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शनिवार, 31 दिसंबर 2016
किसे मिलेगा समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह?
30 दिसंबर 2016 की शाम समाजवादी पार्टी में विभाजन की लक्ष्मण रेखा खुद पार्टी के पितामह कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने खींच दी। सियासत में सिद्धांत को दरकिनार कर पुत्र को मुख्यमंत्री बनाकर यूपी की कमान सौंपने वाले मुलायम सिंह यादव ने कठोर फैसला लेते हुए सीएम अखिलेश और प्रोफेसर राम गोपाल यादव को समाजवादी पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया। जिस वक्त मुलायम सिंह यादव अपने बेेटे सीएम अखिलेश यादव को पार्टी से निकालने की घोषणा कर रहे थे, उनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि ये फैसला वह किसी के दबाव में ले रहे हैं। संवाददाता सम्मेलन में पहले उन्होंने प्रोफेसर रामगोपाल यादव को निकालने जाने के बारे में विस्तार से बताया। लेकिन जब बात बेटा और सीएम अखिलेश यादव को निकालने की आई तो उन्होंने इसका ऐलान करने के बजाए पहले भाई शिवपाल यादव से पूछा कि अखिलेश के बारे में भी अभी ही बोल दे क्या? पहले से ही इसी मौके की ताक में बैठे शिवपाल यादव ने तुरंत ही हामी भरी और कहा हां अभी कर देते हैं।
इससे साफ है कि मुलायम सिंह यादव खुद इस फैसले को लेकर जल्दबाजी नहीं दिखाना चाह रहे थे। कल समाजवादी पार्टी में हर फैसला नेताजी मुलायम सिंह यादव से पूछ कर किया जाता था, लेकिन मौके की नजाकत देखिए कि अब वही मुलायम कोई भी फैसला लेने से पहले भाई शिवपाल सिंह यादव से पूछते हैं कि करें या नहीं करें। इससे साफ है कि मुलायम सिंह यादव दिल से नहीं चाहते थे कि अखिलेश को पार्टी से निकाला जाए। तभी तो उन्होंने कहा कि प्रोफेसर रामगोपाल यादव अखिलेश यादव का भविष्य खराब कर रहे हैं। इतना सब होने के बाद लखनऊ की सड़कों पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं का सैलाब उमड़ आया। सीएम अखिलेश यादव के घर के बाहर भारी भीड़ जमा हो गई। ऐसा ही कुछ नजारा मुलायम सिंह यादव के घर के बाहर भी देखने को मिला। लेकिन अब आगे क्या होगा। राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा। क्या अखिलेश विधानसभा भंग करने की अनुशंसा करेंगे। मुलायम सिंह का अगला कदम क्या होगा। क्या वह सीएम अखिलेश की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करेंगे। या अखिलेश यादव खुद ही अपने पद से इस्तीफा देकर जनता के बीच नया जनादेश लेने के लिए जाएंगे। इससे भी बड़ा सवाल है कि चुनाव में समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह पर कौन चुनाव लड़ेगा। मुलायम सिह यादव की समाजवादी पार्टी या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी। इन तमाम बातों को लेकर सस्पेंस अभी बरकरार है। आज मुलायम और अखिलेश ने एक के बाद एक कई बैठक बुलाई है। देखना यह दिलचस्प होगा कि पार्टी के ज्यादातर विधायक और नेता इस मुश्किल घड़ी में पिता-पुत्र में से किसका साथ देते हैं। वैसे अंतिम फैसला तो चुनाव में जनता को करना है।
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016
समाजवादी पार्टी - पारिवारिक कलह से बगावत तक का सफर
समाजवादी पार्टी में सत्ता के लिए जारी कलह को लेकर लंबे समय तक शांति और संयम दिखाने वाले सीएम अखिलेश यादव ने अब बगावती तेवर अपना लिए है। कभी बात-बात पर नेताजी की दुहाई देने वाले मुख्यमंत्री ने अखिलेश यादव ने अब पिता मुलायम सिंह यादव के प्रति मोह का त्याग कर दिया है। अखिलेश को इस बात का अंदाजा लग गया था कि विरोधी खेमा यानि चाचा शिवपाल यादव नेताजी को उनके खिलाफ ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। यहीं नहीं नेताजी खुद भी हर कदम पर बेेटे अखिलेश का साथ देने के बजाए विरोधी खेमे के सुर में सुर मिलाते नज़र आ रहे थे। नेताजी मुलायम सिंह के बदले तेवर से परेशान सीएम अखिलेश के लिए बदले हुए हालात में हर दिन किसी इम्तिहान से कम नहीं था, ऊपर से चुनाव तैयारियों के लिए सीमित समय रह गया था।
नेताजी मुलायम सिंह की ओर से जारी समाजवादी पार्टी उम्मीदवारों की सूची ने पूरी तरह से साफ कर दिया कि समाजवादी पार्टी में अगर सब कुछ ऐसा ही चलता रहा तो अखिलेश यादव के लिए करने को कुछ नहीं रह जाएगा। लिहाजा समय की मांग को देखते हुए सीएम अखिलेश यादव को अपने पिता, पार्टी और उसके तथाकथित नेताओं के खिलाफ बागी तेवर अपनाना पड़ा। सपा मुखिया मुलायम सिंह के उम्मीदवारों की सूची जारी करने के एक दिन बाद ही अखिलेश ने दो सौ से ज्यादा अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इसके कुछ घंटों के भीतर ही चाचा शिवपाल ने भी उम्मीदवारों की एक लिस्ट जारी कर दी है। अब चुनाव के मैदान में पार्टी में जारी कलह के बाद दंगल, कोहराम और संग्राम होने की उम्मीद ही बाकी रह गई है।
मंगलवार, 27 दिसंबर 2016
अपनी नैया डुबोने में जुटे समाजवादी नेता
मुलायम सिंह यादव के कुनबे में मचा कोहराम, यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी की नैया डुबोकर शांत ही होगा, ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि विरोधियों का मानना है कि मुलायम सिंह यादव खुद अपने बेटे की चुनावी नैया डुबोने पर तुले हैं। पांच साल पहले चुनावी जीत मिलने पर मुलायम सिंह यादव ने सबकी राय को दरकिनार कर बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन पांच साल बीतते बीतते मुलायम का अखिलेश प्रेम एक दम से हवा हो गया। आखिर पिता-पुत्र के रिश्ते में दरार के पीछे की वजह क्या है। खुद सीएम अखिलेश कई बार दोहरा चुके हैं कि वह नेताजी की हर बात मानने को तैयार है। लेकिन नेताजी अब सीएम अखिलेश की कोई बात सुनने को राजी नहीं है। उन्हें तो अब अपने बेटे की कामयाबी से जलन महसूस होने लगी है। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वह इस परेशानी का खुलकर इजहार भी नहीं कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो हालात कुछ इस कदर हो गए कि खुद सीएम अखिलेश अपने पिता के गले की हड्डी बन चुके हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की मजबूरी कहें या कमजोरी वह चाहकर भी अखिलेश के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने से बचते हैं। लेकिन जब भी कुछ करने की बारी आती है तो सीधे या गुजचुप तरीके से उनका निशाना अखिलेश यादव पर ही होता है। सदियों से कानूनी तौर पर पिता का वारिस उसकी औलाद को माना जाता है। यह परंपरा भारत में अघोषित तौर पर हर सियासी पार्टी में देखने को मिलती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टीं कांग्रेस है, यहां नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक खानदानी विरासत को सियासत में आज तक आगे बढ़ाने में जुटे हैं। ऐसे में अगर अखिलेश राजनीति में खुद को नेताजी का असली वारिस मानते हैं तो इसमें गलत क्या है। बेटे की इच्छा होती है कि वह पिता के बनाए रास्ते पर आगे बढ़े और हर पिता की ये तमन्ना होती है कि उसका बेटा तरक्की की राह पर आगे बढ़े और अपने साथ खानदान का भी नाम रौशन करें। लेकिन समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह के परिवार में यही बात विवाद की असली वजह बन गई है। मुलायम को अब अपना बेटा रास नहीं आ रहा है। समाजवादी पार्टी में दो गुट बन गए हैं। एक गुट की कमान शिवपाल के हाथों में है तो दूसरा गुट मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ है। अचानक से मुलायम सिंह यादव भाई शिवपाल को लेकर कुछ ज्यादा ही प्रेम दिखाने लगे हैं। यहां तक कि शिवपाल के खिलाफ बोलने पर उन्होंने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव तक को पार्टी से निलंबित कर दिया था। ऐसे में समाजवादी पार्टी के छोटे मोटे नेताओं की क्या औकात की वह शिवपाल यादव के खिलाफ कुछ भी बोलने की हिम्मत जुटा सके। मुलायम सिंह यादव ने पार्टी के भीतर अखिलेश यादव को कमजोर साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से उन्हें हटा दिया। साथ ही यह पद अखिलेश के घोर विरोधी शिवपाल यादव को सौंप दिया। पहले से मौके की ताक में बैठे शिवपाल ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिलते ही चुन-चुन कर अखिलेश के समर्थकों को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। यहीं नहीं शिवपाल यादव ने सीएम अखिलेश के जले पर नमक छिड़कने के इरादे से उन तमाम लोगों को पार्टी में एक-एक कर वापस लाना शुरू कर दिया है, जिसे सीएम अखिलेश यादव ने गलती करने पर पार्टी से निलंबित या निकाल दिया था। शिवपाल ने ऐसे कुछ लोगों को पार्टी में महत्वपूर्ण ओहदों पर बिठाना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में सीएम अखिलेश की मुश्किल है कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि चुनाव सिर पर हैं। किसी भी तरह की जल्दबाजी सियासी तौर पर काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है। लिहाजा वह भी मजे हुए सियासतदान की तरह हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी वह नेताजी मुलायम सिंह यादव को समझाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। उनकी एक दूसरी परेशानी अमर सिंह भी है। कहा जाता है कि अमर सिंह ही समाजवादी कुनबे में जारी कलह की असली वजह हैं। लेकिन सुलह की तमाम कोशिशें बेकार होने के बाद अब चुनाव से ठीक पहले पार्टी में तकरार की खबरों से होने वाले नुकसान की भरपाई समाजवादी पार्टी को चुनावी हार के रुप में चुकानी पड़ सकती है।
शुक्रवार, 22 जुलाई 2016
भारत में खनिज का मौजूदा परिदृश्य
·खनन सेक्टर हमारी अर्थव्यवस्था का बुनियादी सेक्टर है । यह विभिन्न महत्वपूर्ण उद्योगों को बुनियादी कच्ची सामग्री उपलब्ध कराता है ।
· सी एस ओ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार खनन सेक्टर (र्इंधन, आवणिक, प्रमुख तथा गौण खनिजों सहित) ने वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद में 2.4 % का योगदान दिया है ।
· खनिजों के उत्पादन के मामले में पिछले वर्षों की तुलना में खनन सेक्टर के विकास में काफी सुधार आया है । यह याद दिलाना प्रासंगिक होगा कि इस सेक्टर में 2011-12 और 2012-13 के पिछले दो वर्षों के दौरान 0.6% की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई थी। खनन सेक्टर नीतिगत अनिर्णय के कारण बहुत बुरी तरह प्रभावित था । खनन गतिविधियां न्यायाधीन प्रकरणों, पर्यावरणीय विनियामक तथा भूमि अर्जन जैसे मुद्दों के कारण थम गई थी ।
· जब से सरकार ने नीतिगत सुधारों की पहलें शुरू की हैं तब से उल्लेखनीय बदलाव आए हैं । ये बदलाव खनन एवं खदान सेक्टर में सकल मूल्य संवर्धन में वृद्धि के मामले में सर्वाधिक दिखाई देते हैं । इस सेक्टर में वर्ष 2014-15 में 2.8% की वृद्धि हुई । वर्ष 2015-16 के दौरान, अभी तक, इस सेक्टर में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 3.6% की वृद्धि दर्ज की है ।
· भारत में खनिज उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि आई है । यह देख कर खुशी होती है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान, मार्च तक, प्रमुख खनिजों के उत्पादन में पिछले वर्ष इसी अवधि की तुलना में 9 % की वृद्धि हुई । इस विकास गाथा में प्रमुख योगदान धात्विक सेगमेंट में बॉक्साइट (27%), क्रोमाइट (33%), तांबा सांद्र (30 %) लौह अयस्क (21%) तथा सीसा सांद्र (32%) रहा । यह वृद्धि इस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था से आ रहे कमजोर संकेतों के चलते अंतर्राष्ट्रीय वस्तु बाजार उथल-पुथल के दौर में है ।
· हमने ‘भारत में विनिर्माण’ को वैश्विक नाम के रूप में स्थापित करने के लिए नया मिशन शुरू किया है । भावी वर्षों में, खनन उद्योग के घरेलू तथा विदेशी निवेशों को जुटाने तथा उससे अतिरिक्त रोजगार पैदा करने के लिए प्रमुख उद्योग के रूप में विकसित होने की उम्मीद है ।
खनन एक खनिज (विकास एवं निनियम) अधिनियम में संशोधन
· सरकार की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि खनिज सेक्टर को विनियमित करने वाले खान एवं खनिज(विकास एवं विनियमन) अधिनियम को संशोधित करने की थी ।
· इस संशोधन ने, प्रमुख खनिज रियायतों को प्रदान करने में नीलामी को एकमात्र पद्दति बनाकर विवेकाधिकार को समाप्त किया और इसके द्वारा बेहतर पारदर्शिता की शुरूआत की । इसने खनन पट्टों के परिकल्पित विस्तार की व्यवस्था के द्वारा खनन सेक्टर के लिए आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान किया ।
· इस अधिनियम को 2016 में पट्टा क्षेत्र की सटीक परिभाषा तथा नीलामी के द्वारा अर्जित नहीं किए गए कैप्टिव पट्टों के अंतरण की अनुमति देने के लिए फिर से संशोधित किया गया है ।
खनिज ब्लाक नीलामी
· एम एम डी आर संशोधन अधिनियम 2015 के तहत खनिज ब्लाकों की नीलामी को सुगम बनाने हेतु आवश्यक नियमों अर्थात् खनिज (खनिज अंतर्वस्तु साक्ष्य) नियमावली तथा खनिज(नीलामी) नियमावली भी इसके तुरंत बाद अधिसूचित किए गए । मंत्रालय ने नीलामी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य सरकारों को मदद प्रदान करने के लिए ‘मानक’ निविदा दस्तावेज भी तैयार किए । नीलामी के लिए उपलब्ध ब्लाकों को तैयार करने में सहायता के लिए खान मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को विभिन्न राज्यों में तैनात किया गया था ।
· खनन पट्टा, पूर्वेक्षण/खनन लाइसेंसों की नीलामी के कार्यान्वयन में और अधिक सहयोग प्रदान करने के लिए जीएसआई, आईबीएम, एमईसीएम, एमएमटीसी, एसबीआई कैप तथा मीथॉन की टीमों को कुल स्टेशन तथा डीजीपीएस के आधार पर क्षेत्र के सीमांकन, व्यवसाय परामर्श, जी आर के संकलन तथा कंप्यूटरीकरण, नीलामी प्लेटफार्म आदि जैसे नीलामी के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहायता के लिए तैनात किया गया है ।
· नौ राज्य सरकारों द्वारा नीलामी के लिए सैंतालीस खनिज ब्लाक रखे गए हैं । निम्न स्थानों पर छह ब्लाकों की नीलामी पूर्ण हो चुकी है :-
·झारखंड में 12.2.2016 को चूना पत्थर के दो ब्लाक
·छत्तीसगढ़ में 18 और 19 जनवरी, 2016 को चूना पत्थर के दो ब्लाकों तथा 26.2.2016 को एक स्वर्ण ब्लाक की नीलामी पूर्ण हो चुकी है ।
·ओडिशा में 2.3.2016 को लौह अयस्क के एक ब्लाक की नीलामी
·ई नीलामी की सफलता ने न केवल मंत्रालय द्वारा परिकल्पित नीलामी योजना पर वैधता की मुहर लगाई है वरन् इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे राज्यों के खजाने को काफी अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा जो कि रॉयल्टी से प्राप्त हो रही राशि से बहुत अधिक होगी ।
