 2000 में लाया गया सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008 उस समय ई-कामर्स, इलेक्ट्रानिक रुप में पैसे के लेन-देन, ई-प्रशासन के साथ ही कंप्यूटर से जुड़े अपराधों को ध्यान में रखकर लाया गया था । उस समय हुए अपराधों व घटनाओं को ध्यान में रखकर तैयार किए गए इस आईटी एक्ट की धाराएं अगले कुछ सालों में ही कंप्यूटर व इंटरनेट के बढते प्रयोग और उससे जुड़े अपराधों की संख्या व विविधता के आधार पर कम पड़ने लगीं । जिसके बाद सरकार ने मौजूदा इंटरनेट अपराधों व उसके लिए विश्व स्तर पर उपलब्ध कानूनों की तर्ज पर इस एक्ट में संशोधन कर इसे समकालीन व शक्तिमान बनाने का निर्णय किया । जिसके बाद इसके मौजूदा प्रावधानों को और अधिक सख्त करने के साथ ही उसके स्वरूप को भी व्यापक किया गया, ताकि कंप्यूटर अपराध से जुड़ा हर पहलू इसमें शामिल हो सके ।
आईटी एक्ट के संशोधन में कुल 52 धाराएं हैं । जिसमें हर पक्ष को शामिल किया गया है । इस संशोधन के दौरान यह भी ध्यान रखा गया कि यह यूनिसिट्रल या यूनाइटेड नेशन कमीशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ के अनुरूप भी हो । यूनिसिट्रल विश्व स्तरीय कानून है । एक्ट में संचार उपकरण की व्याख्या को भी शामिल किया गया । कंप्यूटर या इंटरनेट नेटवर्क पर इस उपकरण के बिना कार्य करना मुमकिन नहीं है । इसको ध्यान में रखकर संचार उपकरण को कानूनी परिधि में शामिल किया गया जिससे इसे उल्लेखित कर उसके अनुरूप भी कानूनी प्रक्रियाएं शुरू की जा सकें । इसी तरह इंटरमिडरी व सेवा प्रदाता को भी एक्ट में उल्लेखित किया गया । इसके तहत सभी सेवा प्रदाता, वेब होस्टिंग सेवा लेने वाले, सर्च इंजन, ऑन लाइन नीलामी साइट व सायबर कैफे को भी शामिल किया गया है जिससे कोई भी सेवा प्रदाता कानूनी परिधि से बाहर ना रहे । इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर के बढते अपराधों व धोखाधड़ी को देखते हुए संशोधित एक्ट में 3ए सेक्शन को बाकायदा उल्लेखित किया गया है । एक्ट में डाटा सुरक्षा व उसकी निजता को सुनिश्चित करने के लिए डाटा सिक्यूरिटी एंड प्राइवेसी को नामित कर एक नया सेक्शन 43ए लाया गया है जो डाटा लीकेज होने पर पीड़ित को मुआवजे का अधिकार देता है । इस सेक्शन के तहत केन्द्र सरकार को यह विशेष अधिकार दिया गया है कि वह चाहे तो विभिन्न संवेदनशील डाटा के मामलों में सुरक्षा को लेकर विशेष नियम या प्रावधान घोषित कर सकती है ।
गोपनीयता भंग करके सूचना जारी करने को लेकर सेक्शन 72ए भी एक्ट में शामिल किया गया है । ब्रीच ऑफ कांफीडेंसलिटी - डिस्कलॉजर ऑफ इंफोरमेशन के नाम से नामित यह सेक्शन 43 ए सेक्शन का ही अगला कदम है । जहां 43 ए सेक्शन में आंकड़े प्रकट करने वाली कंपनी के खिलाफ सामाजिक उत्तरदायित्व निर्धारित किया गया है वहीं सेक्शन 72ए में गोपनीयता भंग करने पर दण्ड का उल्लेख किया गया है । इस अपराध के लिए तीन साल तक की कैद तक का प्रावधान किया गया है । यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है लेकिन इसके लिए जमानत का प्रावधान रखा गया है । डाटा सुरक्षा के लिए एक्ट में इंक्रिप्सन को लेकर सेक्शन 84ए का भी उल्लेख किया गया है । इसके तहत सरकार को यह अधिकार होगा कि वह इंक्रिप्सन के तरीके या रास्ते की व्याख्या कर सकती है । संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का मानना है कि इससे डाटा की सुरक्षा को लेकर सरकार के हाथ और मजबूत होंगे ।
