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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014
सड़क सुरक्षा: हम सबकी जिम्मेदारी
सड़क सुरक्षा एक बहुक्षेत्रीय और बहुआयामी मुद्दा है। इसके अंतर्गत सड़क ढांचे का विकास एवं प्रबंधन, सुरक्षित वाहनों का प्रावधान, विधायन एवं विधि प्रवर्तन, गतिशीलता की आयोजना, स्वास्थ्य एवं अस्पताल सेवाओं का प्रावधान, बाल सुरक्षा, शहरी भूमि इस्तेमाल, आयोजना आदि शामिल है। दूसरे शब्दों में, इसके दायरे में एक तरफ सड़क एवं वाहन दोनों पहलुओं की इंजीनियरी और दूसरी तरफ ट्रामा यानी अभिघात से सम्बन्धित मामलों (दुर्घटना परवर्ती परिप्रेक्ष्य में) के लिए स्वास्थ्य एवं अस्पताल सेवाएं आती हैं। सड़क सुरक्षा सरकार और सिविल समाज के अनेक पक्षों का साझा, बहुक्षेत्रीय दायित्व है। सभी देशों में सड़क सुरक्षा की सफलता सम्बन्धी कार्य नीतियां सभी सम्बद्ध पक्षों से सहायता के व्यापक आधार और संयुक्त कार्ररवाई पर निर्भर करती है।
14 अप्रैल, 2004 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के पूर्ण अधिवेशन में भारत द्वारा सह-प्रायोजित एक प्रस्ताव में सड़क दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में होने वाली मौतों पर गंभीर चिंता प्रकट की गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2004 को सड़क सुरक्षा वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा भी की थी और अप्रैल 2004 में ‘‘सड़क सुरक्षा अर्थात किसी भी दुर्घटना से मुक्ति‘‘ के नारे के साथ विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने की शुरूआत हुई।
सड़क यातायात क्षति निवारण के बारे में विश्व बैंक एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2004 की रिपोर्ट में कहा गया था कि सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली क्षति अत्यंत व्यापक है लेकिन यह वैश्विक जन-स्वास्थ्य की उपेक्षित समस्या है। इसके प्रभावकारी और स्थायी समाधान के लिए एकीकृत प्रयासों की आवश्यकता है। रोजमर्रा के आधार पर काम आने वाली जितनी भी प्रणालियां हैं उनमें सड़क परिवहन सर्वाधिक जटिल और यातायात का सर्वाधिक असुरक्षित माध्यम है। हर रोज होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के पीछे की त्रासदी पर मीडिया का ध्यान उतना नहीं जाता, जितना कभी-कभार होने वाली असामान्य प्रकार की त्रासदियों की ओर जाता है। रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया था कि यदि अधिक प्रयास और नए उपाय नहीं किए गए तो विश्व भर में 2000-2020 की अवधि में सड़क यातायात के दौरान होने वाली क्षतियों और मौतों की कुल संख्या में 65 प्रतिशत बढ़ोतरी हो जायेगी। कम आय और मध्यम आय वाले देशों में तो इस क्षति में और मृत्यु की घटनाओं में 80 प्रतिशत तक इजाफा होगा। वर्तमान में यातायात दुर्घटनाओं में मरने की अधिक आशंका ‘‘कमजोर और सड़क का इस्तेमाल करने वालों, पैदल यात्रियों, पैडल साइकिल सवारों और मोटर साइकिल सवारों‘‘ की होती है। उच्च आमदनी वाले देशों में, यातायात मौतों में सबसे अधिक संख्या कार का इस्तेमाल करने वालों की है किन्तु, प्रति व्यक्ति जोखिम सड़क इस्तेमाल करने वालों में ही सबसे अधिक है। रिपोर्ट में इस चिंता को रेखांकित किया गया है कि असुरक्षित सड़क परिवहन प्रणाली का जन-स्वास्थ्य और वैश्विक विकास पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। स्वभाविक है कि सड़क हादसों में होने वाली मौतें और क्षतियां अस्वीकार्य हैं और काफी हद तक उन्हें टाला जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों (वर्ष 2002) के अनुसार हर वर्ष दुनिया भर में करीब 11.8 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं, जिनमें से 84,674 मौतें भारत में होती है। 2004 में इन मौतों की संख्या बढ़कर 92618 पर पहुंच गई। भारत में मृत्यु दर 8.7 प्रति एक लाख है जबकि ब्रिटेन में यह 5.6 और स्वीडन में 5.4 तथा नीदरलैंड में 5 और जापान में 6.7 है। प्रति 10,000 वाहनों के संदर्भ में मृत्यु दर भारत में सबसे अधिक 14 है जबकि इसकी तुलना में अन्य देशों में यह 2 है। विकसित देशों में सड़क दुर्घटनाओं की लागत सकल घरेलू उत्पादन के संदर्भ में एक से दो प्रतिशत के बीच आती है। 2002 में योजना आयोग के एक अध्ययन में बताया गया था कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं की सामाजिक लागत 55,000 करोड़ रुपये वार्षिक (2000 के मूल्यों के अनुसार) बैठती है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 3 प्रतिशत है।
सड़कों में व्यापक निवेश और वाहनों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि को देखते हुए यह अनिवार्य हो गया है कि एक ऐसी प्रणाली कायम की जाय जिसमें सड़क सुरक्षा पर असर डालने वाले सभी विषयों को एकीकृत किया जाय और साथ ही एक ऐसे संगठन के साथ उसे सम्बद्ध किया जो सड़क सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं जैसे इंजीनियरी, शिक्षा, प्रवर्तन, चिकित्सा और व्यवहार विज्ञान की आवश्यकताएं पूरी कर सके।
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