·इन नीलामियों के द्वारा राज्यों के खजाने को पट्टा अवधी के दौरान 13,000 करोड़ रूपए से अधिक की अतिरिक्त आय होगी । जबकि संचयी रॉयल्टी, जिला खनिज फंड तथा राष्ट्रीय खनिज गवेषण ट्रस्ट को होने वाला अंशदान क्रमश: 4,565 करोड़, 456 करोड, तथा 92 करोड़ रूपए होगा ।
·यह देखा जा सकता है कि राज्य सरकारों को नीलामी के द्वारा प्राप्त होने वाला अनुमानित राजस्व, रॉयल्टी, डीएमएफ तथा एनएमईटी से कुल मिलाकर प्राप्त राजस्व से 2.5 गुणा से ज्यादा होगा ।
·अब तक, 9 राज्य सरकारों द्वारा 47 खनिज ब्लॉकों को नीलामी के लिए रखा गया है । 6 ब्लॉकों की ई-नीलामी सफलतापूर्वक की जा चुकी है, जबकि 17 ब्लॉकों हेतु शुरूआती बोली आवेदनों की संख्या पर्याप्त नहीं होने के कारण ई-नीलामी को रद्द किया गया था ।
·राजस्थान, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में नीलामी प्रक्रिया के दौरान, 17 ब्लॉकों की निविदा आमंत्रण संबंधी नोटिस को अंतत: रद्द किया गया, चूंकि अपेक्षित संख्या में बोलीदाताओं (न्यूनतम 3) ने अपनी बोली प्रस्तुत नहीं की थी ।
·नीलामी प्रक्रिया की सफलता, आस-पास के क्षेत्र में अयस्क की मांग और आपूर्ति विन्यास, अयस्क की मात्रा और ग्रेड, इसके उपभोग का पैटर्न, खनिज अध्ययन की गुणवत्ता, भूमि स्वामित्व का पैटर्न, समुद्र तटीय पर्यावरण प्रतिबंध जहां कहीं भी लागू हो, सामान्य सुस्त बाजार परिदृश्य और बोली दस्तावेजों में राज्यों द्वारा अधिरोपित कोई भी अंत्य उपयोग शर्तों जैसी देशी कारकों पर निर्भर है।
·ई-नीलामी के पहले चरण में सामने आई बाधाओं के समाधान के लिए, खान मंत्रालय द्वारा पहचान की गई खानों की पुन: निविदा करने से पहले मुद्दों का जल्दी समाधान करने के लिए, राज्य प्राधिकारियों के साथ नियमित बैठकें की जाती हैं ।
जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ): सामाजिक – आर्थिक लाभ में हिस्सेदारी
·आर्थिक विकास की उच्च दर हासिल करना और उसे बनाए रखने के साथ-साथ उसके लाभो को गरीबो तथा कमजोर वर्गो तक पहुचाना, खनिज क्षेत्र में सुधारो की प्राथमिकता है । डीएमएफ का उद्देश्य खनन क्षेत्रों में समग्र विकास की स्थानीय लोगों की लम्बे समय से चले आ रही मांग का समाधान करना है । मौजूदा खनिकों द्वारा 30 प्रतिशत की अतिरिक्त रॉयल्टी और एमएमडीआर संशोधन के पश्चात अर्थात् 12.1.2016 के बाद प्रदान की गई खानों के खनिकों द्वारा 10 प्रतिशत के अंशदान दिया जाना है । प्रमुख खनिज संपन्न राज्यों के लिए डीएमएफ का वार्षिक बजट 6000 करोड़ रूपये होगा ।
·सरकार ने “प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना”(पीएमकेकेकेवाई) तैयार की है जिसे संबंधित जिलों के जिला खनिज फाउंडेशन द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा । इस संबंध में सभी राज्यों को दिनांक 16.09.2015 को एमएमडीआर अधिनियम की धारा 20 (क) के तहत निर्देश जारी किए गए हैं ।
·पीएमकेकेकेवाई में यह अनिवार्य किया गया है कि इसके कम से कम 60 प्रतिशत फंड का उपयोग उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों - पेयजल आपूर्ति/ पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण उपायों/ स्वास्थ्य देख-भाल/ शिक्षा/ महिला एवं बाल कल्याण/ वृद्ध, दिव्यांग एवं जन कल्याण/कौशल विकास/कौशल विकास तथा स्वच्छता के लिए किया जाएगा। फंड की शेष 40% राशि का उपयोग अवसंरचना - सड़क एवं भौतिक अवसंरचना/ सिचाई/ जलागम विकास; तथा अन्य उपायों के लिए किया जाएगा । पीएमकेकेकेवाई के अंतर्गत कार्यान्वित परियोजनाएं अनुकूल खनन वातावरण तैयार करने, प्रभावित लोगों की स्थिति को बेहतर बनाने और स्टेकहोल्डरों के लिए लाभकारी स्थ्िति बनाने में सहायक होंगी ।
·आठ राज्यों ने (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा एवं तेलांगना) पीएमकेकेकेवाई के प्रावधानों को सम्मिलित करते हुए डीएमएफ के लिए नियमों के बनाए जाने की पुष्टि की है तथा सात राज्यों (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा) ने जिला स्तर पर डीएमएफ के गठन की पुष्टि कर दी है । पांच राज्यों (छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक,मध्य प्रदेश एवं ओडिशा) ने डीएमएफ के तहत फंड संग्रह की पुष्टि की है तथा डीएमएफ के लिए अंशदान के रूप में 632.44 करोड़ रूपए की राशि संग्रहित हुई है ।
·डीएमएफ की शीघ्र स्थापना करना राज्य सरकार के हित में है जिससे कि इन अर्जित निधियों का पीएमकेकेकेवाई स्कीम द्वारा यथा निर्धारित क्षेत्रों के कल्याण और विकास के लिए इसका उपयोग शुरू किया जा सके । ऐसी कल्याण गतिविधियां स्थानीय लोगों के बीच खनन उद्योग के प्रति सदभावना बनाने के लिए उपयोगी होंगी ।
·राज्य सरकारों को एमएमडीआर अधिनियम में शामिल की गई नई धारा 15क के तहत गोंण खनिजों के लिए डीएमएफ गठित करने का भी अधिकार दिया गया है ।
गवेषण पर जोर
·गवेषण को प्रोत्साहित करने के लिए खनन पट्टाधारकों से प्राप्त अंशदान से राष्ट्रीय खनिज गवेषण न्यास (एनएमईटी) बनाया गया है ।
·खनिज रियायतें प्रदान करने के लिए नीलामी को अपनाने से गवेषण की जिम्मेदारी काफी हद तक सरकार पर आ गई है । एमएमडीआर संशोधन अधिनियम, 2015 के ज़रिए राष्ट्रीय खनिज गवेषण न्यास बनाया गया है जिसे खनन पट्टाधारकों द्वारा रॉयल्टी के 2 प्रतिशत के समतुल्य अतिरिक्त राशि से वित्तपोषित किया जाएगा ताकि देश में गवेषण कार्यकलाप किए जा सकें । लगभग 28.21 करोड़ रू. लागत की 13 गवेषण परियोजनाओं की पहचान की गई है जिन पर एनएमईटी की कार्यकारी समिति विचार करेगी । राष्ट्रीय खनिज गवेषण नीति (एनएमईपी) भी तैयार की जा रही है ताकि निजी क्षेत्र कंपनियों, मुख्यत: जूनियर्स (अंतरराष्ट्रीय गवेषण कंपनियों) को गवेषण कार्यकलापों के लिए आकर्षित किया जा सके ।
· सभी ज्ञांत भंडारों जिन्हें सहस्त्राष्दियों तक मानव सभ्यता द्वारा उपयोग में लाया गया, के दोहन के कारण सतह पर मिलने वाले नॉन-बल्क भंडारों की उपलब्धता लगातार कम हो रही है, इसलिए दुनिया भर में अब यह आवश्यक हो गया है कि गहरे दबे खनिज संसाधनों की तलाश की जाए और उद्योग की लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गवेषण कार्यकलापों में तेज़ी लाई जाए ।
·अन्य देशों के अनुभव यह बताते हैं कि अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के द्वारा अतिरिक्त गवेषण और सज्जीकरण अभियान द्वारा खनिज भंडारों में काफी वृद्धि की जा सकती है जैसे कि आस्ट्रेलिया के ज्ञांत लौह अयस्क भंडार जो 1966 में 400 मिलियन टन था वह 40 वर्षों अर्थात 2005 में 100 गुना बढ़कर 40 बिलियन टन हो गया, जबकि भारत का लौह अयस्क संसाधन आधार 1955 में 5000 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2005 में 25,249 मिलियन टन हुआ ।
·जीएसआई ने 5.71 लाख वर्ग कि.मी. का स्पष्ट भूवैज्ञानिक संभावना (ओजीपी) क्षेत्र का पता लगाया है और अब जीएसआई गहरे दबे खनिजों पर ज्यादा ध्यान देगा तथा ओजीपी के विसंगत क्षेत्र का पता लगाएगा ।
·पारंपरिक रूप से भारत का गवेषण पर खर्च अन्य देशों की तुलना में कम रहा है । विश्व के कुल गवेषण बजट में भारत की हिस्सेदारी केवल 0.4 प्रतिशत है । इसके अतिरिक्त, भारत में केवल 0.4 प्रतिशत कंपनियां नियोजित गवेषण कार्यकलाप करती है । भारत को अपने गवेषण खर्च को बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि यह उत्पादन के अनुरूप अपने भंडारों का भी विकास कर सके । सरकार भी खनिज गवेषण से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए राष्ट्रीय खनिज गवेषण नीति तैयार करने की दिशा में कार्य कर रही है ।
·जीएसआई की अनकवर परियोजना: जीएसआई की ‘अनकवर’ परियोजना, माननीय खान मंत्री द्वारा 17 फरवरी, 2016 को केंद्रीय भूवैज्ञानिक कार्यक्रम बोर्ड की 55वीं बैठक के दौरान शुरू की गई । इस अत्याधुनिक परियोजना को देश के दो चुने गए क्षेत्रों में कार्यान्वित किया जाना है तथा यह गभीरस्थ/प्रछन्न खनिज निक्षेपों की खोज पर केंद्रित है । यह कार्यक्रम एनएमईपी मसौदा के महत्वपूर्ण कार्य बिंदु में से भी एक है । इस पहल के प्रमुख घटकों में, भारत की भूवैज्ञानिक कवर का चित्रण करना, लिथोस्पेरिक आर्कीटेक्चर की जांच करना, 4डी जियोडायनामिक और मेटालोजेनिक उद् विकास को विश्लेषित करना और अयस्क निक्षेपों के दूरस्थ चिह्रों का विश्लेषण करना शामिल होगे ।
अवैध खनन की रोकथाम
·अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए दांडिक प्रावधानों को और कठोर बनाया गया है । संशोधन अधिनियम में ज्यादा जुर्माना और कारावास की अवधि का प्रावधान किया गया है । इसके अतिरिक्त अवैध खनन संबंधी मामलों की तीव्र सुनवाई के लिए राज्यों द्वारा विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान है ।
अवैध खनन संबंधी मामलों की रोकथाम के लिए स्पेस प्रौद्योगिकी का प्रयोग
·आईबीएम ने आईबीएम में सुदूर संवेदन प्रयोगशाला की स्थापना करने के लिए तकनीकी सहायता सहित तीन वर्षों के लिए सैटेलाइट इमेजरी का प्रयोग करते हुए खनन गतिविधियों की मॉनीटरिंग और आईबीएम के अधिकारियों की क्षमता निर्माण संबंधी प्रायोगिक परियोजना शुरू करने के संबंध में दिनांक 21.01.2016 को राष्ट्रीय सुदूर संवदेन केंद्र (एनआरएससी), इसरो के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ।
·खान मंत्रालय ने खनन क्षेत्र में स्पेस प्रौद्योगिकी के प्रयोग का लाभ उठाने के लिए अलग से भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस एप्लीकेशन एंड जियो-इनफोरमेटिकस (बीआईएसएजी), गुजरात और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) को नियोजित किया है । स्पेस प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके अवैध खनन की घटनाओं को रोकने के लिए डीईआईडीटी के तहत भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस एप्लीकेशन एंड जियो-इनफोरमेटिकस (बीआईएसएजी), गुजरात की सहायता से प्रमुख खनिजों के लिए ‘खनन निगरानी प्रणाली’ (एमएसएस) विकसित की जा रही है । इस प्रौ़द्योगिकी में न्यूनतम मानव हस्तक्षेप, सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक आसानी से पहुंच एवं स्वचालित खोज करने की सुविधा है । राज्य सरकारों से, उनके राज्यों में एमएसएस के त्वरित विकास के लिए सभी प्रमुख खनिज पट्टों के संबंध में डिजीटाइज्ड पट्टा-वार सूचना उपलबध कराने का अनुरोध किया गया है । राज्य सरकारें, उन क्षेत्रों में, जहां अधिक पैमाने पर अवैध खनन संबंधी मामले व्यप्त हैं, गौण खनिजों के लिए एमएसएस अपना सकती है ।
·अपतटीय खनन, शुरू करने के संबंध में मंत्रालय ने, अपतटीय ब्लॉकों के आवंटन के लिए विधायी ढांचा में संशोधन करने हेतु समिति गठित की है ।
सतत खनन पहलें
·वर्ष 2015-16 के दौरान टाटा स्टील के सुखविंदा क्रोमाइट खान और नोवामुंडी लौह अयस्क खान और एनएमडीसी के डोनीमलाई खानों में एसडीएफ पहले ही शुरू कर दिया गया है ।
खानों की स्टार रेटिंग
·सतत विकास अवसंरचना (एसडीएफ) के कार्यान्वयन के लिए शुरू किए गए प्रयासों और पहलों के लिए खनन पट्टेदारों को ‘स्टार रेटिंग’ देने का प्रस्ताव है । यह आशा की जाती है कि खानों की स्टार रेटिंग, सभी कानूनी प्रावधानों के अनुपालन तथा खनन द्वारा बेस्ट प्रैक्टिस को शामिल करने के स्वयं संचालित तंत्र को प्रोत्साहित करेगी । मंत्रालय वित्त वर्ष 2015-16 में खानों के निष्पादन के आधार पर 1 से 5 की स्टार रेटिंग की तुलना में खानों का मूल्यांकन शुरू करना चाहता है । मई के अंत तक स्टार रेटिंग टेम्पलेट को ऑनलाइन करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी तथा खनन पट्टाधारकों को जून, 2016 तक स्व-प्रमाणन के आधार पर स्टार रेटिंग के लिए मूल्यांकन टेम्पलेट को भरना अपेक्षित होगा ।
सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग
·खनिज प्रशासन की सरकारी क्षमता में सुधार करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी को शुरू किया गया । कुछ राज्य अर्थात ओडिसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आदि ने इस ओर कदम बढ़ाया है और पहले ही अपने खनिज प्रशासन क्षेत्रों में आईटी की शुरूआत कर ली है ।
·केंद्रीय मंत्रालय, खनन टेनमेंट प्रणाली (एमटीएस) की स्थापना करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो मुख्यत: संपूर्ण खनिज रियायत जीवन चक्र, जो क्षेत्रों की पहचान से शुरू होकर खानों के बंद होने पर समाप्त होती है, को स्वचालित करेगा; तथा इलेक्ट्रोनिक फाइलों को सही समय पर हस्तांतरित और डाटा के आदान-प्रदान के लिए विभिन्न स्टेकहोल्डरों को एक दूसरे से जोड़ेगा । यह ऑनलाइन इलेक्ट्रोनिक वेब्रिज और चेक पोस्टों की सहायता से खनिज रियायत व्यवस्था के प्रभावकारी प्रबंधन, अयस्क के परिवहन को सक्षम करेगा । कार्यान्वयन एजेंसी के चयन के लिए खनन टेनेमेंट सिस्टम निविदा को अंतिम रूप दिया जा रहा है ।
·रॉयल्टी दरों में संशोधन
· प्रमुख खनिजों (कोयला, लिग्नाइट और भूगर्त भरण रेत को छोड़कर) की रॉयल्टी और अनिवार्य किराए की दरों को 01 सितंबर, 2014 से संशोधित किया गया जिसे अधिसूचना सं.630(अ) और 631(अ), दिनांक 01 सितंबर, 2014 के तहत राजपत्र में अधिसूचित किया गया ।
· परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को गैर-कोयला खनिजों से प्राप्त होने वाले राजस्व में लगभग 40 प्रतिशत तक वृद्धि होने का अनुमान था ।
·31 खनिजों के ‘गौण खनिजों’ के रूप में अधिसूचना
· दिनांक 10.02.2015 की अधिसूचना के तहत 31 खनिजों को ‘गौण खनिजों’ के रूप में अधिसूचित किया गया। इस समावेशन के साथ, वर्तमान में 55 खनिजों को संबंधित राज्य सरकारों के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन गौण खनिजों के रूप में वर्गीकृत किया गया है ।
गौण खनिज नियम
·दीपक कुमार के मामले (2009 के विशेष अनुमति याचिका (ग) सं. 19628-19629 में ओए सं. 12-13, 2011) में उच्चतम न्यायालय के दिनांक 27.02.2012 के निर्णय के अनुसरण में, खनन पट्टा के क्षेत्र की परवाह किए बिना सभी गौण खनिजों के संबंध में, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत मंजूरी लेना अनिवार्य किया गया । खान मंत्रालय ने गौण खनिजों के खनन के लिए प्रारूप दिशानिर्देश तैयार किए है जिसे राज्य सरकारों को परिचालित किया गया । गौण खनिज रियायत प्रदान करने संबंधी पारदर्शी प्रणाली को कार्यान्वित करने के लिए 20क तहत विशेषकर राज्यों के मुख्यमंत्री को जारी, खान मंत्रालय के अर्द्धशासकीय पत्र सं. 16/119/2015-खान-VI/220, दिनांक 24.11.2015 के परिप्रेक्ष्य में मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों के प्रतियुत्तर में कार्यवाही की गई ।
·खान पट्टों का विस्तार