एक्ट संशोधन में एकल व्यक्ति आधारित सायबर एपलेट ट्रिब्यूनल को बहु सदस्यीय बनाने की भी व्यवस्था की गयी है । क्योंकि यह एक तकनीकी ट्रिब्यूनल होगा इसलिए इसमें एक तकनीकी सदस्य रखने का भी उल्लेख किया गया है । साइबर नग्नता को लेकर एक्ट में सरकार ने सख्त कदम उठाया है । सेक्शन 67 ए में इलेक्ट्रोनिक रूप में नग्नता के लिए दंड का उल्लेख किया गया है । पहली बार सरकार ने बाल नग्नता को लेकर एक नया सेक्शन 67बी का उल्लेख एक्ट में किया है । इसका उद्देश्य इलेक्ट्रोनिक रूप में बच्चों के बीच नग्नता के प्रचार-प्रसार को रोकना व इलेक्ट्रोनिक रुप में बच्चों के यौन शोषण में लगे लोगों को सजा दिलाना है । नग्नता को लेकर उल्लिखित दोनों ही सेक्शन में पहली बार पकड़े गए व्यक्ति को पांच साल की सजा का प्रावधान है जबकि दूसरी बार या अगली बार यह सजा सात साल तक की हो सकती है । संशोधित एक्ट में प्रोटेक्टेड सिस्टम को लेकर भी व्याख्या की गयी है । आईटी एक्ट के सेक्शन 70 का संशोधन करते हुए सक्षम सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी कंप्यूटर संसाधन को प्रोटेक्टड या सुरक्षित सिस्टम घोषित कर सकती है । इस तरह के किसी भी सुरक्षित सिस्टम को हैक करने वाले के खिलाफ दस वर्ष की सजा का प्रावधान भी किया गया है । इस सेक्शन को और मजबूती देने के लिए दो नए सेक्शन 70ए व 70बी भी बनाए गए हैं । 70ए में साइबर सुरक्षा के लिए इंडियन कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम या सीईआरटी-आईएन का उल्लेख किया गया है ।
साइट हैक होने या फिर किसी साइट से देश की एकता, अखण्डता पर पड़ने वाले संभावित दुष्प्रभावों को रोकने के लिए यह संगठन तत्काल प्रभाव से ऐसी साइट को बंद करने या फिर साइट को हैक करने वाले के खिलाफ तकनीकी जांच शुरू करेगा । इस एक्ट के साथ ही सायबर अपराधों में जाने-अनजाने हिस्सा बनने वाले सायबर कैफों को पूरी तरह कानूनी दायरे में लाने के लिए सेक्शन 79 का उल्लेख किया गया है । इसके साथ ही 79ए सेक्शन भी एक्ट में शामिल किया गया है । यह सरकार को अधिकार देता है कि वह इलेक्ट्रोनिक साक्ष्यों के मूल्यांकन के लिए एक परीक्षक नियुक्त कर सके । यह परीक्षक ऐसे मामलों में अदालत को इलेक्ट्रोनिक तकनीकियों को समझाएगा या फिर अदालत का सहयोग करेगा । संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट के अनुसार इस एक्ट में उन सभी बिन्दुओं को शामिल किया गया है जो सायबर अपराध हैं या फिर उन्हें प्रभावित करते हैं। इस एक्ट के संशोधन से पहले मंत्रालय के अधिकारियों ने लंबे समय तक विभिन्न देशों के अधिनियमों का अध्ययन करने के साथ ही जमीनी स्तर पर भी सायबर अपराधों का अध्ययन किया । श्री पायलट ने कहा कि इस एक्ट के संशोधित रूप से अब पुलिस को भी ऐसे मामलों की जांच में खासी सहायता मिलेगी । पहले कंप्यूटर या सायबर से संबंधित कई तरह के अपराध के लिए आईपीसी या सीआरपीसी में व्याख्या नहीं थी, जिससे पुलिस या जांच एजेंसी उलझन में रहती थीं । संशोधित एक्ट में सभी बिन्दुओं को शामिल किया गया है, ताकि जांच प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके ।
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