शिक्षा का अधिकार (आरटीई) देश में प्राथमिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण में अब तक का ऐतिहासिक विकास है। 2010 में लागू इस अधिनियम में 6 से 14 वर्ष की आयु समूह के प्रत्येक बालक को प्राथमिक शिक्षा का अधिकार दिया गया है। वे नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के हकदार हैं।
सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) आरटीई अधिनियम के कार्यान्वयन का एक मुख्य साधन है। यह दुनिया में अपनी तरह के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है। यह मुख्य तौर पर, केन्द्रीय बजट से प्राथमिक तौर पर वित्त पोषित है और इसे पूरे देश में चलाया जाता है। इस योजना के अंतर्गत 11 लाख रिहाइशों में 19 करोड़ से ज्यादा बच्चों को शामिल किया गया है। देश की 98 प्रतिशत बस्तियों में एक किलोमीटर के दायरे में प्राथमिक विद्यालय हैं और 92 प्रतिशत बस्तियों में तीन किलोमीटर के दायरे में उच्चतर प्राथमिक विद्यालय हैं।
इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन प्राथमिक शिक्षा में लैंगिक और सामाजिक अंतराल को कम करना है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों की बालिकाओं और बच्चों तक पहुंच बनाने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों, मुस्लिम समुदायों और शैक्षणिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों में गरीबी रेखा से नीचे की बालिकाओं के लिए आवासीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालयों के तौर पर 3500 से ज्यादा कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों (केजीबीवी) को स्थापित किया जा चुका है। इन विद्यालयों में नि:शुल्क आवास, पुस्तकें, स्टेशनरी और वर्दियां प्रदान की जा रही हैं।
एसएसए के अंतर्गत शहरी वंचित बच्चों, आवधिक प्रवास से प्रभावित बच्चों और दूर-दराज एवं बिखरी हुई बस्तियों में रहने वाले बच्चों पर विशेष ध्यान दिया गया है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों तक पहुंच बनाने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं। इसमें बुनियादी सुविधाओं में सुधार और सरकारी विद्यालयों में नए शिक्षक पदों की अनुमति शामिल है। सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में सभी बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें प्रदान की जा रही हैं। पिछले वर्ष, केन्द्र ने 23,800 करोड़ रुपये से ज्यादा जारी किए और वर्तमान वित्तीय वर्ष (2013-14) के दौरान पहले आठ महीनों में 16,000 करोड़ रुपये से ज्यादा जारी किए जा चुके हैं।
वित्त पोषण के लिए बढ़ाई गई इस धनराशि से विद्यालय स्तर पर व्यापक निर्माण और बुनियादी सुविधाओं में सुधार किया गया है। 95 प्रतिशत के करीब विद्यालयों में पेयजल सुविधाएं हैं और 90 प्रतिशत विद्यालयों में शौचालय हैं। इसी प्रकार से, करीब 75 प्रतिशत उच्चतर प्राथमिक विद्यालयों में फर्नीचर सुविधाएं उपलब्ध हैं। ‘शिक्षा के अधिकार’ को कार्यान्वित करने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के एक प्रमुख कार्यक्रम के अंतर्गत सर्वशिक्षा अभियान के तहत शौचालय, पेयजल सुविधाओं और विद्युतीकरण के साथ तीन लाख से ज्यादा नए विद्यालय भवनों का निर्माण किया जा चुका है।
नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 के तहत बच्चों के अधिकार के लागू होने के बाद से शिक्षा के लिए जिला सूचना प्रणाली (डीआईएसई) आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक स्तर पर बच्चों के दाखिले 2008-09 के करीब 19 करोड़ से 2012-13 में 20 करोड़ तक पहुंच चुके हैं। आरटीई अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) के अंतर्गत राज्यों/संघ शासित प्रदेशों को कुल 43,500 से ज्यादा विद्यालयों, अतिरिक्त सात लाख कक्षाएं, 5,46,000 शौचालय और 34,600 पेयजल सुविधाओं के लिए स्वीकृति दी जा चुकी है।
वर्ष 2008-09 और 2012-13 के दौरान अनुसूचित जाति के दाखिले में तीन से चार करोड़ तक की वृद्धि हो चुकी है। इसी प्रकार से अनुसूचित जनजातियों और अल्पसंख्यकों के बीच भी सकारात्मक दृष्टिकोण देखने को मिला है। आरटीई अधिनियम के अनुसार 13 राज्य, निजी और बिना किसी आर्थिक सहायता प्राप्त विद्यालयों में अलाभान्वित समूहों/कमजोर वर्गों के बच्चों को दाखिल कर चुके हैं।
मध्यान्ह भोजन योजना के साथ शिक्षा का अधिकार अधिनियम, प्राथमिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हुए बच्चों के स्कूल से हटने में कमी के साथ-साथ कक्षाओं में भूख से होने वाली समस्याओं को भी महत्वपूर्ण रूप से दूर कर चुका है।
प्राथमिक शिक्षा के कुल दाखिला अनुपात में यह सुधार प्रतिबिंबित होता है। वर्ष 2011-12 में यह 99.89 प्रतिशत था। हालांकि प्राथमिक स्तर पर बच्चों के विद्यालय से हटने के मामलों में भी काफी कमी आई है। विद्यालयों से बच्चों के हटने की संख्या वर्ष 2005 में 1.34 करोड़ से ज्यादा थी, जो वर्ष 2012-13 में
29 लाख पर आ गई।
आरटीई के अंतर्गत गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई नए उपाय भी अपनाए जा चुके हैं। वर्ष 2012-13 तक एसएसए के अंतर्गत करीब 20 लाख अतिरिक्त शिक्षक पदों को स्वीकृति दी जा चुकी है। इनमें से 12 लाख 40 हजार पदों को भरे जाने की भी खबर है। आरटीई के बाद यह अनिवार्य कर दिया गया है कि शिक्षक पात्रता परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले व्यक्ति ही शिक्षक के तौर पर नियुक्त किए जा सकते हैं।
शिक्षण के स्तर को सुधारने के लिए कक्षा आठ तक के बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती हैं। सतत् और व्यापक मूल्यांकन प्रणाली को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। बच्चों के शिक्षण को और अधिक सरल और समग्र बनाने के लिए पाठ्यक्रम में संशोधन भी किए गए हैं। सेवारत शिक्षकों और मुख्याध्यापकों के प्रशिक्षण को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सभी योजनाओं का उद्देश्य गुणवत्ता युक्त शिक्षा तक पहुंच और इसमें सुधार लाना है, जबकि वर्तमान पंचवर्षीय योजना का प्रमुख ध्येय शिक्षा में गुणवत्ता प्रदान करना है।
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