·एमएमडीआर संशोधन अधिनियम, 2015 की अधिनियम की धारा 8(क) की उप-धारा 5 और 6 कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार द्वारा मौजूदा पट्टों के विस्तार को राज्य सरकारों द्वारा तेज़ी से किए जाने की आवश्यकता है ।
·धारा 10क(2)(ग) के तहत रक्षित लंबित खनन पट्टा मामलों, जो 11.01.2017 को समाप्त हो जाएंगे,
·धारा 10क(2)(ग) के तहत रक्षित खनन पट्टा आवेदन (अधिनियम की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध खनिज अथवा को अन्य प्रमुख खनिजों के लिए जारी एलओआई में संबंधी मामलों में प्रदत्त पूर्व अनुमोदन) प्रदान करने की आवश्यकता है जो उक्त अधिनियम के शुरू होने की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर, पूर्व अनुमोदन अथवा आशय पत्र की शर्तों को पूरा करने के अध्यधीन होगा, जो 11.01.2017 तक है । मंत्रालय की जानकारी में आया है कि ऐसे कुछ आवेदन, खनन पट्टा के निष्पादन के लिए अभी तक लंबित है ।
·इन लंबित मामलों की समीक्षा और त्वरित निपटान करने के लिए 10 मई, 2016 को 12 प्रमुख खनिज प्रचूर राज्यों की बैठक आयोजित की गई जिसमें राज्य सरकारों और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से, ऐसे मामलों के व्यपगत होने की तारीख से पहले इन्हें निपटाने को कहा गया ।
मंगलवार, 12 अप्रैल 2016
भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में पूर्वोत्तर की फिल्मों पर विशेष जोर
46वां भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) पिछले साल मनाया गया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फिल्म महोत्सव निदेशालय ने गोवा सरकार के सहयोग से सिनेमा की आंखों से विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को समझने के लिए भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया। इस महोत्सव का मूल सिद्धांत एशिया के कलात्मक केन्द्र से लेकर विश्व के सिनेमेटिक कार्यक्षेत्रों की सभी शैलियों में फिल्म निर्माण के लिए नई नई खोज, बढ़ावा और सहयोग पर ध्यानकेन्द्रित कर शैलियों की विविधताओं, कलात्मकता और सामग्री को एक साथ लाना है। यह महोत्सव विश्व के सिनेमा प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।
इफ्फी, फिल्मी दुनिया का एक बहुत बड़ा कार्यक्रम है जिसमें विशिष्ट पहलुओं/वर्गों को रेखांकित करने के लिए विशेष वर्ग भी है। दो वर्ष पहले इफ्फी में शुरू हुए पूर्वोत्तर वर्ग पर पिछले वर्ष भी विशेष ध्यान केंद्रित किया गया। महोत्सव के इस वर्ग में प्रसिद्ध फिल्मकार पद्मश्री और 15 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता मणिपुर के अरिबम श्याम शर्मा पर विशेष रिट्रोस्पेक्टिव दिखाया गया। भारतीय पेनोरमा वर्ग के फीचर ज्यूरी के अध्यक्ष श्री शर्मा के अपनी फिल्म ‘इमागीनिंगथम’ को देखने के लिए मक्विनेज पैलेस, थिएटर पहुंचे। यह फिल्म इफ्फी द्वारा पूर्वोत्तर सिनेमा पर ध्यान केंद्रित करने के रूप में दिखाई गई।
दर्शकों को संबोधित करते हुए श्री श्याम शर्मा ने कहा- ‘मैं प्रसन्न हूं और सम्मानित महसूस कर रहा हूं। इस मंच पर 1972 से अब तक की मेरी लंबी यात्रा रही है।’ उनकी फिल्म ‘इमागी निंगथम’ (मेरा बेटा, मेरी अमूल्य दौलत) को 1982 में दे त्रियो कॉन्टीनेंट्स फेस्टीवल में ‘ग्रें प्री’ पुरस्कार प्राप्त हुआ था। 1991 में केन्स फिल्म महोत्सव के लिए उनकी फिल्म ‘इशानॉव’ (एक चयनित) का आधिकारिक चयन (अन सर्टन रिगार्ड) किया गया था। ब्रिटिश फिल्म संस्थान ने उनकी फिल्म ‘संगाई-द डांसिग डीयर्स ऑफ मणिपुर’ को 1989 की बेहतरीन फिल्म घोषित की थी।
इस रिट्रोस्पेक्टिव में 14 फिल्में– ऑर्चिड्स ऑफ मणिपुर, इमागी निंगथम, येलहॉओ जगोई इशानॉव (केंस के लिए चयनित), ऑलांगथेगी वांगमदासो पारी, मणिपुरी, पोनी कोरो कोशी– द गेट द डिअर, ऑन द लेक द मोंपास ऑफ अरूणाचल प्रदेश मेइती, पुंग लाई हरावोबा और मराम्स थीं। इस वर्ष इफ्फी में एक अनोखा वर्ग शुरू किया गया है जिसमें पूर्वोत्तर की नई पीढ़ी के फिल्मकारों की फिल्में प्रदर्शित की गई। दूसरे वर्ग में पूर्वोत्तर की नई पीढ़ी के फिल्मकारों की दस फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।
ये फिल्में हैं- असम से एम मनीराम की फिल्म ‘जेन्धिक्यों’ (असमिया), सूरज दुआरा की ‘ओरोंग’ (रभा), जादुमनी दत्ता की ‘पानी’ (असमिया), अरूणाचल प्रदेश से सांगे दोरजी थोंगदोक की ‘क्रोसिंग ब्रिजेस’ (शेरदुकपेन), मिजोरम से नेपोलियन आरजेड थेंग की –‘एमएनएस’(अंग्रेजी/मिजो), नगालैंड से किविनी शोहे की ‘ओ माई सोल’(अंग्रेज/एओ), मणिपुर से वांगलेन खुंदोंगबम की ‘पाल्लेफेम’ (मणिपुरी), मेघालय से डोनिमिक मेहम संगमा की ‘रोंग कुचक’ (गारो), नगालैंड से त्यानला जमीर की ‘द हनी हंटर एण्ड मेकर’ (अंग्रेजी) और त्रिपुरा से संजीब दास की ‘ऑन ए रोल’ (त्रिपुरा)।
महिला निर्देशकों के वर्ग में बॉबी शर्मा बरूआ की फिल्म ‘अदम्या’ (असमिया) ने पूर्वोत्तर की ओर ध्यान खींचा। इंद्र बनिया (हलोधिया चोराये बाओधान खाई) और बिद्युत चक्रवर्ती द्वार को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। भारतीय पेनोरमा में नीलांजन दत्ता द्वारा निर्देशित अरूणाचली फिल्म ‘हेड हंटर’ और मंजु बोरा के निर्देशन में बनी बोडो फिल्म ‘दाऊ हुदुनी’ का प्रदर्शन किया गया। यह उन 26 फिल्मों में शामिल थी, जिनका पूर्वोत्तर से भारतीय पेनोरमा की फीचर श्रेणी के लिये चयन किया गया था। गैर फीचर फिल्म की श्रेणी में रुचिका नेगी के निर्देशन में बनी अंग्रेजी, एओ नागमिया फिल्म ‘एवरी टाइम यू टेल ए स्टोरी’ और हाओबम पबम कुमार निर्देशित मणिपुरी फिल्म ‘अमित महंती एण्ड फूम शेंग’ का चयन किया गया था।
जानकारी के लिये, पूर्वोत्तर के जाने माने फिल्म समीक्षक और अब फिल्मकार उत्पल बोरपुजारी को इस वर्ष भी पिछले वर्ष की तरह ही इस वर्ग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। श्री बोरपुजारी को वर्ष 2003 में 50वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में बेस्ट फिल्म क्रिटीक के लिए स्वर्ण कमल पुरस्कार प्रदान किया गया था। उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सिने पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
जाने माने फिल्मकार श्याम शर्मा ने फिल्म उद्योग में मौजूद क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों पर विरोधाभासो को सही तरीके रखा। श्री शर्मा ने प्रश्न किया ‘क्या भारतीय फिल्में केवल वे हैं जो हिंदी या बॉलीवुड में बनती हैं? और कुल मिलाकर भारतीय फिल्म क्या है? उन्होंने कहा ‘जब मैं कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में जाता हूं तो वहां मुझे भारतीय फिल्मकार कहा जाता है लेकिन अपने देश-भारत में मुझे क्षेत्रीय फिल्मकार कहा जाता है। कभी कभी हमें बुरा लगता है। हम छोटे लेकिन गंभीरता और ईमानदारी से फिल्म बनाने वाले हैं।’
उद्घाटन समारोह के दौरान महोत्सव निदेशक, सी सेंथिल राजन और इंटरटेनमेंट सोसायटी ऑफ गोवा (ईएसजी) के सीईओ अमेया अभ्यंकर द्वारा श्याम शर्मा, मंजू बोरा और उदीयमान निर्देशक एम मनीराम तथा जादूमनी दत्ता को सम्मानित किया गया।
श्री शर्मा ने कहा ‘इफ्फी जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पूर्वोत्तर सिनेमा का कद कई गुणा बढ़ रहा है।’ मुझे विश्वास है कि इस क्षेत्र से और फिल्में अधिक दर्शकों तक पहुंच पाएंगी। श्री बोरा ने कहा कि यह अच्छी बात है कि इफ्फी में पूर्वोत्तर सिनेमा पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है और इफ्फी 2015 में भी इसके लिए विशेष वर्ग भी निर्धारित किया गया।
बाद में संवाददाता सम्मेलन में अरिबम श्याम शर्मा और अन्य निर्देशकों ने पूर्वोत्तर की सिनेमा निर्माण की परेशानियों के बारे में बताया। श्री अरिबम श्याम शर्मा ने कहा कि पूर्वोत्तर फिल्मों के निर्माण में लागत सबसे महत्वपूर्ण कारक है और पूर्वोत्तर सिनेमा की निरंतरता के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। सरकार पूर्वोत्तर के निर्देशकों को वित्तीय सहायता देकर बड़ी भूमिका अदा कर सकती है और उसे यह करना चाहिए। अरिबम ने कहा कि उनके कुछ बेहतरीन कार्यों के लिए उन्हें दूरदर्शन से वित्तीय सहायता मिली थी।
उदयीमान फिल्मकार श्री मनीराम और श्री दत्ता ने मीडिया और दर्शकों के साथ बातचीत कर महोत्सव में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पूर्वोत्तर फिल्म उद्योग कम फिल्में बनाकर फिल्म निर्माण के क्षेत्र में पिछड़ सकता है लेकिन फिल्मोत्सवों में उनकी फिल्मों के प्रदर्शन से दर्शकों को इस क्षेत्र की संस्कृति और प्रजातीय मूल्यों के बारे में पता चलेगा।
अपनी फिल्म के बारे में श्री मनीराम ने कहा ‘यह सम्मान की बात है कि मेरी फिल्म से विशेष पूर्वोत्तर वर्ग की शुरूआत हुई है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के हिसाब से फिल्म महोत्सव की पहुंच कही अधिक होती है और विविध दर्शकों के बीच मेरे कार्य के प्रदर्शन के लिए इस मंच को मैं जीवनभर के अवसर के रूप में देखता हूं।’
महोत्सव से पहले नई दिल्ली में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अरूण जेटली ने सही कहा था कि ‘पूर्वोत्तर सिनेमा पर फोकस’ उस क्षेत्र की श्रेष्ठ फिल्मों और फिल्मकारों के कार्यों को विश्व के समक्ष प्रदर्शित करने के लिए एक बड़े मंच के रूप में उभरा है। श्री जेटली ने कहा कि भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का विशेष महत्व है और यह सिनेमा की दुनिया में एक वैश्विक ब्रांड बन गया है। इस महोत्सव से बेहतरीन कार्यों को बढ़ावा मिलता है और यह देश के तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभावान फिल्मकारों को उनकी कलात्मकता प्रदर्शित करने का अवसर उपलब्ध कराता है।
प्लास्टिक आधार कार्ड बनाने वाली अवैध कंपनियों से सावधान रहें लोग - UIEDAI
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने आम लोगों को ऐसी अवैध कंपनियों के झांसे में आने के खिलाफ आगाह किया है जो स्मार्ट कार्ड के नाम पर प्लास्टिक पर आधार कार्ड छापने के लिए 50 रुपये से 200 रुपये तक वसूल रहे हैं जबकि आधार पत्र या इसका काटा गया हिस्सा या किसी सामान्य कागज पर आधार का डाउनलोड किया गया संस्करण पूरी तरह वैध है।
कुछ कंपनियों ने आधार के डाउनलोड संस्करण के सामान्य लैमीनेशन के लिए भी सामान्य से अधिक वसूलना शुरु कर दिया है।
यूआईडीएआई के महानिदेशक एवं मिशन निदेशक डॉ. अजय भूषण पांडेय ने कहा ‘आधार पत्र या किसी सामान्य कागज पर आधार का डाउनलोड किया गया संस्करण सभी उपयोगकर्ताओं के लिए पूरी तरह वैध है। अगर किसी व्यक्ति के पास एक कागजी आधार कार्ड है तो उसे अपने आधार कार्ड को लैमीनेट कराने या पैसे देकर तथाकथित स्मार्ट कार्ड प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि स्मार्ट आधार कार्ड जैसी कोई चीज नहीं है।
अगर कोई व्यक्ति अपना आधार कार्ड खो देता है तो वह अपने आधार कार्ड को निशुल्क https://eaadhaar.uidai.gov.in से डाउनलोड कर सकते है। डाउन किये गये आधार का प्रिंट आउट भले ही वह श्वेत या श्याम रूप में क्यों न हों, उतना ही वैध है, जितना यूआईडीएआई द्वारा भेजा गया मौलिक आधार पत्र। इसे प्लास्टिक कार्ड पर प्रिंट करने या इसे लेमिनेट करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अगर कोई व्यक्ति फिर भी चाहता है कि उसका आधार कार्ड लैमीनेट किया जाए या प्लास्टिक कार्ड पर प्रिंट किया जाए, तो वह इसे केवल अधिकृत समान सेवा केन्द्रों पर या अनुशंसित दर पर जो 30 रुपए से अधिक न हो, कीमत अदा करने के द्वारा आधार स्थायी नामांकन केन्द्रों पर ऐसा कर सकते हैं।
आम लोगों को सलाह दी जाती है कि अपनी गोपनीयता की सुरक्षा के लिए वे अपने आधार नंबर या व्यक्तिगत विवरणों को अवैध एजेंसियों के साथ इसे लैमीनेट कराने या प्लास्टिक कार्ड पर प्रिंट कराने के लिए साझा न करें।
ई-बे, फ्लिपकार्ट, अमेजन आदि जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों को इसके द्वारा सूचित किया जाता है कि वे आम लोगों से आधार की जानकारी एकत्रित करने के लिए या ऐसी सूचना प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड को प्रिंट करने या आधार कार्ड को अवैध रूप से छापने या किसी भी प्रकार ऐसे व्यक्तियों को सहायता करने के लिए अपने व्यापारियों को अनुमति न दें। ऐसा करना भारतीय दंड संहिता और आधार (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडियों, लाभों एवं सेवाओं की लक्षित आपूर्ति) अधिनियम, 2016 के अध्याय-VI के तहत भी दंडनीय अपराध है।
प्रीडेटर ड्रोन के जरिए आतंकियों पर लगाम कसने की तैयारी
देश के अलग अलग हिस्सों में आतंक का खात्मा करने के लिए भारत अब एक ऐसा ड्रोन खरीदने जा रहा है, जिसका नाम सुनते ही आईएसआईएस से लेकर तालिबान और पाकिस्तानी आतंकी संगठन कांपने लगते हैं। इस ड्रोन का नाम है प्रीडेटर एवेंजर। ड्रोन को सरल भाषा में यूएवी यानि मानव रहित विमान भी कहा जाता है। प्रीडेटर एवेंजर ड्रोन की खासियत है कि यह न सिर्फ दुश्मन के ठिकानों पर नज़र रखने का काम करता है, बल्कि आतंकी ठिकानों को चंद सेकेंड के भीतर तबाह भी कर सकता है। यहीं वजह है कि अमेरिका जैसा ताकतवर देश प्रीडेटर एवेंजर के जरिए अफगानिस्तान से लेकर सीरिया तक के आतंकियों पर नज़र रखने का काम करता है। इस ड्रोन की खासियत है कि यह एक तीर से दो निशाने साधने की ताकत रखता है। पहला दुश्मन के इलाके में सर्विलांस और दूसरा दुश्मन पर हमला। प्रीडेटर एवेंजर ड्रोन में लगे हथियार लेजर तकनीक की मदद से सटीक हमला करने की क्षमता से लैस है। भारत चालीस सालों से भी अधिक समय से आतंकवाद का दर्द झेल रहा है।
लिहाजा बेगुनाह जनता को मारने वाले आतंकियों का ठोस और कारगर इलाज करने की नियत से भारत ने प्रीडेटर एवेंजर ड्रोन को खरीदने का फैसला किया है। इस ड्रोन को खरीदने के पीछे कुछ और भी वजह है। भारत प्रीडेटर एवेंजर के जरिए आतंकियों को ठिकाने लगाने के साथ ही चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों को भी कड़ा संदेश देना चाहता है। पाकिस्तान और चीन दो ऐसे पड़ोसी है जो समय समय पर भारत की एकता और अखंडता के लिए चुनौती पेश करते रहते हैं। पाकिस्तान भारतीय सीमा में आतंकियों की घुसपैठ के जरिए भारत में हिंसा फैलाने की कार्रवाई को अंजाम देता है तो चीन की सेना खुलेआम लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक मनमाने तरीके से घुसपैठ कर महीनों तक तंबू गाड़कर जमी रहती है। भारत प्रीडेटर ड्रोन के जरिए न सिर्फ सीमा पार से आने वाले आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुंचा सकती है, बल्कि चीन के नापाक इरादों पर भी पैनी नज़र रख सकती है। प्रीडेटर एवेंजर ड्रोन के जरिए चीनी सेना की गतिविधियों को समय रहते टाला जा सकता है, साथ ही चीन के खिलाफ भारत भी सटीक जवाबी कार्रवाई कर सकता है। अमेरिका का एवेंजर ड्रोन दुश्मनों के लिए बेहद घातक हथियार साबित हो सकता है। अमेरिका ने हाल ही में एवेंजर ड्रोन की मदद से आईएसआईएस आतंकी जेहादी जॉन को उसी के इलाके में मौत के घाट उतार दिया। भारत भी प्रीडेडर एवेंजर ड्रोन की मदद से पाकिस्तानी इलाकों में चलने वाले आतंकी शिविर को तबाह कर सकता है। इस ड्रोन की मदद से भारत पाकिस्तानी आतंकियों की बोलती बंद कर सकता है। चीनी सेना के खतरनाक मंसूबों पर पानी फेर सकता है। भारत के भीतर भी सक्रिय आतंकी गिरोहों और नक्सलियों पर भी भारत इसके जरिए पैनी नज़र रख सकता है। लिहाजा प्रीडेटर एवेंजर की मदद से भारत सही मायने में देश के दुश्मनों का परमानेंट इलाज कर पाएगा। इसके अलावा देश को अंदर से खोखला करने काम में लगे नक्सलियों की गतिविधियों पर भी लगाम लगाने में भी काफी मदद मिलेगी। यह ऐसा ड्रोन है, जो मिसाइल से हमले कर सकता है, दुश्मनों के ठिकानों पर लेजर के जरिए बम गिरा सकता है। इतना ही नहीं इसमें ऐसी तकनीक लगी हुई है कि यह दुश्मन के राडार को जाम भी कर सकता है। प्रीडेटर एवेंजर ड्रोन लेजर तकनीक की बदौलत दुश्मन की उड़ती हुई मिसाइल को भी नष्ट कर सकता है। इन्हीं सब खूबियों को देखते हुए भारत ने भी ड्रोन की अपनी फौज तैयार करनी शुरू कर दी है। इजरायल जल्द ही भारत को दुश्मनों पर नज़र रखने वाली क्षमता से लैस ड्रोन की आपूर्ति करने वाला है।
प्रीडेटर एवेंजर ड्रोन हवा में 50 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ते हुए धरती पर पैनी नजर रखेगा। यह जेट विमान की रफ्तार से लगातार 18 घंटे उड़ सकता है। इसकी क्षमता साढ़े तीन हजार पाउंड वजन के हथियार अपने साथ ले जाने की है। यानि यह ड्रोन भारत के लिए सही मायने में कारगर साबित होने वाला है। इस ड्रोन की मदद से भारत दुश्मनों पर आसमान से मौत बरसा सकता है। अमेरिका की जनरल एटॉमिक्स एयरोनॉटिकल सिस्टम्स ने एवेंजर प्रीडेटर सी - ड्रोन तैयार किया है। यह ड्रोन अफगानिस्तान में लगातार तालिबान का सफाया कर रहा है। इसे फास्ट किलिंग मशीन के नाम से भी जाना जाता है।
शनिवार, 9 अप्रैल 2016
जुलाई से डिब्बाबंद वस्तुओं पर उत्पादों की जानकारी देना ज़रुरी
अब सभी डिब्बाबंद वस्तुओं को छह जरूरी जानकारियों को प्रमुखता के साथ प्रदर्शित करना होगा। ये जानकारी पैकेट के कम से कम 40 फीसदी क्षेत्र (ऊपर और नीचे के हिस्से को छोड़कर) में प्रदर्शित होनी चाहिए ताकि उपभोक्ता उसे आसानी से पढ़ सकें। इस उद्देश्य के लिए उपभोक्ता मामले , खाद्य तथा सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने डिब्बाबंद वस्तुओं के नियमों में बदलाव किया है। मसूरी में कल भारतीय मानक ब्यूरो की बैठक की अध्यक्षता करते हुए केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य तथा सार्वजनिक वितरण मंत्री श्री रामविलास पासवान ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देश दिए कि वह जुलाई से इन संशोधित नियमों को लागू कराया जाना सुनिश्चित करें।
संशोधन के मुताबिक पैकेट के 40 फीसदी हिस्से पर पढ़ने लायक फॉन्ट साइज़ में निर्माता का नाम/पैकेजर/आयातक, उत्पाद की शुद्ध मात्रा, उत्पाद के निर्माण की तिथि, खुदरा बिक्री मूल्य और उपभोक्ता देखभाल संपर्कों को प्रदर्शित करना होगा। नए नियमों का सख्ती के साथ पालन हो, इसके लिए निगरानी विभाग भी बनाया जाएगा।
श्री पासवान ने कहा कि उनका मंत्रालय उपभोक्ताओं की शिकायतों के निपटारे के लिए त्वरित प्रतिक्रिया पद्धति स्थापित कर रहा है। साथ ही मौजूदा राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन को भी इसके लिए तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा अब एक वरिष्ठ अधिकारी दैनिक आधार पर शिकायतों के निपटान की निगरानी करेगा। श्री पासवान ने उम्मीद जताई कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, जिसमें उपोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधानों को शामिल किया गया है, बजट सत्र के दूसरे हिस्से में संसद द्वारा पास कर दिया जाएगा।
बैठक में बीआईएस के कामकाज की समीक्षा के दौरान मंत्री ने ब्यूरो से नए बीआईएस अधिनियम को जल्दी लागू कराए जाने को सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाने को कहा, ताकि देश में अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं व सेवाओं की प्रवृति को बढ़ावा मिले। इसके बाद उन्होंने यह भी कहा कि बीआईएस ने स्टैंडर्ड फॉर्मुलेशन के लिए लिए 'मेक इन इंडिया' के तहत कई पहल की हैं। इनमें अक्षय ऊर्जा, जैव ईंधन, ऑटो कंपोनेंट, इलेक्ट्रिक मशीनरी और कंस्ट्रक्शन आदि से संबंधित साजोसामान शामिल हैं। इसके अलावा बीआईएस प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन, पानी और अपशिष्ट जल आपूर्ति प्रबंधन के नए मानक बनाकर स्वच्छ भारत अभियान में भी योगदान दे रहा है।
जल संसाधन प्रबंधन में मूलभूत बदलाव की ज़रुरत
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने जल के प्रति बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया है। नई दिल्ली में आज भारत जल सप्ताह 2016 आयोजन का समापन भाषण देते हुए श्री मुखर्जी ने कहा कि विश्व की जल समस्या के समाधान के लिए ‘भारत जल सप्ताह’ श्रेष्ठ व्यवहारों और विचारों को साझा करने की दिशा में प्रमुख कदम है। हमें सुदृढ़ पारिस्थितिकी प्रणाली, आधुनिक डाटा प्रणाली और टेकनोलॉजी में नवाचार को प्राथमिकता देनी होगी। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे कानूनों में इस सिद्धांत को शामिल करना होगा कि जल साझी विरासत है। श्री मुखर्जी ने कहा कि हमें इसका संरक्षण करना होगा और इसका उपयोग इस तरह करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी को पर्याप्त मात्रा में जल प्राप्त हो सके।
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने अपने संबोधन में जल संसाधन प्रबंधन में आमूल चूल बदलाव लाने का आह्वान किया। इसके मुख्य घटक हैं: संकीर्ण इंजीनियरी – निर्माण केंद्रित सोच से हटकर एक अधिक बहुविषयक, उन्होंने कहा भागीदारी प्रबंधन को अपनाना जिसमें मुख्य ध्यान कमान क्षेत्र विकास तथा जल उपयोग क्षमता को सुधारने के सतत प्रयासों पर हो जो अब तक बहुत ही निचले स्तर पर थे। सुश्री भारती ने कहा इसी समय, देश बड़े जलाशयों की क्षमता में बढोतरी, जो कम लागत में हो और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को तैयार करने में सक्रिय होगा जैसे कि पंचेश्वर में अभी है। उन्होंने कहा कि भूजल, भारत की सिंचाई की दो-तिहाई आवश्यकता और 80 प्रतिशत घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। यहां हमारा ध्यान भूजल की ‘समान सपंत्ति अधिकार’ की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए एक्विफर मैपिंग के आधार पर भूजल का सतत प्रबंधन करने की भागीदारी सोच पर है। प्रथम चरण में इस कार्यक्रम के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक तथा तमिलनाडू जैसे अधिक भूजल दोहन वाले राज्यों की मैपिंग करना प्रस्तावित है। केंद्र सरकार ने भूजल क्षेत्र को नया जीवन देने के लिए अगले पांच सालों में 6000 करोड़ रूपये की राशि अलग रखी है। अत्यधिक दोहन वाले क्षेत्रों में भूजल को नया जीवन देने के लिए ऊंची गुणवत्ता वाले व्यावसायिक मानव शक्ति को लगाने का प्रस्ताव है।
सुश्री भारती ने कहा कि हमारे शहरों में मल-मूत्र को निपटाने के कम खर्च वाले सतत नए तरीकों की खोज करनी होगी। सिद्धांत यह होना चाहिए कि सीवेज तंत्र के निर्माण पर कम खर्च हो, सीवेज नेटवर्क की लम्बाई कम की जाए और वेस्ट को संसाधन की तरह उपयोग में लाया जाए। उन्होंने कहा कि सीवेज को सिंचाई और उद्योगों के प्रयोग में लाया जाए। सुश्री भारती ने कहा कि भारतीय शहरों को अपने जल को री-साईकिल करके और वेस्ट को पुन: उपयोग में लाने की योजना शुरूआत में ही बनानी होगी ना कि अंत में। उन्होंने कहा कि पुन: उपयोग के लिए इसे कृषि जल निकायों के पुन: भरण, बागवानी तथा उद्योगों और घरेलू उपयोग के विकल्प में बांटना होगा। सुश्री भारती ने कहा कि इस गतिविधि को हम नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत बढावा दे रहे है।
सुश्री भारती ने कहा कि अब यह सर्वज्ञात है कि सरकार सभी अंशधारियों को शामिल करते हुए उचित उपायों को अपनाकर जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों के शमन का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि उपरोक्त चुनौतियों का प्रभावी तरीके से सामना करने के लिए एकीकृत डिजिटल राष्ट्रीय जल संसाधन सूचना तंत्र अत्यावश्यक है। तदनुसार, हम विश्व बैंक की 3500 करोड़ की सहायता से राष्ट्रीय जलविज्ञान परियोजना में आवश्यक निर्णय तथा ऑपरेशन सहयोग के लिए राष्ट्रीय रीमोट सैंसिंग केंद्र की सहायता से केंद्रीय जल आयोग में इस समय उपलब्ध जल संसाधन सूचना तंत्र को सशक्त बनाने का काम कर रहे है। उन्होंने कहा कि सिंचाई प्रबंधन की भूमिका में बदलाव के लिए सिविल इंजीनियरों की क्षमता के पांरपरिक दृष्टिकोण को बदलने के लिए उनकी क्षमता का पुन: संवर्धन किया जाएगा। सुश्री भारती ने कहा कि सिंचाई प्रबंधन मे उत्कृष्ट केन्द्र स्थापित करने के लिए श्रेष्ठ राष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी विकसित की जाएगी।
रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने कहा कि जलवायु परिवर्तन ने जल के मसले को सामने ला खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि निरंतर बढ़ती आबादी हमारे जल संसाधनों पर दबाव डाल रही है। श्री प्रभु ने जल से संबंधित विभिन्न मामलों को समग्र दृष्टिकोण से सुलझाने का आह्वान किया। नदियों को जोड़ने से संबंधित कार्यक्रम के त्वरित कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल देते हुए श्री प्रभु ने कहा कि नदियों को जोड़ने से संबंधित कार्यक्रम के पूरा होते ही सूखे और बाढ़ की समस्याएं काफी हद तक सुलझ जाएंगी। उन्होंने जल संसाधनों के प्रबंधन की चुनौतियों से कारगर रूप से निपटने के लिए परंपरागत उपायों और आधुनिक तकनीकों के बेहतर समन्वयन का आह्वान किया।
इजराइल के कृषि मंत्री श्री यूरी एरियल ने सम्मेलन के लिए अपने संदेश में कहा कि इजराइल से विशेषज्ञों और पेशेवरों के साथ दर्जनों इजराइली कंपनियों और उनकी उन्नत प्रौद्योगिकीयों की झलक प्रस्तुत करने वाले राष्ट्रीय पविल्यन में सक्रिय भागीदारी ने इस बात की झलक प्रस्तुत की है कि भारत-इजराइल जल भागीदारी का नया, समग्र और उन्नत स्वरूप क्या होगा। उन्होंने कहा, “मैं हमारे निरंतर प्रगाढ़ होते संबंधों में एक अन्य महत्वपूर्ण घटक जोड़ने की इजराइल की प्रतिबद्धता दोहराता हूं, जिसके तहत दोनों देशों ने यहां नई दिल्ली और भारत भर में दोनों देशों की जनता के कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयासों में हाथ मिलाए हैं।”
राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने अपने संबोधन में कहा कि जल संसाधन प्रबंधन तभी सफल हो सकता है जब पर्याप्त संसाधन आवंटित किए गए हों और सरकार के विभिन्न प्रकोष्ठों, सामाजिक संगठनों, व्यापारिक घरानों और नागरिकों की पूरे ह्रदय से भागीदारी सुनिश्चित हो। उन्होंने कहा कि जल प्रबंधन का दर्शन राजस्थान के ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान’ में प्रतिबिम्बित होता है। श्रीमती राजे ने गांवों को पानी के संबंध में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अभियान चलाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश की संचार संबंधी कार्यनीति की रूपरेखा तैयार करने के लिए राष्ट्रीय कार्यबल होना चाहिए जो कृषि-जलवायु संबंधी स्थितियों के अनुरूप फसलों की पद्धतियों का वकालत करें।
केंद्रीय ग्रामीण विकास, पेय जल, स्वच्छता और पंचायती राज मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में पेय जल का प्राथमिक स्रोत परंपरागत रूप से भूजल रहा है, जो तेजी से कम होता जा रहा है। उन्होंने कहा है कि हमें पेयजल की जरूरतों के स्थान पर सतही जल के सर्वोत्तम उपयोग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। श्री सिंह ने कहा कि सतही जल और जल विज्ञान से संबंधित एजेंसियां भारत की सतही जल परिसंपत्तियों के मानचित्रण के लिए बहुत से महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाती हैं। हालांकि इतने विशाल आंकड़ों के अलग अलग मूल होने और इन्हें जुटाने तथा प्रॉसेस करने के लिए अपनाई गई विभिन्न कार्य पद्धतियों की वजह से अनुकूल परिणाम नहीं निकलते। श्री सिंह ने कहा, “यहां विचार ये है कि एक ऐसा प्लेटफार्म तैयार किया जाए, जो वहनीय हो। यह तभी संभव होगा जब भूजल, सतही जल, भूमि उपयोग और ज्यामितीय प्रौद्योकियां तालमेल से काम करें। ”
नीति आयोग ने “ग्रैंड इनोवेशन चेलेंज” लांच किया
नीति आयोग ने आज देश की दस विकास चुनौतियों के बारे में नागरिकों की राय जानने के लिए “ग्रैंड इनोवेशन चेलेंज” का पहला चरण लांच किया। “ग्रैंड इनोवेशन चेलेंज” माई गोव पोर्टल पर लांच किया गया ताकि भारत के विकास के लिए पहले ही चरण में नवाचार में नागरिकों को शामिल किया जाए। विचार विकास सुनिश्चित करने के लिए और किसी को एक दूसरे से पीछे न छोड़ने के लिए टीम इंडिया के रूप में राज्यों और प्रत्येक नागरिकों के साथ मिलकर काम करना है। इसका बल सामाजिक क्षेत्र तथा अत्यंत कमजोर वर्गों पर है।
“ग्रैंड इनोवेशन चेलेंज” के पहले चरण में नीति आयोग देश के विकास के प्रमुख क्षेत्रों में भारत की चुनौतियों पर नागरिकों की राय लेगा। विचार लोगों से यह जानना है कि वह कौन-कौन से विषय है जो सामाजिक क्षेत्र को विकसित करने के लिए हल करने आवश्यक हैं और प्राथमिकता आधार पर तय की जाने वाली चुनौतियां क्या हैं। ग्रैंड चेलेंज का पहला चरण अप्रैल, 25 को समाप्त होगा। https://mygov.in/task/niti-aayog-grand-innovation-challenge/ पर प्रविष्टियां प्रस्तुत की जा सकती हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विभिन्न मंचों पर भारत के विकास के लिए नवाचार तथा उद्यमशिलता के महत्व को दोहराए जाने के परिप्रेक्ष्य में “ग्रैंड इनोवेशन चेलेंज” लांच किया गया है। नीति आयोग अटल नवाचार मिशन (एआईएम) को लागू करने के लिए दिशा निर्देश तैयार करके इस लक्ष्य में लगा है। अटल नवाचार मिशन लांच किए जाने से देश की नवाचार क्षमता बढ़ेगी। देश और विदेश के बेहतरीन लोगों के साथ साझेदारी से शिक्षा, टेक्नोलॉजी, उद्योग, उद्यमशिलता तथा अनुसंधान के क्षेत्र में विशेषज्ञ एक साथ आएंगे।
शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016
3 तलाक और 4 निकाह से कैसे मिलेगी मुक्ति?
एक बार फिर मुस्लिम समाज में तीन तलाक और 4 निकाह को लेकर जोरदार चर्चा चल रही है। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मसले पर सायरा बानो की याचिका को लेकर केंद्र सरकार और दूसरे सभी पक्षों को अपनी राय बताने को कहा था। सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार की कमेटी ने सिफारिश दी है कि तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया जाए। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट और सरकार दोनों ही इस मुद्दे को लेकर आखिरी फैसला पर पहुंचना चाहते हैं। अब सबसे अहम प्रश्न यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की राय और सरकार की सिफारिश को मुस्लिम भारत का मुस्लिम समाज स्वीकार करेगा। क्या आने वाले वक्त में भारतीय मुस्लिम समाज की महिलाओं को 'तलाक, तलाक, तलाक' पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ेगा। धर्म के नाम पर तलाक के कुचक्र से मुस्लिम महिलाओं को कैसे मुक्ति मिलेगी।
तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के बाद अब केंद्र सरकार भी सुधार की सख्त जरूरत महसूस कर रही है। दरअसल सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार की कमिटी ने सिफारिश की है कि तीन तलाक पर बैन लगाया जाए। कमेटी ने कहा है मौखिक, तीन बार कहने पर दिए जाने वाले तलाक को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, एकतरफा तलाक, 4 शादी करने को प्रतिबंधित किया जाए, इसके साथ ही मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 को रद्द करने की भी सिफारिश भी की गई है। कमेटी ने कहा कि अलग रहने और तलाक में पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता भी मिलने चाहिए। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था है कि तीन तलाक़ की वैधता की समीक्षा की जाएगी. अदालत ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को 6 हफ्ते के भीतर सायरा बानो नाम की महिला की याचिका पर राय देने को कहा था,इस याचिका में कहा गया है, कि तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि इससे मुस्लिम महिलाओं से गुलामों जैसा सलूक होता है। मुस्लिम महिलाओं को स्काइप, फेसबुक और टेक्स्ट मैसेज पर तलाक दिए गए हैं । ऐसे मनमाने तलाक से कोई बचाव नहीं है। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई में पक्षकार बना जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम समाज में शादी, तलाक और तलाक के बाद मेंटेनस की परंपरा को संविधान के ढांचे में नहीं परख सकता । क्योंकि पर्सनल लॉ को मूलभूत अधिकार के तहत चुनौती नहीं दी सकती। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कहता है, कि तीन तलाक जैसे मसलों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। लेकिन सवाल है, कि क्या तीन तलाक को लेकर मुस्लिम संगठनों की ये दलील जायज है ? और अब सुप्रीम कोर्ट और सरकार के इस कदम के बाद क्या मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक से आजादी मिलेगी और ये क्या ये लड़ाई 'ट्रिपल तलाक' के खिलाफ 'आखिरी जंग' साबित होगी।
गुरुवार, 31 मार्च 2016
नैनीताल में एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन ने काम करना शुरु किया
अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में भारत ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है...नैनीताल में एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन ने काम करना शुरु कर दिया है...सबसे खास तो ये रहा कि इस दूरबीन को पीएम मोदी ने बेल्जियम की जमीन से देश को इसे समर्पित किया..अब उम्मीद है कि इसकी मदद से भारत अंतरिक्ष की दुनिया में नए आयाम छूने में कामयाब रहेगा...कुछ इस तरह देश से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर बेल्जियम शहर से शुरु हुआ एशिया का सबसे बड़ा ऑप्टिकल टेलीस्कोप....अपनी बेल्जियम यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बेल्जियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स मिचेल ने रिमोट टेक्निकल एक्टिवेशन टेक्निक के जरिए नैनीताल में बने 3.6 मीटर व्यास के टेलीस्कोप को एक्टिवेट किया...इस दौरान केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री डॉ हर्षवर्धन देवस्थल में मौजूद रहे। Asia's largest optical telescope at Nainital.करीब 150 करोड़ की लागत से 9 सालों में बनकर तैयार हुआ ये टेलीस्कोप भारत का ही नहीं बल्कि एशिया की ऐसी पहला शक्तिशाली टेलीस्कोप है, जिसकी क्षमता अब तक की सभी दूरबीनों से लगभग 3 गुना अधिक है...इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये दुनिया
के किसी भी कोने से ऑपरेट की जा सकती है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज़ ने एशिया की सबसे बड़े टेलीस्कोप की स्थापना का काम 1980 में शुरू किया था...देश के कई जगहों पर इसे स्थापित करने की संभावना तलाशने के बाद आख़िरकार नैनीताल से 60 किमी दूर धारी तहसील के देवस्थल को इस मिशन के लिए चुना गया...देवस्थल 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है...लिहाज़ा इस जगह को दूरबीन लगाने के लिए सही पाया गया...केंद्र सरकार ने 2007 में इसके लिए 120 करोड़ रुपये के
प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी.और टेलीस्कोप के निर्माण का काम 2007 में ही शुरु हुआ था। इस टेलीस्कोप से तारों के चुंबकीय क्षेत्र की संरचना को समझने में मदद मिलेगी... आकाशगंगा यानि मिल्की-वे के रासायनिक विकास को समझना आसान हो जाएगा...अब कम रौशनी वाले स्टार्स पर भी रिसर्च हो सकेगी ..यही नहीं तारों के इर्दगिर्द घूमने वाले मलबों पर रिसर्च से ग्रहों के निर्माण को समझने में मदद मिलेगी...और 3.6 मीटर व्यास वाला देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप 360 डिग्री घूमकर अतंरिक्ष की गतिविधियों पर नज़र रखेगा इस टेलीस्कोप को बनाने में 7 फीसदी हिस्सेदारी बेल्जियम की और 93 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है ..जो न केवल चारों दिशाओं का समझने में सक्षम है बल्कि क्रिटिकल ऑब्जर्वेशन में मील का पत्थर भी साबित होगी..कुल मिलाकर भारत की झोली में एक और बड़ी कामयाबी है जिसका फायदा पूरी दुनिया को मिलेगा ।
बुधवार, 30 मार्च 2016
निर्यात बढ़ाने की राह में निवेश और मॉनसून बड़ी चुनौती- वित्तमंत्री
केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत में आर्थिक सुधार को पूरी तरह स्वीकार कर लिया गया है। खासकर कराधान सुधार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में उन्होंने कहा भारत इस समय तीन बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें सिकुड़ते वैश्विक व्यापार को देखते हुए निजी निवेश को बढ़ाना, दो लगातार खराब मानसून के बाद बेहतर मानसून की आशा ताकि अपर्याप्त बारिश की समस्या से बचा जा सके। वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री सुश्री जुली बिशप से मुलाकात के दौरान ये बातें कहीं।
ऑस्ट्रेलिया के चार दिनों के आधिकारिक दौरे के दूसरे दिन उन्होंने कहा कि भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश की बहुत अधिक संभावनाएं है। इनमें अन्य क्षेत्रों के साथ रेलवे, रक्षा उपकरण निर्माण के क्षेत्र शामिल हैं जिनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी दी गई है। वित्त मंत्री ने मौजूदा भारत सरकार द्वारा 22 महीने के दौरान आर्थिक सुधार के उठाये गए कदमों और पहलों के बारे बातचीत की और ऑस्ट्रेलिया के उद्योगपतियों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया।
इस मौके पर ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री जुली बिशप ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया भारत को विभिन्न तरह की सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इनमें अन्य क्षेत्रों के अलावा नवाचार, अनुसंधान और विकास तथा डिजाइनिंग, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास के क्षेत्र में विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया अपनी सेवाएं दे सकता है।
वित्त मंत्री ने बताया कि भारत में नौजवान उद्योगपतियों के बीच नवाचार को बढ़ावा देने के लिए स्टार्ट-अप योजना शुरू की गई है। श्री जेटली ने यूरेनियम की आपूर्ति के लिए नागरिक नाभिकीय सहयोग पर प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री को धन्यवाद दिया।
हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय दौरों को याद करते हुए दोनों नेताओं ने कई क्षेत्रों और द्विपक्षीय सहयोग पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने विभिन्न द्विपक्षीय और वैश्विक विकास पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संपर्क के महत्व पर प्रकाश डाला और ऑस्ट्रेलिया में होने वाले फेस्टिवल ऑफ इंडिया तथा बढ़ते पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का स्वागत किया।
मंगलवार, 29 मार्च 2016
सागरमाला: नील क्रांति की ओर बढ़ते कदम
वर्तमान में, भारतीय बंदरगाह मात्रा की दृष्टि से देश के निर्यात व्यापार का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संभालते हैं तथापि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार में चालू अनुपात केवल 42 प्रतिशत है जबकि विश्व में कुछ विकसित देशों जैसे जर्मनी और यूरोपियन संघ में यह क्रमश: 75 और 70 प्रतिशत हैं इसलिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार में इसके हिस्से को बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। केंद्रीय सरकार के ''मेक इन इंडिया'' के प्रयास में यह अपेक्षा की गई है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में व्यावसायिक व्यापार का हिस्सा बढ़ाया जाना जरूरी है तथा विकसित देशों में इसका स्तर प्राप्त कर लिया गया है। भारत बंदरगाहों का बुनियादी ढांचा तथा ढुलाई संरचना के मामले में काफी पीछे है। सकल घरेलू उत्पाद में रेलवे के 9 प्रतिशत तथा सड़कों के 6 प्रतिशत हिस्से के मुकाबले बंदरगाहों का हिस्सा केवल एक प्रतिशत है। इसके अलावा ढुलाई की उच्च लागतों से भारत का निर्यात प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है। अंत: सागरमाला परियोजना बंदरगाहों तथा शिपिंग को भारतीय अर्थव्यवस्था में सही स्थान देने तथा बंदरगाहों का विकास करने के लिए बनाई गई है।
भारतीय राज्यों में गुजरात बंदरगाहों के विकास की रणनीति अपनाने में प्रमुख रहा है तथा इसने उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए हैं जबकि 1980 में राज्य ने 5.08 प्रतिशत प्रतिवर्ष वृद्धि दर्ज की (राष्ट्रीय औसत 5.47 प्रतिशत था), 1990 में यह बढ़कर 8.15 प्रतिशत हो गया (अखिल भारतीय औसत 6.98 प्रतिशत) तथा इसके पश्चात बंदरगाह-विकास मॉडल से इसमें प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।
सागरमाला का उद्देश्य
भारत के समुद्री क्षेत्र की वृद्धि में कई बाधाएं सामने आईं जिनमें औद्योगिकीकरण, व्यापार, पर्यटन और परिवहन को बढ़ावा देने में बुनियादी सुविधाओं के विकास में कई एजेंसियों का समावेशन; दोहरी संस्थागत संरचना की उपस्थिति जिससे प्रमुख तथा गैर प्रमुख बंदरगाहों का विकास अलग-अलग तथा बिना जुड़े रहा; प्रमुख और गैर प्रमुख बंदरगाहों से निकासी के लिए अपेक्षित बुनियादी सुविधाओं की कमी; भीतरी प्रदेशों के संपर्क में कमी की वजह से परिवहन तथा कार्गो की लागत में वृद्धि होना; भीतरी प्रदेशों में आर्थिक गतिविधियां तथा शहरी निर्माण के केंद्रों का अल्प विकास; भारत में अंतर्देशीय शिपिंग तथा समुद्री दोहन में कमी, भारत में विभिन्न बंदरगाहों पर अन्य सुविधाओं का अभाव, सीमित तकनीकीकरण तथा प्रक्रियागत बाधाओं जैसी नीतिगत चुनौतियां शामिल हैं।
सागरमाला के तहत इन चुनौतियों का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा। इसमें विकास के तीन स्तंभों (1) समन्वित विकास के लिए उपयुक्त नीति तथा संस्थागत सहयोग एवं अंतर-एजेंसी और मंत्रालय/विभागों/राज्यों के समावेश को सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत रूपरेखा तैयार करना तथा इनका सहयोग लेना, (2) बंदरगाह बुनियादी सुविधाओं का बढ़ावा जिनमें इनका आधुनिकीकरण तथा नई बंदरगाहों का गठन भी शामिल है और (3) भीतरी प्रदेशों से तथा इनमें सकुशल निकासी की व्यवस्था करना शामिल है।
सागरमाला के तहत कुशल तथा अर्ध कुशल जनशक्ति को बडे पैमाने पर रोजगार दिया जायेगा। रोजगार औद्योगिक समूहों तथा पार्कों, बडे बंदरगाहों, समुद्री सेवाओं, ढुलाई सेवाओं तथा अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में दिया जायेगा। इसका प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रभाव पडेगा। जहाजों, क्रूज शिप, जलयानों के निर्माण से औद्योगिक उत्पादन बढेगा और रोजगार का सृजन भी होगा।
बंदरगाह-नेतृत्व विकास की अवधारणा
सागरमाला परियोजना का एक प्रमुख उद्देश्य बंदरगाह के नेतृत्व में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देते हुए शीघ्रता, कुशलता और लागत प्रभावी रूप से बंदरगाहों से माल परिवहन के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है। इसलिए, सागरमाला परियोजना में, अन्य बातों के साथ, एक युक्तिसंगत समाधान के साथ नए विकास क्षेत्रों के उपयोग को विकसित करने के उद्देश्य से रेल विस्तार, अंतर्देशीय जल, तटीय और सड़क के माध्यम से मुख्य आर्थिक केन्द्रों के साथ संपर्क को बढ़ावा दिया जाएगा।
"सागरमाला" के लिए एक व्यापक और समन्वित योजना बनाने के क्रम में, छह महीने के भीतर समूचे समुद्र तट के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की जाएगी जो संभावित भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान करेगी और इसे तटीय आर्थिक क्षेत्र (सेज) के नाम से जाना जाएगा। एनपीपी की तैयारी करते समय, सहक्रिया और समाकलन के साथ योजान्वित औद्योगिक गलियारें, समर्पित भाड़ा गलियारें, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, औद्योगिक समूह और तटीय आर्थिक क्षेत्र के साथ तालमेल को सुनिश्चित किया जाएगा। चिहिन्त तटीय आर्थिक क्षेत्रों के लिए विस्तृत मास्टर प्लान तैयार किए जाएगें और इनके माध्यम से ही परियोजनाओं की अग्रणी पहचान और उनकी विस्तृत परियोजना रिपोर्टो को तैयार किया जाएगा।
विकास परियोजनाओं के प्रकार की एक व्याख्यात्मक सूची को सागरमाला पहल में शामिल किया जा सकता है। इनमें शामिल हैं: (1) बंदरगाह के नेतृत्व में औद्योगीकरण (2) बंदरगाह आधारित शहरीकरण (3) बंदरगाह आधारित और तटीय पर्यटन और मनोरंजक गतिविधियां (4) शॉर्ट-सी शिंपिंग तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जलपरिवहन (5) जहाज निर्माण, जहाज की मरम्मत और जहाज का पुनर्निर्माण (6) रसद पार्क, भंडारण, समुद्री क्षेत्र/सेवाएं (7) समुद्रतटीय क्षेत्र के साथ समाकलन (8) अपतटीय भंडारण, प्लेटफॉर्मो की ड्रिलिंग (9) खास आर्थिक गतिविधियों जैसे ऊर्जा, कंटेनरर्स, रसायन, कोयला, कृषि उत्पादों आदि में बंदरगाह की विशिष्टता (10) प्रतिष्ठानों के लिए बंदरगाहों के आधार के साथ अपतटीय नवीकरण ऊर्जा परियोजनाएं (11) वर्तमान बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और नए बंदरगाहों का विकास। इस रणनीति में बंदरगाह के नेतृत्व में विकास के साथ-साथ बंदरगाह के नेतृत्व में प्रत्यक्ष विकास और बंदरगाह के नेतृत्व में अप्रत्यक्ष विकास दोनों पहलू शामिल हैं।
वर्तमान बंदरगाहों की संचालन कुशलता में सुधार, जो सागरमाला पहल का एक उद्देश्य है, को वर्तमान बुनियादी ढांचे के उन्नयन और उन्नत व्यवस्था में सुधार और आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं और कार्यप्रणालियों के माध्यम से किया जाएगा। कागज रहित और समेकित लेनदेनों को सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी और स्वचालन का उपयोग मध्यस्थता का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा। सागरममाला परियोजना के अंतर्गत, तटीय नौवहन का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास और नीति पहलों के समन्वय के माध्यम से बढ़ाया जाएगा।
सागरमाला पहल के तहत तटीय आर्थिक क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या के दीर्घकालिन विकास को सुनिश्चित भी किया जाएगा। यह कार्य समुदायों से संबंधित और ग्रामीण विकास, जनजातीय विकास और रोजगार सृजन, मत्स्य पालन, कौशल विकास और पर्यटन को प्रोत्साहन देने जैसे राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों की मौजूदा योजनाओं और कार्यक्रमों के सहयोग से किया जाएगा। ऐसी परियोजनाओं और गतिविधियों को कोष उपलब्ध कराने के क्रम में एक पृथक निधि के माध्यम से इसके लिए 'समुदाय विकास कोष' तैयार किया जाएगा।
संस्थागत ढांचा
सागरमाला को कार्यान्वित करने के लिए संस्थागत ढांचे हेतु केंद्र सरकार को एक समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। सागरमाला परियोजना के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, यह 'सहयोग संघवाद' के स्थापित सिद्धांतों के अंतर्गत क्रमबद्धता और समन्वय के साथ काम करने हेतु केंद्र, राज्य सरकारों और स्थानीय प्राधिकरणों के लिए एक मंच के तौर पर होना चाहिए। समग्र नीति दिशानिर्देशों और उच्चस्तरीय सहयोग के साथ-साथ योजना और परियोजनाओं के कार्यान्वयन के विभिन्न पक्षों की समीक्षा के लिए एक राष्ट्रीय सागरमाला सर्वोच्च समिति (एनएसएसी) उल्ल्िखित हैं। एनएसएसी की अध्क्षता जहाजरानी मंत्री के द्वारा की जायेगी और इसमें मंत्रालयों के हित धारकों के तौर पर कैबिनेट मंत्री और समुद्री क्षेत्र से जुड़े राज्यों के बंदरगाहों के प्रभारी के तौर पर मुख्यमंत्री/मंत्री सदस्य के रूप में होंगे। कार्यान्वयन की पहल के लिए नीति निर्देश और दिशानिर्देश देते समय यह समिति समग्र राष्ट्रीय संदर्भ योजना (एनपीपी) को स्वीकृति देगी और इन योजनाओं के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करेगी।
सागरमाला से संबंधित परियोजनाओं में समन्वय और सुविधाओं के लिए राज्यस्तर पर प्रभारी तंत्र बनाने के क्रम में, राज्य सरकारें राज्य सागरमाला समिति के गठन का सुझाव देगी। इनकी अध्यक्षता बंदरगाहों के प्रभारी के तौर पर मुख्यमंत्री/मंत्री, संबंधित विभागों और एजेंसियों के साथ करेंगे। राज्य स्तर की समिति एनएसएसी में लिए गए फैसलों को प्राथमिकता के तौर पर देखेगी। राज्य स्तर पर राज्य समुद्री क्षेत्र बोर्ड/राज्य बंदरगाह विभाग, राज्य सागरमाला समिति को सेवा प्रदान करेंगे और एसपीवी (आवश्यकता के अनुसार) और निरीक्षण के माध्यम से व्यक्तिगत परियोजनाओं के सहयोग और कार्यान्वयन के लिए भी जिम्मेदार होंगे। प्रत्येक तटीय आर्थिक क्षेत्र का विकास व्यक्तिगत परियोजनाओं और इनको सहायता देने वाली गतिविधियों के माध्यम से किया जायेगा, जिनकी देखरेख राज्य सरकार, केन्द्रीय मंत्रियों और एसपीवी के द्वारा की जायेगी, जिन्हें राज्य स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा अथवा एसडीसी और बंदरगाहों द्वारा आवश्यकता के अनुरूप गठित किया जायेगा।
सागरमाला समन्वय और परिचालन समिति का गठन कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में किया जायेगा, इसमें जहाजरानी, सड़क परिवहन और राजमार्ग, पर्यटन, रक्षा, गृहमंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, राजस्व विभाग, व्यय, औद्योगिक नीति मंत्रालयों के सचिवों, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, एनआईटीआई आयोग सदस्य के तौर पर शामिल होंगे। समिति विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों और कार्यान्वयन के साथ जुड़ी एजेंसियों के बीच सहयोग प्रदान करेगी और राष्ट्रीय महत्व की योजना के कार्यान्वयन, विस्तृत मास्टर प्लानों और परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा करेगी। इसके साथ-साथ यह परियोजनाओं को निधि प्रदान करने और उनके कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर भी विचार करेगी। यह समिति परियोजनाओं के कोष के लिए उपलब्ध वित्तीय विकल्पों की भी समीक्षा के साथ-साथ परियोजना के वित्त पोषण/निर्माण/संचालन में सार्वजनिक-निजी साझेदारी की संभावनाओं पर भी विचार करेगी।
केन्द्र स्तर पर सागरमाला विकास कम्पनी को राज्य स्तर/क्षेत्रीय स्तर के विशेष प्रयोजन वाहनों (एसपीवी) की सहायता के लिए कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत गठित किया जायेगा और परियोजनाओं के कार्यान्यन हेतु इक्विटी सहायता के साथ बंदरगाहों के द्वारा एसपीवी का गठन किया जायेगा। व्यक्तिगत क्षेत्रों के लिए दो वर्ष की अवधि के भीतर तैयार विस्तृत मास्टर प्लानों को एसडीसी द्वारा अपनाया भी जायेगा। एसडीसी की व्यवसायिक योजना को 6 महीनों की अवधि के भीतर अंतिम रूप दिया जायेगा। एसडीसी उन सभी शेष परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए कोष प्रदान करेगा जिन्हें किसी अन्य माध्यम से वित्त पोषण नहीं हो सकता है।
परियोजना कार्यान्यन और वित्त पोषण
परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रारम्भ करने के क्रम में सागरमाला की अवधारणा में कार्यान्वयन हेतु शामिल चिह्नित परियोजनाओं को शुरू करने का प्रस्ताव है। ये चिह्नित परियोजनायें प्रारम्भिक चरण में कार्यान्वयन के लिए उपलब्ध आंकड़ों और सम्भाव्य अध्ययन रिपोर्टों और राज्य सरकारों एवं केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा की गई तैयारियों, दिखाई गई रूचि पर आधारित होंगी।
इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के सभी प्रयासों को निजी क्षेत्रों और सार्वजनिक-निजी साझेदारी जहां तक भी संभव हो के माध्यम से किया जायेगा। सागरमाला वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए परियोजना के प्रारम्भिक चरण में परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक कोष 692 करोड़ रूपये परिलक्षित है। आगामी वर्षों के लिए तटीय आर्थिक क्षेत्रों हेतु विस्तृत मास्टर प्लान के पूर्ण हो जाने के बाद धन की और आवश्यकता को निर्धारित किया जायेगा। एससीएससी के द्वारा स्वीकृत संबंधित मंत्रालयों के द्वारा परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु इन कोषों का उपयोग किया जायेगा।
सुभाष चंद्र बोस की गुप्त फाइलों को ऑनलाइन किया गया
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से संबंधित 50 गुप्त फाइलों की दूसरी श्रृंखला को बुधवार को सरकार की ओर से सार्वजनिक किया जायेगा। इन फाइलों को केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और नागरिक उड्डयन मंत्री 29 मार्च, 2016 को अपराह्न 3 बजकर 30 मिनट पर वेब पोर्टल www.netajipapers.gov.in पर जारी करेंगे। वर्तमान 50 फाइलों की श्रृंखला में 10 फाइलें प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंधित हैं, 10 फाइलें गृह मंत्रालय से हैं और 30 फाइलें विदेश मंत्रालय से संबंधित हैं। ये फाइलें 1956 से 2009 की अवधि की हैं।
गौरतलब है कि नेताजी से संबंधित 100 फाइलों के पहली श्रृंखला को प्रारंभिक संरक्षण व्यवहार और डिजिटलीकरण के बाद 23 जनवरी 2016 को नेताजी की 119वीं जयंती के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक किया था।
50 फाइलों की वर्तमान श्रृंखला को आम जनता की लगातार हो रही मांग के तहत जारी किया जायेगा और इसे स्वतंत्रता संग्राम की समूची पृष्ठभूमि पर भविष्य में विद्वानों के अनुसंधान की सुविधा के लिए जारी किया जायेगा। इन ज्यादातर फाइलों को विशेष रूप से गठित अभिलेखों से संबंधित विशेषज्ञों की समिति ने जांच के बाद जारी किये हैं। विशेषज्ञों ने निम्नलिखित पहलुओं पर गौर किया :
1 संरक्षण इकाई द्वारा जहां कहीं भी संरक्षण और जरूरी सुधार की जरूरत हो, उसके मुताबिक फाइलों की भौतिक स्थितियों को तय किया गया।
2 वेब पोर्टल www.netajipapers.gov.in को अपलोड करके इसके डिजिटल रिकॉर्ड्स की गुणवत्ता का सत्यापन किया गया।
3 फाइलों के किसी भी डुप्लीकेशन को जांचा गया।
इन बातों को अनुसंधानकर्ताओं और सामान्य जनता के इस्तेमाल के लिए इंटरनेट पर जारी किया जा रहा है।
आगे यह तथ्य भी जोड़ा जा सकता है कि 1997 में भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार ने रक्षा मंत्रालय की ओर से भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिन्द फौज), और 2012 में खोसला आयोग से जुड़ी 1030 फाइलें/आइटम और गृह मंत्रालय से न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग की 759 फाइलें/आइटम प्राप्त कीं। इन सभी फाइलों/आइटमों को पहले ही पब्लिक रिकॉर्ड्स के लिए सार्वजनिक किया जा चुका है।
रविवार, 27 मार्च 2016
2017 विश्वकप फुटबॉल अंडर-17 प्रतियोगिता के भारत में आयोजन को मंजूरी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में फेडरेशन इंटरनेशनल डी फुटबॉल एसोसिएशन (फीफा) अंडर-17 विश्वकप 2017 के आयोजन से संबंधित निम्नलिखित निर्णयों को मंजूरी दे दी है।
(क) आयोजन स्थल निम्नलिखित होंगे:
1) जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली
2) डी.वाई. पाटिल स्टेडियम, नवी मुंबई
3) जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, कोच्चि
4) सॉल्ट लेक स्टेडियम, कोलकाता
5) जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, फैटोरडा गोवा
6) आईजी स्टेडियम, गुवाहाटी
(ख) खेल विभाग के सचिव, एसएआई के डीजी एवं खेल विभाग के वित्तीय सलाहकार से निर्मित एक समिति को अखिल भारतीय फुटबॉल संघ (एआईएफएफ)/ एफआईएफए के परामर्श से आयोजन स्थलों में किसी परिवर्तन से संबंधित कठिनाइयों को दूर करने के लिए आवश्यक समायोजन करने के लिए अधिकृत किया गया है।
(ग) डिसप्ले बोर्ड आदि समेत उपरिशायी एवं उपकरण के लिए व्यय का दायित्व लिया जा सकता है। बहरहाल, कुल लागत 95 करोड़ रुपये के भीतर होगी जैसी कि पहले मंजूरी दी जा चुकी है।
(घ) कोष की किसी अतिरिक्त आवश्यकता की संभावना में खेल विभाग इस मामले को व्यय विभाग के सामने प्रस्तुत करेगा।
(ङ) खेल मंत्रालय को प्रतियोगिता के संचालन के लिए आयोजन समिति गठित करने के लिए अधिकृत किया गया है।
गोवा में राष्ट्रीय आरोग्य मेला शुरू
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा गोवा राज्य सरकार एवं भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के सहयोग से आयोजित गोवा में एक राष्ट्रीय स्तर के आरोग्य मेले की शुरुआत पणजी के निकट बैम्बोलीन में गोवा विश्वविद्यालय परिसर में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इनडोर स्टेडियम में हुई। केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीपद येस्सो नाईक ने गोवा के मुख्यमंत्री श्री लक्ष्मीकांत पारसेकर, गोवा विधानसभा के स्पीकर श्री अनंतशेट, गोवा के उपमुख्यमंत्री श्री फ्रांसिस डिसूजा, वन मंत्री श्री राजेन्द्र अरलेकर, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सुश्री अलीना सलदान्हा एवं विपक्ष के नेता श्री प्रकाश सिंह राणे की उपस्थिति में इस चार दिवसीय मेले का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री श्रीपद येस्सो नाईक ने 21 जून, 2016 को आयोजित होने वाले दूसरे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए योगा प्रोटोकॉल का विमोचन भी किया।
अपने उद्घाटन भाषण में मंत्री महोदय ने कहा कि आयुर्वेद विश्व को भारत का उपहार है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत ने विश्व भर में चिकित्सा की इस पारंपरिक प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ एक समझौता किया है। श्री नाईक ने कहा कि भारत ने कैंसर के क्षेत्र में आयुष के तहत एक संयुक्त अनुसंधान के लिए अमेरिका के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किया है।
केंद्रीय मंत्री ने जानकारी दी कि केंद्र सरकार देश के प्रत्येक जिले में एक आयुष अस्पताल खोलने पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि आयुष मंत्रालय की योजना निकट भविष्य में एक अखिल भारतीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान तथा गोवा में प्रत्येक पद्धति की एक ईकाई स्थापित करने की भी है।
इस चार दिवसीय मेले का उद्देश्य लोगों के बीच आयुष प्रणालियों की प्रभावोत्पादकता, उनकी कम लागत और सामान्य बीमारियों के बचाव एवं उपचार के लिए उपयोग में आने वाले हर्ब एवं पौधों की उपलब्धता के बारे में विभिन्न जन मीडिया चैनल द्वारा उनके दरवाजे पर जानकारी उपलब्ध कराना है जिससे कि सबके लिए स्वास्थ्य का लक्ष्य अर्जित किया जा सके।
एसकेजे/एनआर-1660
भारत को एक मजबूत और दूरदर्शी नेतृत्व की ज़रुरत
भारत का आने वाले दिनों में दशकीय दोहरे अंक की आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करना तय है, साथ ही, एक अरब से अधिक खुशहाल लोगों के साथ उसका एक महाशक्ति बनना भी तय है। अगर हम अधिक पारदर्शिता के साथ बड़े पैमाने की लागत का लाभ उठाएं और शुरू किए गए कार्यों की निगरानी करें तो भारत के पास बहुत जल्द खुद को रुपांतरित करने एवं विकसित देशों के समूह में प्रवेश कर जाने की क्षमता है। केंद्रीय बिजली, कोयला एवं नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री पीयूष गोयल ने ये उद्गार व्यक्त किए। श्री पीयूष गोयल आज यहां युवा भारतीयों पर सम्मेलन ‘एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत का निर्माण ’ सत्र को संबोधित कर रहे थे।
बहरहाल, समाज के निचले स्तर के लोगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की जरूरत की चेतावनी देते हुए श्री गोयल ने कहा कि ‘हम तक एक आर्थिक महाशक्ति नहीं बन सकते जब तक सामाजिक संरचना के अंतिम पायदान के खड़े व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने, कुशल बनने तथा एक बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर की दिशा में बढ़ने का समान अवसर प्राप्त नहीं हो जाता।’ मेरे विचार से देश भर के गांव में बिजली सुविधा की कमी एक राष्ट्र के रूप में हमारे लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे लगभग 50 मिलियन भर घर हैं जिनके पास बिजली की सुविधाएं नहीं हैं। अरुणाचल प्रदेश में ऐसे लगभग 808 गांव हैं जहां बिजली सुविधाओं की कमी है। हम जहां अब सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश में एक ग्रिड का निर्माण करने पर कार्य कर रहे हैं, इसमें अभी वक्त लगेगा। इसलिए हम अंतरिम तौर पर ऑफ-ग्रिड समाधानों पर भी नजर रख रहे हैं।
एक साथ मिलकर कार्य करने के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि ‘सरकार एवं युवाओं को मिलकर कार्य करने, एक साथ विचार करने तथा विचारों को एक साथ क्रियान्वित करने की तथा एक टीम के रूप में काम करने की जरूरत है जिससे कि हम विकास के फलों को सामाजिक संरचना के अंतिम पायदान तक खड़े व्यक्ति तक पहुंचा सकें।’
उन कार्यों का उदाहरण देते हुए, जहां सरकार और युवाओं ने सफलतापूर्वक परिणामों को प्रदर्शित किया हैं कि एक टीम वर्क से उल्लेखनीय लाभ हासिल हो सकते हैं, उन्होंने कहा, ‘उज्जवल डिस्कॉम एंश्योरेंस योजना बिजली क्षेत्र में हाल में की जाने वाली सबसे व्यापक सुधार योजनाओं में से एक है, जिसकी परिकल्पना बिजली मंत्रालय की एक युवा टीम द्वारा की गई थी। ठीक इसी प्रकार एक कोयला तथा बिजली की कमी वाले देश से एक अधिशेष स्थिति तथा कोल इंडिया द्वारा उत्पादन में बढ़ोतरी करने की रुपरेखा कोल इंडिया की सहायक कंपनियों द्वारा बनाई गई थी, जिसने 500 युवा लोगों की एक टीम गठित की थी, जो कि इस उदाहरण के मुख्य वास्तुकार थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि 365 इंजीनियरों से अधिक की एक युवा टीम गांवों के विद्युतिकरण की दिशा में काम कर रही है जहां बिजली की कोई सुविधा नहीं है और उन्होंने 7000 गांव में बिजली पहुंचा भी दी है।’
सरकार द्वारा क्रियान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं पर एक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत की विवेचना करते हुए श्री गोयल ने कहा, ‘हमें वर्तमान प्रणाली में अवसरों को पहचानने तथा यह देखने की जरूरत है कि किस प्रकार इन्हें कार्य योग्य एजेंडा में तब्दील किया जा सकता है। अगर भारत सरकार द्वारा पिछले 22 महीनों के दौरान शुरू किए जाने वाली योजनाओं को अलग करके देखा जाए तो उनका बहुत प्रभाव नहीं भी हो सकता है। अगर हम यह महसूस करें किे किस प्रकार ये विभिन्न योजनाएं (स्किल इंडिया कार्यक्रम, जनधन योजना, मुद्रा योजना, मिशन अन्वेषण आदि) एक दूसरे के साथ समेकित हैं और एक साथ मिलकर सहायता संघ के रूप में काम करती हैं तो इन सभी योजनाओं का लाभ भारत के युवाओं के बेहतर भविष्य के सभी कायक्रमों के साथ जुड़ सकता है।’
भारत के पास मौजूद युवाओं की बड़ी आबादी के लाभ की चर्चा करते हुए श्री गोयल ने कहा कि इस बड़ी युवा आबादी का लाभ हमारी सबसे बड़ी ताकत है और हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। इस कार्यक्रम तथा भारत के युवा किस प्रकार एक महाशक्ति बनने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं, के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार से यह योजना एक रुपांतकारी पहल की धुरी बन सकती है।‘ उन्होंने युवाओं से सरकार के साथ साझेदारी करने और एक साथ मिलजुलकर कार्य करने की अपील की है।
एक विकसित देश की दिशा में आगे बढ़ने में अन्वेषण एवं प्रौद्योगिकियों की सुविधा की मुख्य भूमिका पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर हम सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की तरफ गौर करें जैसा कि बिजली के क्षेत्र में हुआ है, बड़े पैमाने की लागत का इस्तेमाल करें और विनिर्माण को प्रोत्साहित करें तो यह भारत को अकुशल प्रौद्योगिकियों, परिसंपत्तियों एवं प्रचलनों को पीछे छोड़कर तेजी से आगे निकलने तथा ऐसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने जो ज्यादा कुशल तथा कम उत्सर्जनकारी हो, में मददगार साबित होगा।’
श्री गोयल ने नितिन गडकरी के नेतृत्व के तहत सृजित एक लघु कार्यसमूह का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यह कार्यसमूह भारत के 2030 तक शतप्रतिशत बिजली वाहनों की दिशा में रुपांतरित होने की संभावना का मूल्यांकन कर रहा है। यह योजना एक स्व वित्त पोषण पर आधारित होगी तथा उन बचतों के मौद्रीकरण पर विचार करेगी जो उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम उत्पादों पर प्राप्त होंगे।
बिजली मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक की सफलता को रेखांकित करते हुए श्री गोयल ने कहा, ‘भारत के एलईडी कार्यक्रम का परिणाम वार्षिक रूप से 100 बिलियन यूनिट की बचत के रूप में सामने आएगा तथा उपभोक्ताओं को इसका सीधा लाभ मिलेगा। आर्थिक रूप से यह सालाना 6.5 बिलियन डॉलर की बचत में सहायक होगा। पर्यावरण चिंताओं को देखते हुए यह कार्यक्रम लगभग 80 मिलियन टन कार्बन डायआक्साइड में कमी लाएगा। यह कार्यक्रम प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार बड़े पैमाने की किफायत का लाभ एलईडी बल्बों की कीमत में उल्लेखनीय कमी के रूप में प्राप्त हो सकता है।’
एक महाशक्ति की दिशा में देश के आगे बढ़ने में ऊर्जा सुरक्षा के महत्व की चर्चा करते हुए श्री गोयल ने कहा कि भारत के पास आज उत्पादित होने वाली बिजली से 150 प्रतिशत अधिक बिजली उत्पादन की क्षमता है। उन्होंने कहा कि अगर हम उन परिसंपत्तियों का इस्तेमाल करें जिनका उपयोग नहीं हो पाता तो भारत का ऊर्जा के लिहाज से सुरक्षित होना तय है। उन्होंने कहा, ‘अब हम तेल एवं गैस पर अपनी निर्भरता कम करने पर काम कर रहे हैं। इसके साथ-साथ हम अपने खपत को कम करने के कार्यक्रम पर भी कार्य कर रहे हैं। हम ऐसे खपत को बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं जिसे पेट्रोल के साथ मिश्रित किया जा सके। अब हम पेट्रोल के साथ 5 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और अगले स्तर पर इसका किसानों की आय पर एक रुपांतकारी प्रभाव पड़ेगा।’
एसकेजे/एनआर-1656
शुक्रवार, 25 मार्च 2016
प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना- 'ग्रामीण' का क्रियान्वयन
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण आवास योजना 'ग्रामीण' के क्रियान्वयन को अनुमति प्रदान कर दी है। इस योजना के तहत सभी बेघर और जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले लोगों को पक्का मकान बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
इस परियोजना के क्रियान्वयन हेतु 2016-17 से 2018-19 तक तीन वर्षों में 81975 रुपये खर्च होंगे। यह प्रस्तावित किया गया है कि परियोजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 से 2018-19 के कालखंड में एक करोड़ घरों को पक्का बनाने के लिए मदद प्रदान की जाएगी। दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़ कर यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में पूरे भारत में क्रियान्वित की जाएगी। मकानों की क़ीमत केंद्र और राज्यों के बीच बांटी जाएगी।
विस्तृत जानकारी निम्न हैः-
क) प्रधानमंत्री आवास योजना की ग्रामीण आवास योजना- ग्रामीण का क्रियान्वयन।
ख) ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ आवासों के निर्माण के लिए 2016-17 से 2018-19 तक तीन वर्षों में मदद प्रदान की जाएगी।
ग) समतल क्षेत्रों में प्रति एकक 1,20,000 तक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में 1,30,000 तक सहायता में बढ़ोतरी।
घ) 21,975 करोड़ रुपए की अतिरिक्त वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) से की जाएगी।
ड.) लाभान्वितों की पहचान के लिए सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना- 2011 का उपयोग।
च) परियोजना के तहत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी सहायता हेतु नेशनल टेकनिकल सपोर्ट एजेंसी का गठन।
क्रियान्वयन की रणनीति एवं लक्ष्यः-
• पूर्ण पारदर्शिता एवं निष्पक्ष्ता सुनिश्चित करते हुए लाभान्वितों की पहचान का कार्य सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना की सूचनाओं का प्रयोग कर किया जाएगा।
• पूर्व में सहायता प्राप्त लाभान्वितों एवं अन्य कारणों से अयोग्य लोगों की पहचान के लिए सूची ग्राम सभा को दी जाएगी। अंतिम सूची का प्रकाशन किया जाएगा।
• घरों के निर्माण की क़ीमत केंद्र एवं राज्य द्वारा समतल क्षेत्रों में 60:40 के अनुपात में तथा पहाड़ी/ उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों हेतु 90:10 के अनुपात में रखी जाएगी।
• लाभान्वितों की वार्षिक सूची की पहचान ग्राम सभा द्वारा सहभागिता पूर्वक की जाएगी। मूल सूची की प्राथमिकता में परिवर्तन के लिए ग्राम सभा को लिखित में न्यायसंगत ठहराना होगा।
• लाभान्वित के खाते में सीधे धनराशि स्थानांतरित की जाएगी।
• फोटोग्राफ एप के माध्यम से अपलोड किए जाएंगे, भुगतान की प्रगति को लाभान्वित एप के माध्यम से देख पाएंगे।
• लाभान्वित मनरेगा के अंतर्गत 90 दिनों के अकुशल श्रम का अधिकारी होगा, सर्वर से लिंक कर तकनीकी आधार पर इसको सुनिश्चित किया जाएगा।
• मकानों की संरचना ऐसी होगी जो क्षेत्रीय आधार पर उपयुक्त हों, मकानों की रचना में ऐसी खासियतें रखी जाएंगी जो उन्हें प्राकृतिक आपदाओं से बचा सकें।
• मिस्त्रियों की संख्या में कमी को देखते हुए उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जाएगी।
• मकान बनाने में प्रयुक्त सामग्री की अतिरिक्त ज़रूरत को देखते हुए ईंटों के निर्माण हेतु सीमेंट या फ्लाई एश का मनरेगा के अंतर्गत कार्य किया जाएगा।
• लाभान्वित को 70,000 रुपए तक का ऋण लेने की सुविधा प्रदान की जाएगी।
• मकान का क्षेत्रफल मौजूदा 20 वर्ग मीटर से बढ़ाकर भोजन बनाने के स्वच्छ स्थान समेत 25 वर्ग मीटर तक किया जाएगा।
• परियोजना से जुड़े सभी लोगों के लिए गहन क्षमता सर्जक प्रक्रिया रखी जाएगी।
• ज़िला एवं ब्लॉक स्तर पर आवासों के निर्माण हेतु तकनीकी सुविधाएं प्रदान करने के लिए मदद मुहैया कराई जाएगी।
• आवासों के निर्माण की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एवं केंद्र और राज्य सरकारों को तकनीकी मदद देने के लिए एक नेशनल टेकनीकल सपोर्ट एजेंसी का गठन किया जाएगा।
मकान एक आर्थिक सम्पत्ति है एवं स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव डालने के साथ ही सामाजिक उन्नति में योगदान देता है। किसी परिवार के लिए रहने का स्थाई मकान होने के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष फायदे अमूल्य एवं ढेरों हैं।
निर्माण क्षेत्र भारत में दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार प्रदाता है। इस क्षेत्र का 250 से भी ज़्यादा अधीनस्थ उद्योगों से वास्ता है। ग्रामीण आवास योजना के विकास से ग्रामीण समाज में रोज़गारों का सृजन होता है और इससे गांवों के अर्थतंत्र का विकास होता है।
रहने के लिए वातावरण बेहतर होने के अप्रत्यक्ष फायदे श्रम उत्पादकता एवं स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव के रूप में होते हैं। पोषण, स्वच्छता, माता एवं बच्चे के स्वास्थ्य समेत मानव विकास के मापदण्डों पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जीवन स्तर बेहतर होता है।
केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में 6 फीसदी की बढ़ोत्तरी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों को महंगाई भत्ते (डीए) की अतिरिक्त किस्त जारी किए जाने तथा पेंशनयाफ्ताओं को महंगाई राहत (डीआर) 1-1-2016 से दिए जाने को मंजूरी दे दी। यह मूल्य वृद्धि की क्षतिपूर्ति के लिए मूल वेतन/पेंशन के 119 प्रतिशत की वर्तमान दर की तुलना में 6 प्रतिशत के अधिक की वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।
इससे 50 लाख सरकारी कर्मचारियों एवं 58 लाख पेंशनयाफ्ताओं को लाभ पहुंचेगा। यह वृद्धि स्वीकृत फार्मूले के अनुरूप है जो कि 6ठे केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) की अनुशंसाओं पर आधारित है। महंगाई भत्ते एवं महंगाई राहत दोनों की वजह से वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान (जनवरी,2016 से फरवरी,2017 तक के 14 महीनों की अवधि के लिए) सरकारी खजाने पर संयुक्त प्रभाव क्रमश: 6796.50 करोड़ रुपये सालाना एवं 7929.24 करोड़ रुपये का होगा।
बुधवार, 23 मार्च 2016
सैलानियों की मदद करने में कारगर साबित हो रहा है पर्यटक हेल्पलाइन नंबर
पर्यटन मंत्रालय की 24X7 टोल फ्री पर्यटक इन्फो/हेल्पलाइन नंबर 1800111363 या एक शार्ट कोड 1363 पर 20 मार्च, 2016 तक पर्यटकों के कुल 17911 फोन कॉल प्राप्त हुए हैं। 8 फरवरी, 2016 को पर्यटन और संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा द्वारा इसका शुभांरभ करने के बाद से इस हेल्पलाइन की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। इस इंफोलाइन सेवा के जरिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों/यात्रियों के लिए देश में यात्रा और पर्यटन से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा फोन करने वाले को देश में यात्रा के दौरान परेशानी के समय क्या कदम उठाने चाहिए इस बारे में सलाह दी जाती है तथा आवश्यकता पड़ने पर संबंधित अधिकारी को सावधान भी किया जाता है।
इस परियोजना का कार्यान्वयन भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा मेसर्स टाटा बीएसएस के माध्यम से किया जा रहा है जो खुली बोली प्रक्रिया के बाद इस कार्य से जुड़ी हुई है। अनुबंध केन्द्रों द्वारा संचालित भाषाओं में हिंदी एवं अंग्रेजी के अतिरिक्त 10 अंतर्राष्ट्रीय भाषाएं शामिल हैं जिनके नाम हैं- अरबी, फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, जापानी, कोरियाई, चीनी, पोर्तुगीज, रूसी एवं स्पेनिश शामिल हैं।
भारत में यात्रा कर रहे या यात्रा करने की योजना बना रहे पर्यटक बिना किसी परेशानी के सूचना एवं सहायता प्राप्त कर सकते हैं। पर्यटकों (घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों) द्वारा भारत में रहने के दौरान किये गये कॉल नि:शुल्क होंगे। उपरोक्त भाषाएं बोलने वाले भारत में आए अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक तथा अंतर्राष्ट्रीय कॉलर को भी संबंधित भाषाओं में प्रवीण कॉल एजेंट द्वारा निर्देशित किया जायेगा।
टूरिस्ट इंफो लाइन का केंद्रबिंदु आईईसी अर्थात सूचना, शिक्षा एवं पर्यटकों के लिए संचार है, जिसे एक हेल्प डेस्क से मदद मिलती है। यह सेवा मुख्य रूप से उन लोगों के लिए है, जो भारत के बारे में या भारत के भीतर यात्रा करने के बारे में बहुत कम जानते हैं। यह ऐसे लोगों के लिए भी मददगार है, जो भारतीय प्रणालियों को नहीं समझते और अक्सर अंग्रेजी भी नहीं जानते हैं।
पर्यटकों के खिलाफ, विशेष रूप से महिला पर्यटकों के खिलाफ अपराध से जुड़ी घटनाओं की खबरों के कारण विदेशी टूर ऑपरेटरों तथा भारत आने वाले संभावित आगंतुकों द्वारा पर्यटकों की सुरक्षा की चिंता के मद्देनजर ऐसी पर्यटक इंफो/हेल्पलाइन आवश्यकता महसूस की जा रही है। दलालों की धमकियों एवं पर्यटकों के साथ ठगी के मामलों को लेकर भी गंभीर चिंताए जताई गई थी।
मंगलवार, 22 मार्च 2016
ग्रामीण विकास योजनाओं में गुणवत्ता की निगरानी ज़रुरी- पीएम मोदी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को ग्रामीण विकास योजनाओं की प्रगति की समीक्षा की। इस दौरान प्रधानमंत्री के समक्ष नीति आयोग द्वारा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) और दीनदयाल अंत्योदय योजना (डीएवाई) की प्रगति पर एक प्रस्तुति दी गई।
वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान हर दिन औसतन 91 किलोमीटर लंबी ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया है। इस तरह कुल मिलाकर 30,500 किमी लंबी ग्रामीण सड़कों का निर्माण हुआ है। इसके परिणामस्वरूप चालू वित्त वर्ष के दौरान 6500 बस्तियों को जोड़ा गया है।
इस दौरान प्रधानमंत्री को ग्रामीण सड़कों के निर्माण कार्य में और ज्यादा तेजी लाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में अपनाए जा रहे अभिनव सर्वोत्तम तौर-तरीकों के उपयोग के बारे में सूचित किया गया। नियोजन और निगरानी के लिए जीआईएस एवं अंतरिक्ष संबंधी चित्रों का उपयोग, विभिन्न स्तरों की संख्या न्यूनतम करके धनराशि का कारगर प्रवाह सुनिश्चित करना और ‘मेरी सड़क’ नामक एप के जरिए नागरिक शिकायतों का निवारण इन अभिनव सर्वोत्तम तौर-तरीकों में शामिल हैं।
प्रधानमंत्री ने संबंधित अधिकारियों को इस योजना के तहत बनाई जा रही सड़कों की गुणवत्ता संबंधी कठोर निगरानी सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावशाली तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि सामग्री की खरीद, निर्माण और रख-रखाव जैसे चरणों में गुणवत्ता की निगरानी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
दीनदयाल अंत्योदय योजना का लक्ष्य टिकाऊ आजीविका के जरिये गरीबी उन्मूलन सुनिश्चित करना है। प्रधानमंत्री को यह भी जानकारी दी गई कि अब तक 3 करोड़ परिवारों को स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) से जोड़ा गया है। प्रधानमंत्री ने ‘आधार’ के जरिये एसएचजी को दिये जा रहे ऋणों पर समुचित ढंग से नजर रखने को कहा। उन्होंने विशेष जोर देते हुए कहा कि इस योजना को कामयाब बनाने के लिए लक्षित लाभार्थियों तक ऋणों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
अच्छी फोटोग्राफी एक बेहतरीन कला है - अरुण जेटली
केन्द्रीय वित्त, कॉरपोरेट मामले तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार उन रचनात्मक पेशेवरों को सरकार द्वारा सम्मान और पहचान देने की एक बड़ी पहल है, जिन्होंने अपने रचनात्मक चित्रों की महारत से इतिहास में क्षणों को परिभाषित किया है। फोटोग्राफर प्रतिकूल परिस्थितियों में कार्य करते हैं और दिन के उन क्षणों को तस्वीरों में कैद करने के लिए लंबी प्रतीक्षा करते हैं, जो जनमानस के मन में प्रभाव डालने वाले हों। श्री जेटली ने ये उद्गार आज 5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार समारोह के अवसर पर अपने संबोधन में व्यक्त किए। सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर तथा सूचना और प्रसारण सचिव श्री सुनील अरोरा भी इस अवसर पर मौजूद थे।
इस अवसर पर श्री जेटली ने कहा कि फोटोग्राफी एक जटिल कला है, जो विभिन्न घटनाओं/हस्तियों से संबंधित तस्वीरों को कैद करने के माध्यम से हमें संबंधित इतिहास की याद दिलाती है। उन्होंने श्री भवन सिंह के पेशेवर कार्य की प्रशंसा की, जिन्हें सातवें दशक के अंत से अभी तक भारत की तस्वीर यात्रा को कैमरे में कैद करने के उत्कृष्ट कार्य के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया है। श्री जटली ने श्री भवन सिंह के चार दशकों से भी अधिक लंबे कैरियर के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण अवसरों पर छवियों को चित्रित करने में उनकी पेशेवर दक्षता का भी उल्लेख किया।
इस अवसर पर सूचना और प्रसारण सचिव श्री सुनील अरोरा ने कहा कि एक फोटोग्राफ/कार्टून में एक पूरे संपादकीय लेख से भी अधिक अभिव्यक्ति की शक्ति होती है। उन्होंने यह भी कहा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन फोटो प्रभाग एक मीडिया इकाई है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं के स्टिल फोटोग्राफों के उत्पादन और भंडारण में लगा देश का सबसे बड़ा संगठन है, जो अपने संग्राहक की डिजिटलीकरण प्रक्रिया चला रहा है।
श्री अरुण जेटली और कर्नल राज्यवर्धन राठौर ने 5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार के विजेताओं को सम्मानित किया। श्री भवन सिंह को उनके शानदार कैरियर तथा फोटोग्राफी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान किया गया। श्री भवन सिंह ने भारतीय समाचार उद्योग में लगभग पांच दशकों से अधिक समय कार्य किया और वे देश के एक वरिष्ठ फोटो पत्रकार हैं। उन्होंने अपना कैरियर एक समाचार पत्र से शुरू किया और बाद में अनेक पत्रिकाओं में कार्य किया। उन्होंने इंडिया टुडे पत्रिका में पत्रिका फोटो संपादक के रूप में भी कार्य किया। उन्हें विश्व प्रेस फोटो पुरस्कार भी दिया जा चुका है।
विभिन्न श्रेणियों में कुल 13 पुरस्कार प्रदान किए गए, जिनमें वर्ष के पेशेवर फोटोग्राफर, विशेष उल्लेख पुरस्कार (पेशेवर), वर्ष का शौकिया फोटोग्राफर, विशेष उल्लेख पुरस्कार (शौकिया) शामिल हैं। वर्ष का फोटोग्राफर पुरस्कार श्री जावेद अहमद डार को प्रदान किया गया, जिन्होंने मानव हित की तस्वीरों को वरीयता दी गई। उनके फोटो अनेक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में प्रकाशित हुए हैं। श्री हिमांशु ठाकुर को वर्ष का शौकिया फोटोग्राफर पुरस्कार प्रदान किया गया। श्री जेटली ने 5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार के ब्रोशर का भी विमोचन किया, जिसमें पुरस्कार विजेताओं और उनके कार्यों का पूरा विवरण दिया गया है।
5वें राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कारों की ज्यूरी के लिए श्री अशोक दिलवाले की अध्यक्षता में छह सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। ज्यूरी के अन्य सदस्यों के नाम श्री के. माध्वन पिल्लई, श्री सुधारक ओलवे, श्री एस. सतीशे, श्री गुरिंदर ओसान और श्री संजीव मिश्रा हैं।
मेडिकल कॉलेजों के लिए ऑन लाइन पीजी आवेदन शुरू
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मेडिकल कॉलेजों में आवेदन के लिए आवेदन/प्रस्ताव जमा करने की नई प्रक्रिया शुरू की है। यह प्रक्रिया आवेदनों को व्यक्तिगत रूप से जमा करने की परंपरागत प्रक्रिया के साथ-साथ चलेगी। संशोधित प्रक्रिया के अनुसार ऑन लाइन आवेदन करना जरूरी है। यह प्रक्रिया 15 मार्च, 2016 से लागू होगी और आवेदन करने की आखिरी तारीख 7 अप्रैल, 2016 है।
आवेदन के लिए www.mohfw.nic.in पर जाएं और medicalcollegeappication.gov.in. के लिंक पर क्लिक करें। आवेदकों से रजिस्टेशन विंडो पर वैध मेल पते का उपयोग करते हुए, एक बार ही पंजीकरण करने का अनुरोध किया जाता है। सफल पंजीकरण के बाद आवेदक को एक आईडी मिलेगा। आवेदक इस आईडी और पासवर्ड का उपयोग करते हुए लॉग-इन करेंगे और ऑन लाइन आवेदन की शर्तों को पढ़कर उसे स्वीकार करेंगे। आवेदन पत्र के सभी कॉलमों को भरना जरूरी है। आवेदकों से विश्वविद्यालय संबद्धता की स्वीकृति की स्कैन प्रति अपलोड करने का भी अनुरोध है। डिमांड ड्राफ्ट (फीस भुगतान के सबूत के रूप में) या अन्य दस्तावेज अगर आवश्यक हो, तो उसे भी जमा करना होगा। इसके बाद आवेदन को अपलोड करना होगा। आवेदन पत्र को सफलतापूर्वक जमा करने के बाद एक पावती प्रदान की जाएगी, जिसे आवेदक को बाद की अनुवर्ती कार्रवाई के लिए अपने पास सुरक्षित रखना होगा। आवेदकों से एमसीआई विनियमों के अनुसार निर्धारित पूरे आवेदन पत्र को व्यक्तिगत रूप से जमा करने का भी अनुरोध किया जाता है, जिसके साथ फीस भुगतान के सबूत के रूप में मूल ड्राफ्ट के साथ वैध दस्तावेज भी जमा करने होंगे। यह भी ध्यान दें कि ऑन-लाइन आवेदन एक पूर्ण आवेदन नहीं है। यह केवल उपरोक्त शर्त को पूरा करने का माध्यम है, जिसके बाद ही किसी आवेदन को पूरा माना जाएगा।
भ्रामक विज्ञापनों और नकली उत्पादों से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार ने कमर कसी
भ्रामक विज्ञापनों और नकली उत्पादों से उपभोक्ताओं की संरक्षा और उपभोक्ताओं की शिकायतों के प्रभावी निवारण के लिए, उपभोक्ता मामले विभाग ने इस संबंध में छ: सूत्री एजेंडा को कार्यान्वित करने के लिए उद्योग एसोसिएशन के साथ साझेदारी की है। इस संदर्भ में, एक समझौते ज्ञापन पत्र पर केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री श्री राम विलास पासवान की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए जाएगें।
इस सहमति पत्र में निष्पक्ष व्यापार कार्यप्रणालियों के स्व–नियामक कोड को तैयार करने और कार्यान्वित करने पर समन्वित कार्यक्रम, उद्योग जगत के भीतर ही उपभोक्ता मामले विभाग की स्थापना, नकली, मानको से कम के उत्पादों को रोकने और गलत व्यापार कार्यप्रणालियों के खिलाफ समर्थन की पहल और उद्योग सदस्यों के द्वारा स्वैच्छिक मानकों को स्वीकार करना शामिल है। उपभोक्ता जागरूकता और गतिविधियों के संरक्षण के लिए सीएसआर कोष का निर्धारण, शिकायतों के समाधान के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता हैल्पलाइन और राज्य उपभोक्ता हैल्पलाइन में समन्वयय, ‘’जागो ग्राहक जागो’’ के अतंर्गत संयुक्त उपभोक्ता जागरूकता, शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का शुभारंभ भी इस एजेंडे का अंग होंगे। एक संयुक्त कार्यकारी समूह इस एजेंडे के कार्यान्वयन की निगरानी करेगा।
उपभोक्ताओं के अधिकारों को प्रोत्साहन देने और उनकी सुरक्षा करने के लिए सभी हितधारकों के बीच सक्रिय साझेदारी की आवश्यकता होती है। उपभोक्ता मामले विभाग और औद्योगिक एसोसिएशन-एसोचैम, सीआईआई, डीआईसीसीआई, फिक्की और पीएचडी वाणिज्य और उद्योग चैम्बर ने उपभोक्ता शिकायत निवारण, उपभोक्ता जागरूकता में वृद्धि और भ्रामक, नकली उत्पादों के विज्ञापनों के खिलाफ सुरक्षा और कार्रवाई नामक तीन प्राथमिक क्षेत्रों को शामिल करते हुए छ: सूत्री साझेदारी पर सहमति जताई है। इस कार्यक्रम के दौरान, उद्योग इकाईयों द्वारा उपभोक्ताओं के पक्ष में नैतिक व्यापार व्यवहार के स्व-विनियामक कोड और वीडियो स्पॉट भी जारी करेंगी। सरकार और उद्योग जगत की इस संयुक्त पहलों से उपभोक्ताओं के अधिकारों को संरक्षित करने में निश्चित रूप से दीर्घकालिक रूप से मदद मिलेगी और सभी हितधारकों के लिए भी यह बेहतर स्थिति होगी।
भारत सरकार का उपभोक्ता मामले विभाग कल विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 2016 मना रहा है। यह अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता आंदोलन के साथ एकजुटता को दशाने वाला एक वार्षिक अवसर है। विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस उपभोक्ताओं के मूल अधिकारों को प्रोत्साहन और उनकी संरक्षा के लिए एक अवसर है।
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सोमवार, 21 मार्च 2016
भूमिगत जल पर राष्ट्रीय संवाद
देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमिगत जल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1970 के दशक में हरित क्रांति की शुरूआत के दौरान भूमिगत जल के प्रयोग में महत्वपूर्ण वृद्धि शुरू हुई, जो अब तक जारी है जिसके फलस्वरूप जलस्तर घटने, खेतों में कुओं की कमी और सिंचाई स्रोतों की दीर्घकालिकता में हृास के रूप में पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा। इसके अलावा देश में कई जगहों पर प्राकृतिक गुण और मानवोद्भव कारणों से सम्पर्क प्रभाव के कारण भूमिगत जल पीने योग्य नहीं रहा।
भू-जल की गुणवत्ता में गिरावट औऱ उत्पादक जलभृत क्षेत्रों में संतृप्ति में कमी के दोहरे खतरों से निपटने और विभिन्न हितधारकों के बीच व्यापक विचार-विमर्श के माध्यम से बेहतर भू-जल प्रशासन और प्रबंधन हेतू रणनीति तैयार करने के लिए, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा के कायाकल्प मंत्रालय ने 2015-16 के दौरान 'जल क्रांति अभियान' शुरू किया है। इस अभियान के तहत मंत्रालय ने हाल ही में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में 'बहुजल मंथन' शीर्षक से स्वच्छ और टिकाऊ भूजल पर एक राष्ट्रीय संवाद का आयोजन किया। मुख्य रूप से इसका उद्देश्य, बहुमूल्य संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने औऱ पारिस्थितिकी के साथ तालमेल और सद्भाव प्राप्त करने के लिए भू-जल संसाधनों के विकास और इसके प्रबंधन में लगे विभिन्न हितधारकों के बीच सामूहिक बातचीत की आवश्यकता पर बल गया। एक दिन की बातचीत भूमि-गत जल के उपयोग पैटर्न में परिवर्तन की ओर अभिविन्यस्त की गयी थी जिसको लेकर बाद में क्षेत्रीय और स्थानीय दोनों स्तर पर विभिन्न हितधारकों के बीच गतिरोध पैदा हुआ। संगोष्ठी में उपलब्ध भू-जल के सबसे कुशल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उपकरण और उपाय, दीर्घकालिक भू-जल की गुणवत्ता को बनाए रखने, और बढ़ती मांग का सामना करने के लिए भू-जल के प्रबंधन से संबंधित उभरते मुद्दों को संबोधित किया गया।
विशेषज्ञों और विभिन्न मंत्रालयों, सरकार, संगठनों, गैर सरकारी संगठनों, भू-जल डोमेन पर काम कर रहे अनुसंधान संस्थानों के देश भर से आयें अधिकारियों, प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों और हितधारकों जैसे किसानों और उद्योगपतियों सहित लगभग 2000 लोगों ने इस संगोष्ठी में भाग लिया।
भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय में अपर सचिव, डॉ अमरजीत सिंह ने कार्यक्रम के तकनीकी सत्र का उद्घाटन किया । डॉ अमरजीत सिंह ने जल संरक्षण और प्रबंधन अभियान की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए छात्रों और युवा पेशेवरों का आह्वान किया। उन्होंने उदाहरण दे कर बताया कि किस प्रकार इस्ररायल 98 प्रतिशत वर्षा के पानी का उपयोग करता है और वैज्ञानिकों/प्रबंधकों से हमारे देश में भी यह संभव बनाने के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार करने के लिए कहा।
तकनीकी सत्र को निम्न विषयों पर चार भागों में विभाजित किया गया था:
1. जिओजेनिक भू-जल प्रदूषण - आर्सेनिक और फ्लोराइड के विशेष संदर्भ में, मानवजनित भू-जल प्रदूषण - शमन उपाय।
2. भू-जल पर दबाव वालें क्षेत्र - सतत उपयोग के लिए हस्तक्षेप प्रबंधन, भू-जल मानचित्रण और हालिया तकनीक का इस्तेमाल।
3. जल संरक्षण और सतही और भूमिगत जल का कुशल तरीके से संयुक्त उपयोग।
4. जलवायु परिवर्तन और रणनीतियों के लिए भू-जल तंत्र प्रतिक्रिया। भू-जल: कुशल उपयोग और उसके सतत प्रबंधन के लिए लोगों की भागीदारी।
उल्लेखित विषय के विभिन्न पहलुओं से संबंधित कुल 27 पेपर तकनीकी सत्र के दौरान प्रस्तुत किए गए। तकनीकी सत्र ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं:
• मानव स्वास्थ्य पर जिओजेनिक / मानवजनित प्रदूषण का प्रभाव बेहतर ढंग से समझने के लिए अध्ययन किया जाएगा।
• भूजल प्रदूषण के दूर करने के लिए पायलट अध्ययन और अधिक तेजी से किया जाना चाहिए।
• जन जागरूकता एवं क्षमता निर्माण अभियान के माध्यम से भू-जल प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में समुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
• पूरे देश में बड़े पैमाने पर मानचित्रण का कार्य करने के लिए विद्युत प्रतिरोधकता टोमोग्राफी और हैली जनित सर्वेक्षण जैसी उन्नत भूभौतिकीय अध्ययन किए जाने चाहिए।
• सुदूर संवेदन तकनीक भू-जल री-चार्च और ड्राफ्ट की कंप्यूटिंग की वर्तमान पद्धति की पूरक हो सकती है।
• कृत्रिम पुनर्भरण तकनीक की योजना बनाई हो स्रोत पानी के लिए समुद्र और वैकल्पिक व्यवस्था में मीठे पानी समुद्री जल इंटरफेस पुश करने के लिए नियोजित किया जाना चाहिए।
• सतह और भूमिगत जल के संयुक्त उपयोग के लिए, दो प्रायोगिक परियोजनाओं का क्रियान्वयन दो बड़े नहर कमांड क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहां अध्ययन पहले ही पूरा किया जा चुका है।
• नहर के पानी के साथ संयुक्त उपयोग के लिए गहरे जलवाही स्तर से भू-जल प्रयोग का सफल प्रदर्शन किया गया है, लेकिन किसानों के उथले नलकूप पर इसके प्रभाव के कानूनी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए।
• देश के पूर्वी राज्यों में बड़े पैमाने पर भू-जल विकास संभव है और भारत में खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए इन क्षेत्रों में एक दूसरी 'हरित क्रांति' की आवश्यकता है।
• सफल कृषि पारिस्थितिकी के श्रेष्ठ कार्यों को अरक्षणीय भू-जल विकास के क्षेत्रों में दोहराये जाने करने की जरूरत है जैसे उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्र।
• एक जल विवरणिका के नीचे बड़े पैमाने पर खनन के लिए किसी प्रस्ताव की मंजूरी के लिए व्यावहारिक जल संसाधन प्रबंधन योजना को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
• देश के भू-जल संसाधनों की भरपाई करने के लिए उपयुक्त डिजाइन वाली जल संरक्षण संरचनाओं के कार्यान्वयन के माध्यम से पहाड़ी क्षेत्रों में झरनों के संरक्षण और बोरवेल के अंधाधुंध निर्माण को सीमित करके भू-जल के संरक्षण के लिए प्रयास करने होंगे ।
• विशेष रूप से कृषि जरूरतों के संबंध में जलवायु परिवर्तन के परिणाम के रूप में वर्तमान और अनुमानित पानी की कमी को पूरा करने के लिए जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में भू-जल प्रबंधन को शामिल करना चाहिए।
• ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीक के माध्यम से भूजल से पानी की क्षमता में सुधार करने के लिए जलभृत विशेषताओं को भू-जल संरचनाओं से जोड़ा जाना चाहिए।
• ग्रामीण क्षेत्रों से विशेष रूप से महिलाओं को जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से गैर-पीने योग्य पानी और उससे संबंधित सभी स्वास्थ्य खतरों से अवगत कराया जाना चाहिए। उन्हें पानी को संरक्षित करने, खुले कुओं में जल स्तर को मापने, पानी के गुणों का परीक्षण करने और उपयोग के लिए इसे सुरक्षित बनाने की विभिन्न तकनीकों को जानने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हें सभी क्षेत्रों के लिए पानी के वितरण में भागीदार बनाया जाना चाहिए जिससे जिम्मेदारी, न्याय, अधिकारों का सम्मान और गरीबों की हकदारी होगी।
भू-जल मंथन के समापन सत्र को संबोधित करते जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने वर्षा जल संचयन के माध्यम से भू-जल की बर्बादी को कम करने और भरपाई के लिए अभियान में लोगों की भागीदारी की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आम जनता से पानी के मुद्दों को विवादास्पद नहीं बनाने के साथ ही उसे समुदायों और राज्यों के बीच बेहतर संबंधों को बढ़ावा देने के लिए उपकरण के रूप में उपयोग करने के लिए अपील की।
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